Friday, 22 July 2016

राहुल गांधी माफी मांगें या मुकदमा झेलें

चुनावी माहौल में अकसर हमने देखा है कि नेतागण कभी-कभी ऐसे बयान दे देते हैं जिनसे बचना चाहिए। उदाहरण के तौर पर महात्मा गांधी की हत्या के लिए राहुल गांधी द्वारा दिया गया बयान। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने बीते साल छह मार्च को महाराष्ट्र के ठाणे में एक चुनावी रैली में कह दिया था कि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के लोगों ने गांधी जी की हत्या की। इस बयान पर महाराष्ट्र के भिवंडी के मजिस्ट्रेट कोर्ट में आरएसएस के राजेश पुंटे ने केस दर्ज किया था। आपराधिक मानहानि के केस को खारिज कराने की मांग को लेकर राहुल बीते साल मई में सुप्रीम कोर्ट गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी राहुल को यह मामला बंद करने के लिए खेद जताने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने सलाह को मानने से इंकार करते हुए कहा था कि वह मुकदमा लड़ेंगे। इस विवादित बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राहुल गांधी से कहा कि वह अपने बयान के लिए माफी मांगें या मुकदमा झेलने के लिए तैयार रहें। शीर्ष अदालत ने राहुल गांधी सामूहिक आक्षेप लगाने पर खिंचाई करते हुए कहा कि उन्हें मुकदमा झेलना पड़ेगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राहुल से कहा कि आप संघ के खिलाफ व्यापक तौर पर ऐसा बयान कैसे दे सकते हैं? कैसे संघ से जुड़े लोगों को एक ही तराजू पर तोल कर दिखा सकते हैं। पीठ ने पूछा कि राहुल ने गलत ऐतिहासिक साक्ष्य को अपने बयान का हिस्सा क्यों बनाया? अदालत ने सामूहिक मानहानि की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। यानि अगर जो भड़काऊ या आपत्तिजनक बयान देगा उसे मुकदमा झेलना पड़ेगा। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि राहुल गांधी के माफी मांगने का सवाल ही नहीं पैदा होता। वह एक परिपक्व नेता हैं और उनको ऐतिहासिक तथ्यों की पूरी जानकारी है। राहुल और कांग्रेस पार्टी उचित मंच पर इन सभी टिप्पणियों का बचाव करेगी। संघ के मनमोहन वैद्य का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कांग्रेस की पोल खुल गई है। राहुल गांधी सुनवाई से बच रहे हैं और बार-बार वही झूठा आरोप संघ के खिलाफ लगा रहे हैं। इससे लगता है कि उनका देश की न्याय व्यवस्था में कोई भरोसा नहीं है। राहुल के वकील के मुताबिक राहुल के भाषण में जो भी कहा गया है वह सरकारी रिकार्ड और पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के आधार पर कहा गया। राहुल सीधे तौर पर आरएसएस का जिक्र नहीं कर रहे थे। इस पर बैंच ने हाई कोर्ट का फैसला पढ़ने के बाद कहा कि इसमें केवल इतना कहा गया है कि नाथूराम गोडसे आरएसएस का कार्यकर्ता था। बैंच ने कहा कि गोडसे ने गांधी को मारा और आरएसएस ने गांधी को मारा, दोनों अलग-अलग बात हैं। कई साल से कोशिश हो रही है कि ऐतिहासिक हस्तियों के जीवन में प्रवेश कर उसे नया आयाम दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के बावजूद राहुल का अपने रुख पर अड़े रहना शायद उन्हें लगता है कि इससे उनकी एक बहादुर नेता के तौर पर छवि बनेगी और कांग्रेस पार्टी का अल्पसंख्यक वोट बैंक कन्सालिडेट होगा। शायद उन्हें ऐसी सलाह इस मकसद से दी गई है कि इससे वह संघ का राजनीतिक रूप से सामना करते हुए दिखेंगे, लेकिन हमारा मानना है कि यह सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है। आमतौर पर इस तरह की राजनीति सियासी दलों के नेतृत्व करने वाले नेता नहीं करते। आधे-अधूरे तथ्यों के साथ उकसावे वाले बयान देने वाले नेता वैसे हर दल में हैं। इस दृष्टि से कोर्ट का यह फैसला कई मायनों में विशेषकर राजनीतिक क्षेत्र के लिए अहम है। कोर्ट का साफ-साफ शब्दों में यह कहना है कि आप किसी को पब्लिकली क्रिटिसाइज नहीं कर सकते, सराहनीय है। इस फैसले पर अगर सही ढंग से गौर किया जाए तो मौजूदा राजनीति के स्तर में जो गिरावट आई है, उसमें काफी हद तक सुधार हो सकता है, अगर राजनेता इस फैसले को गंभीरता से लें। आमतौर पर हमने देखा है कि बेसिर-पैर के आरोप लगाने से भी राजनीतिक दल के नेता परहेज नहीं करते। राहुल गांधी का संघ से वैचारिक मतभेद हो सकता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह उसे बदनाम करें। राहुल गांधी का जो रुख और रवैया है उससे कांग्रेस को कुछ सियासी लाभ मिल सकता है लेकिन इससे कुल मिलाकर राहुल गांधी की अपनी छवि पर बुरा असर पड़ेगा। हमें तो लगता है कि अंतत उन्हें संघ से माफी मांगनी पड़ेगी।

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