Saturday 30 April 2011

मेजर इकबाल सहित लश्कर के 4 आतंकी अमेरिकी अदालत में आरोपी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 30 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

26/11 हमलों में एक अमेरिकी अदालत में दूसरा आरोप पत्र दाखिल किया गया है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि 26/11 मुंबई हमलों में पाकिस्तान और आईएसआई सीधी जुड़ी हुई थी। सोमवार को शिकागो की संघीय अदालत में दूसरी बार आरोप पत्र दाखिल किया गया। इस नए आरोप पत्र के मुताबिक 26/11 हमले के साजिशकर्ताओं में चार नए नाम जुड़ गए हैं। इनमें से एक पाकिस्तानी सेना का मेजर इकबाल भी है। मेजर इकबाल के अलावा साजिद मीर, मजहर इकबाल और अबू कहाफा को भी इस केस में शामिल किया गया है। इन सबके अलावा लश्कर-ए-तोयबा के एक अन्य अनाम आदमी `मेम्बर डी' पर भी आरोप लगाए गए हैं। यह सभी पाकिस्तान में रहने वाले हैं। इन पर भारत में अमेरिकी नागरिकों की हत्या में मदद करने और आतंकवादियों को उकसाने का आरोप है।
नए आरोपों में कहा गया है कि मुंबई हमले के दौरान हमलावर (अजमल कसाब एण्ड कम्पनी) सैटेलाइट फोन के जरिये पाकिस्तान में मौजूद साजिद मीर, अबू कहाफा और मजहर इकबाल से सीधे सम्पर्प में थे। आरोप पत्र के मुताबिक हमले के आखिरी समय तक उन्होंने मुंबई में मौजूद आतंकवादियों को बंधकों को मारने, आग लगाने और ग्रैनेड फेंकने जैसे आदेश भी दिए। फरवरी 2010 में पाकिस्तान को सौंपे गए एक डोजियर में भारत ने भी पाकिस्तान सेना के दो अफसरों `मेजर इकबाल' और `मेजर समीर अली' पर मुंबई हमले में संलिप्त होने का आरोप लगाया था। यह डोजियर 25 फरवरी 2010 को भारत-पाक विदेश सचिवों की नई दिल्ली में हुई वार्ता के दौरान सौंपा गया था।
मेजर इकबाल का नाम पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक डेविड हेडली से एफबीआई की पूछताछ में सामने आया है। इन चारों का नाम पहले भी मामले में आया था, हालांकि अभियोग में इनके नामों को नहीं जोड़ा गया था। पहले केवल अमेरिका में शुरू होने वाले मुंबई हमले के केस में केवल डेविड हेडली और पाकिस्तानी मूल के कनाडा निवासी तहव्वुर हुसैन राणा पर अभियोग लगाए गए थे। 26/11 हमलों में छह अमेरिकी नागरिक मारे गए थे चूंकि यह अदालती अमेरिकी अदालत में चल रही है इसलिए इसका महत्व ज्यादा हो जाता है। मुकदमे के दौरान कई डिटेल्स पेश होंगी जिससे 26/11 में पाकिस्तान की सीधी इन्वालमेंट साबित होगी। चूंकि यह अमेरिकी अदालत में होगा इसलिए पाकिस्तान इतनी आसानी से इससे अपना पल्ला झाड़ भी नहीं पाएगा। अब तो पाकिस्तान भी यह मानने लगा है कि 2008 के मुंबई हमलों में इन आतंकियों का हाथ था। पाक गृहमंत्री रहमान मलिक ने कहा है कि उनके देश की जांच एजेंसियों ने कहा है कि वर्ष 2008 के मुंबई हमले के साजिशकर्ताओं को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत हैं और उन्हें विश्वास है कि कोर्ट इन्हें जरूर दोषी ठहराएगी। मलिक ने कहा, `मुझे इन मामलों में इसलिए भी यकीन है, क्योंकि सबूतों को एकत्र कर कोर्ट में पेश किया जा चुका है।' पाक अदालत में तो केस चल ही रहा है पर ज्यादा जरूरी शिकागो अदालत का मुकदमा है। यह पाकिस्तान और आईएसआई को पूरी तरह बेनकाब कर देगा।

बेशक मसौदा रिपोर्ट खारिज कर दी गई पर डॉ. जोशी अपने मकसद में सफल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 30 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

यह तो होना ही था। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की जांच कर रही लोक लेखा समिति (पीएसी) की मसौदा रिपोर्ट खारिज कर दी गई। बृहस्पतिवार को पीएसी की बैठक में मसौदा रिपोर्ट पर भारी हंगामा हुआ जिस पर इसके अध्यक्ष भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने बैठक स्थगित कर दी और विपक्षी दलों के अन्य सदस्यों के साथ बैठक से चले गए। इसके बाद मसौदा रिपोर्ट को संप्रग सदस्यों ने सपा और बसपा के सदस्यों के सहयोग से रद्द कर दिया। डॉ. जोशी द्वारा तैयार मसौदा रिपोर्ट पर विचार के लिए बुलाई गई समिति की बैठक फलस्वरूप अफरातफरी में समाप्त हो गई। जोशी जी मतदान से पहले ही बैठक से उठकर चले गए। उन्होंने कहा कि चूंकि उन्होंने बैठक स्थगित कर दी है इसलिए कोई कार्यवाही नहीं हो सकती पर संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल ने इस विषय पर उनसे मतभेद जताते हुए कहा कि हमारे विचार से रिपोर्ट खारिज हो गई है, यह मामला समाप्त हो गया है। अब सभी की निगाहें जेपीसी पर है। इस पीएसी का कार्यकाल 30 अप्रैल को समाप्त हो रहा है।
लोक लेखा समिति (पीएसी) संसद की महत्वपूर्ण समिति है। इसकी रिपोर्ट और टीका-टिप्पणी खासा महत्व रखती रही है। समिति के अध्यक्ष डॉ. जोशी इसी फेर में रहे हैं कि 30 अप्रैल से पहले ही जांच रिपोर्ट आ जाए जबकि कांग्रेस और डीएमके सदस्यों ने ठान रखी थी कि कोई न कोई अड़ंगेबाजी करके रिपोर्ट न आने दें। डॉ. जोशी भी कम उस्ताद नहीं हैं। उन्होंने तमाम विरोध, आपत्तियों व अड़ंगेबाजियों के कुछ हद तक अपने लक्ष्य में सफलता पा ही ली। 270 पन्नों की इस ड्राफ्ट रिपोर्ट में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन की भी जमकर खबर ली गई है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में उनके कार्यालय की भूमिका को शक के घेरे में खड़ा किया गया है। कहा गया है कि प्रधानमंत्री इस घोटाले को होते हुए देखते रहे। ऐसे में वह कम जिम्मेदार नहीं हैं। ड्राफ्ट रिपोर्ट में कई जगह प्रधानमंत्री की भूमिका पर कड़ी टिप्पणियां भी की गई हैं। इसी को लेकर कांग्रेस के नेता बौखला गए। रिपोर्ट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि उन्होंने समय रहते कदम नहीं उठाया बल्कि इसे `बन्द फाइल' मान लेने की बात कही। ताकि पीएमओ भी किसी कार्रवाई के बारे में पुनर्विचार न करे। इस तरह से चिदम्बरम को भी कटघरे में खड़ा कर दिया गया है। सुझाव तो यह भी दिया गया है कि चिदम्बरम की भूमिका की भी व्यापक जांच होनी चाहिए। इस विवादित ड्राफ्ट रिपोर्ट को लेकर सत्तारूढ़ धड़ा बेचैन हो गया है। पूरी ताकत लगाई जा रही है कि डॉ. जोशी का शो कामयाब न हो। लेकिन डॉ. जोशी के दांव ने काफी हद तक अपना मकसद पूरा कर लिया है। बेशक जोर-जबरदस्ती करके सत्तापक्ष सांसदों ने पीएसी की रिपोर्ट को रद्द कर दिया हो पर डॉ. जोशी ने प्रधानमंत्री, उनके पीएमओ और चिदम्बरम की तरफ शक की सुई घुमाकर अपनी उस्तादी का कमाल तो दिखा ही दिया है। अब कांग्रेस के लोग सालों-साल सफाई देते रहेंगे। यह समिति सांसदों की है इसलिए इसे इतनी आसानी से रद्दी की टोकरी में नहीं फेंका जा सकता। भाजपा और विपक्ष सांसद इसे उठाने का भरपूर प्रयास जरूर करेंगे।

Friday 29 April 2011

पूरी तरह लपेटे में आ चुके हैं करुणानिधि और उनका परिवार

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 29 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

यह कलयुग है और कलयुग में भगवान राम को गाली देने वाले भी मौजूद हैं पर भगवान राम को गाली देने वाला अंतत धरा जाता है और जब उपर वाले के प्रकोप का डंडा चलता है तो बन्दे के होश ठिकाने हो जाते हैं। यही कुछ हाल द्रमुक प्रमुख एम. करुणानिधि का भी हो रहा है। यह वही करुणानिधि हैं जिसने रामसेतु समुद्र परियोजना में सवाल पूछा था कि राम ने कौन-सी यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी। भगवान राम को खुली गाली देने की कीमत करुणानिधि को चुकानी पड़ेगी। करुणानिधि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले प्रकरण में बुरी तरह से उलझते जा रहे हैं। इनके तमाम तेवरों के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व इनकी ब्लैकमेलिंग में नहीं आ रहा है। यही नहीं कांग्रेस ने तो एक तरह से करुणानिधि को सीधी चुनौती दे दी है कि वे सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला करते हैं तो कर लें। लेकिन नई स्थितियों में उनका बचाव करना अब सम्भव नहीं है। करुणानिधि की तमाम कोशिशों के बावजूद उनके चहेते ए. राजा तिहाड़ में पहुंच चुके हैं। अब सांसद बेटी कनिमोझी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की आरोपी बन गई है। सीबीआई ने पूरक चार्जशीट दाखिल कर दी है। बेटी के कटघरे में आने से करुणानिधि का पूरा परिवार फंसता नजर आ रहा है। सीबीआई ने जो ताजा चार्जशीट दाखिल की है उसमें दावा किया गया है कि बहुचर्चित फर्म डीबी रियलिटी के जरिये कलैगनर टीवी के खाते में 214 करोड़ रुपये की रकम दी गई है। कलैगनर टीवी के प्रबंधन ने कागजों में हेराफेरी की और इस रकम को कर्ज के रूप में दिखा दिया। अपनी भूमिका पाक-साफ दिखाने के लिए टीवी संस्थान ने यह रकम भी लौटा दी। सीबीआई ने दावा किया है कि यह रकम उन कम्पनियों को मिली थी जिन्हें स्पेक्ट्रम आवंटन में फायदा पहुंचाया गया था। चूंकि ए. राजा, कनिमोझी के खास प्रभाव में थे, इसलिए उन्होंने कलैगनर टीवी को एक जरिया बना लिया। उल्लेखनीय है कि कलैगनर टीवी डीएमके के प्रचार मुखौटे की भूमिका में रहता है। आरोपी तो करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्माल को भी बनना था पर यह इसलिए फिलहाल नहीं हुआ क्योंकि वे टीवी संस्थान में महज एक साइलेंट पार्टनर थीं। कनिमोझी के साथ कलैगनर टीवी के प्रबंध निदेशक शरद कुमार को भी आरोपी बनाया गया है। इस संस्थान में उनकी भी 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी पाई गई। डीएमके के करीबियों का कहना है कि दयालु अम्माल भले सीबीआई के शिकंजे से बच गई हों, लेकिन वे अदालती जंजाल में फंस सकती हैं। क्योंकि जिस संस्थान में उनका मालिकाना हक 60 प्रतिशत का हो, उसके कार्यकलापों की जिम्मेदारी से वे कैसे मुक्त मानी जा सकती हैं? इसके साथ ही इस मामले से करुणानिधि के परिवार में आपसी द्वंद्व बढ़ सकती है क्योंकि करुणानिधि की एक पत्नी दयालु अम्माल फिलहाल बच गई हैं जबकि उनकी दूसरी पत्नी राजथी अम्माल की बेटी कनिमोझी घोटाले के लपेटे में आ गई है। करुणानिधि के परिवार में कई वजहों से पहले से ही घमासान चल रहा है। सीबीआई की चार्जशीट परिवार के द्वंद्व को और बढ़ा सकती है, रही-सही कसर तमिलनाडु विधानसभा परिणाम आने पर शायद पूरी हो जाए। अगर डीएमके हार जाती है तो दोनों तमिलनाडु और केंद्र से सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है। भगवान के घर देर है अन्धेर नहीं।

Karunanidhi and his family have been totally cornered

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Anil Narendra

This is “kalayuga” and in ” kalayuga” there are people who abuse Lord Rama, but those who abuse him get  caught and with the help of the stick that Almighty wields, the  person comes to his senses. Something like this has been happening to DMK chief M Karunanidhi. He is the same Karunanidhi who had asked from which university Ram had got an engineering degree when the Ram Setu controversy was at its peak. Karunanidhi will have to pay   a price for having abused Lord Ram. Karunanidhi is gradually getting more and more closely involved in the 2G scam. And in spite of all his tantrums, the Congress leadership has not been taken in by his blackmailing tactics. Not only this, Congress in a way has told him in no uncertain terms that he is free to withdraw support to the UPA government at the Centre. But in the new circumstances it has become impossible to bail him out. In spite of all his efforts, his favourite party-man and former union minister A Raja is cooling his heels in Delhi’s Tihar Jail. And now his daughter and Member of Parliament, Kanimozhi,  has become an accused in the 2G spectrum scam. In its additional chargesheet, the CBI has named her as accused.  With his daughter getting involved, Karunanidhi’s entire  family seems to be getting  involved in the  scam. In the fresh chargesheet that  the CBI has filed, it has said that through  the much talked about firm D B Reality,  Kalaignar TV had  got a sum of Rs. 214 crores in its account. Kalaignar TV chief had manipulated the papers and shown the money received as loan. To make a ground for showing itself as clean, the channel returned the loan. The CBI says that money was given to those companies which had got benefits from spectrum disbursement. As A Raja was said to be under the special influence of Kanimozhi, he made Kalaignar TV as a facilitating arm. It is significant that the channel is used as a publicity medium for the DMK.  Karunanidhi’s wife  Dayaluammal was also to be made an accused in the case, but she was not made an accused because she was  just a mere  silent partner in the TV company. Along with Kanimozhi, the director of Kalaignar TV, Sharad Kumar has also been made an accused. It has been found that Kumar had 20 percent of the shares in the company. Sources close to the DMK say that although Dayaluammal may not have been made an accused, she could also get involved in the legal tangle. Since she has 60 per cent shares in the company, how can she escape responsibility for the functioning of the company? The whole matter could also create a rift in the family because while one of Karunanidhi’s wives, Dayaluammal has been spared for the  present, his second wife, Rajathi Ammal’s  daughter, Kanimozhi,  has got entangled in the scam.  There has always been tension in Karunanidhi’s family for a long time on account of various reasons. And the CBI chargesheet could fuel more tension within the family. And whatever may be left could be filled by the results of the Tamilnadu Assembly elections. And if the DMK loses it will also have to forfeit power both at the Centre and state. In God’s abode, there may be delay, but there is no darkness.

