Sunday 31 May 2015

फीफा अधिकारियों पर करोड़ों डॉलर रिश्वत लेने का आरोप

दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल की साख पर बुधवार को बट्टा लग गया। स्विटजरलैंड के ज्यूरिख शहर में  जब फीफा के नए अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी चल रही थी, तब इस संस्था के कई शीर्ष अधिकारियों को पुलिस ने भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इस खबर ने पूरे विश्व में सनसनी फैला दी। हालांकि फुटबॉल पहले भी कई बार सवालों के घेरे में आ चुकी है। इस तरह का प्रकरण खेल के लिए बदनुमा दाग होता है। षड्यंत्र और भ्रष्टाचार के आरोप में स्विटजरलैंड की ज्यूरिख पुलिस ने बुधवार को तड़के एक लग्जरी होटल पर छापा मारकर अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ (फीफा) के सात अधिकारियों को गिरफ्तार किया। इन पर 10 करोड़ डॉलर (करीब छह अरब, 40 करोड़ रुपए) रिश्वत लेने का आरोप है। गिरफ्तार लोगों में फीफा का एक उपाध्यक्ष भी शामिल है। कुल 14 लोगों पर षड्यंत्र और भ्रष्टाचार के आरोप हैं जिनमें नौ फीफा अधिकारी हैं। स्विटजरलैंड के न्याय मंत्रालय ने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों के आग्रह पर फीफा के सात अधिकारियों को 1990 के दशक के शुरू से लेकर वर्तमान समय तक रिश्वत लेने और उसके बदले में हित साधने के संदेह में गिरफ्तार किया है। इन अधिकारियों की गिरफ्तारी ऐसे समय में हुई है जब एक दिन बाद गुरुवार से यहां फीफा का वार्षिक सम्मेलन शुरू होने जा रहा है। ज्यूरिख के होटल पर पुलिस कार्रवाई के साथ फीफा के मुख्यालय पर भी छापेमारी की गई। इसके अलावा अमेरिका राज्य फ्लोरिडा के सियामी स्थित सीओएनसीएसीएएफ मुख्यालय पर भी तलाशी अभियान चलाया गया। स्विस सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि फीफा से जुड़े अधिकारियों को करोड़ों डॉलर से अधिक का भुगतान करने की योजना में संलिप्त पाया गया है। इसके बदले में माना जा रहा है कि उन्हें लैटिन अमेरिका में होने वाले फुटबॉल टूर्नामेंट से जुड़े मीडिया, मार्केटिंग और प्रायोजन अधिकार मिले। बयान में कहा गया कि इन आरोपों की तैयारियां अमेरिका में की गईं और भुगतान अमेरिकी बैंकों के जरिये किया गया। अमेरिकी खुफिया संस्था एफबीआई ने वर्तमान और निवर्तमान मिलाकर कुल नौ फीफा अधिकारियों और अमेरिकी स्पोर्ट्स कंपनियों से जुड़े पांच लोगों के खिलाफ 15 करोड़ डॉलर के भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज किए। इन 14 में छह ने तो अपना गुनाह कबूल भी कर लिया है। एफबीआई जांच के ब्यौरे दिलचस्प हैं। किस बेशर्मी से 2010 का वर्ल्ड कप दक्षिण अफ्रीका को देने के लिए घूस मांगी गई थी। किस तरह एक अधिकारी ने फीफा के पैसों से एक कैरेबिया द्वीप में विशाल स्टेडियम बनवाया और फिर उसे अपने नाम कराकर उसे पार्टियों के लिए किराये पर उठा रहा है। वैसे एफबीआई के इस खुलासे का एक कूटनीतिक पहलू भी है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का कहना है कि अमेरिका यह तमाशा इसलिए खड़ा कर रहा है ताकि 2015 का वर्ल्ड कप आयोजन रूस से छिन जाए और किसी और देश को दे दिया जाए। इस खुलासे से तमाम दुनिया के फुटबॉल प्रेमी दुखी हैं।
-अनिल नरेन्द्र

मौसम के दो रंग ः मैदानों में लू का कहर, पहाड़ों पर बर्पबारी

मौसम के अजीब रंग देखने को मिल रहे हैं। मैदानों में लू का कहर है तो पहाड़ों पर बर्पबारी हो रही है। कश्मीर घाटी और हिमाचल में पिछले दिनों मैदानी इलाकों में तो बारिश हो रही है और पहाड़ों पर बर्प गिरने से ठंड बढ़ गई है। कश्मीर घाटी को लद्दाख से जोड़ने वाला नेशनल हाइवे भू-स्खलन और ताजा बर्पबारी के बाद बंद करना पड़ा। हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्फीति की पहाड़ियों पर बर्पबारी हो रही है। इससे घाटी का पारा गिर गया है। केलोंग में तीन सेंटीमीटर बर्प गिरी है। कालपा व किन्नौर में 18 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। ताजा बारिश और बर्पबारी से पहाड़ों में ठंडक फिर लौट आई है। उत्तर भारत के अनेक हिस्सों में जबरदस्त गर्मी पड़ रही है। दिल्ली में पिछले तीन दिनों से पारा 45 डिग्री सेल्सियस के नीचे नहीं गया है। आने वाले दिनों में ही हीट बेव चलेगी। गर्मी से मौतों का सिलसिला जारी है। देशभर में गर्मी की वजह से 1800 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। लू के थपेड़ों से बढ़ी गर्मी से लोग बेहाल हो रहे हैं। गर्मी की सर्वाधिक मार झेल रहे दक्षिण राज्योंöतेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पिछले एक पखवाड़े में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं। वहीं लू और गर्म हवाओं ने ओड़िशा से लेकर राजस्थान और झारखंड से लेकर उत्तर प्रदेश और पंजाब तक को अपनी जद में ले लिया है। मई के महीने में पारे का 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचना बहुत सामान्य है लेकिन कई जगह तापमान औसत से पांच डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया है। यही नहीं, राजधानी दिल्ली के पालम क्षेत्र में तो पारा 46 डिग्री सेल्सियस और इलाहाबाद में 48 डिग्री सेल्सियस को छू चुका है। इससे पहले 2010 में गर्मी का प्रकोप देखा गया था जब अमेरिका और फ्रांस से लेकर चीन तक इससे हलकान हो गए थे। उस वर्ष भारत में भी करीब 250 लोगों की भीषण गर्मी की वजह से मौत हो गई थी। उसके मुकाबले तो इस बार गर्मी कहीं अधिक जानलेवा साबित हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग की तमाम अकादमिक बहसों के बीच यह सच है कि आज भी अपने देश में गर्मी से बचने के पारंपरिक उपायों के अलावा कोई व्यवस्था नहीं है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि लू का शिकार होने वालों में आमतौर पर गरीब और मजदूर तबके के लोग होते हैं। उनके लिए रोटी-रोजी के इंतजाम के लिए घर से बाहर निकलना मजबूरी होती है। भले ही धूप और तापमान जानलेवा स्तर तक हो। एक समय था जब सड़कों के किनारे पीने के पानी के लिए सरकारी इंतजाम होते थे, लोग अपने स्तर पर भी प्याऊ लगाते थे। लेकिन आज शहरों की सड़कों पर छांव के लिए पेड़ खोजे नहीं मिलते। बिना पैसा खर्च किए प्यास बुझाना मुश्किल है। पानी को खुद सरकारों ने धीरे-धीरे बाजार के हवाले कर दिया है जिसे इस बात की कोई फिक्र नहीं कि गर्मी में लोगों का लू की चपेट में आना आश्चर्य की बात नहीं रह गई। इस साल बेतहाशा गर्मी झेलने को तैयार रहें क्योंकि 2015 इतिहास का सबसे गर्म साल साबित होगा।

Saturday 30 May 2015

एनजीओ और गृह मंत्रालय में चन्दे को लेकर ठनी

मोदी सरकार ने गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। यह देश की पहली सरकार है जिसने विदेशी चन्दों के बाबत पारदर्शिता न बरतने और विदेशी चन्दा कानून अधिनियम (एफसीआरए) का पूर्ण पालन न करने के लिए नौ हजार से ज्यादा एनजीओ पर नकेल कस दी। ज्यादातर के खाते सील कर दिए गए। विदेशी चन्दा लेने पर पाबंदी लगा दी गई। संसद में सरकार ने कहा कि एक साल में 164 देशों से 11,838 करोड़ रुपए गैर सरकारी संगठनों के पास आए। संगठनों ने या तो इसका जिक्र आयकर रिटर्न में नहीं किया या फिर अपने घोषित कार्यक्षेत्रों से इतर धन खर्च किया। गृह मंत्रालय ने 30 हजार से ज्यादा एनजीओ को एफसीआरए कानून के उल्लंघन के आरोप में नोटिस जारी किए। नौ हजार से ज्यादा एनजीओ पर प्रतिबंध लगा दिया। कई गैर सरकारी संगठनों का नाम लेकर सरकार ने संसद में लिखित तौर पर दावा किया है कि खुफिया एजेंसियों से उनके खिलाफ विपरीत रिपोर्टें मिली हैं। सबसे ज्यादा पैसे अमेरिका से आए। दूसरे नम्बर पर ब्रिटेन और जर्मनी से दानदाता रहे। देश में हर साल करीब 10 हजार करोड़ रुपए विदेशी चन्दा गैर सरकारी संगठनों के खाते में आ रहा है। राजनीतिक दलों या लाभ कमाने वाले संगठनों को चन्दा देने के आरोप में सरकार ने फोर्ड फाउंडेशन  को निगरानी सूची में रखा। गैर सरकारी संगठनों का आरोप है कि उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों मसलन भूमि अधिग्रहण बिल, सामाजिक सरोकारों (मनरेगा), शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मुद्दों में कटौती के खिलाफ सड़क से संसद तक संघर्ष किया इसलिए सरकार इनसे नाराज है। सरकार इसे एफसीआरए की धारा-3 की उपधारा-5(1) का उल्लंघन मान बैठी है क्योंकि यह धारा राजनीतिक क्रियाकलापों पर विदेशी चन्दे का उपयोग करना निषेध करती है। इनमें एक संगठन है ग्रीन पीस। केंद्र सरकार ने ग्रीन पीस का विदेशी चन्दा पंजीकरण रद्द करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में मंगलवार को कहा कि इस गैर सरकारी संगठन ने संबंधित प्राधिकारों को सूचित किए बिना विदेशी अनुदान का उपयोग करने के लिए पांच खाते खोल लिए थे। गृह मंत्रालय ने न्यायमूर्ति राजीव शकधर के समक्ष पेश हलफनामे में आरोप लगाया कि ग्रीन पीस ने अपने विदेशी अनुदानों को घरेलू अनुदानों के साथ मिलाकर विदेशी चन्दा नियमन अधिनियम (एफसीआरए) का उल्लंघन किया है। उधर ग्रीन पीस ने गृह मंत्रालय पर मीडिया को हथियार बनाकर ग्रीन पीस इंडिया को बदनाम करने का आरोप लगाया। एनजीओ ने कहाöहम गृह मंत्रालय को कानूनी नोटिस भेज रहे हैं जिसमें मंत्रालय से बिना शर्त माफी मांगने और निराधार आरोपों को वापस लेने की मांग की गई है। हमारा कहना है कि कानून का उल्लंघन करने वालों के साथ सरकार सख्ती से निपटे। साथ ही खुफिया एजेंसियों के पास उनके खिलाफ जो विपरीत रिपोर्टें हैं उनका खुलासा भी करे।

-अनिल नरेन्द्र

बिहार और पश्चिम बंगाल में अगर आज चुनाव हों तो...