आईएसआई एक आतंकवादी संगठन है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 29 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

भारत तो हमेशा से कहता आया है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई एक सही एजेंसी नहीं है और यह आतंकवाद को बतौर एक हथियार इस्तेमाल करती है पर अमेरिका सहित अधिकतर पश्चिमी देश हमारी बात से सहमत नहीं थे। अमेरिका ने तो आतंकवाद के खिलाफ जंग में पाकिस्तान को अपना स्ट्रेटेजिक पार्टनर तक बना रखा है पर जब खुद पर बीतती है तो अमेरिका भी बोलने  में मजबूर हो जाता है कि आईएसआई एक आतंकवादी संगठन है। द गार्डियन जैसे प्रतिष्ठित ब्रिटिश अखबार ने अमेरिकी गुप्तचर फाइलों का हवाला देते हुए कहा है कि गुआंतानामो-वे के जांचकर्ताओं को की गई सिफारिश में इंटरसर्विसेज महानिदेशालय के साथ-साथ अलकायदा, हमास और हिजबुल्ला को एक चुनौती करार दिया गया है। सितम्बर 2007 के इन दस्तावेजों में कहा गया है, इन समूहों में से किसी से भी संबंधित होने का अर्थ आतंकवादी या विद्रोही गतिविधि है। दस्तावेज में कहा गया है, `इन संगठनों के साथ संबंध रखने का अर्थ है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने अलकायदा या तालिबान को समर्थन दिया है या वह अमेरिका पर गठबंधन बलों के खिलाफ कार्रवाइयों में लिप्त रहा है।' हाल ही में अमेरिका की गुप्तचर सेवाओं को खबरें मिली थीं कि आईएसआई तालिबान को अफगानिस्तान में कई वर्षों से समर्थन दे रही है। इस खबर के प्रकाशित होने के कुछ समय बाद ही यह नया खुलासा हुआ है। अमेरिकी अधिकारियों की ओर से तैयार खुफिया दस्तावेज में आईएसआई का जिन तीन दर्जन आतंकी संगठनों के साथ उल्लेख किया गया है उनमें अलकायदा, तालिबान के अलावा भारत को खासतौर पर आतंकित करते रहने वाले लश्कर-ए-तोयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन भी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि यह दस्तावेज 2007 में तैयार किया गया हो लेकिन माना जा रहा है कि अमेरिका को चुनौती देने वाले संगठनों की सूची में से आईएसआई को अभी हटाया नहीं गया है। इसका सीधा अर्थ है कि जिस तरह पाकिस्तान ने आतंकवाद को लेकर दोहरे मानदंड अपना रखे हैं उसी तरह अमेरिका ने भी। पाकिस्तान यह दावा करता है कि वह भी आतंकवाद  के खिलाफ है और अपने दावे को सही ठहराने के लिए खुद के आतंकवाद से त्रस्त होने का रोना रोता है, लेकिन सच्चाई यह है कि वह एक बड़ी संख्या में आतंकी संगठनों का परोक्ष-प्रत्यक्ष रूप से समर्थन करता है। समय-समय पर अमेरिकी विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और यहां तक कि राष्ट्रपति बराक ओबामा यह कह चुके हैं कि आतंकवाद के खिलाफ अपेक्षित कदम उठाने से पाकिस्तान इंकार कर रहा है।
सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान दुनिया में एक मात्र देश है जो अपनी नीति और रणनीति के तहत आतंकवाद को प्रश्रय देता है। पाकिस्तान को आज इसीलिए आतंकवाद की नर्सरी कहा जाता है और आईएसआई की विभिन्न आतंकी कार्रवाइयों में संलिप्तता बार-बार उजागर भी होती रही है। मुंबई हमले में भी उसकी भूमिका से अब अमेरिका पूरी तरह वाकिफ हो चुका है। यही नहीं अमेरिका में 9/11 हमलों में भी आईएसआई की भूमिका थी। अमेरिका अन्दरखाते यह सब जानता है पर चूंकि अफगानिस्तान में उसे आईएसआई का साथ चाहिए इसलिए भी सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन जाता है। ताजा खुलासे से अमेरिका का पाक की ओर शायद ही नजरिया बदले पर भारत को यह संतोष जरूर होगा कि आज सारी दुनिया मानने लगी है कि आईएसआई एक आतंकी संगठन है।

Thursday 28 April 2011

आखिर हो ही गए सुरेश कलमाडी गिरफ्तार

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 28 अप्रैल 2011
अनिल नरेन्द्र

अंतत सुरेश कलमाडी गिरफ्तार हो ही गए। इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी की गिरफ्तारी बहुत दिन पहले ही हो जानी चाहिए थी जब दिल्ली में आयोजित कामनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार और बदइंतजामी को लेकर पूरी दुनिया में देश की किरकिरी शुरू हो गई थी। कलमाडी के लिए राहत की बात यह रही कि सारी दिक्कतों के बावजूद न केवल खेल ठीक से सम्पन्न हो गए बल्कि इन खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने भी पदकों का रिकार्ड बनाया। इधर भ्रष्टाचार का रिकार्ड बना तो उधर स्वर्ण पदकों का। पहले कई बार की पूछताछ के बाद सोमवार की सुबह सुरेश कलमाडी जब सीबीआई मुख्यालय पहुंचे तो कुछ घंटे की पूछताछ के बाद तकरीबन साढ़े तीन बजे जांच एजेंसी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। कलमाडी के अलावा उप महानिदेशक (पोक्योरमेंट) सुरजीत लाल और संयुक्त महानिदेशक (स्पोर्ट्स) एएसवी पसाद को भी गिरफ्तार किया गया। इन तीनों को स्विट्जरलैंड की कंपनी को कामनवेल्थ गेम्स के दौरान टाइमिंग, स्कोरिंग और रिजल्ट (टीएसआर) पणाली से संबंधित 141 करोड़ रुपए का ठेका देने में अनियमितता बरतने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
कलमाडी को सीबीआई ने अचानक गिरफ्तार नहीं किया है। इसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। रोचक तथ्य यह है कि कलमाडी को सलाखों के पीछे करने के लिए दोनों सीबीआई और कांग्रेस पार्टी को भारी मशक्कत करनी पड़ी। सीबीआई ने महज दस्तावेजों पर यकीन नहीं किया। यदि इन दस्तावेजों के आधार पर ही सुरेश कलमाडी की गिरफ्तारी करनी होती तो क्वींस बेटन रिले के दौरान राष्ट्रमंडल खेलों में आपूर्तिकर्ता लंदन निवासी एक ठेकेदार आशीष पटेल के घर देर रात को चालीस हजार पाउंड लेने गए कलमाडी के निकट सहयोगी और खेल समिति के सचिव महेन्द्र और अतिरिक्त निदेशक पद पर तैनात टीएस दरबारी के खिलाफ लिखाई गई पाथमिकी पर कार्रवाई न करना ही मजबूत आधार था। यही नहीं, एएम फिल्म्स तथा एएम कार और वैन हायर लिमिटेड मामले में अनियमितता के भी कई कागजी सबूत सीबीआई के हाथ थे। लेकिन इसे पुख्ता आधार न बनाकर सीबीआई ने बाकायदा कलमाडी के खिलाफ ऑडियो और वीडियो पमाण भी जुटाए। कलमाडी पर तो दर्जनों मामले बनेंगे, अभी तो यह शुरुआत है। सीबीआई ने बहुत सबूत एकत्र करके ही हाथ डाला है।
कलमाडी के सलाखों के पीछे जाने की पटकथा पधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर लिखी गई है। कैबिनेट सचिवालय ने युवा मामलों एवं खेल मंत्रालय को राष्ट्रमंडल खेल के घोटालों की जांच के लिए बनी शुंगलू कमेटी की रपट पर अपनी सलाह देने के अलावा इस रपट को आवश्यक कार्रवाई के लिए सीबीआई और पवर्तन निदेशालय (ईडी) को भी देने के लिए कहा गया। सूत्रों के मुताबिक कैबिनेट सचिवालय ने युवा मामलों एवं खेल मंत्रालय को 18 अपैल को एक पत्र लिखा। इसमें कहा गया था कि खेल में घोटाले को लेकर शुंगलू कमेटी ने जो रपट दी है उस पर मंत्रालय अपने स्तर पर जांच करे। खेल घोटाले को लेकर शुंगलू कमेटी ने जो 6 रपट दी है उसमें से रपट नम्बर पांच खेल मंत्रालय के आधीन हुए काम से संबंधित है। इसमें इवेंट मैनेजमेंट कंपनी ईकेएस और स्विस कंपनी टीएसआर (टाइम, स्कोर, रिजल्ट) में कथित घोटालों को अंगित किया गया है। मंत्रालय को जब यह रिपोर्ट मिली तो अगले दिन ही जांच के लिए सीबीआई को भेज दिया। सीबीआई ने भी इस मामले में कार्रवाई तेज करते हुए कलमाडी को गिरफ्तार कर लिया। सूत्रों के मुताबिक इस मामले में कार्रवाई हो और वह नजर भी आए इसका संकेत पधानमंत्री कार्यालय ने युवा मामलों एवं खेल मंत्रालय को भी कहा है कि वह सीबीआई का भी साथ दे।
2-जी घोटाले पर सीबीआई के पूरक आरोप पत्र में द्रमुक सुपीमो की बेटी कनिमोझी का जिक और राष्ट्रमंडल खेलों में घपलों के घेरे में आए कांग्रेस सांसद सुरेश कलमाडी की गिरफ्तारी और पार्टी से निलबंन। दरअसल कांग्रेस कलमाडी की गिरफ्तारी से असहज होने के बजाए, इस कार्रवाई के बहाने भ्रष्टाचार के खिलाफ बने माहौल में अपनी नैतिक सियासी बढ़त देख रही है। कलमाडी की गिरफ्तारी ऐसे वक्त हुई है जब कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के सबसे बड़े सहयोगी द्रमुक पमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोझी के खिलाफ सीबीआई ने शिकंजा कसते हुए अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया है। पार्टी पवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि मामला चाहे राष्ट्रमंडल खेलों का हो, 2-जी स्पेक्ट्रम का हो या फिर आदर्श हाउसिंग सोसायटी का मामला हो, कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने बिना किसी हस्तक्षेप के हर जांच को अपने निर्णायक निष्कर्ष तक पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि तथाकथित भ्रष्टाचार के पति एक संवेदनशील सरकार का उत्तरदायित्व यूपीए सरकार ने बखूबी निभाया है।
सुरेश कलमाडी की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीबीआई बिना पुख्ता सबूत जुटाए उन्हें सलाखों के पीछे भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। लेकिन संकट में फंसते ही कलमाडी की राजनीतिक ताकत भी मुट्ठी में भरे बालू की तरह फिसलती गई। उनकी पार्टी ने आनन-फानन में उनसे दूरी बना ली और पार्टी की सदस्यता से निलंबित कर दिया। यह बात और है कि आरोपों के दलदल में गर्दन तक फंसे होने के बावजूद कलमाडी हमेशा आकामक मुद्रा में ही नजर आते थे और बढ़ावे में अन्य बड़े लोगों को भी कठघरे में खड़ा करने लगते थे। सुरेश कलमाडी ने जो भी घपले किए हैं वह अकेले नहीं किए। दिल्ली की एक अदालत ने कलमाडी को आठ दिनों के लिए सीबीआई की हिरासत में भेज दिया है। पता नहीं कलमाडी सीबीआई हिरासत में क्या-क्या राज खोलते हैं, किस-किस का नाम लेते हैं। इस मामले में अभी और गिरफ्तारियों की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। अब इसे भारतीय लेकतंत्र का दुर्भाग्य कहिए या शुद्धिकरण की पकिया, तिहाड़ जेल में इन दिनों राजनीति, उद्योग जगत, नौकरशाह की ऐसी नामचीन हस्तियां आराम फरमा रही हैं जो कल तक देश को अपने ठेंगे पर रखती थी। अपनों को  फायदा देने के लिए कानून को ताक पर रख दिया गया। विरोध करने वालों की खाट खड़ी कर दी गई और सीना तान कर हर किस्म की बेईमानी की। सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि जब यह सब हो रहा था तो क्या यूपीए सरकार सो रही थी या फिर जब अन्ना हजारे आंदोलन ने इन्हें यह सख्त कदम उठाने पर मजबूर कर दिया?

Wednesday 27 April 2011

काश! 18 साल पहले वोहरा रिपोर्ट पर ध्यान दिया गया होता

प्रकाशित: 27 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

अक्सर पिछले कई सालों से यह देखने को आ रहा है की जब भी तानाशाही या भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई अभियान चलाया जाता है या उठाया जाता है तो प्रभावित नेता कभी तो लोकतंत्र कमजोर करने की दुहाई देकर तो कभी संस्थाओं को कमजोर करने का बहाना देकर उसकी हवा निकालने का प्रयास करते हैं। अन्ना हजारे के नेतृत्व में जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठी तो कुछ तत्वों ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया। यह कहा जा रहा है कि ऐसे अभियान से लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर होंगी। यह भी कहा जा रहा है कि अन्ना खुद तो ईमानदार हैं पर उनके आसपास जो नेता जुड़े हैं उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। साथ ही पूरी राजनीति को भ्रष्ट कहे जाने पर राजनेताओं ने खुलकर विरोध किया है। अन्ना ने कभी भी यह नहीं कहा कि सारे नेता भ्रष्ट हैं, उन्होंने हमेशा यह कहा कि अधिकतर नेता भ्रष्ट हैं पर सभी नहीं। किन्तु प्रभावशाली नेताओं पर लगे आरोपों को इस तरह से प्रचारित किया जा रहा है ताकि अपने भ्रष्टाचार की रक्षा में बड़ी सुरक्षात्मक दीवार खड़ी हो जाए। सवाल उठता है कि इस देश में लगातार व बेरोकटोक जारी अरबों रुपये के महाघोटालों से लोकतंत्र कमजोर होगा या भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से वह कमजोर हो जाएगा? बहस के लिए अगर आपको अन्ना हजारे व उनके साथियों द्वारा तैयार किए जा रहे जन लोकपाल बिल में कोई खोट नजर आती है तो इसके विरोधी ऐसा कोई वैकल्पिक विधेयक और जांच एजेंसी का प्रारूप तैयार क्यों नहीं कर पा रहे हैं जिसके बन जाने पर कोई भ्रष्टाचारी सजा से बच नहीं सके? अगर आप यह पहले ही कर देते तो अन्ना हजारे को शायद यह अभियान चलाना ही नहीं पड़ता।
ऐसा नहीं है कि इस देश में वर्षों से जारी भ्रष्टाचार व माफियागिरी की खबर दिल्ली दरबार को नहीं रही है। प्रशासनिक सुधार व चुनाव सुधार से संबंधित अन्य आयोगों व समितियों की चर्चित सिफारिशों को छोड़ दें तो भी यहां वोहरा समिति की चर्चित रिपोर्ट को एक बार याद करने की आवश्यकता है। 18 साल पहले 5 दिसम्बर 1993 को तत्कालीन गृह सचिव एनएन वोहरा ने एक सनसनीखेज रिपोर्ट पेश की थी। यह रिपोर्ट गृहमंत्री को सौंपी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि इस देश में अपराधी गिरोहों, हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों, तस्कर गिरोहों, आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लॉबियों का तेजी से विकास हुआ है। इन लोगों ने विगत कुछ सालों में स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों, राजनेताओं, मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर-सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक सम्पत्ति विकसित किए हैं। इनमें से कुछ के सिंडिकेटों की विदेशी आसूचना एजेंसियों के साथ-साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी हैं। इस रिपोर्ट को फिर पढ़ने से साफ लगता है कि वोहरा ने राडिया टेप मामले का पूर्वाभास पहले ही करा दिया था पर हमारी सरकारों ने वोहरा की चेतावनी को ग्रहण करने तथा उसकी सिफारिश पर अमल करना जरूरी नहीं समझा।
वोहरा रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि बिहार, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में इन गिरोहों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों का संरक्षण हासिल है। कुछ नेता इन गिरोहों के, अवैध हथियारबंद सेनाओं के नेता बन जाते हैं व कुछ ही सालों में स्थानीय निकायों, राज्य की विधानसभाओं तथा संसद के लिए निर्वाचित हो जाते हैं। नतीजतन इन तत्वों ने अत्याधिक राजनीतिक प्रभाव प्राप्त कर लिया है जिसके कारण प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने तथा आम आदमी के जानमाल की हिफाजत करने में गम्भीर बाधा उत्पन्न हो जाती है। इससे जनता में निराशा की भावना घर जाती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कुछ माफिया तत्व नारकोटिक्स, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी में संलिप्त हैं। उन्होंने विशेषकर जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपना एक नारको-तंत्र स्थापित कर लिया है। चुनाव लड़ने जैसे कार्यों में खर्च की जाने वाली राशि के मद्देनजर राजनीतिज्ञ भी इन तत्वों के चंगुल में आ गए हैं। समिति की बैठक में आईबी के निदेशक ने साफ-साफ कहा था कि माफिया तंत्र ने वास्तव में एक समानांतर सरकार चलाकर राज्य तंत्र को एक विसंगति में धकेल दिया है। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि इस प्रकार के संकट से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक संस्थान स्थापित किया जाए और स्पष्ट रणनीति तय की जाए।
पर देश को इस गर्त से बचाने के लिए गत 18 साल में इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया। इस बीच देश की स्थिति और भी बिगड़ती गई और अंतत सिविल सोसाइटी को सामने आना पड़ा। अन्ना हजारे का अभियान इसी तरह का संस्थान विकसित करने के लिए है। इस भीषण व दारुण स्थिति से देश को उबारने के लिए यदि विभिन्न सरकारों ने अपनी कानूनी व संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाया होता तो समय बीतने के साथ स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती और अन्ना हजारे के नेतृत्व में सिविल सोसाइटी को आगे नहीं आना पड़ता। सवाल मंशा का है। इस देश के अधिकतर नेताओं की मंशा सही नहीं है। यदि किसी की सही भी है तो वह भ्रष्ट तत्वों के सामने लाचार है। वोहरा समिति ने ठीक निष्कर्ष निकाला था कि आपराधिक सिंडिकेटों और माफिया संगठनों ने इस देश में काफी अधिक धन और बाहुबल अर्जित कर लिया है और सरकारी अफसरों व राजनीतिक नेताओं और अन्य लोगों के साथ संबंध कायम कर लिए हैं। इस कारण वे बिना दंडित हुए अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। मनमोहन सिंह से सवाल पूछा जाएगा कि यदि वे ईमानदार हैं तो उनकी सरकार में भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चौगुनी गति से क्यों बढ़ रहा है? यदि वे इसे नहीं रोक सकते और सच्चे दिल से इस कैंसर का इलाज करना चाहते हैं तो वह इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? जब संवैधानिक संस्थाएं अपना काम नहीं करेगीं और जनता के धन को तरह-तरह से लूटने की खुली छूट दे दी जाएगी तो आम जनता उठ खड़ी होगी ही। इधर घोटाले पर घोटाला हो रहा है उधर गरीब जनता महंगाई व बेरोजगारी से पिसती जा रही है। जनता जाग चुकी है। अन्ना हजारे के अभियान की बेशक आप हवा निकाल दें पर जनता के आक्रोश का लावा किसी न किसी रास्ते से जरूर फूटेगा।

Tuesday 26 April 2011

कारपोरेट कैदियों को तिहाड़ का लंगर पसंद नहीं आया

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 26 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

लाखों रुपये की सालाना सेलरी लेने वाले कारपोरेट जाइंट्स की आजकल तिहाड़ में जिंदगी कैसी गुजर रही होगी? प्राप्त समाचारों के अनुसार तिहाड़ में उनका हाल खस्ता है। 26 अप्रैल तक ये बड़े लोग जेल नंबर तीन के वार्ड नंबर चार में बारह फीट लम्बी और दस फीट चौड़ी कोठरी में ही दिन और रात बिताएंगे। इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट उनकी जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला देगी। जेल के पहले दिन बुधवार रात को इन लोगों को चार कंबल मिले। एक दरी, कुछ चादरें भी दी गईं। लेकिन जेल में कोई बन्द नहीं था लिहाजा उन्हें जमीन पर ही सोना पड़ रहा है। खाना भी उन्हें जेल में बना खाना पड़ रहा है। हां जेल में उनके लिए राहत की बात है कि कोठरी से लगा शौचालय में एक पंखा लगा हुआ है। लेकिन वार्ड में एक ही खिड़की है जहां से थोड़ी रोशनी उनके हिस्से  में आ सकती है। इनको अपना वार्ड छोड़ने की इजाजत नहीं है। दरअसल यूनिटेक के प्रबंधक निदेशक संजय चंद्रा, स्वान  टेलीकॉम के निदेशक विनोद गोयनका और धीरु भाई अंबानी समूह के तीन आला अधिकारी गौतम दोशी, हरि नायर और सुरेन्द्र पीपारा जेल में इससे ज्यादा जगह की उम्मीद भी नहीं कर सकते। तिहाड़ पहले से ही जरूरत से ज्यादा भरी है। गुरुवार को तिहाड़ परिसर की नौ जेलों में 11,696 कैदी बन्द थे।
तिहाड़ जेल में बन्द इन कारपोरेट हस्तियों को जेल के लंगर का खाना पसंद नहीं आया। अब वे कैंटीन से खाना खरीद कर खाते हैं। इनमें से कोई भी जेल में सुबह-सुबह होने वाली प्रार्थना में भी शरीक नहीं हुआ। सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अब तक किसी ने भी उन पांच-पांच लोगों के नाम भी जेल प्रशासन को नहीं दिए हैं जिनसे इन्हें मुलाकात करनी है जबकि तिहाड़ जेल प्रशासन ने कुछ समय पहले यह नियम बनाया था कि जेल में जो भी विचाराधीन कैदी आएगा उसी वक्त उससे उन पांच लोगों के नाम, पता और टेलीफोन नंबर ले लिए जाएंगे जिनसे कैदियों को मुलाकात और बाद में जेल में ही उपलब्ध सुविधा के तहत फोन पर बात करनी होगी। सुबह 5.30 बजे जेल खुल जाती है और 6 बजे सभी जेलों में प्रार्थना होती है। इसमें सभी विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदियों को शरीक होना पड़ता है। लेकिन शुक्रवार को इनमें से कोई भी प्रार्थना में नहीं गया। सभी ने दोपहर में वार्ड में ही चहलकदमी की पर किसी से बात नहीं की। शुक्रवार को उन्होंने अखबारों की मांग की। अपने-अपने सेल में अधिकतर वक्त वे टीवी पर न्यूज देखते रहे। जेल आने के वक्त ही ये अपने साथ दो-दो जोड़ी कपड़े लाए थे। इनमें से एक भी तनाव में नहीं दिख रहा है।
कड़ी सुरक्षा वाले कैदियों के लिए विशेष यही है कि दुर्दांत अपराधियों से उन्हें बचाने के बंदोबस्त किए गए हैं। तिहाड़ जेल के एक अधिकारी ने बताया कि वसूली के लिए इन बड़े लोगों पर हमला हो सकता है। बहरहाल में पांच बड़े लोग भले ही जेल में एक साथ न रह पाएं, राजा की तरह कुछ नियमों से वे प्रोत्साहित हो सकते हैं। फरवरी में जब ए. राजा तिहाड़ पहुंचे थे तो उन्हें भी खाली संकरे स्थान में रखा गया जहां छत पर लोहे की एक झिरी से रोशनी आती थी। जाली वाले दरवाजे के कारण उनके लिए कोई एकांत नहीं था। लेकिन एक हफ्ते बाद ही राजा ने इस बन्द जगह को अपना घर बनाना शुरू कर दिया। जेल कैंटीन में डोसा, इडली, सांभर स्वादिष्ट मिलती है और यह उसी को खा रहे हैं।

नहीं रहे सत्य साईं बाबा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 26 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

करोड़ों भक्तों को उम्मीद थी कि उनके आध्यात्मिक गुरु श्री सत्य साईं बाबा कोई चमत्कार दिखाएंगे और लम्बी बीमारी के बावजूद उन्हें एक बार दर्शन जरूर देंगे पर ऐसा हुआ नहीं और साईं बाबा चल बसे। चमत्कार की आस टूट गई। लोगों के जीवन में अपनी चमत्कारी शख्सियत से आस जगाने वाले पुट्टपर्थी के श्री सत्य साईं बाबा का लम्बी बीमारी के बाद 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। हालांकि उन्होंने भक्तों से 96 वर्ष तक जीवित रहने का वादा किया था। रविवार सुबह 7.40 पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर फैलते ही देश-विदेश में फैले उनके लाखों-करोड़ों भक्त गणों में शोक की लहर दौड़ गई। बाबा के महाप्रयाण की आधिकारिक घोषणा करते हुए श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट आफ हायर मेडिकल साइसेंस के निदेशक डा. एएन साफाया ने बयान  जारी कर कहा कि भगवान साईं भौतिक देह के साथ हमारे बीच में नहीं रहे। हृदय और श्वसन प्रणाली फेल होने के कारण बाबा ने देह त्यागा। अमेरिका और ब्रिटेन से आए कई नामी डाक्टरों ने 28 दिन से अस्पताल में भर्ती सत्य साईं बाबा को बचाने के प्रयास किए।
वर्ष 1926 में एक सामान्य परिवार में जन्मे सत्यनारायण राजू अपने चमत्कारों और आध्यात्मिक ज्ञान से सत्य साईं के रूप में प्रसिद्ध हुए और भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय आध्यात्मिक शख्सियत बन गए। उन्होंने हाथ हिलाकर विभूति और लिंगम जैसी चीजें प्रकट करने के भी चमत्कार किए। स्वयं को शिरडी के साईं बाबा का अवतार बताने वाले सत्य साईं को हृदय और श्वसन संबंधी समस्याओं के बाद 28 मार्च को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके अनेक अंगों ने काम करना बन्द कर दिया था। बाबा को वेंटिलेटर पर रखा गया था। उनकी किडनियों ने काम करना बन्द कर दिया और कुछ दिन पहले यक्रत के भी निक्रिय होने के बाद उनका स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ गया।
श्री सत्य साईं बाबा की विदाई के बाद उनकी विरासत पर सवाल खड़े हो गए हैं। बाबा ने किसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया है। लिहाजा यह स्पष्ट नहीं है कि उनके बाद लाखों भक्तों के दान से खड़े हजारों करोड़ की सम्पत्ति के स्वामी सेंट्रल ट्रस्ट की कमान किसके हाथ  होगी। शिक्षण संस्थान, अस्पताल और पेयजल योजनाओं समेत बाबा के नाम पर चल रही परमार्थ गतिविधियों का संचालन कर रहे साईं सेंट्रल ट्रस्ट की अनुमानित सम्पत्ति 40 हजार करोड़ से अधिक की बताई जाती है जो देश-विदेश तक फैली है। 1972 में बाबा द्वारा स्थापित ट्रस्ट केवल चेक या बैंक भुगतान से दिए जाने वाला दान स्वीकार करता था। वहीं इसके कामकाज का संचालन छह न्यासी और चार सदस्यों वाली प्रबंध परिषद करती है। मार्च 2010 में पुनर्गठित इसके न्यासियों में बाबा के अलावा पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पीएन भगवती, पूर्व मुख्य सतर्पता आयुक्त एसवी गिरी समेत छह लोग हैं। बाबा के नजदीकी रिश्तेदारों में से उनके भतीजे आरजे रत्नाकर ही ट्रस्ट में हैं। 39 वर्षीय रत्नाकर ही बाबा के काफी नजदीकी माने जाते हैं। ट्रस्ट के प्रबंधन को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं और यही वजह है कि इसके उत्तराधिकारी के सवाल पर आंध्र प्रदेश सरकार भी नजरें गढ़ाए है। बाबा के भक्तों की शोक की घड़ी में वह अकेले नहीं हम भी उनके साथ हैं।