भाजपा के अच्छे दिन का नारा मोदी सरकार आने के एक साल बाद भी बिहार और पश्चिम बंगाल की जनता को रास नहीं आ रहा। कम से कम एबीपी न्यूज-नीलसन के ताजा सर्वे के मुताबिक। पहले बात करते हैं बिहार की। सर्वे के अनुसार बिहार में जहां इस वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं अगर आज चुनाव हो जाएं तो जेडीयू 127 सीटें लेकर सरकार बना लेगी। भाजपा को 112 तथा अन्य को चार सीटें मिलेंगी। एबीपी-नीलसन के सर्वे में यह  बात उभर कर आई है कि जेडीयू गठबंधन जिसमें आरजेडी और कांग्रेस शामिल हैं को भारी लाभ मिलता दिख रहा है। जबकि भाजपा के गठबंधन में आरएलपी और लोक जनशक्ति पार्टी शामिल हैं को नुकसान हो सकता है। चुनावी सर्वेक्षणकारों ने यह भी कहा कि दोनों गठबंधनों का अंतर काफी कम है तो अंतिम क्षणों में कुछ भी हो सकता है। इसके साथ ही कई गठबंधन बनने और टूटने की संभावनाओं पर भी चुनावी पंडितों ने गणित बैठाया है। राज्य में ज्यादातर लोगों ने नीतीश कुमार के काम को सराहा है और उन्हें सबसे लोकप्रिय नेता कहा है। जबकि लोकप्रियता के मामले में सुशील मोदी, लालू प्रसाद यादव, जीतन राम मांझी, रामविलास पासवान, शत्रुघ्न सिन्हा के मुकाबले नीतीश कुमार 52 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं। वहीं नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों की लोकप्रियता के मामले में पीएम सब पर भारी पड़ रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस अगर अकेले चुनाव लड़ती है तो उसे नुकसान होगा और यही स्थिति भाजपा के साथ है अर्थात अकेले लड़ने पर उसे भी नुकसान का सामना करना पड़ेगा। फिलहाल अकेले नीतीश कुमार को फायदा हो रहा है और भाजपा को मौजूदा हालात में नुकसान हो रहा है। उधर पश्चिम बंगाल में सर्वे के अनुसार अगर अभी विधानसभा चुनाव हुए तो ममता की आंधी में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां पहले से ज्यादा हाशिये पर चली जाएंगी। जबकि भाजपा महज अपना खाता खोलने में कामयाब हो पाएगी। अगर आज चुनाव हुए तो 294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में सत्ताधारी ममता 198 सीटों के साथ वापसी करेंगी। कांग्रेस दूसरे सबसे बड़े दल के तौर पर उभरेगी और वह 40 सीटें जीत सकती है। तीन दशक से ज्यादा समय तक शासन करके बीते विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवाने वाली वामपंथी पार्टियों का प्रदर्शन इस बार और ज्यादा खराब रहने के आसार हैं और उन्हें महज 36 सीटें ही मिलने का अनुमान है। केंद्र में सत्तासीन भाजपा का कमल सिर्प 12 सीटों पर खिल सकता है। निर्दलीय और अन्य के खाते में आठ सीटें जा सकती हैं। ओपिनियन पोल के मुताबिक बीते विधानसभा चुनाव के मुकाबले ममता को अभी 14 सीटों का इजाफा हो रहा है। यह ठीक है कि यह महज एक सर्वे है और इसके निष्कर्षों से असहमति हो सकती है। फिर चुनाव अभी दूर हैं पर इससे इन दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियों और उनके नेताओं की जनता में लोकप्रियता का तो पता लगता है। भाजपा और खासतौर पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिए चुनौती है।

Friday 29 May 2015

कहां है इंडियाज मोस्ट वांटेड दाउद इब्राहिम?

मोस्ट वांटेड आतंकी दाउद इब्राहिम कहां है, इस पर सरकार की तरफ से अलग-अलग बयान आए हैं। लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में गृह राज्यमंत्री हरी भाई परथी भाई चौधरी ने कहा कि अब तक उसका (दाउद) का पता नहीं लग सका है, मालूम होने पर प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। मीडिया में यह खबर आने पर इसे सरकार का यूटर्न माना गया। लेकिन छह घंटे बाद दूसरे गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि दाउद पाकिस्तान में है और सरकार अपने इस स्टैंड पर कायम है। अधिकारियों ने इस मामले में कंफ्यूजन के लिए नौकरशाही स्तर पर गलती होने की बात कही है। सरकार अरसे से कहती आ रही है कि दाउद पाकिस्तान में वहां के सुरक्षा तंत्र के संरक्षण में रहता है। दाउद के बारे में पाकिस्तान को कई डॉसियर देकर उसके ठिकाने की जानकारी भी दी गई है। उल्लेखनीय है कि दाउद इब्राहिम 12 मार्च 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट का मुख्य आरोपी है। इस दिन मुंबई में 13 अलग-अलग जगह पर हुए ब्लास्ट में 257 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा घायल हुए थे। इंटरपोल के मोस्ट वांटेड की लिस्ट में शामिल दाउद के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी स्पेशल नोटिस जारी किया है। 2003 में अमेरिका ने उसे ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित किया। इंटरपोल के मुताबिक दाउद कराची में रहता है। इंटरपोल ने अपने नोटिस में उसके कराची के दो संभावित पते भी जारी किए थे। भारत सरकार भी कहती रही है कि दाउद पाकिस्तान में ही है। कहा जाता है कि दाउद को लाहौर में कई सुविधाएं भी प्राप्त हैं। वह अकसर कराची और लाहौर आता है। 27 दिसम्बर 1955 को महाराष्ट्र में रत्नागिरी जिले के मुअका में एक पुलिस कांस्टेबल के घर दाउद इब्राहिम कासकर का जन्म हुआ। 1984 में अंडरवर्ल्ड में दाउद ने पांव रखा। पहले डोगरी इलाके में चोरी, डकैतीलूटपाट करता था। बाद में तस्करी में हाजी मस्तान के गैंग में शामिल हो गया। 1993 के मुंबई में हुए बम धमाकों में दाउद मुख्य आरोपी है। एक नवम्बर 1993 में भारत के मोस्ट वांडेट आतंकियों की सूची में उसे शामिल किया गया। कई बॉलीवुड कलाकारों से दाउद के अच्छे रिश्ते हैं। कहा जाता है कि फिल्म `राम तेरी गंगा मैली' की अभिनेत्री मंदाकिनी कई साल तक दाउद के साथ रही। एक और अभिनेत्री इलियाना के दाउद से रिश्ते भी बताए जाते हैं। फिल्म `कहो न प्यार हैलाभ में हिस्सा न मिलने पर दाउद के लोगों ने फिल्मकार राकेश रोशन पर हमला कर दिया था। 2001 में बनी हॉलीवुड की फिल्म चोरी-चोरी चुपके-चुपके में दाउद ने शकील की मदद से पैसे लगाए थे। दाउद के पता ठिकाने के बारे में अनभिज्ञता जताए जाने संबंधी बयान को लेकर विपक्ष के निशाने पर आई मोदी सरकार ने पुरजोर शब्दों में कहा कि दाउद के पाकिस्तान में होने की विश्वसनीय सूचना है और सरकार उसे भारत वापस लाकर ही रहेगी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा कि भारत के पास दाउद के पाकिस्तान में होने की पुख्ता सूचना है और हम उसे वापस लेकर अवश्य आएंगे।

-अनिल नरेन्द्र

पीएम व केंद्र से टकराव की नीति अपना रहे हैं केजरीवाल

दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बेशक अधिसूचना पर चर्चा के लिए अरविंद केजरीवाल ने बुलाया पर असल मकसद है केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल पर सीधा हमला बोलना। विधायक कपिल मिश्रा ने नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना तानाशाह, बादशाह, हिटलर, सूटेड-बूटेड, उठकर पासपोर्ट देखने, दुर्योधन-कृष्ण संवाद का जिक्र करके बुद्धि पलटने का जिक्र किया। वहीं चर्चा पूर्ण राज्य का दर्जा, डीडीए और पुलिस पर अधिकार, अधिसूचना की चर्चा तक पहुंचती नजर आई। केजरीवाल ने कहा कि केंद्र की  तरफ से छीने गए दिल्ली के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे। केंद्र की अधिसूचना तानाशाही है। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली को आजाद कराने के लिए और अपने हाथ-पैर खुलवाने के लिए इनसे लड़ाई जारी रखेंगे। मुझे उम्मीद है कि पांच साल में दिल्ली के जो अधिकार केंद्र सरकार ने छीन रखे हैं वापस ले लेंगे। हम केंद्र से छीनेंगे दिल्ली के अधिकार। कपिल मिश्रा ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सुबह उठकर घोषणा पत्र देखते हैं, मंत्रियों को वादा पूरा करने के लिए काम के निर्देश देते हैं। दूसरी तरफ भाजपा की अगुवाई करने वाले प्रधानमंत्री हैं जो सुबह उठकर पासपोर्ट देखते हैं। दिल्ली को नियंत्रित करने के लिए बादशाह सलामत की तरह उपराज्यपाल को फरमान जारी किए जा रहे हैं जो दिल्ली की जनता की शक्ति कम करने जैसा है। मिश्रा ने पांडवों का हिस्सा दिलाने के लिए शांति दूत बनकर गए कृष्ण के संवाद का जिक्र करके भाजपा की बुद्धि पलटने की बात कही। कई विधायकों ने उपराज्यपाल पर सीधा हमला बोला। दिल्ली सरकार के संसदीय सचिव आदर्श शास्त्राr ने तो यह मांग रख दी थी कि संविधान में संशोधन करके संसद में राष्ट्रपति की तर्ज पर दिल्ली को उपराज्यपाल पर महाभियोग चलाने का अधिकार मिले। शास्त्राr ने कहा कि सरकारिया समिति ने राज्यों के लिए विधानसभा को इस तरह की शक्ति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 में संशोधन करके राज्यों को राज्यपाल या उपराज्यपाल पर महाभियोग चलाने की शक्ति देने की सिफारिश की है। दिल्ली विधानसभा इस संबंध में प्रस्ताव पास करके केंद्र को भेजे। मोदी सरकार सत्ता में अपनी पहली सालगिरह मना रही है तो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के 100 दिन का शोर खड़ा कर दिया है। ऐसे नए-नए दांव चलते हुए केजरीवाल प्रचार पाने में नरेंद्र मोदी से होड़ कर रहे हैं। इस रूप में देशभर के जनमानस में मोदी और भाजपा के विकल्प के तौर पर अपनी छवि बनाने की कोशिश को वह आगे बढ़ा रहे हैं। इस क्रम में उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को अपनी राष्ट्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का प्लेटफार्म बना लिया है। दिल्ली सरकार की कैबिनेट मीटिंग मुख्यमंत्री सचिवालय में भी कर सकते थे पर उन्होंने पब्लिक का समर्थन पाने के लिए इसके लिए कनॉट प्लेस चुना। जाहिर है कि वह केंद्र से टकराने के लिए जन समर्थन चाहते हैं। वह आए दिन कोई न कोई ऐसा मुद्दा खड़ा करेंगे जिससे केंद्र से तनाव बढ़े। उपराज्यपाल नजीब जंग से आप सरकार के मौजूदा टकराव भी केजरीवाल की रणनीति का हिस्सा है। यह लड़ाई अब सीधे केजरीवाल बनाम केंद्र में परिवर्तित करने के प्रयास में हैं श्री केजरीवाल। इसमें केजरीवाल को अतिरिक्त लाभ यह नजर आता होगा कि इसकी आड़ में वह अपनी तमाम विफलताओं का ठीकरा केंद्र सरकार के माथे फोड़ सकते हैं। ऐसा लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वह शासन संभालने के लिए नहीं बल्कि इस प्लेटफार्म से वह बड़ी सियासत करने  बैठे हैं और वे खुलेआम यही कर रहे हैं। श्रीमती शीला दीक्षित ने 15 साल राज किया। मुझे याद नहीं कि उन्होंने कभी भी केंद्र या उपराज्यपाल से इस तरह टकराने की कोशिश की हो। उनके शासन में दिल्ली में बहुत विकास हुआ पर अरविंद केजरीवाल विकास पर तो ध्यान दे ही नहीं रहे उनकी नीयत तो प्रधानमंत्री, गृह मंत्रालय और उपराज्यपाल से टकराने की है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