Sunday 24 April 2011

दिल्लीवासियों की जान के दुश्मन हर कदम पर बैठे हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 24 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

राजधानी में यदि आप रहते हैं तो बड़ी सावधानी से खाने-पीने के सामान का चयन करें, क्योंकि यहां हर कदम पर आपकी जान के दुश्मन बैठे हैं। जी हां, यहां मिलावटखोरों ने खाने-पीने की ज्यादातर वस्तुओं में मिलावट या गड़बड़झाला कर रखा है। बाजार में शायद ही ऐसी कोई वस्तु मिले जो आपको बगैर मिलावट के मिले। घी, दाल, मसाले एवं अन्य खाद्य पदार्थों में भारी मात्रा में मिलावट की जा रही है। देसी घी में मिलाया जाता है वनस्पति घी। कुछ मामलों में तो मरे जानवरों की चर्बी से भी नकली घी बनाया जाता है। मसालों में सूखे पत्तों का चूरा और बीज मिलाए जाते हैं। वहीं मिर्च के पाउडर में पीसी हुई ईंट एवं लाल रंग, हल्दी पाउडर में रंगीन बुरादा और लौंग में अर्प खींची हुई लौंग की मिलावट विशेष रूप से प्रचलित है। दाल में आमतौर पर खेसारी की दाल मिलाई जाती है। इसकी विशेषता यह है कि यह विभिन्न रंगों में पाई जाती है जिससे इसे किसी भी दाल में मिलाया जा सकता है। मगर यह कड़वी होती है और सेहत के लिए खतरनाक। इसके अतिरिक्त कंकड़ भी मिलाए जाते हैं। चायपत्ती में इस्तेमाल हुई चायपत्ती और चना दाल की भूसी की मिलावट की जाती है। वहीं कॉफी पाउडर में चिकोरी नामक पदार्थ का पाउडर मिलाया जाता है। गेहूं, चावल और बाजरा में विशेष रूप से अर्गाट, धतूरे का बीज और गेरुई अर्थात् फपूंदीयुक्त विषैले दाने जो कि खाद के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, की मिलावट की जाती है। वहीं सेला चावल में पीला कृत्रिम रंग मिलाया जाता है। मक्खन में आमतौर पर वनस्पति घी को मिलाया जाता है। खोया में चांदी अर्थात् स्टार्च की मिलावट की जाती है। चीनी में सफेद खड़िया चूर्ण की मिलावट की जाती है। यह स्वादहीन होता है और कम घुलनशील होता है। चीनी और पानी के मिश्रण को गरम करके नकली शहद तैयार किया जाता है।
मिलावटखोरी की रोकथाम में सरकार की निगरानी व्यवस्था पूरी तरह से कारगर नहीं है, क्योंकि मिलावटखोरी पर तुरन्त एवं सीधी कार्रवाई करने की व्यवस्था नहीं है। मसलन अगर कहीं पर मिलावटखोरी की शिकायत मिलती है तो जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक अपने साथ क्षेत्र के एसडीएम को लेकर जाएगा और एमसीडी अपने क्षेत्र की पुलिस को लेकर जाएगी। इसके बाद तीन विभागों की टीम मौके पर पहुंच कर पदार्थ का सैम्पल लेगी और उसे जांच के लिए भेजेगी। जांच रिपोर्ट 20 दिन में मिलेगी और उसके बाद कार्रवाई होगी। ऐसे में अक्सर मिलावटखोर भाग जाते हैं या फिर जुर्माना राशि अदा कर आसानी से छूट जाते हैं। इस मिलावट से जनता की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जीटीबी अस्पताल में मेडिसन विभाग के डॉ. अग्रवाल ने बताया कि मिलावटी पदार्थों के सेवन का प्रभाव उसकी मात्रा पर निर्भर करता है। आमतौर पर देखने में आया है कि मस्टर्ड ऑयल में आर्जिमोन तेल की मिलावट की जाती है। इसके लम्बे समय तक सेवन से हार्ट अटैक का खतरा अधिक होता है। वहीं कई बार दुकानदार चावल में फसंग लगा होने के बावजूद भी उसे बेच देते हैं। ऐसे चावल के सेवन से पेट में खराबी और पीलिया हो जाता है। नकली हल्दी के सेवन से खून की कमी और शरीर की नसें कमजोर होकर फट जाती हैं।
दुनिया के किसी भी सभ्य देश में खाने-पीने की इस तरह मिलावट नहीं होती। भारत में कमजोर कानूनों, पर्याप्त स्टाफ और विभागों की कमी, लैबों की कमी इत्यादि के कारण कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होती और जनता इस मिलावटी खाद्य पदार्थों को खाने पर मजबूर है।

श्रीलंकाई खिलाड़ियों को वापस बुलाना हर लिहाज से गलत फैसला है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 24 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

आईपीएल-4 में हिस्सा ले रहे श्रीलंकाई खिलाड़ियों की वतन वापसी को लेकर बीसीसीआई और श्रीलंकाई क्रिकेट बोर्ड (एसएलसी) के बीच चल रही खींचतान कुछ हद तक बृहस्पतिवार को खत्म हो गई। विश्व क्रिकेट के पॉवर हाउस बीसीसीआई के आगे झुकते हुए एसएलसी ने अपने स्टार खिलाड़ियों की वापसी की समय  सीमा 5 मई से बढ़ाकर 18 मई कर दी। इससे पहले एसएलसी ने अपने खिलाड़ियों को आगामी इंग्लैंड दौरे के तहत पांच मई तक स्वदेश लौटने के निर्देश दिए थे। श्रीलंकाई क्रिकेट बोर्ड के इस फैसले का बीसीसीआई ने कई स्तरों पर विरोध किया था। नैतिकता के तकाजे पर भी यह गलत था और कानूनी दृष्टि से भी। फिर जो करार आईपीएल फ्रेंचाइजियों ने खिलाड़ियों से किया था उसका भी यह उल्लंघन था। जब आईपीएल-4 के लिए खिलाड़ियों की नीलामी हुई थी तो कोच्चि टस्कर्स केरल ने महेला जयवर्द्धने के लिए 1.5 मिलियन डालर फीस दी थी। एंजेला मैथ्यूस के लिए पुणे वारियर्स ने 9,50,000 डालर दिए। कुमार संगकारा की 7,00,000 डालर की बोली डेक्कन चार्जर्स ने लगाई। तिलकरत्ने दिलशान के लिए रॉयल चैलेंजर्स ने 6,50,000 डालर दिए। मुंबई इंडियंस ने लसिथ मलिंगा के लिए 5 लाख डालर दिए। कुलशेखरा  को चेन्नई सुपर किंग्ज ने एक लाख डालर में खरीदा। सूरज रणदीव-चेन्नई सुपर किंग्स ने 80,000 डालर में, परेरा को कोच्चि टस्कर्स ने 80,000 डालर और नुवान पारादीप को रॉयल चैलेंजर्स ने 20,000 डालर में खरीदा। बीसीसीआई और एसएलसी में यह फैसला हुआ था कि श्रीलंकाई खिलाड़ी 22 मई तक आईपीएल खेलेंगे। नीलामी की शर्तों में यह तय है कि खिलाड़ियों को फीस तभी दी जाएगी जब वह पूरा सीजन फिट रहेंगे और मैच खेलेंगे। बीसीसीआई ने श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड को यहां तक धमकी दे दी थी कि उसे जो खिलाड़ियों की नीलामी की पूरी कीमत में 10 प्रतिशत मिलना चाहिए वह रोक लिया जाएगा। खबर यह भी है कि बीसीसीआई ने श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड को आईपीएल में खेल रहे श्रीलंकाई खिलाड़ियों की मैच फीस का 10 प्रतिशत हिस्सा (दो करोड़ रुपये) न देने की धमकी भी दी थी।
विश्व कप से ठीक पहले तक भारत-श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के रिश्ते ठीक थे, फिर अचानक सब कुछ बदल गया। आखिर ऐसा क्यों हुआ? विश्व कप फाइनल में श्रीलंका टीम इंडिया से हार के कारण बौखला गई। फिर यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि बीसीसीआई ने फाइनल मैच के लिए आए कुछ श्रीलंकाई मंत्रियों से अच्छा व्यवहार नहीं किया और उन्हें टिकटें ब्लैक में खरीदनी पड़ीं। यह भी कहा जा रहा है कि पर्दे के पीछे का खेल पाकिस्तान खेल रहा था। पाक बोर्ड कई कारणों से बीसीसीआई से चोट खाए बैठा है। पहले तो उसे वर्ल्ड कप के आयोजन से किनारे किया। फिर आईपीएल से उसके क्रिकेटरों को हटा दिया। वह लम्बे समय से यूएई में बड़े कारपोरेट्स से आईपीएल के समानांतर लीग कराने की बात कर रहा था, उसे एक या दो देशों का साथ चाहिए था। उसे यह भी शिकायत है कि दुनिया में सबसे अमीर बीसीसीआई खुद तो बहुत कमाता है यह दूसरे बोर्डों को कुछ नहीं देता। इसलिए वह अपनी खुंदक श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड को भारत के खिलाफ खड़ा करके निकाल रहा है। हालांकि मलिंगा चोटिल है और इंग्लैंड के दौरे के लिए नहीं चुने गए पर फिर भी उन्हें वापस बुला लिया गया है। आईपीएल-4 में कुल 11 श्रीलंकाई खिलाड़ी हैं।

Saturday 23 April 2011

एनडी तिवारी, बूटा सिंह, सिब्ते रजी के बाद अब इकबाल सिंह

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 23 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

 पुडुचेरी के उपराज्यपाल इकबाल सिंह पर लगे आरोपों ने एक बार फिर कांग्रेस और केंद्र सरकार की परेशानियों को बढ़ा दिया है। यह पहला मौका नहीं कि जब राज्यपालों की वजह से केंद्रीय नेतृत्व की असहज स्थिति बनी है। यूपीए सरकार को तीसरी बार इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। उपराज्यपाल इकबाल सिंह से पहले एनडी तिवारी, सिब्ते रजी और बूटा सिंह सरकार की फजीहत करवा चुके हैं। पुडुचेरी के उपराज्यपाल इकबाल सिंह से बुधवार को राज भवन में हसन अली मामले में पूछताछ की गई। संसदीय इतिहास में अपने तरह की यह पहली घटना है। आंध्र प्रदेश के राज्यपाल एनडी तिवारी राज भवन में कथित दूरसंचार की वजह से विवादों में रहे वहीं सिब्ते रजी और बूटा सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से विवादों में आए और बाद में उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। बिहार के राज्यपाल रहते हुए बूटा सिंह अपने बेटे स्वीटी और लवली की वजह से विवादों में रहे।
हवाला कारोबारी और देश में सबसे अधिक कर के बकायेदार हसन अली से करीबी संबंध होने के कारण उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी विजय शंकर पांडे का मायावती सरकार ने प्रमुख सचिव सहित मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़े सभी पदों से मुक्त कर दिया है। प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों के मुताबिक हसन अली के काले धन के रहस्यों तक पहुंचने के लिए निदेशालय के मुंबई स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में अमलेंदू पांडे ने पूछताछ के दौरान इकबाल सिंह और विजय शंकर पांडे का नाम लिया है। इकबाल सिंह की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। एक टीवी चैनल ने कुछ ऐसे दस्तावेज उजागर किए जिससे यह पता चलता है कि इकबाल सिंह जो कि हसन अली से रिश्तों को लेकर पहले ही बेनकाब हो चुके हैं, ने अपने पुत्रों के साथ मिलकर एक ट्रस्ट बनाया तथा एक एमबीबीएस कॉलेज चलाने के लिए भारी घपला किया। उन्होंने इसमें अपने दो पुत्रों को भी शामिल किया। उनके दोनों पुत्र अभय सिंह और अमर ज्योति सिंह एक कॉलेज ट्रस्ट बना रहे थे। इस काम में एलजी साहब ने अपने ओएसडी जेपी सिंह और उनके पुत्र के अलावा अपने नजदीकी तेजिन्द्र सिंह और उसके पुत्र को भी शामिल किया। योजना के अनुसार तेजिन्द्र सिंह ने पुडुचेरी के स्वास्थ्य सचिव को एक पत्र लिखकर उक्त ट्रस्ट द्वारा एमबीबीएस कॉलेज चलाए जाने के लिए इजाजत मांगी। इधर प्रधानमंत्री कार्यालय ने कर चोरी के आरोपी हसन अली खान से कथित तौर पर संबंध रखने के मामले में इकबाल सिंह से पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय को हरी झंडी दे दी है।
इस बीच भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने कहा कि श्री इकबाल सिंह को बर्खास्त करने के लिए यह सबूत पर्याप्त हैं। अन्नाद्रमुक विधायक अनबाज हगन ने कहा कि उपराज्यपाल ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। वैसे केंद्र-राज्य संबद्ध समिति राज्यपाल का पद ही खत्म करने की सिफारिश कर चुकी है। सरकारिया आयोग सक्रिय राजनीति में रहने वाले लोगों को फौरन राज्यपाल नियुक्त न करने की सिफारिश करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी भरोसे में लेने की सलाह दे चुकी है। सरकारिया आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अलग-अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान करने वाले व्यक्तियों को ही राज्यपाल बनाया जाना चाहिए।

वीआईपी जेल बनती जा रही है तिहाड़

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 23 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

एशिया की सबसे बड़ी जेल का दर्जा प्राप्त तिहाड़ में वीआईपी कैदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अभियुक्त पांच और कारपोरेट दिग्गज बुधवार को तिहाड़ पहुंच गए। वहीं जिस तरह से वीआईपी कैदी तिहाड़ पहुंच रहे हैं उससे जेल प्रशासन की मुसीबत लगातार बढ़ रही है। इनके नाज-नखरे उठाने में अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े कई वीआईपी पहले से ही तिहाड़ में बन्द हैं, बुधवार को इसी मामले से जुड़े विनोद गोयनका, संजय चन्द्रा, गौतम दोसी, सुरेन्द्र पिपारा और हरि नायर को तिहाड़ के सुरक्षित घेरे में रखा गया। जेल सूत्रों के मुताबिक इन कैदियों को तिहाड़ जेल संख्या तीन में रखा गया है। इससे पहले दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरिया, ए. राजा के निजी सचिव आरके चांदोलिया, स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर उस्मान बलवा पहले से ही जेल नम्बर तीन में बन्द हैं। पूर्व संचार मंत्री ए. राजा के अलावा सुशील शर्मा और मनु शर्मा भी यहां बन्द हैं। तिहाड़ जेल के प्रवक्ता सुनील गुप्ता ने बताया कि केवल पूर्व संचार मंत्री ए. राजा जेल नम्बर वन में बन्द हैं।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है कि उद्योग जगत से जुड़े इतने बड़े, प्रभावशाली व्यक्तियों को जेल की हवा खानी पड़ी हो। यह उद्योगपति जो सरकार उनकी जेब में होने का दावा करते हैं, ने शायद यह कभी कल्पना भी नहीं की हो कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि जब इनको अपनी जवाबदेही देनी पड़ी और परिणामस्वरूप जेल की हवा खानी पड़े। बुधवार को पटियाला हाउस की विशेष अदालत के न्यायाधीश ओपी सैनी ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोपियों व दूरसंचार कम्पनियों के पांच अति वरिष्ठ अफसरों की जमानत याचिका खारिज कर दी। यूनिटेक वायरलेस के एमडी संजय चन्द्रा, स्वान टेलीकॉम के निदेशक विनोद गोयनका, रिलायंस टेलीकॉम के एमडी गौतम दोसी  और दो  उपाध्यक्ष हरि नायर एवं सुरेन्द्र पिपारा को कोर्ट ने 14 दिन के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया। न्यायाधीश सैनी ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन जैसे बड़े मामले में फंसे आरोपी सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं और यहां तक कि अभियोग से बचने के लिए वे फरार भी हो सकते हैं। ऐसे में उन्हें जमानत नहीं दी जा सकती। वहीं पांचों कारपोरेट अधिकारियों ने जमानत याचिका खारिज करने के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है। जब मामले की सुनवाई हो रही थी तो ए. राजा, सिद्धार्थ बेहुरिया, आरके चांदोलिया व शाहिद बलवा भी सुनवाई के दौरान मौजूद थे। इन चारों को भी अभी तक जमानत नहीं मिली है।
उद्योग जगत में हड़कम्प मचा हुआ है। वह सवाल कर रहे हैं कि अगले दौर की गिरफ्तारी में किस कम्पनी पर गाज गिरेगी? पहले दौर में दूरसंचार मंत्री ए. राजा, उनके निजी सचिव रहे आरके चांदोलिया और पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरिया  गिरफ्तार हुए। दूसरे दौर में सरकारी अधिकारियों के इधर निजी कम्पनियों पर गाज गिरी है। लेकिन गड़बड़ी सिर्फ रिलायंस, स्वान टेलीकॉम, एतीसलात और यूनिटेक ने ही नहीं की है, ऐसा नहीं है। कई अन्य कम्पनियों के नाम भी सामने आ रहे हैं। टाटा-बीएसएनएल डील को लेकर भी नकारात्मक चर्चा है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि अगले दौर में किस-किस पर शिकंजा कसा जाता है और कौन-कौन तिहाड़ की शोभा बढ़ाते हैं।

Friday 22 April 2011

भाजपा में बढ़ता असंतोष व अनुशासनहीनता को कौन रोके?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 22 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

किसी भी सियासी दल के लिए अनुशासन बहुत जरूरी होता है। उस पार्टी के नेतृत्व में इतनी क्षमता बर्दाश्त और कार्यकर्ताओं से लगातार सम्पर्प बनाए रखने की काबलियत होनी चाहिए। अगर नेताओं में अहंकार आ जाए और वह सत्ता में इतने गैर-जवाबदेही हो जाएं कि उन्हें न तो पार्टी की परवाह हो, न ही कार्यकर्ता की तो उस पार्टी में विद्रोह और असंतोष फैल जाता है। एक समय में भारतीय जनता पार्टी इन आरोपों से बची हुई थी पर वर्तमान पार्टी नेतृत्व बुरी तरह से विभिन्न कारणों से फेल होता नजर आ रहा है। हम देख रहे हैं कि भाजपा की विभिन्न राज्य ईकाइयों में असंतोष, अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है। भाजपा में इन दिनों कई राज्यों में बगावत का माहौल है। देश के उत्तरी छोर जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब, राजस्थान, दिल्ली व झारखंड तक पार्टी के अन्दर जारी गुटबाजी अब खुलकर सतह पर आ गई है। कहीं तो यह खुली बगावत का रूप ले चुकी है तो कहीं अन्दर ही अन्दर असंतोष पनप रहा है। पार्टी आलाकमान ने हर तरफ स्थिति सम्भालने के लिए अपने सिपाही भेजे हैं मगर ज्यादातर मामलों में इनकी कोशिशें अभी तक फेल ही हुई हैं।
पार्टी को सबसे बड़ा झटका जम्मू में लगा। अमरनाथ आंदोलन के बाद जनता ने भाजपा पर भरोसा करते हुए उसे 11 विधायकों की बम्पर जीत दी। पार्टी अपना आधार बढ़ाने की तैयारी कर रही थी कि सात विधायकों की क्रॉस वोटिंग से उसके पांव तले जमीन खिसक गई। सूत्रों से पता चला है कि विधायकों के भीतरघात के पीछे प्रदेश अध्यक्ष शमशेर सिंह का रवैया भी बड़ी वजह है। ये नेता लम्बे अरसे से अपनी शिकायत संगठन के कार्यकर्ताओं को पहुंचा रहे थे मगर मामला हाथ से निकल गया। खिसयाए नेतृत्व ने सभी 11 विधायकों का इस्तीफा ले लिया है। उधर पार्टी आलाकमान की नाक के नीचे राजधानी दिल्ली में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता की नए मेयर के चुनाव में खुली छूट देना पार्टी के लिए सिरदर्द साबित हुआ है। पार्टी के प्रभारी महासचिव अरुण जेटली आजकल सातवें आसमान पर हैं। उन्हें न तो दिल्ली भाजपा की कोई परवाह है, न ही कार्यकर्ताओं की। विधायक, कार्यकर्ता करें तो क्या करें?
झारखंड में तो पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा अपनी ही सरकार के खिलाफ बेमियादी धरने पर बैठ गए। मामला था प्रदेश में अतिक्रमण हटाने के अदालत के आदेश का। सिन्हा पीड़ित लोगों की तरफदारी से धरने पर बैठ गए और अर्जुन मुंडा सरकार से मांग कर दी कि इसके लिए अध्यादेश जारी करके लोगों को राहत दे। पंजाब में पार्टी गठबंधन में मतभेद के चलते स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मी कान्ता चावला का इस्तीफा लेने की बार-बार कोशिश कर रही है मगर कामयाब नहीं हो सके। राजस्थान में भी नेता विपक्ष वसुंधरा राजे ने प्रदेश प्रमुख अरुण चतुर्वेदी की ओर से गठित टीम पर एतराज किया। नतीजतन पार्टी को कई नाम बदलने पड़ गए। कर्नाटक व उत्तराखंड में तो पार्टी की अंदरुनी उठापटक रोज की बात हो गई है। प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने कबूल किया कि इन सारी चीजों से लगता है कि संगठन को और मजबूत करने की जरूरत है लेकिन इसे इस सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए। कई प्रदेशों में पार्टी सिफर थी। सवाल यह है कि भाजपा में आई इस गिरावट को थामेगा कौन? केंद्रीय नेतृत्व या तो खुद गुटबाजी में व्यस्त है या फिर नेताओं का सत्ता भोग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। आज यह उस पार्टी को भी भूल गए हैं जिसकी बदौलत ये नेता यहां तक पहुंचे हैं।

क्या शांति भूषण अन्ना हजारे के लिए बोझ बनते जा रहे हैं?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 22 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने वाले अन्ना हजारे के सिपहसालार प्रशांत भूषण व उनके पिता शांति भूषण एक के बाद एक नए विवाद में फंसते जा रहे हैं। जन लोकपाल विधेयक बनाने के लिए गठित संयुक्त समिति में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और उनके पुत्र प्रशांत भूषण को शामिल करना अन्ना को बहुत भारी पड़ रहा है। अभी सीडी विवाद चल ही रहा है कि शांति भूषण और उनके वकील पुत्र प्रशांत भूषण के खिलाफ एक याचिका अदालत में दर्ज की गई है। याचिका इलाहाबाद में कम कीमत पर आवासीय परिसर की रजिस्ट्री के बारे में है। याचिका में दावा किया गया है कि शांति भूषण और इलाहाबाद के परिसर के मालिक ने कम कीमत पर सम्पत्ति की रजिस्ट्री कराकर शासन को डेढ़ करोड़ रुपये का चूना लगाया है। याचिका में विवादास्पद सीडी के सभी तथ्यों की जांच की भी मांग की गई है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील मनोहर लाल शर्मा ने सोमवार को दायर की है। इससे पहले शर्मा ने देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में शांति भूषण और प्रशांत भूषण पर न्यायपालिका पर ओछे आरोप लगाकर उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने और अपने हितों की खातिर अदालत का इस्तेमाल करने के आरोपों में दोनों के खिलाफ जांच की मांग की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि ये पिता-पुत्र न्यायपालिका के प्रति जनता की आस्था को ठेस पहुंचाने के इरादे से सुनियोजित तरीके से समय-समय पर बयानबाजी करते आ रहे हैं। यही नहीं, पिता-पुत्र ने समूची न्याय व्यवस्था और पूर्व न्यायाधीशों पर भी भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगाए। याचिका में अन्ना को आमरण अनशन करने की गलत सलाह देने का भी आरोप लगाया गया है।
अंग्रेजी के एक दैनिक में एक खबर छपी है जिसके अनुसार शांति भूषण और उनके बेटे प्रशांत भूषण को उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2009 में 10 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र वाले भूखंड आवंटित किए थे। प्रत्येक भूखंड का मूल्य साढ़े तीन करोड़ रुपये है। अखबार के अनुसार शांति भूषण और उनके बेटे ने स्वयं माना है कि योजना में पारदर्शिता नहीं थी और बिना किसी स्पष्ट मानदंड के यह आवंटन हुआ है। इन प्लाटों की कीमत सात करोड़ रुपये बताई जा रही है। ये प्लाट ग्रेटर नोएडा में दिए गए हैं। इस आवंटन को सुप्रीम कोर्ट के एक वकील विकास सिंह सेकानूनी चुनौती भी दे दी है। विकास सिंह का कहना है कि इसी स्कीम में उन्हें भी फार्म हाउस का प्लाट दिया गया है। लेकिन इस योजना में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई। उन्होंने आरोप लगाया है कि आवंटन के लिए बड़ी रकम का लेन-देन भी हुआ है। हालांकि उन्होंने माना कि रिश्वत के पैसे उन्होंने नहीं दिए, फिर भी प्लाट मिल गया।
शांति भूषण के कारनामों की खबरें छपने से टीम हजारे में फिर बेचैनी फैलना स्वाभाविक ही है। अभी तक बहुचर्चित सीडी प्रकरण सुलटा नहीं कि एक नया विवाद आ खड़ा हो गया है। जयंत भूषण, शांति भूषण के दूसरे पुत्र हैं। ये भी सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं। उन्होंने ही मुख्यमंत्री मायावती के ड्रीम प्रोजैक्ट नोएडा पार्प के मामले में याचिका दायर की थी। इस याचिका के चलते नोएडा पार्प का काम रुक गया था। क्या यह प्लाट जयंत को खुश करने के लिए मायावती सरकार की मेहरबानी तो नहीं थी?