Thursday 28 May 2015

IS plans to buy Atom Bomb from Pakistan

A terror suicide attack during Friday prayer at a Shia mosque in Saudi Arabia is shocking.  Usually Saudi Arabia is believed to be a safe country where terror attacks are rare. In a fresh incident 21 persons died in this suicide attack in East Katik province of Saudi Arabia on Friday while more than 60 people were injured.  Many of the injured are serious.  Terrorist set-up Islamic State has claimed the responsibility of the attack. An eye witness told that a suicide assailant destroyed himself in Imam Ali mosque at Al Quadil village which caused a huge blast in the mosque. About 150 people were present in the mosque at the time of the incident. Saudi Arabia government is also aware of the intentions of all Sunni extremist organizations including Islamic State (IS).  The government already feared that efforts may be put to enhance the racial clash by attacking on Shias in Saudi Arabia. The government has told that it has tracked the cell of about 65 strong terrorists and disabled them. Shias participate 10 to 15 per cent in total population of Saudi Arabia. Shias populate mostly in two oasis districts Gulf Beach and Al Sahsa of Katik province. There is serious news relating to IS. Islamic State (IS) has claimed that it is nearing to buy atom bomb from Pakistan and it will attack on United States. IS captured Photo journalist John Katley has written in an article for the magazine of the organization that situations are more favourable to get atom bomb than last year. Katley was captured two years ago and he is being used for propagating its threats worldwide. Katley has written in an article named ‘The Perfect Storm’ that Islamic State has billion dollars in banks and it will achieve atom bomb very soon by bribing corrupt Pakistani officials. But it is more dangerous thing that this article says that this bomb will be smuggled to United States. IS started from Iraq-Syria has turned today into a danger for the entire world. Its heat is being experienced by the countries of Western Asia including Europe and America. The situation may worsen, if western countries do not take any action.  IS intends to bring the entire area once under the Islamic rulers in the history within the khilafat. Besides, this organization marching ahead on the mission of establishing Islamic rule in Europe and America also has become a challenge for the entire world. We expect that Pakistan will secure its atomic weapons and won’t let it go to the Islamic State in any circumstances. The US too will have to put pressure on Pakistan.

- Anil Narendra

मोदी सरकार का एक वर्ष ः उपलब्धियां व चुनौतियां

धूमधाम से आई मोदी सरकार ने एक साल पूरा कर लिया है। एक वर्ष की उपलब्धियां बताने के लिए भाजपा 26 मई से 31 मई तक देशभर में रैलियां आयोजित कर रही है। कुछ बड़े नेताओं के अलावा भाजपा सांसद भी पांच हजार रैलियां करेंगे। जन कल्याण पर्व के तहत देशभर में 200 रैलियां होंगी। देखना यह है कि इन सभी आयोजनों के जरिए भाजपा के नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम आदमी को यह विश्वास दिला पाने में सफल होते हैं या नहीं कि मोदी सरकार ने एक वर्ष में वास्तव में तमाम काम कर दिखाए हैं? यह सवाल इसलिए क्योंकि आम जनता ने मोदी सरकार से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा रखी थीं और चूंकि वे सभी पूरी नहीं हुईं इसलिए एक बेचैनी-सी भी दिखाई दे रही है। जनसंघ विचारक दीनदयाल उपाध्याय की जन्मस्थली मथुरा में ई रैली में खुद को देश का प्रधान ट्रस्टी और संतरी बताकर यही संदेश देने की कोशिश की गई है कि मोदी सरकार के आने से शासन के तौर-तरीके बदल गए हैं। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पर एक सर्वेक्षण सामने आया है। रस्टावाणी द्वारा किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार करीब तीन-चौथाई लोग मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं, वहीं मेट्रो शहरों के 82 फीसदी और गैर मेट्रो शहरों के 74 फीसदी लोगों का मानना है कि आर्थिक विकास के मोर्चे पर सरकार सही दिशा में बढ़ रही है। पिछले एक साल में भ्रष्टाचार का कोई हाई-प्रोफाइल मामला नहीं आने के कारण भी लोगों के मन में मोदी सरकार के प्रति सकारात्मक धारणा बनी है। वहीं स्वच्छता के मुद्दे पर मेट्रो शहरों के 86 फीसदी लोगों ने सरकार को पूरे नम्बर दिए हैं। उम्मीदों के विपरीत मोदी ने सेना के लिए एक रैंक एक पेंशन या फिर किसानों से संबंधित बड़ी घोषणा तो नहीं की लेकिन यह जताने की कोशिश की कि उनकी सरकार गरीबों और वंचितों के लिए फिक्रमंद है। संभवत ऐसा इसलिए है क्योंकि जमीन अधिग्रहण कानून में संशोधन को लेकर संसद और उसके बाहर सरकार और विपक्ष के बीच हुए टकराव से सरकार की छवि पर असर पड़ा है पर इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि मोदी सरकार ने रसोई गैस के लिए नकद सब्सिडी, जनधन योजना, सामाजिक पेंशन से लेकर आधार कार्ड और छोटे कारोबारियों के लिए मुद्रा बैंक की स्थापना जैसी पहल की है, जो उसे सीधे निचले तबके से जोड़ती है। हालांकि मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि उस पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। जिसके कारण यूपीए और खासतौर पर कांग्रेस की इतनी दुर्गति हो गई कि उसे मान्यताप्राप्त विपक्षी दल के दर्जे लायक सीटें तक नहीं मिलीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लालफीताशाही को कम करने और सुशासन लाने के वादे के साथ भारी  बहुमत से सत्ता में आए थे। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान विकास में आने वाली प्रशासनिक अड़चनों को हटाने के वादे किए थे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस दौरान इनमें कितना बदलाव आया है। एक नजर उन वादों पर डालते हैं जो एक साल में मोदी ने पूरे किए हैं। प्रशासन में पारदर्शिता लाने में वह सफल हुए। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के संसाधनों का आबंटन बढ़ा दिया है। अब राज्य सरकारें फैसला कर सकती हैं कि वो विकास के जिस प्रोजेक्ट पर चाहें खर्च कर सकती है। योजना आयोग की जगह पर नीति आयोग बेशक बन तो गया है पर उसकी भूमिका अब तक साफ नहीं हुई है। पहले कोई उद्योग लगाने में कई फार्म भरने पड़ते थे। अब औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग ने इन सबको जोड़कर एक फार्म कर दिया है। वह भी ई-फार्म के रूप में। ऐसे बहुत से कानून थे जो पुराने हो चुके थे और जिनसे फायदा होने की बजाय नुकसान होता था और उन्हें बदलने या हटाने की जरूरत थी। मोदी सरकार ने ऐसे कानूनों की पहचान की है ताकि उन्हें हटाया जा सके। ऐसे भी कई वादे हैं जो अब तक पूरे नहीं हो सके। सत्ता का विकेंद्रीयकरण पूरा नहीं हुआ है। यह एक लम्बा काम है। राज्य सरकारों को ज्यादा अधिकार देने के लिए संविधान में काफी बदलाव करने होंगे। मोदी वन मैन ब्रैंड हैं। सत्ता का केंद्रीकरण होता जा रहा है और यह काफी हद तक सही है। इससे एक फायदा जरूर है कि जिस काम पर फोकस करना हो जल्द हो जाता है लेकिन नुकसान ये है कि कई लोग सशक्त महसूस नहीं करते, इस कमी को दूर करने की जरूरत है। कई राज्य सरकारें केंद्र से असहमत हैं। वह असहमति कोई नई नहीं है, लेकिन इस सरकार ने इस असहमति को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। वित्तीय क्षेत्र में कुछ सुधार होने थे जो नहीं हो सके। श्रम और संबंधित क्षेत्रों में सुधार होना था जो अब तक नहीं हो सका। इसमें दो राय नहीं कि सरकार के इस पूरे एक वर्ष का केंद्र खुद प्रधानमंत्री मोदी ही रहे हैं, जो एक मजबूत नेता बनकर उभरे हैं। लिहाजा सरकार के कामकाज में चाहे वह स्वच्छता अभियान हो या फिर मेक इन इंडिया, सीधे उनका काम दिखता है। इस पर भी गौर करने की जरूरत है कि सरकार की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मसलन जहां देश के 60 करोड़ लोगों के लिए शौचालय की व्यवस्था अब भी बड़ी चुनौती है, वहीं 18 देशों की यात्राएं कर वैश्विक नेता के रूप में स्थापित होने के बावजूद पीएम की पहल निवेशकों को खास आकर्षित नहीं कर सकी है। अच्छे दिन के वादे के साथ सत्ता में आए मोदी ने कहा कि आम लोगों के लिए बुरे दिन गए और बुरा करने वालों के और बुरे दिन आएंगे। उन्हें ध्यान रखना होगा कि पिछली सरकार की नाकामियों पर एक हद तक ही बात की जा सकती है, अंतत जनता उनकी सरकार के कामकाज को ही कसौटी पर उतार सकेगी। मोदी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती अपनी उन तमाम योजनाओं के नतीजे आम आदमी तक पहुंचाने की भी है जो पिछले साल में शुरू की गई है। निसंदेह मोदी सरकार ने कई ऐसी जन योजनाएं शुरू की हैं जो आम जनता के हितों की पूर्ति करने वाली हैं, लेकिन उनके नतीजे आने शेष हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday 27 May 2015