Thursday 21 April 2011

ताकि अन्ना हजारे के आंदोलन की हवा निकल जाए

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 21 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

पाठकों को याद होगा कि मैंने इसी कॉलम में यह आशंका प्रकट की थी कि अन्ना हजारे के लिए इस देश से भ्रष्टाचार दूर करने का संकल्प इतना आसान नहीं होगा। इस देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि उन्हें हिलाना मुश्किल है और अन्ना के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा यह राजनेता और नौकरशाह गठबंधन होगा। कभी-कभी पहला कदम ही सबसे कठिन हो जाता है। हम देख रहे हैं कि जन लोकपाल विधेयक के मुद्दे को लेकर बड़ी राजनीतिक साजिश शुरू हो गई है। अब तक दबी जुबान से एक दूसरे पर निशाना साध रहे समाजसेवी अन्ना हजारे और केंद्र में सत्ताधारी कांग्रेस के कुछ नेता खुलकर एक-दूसरे के सामने आ गए हैं। कभी फर्जी सीडी जारी करके तो कभी अन्ना व उनके सहयोगियों को बदनाम करने का अभियान शुरू हो चुका है। अन्ना इतने परेशान हो गए कि उन्होंने गेंद दस जनपथ के पाले में डालने की कोशिश की है। उन्होंने सीधे-सीधे सोनिया गांधी से पूछ लिया है, बोलो आपकी मर्जी क्या है? क्या दिग्विजय सिंह आपकी सहमति से  बोल रहे हैं? अन्ना ने अपनी दो पेज की चिट्ठी में सोनिया को लिखा है कि ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य और सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्री (कपिल सिब्बल और दिग्विजय) जिस तरह से संयुक्त समिति के लोगों के बारे में भ्रम फैला रहे हैं, उससे कहीं न कहीं बदनीयती की झलक मिलती है। पार्टी के एक महासचिव तो लगातार सिविल सोसाइटी के लोगों के खिलाफ अनर्गल टिप्पणियां करने में जुटे हैं। पिछले कई दिनों से आपके  लोग इस तरह की शरारतें कर रहे हैं, फिर भी इनके खिलाफ पार्टी की तरफ से कोई पहल नहीं दिखाई गई। ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार विरोधी उनके आंदोलन को कमजोर करने के लिए इस तरह की गतिविधियां  बढ़ाई गई हैं। इसको देखते हुए वे जानना चाहते हैं कि पार्टी के इन नेताओं की ऐसी शरारतों के प्रति उनका खुद का नजरिया क्या है? पार्टी आखिर चुपचाप यह सब क्यों देख रही है। सोनिया गांधी को लिखा गया अन्ना हजारे का पत्र काफी तीखे तेवर वाला है। अन्ना ने सीधे-सीधे कांग्रेस और यूपीए सरकार की नीयत को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।
कांग्रेसी नेताओं की शिकायत जब श्री अन्ना हजारे ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से की तो कांग्रेस ने भी साफ कह दिया कि उसके नेता कोई अपराध नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि जैसे श्री हजारे लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कह रहे हैं वैसे ही उसके महासचिव दिग्विजय सिंह और दूसरे नेता कह रहे हैं। जनतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है तो फिर कांग्रेस के नेताओं पर वही बात लागू क्यों नहीं होती? मनीष तिवारी ने कहा कि जहां तक अन्ना की सोनिया गांधी को लिखी खुली चिट्ठी का सवाल है तो इसका जवाब तत्काल नहीं दिया जाएगा। सही समय पर इस पत्र का उत्तर पार्टी अध्यक्ष की ओर से दिया जाएगा।
लगता है कि अन्ना सोनिया के जवाब का इंतजार करेंगे और फिर आगे की रणनीति तय करेंगे। यदि उन्हें कांग्रेस और सरकार की नीयत में खोट लगी तो सम्भव है कि वह नए सिरे से आंदोलन की घोषणा कर दें। क्योंकि देश की जनता अब भ्रष्टाचार के खिलाफ हीला-हवाली बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दिखती। यदि सरकार को सद्बुद्धि आ जाए तो अच्छी बात है वरना गुस्साये लोगों का आक्रोश फिर सड़कों पर नजर आ जाएगा और इसकी जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी और मनमोहन सरकार की होगी।

60 साल दूर रहने के बाद जमात भी उतरा सियासी मैदान में

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 21 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

लगभग छह दशकों से राजनीति से दूर रहे देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन `जमात-ए-इस्लामी हिन्द' ने सक्रिय राजनीति में उतरने का ऐलान किया है। सोमवार को जमात के अमीर (प्रमुख) सैयद जलालुद्दीन उमरी ने मावलंकर हॉल में यह ऐलान करते हुए कहा कि देश में एक ऐसी पार्टी की जरूरत महसूस हो रही थी जो अल्पसंख्यक, गरीब और समाज के सभी तबकों की आवाज बुलंद करे। हमने इसी वजह से इस पार्टी का गठन किया है। जमात के वरिष्ठ सदस्य मुज्तबा फारुख इसके अध्यक्ष बनाए गए हैं। पार्टी का नाम है वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया। पार्टी का दावा है कि वह इस बात का पूरा प्रयास करेगी, उस पर अल्पसंख्यक पार्टी होने का ठप्पा न लगे। पार्टी महासचिव और जमात के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि हमारी पूरी कोशिश होगी कि हमें सिर्प मुसलमानों से जोड़कर न देखा जाए। हम सबको साथ लेकर चलने की नीति पर काम करेंगे। भारत में जमात पहली बार सक्रिय राजनीति में कदम रख वही है। देश को आजादी मिलने के समय इस संगठन ने राजनीति से दूर रहने का फैसला किया था। अब सक्रिय राजनीति में आने की वजह के बारे में फारुक ने कहा कि पार्टी गठित करने में देर हुई है, लेकिन अब और देर नहीं की जा सकती थी।
भारत के मुसलमान बहुत दिनों से यह महसूस करते आ रहे हैं कि उनके हितों की रक्षा करने वाली कोई सियासी जमात नहीं है। हर सियासी पार्टी ने अपने हितों को साधने के लिए अल्पसंख्यकों का इस्तेमाल किया पर कभी किसी ने उनकी तरक्की नहीं कराई। इसी शून्य की कमी करने के लिए अब हम देख रहे हैं कि जमात भी मैदान में उतर आई है। कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी भी सक्रिय राजनीति में आ गई। आगामी विधानसभा चुनावों में सम्भव है कि पीस पार्टी जोरशोर से दंगल में उतरे। पीस पार्टी की रैलियां आरम्भ हो चुकी हैं। इन रैलियों में
25-30 हजार लोग जुट रहे हैं। पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अयूब ने कहा कि चुनाव में हमारा मुख्य मुद्दा काले धन और प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जेहाद है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता से मेरी पार्टी का विश्वास जगा है कि हम भ्रष्टाचार से निजात दिला सकेंगे। डॉ. आयूब ने कहा कि हाल ही में डुमरियागंज में हुए विधानसभा उपचुनाव में पीस पार्टी को 26 हजार मत मिले थे। इसके चलते समाजवादी पार्टी चौथे और कांग्रेस पांचवें नम्बर पर खिसक गई थी। 2012 के चुनाव में भी सपा और कांग्रेस की लड़ाई चौथे और पांचवें नम्बर के लिए होगी। उन्होंने कहा कि सपा और कांग्रेस समेत सभी दलों ने मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है जबकि प्रदेश में मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत है। हम एक विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। पीस पार्टी का फिलहाल सबसे अधिक जनाधार पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। यहां इन दिनों पार्टी की रैलियां हो रही हैं और इनमें हजारों लोगों की मौजूदगी से पार्टी के हौसले बुलंद हैं। डॉ. अयूब कहते हैं कि 2012 के चुनाव में मेरी कोशिश रहेगी कि हम असम की ऑल इंडिया डेमोकेटिक फ्रंट की तरह एक विकल्प बन सकें, जिससे कांग्रेस का अल्पसंख्यक और पिछड़ा वोट दूर हो सके।
प्रदेश की राजनीति में पीस पार्टी की धमाकेदार मौजूदगी से सबसे ज्यादा परेशानी कांग्रेस को हो सकती है और राहुल गांधी के मिशन यूपी 2012 के सपने को धक्का लग सकता है।

Wednesday 20 April 2011

34 साल के शासन को दीदी की चुनौती से लेफ्ट हलकान

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

प्रकाशित: 20 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

सोमवार को पश्चिम बंगाल के छह उत्तरी जिलों की 54 विधानसभा सीटों पर पहले चरण का मतदान हो गया। पहले चरण के इस मतदान में 74.27 फीसदी मतदान हुआ। इस दौरान कहीं से भी किसी बड़ी अप्रिय घटना का समाचार नहीं है। यह विधानसभा चुनाव वाम मोर्चा के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे ने 21 जून 1977 को सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली थी और सत्ता में लगातार बने रहते हुए 34 साल पूरे होने को आ गए हैं। इस उपलब्धि के साथ ही प. बंगाल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में बनी रहने वाली सबसे लम्बी कम्युनिस्ट सरकार का रिकार्ड बना लिया है। लेकिन इन विधानसभा चुनावों में इसी बात को इस मोर्चे की सबसे बड़ी कमजोरी भी बताया जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो पूरे राज्य में एक सत्ता विरोधी लहर दौड़ रही है जो सत्ताधारी सीपीएम की गले की फांस बन गई है। हालांकि मार्क्सवादी नेताओं ने 2009 में जारी एक पार्टी दस्तावेज में इन मुद्दों को उठाया और पार्टी नेतृत्व ने इस बात को स्वीकार किया है कि उनके परम्परागत वोटर अब उनकी नीतियों से विमुख हो रहे हैं। सत्ताधारी पार्टी के समक्ष मुस्लिम मतदाताओं को अपने खेमे में बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। पिछले चुनावी नतीजों और अल्पसंख्यकों के इलाकों का आकलन करने के बाद पता चलता है कि कुल 214 सीटों में से 75-77 सीटें ऐसी हैं जहां उन्हीं की जीत की सम्भावना है जहां मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिलेगा। इन चुनावों में ऐसा ही कहा जा रहा है कि एक लम्बे समय तक लेफ्ट का समर्थन करते रहने के बाद अब ज्यादातर मुस्लिम मतदाताओं ने अपना समर्थन बन्द कर दिया है। साथ ही लेफ्ट पार्टी के अपने धड़ों में और खासतौर से एसएफआई जैसे छात्र संगठनों में अब मनमुटाव खुलकर सामने आने लगे हैं। पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिवेश में सत्ताधारी वाम नेताओं के जनता को नजरंदाज करने वाले रवैये की भी इन चुनावों में एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने अपने करिश्में से वाम मोर्चा की नींद उड़ा रखी है। एकजुट विपक्ष की एक मात्र नेता बनकर उभरी ममता बनर्जी को लेकर गांवों और शहरों में काम करने वालों में बराबर का उत्साह है। ममता की पार्टी के खिलाफ माओवादियों के एक गुट द्वारा दिए गए फरमान भी उन इलाकों में वोट काट सकते हैं जो झारखंड राज्य से सटे हुए हैं पर इन सबके बावजूद लेफ्ट फ्रंट का चुनाव जीतना बहुत मुश्किल लग रहा है। अगर बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में वाम मोर्चा चुनाव जीत गया तो प. बंगाल के चुनावी इतिहास में यह सबसे महत्वपूर्ण घटना होगी। चुनाव पूर्व दो सर्वेक्षणों की मानें तो तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। ओआरजी द्वारा हेडलाइंस टुडे समाचार चैनल के लिए किए ए सर्वेक्षण के मुताबिक तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन को 182 सीटें मिलेंगी जो कि बहुमत के लिए जरूरी 148 सीटों से काफी अधिक है जबकि वाम मोर्चा को 101 सीटें मिलेंगी जो 2006 के चुनाव की तुलना में 126 कम है। बाकी तो मतपेटियां खुलने के बाद ही पता लगेगा।

अन्ना की मूवमेंट पर सीडी विवाद का साया

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 20 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

पिछले दो-तीन दिनों से उस सीडी को लेकर घमासान मचा हुआ जो आजकल चर्चा में है। उल्लेखनीय है कि इस चर्चित सीडी में अमर सिंह, शांति भूषण का हवाला देकर मुलायम सिंह से कह रहे हैं कि चार करोड़ रुपये में प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के फ्लां जज को मैनेज करा देंगे। यह सीडी ऐसे समय जारी हुई है जबकि टीम अन्ना ने लोकपाल कानून के मुद्दे पर सरकार पर भारी दबाव बना लिया है। शांति भूषण और उनके बेटे प्रशांत भूषण ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य हैं। लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर जो देशव्यापी बहस शुरू हुई उसे सीडी प्रकरण ने नया मोड़ दे दिया है। अब इस घमासान में कई बड़े नेता व सिपहसालार कूद गए हैं। शांति भूषण के वकील पुन प्रशांत भूषण जहां सीडी को फर्जी, छेड़छाड़ युक्त और विभिन्न सन्दर्भों की बातचीत को तैयार किया गया प्रपंच बता रहे हैं, वहीं लोकपाल विधेयक लाने के लिए आंदोलन की अगुवाई करने वाले अन्ना हजारे ने कहा कि यदि सीडी प्रकरण में शांति भूषण दोषी पाए जाते हैं तो उनके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें संयुक्त समिति से इस्तीफा दे देना चाहिए। हालांकि हजारे ने शांति भूषण पर लगाए गए आरोपों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि ये आरोप सही नहीं हैं। अन्ना के मुताबिक प्रयोगशाला में सीडी की जांच कराई गई और पता चला कि यह फर्जी है। इस मामले में एक नया मोड़ और आ गया है। स्वामी अग्निवेश भी इसमें कूद पड़े हैं। एक निजी चैनल में स्वामी ने अमर सिंह पर संदेह जताया। अग्निवेश ने अपने सहयोगियों से अनौपचारिक बात में यह आशंका जताई कि अमर सिंह अपनी खाल बचाने के लिए इस सीडी का इस्तेमाल कर सकते हैं। शांति भूषण के बेटे प्रशांत भूषण ने सीडी में अपने पिता की आवाज होने की बात मानी है लेकिन इसे छेड़छाड़ युक्त और फर्जी सीडी बताया है। इस बारे में एक बड़े अंग्रेजी अखबार ने फोरेंसिक विशेषज्ञों के हवाले से बताया है कि सीडी से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। इस सीडी में हुई बातचीत निरन्तर और लगातार एक क्रम में हैं। हालांकि अखबार के मुताबिक फोरेंसिक विशेषज्ञों ने आवाज की सत्यता के संबंध में कुछ नहीं कहा जबकि वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण समेत एक बड़ा वर्ग सीडी में हुई बातचीत को आधार बनाकर संयुक्त समिति से शांति भूषण के इस्तीफे की मांग पर उतर आए हैं।
शांति भूषण ने इस मामले में सोमवार को समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की वहीं अमर सिंह ने भी मानहानि व अवमानना का मामला दर्ज करने की चेतावनी दी। अमर सिंह ने शांति भूषण और प्रशांत भूषण के खिलाफ पुलिस में शिकायत की। इस बीच केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा है कि सरकार विवादित सीडी से जुड़े शांति भूषण के खिलाफ आरोपों की स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं पूरी जांच कराएगी। इस मामले में एक नया आयाम इन्कम टैक्स के पूर्व कमिशनर विश्व बंधु गुप्ता ने यह कहकर जोड़ दिया कि शांति भूषण वाली सीडी सही है। इसलिए शांति भूषण के बारे में सिविल सोसाइटी को नए सिरे से फैसला करना चाहिए। उन्होंने ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य अरविन्द केजरीवाल की छवि को लेकर भी कुछ तीखी टिप्पणियां की हैं। कुल मिलाकर अन्ना हजारे की ओर से उनकी टीम पर चौतरफा कीचड़ उछलना आरम्भ हो गया है। इन सब आरोपों में सच्चाई कितनी है, झूठ कितना यह तो समय ही बताएगा।

Tuesday 19 April 2011

पीएसी बनाम जेपीसी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
 प्रकाशित: 19 अप्रैल 201
-अनिल नरेन्द्र
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही संसदीय लोक लेखा समिति (पीएसी) की बैठक शुक्रवार को सत्तापक्ष और विपक्ष की जंग में बदल गई। दिनभर की खींचतान के बाद कांग्रेस नेता आखिरकार सॉलिसिटर जनरल गुलाम वाहनवती व शनिवार को कैबिनेट सचिव और पीएम के प्रधान सचिव की गवाही टलवाने में कामयाब हो गए। फिलहाल उनकी गवाही खटाई में पड़ गई है। दरअसल कांग्रेसी सांसद पूरी तैयारी करके आए थे। कांग्रेसी सदस्यों ने बड़ी ही दिलचस्प अंदाज में नए-नए तर्प गढ़कर तलब किए गए अफसरों की पेशी को टालने के प्रयास किए। डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने संवैधानिक नियमों, समिति के अधिकारों और पूर्व समितियों का हवाला देकर उन तर्कों की काट पेश की मगर वह अहम लोगों, खासतौर पर सॉलिसिटर जनरल वाहनवती और पीएमओ के अफसरों की गवाही टालने से रोक नहीं पाए। बैठक के बीच में कांग्रेस सदस्य कई दफा बाहर आकर फोन पर गम्भीर चर्चा में व्यस्त दिखे। सबसे पहले मुद्दा जेपीसी बनाम पीएसी का। यह बहस पिछली दो बैठकों में भी उठाई गई थी। मगर कांग्रेस के केएस राव, जितेन्द्र सिंह, नवीन जिन्दल व सैफुद्दीन सोज ने एक साथ मिलकर कहा कि आखिर संसद ने जब जेपीसी गठित कर दी है तो आला अफसरों को तलब करने में यह सक्रियता क्यों? इस पर डॉ. जोशी ने स्पीकर का पत्र पढ़कर सुनाया। स्पीकर मीरा कुमार ने दोनों समितियों के अध्यक्ष चाको व जोशी से बैठक के बाद अपनी राय दी थी कि उन्हें मिलकर काम करना चाहिए। जोशी ने अपने बचाव में संसद के नियमों की किताब पढ़ी और कहा कि समिति सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक मामले की तह तक जाएगी। कांग्रेस सदस्यों का दूसरा एतराज था, सीबीआई की चार्जशीट में आरोपी लोगों को बुलाने पर। एक सदस्य का तर्प था कि सीबीआई चार्जशीट में नामित लोगों को यहां तलब करने की क्या तुक है? मामला अदालत में चल रहा है इसलिए भी यह सब ज्यूडिस है। इस पर डॉ. जोशी ने याद दिलाया कि शुक्रवार, शनिवार को जो अधिकारी बुलाए गए हैं उनका चार्जशीट से कोई लेना-देना नहीं, फिर अड़चन कैसी? एक अन्य सदस्य अरुण कुमार ने नाराजगी जताई कि अगर पीएम के करीबी अफसर बुलाए जा सकते हैं तो इस मामले में ए. राजा को बुलाना चाहिए। तीन घंटे की मात्थापच्ची के बाद यह तय हुआ कि सदस्यों को कागजात के अध्यापन के लिए बैठक एक हफ्ते तक मुल्तवी करने में कामयाब हो गए।
कांग्रेस सदस्यों के आक्रामक विरोध ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर तेज गति से चल रही पीएसी की जांच में ब्रेक लगा दी है। अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की कोशिश अब भी यह है कि वह अपनी रिपोर्ट जल्द से जल्द दें। मौजूदा पीएसी का कार्यकाल इसी महीने खत्म हो रहा है। इसलिए जोशी ने जल्द से जल्द रिपोर्ट देने का संकेत दिया है।हालांकि भाजपा ने जोशी का कार्यकाल जारी रखने का फैसला किया है, लेकिन जोशी की कोशिश है कि जेपीसी की अगली बैठक यानि 18 मई से पहले रिपोर्ट सौंप दी जाए। पीएसी बनाम जेपीसी टकराव तो होना ही था। कांग्रेस सांसदों द्वारा आपत्तियों को उचित ठहराते हुए कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि जब जेपीसी बनाने की मांग हो रही थी हम उसी वक्त कह रहे थे कि क्षेत्राधिकार और जांच में दोहराव को लेकर टकराव हो सकता है। उस वक्त कहा गया कि हम जिद्दी हैं। डॉ. जोशी की पीएसी की जांच काफी आगे तक बढ़ चुकी है और हमें लगता है कि डॉ. जोशी बहुत जल्द अपनी रिपोर्ट पेश कर ही देंगे।

जनरल कयानी का अमेरिका को अल्टीमेटम

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 19 अप्रैल 201
-अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान और अमेरिका के आपसी रिश्तों में एक बार थोड़ा तनाव देखा जा रहा है। दरअसल पाकिस्तान अपने उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में अमेरिकी गुप्तचरों और ड्रोन हमलों से परेशान है। घटना से नाराज पाकिस्तान ने इसकी बाकायदा नाराजगी अमेरिकी राजदूत से भी की है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख अशफाक कयानी द्वारा हमले को देश के नागरिकों पर आक्रामण की संज्ञा देने के बाद अमेरिका से माफी मांगने और स्पष्टीकरण देने की मांग कर डाली है। कयानी ने कहा कि इस तरह की घटनाओं  को किसी भी लिहाज से अनुचित और किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं की जा सकती। उन्होंने हमलों को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि शांतिपूर्ण नागरिकों की जिगरा (परिषद) को लोगों की जान की परवाह किए बगैर गैर-जिम्मेदाराना और संवेदनशील तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।
कयानी ने कहा कि इस तरह की हिंसक घटनाएं आतंकवाद को खत्म करने के लक्ष्य से हमें काफी दूर ले जाएगी। जनरल कयानी ने अपने यहां सक्रिय सीआईए एजेंटों और स्पेशल फोर्स के लोगों की भारी कटौती करने की भी मांग की है। अपने अशांत उत्तर-पश्चिम इलाके में ड्रोन हमलों को रोकने की मांग करके कयानी ने इस बात का संकेत दिया है कि दोनों देशों में खुफिया सहयोग लगभग चरमरा गया है। न्यूयार्प टाइम्स के अनुसार पाकिस्तान द्वारा सीआईए एजेंट रेमंड डेविस को गिरफ्तार करने के बाद से ही दोनों देशों के राजनयिक संबंध में खटास आ गई थी और पाक ने अब सीआईए एजेंटों में कटौती की जो मांग की है, यह उसकी का नतीजा है। आश्चर्य की बात यह है कि पाकिस्तान की यह मांग गिलानी सरकार की ओर से नहीं बल्कि सीधे सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी की ओर से की गई है। पाकिस्तानी मांग तब सामने आई जब आईएसआई चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शुजा पाशा की सीआईए डायरेक्टर लियोने पेटा और ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन एडमिरल माइक मुलेन से चार घंटे तक बातचीत हुई। सीआईए प्रवक्ता ने भले ही इसके बाद बयान दिया हो कि दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों के बीच सहयोग मजबूती से चल रहा है। लेकिन इस मुलाकातके बाद पाशा ने अचानक अपने दौरे में कटौती कर दी और पाकिस्तान लौट गए। अमेरिकी और पाकिस्तानी अधिकारियों ने इसका कोई कारण नहीं बताया।
पाकिस्तानी अधिकारियों के हवाले से न्यूयार्प टाइम्स ने खबर दी है कि कयानी ने अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशन फौजियों की संख्या में 25-40 फीसदी कटौती की मांग की है। पाक अधिकारियों के अनुसार 335 अमेरिकी एजेंटों और विशेष फौजियों को वापस बुलाने को कहा गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि यदि इतनी कटौती की गई तो पाकिस्तान में कितने अमेरिकी एजेंट और फौजी रह जाएंगे, क्योंकि इसका कभी खुलासा किया ही नहीं गया कि पाकिस्तान में कितने अमेरिकी एजेंट और स्पेशल फोर्स तैनात है? बहरहाल, अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि यदि यह कटौती की गई तो तालिबान और अलकायदा के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ जाएगी।

Sunday 17 April 2011

इंडिया को हरगिज पाकिस्तान में नहीं खेलना चाहिए

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 17 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू करने पर विपक्ष की तमाम आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए मनमोहन सरकार ने अपने संबंधों को सुधारने की न केवल अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं बल्कि भारतीय क्रिकेट टीम के पाकिस्तान में मैच खेलने पर लगी पाबंदी हटा ली है। यह समझा जा रहा है कि पाकिस्तान में सुरक्षा हाल ठीक रहे तो इस वर्ष के अन्त में भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान में एक दिवसीय मैच खेलने जा सकती है। गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बुधवार को स्पष्ट किया कि पड़ोसी देश में सुरक्षा माहौल का जायजा लेने के बाद सरकार ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को अपनी सुविधा के अनुसार पाकिस्तान में मैच की सिद्धांतत अनुमति दे दी है। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल के कैलेंडर के मुताबिक अगले वर्ष फरवरी तक भारतीय टीम का दौरा कार्यक्रम पहले से ही तय है। इसमें फिलहाल पाकिस्तान शामिल नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गिलानी के बीच बनी सहमति के हिसाब से पहले भारतीय टीम पाकिस्तान का दौरा करेगी और उसके बाद पाकिस्तानी टीम भारत का। बाद में दोनों टीमों के बीच एक फाइनल मैच शारजाह में भी आयोजित किया जा सकता है। सरकार ने इस मामले में विपक्ष की आपत्तियों को खारिज कर दिया है।
हम भारत सरकार के फैसले से सहमत नहीं हैं और इसका विरोध करते हैं। जो देश अपने पूर्व प्रधानमंत्री, राज्यपाल, सांसद, खुफिया मुख्यालय को नहीं बचा सकता वह भला भारतीय टीम की सुरक्षा क्या करेगा? शायद भारत सरकार लाहौर का वह आतंकी हमला भूल गई जब श्रीलंकाई क्रिकेट खिलाड़ियों पर लश्कर के सूरमाओं ने गोलियां चलाई थीं? हमारा अनुभव तो यह है कि जब-जब भारत ने अपनी तरफ से शांति की पहल की है भारत को पाक प्रायोजित आतंकी हमले का जवाब मिला है। ऐसे में जब आतंकी राणा के कबूलनामे के बाद भारत को पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए था तब भारत क्रिकेट की सीरीज शुरू करने की कवायद में जुटा है। विदेश मंत्री कहते हैं कि शांतिवार्ता, खेल और आतंकवादियों को सजा दिलाने के काम साथ-साथ जारी रहेंगे। सरकार को चाहिए था कि वह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की करतूतों की कलई खोलती और उस पर आतंकी शिविरों को बन्द करने का दबाव बनाती, लेकिन इसकी बजाय वह उससे क्रिकेट के रिश्ते बहाल करने में लगी हुई है। टीम इंडिया पाकिस्तान की टीम के साथ खेले किन्तु पाकिस्तान की जमीन पर नहीं बल्कि किसी दूसरे देश के स्टेडियम में। पाकिस्तान की टीम के साथ खेलने में कोई एतराज नहीं है, एतराज सिर्प पाकिस्तान के तालिबानी आतंकियों से टीम इंडिया की सुरक्षा को मिल रही चुनौतियों से है।
भारत सरकार के पाकिस्तान की भूमि पर मैच खेलने के फैसले से टीम इंडिया के खिलाड़ी भी सहमत नहीं हैं। एक खिलाड़ी ने कहा कि पाकिस्तान के हालात बेकाबू हैं, वहां जितनी भी सिक्योरिटी क्यों न हो, कोई सुरक्षित नहीं। जब वह बेनजीर भुट्टो व श्रीलंका टीम को नहीं बचा सके तो इस बात की क्या गारंटी है कि हम नहीं मारे जाएं? एक अन्य का कहना था कि अगर क्रिकेट में इतनी राजनीति होगी  तो वह क्रिकेट कहां रहेगा? फिर टीम इंडिया ने खुलकर भी पाकिस्तान को क्या कुछ नहीं कहा? सचिन ने कहा था कि मुंबई में जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था। क्रिकेट ने इससे कुछ नहीं सीखा। मुझे आशा है कि मेरा यह शतक लोगों में खुशी बढ़ाएगा। मैं एनएसजी कमांडो, ताज होटल के कर्मियों, पुलिस, जनता को प्रणाम करता हूं। सचिन ने यह बात दिसम्बर 2008 में कही थी। विश्व कप के फाइनल के पहले पाकिस्तान को हराने के बाद गौतम गम्भीर ने कहा : हम जागरूक हैं और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। अगर हम फाइनल जीत जाते हैं तो मैं इस जीत को मुंबई हमले में मारे गए लोगों को समर्पित करूंगा। मेरे विचार में पाक से जीत और फाइनल में जीत भी उन्हें समर्पित की जानी चाहिए।