एक्सप्रेस-वे पर वायुसेना का फाइटर जेट

आपात स्थिति में लड़ाकू विमानों को उतारने के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों का उपयोग करने के उद्देश्य से किए गए एक परीक्षण के तहत भारतीय वायुसेना का एक मिराज-2000 लड़ाकू विमान गुरुवार की सुबह मथुरा के समीप यमुना एक्सप्रेस-वे पर सफलतापूर्वक उतारा गया। यह पहला  मौका है जब भारतीय वायुसेना का कोई विमान किसी राजमार्ग पर उतरा है। ऐसा इस बात की जांच करने के लिए किया गया कि क्या किसी आपात स्थिति में हवाई जहाज को इस राजमार्ग पर उतारा जा सकता है या नहीं? भारत से पहले चीन, पाकिस्तान, स्वीडन, जर्मनी, स्विटजरलैंड, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर में एयरफोर्स के लिए रोड रन-वे बने हैं। पाकिस्तान ने 2010 में ही इस्लामाबाद-लाहौर मोटर-वे के एक हिस्से को अपनी एयरफोर्स के लिए रोड रन-वे के रूप में विकसित कर लिया था। मथुरा के पास माइलस्टोन 118 का तीन किलोमीटर का हिस्सा प्लेन लैंडिंग के लिए सही माना गया। इसकी वजह यह थी कि यह एक्सप्रेस-वे के बाकी हिस्सों से ज्यादा मोटा और मजबूत था। इस हिस्से की चौड़ाई 50 मीटर थी जो एयरफोर्स के रन-वे से भी ज्यादा पाई गई। सड़क के दोनों ओर 110 मीटर की जमीन भी खाली थी। इस हिस्से को सील कर सुरक्षा के लिहाज से एयरफोर्स या सीआईएसएफ को भी सौंपा जा सकता है। वायुसेना की कोशिश है कि देश में ऐसे और राजमार्गों की पहचान की जाए जिन पर जरूरत पड़ने पर जंगी हवाई जहाजों को उतारा जा सके। यमुना-एक्सप्रेस-वे देश के सबसे अच्छे राजमार्गों में से है। हालांकि उससे कुछ ही दूरी पर यमुना की दूसरी ओर आगरा को दिल्ली से जोड़ने वाला जो राष्ट्रीय राजमार्ग-93 है और दिल्ली को लखनऊ से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-24 है। ये दोनों राजमार्ग किसी कस्बे के संकरे से रास्ते की याद दिलाता है। यह एक अजीब विरोधाभास है कि जहां हम देश के कुछ राजमार्गों पर हवाई जहाज उतार सकते हैं। वहीं बहुत सारी सड़कों पर वह वाहन भी आसानी से नहीं चला सकते, जिनके लिए वह सड़कें बनी हैं। अच्छी सड़कें बनाने की तकनीक कोई चन्द्रमा पर रॉकेट भेजने जैसी या परमाणु विखंडन जैसी जटिल और कठिन तकनीक नहीं है, न ही वह बहुत महंगी है। इसके बावजूद अगर हम अच्छी सड़कें नहीं बना पाते, तो इसकी वजह सिर्प लापरवाही और भ्रष्टाचार है। सिंगल इंजन वाला मिराज-2000 चौथी पीढ़ी का मल्टी रोल जेट फाइटर विमान है। फ्रांस की दासों कंपनी ने इसे विकसित किया है। इसकी अधिकतम स्पीड 2495 किलोमीटर या 1550 मील प्रति घंटा है। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी ठिकानों पर बमबारी के बाद यह विमान सुर्खियों में आया। 2011 में निर्माता कंपनी के साथ 51 मिराज विमानों को अपग्रेड करने का समझौता हुआ। इसके तहत इस साल मार्च में दासों से दो अपग्रेड मिराज वायुसेना को मिले। वायुसेना के एक बयान में कहा गया है कि यह अभियान आगरा तथा मथुरा के जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधीक्षकों के समन्वय से चलाया गया। जमीन पर उतरने के पहले विमान 100 मीटर नीचे आया और फिर गोता लगाकर सड़क को लगभग छूता हुआ ऊपर चला गया। इसके बाद विमान पुन नीचे आया और राजमार्ग पर उतरा। हम भारतीय एयरफोर्स को इस उपलब्धि पर बधाई देते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करें

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के रहस्य को लेकर देशभर में छिड़ी बहस के बीच खुलासा हुआ है कि उनसे जुड़ी 64 फाइलें कोलकाता में ही रखी हैं। नेताजी के वंशज व प्रपौत्र अभिजीत रॉय का कहना है कि 1947 से लेकर 1968 तक की गई जासूसी व अन्य चीजों से जुड़ी फाइलें पश्चिम बंगाल सरकार के पास रखी हैं। दरअसल पिछले दिनों नेताजी व उनके परिवार से संबंधित लोगों की 20 साल तक जासूसी कराने के खुलासे के बाद उनसे जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किए जाने की मांग तेजी से उठने लगी है। अभिजीत रॉय ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में जिन दो फाइलों के कारण पूरे देश में सनसनी फैली वह कोलकाता में लॉर्ड सिन्हा रोड स्थित विशेष शाखा के कार्यालय में एक लॉकर में बंद हैं। इसी दफ्तर में एक लॉकर में 62 अन्य फाइलें भी हैं जिन्हें अभी सार्वजनिक नहीं किया गया। सुभाष चन्द्र बोस पर किताब लिखने वाले अनुज धर ने भी इस तथ्य का समर्थन किया है। धर ने कहा कि मुखर्जी आयोग की स्टेटस रिपोर्ट में भी इसका जिक्र किया गया था। गौरतलब है कि पिछले साल फरवरी में पश्चिम बंगाल सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में कहा था कि उसके पास नेताजी से जुड़ी कोई फाइल नहीं है और जो फाइलें थीं सार्वजनिक की जा चुकी हैं। नेताजी के एक और भतीजे चन्द्र कुमार बोस राज्य सरकार  की चुप्पी से हैरान हैं। उन्होंने कहा यह बात मेरी समझ से बाहर है कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाई सूर्य बोस से विदेश में मिलने के लिए अपने व्यस्त कार्यक्रम से 40 मिनट निकालते हैं और उनकी मांग को सुनते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस ज्वलंत मुद्दे पर बयान तक नहीं दे सकी हैं। भाजपा ने पश्चिम बंगाल सरकार से कहा है कि वह राज्य के गृह मंत्रालय में पड़ी नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करे। नेताजी के लापता होने से जुड़ी और केंद्र के पास पड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने पर विचार के लिए एक अंतरमंत्रालयी समिति का गठन करने के बाद भाजपा ने ममता सरकार पर दबाव बनाते हुए यह प्रतिक्रिया दी है। गौरतलब है कि नेताजी के पौत्र चन्द्र कुमार बोस ने दावा किया है कि उनके परिवार के 23 सदस्य मुख्यमंत्री को छह बार पत्र लिखकर इसकी मांग कर चुके हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि कांग्रेस क्यों सुभाष चन्द्र बोस के अतीत के सामने आने से डर रही है। इसकी एक वजह हो सकती है कि कांग्रेस सरकार को पता था कि अगर बोस विमान हादसे में नहीं मारे गए थे तो वह किसी विदेशी जेल में होंगे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पारिवारिक सदस्य चन्द्र बोस ने फाइलों को सार्वजनिक करने पर विचार के लिए केंद्र के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि हमने जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी प्रधानमंत्रियों को फाइलें सार्वजनिक करने के लिए पत्र लिखा लेकिन किसी ने कभी कोई कार्यवाही नहीं की। लेकिन उनके बड़े भाई सूर्य से मिलने के 24 घंटे के अंदर मोदी ने कार्यवाही की जिसे लेकर हम खुश हैं। नेताजी से संबंधित हर जानकारी को सार्वजनिक किया जाए यह देश की मांग है।

Tuesday 26 May 2015

नीतीश कुमार बनाम लालू यादव ः महाविलय में अटका रोड़ा

जनता परिवार के महाविलय की कोशिशों को लालू प्रसाद यादव ने पलीता लगा दिया है। वह नहीं चाहते कि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले राजद और जद (यू) का विलय हो। विलय का मामला पहले भी अधर में लटक जाने के बाद अब जद (यू) और राजद के बीच बिहार विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन पर एक बार फिर पेंच फंस गया है। शुक्रवार को सीटों के बंटवारे पर विवाद टालने के लिए बुलाई गई बैठक में गतिरोध और बढ़ गया है। बैठक में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने न केवल नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर विरोध किया बल्कि मोर्चा बनाकर उसमें नीतीश के कट्टर दुश्मन जीतन राम मांझी को भी शामिल करने की मांग कर डाली। नतीजा यह हुआ कि श्री मुलायम सिंह यादव के आवास पर हुई यह बैठक महज आधे घंटे में ही बिना किसी निर्णय के निपट गई। भाजपा से लड़ने के लिए गठबंधन करने के प्रयास पर पानी फिर गया। खास बात यह भी रही कि विलय के लिए सबसे अधिक प्रयत्न कर रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसमें शामिल नहीं हुए। वह आंख का इलाज करा रहे हैं और डाक्टरों ने उन्हें आराम की सलाह दी है। इस दौरान उपस्थित रहे एक नेता के मुताबिक बैठक शुरू होते ही राजद प्रमुख लालू यादव ने विलय को टालने और बिहार विधानसभा से पहले मोर्चा खड़ा करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने चुनाव से पहले किसी को मुख्यमंत्री के रूप में पेश न करने, मोर्चा में वाम दलों, कांग्रेस के साथ-साथ नीतीश के धुर विरोधी जीतन राम मांझी को भी शामिल करने की मांग कर डाली। इतना ही नहीं, लालू ने जद (यू) के उलट लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर सीट बंटवारे का प्रस्ताव रखा। इसके बाद बैठक महज आधे घंटे में ही बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई। सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार को बैठक में लालू की ओर से रखे जाने वाले प्रस्ताव की जानकारी थी इसीलिए उन्होंने पहले ही इस बैठक से दूरी बना ली। बैठक में मुलायम सिंह का स्टैंड भी रामगोपाल यादव जैसा ही था। मसलन दलों का विलय बिहार विधानसभा चुनाव के बाद होगा। फिलहाल तालमेल के आधार पर विधानसभा चुनाव लड़ा जाए। हालांकि मुलायम चाहते थे कि फिलहाल राजद और जद (यू) का विलय हो जाए और वे एक पार्टी के रूप में बिहार विधानसभा चुनाव लड़े। पर लालू यादव के अड़े रहने से फैसला नहीं हो सका। इससे नीतीश कुमार को करारा झटका लगा है। यदि बिहार में राजद और जद (यू) ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया तो इसका फायदा भाजपा को होगा। हाल ही में एक टीवी चैनल के सर्वे में भी इस बात का खुलासा हुआ था कि यदि बिहार में राजद, जद (यू) और कांग्रेस का गठबंधन नहीं हुआ तो भाजपा को स्पष्ट बहुमत आसानी से मिल जाएगा। बताया जाता है कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लालू नहीं चाहते कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहें। उनकी कोशिश है कि चुनाव के बाद यदि राजद-जद (यू) की साझा सरकार बने तो मुख्यमंत्री उनकी पार्टी का ही नेता हो।