...और अब शरद पवार 2जी स्पेक्ट्रम में भी शामिल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 17 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का नाम बस अब 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ना बाकी रह गया था। कारपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया ने सीबीआई को दिए बयान में यह काम भी पूरा कर दिया है। कभी आईपीएल गेट तो कभी लवासा तो कभी हसन अली मामले के चलते विवादों में रहे पवार का नाम 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फायदा उठाने वाली डीबी रियल्टी की स्वान टेलीकॉम से भी जुड़ गया है। कारपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया ने सीबीआई के सामने दिए बयान में स्वान टेलीकॉम में पवार का नियंत्रण होने की सम्भावना जताई है। डीबी रियल्टी की कम्पनी स्वान टेलीकॉम 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले  में अनुचित तरीके से फायदा उठाने की आरोपी है। राडिया ने सीबीआई पूछताछ में कबूला है कि स्वान टेलीकॉम को लाइसेंस दिलाने के लिए पवार ने तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा से सिफारिश की थी। इसी कड़ी में राडिया ने दागी स्वान टेलीकॉम में पवार की हिस्सेदारी होने की सम्भावना भी जताई है। राडिया का यह बयान सीबीआई के आरोप पत्र का हिस्सा है। इसमें राडिया ने कहा है कि मुंबई में लोगों की ऐसी धारणा है, लेकिन दस्तावेजी सबूत नहीं हैं। यह पहली बार नहीं है कि शरद पवार का नाम किसी विवाद से जुड़ा है। चाहे वह आईपीएल, लवासा, आदर्श सोसायटी घोटाला हो या फिर चीनी घोटाले से लेकर वायदा बाजार को फायदा पहुंचाने जैसे विवाद, सबमें उनका नाम जरूर आया। वहीं पवार ने डीबी रियल्टी पर स्वान टेलीकॉम में किसी भी तरह की भागीदारी से इंकार किया है। डीबी रियल्टी के मालिक विनोद गोयनका से 35 साल पुराने रिश्तों की बात तो उन्होंने स्वीकारी है और कहा कि उन्होंने 20 साल पहले बारामती (पवार के गृह क्षेत्र) में दुग्ध प्रसंस्करण इकाई स्थापित की थी। बकौल पवार `हम सभी किसान उन्हें अच्छी गुणवत्ता का दूध निकालने में मदद करते हैं। हमारे रिश्ते हैं और इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन टेलीकॉम कम्पनी में मेरी भागीदारी या जुड़ाव कतई नहीं है।'
बेशक पवार यह कहें कि उनका 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन यह पूरा सच नहीं है। पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनके पति सदानन्द की पुणे के पंचशील रियल्टी के पंचशील टेक पार्प वन प्रोजैक्ट में चार प्रतिशत की हिस्सेदारी है जिसके सीधे-सीधे संबंध डीबी रियल्टी से हैं। शाहिद बलवा की डीबी रियल्टी और पंचशील रियल्टी में सीधा संबंध पुणे के यरवदा की 15 हजार करोड़ रुपये की करीब 19 एकड़ जमीन के विकास से जुड़ी है। पुणे म्युनिसिपल कारपोरेशन (पीएमसी) और जिला कलेक्टर कार्यालय में मौजूद दस्तावेजों के अनुसार पंचशील टेक पार्प वन आईटी प्रोजैक्ट और डीबी रियल्टी (हिसलाइड कंस्ट्रक्शन प्रा. लि.) के द ग्रांड हमार फाइव स्टार होटल प्रोजैक्ट की जमीन के सर्वे क्रमांक 191(ए) के दो हिस्सा नम्बरों में नहीं बांटा गया है। जमीन के बंटवारे के साथ ही मुख्य सर्वे नम्बर में जमीन के टुकड़ों को अलग-अलग हिस्सा नम्बर अवंटित किए जाते हैं। अलग-अलग हिस्सा नम्बर लिए बिना यदि दो कम्पनियां काम कर रही हैं तो टाउन प्लानर्स के मुताबिक उनमें आपसी सहमति या भागीदारी निश्चित है।
शरद पवार इतने बदनाम हो चुके हैं कि वह किस-किस मामले में सफाई देंगे? पर सवाल यह उठता है कि इस सबके बावजूद उन पर कोई हाथ डालने का साहस क्यों नहीं करता? कांग्रेस तो गठबंधन धर्म निभाने का बहाना लेकर साइड कर लेती है और सरकार के वह खुद हिस्सा हैं। अन्ना हजारे ने यूं ही शरद पवार को नहीं चुना।

Saturday 16 April 2011

तमिलनाडु, केरल और असम में विधानसभा चुनाव


-अनिल नरेन्द्र

तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों में जमकर वोटिंग हुई है। तमिलनाडु में 75.21 प्रतिशत, केरल में 74.04 और पुडुचेरी में 85.21 प्रतिशत। चुनाव आयोग मतदान के प्रतिशत बढ़ने से इस बात से खुश है कि लोग अपने वोट की कीमत समझने लगे हैं, वहीं विभिन्न राजनीतिक पार्टियां अधिक मतदान को अपने लिए फायदेमंद मान रही हैं। अगर हम तीनों राज्यों में मतदान का प्रतिशत लगाएं तो यह तकरीबन 78 फीसदी रहता है और आमतौर पर यह शांत मतदान रहा। लोग शाम तक मतदान करने के लिए कतारों में खड़े थे। कांग्रेस केरल सहित अन्य राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में मतदान का रुझान पढ़ने में अलग-अलग थ्यौरी गढ़ रही है। पार्टी ने केरल में बड़ी तादाद में मतदाताओं के घर से निकलने को सत्ता विरोधी रुझान बताया है जबकि असम और तमिलनाडु के बारे में यही सवाल आने पर पार्टी बगलें झांकने लगती है। वहीं कांग्रेस ने भारी मतदान को संकेत में ही सही अन्ना के आंदोलन से जोड़कर भी पढ़ने की कोशिश की है। कांग्रेस ने कहा कि इन राज्यों में जो मतदान हुआ है उस पर जन सैलाब का यह मतलब है कि जनता का विश्वास लोकतंत्र में है। तीनों राज्यों में मतदान प्रतिशत बढ़ने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। नेताओं को भ्रष्ट बताने व समाजसेवी अन्ना हजारे के बयान के संदर्भ में उनका नाम लिए बिना कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि इस लोकतांत्रिक प्रणाली के जो असली कर्णधार है वह राजनीतिक दल ही हैं जो न केवल चुनाव में बल्कि उसके बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करते हैं। तिवारी ने कहा कि हर पांच साल में राजनीतिक दलों का जो मूल्यांकन होता है उससे दुनिया के बाकी मुल्कों में भारत की साख बनी हुई है। इसलिए जरूरी है कि जो भी कदम उठाए जाएं उसका मकसद व्यवस्था को मजबूत करना होना चाहिए।
पार्टी सूत्रों का मानना है कि तमिलनाडु में द्रमुक और कांग्रेस के गठबंधन और जयललिता की अगुवाई वाले अन्नाद्रमुक के बीच कांटे का मुकाबला है। हालांकि जमीनी रिपोर्ट से कांग्रेस आलाकमान बहुत आश्वस्त नहीं है। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की जीत का दावा करने वाले द्रमुक प्रमुख एम. करुणानिधि ने राज्य में संभावित गठबंधन सरकार के गठन के संकेत दिए हैं। अपने मताधिकार का प्रयोग करने के बाद उन्होंने कहा कि उगते सूर्य (द्रमुक का चुनाव चिन्ह) की तरह जीत को लेकर भी हमारी संभावनाएं उज्जवल हैं। सरकार बनाने के लिए हमें जितनी सीटों की जरूरत है, हम उतनी जीतेंगे। सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और द्रमुक के बीच चले दावपेंच को देखते हुए कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने इसके माध्यम से सत्ता में अपनी भागीदारी को लेकर मजबूत आधार तैयार कर लिया है। कांग्रेस 1967 के बाद से तमिलनाडु में सत्ता में नहीं आई है।
केरल में 74.4 प्रतिशत मतदान हुआ है। भाजपा को भी उम्मीद है कि इस बार केरल में भी कमल खिल जाए। मुख्य मुकाबला वाम मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन के बीच है। टिकट बंटवारे में तरह-तरह के आरोप  लगाए गए। देश के सबसे साक्षर और प्रगतिशील राज्य केरल में विधानसभा चुनाव की टिकटें राजनीतिक दलों के दफ्तरों की बजाय चर्चों और मदरसों में बंटी है। चाहे सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोकेटिक फ्रंट हो या विपक्षी यूनाइटेड डेमोकेटिक फ्रंट दोनों ने चर्चों, मदरसों, मौलवियों और पादरियों के कहने पर टिकटें  बांटी हैं। जिन धर्मगुरुओं को मनमाफिक टिकट मिली है वे खुश हैं और जिनकी लिस्ट की अनदेखी हुई है वह नाराज हैं। केरल में राजनीति से इतर धार्मिक आधार पर टिकटों का बंटवारा चोरी-छिपे नहीं बल्कि खुलेआम हुआ है। मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि कांग्रेस ने उन्हें कम टिकट दिए हैं, जबकि सीपीएम ने उनके कहे अनुसार टिकट बांटे हैं। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसके गठबंधन में शामिल मुस्लिम लीग ने 22 में से 21 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे हैं। कम से कम 14 विधानसभा क्षेत्रों में ईसाई जीत-हार का फैसला करने की स्थिति में हैं। भाकपा महासचिव एबी वर्धन ने चुनाव से पहले एर्नाकुलम प्रेस क्लब में कहा कि प. बंगाल में वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होगा जबकि केरल में भाकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे से बेहतर स्थिति में है। उन्होंने कहा कि केरल में मुकाबला बेशक दिलचस्प है लेकिन एलडीएफ बेहतर स्थिति में है और वाम मोर्चा बहुमत हासिल कर लेगा। वर्धन ने कहा, एलडीएफ तथा यूडीएफ की बारी-बारी से सरकार बनने का केरल का तथाकथित रुझान वाम मोर्चे के अच्छे प्रदर्शन के बाद इस बार कायम नहीं रहेगा।
असम में पहले चरण में लगभग 72 प्रतिशत मतदान हुआ है। छिटपुट हिंसक घटनाओं को छोड़कर इस प्रदेश में 126 निर्वाचन क्षेत्रों में शांतिपूर्ण मतदान प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए गौरवपूर्ण वरदान है। उल्फा के एक गुट तथा नेशनल डेमोकेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने चुनाव के दौरान गड़बड़ी फैलाने की चेतावनी दी हुई थी। लेकिन जनता ने उनकी परवाह नहीं की। समाजसेवी अन्ना हजारे भले ही यह मानते हों कि गरीब मतदाता शराब और धन के मोह में उलझकर वोट डालते हैं और उनके जैसा ईमानदार व्यक्ति चुनाव में कभी सफल नहीं हो सकता, लेकिन असम, बिहार, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के गरीब और आदिवासी करोड़ों मतदाता अपने गांव, कस्बे, परिवार और समाज के भले के लिए वोट डालते हैं। संभव है कि भोलेपन, डर और थोड़े लालच में गलत उम्मीदवारों की तरफ झुक जाते हों लेकिन उन्हें वोट की ताकत का अहसास है। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट समर्थित निर्दलियों के बल पर और भारतीय जनता पार्टी जरूरत पड़ने पर असम गण परिषद के सहयोग से नई सरकार बनाने की तैयारियां कर रही हैं। पांच प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका कम नहीं है। भाजपा तो खुलकर बंगलादेश की सीमा से आए मुस्लिम मतदाताओं को लेकर गहरा आक्रोश व्यक्त करती रही है जबकि कांग्रेस बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं के साथ मुस्लिमों और क्षेत्रीय भावना वाले आदिवासियों को अपनी ओर खींचने का हर संभव प्रयास करती रही है। अन्त में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में चुने जाने और प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए असम के कामरूप जिले के दिसपुर निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता के रूप में अपना नाम तो दर्ज करवा रखा है लेकिन इस विधानसभा चुनाव में वह  स्वयं और पत्नी गुरशरण कौर का वोट डालने नहीं गए। यही नहीं, उन्होंने डाक से मतदान करने का आग्रह भी निर्वाचन आयोग से नहीं किया। एक तरफ हम वोट के अधिकार का उपयोग करने का प्रचार करते नहीं थकते वहीं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रधानमंत्री ही मतदान नहीं करता।