-अनिल नरेन्द्र

आईएस द्वारा पाकिस्तान से एटम बम खरीदने की योजना

सउदी अरब में एक शिया मस्जिद पर जुमे की नमाज के दौरान एक आतंकी फिदायीन हमले ने चौंका दिया है। आम तौर पर सउदी अरब एक सुरक्षित देश माना जाता था जहां कम ही आतंकी हमले होते हैं। ताजा वाकया में सउदी अरब के पूर्वी कातिक प्रांत में शुक्रवार को हुए इस फिदायीन हमले में 21 लोगों की मौत हो गई जबकि 60 से अधिक लोग घायल हो गए। घायलों में कई की हालत गंभीर है। हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने ली है। एक चश्मदीद ने बताया कि अल क्वादिल गांव स्थित इमाम अली मस्जिद में एक फिदायीन हमलावर ने खुद को विस्फोटकों से उड़ा दिया। इसकी वजह से मस्जिद में एक बड़ा धमाका हुआ। घटना के समय करीब 150 लोग मस्जिद में मौजूद थे। सउदी अरब सरकार भी इस्लामिक स्टेट (आईएस) सहित तमाम सुन्नी चरमपंथी संगठनों के इरादों से वाकिफ है। सरकार को पहले से ही आशंका थी कि सउदी अरब में शियाओं पर हमले कर जातीय संघर्ष को बढ़ाने की कोशिश की जा सकती है। सरकार ने बताया कि उसने आईएस से संबंध रखने वाले करीब 65 ताकतवर आतंकियों के सेल का पता लगाया है और उन्हें नाकाम किया है। सउदी अरब में 10 से 15 फीसदी कुल आबादी में शियाओं की हिस्सेदारी है। कातिक प्रांत के दो नखलिस्तान जिलों खाड़ी तट और अल अहसा में अधिकतर शिया आबादी रहती है। आईएस संबंधी एक बहुत चिन्ताजनक खबर आई है। इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने दावा किया है कि वह पाकिस्तान से एटम बम खरीदने के काफी करीब पहुंच गया है और इसका प्रहार वह अमेरिका पर करेगा। आईएस द्वारा बंधक बना लिए गए फोटो पत्रकार जॉन कैटली ने उस संगठन की पत्रिका के लिए लिखे लेख में कहा है कि पिछले साल की तुलना में एटम बम हासिल करने के हालात अभी काफी अनुकूल हैं। कैटली को आईएस ने दो साल पहले बंधक बना लिया था और उसका इस्तेमाल वह अपनी धमकियों को दुनियाभर में प्रचारित करने में करता है। कैटली ने `द परफैक्ट स्टोर्म' नामक एक लेख में लिखा है कि इस्लामिक स्टेट के पास बैंकों में अरबों डॉलर जमा हैं और वह जल्द ही पाकिस्तान के भ्रष्ट अफसरों को पैसा खिलाकर एटम बम हासिल कर लेगा। लेकिन सबसे खतरनाक बात यह है कि इस लेख में कहा गया है कि इस एटम बम को तस्करी के जरिये अमेरिका भेज दिया जाएगा। इराक-सीरिया से शुरू हुआ आईएस आज पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है। इसकी तपिश यूरोप, अमेरिका सहित पश्चिम एशिया के देश भी महसूस कर रहे हैं। ऐसे में पश्चिमी देशों ने अगर कार्रवाई नहीं की तो स्थिति बेकाबू हो जाएगी। आईएस की मंशा इतिहास में कभी इस्लामिक शासकों के अधीन रहे पूरे क्षेत्र को खिलाफत के अंतर्गत लाना है। इसके अलावा यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में भी इस्लामिक सत्ता स्थापित करने की योजना पर आगे बढ़ता यह संगठन पूरे विश्व के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान अपने परमाणु अस्त्राsं की सुरक्षा करेगा और किसी भी सूरत में इन्हें इस्लामिक स्टेट के हाथ न लगने देगा। अमेरिका को भी पाकिस्तान पर दबाव डालना होगा।

Sunday 24 May 2015

क्या मैगी सेहत के लिए वाकई ही हानिकारक है?

बच्चों के फेबरिट मैगी नूडल्स परेशानी में उलझ चुके हैं। बच्चों के ही नहीं बड़ों का भी फेबरिट बन चुका मैगी नूडल्स पहले भी विवादों में आ चुका है। उत्तर प्रदेश खाद्य सुरक्षा और दवा प्रशासन (यूपीएफडीए) ने 10 मार्च 2014 को बाराबंकी के आवास विकास के ईजी-डे मॉल से मैगी के नमूने लिए थे। इन नमूनों की जांच रिपोर्ट 26 मार्च 2014 को आई जिसमें एमएसजी नामक तत्व पाया गया जो कि बच्चों की सेहत के लिए हानिकारक है। यूपीएफडीए के अनुसार रुटीन टेस्ट के दौरान दो दर्जन इंस्टेंट नूडल्स के पैकेटों से बड़ी मात्रा में लेड मिला है। लेड की मौजूदगी 17.2 पीपीएम पाई गई, जबकि लेड की मात्रा 0.01 पीपीएम से लेकर 2.5 पीपीएम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। वैज्ञानिकों को मोनो सोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) भी बड़ी मात्रा में मिला है। इस केमिकल को नूडल्स में स्वाद बढ़ाने के लिए मिलाया जाता है। यूपीएफडीए ने मैगी के लगभग दो लाख पैक बाजार से वापस निकालने के आदेश दिए हैं। बाराबंकी के जिला रसद अधिकारी बीके पांडे ने कहा कि जांच रिपोर्ट के आधार पर ही मैगी को स्वास्थ्य के लिए असुरक्षित व नुकसानदेह घोषित किया गया है। एफएसडीए मुख्यालय ने इस मामले में कोर्ट में मुकदमा दायर करने के लिए गुरुवार को विधिक राय भी ली। मुख्यालय ने इसकी पुष्टि की है। वहीं लखनऊ समेत कई अन्य शहरों से मैगी के ताजा नमूने लिए गए हैं, जिनकी रिपोर्ट आनी बाकी है। वहीं नेस्ले इंडिया (मैगी के निर्माता) का कहना है कि वह इस जांच और निष्कर्षों से सहमत नहीं हैं। स्विस कंपनी नेस्ले की भारतीय शाखा ने सीसा युक्त मैगी नूडल्स के एक बैच को वापस लेने के आदेश को मानने में असमर्थता जताई है। गुरुवार को जारी नेस्ले इंडिया ने एक बयान में कहा कि उसका पुराना स्टाक पहले ही बाजार से साफ हो चुका है। कंपनी यूपीएफडीए के आदेश से सहमत नहीं है। कंपनी का कहना है कि पिछले साल फरवरी के बैच के दो लाख नूडल्स के पैकेट वापस नहीं लिए जा सकते। इनके उपयोग के लिए निर्धारित तारीख पिछले साल नवम्बर में ही बीत चुकी है। इस अवधि से पहले ही कंपनी बचे हुए स्टाक को वितरकों और खुदरा बाजार से वापस ले लेती है। कंपनी का मानना है कि अब तक उस बैच के पैकेट बाजार में बचे ही नहीं हैं। कंपनी ने दलील दी कि उसे हाल में बिके हुए पैकेट वापस लेने का कोई आदेश नहीं मिला है। मैगी नूडल्स बच्चों की सेहत के लिए हानिकारक है या नहीं, यह जानना जरूरी है। वैसे स्विस कंपनी नेस्ले द्वारा अगर इसमें कोई दोष है तो वह जनता को पता चलना चाहिए। कुछ समय पहले सोशल मीडिया में एक वीडियो भी चल रहा था जिसमें वैज्ञानिक ढंग से यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि क्यों मैगी सेहत के लिए नुकसानदेह है? हम तो केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय से आग्रह करेंगे कि वह मैगी की अच्छी तरह जांच करवाएं और देश को बताएं कि यह हानिकारक है या नहीं?
-अनिल नरेन्द्र


गिलानी को पासपोर्ट जारी करने पर सियासत तेज हुई

कट्टरपंथी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी को पासपोर्ट जारी करने के मुद्दे पर बहस तेज हो गई है। अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा की आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने मानवीय आधार पर गिलानी के लिए पासपोर्ट की वकालत करते हुए कहा कि वह खुद केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय से इसके लिए आग्रह करेंगी। वहीं नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि इसे मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है, जबकि उन्हें पहले भी पासपोर्ट दिया गया है। हुर्रियत नेता गिलानी ने सउदी अरब में अपनी बीमार बेटी से मुलाकात करने के लिए पासपोर्ट जारी करने का आवेदन दिया है। कांग्रेस ने कहा कि गिलानी को अपनी बीमार बेटी से मिलने जाने के लिए पासपोर्ट जारी करने के उनके आवेदन पर फैसला लेने के समय उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने श्रीनगर में कहा कि यह एक निर्धारित प्रक्रिया है जिसका किसी भी व्यक्ति को पासपोर्ट जारी करने के दौरान पालन किया जाना चाहिए। भाजपा ने कहा कि गिलानी को देश विरोधी गतिविधियों के लिए माफी मांगनी चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि वह एक भारतीय हैं। अगर वह ऐसा करते हैं तो उन्हें भारतीय पासपोर्ट दिया जाएगा। भाजपा प्रवक्ता खालिद जहांगीर ने कहा कि जब तक आप यह स्वीकार नहीं करते कि आप भारत के नागरिक हैं और भारत के संविधान में आपकी निष्ठा है तब तक आप भारतीय पासपोर्ट के लिए कैसे आवेदन कर सकते हैं? इसके अलावा पीएमओ के राज्यमंत्री जीतेन्द्र सिंह ने कहा है कि अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी देश विरोधी गतिविधियों के लिए माफी मांग कर भारतीय होना स्वीकार करें। इसके बाद ही वह पासपोर्ट के हकदार हैं। उधर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि गिलानी की ओर से पासपोर्ट का अधूरा आवेदन मिला है। इनमें न तो बायोमेट्रिक है और न ही उनका फोटो है। इसके साथ ही इसके लिए जरूरी फीस भी नहीं जमा कराई गई है। ऐसे अधूरे पासपोर्ट के आवेदन पर विचार करना संभव नहीं है। इसके पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी साफ कर दिया था कि सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ही इस पर विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जब भी गृह मंत्रालय के पास यह मामला आएगा हम गुण-दोष के आधार पर मामले की जांच करेंगे। गिलानी अपनी बीमार बेटी को देखने के लिए सउदी अरब जाना चाहते हैं और उन्होंने पासपोर्ट के लिए ऑनलाइन आवेदन किया है। लेकिन वह अपने बायोमेट्रिक डाटा और फोटोग्राफ के लिए अभी तक श्रीनगर स्थित क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय नहीं गए। नियमों के मुताबिक आवेदक को व्यक्तिगत रूप से पासपोर्ट कार्यालय जाकर बायोमेट्रिक ब्यौरा और फोटोग्राफ देना जरूरी है। गिलानी पहले पासपोर्ट प्रक्रिया को तो पूरा करें फिर पासपोर्ट जारी करने पर भी विचार होगा।

Saturday 23 May 2015

राहुल गांधी का नया सियासी रूप

अपने अज्ञातवास से आने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी काफी सक्रिय हो गए हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हम राहुल का नया अवतारी रूप देख रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे और तीखे हमले कर रहे हैं। संसद से लेकर सड़क तक राहुल कड़ी मेहनत कर रहे हैं। ऐसा उन्होंने पहले कभी नहीं किया। कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित करने में राहुल दिन-रात मशक्कत कर रहे हैं। तेलंगाना दौरे पर किसानों से भेंट के  बाद वाडियाल गांव में एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा कि अच्छे दिन सिर्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कुछ कारोबारी मित्रों के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि मोदी के पांच से छह व्यवसायी दोस्त हैं और पूरा देश उन्हीं के लिए चलाया जा रहा है। यह चुनिन्दा लोगों की सरकार है। सूट-बूट और चुनिन्दा उद्योगपतियों की सरकार है। उन्होंने कहा कि एक साल बीत गया। क्या आपने कोई नौकरी पाई जिसका वादा मोदी ने किया था? मैं जहां कहीं भी जाता हूं लोग यही कहते हैं कि उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को वोट देकर गलती की है। सोमवार को अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में राहुल ने मोदी के एक साल के कार्यकाल के लेखे-जोखे पर कहा कि मैं मोदी सरकार को 10 में से जीरो नम्बर देता हूं। मोदी के दो-चार उद्योगपति मित्र हैं जो उन्हें 10 में से 10 नम्बर देते हैं। मोदी सरकार तो सूट-बूट की सरकार है वह किसानों का दर्द क्या समझेगी। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने मोदी सरकार के विदेश दौरों पर फिर सवाल उठाते हुए कहा कि वह पूरी दुनिया में घूम रहे हैं पर उनके पास खुदकुशी करने वाले किसानों के घर जाने का वक्त नहीं है। मेगा फूड पार्प मुद्दे पर राहुल गांधी ने कहा कि यह योजना बहुत सारे लोगों के लिए लाभकारी थी पर मोदी सरकार ने इसे छीन लिया। केंद्र सरकार बदले की राजनीति कर रही है। राहुल ने किसानों से सवाल किया कि अच्छे दिन कहां हैं? क्या आ गए हैं? जिसका जवाब मिलाöनहीं। राहुल चिलचिलाती धूप में धूल-धक्कड़ वाली कच्ची सड़कों पर दो किलोमीटर पैदल चले। अमेठी से लौटने के बाद राहुल छत्तीसगढ़ और केरल जाने वाले हैं। इन दौरों के पीछे राहुल का एजेंडा किसान और मजदूर हितों की लड़ाई लड़ने के साथ पार्टी संगठन की मजबूती भी है। राहुल 26-27 मई को कांग्रेस की अगुवाई करने केरल जाने वाले हैं। केरल में अगले साल मई में विधानसभा चुनाव हेने हैं। माना जा रहा है कि राहुल का मकसद वहां संगठन की मजबूती के साथ गुटबाजी भी सुलझाना है। राहुल की जल्द ताजपोशी की चर्चा है। इससे पहले वह अपनी सियासी जमीन तैयार करना चाहते हैं। राहुल के इस नए अवतार का आम कांग्रेस जन पर अच्छा प्रभाव पड़ रहा है। अब उनके आलोचक भी चुप्पी साधे हुए हैं। धरातल पर आई कांग्रेस को राहुल कितना उठा सकते हैं यह तो वक्त ही बताएगा।


दुनिया की सबसे खूंखार महिला आतंकवादी

पिछले कुछ सालों में विभिन्न आतंकी गुट महिलाओं का ज्यादा प्रयोग करने लगे हैं। यहां तक कि छोटी बच्चियों को भी आत्मघाती बम बनाने से कतराते नहीं। गत दिनों नाइजीरिया के उत्तरी प्रांत योबे में आत्मघाती बम विस्फोट में कम से कम सात लोगों की मौत हो गई और 27 अन्य घायल हो गए और इसे अंजाम दिया एक 10 वर्षीय किशोरी ने। वह एक बस पड़ाव पर पहुंची और शरीर से बंधे बम में विस्फोट कर दिया। नाइजीरिया के बोको हराम आत्मघाती हमलों में अब बच्चों का इस्तेमाल खुलेआम करता है। एक चौंकाने वाली दास्तान एक 13 वर्षीय बच्ची ने सुनाई। बच्ची ने बताया कि मेरे पिता ही मुझे बोको हराम आतंकियों के पास ले गए थे। आतंकियों ने मुझसे पूछा जन्नत देखनी है? मैंने कहा हां। उसके बाद वह मुझे साथ ले गए। मुझे विस्फोटकों से भरी जैकेट पहनने को दी। कहा भीड़ वाली जगह जाकर इसका बटन दबा देना। मैं डर गई, कहा ऐसे तो मैं मर जाऊंगी। उन्होंने कहा जन्नत जाने के लिए मरना ही होता है। मेरे मना करने पर उन्होंने मुझे जान से मारने की धमकी दी। डर से मैंने शरीर से जैकेट बांधने की हामी भर दी। उन्होंने मुझे कानो शहर में भेज दिया। मेरे साथ दो और लड़कियां थीं। उन्होंने कानो टेक्सटाइल मार्केट में खुद को उड़ा दिया। मुझे लगा कि ऐसे तो बहुत निर्दोष मारे जाएंगे। मैंने बटन नहीं दबाया। लेकिन धमाकों में घायल हो गई। मेरे पैर जख्मी हो गए। एक टैक्सी वाले से मैंने अस्पताल पहुंचाने को कहा। वहां से पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। बच्ची ने पुलिस की मौजूदगी में अपनी कहानी सुनाई। ब्रिटेन की मोस्ट वांटेड फीमेल टेरेरिस्ट ल्यूकवेट उर्प वाइट विंडो को 200 देशों की पुलिस ढूंढ रही है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वह सोमालिया और केन्या में अब तक 400 लोगों को मौत के घाट उतार चुकी है। आतंकी हमलों से लेकर आत्मघाती हमलों और कार बम धमाकों के जरिये यह लोग मारे गए हैं। 32 साल की समंता चार बच्चों की मां है। उसके पिता नार्दर्न आयरलैंड में सैनिक रहे थे। उसका पति जमैन लिंडसे था जो 2005 के लंदन हमलों में शामिल था और आत्मघाती हमलावरों में से एक था। इन हमलों में 52 लोग मारे गए थे। इसी के बाद वह ब्रिटेन से फरार हो गई थी और चार साल तक छिपती रही। सोमालिया के वरिष्ठ एंटी टेरर अफसर के मुताबिक समंता अब अल-शबाब के नेता अहमद उमर का दाहिना हाथ बन चुकी है। अल-शबाब में प्रमुख पद पर आने के बाद से वह 400 लोगों की जान ले चुकी है। इंटरपोल उसके नाम पर रेड कॉर्नर वारंट जारी कर चुकी है और दुनिया के 200 देशों की पुलिस उसका पीछा कर रही है। समंता लंदन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट है। पिछले महीने पेन्या यूनिवर्सिटी में हुए हमले के पीछे भी उसी का हाथ माना जा रहा है। इस हमले में 148 लोग मारे गए थे। माना जाता है कि उसने 15 साल की उम्र के कई लड़कों का ब्रेन वॉश कर और उन्हें हेरोइन के नशे में धुत्त बनाकर आत्मघाती हमलों में इस्तेमाल किया है।

-अनिल नरेन्द्र

जापान में दौड़ी दुनिया की सबसे तेज ट्रेन

दुनिया की सबसे तेज ट्रेनों के लिए मशहूर जापान ने एक बार फिर रफ्तार के मामले में नया रिकार्ड बनाया है। उसकी मैग्लेव ट्रेन ने 603 किलोमीटर प्रति घंटे का वैश्विक कीर्तिमान बनाया है यानि अगर यह ट्रेन भारत में चले तो दिल्ली से मुंबई की करीब 1400 किलोमीटर की दूरी तकरीबन ढाई घंटे में तय कर ले। जबकि सामान्य ट्रेन से यह सफर तय करने में 24 घंटे का वक्त लगता है। टोक्यो के दक्षिण में माउंट फूजी के पास विद्युत चुंबक की मदद से चलने वाली मैग्लेव ट्रेन की रफ्तार का हाल ही में परीक्षण किया गया। इस ट्रेन को टोक्यो और नगोया के बीच चलाने की योजना है। उल्लेखनीय है कि जापान अपनी तेज गति से दौड़ने वाली ऐसी मैग्लेव और बुलैट ट्रेनों की इस तकनीक को दुनियाभर को बेचने की योजना पर काम भी कर रहा है। सेंट्रल जापान रेलवे के मुताबिक अत्याधुनिक प्रणाली से लैस सात डिब्बों वाली इस मैग्नेटिक लेविटेशन ट्रेन ने 603 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार हासिल कर अपने पहले के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। करीब 11 सैकेंड तक ट्रेन 600 किलोमीटर से ज्यादा की रफ्तार से ट्रैक पर दौड़ती रही। हालांकि एक सप्ताह पहले ही इस ट्रेन ने 590 किलोमीटर की रफ्तार हासिल की थी। 2003 में भी जापान की एक ट्रेन ने 581 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार हासिल कर दुनिया में सनसनी मचा दी थी। जब ट्रेन की रफ्तार का परीक्षण हो रहा था, उस वक्त वहां 200 से ज्यादा लोग जमा थे। जैसे ही ट्रेन ने 600 से ज्यादा रफ्तार दर्ज की लोग खुशी के मारे उछल पड़े। बिजली से आवेशित मैग्लेव ट्रेन ट्रैक से 10 सेंटीमीटर (चार इंच) ऊपर दौड़ती है। मैग्लेव ट्रेन पूरी तरह इलैक्ट्रोमैग्नेटिक सस्पेंशन पर काम करती है। इसमें इंजन की जगह एक नियंत्रण प्रणाली होती है। यह चुंबकीय ट्रैक और उसकी चुंबकीय दीवारों के सहारे संचालित होती है। इससे ट्रेन के डिब्बे हवा में चार इंच तक ऊपर उठ जाते हैं। घर्षण भी नहीं होता। भारत में सबसे तेज ट्रेन नई दिल्ली-भोपाल शताब्दी है जो 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। नई दिल्ली-हावड़ा राजधानी 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। नई दिल्ली-कानपुर शताब्दी भी 140 किलोमीटर की रफ्तार से चलती है। जापान को इस शानदार सफलता पर बधाई। हम उम्मीद करते हैं कि भारत में भी निकट भविष्य में ऐसी ट्रेनें चल पाएंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की चीन यात्रा में एक तेज रफ्तार की ट्रेन पर समझौता हुआ है। पर ऐसी ट्रेनों को भारत आने में समय लगेगा।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली में पैदा होता संवैधानिक संकट

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच के टकराव के कारण संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा होती दिख रही है। गेंद अब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पाले में है। यह विवाद छुट्टी पर गए मुख्य सचिव की जगह उपराज्यपाल द्वारा ऊर्जा सचिव को कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर देने से आरंभ हुआ। इस नियुक्ति का केजरीवाल सरकार ने न केवल विरोध किया बल्कि उसने प्रमुख सचिव के कार्यालय पर ताला भी जड़ दिया। बची-खुची कसर जंग ने सरकार द्वारा तैनात किए गए प्रमुख सचिव की नियुक्ति रद्द करके कर दी। दिल्ली सरकार के कामकाज को लेकर मंगलवार दिल्ली हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की। सरकार और उपराज्यपाल के बीच क्षेत्राधिकार को लेकर मची खींचतान पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि जनता को एक बेहतर सरकार की उम्मीद थी लेकिन दिल्ली में यह क्या हो रहा है। सरकार कामकाज के बजाय अधिकारी का दफ्तर सील करने में लगी है। चीफ जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस राजीव सहाय एंडलो की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह मौखिक टिप्पणी की। यह बातें इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सीएम केजरीवाल के निर्देश पर सोमवार को प्रधान सचिव (सेवाएं) आनिंदो मजूमदार के दफ्तर को सील कर दिया गया था। इस बीच दिल्ली सरकार में काम कर रहे 20 वरिष्ठ आईएएस अधिकारी केजरीवाल सरकार के साथ काम नहीं करना चाहते हैं। उन्होंने केंद्र से अपने तबादले को कहा है। दिल्ली के सीएम और उपराज्यपाल दोनों राष्ट्रपति से मिलकर अपनी-अपनी बातें रख चुके हैं। लेकिन अभी तक इस समस्या का हल नहीं निकल सका है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस पर केंद्र सरकार से सलाह मांगी है। राष्ट्रपति के मंतव्य को देखते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले पर अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से बात की है और उनसे दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रही रस्साकशी पर संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट करने को कहा है। अटार्नी जनरल ने जो राय राजनाथ सिंह को दी है उसकी जानकारी राष्ट्रपति को दी जाएगी। प्रदेश के दो शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्तियों के बीच के टकराव से उत्पन्न दिल्ली की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। वास्तव में तीन महीने पहले विधानसभा में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिलने के बाद से ही राज्य सरकार और उपराज्यपाल के रिश्ते सहज नहीं रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है और यहां के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के अधिकार ठीक से परिभाषित नहीं हैं। इसे  लेकर संविधान विशेषज्ञ तक में मतभेद हैं। मसलन लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप जहां संविधान के अनुच्छेद 239बी का हवाला देकर कहते हैं कि उपराज्यपाल चाहें तो राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं, वहीं राजीव धवन जैसे वरिष्ठ वकील के मुताबिक केजरीवाल को अपनी पसंद के नौकरशाह की नियुक्ति का अधिकार है। जाहिर है यह मामला दो व्यक्तियों के टकराव का नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजधानी की व्यवस्था से जुड़ा हुआ है। हालांकि संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में नजीब जंग का पलड़ा काफी भारी है क्योंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया गया। ऐसे में यहां प्रशासक उपराज्यपाल ही हैं, जिसका फैसला अंतिम होता है। हमें लगता है कि विवादों को उत्पन्न करने में माहिर केजरीवाल सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं ताकि दिल्ली में संवैधानिक संकट पैदा हो। 49 दिन की सरकार में भी उन्होंने ऐसा किया था। हमें लगता है कि केजरीवाल अपने आपको अन्य मुख्यमंत्री, यूपी के अखिलेश, हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर इत्यादि के बराबर समझते हैं। वह यह भूल जाते हैं कि इन राज्यों में स्थिति अलग है, दिल्ली की स्थिति अलग है। चूंकि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है, इसलिए यहां मुख्यमंत्री के अधिकार भी सीमित हैं। स्थिति और न बिगड़े इसके लिए जरूरी है कि मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के अधिकारों को ठीक से परिभाषित किया जाए ताकि दोनों एक-दूसरे के कार्यक्षेत्र का उल्लंघन न करें।

Thursday 21 May 2015

42 साल बाद अरुणा शानबाग को सुकून की नींद

चालीस वर्ष तक कोमा में रहने के बाद दुनिया छोड़ देने वाली मुंबई के केईएम अस्पताल की पूर्व नर्स अरुणा शानबाग को ऐसी यातना झेलनी पड़ी जिसने हमारी सामूहिक चेतना को झकझोर कर रख दिया। मौत तो अरुणा शानबाग की 27 नवम्बर 1973 में हो गई थी जिस रात दुराचार के बाद वह कोमा में चली गई थी। अब तो कानूनी मौत हुई है। 68वें जन्मदिन से 13 दिन पहले 42 साल के असीम दर्द के बाद उन्हें सुकून की नींद आई। सोमवार सुबह अरुणा की मौत के बाद यह शब्द थे उनकी दोस्त पिंकी वीराणी के। अरुणा केईएम अस्पताल में नर्स थी। यहीं के वार्ड ब्वॉय ने उनसे दुष्कर्म की कोशिश की थी। अरुणा का गला कुत्ता बांधने वाली चेन से दबा दिया। इससे अरुणा के दिमाग में खून की सप्लाई रुक गई और वो कोमा में चली गईं। फिर वह कभी नहीं उठीं, कोमा से बाहर नहीं निकल सकी। अरुणा के परिवार ने भी मुंह मोड़ लिया पर मृत्यु के बाद अरुणा के दो भांजे अस्पताल आए। लेकिन नर्सों ने कहा कि अरुणा हमारी बेटी थी, अंतिम संस्कार हम ही करेंगे। यह परिवार आज कहां से आ गया? दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद न केवल बलात्कार की परिभाषा कड़ी की गई है बल्कि ऐसे मामलों में सजा के प्रावधान भी और सख्त किए गए हैं। मगर अरुणा के साथ यौन हिंसा करने वाले सोहन लाल पर जानलेवा हमला और डकैती के मामले तो चले और उसे सजा भी हुई, लेकिन उस पर बलात्कार या यौन हिंसा का मामला नहीं चलाया गया। शायद उस वक्त की सामाजिक संरचना और दबाव में अस्पताल प्रबंधन को यह उचित लगा था। मगर उस हादसे ने अरुणा के अस्तित्व को खत्म ही कर दिया और यदि केईएम अस्पताल के उनके सहयोगी और नर्सें उनकी सेवा नहीं करतीं तो वह इतने लम्बे समय तक जीवित नहीं रह पाती। अरुणा शानबाग 42 सालों से किंग एडवर्ड्स मैमोरियल (केईएम) अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर वार्ड नम्बर चार से जुड़े कमरे में भर्ती थीं। यह कमरा ही उनका घर था और अस्पताल का स्टाफ परिवार। इस लम्बे वक्त के दौरान वह कभी नहीं बोलीं, लेकिन उनकी खामोशी देश में इच्छा मृत्यु पर बहस और फिर कानून बनने में सबसे सशक्त हथियार बनी। पत्रकार पिंकी वीराणी ने अरुणा को इच्छा मृत्यु देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। अरुणा के साथ दर्दनाक हादसे के बाद करीब 38 सालों बाद 24 जनवरी 2011 को कोर्ट ने अर्जी मंजूर करते हुए तीन डाक्टरों का पैनल गठित किया था। बाद में सात मार्च 2011 को यह याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने कहा कि पूरी तरह निक्रिय अवस्था में पड़े मरीजों के जीवनदायी उपकरणों को हटाकर पैसिव इच्छा मृत्यु दी जा सकती है। इस प्रक्रिया को तभी वैध माना जाएगा जब हाई कोर्ट की निगरानी में हो। अरुणा भारत में इच्छा मृत्यु के अधिकार से जुड़ी बहस का प्रतीक बन गईं। अरुणा की तरह पूर्व मंत्री और कांग्रेसी नेता प्रियरंजन दासमुंशी और भाजपा के पूर्व वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह भी कोमा में हैं। मुंशी अक्तूबर 2008 में हार्ट अटैक के  बाद से कोमा में हैं। 76 वर्षीय जसवंत सिंह को आठ अगस्त 2014 को सिर में चोट लगी थी और वह अब कोमा में हैं।
-अनिल नरेन्द्र



दिल्ली में करारी हार के बाद बिहार में अग्निपरीक्षा

मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने घोषणा की है कि बिहार विधानसभा चुनाव सितम्बर-अक्तूबर में कराए जाएंगे। उन्होंने बताया कि राज्य में चुनाव प्रक्रिया के दौरान बाहुबल और धनबल पर अंकुश लगाने के लिए व्यापक पैमाने पर केंद्रीय बल तैनात किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा का कार्यकाल 23 नवम्बर को खत्म हो रहा है। वर्ष 2015 के इस दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा और जनता परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। साल की शुरुआत में दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार झेल चुकी भाजपा बिहार में हार का चेहरा शायद नहीं देखना चाहेगी। राज्य में हर हाल में जीत हासिल करने के लिए पार्टी अभी से जोड़-तोड़ व जीतोड़ कोशिशों में जुटी है। वहीं सत्ता बचाए रखने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता परिवार को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं। वह राजद, जद (यू), कांग्रेस और वामदलों के महागठबंधन को तैयार करने में जुटे हुए हैं। हालांकि फिलहाल तो जनता परिवार के छह दलों के विलय की जोर-शोर से शुरू हुई मुहिम अचानक खटाई में पड़ती दिख रही है। विलय की घोषणा होने और मुलायम सिंह यादव को परिवार का नया मुखिया तय करने के बावजूद सपा बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व जद (यू) और राजद के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर उत्पन्न विवाद में हस्तक्षेप के लिए तैयार नहीं है। हालांकि दोनों ही दल चाहते हैं कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह बीच-बचाव कर सीट बंटवारे का कोई  फार्मूला तय करें। दूसरी ओर बिहार में राजद-जद (यू) के गठजोड़ की संभावनाओं पर संशय के बादल गहराते जा रहे हैं। अब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार की सरकार पर निशाना साध रहे हैं। लालू तो इस बात की फिक्र भी नहीं कर रहे कि नीतीश सरकार पर उनके इस हमले का असर राज्य विधानसभा चुनावों से पहले होने वाले दोनों पार्टियों के गठबंधन पर पड़ेगा। लालू ने जद (यू) सरकार पर ऐसा हमला बोला है जैसे वह विपक्ष में हों। भूकंप और तेज आंधी से प्रभावित परिवारों तक राहत और मुआवजे की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नीतीश कुमार सरकार की आलोचना कर रहे हैं। लालू का अंदाज अचानक बदल गया है और वह नीतीश सरकार पर आक्रामक दिख रहे हैं। हो सकता है कि लालू के हमले के पीछे कारण यह हो कि वह विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग डील में ज्यादा सीटों के लिए दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हों। पेट्रोलियम पदार्थों में मूल्य वृद्धि को लेकर बिहार के दो दिन दौरे पर गए वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव से ही नरेंद्र मोदी का काउंट डाउन शुरू होगा। उन्होंने तेल की कीमतों में वृद्धि के विरोध में एयरपोर्ट से स्टेट  गेस्ट हाउस तक जाने के लिए कार की बजाय रिक्शे पर सफर किया। कहा कि दिल्ली की तरह बिहार में भी भाजपा को शिकस्त मिलेगी और यहां से देशभर में संदेश जाएगा। बिहार का विधानसभा चुनाव भाजपा के सदस्यता अभियान की सफलता का पहला चुनावी परीक्षण होगा। पार्टी ने दावा किया है कि बिहार में उसके सदस्यों की संख्या 75 लाख से ज्यादा है। भाजपा और मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर है।

Wednesday 20 May 2015

मुर्सी को मौत की सजा ः विरोध में तीन जजों की हत्या

मिस्र के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी और मुस्लिम ब्रदरहुड के 105 सदस्यों को शनिवार को काहिरा की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई है। इन्हें साल 2011 में देश में भड़के विद्रोह के दौरान जेल तोड़ने की घटनाओं के आरोप में यह सजा सुनाई गई। काहिरा की पुलिस अकादमी अदालत में सजा सुनाए जाने के वक्त 63 वर्षीय मुर्सी पिंजरानुमा कठघरे में मौजूद थे। उन्होंने मुट्ठियां तानकर फैसले के खिलाफ विरोध जताया। मिस्र के कानून के तहत मौत की सजा जैसे मामलों पर देश के शीर्ष धार्मिक नेता मुफ्ती से राय ली जाती है। मुर्सी व अन्य को सुनाई गई सजा पर मुफ्ती की राय ली जाएगी। इससे पहले सजा लागू नहीं होगी। हालांकि मुफ्ती की राय बाध्यकारी नहीं है। अदालत इस मामले में अंतिम निर्णय दो जून को सुनाएगी। मुर्सी और 128 अन्य पर आरोप था कि उन्होंने जनवरी 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ विद्रोह के दौरान जेल तोड़ने की साजिश रची थी। इस दौरान 20 हजार से अधिक कैदी जेल से भाग गए थे। इन आरोपों के तहत मौत की सजा सुनने वालों में मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख मोहम्मद बादी भी शामिल हैं। इन सभी पर मिस्र को अस्थिर करने के लिए फिलीस्तीन के इस्लामी चरमपंथी संगठन हमास, ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड और लेबनान के हिज्बुल्ला जैसी विदेशी ताकतों के साथ साठगांठ करने के आरोप हैं। इस मामले में मुर्सी भी आरोपी हैं। यदि अदालत दो जून को अपने प्रारंभिक फैसले पर मुहर लगा देती है या फिर मुर्सी की प्रस्तावित अपील खारिज कर देती है तो मिस्र के इतिहास में मौत की सजा पाने वाले मुर्सी पहले राष्ट्रपति होंगे। मुर्सी को मौत की सजा सुनाए जाने के कुछ ही घंटों बाद देश के अशांत प्रांत शिनाई में तीन जजों की शनिवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह हत्या शिनाई अल अरशि में हुई। हमले में तीन अन्य जज बुरी तरह जख्मी भी हो गए। अधिकारियों ने बताया कि यह हमला इस्लामिक स्टेट (आईएस) के समर्थन वाले आतंकियों ने किया। उन्होंने एक बस को निशाना बनाया, जिस पर जज सवार थे। हमले में बस ड्राइवर भी मारा गया। मुर्सी को सही ठहराने वाले बहुत से लोगों में शिनाई प्रांत के विद्रोही भी शामिल हैं। इसलिए इस हमले के तार इस सजा से जोड़ कर देखे जा रहे हैं। इस घटना के कुछ घंटे पहले ही देश के  पहले निर्वाचित राष्ट्रपति रहे मोहम्मद मुर्सी को अदालत ने मौत की सजा सुनाई। जून 2012 में मुर्सी ने राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली थी। वह पहले राष्ट्रपति थे जिनका लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचन हुआ था। जुलाई 2013 में विरोध प्रदर्शनों के बाद सेना ने अपदस्थ कर दिया। उन पर मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थन का भी आरोप लगा था। मिस्र के अंदर सियासी उठापटक चरम पर है। अगर इतनी बड़ी संख्या में आरोपियों को मौत की सजा पर क्रियान्वयन होता है तो यह उस देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नई बात होगी।
-अनिल नरेन्द्र



महंगाई के एक और तगड़े झटके के लिए तैयार रहें

दाल-चावल, खाना बनाने का तेल और फल-सब्जियों में महंगाई की मार झेल रहे लोगों को अब महंगाई का एक और झटका खाने के लिए तैयार रहना होगा। बीते 15 दिनों में दूसरी बार पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से महंगाई और  बढ़ेगी। शुक्रवार को पेट्रोल के दाम में 3.13 रुपए और डीजल के दाम में 2.71 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी की गई। इससे पहले एक मई को पेट्रोल की कीमतों में 3.96 तथा डीजल के दाम में 2.37 रुपए की बढ़ोत्तरी हुई थी। नई कीमतें शुक्रवार आधी रात से प्रभावी हो गईं। बढ़े  दामों के  बाद वर्तमान में 63.16 रुपए प्रति लीटर के मुकाबले दिल्ली में पेट्रोल की कीमतें 66.29 रुपए प्रति लीटर हो गई है। वहीं 49.57 के मुकाबले दिल्ली में अब डीजल 52.28 रुपए प्रति लीटर हो गया है। इस वजह से महंगाई और बढ़ेगी। ट्रकों के किराये सात-आठ फीसदी बढ़ने का अनुमान किया जा रहा है। तेल कंपनियों ने बीते 30 अप्रैल को पेट्रोल में प्रति लीटर 3.96 रुपए जबकि डीजल में प्रति लीटर 2.37 रुपए की बढ़ोत्तरी की थी। शुक्रवार को कीमत में 3.13 रुपए और डीजल में 2.71 रुपए की  बढ़ोत्तरी की है। दोनों को मिला दें तो महज 16 दिनों में पेट्रोल 7.09 रुपए प्रति लीटर जबकि डीजल 5.08 रुपए प्रति लीटर महंगा हो चुका है। उधर रुपए की कमजोरी ने अब देश के सामने नई चुनौती पैदा कर दी है। डॉलर के मुकाबले रुपए का भाव 20 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है। अब एक डॉलर की कीमत 64 रुपए तक हो गई है। रुपए की गिरावट से कच्चे तेल का आयात महंगा होगा। अगर रुपए में गिरावट जारी रही तो आम आदमी, विशेष तौर पर मिडिल क्लास का पूरा बजट बिगड़ जाएगा। मौजूदा समय में भारत फर्टिलाइजर, आयरन और खाद्य तेल और दालों का काफी इम्पोर्ट करता है। दालों का इम्पोर्ट कुल डिमांड का 40 फीसदी तक होता है। खाद्य तेलों का आयात कुल डिमांड का 60-70 फीसदी तक जाता है। रुपए में गिरावट से इन सबका इम्पोर्ट प्राइज बढ़ेगा। इससे किसान और आम आदमी पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा। इंडस्ट्री चैम्बर एसोचैम के डायरेक्टर जनरल डीएस रावत का कहना है कि फर्टिलाइजर के दाम बढ़ने से किसानों की खेती महंगी होगी। इसका असर कृषि सेक्टर और खाद्य वस्तुओं पर पड़ेगा। सरकार एक सीमा तक ही सब्सिडी दे सकती है। डीजल महंगे होने से यदि ट्रक ऑपरेटरों ने भाड़े में बढ़ोत्तरी कर दी तो आश्चर्य नहीं होगा। सभी चीजों के दाम बढ़ने की संभावना इसलिए व्यक्त की जा रही है क्योंकि डीजल का उपयोग किसानों से लेकर ट्रक ऑपरेटर, फैक्टरी चलाने वाले और रेलवे भी करती है। रेलवे इस समय करीब 270 करोड़ लीटर डीजल का उपयोग करता है। उस पर भी बोझ बढ़ा है तो जाहिर है कि वह अपने वस्तु एवं सेवाओं का मूल भाड़ा बढ़ाएगा। सरकार दावा करती है कि मुद्रास्फीति निचले स्तर पर है पर इससे रोजमर्रा की वस्तुओं के मार्केट में बिकने के रेट में कोई खास कमी नहीं आई है। आज गरीब आदमी, मजदूर यहां तक कि मिडिल क्लास भी महंगाई से परेशान है और सरकार को इसकी कोई चिन्ता तक नहीं है।

Tuesday 19 May 2015

तानाशाह किम जोंग ने अपने रक्षामंत्री को तोप से उड़वाया

दुनिया में सिरफिरे लोगों की कमी नहीं है। इनमें से एक हैं उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग। किम जोंग तानाशाह शासक हैं। उनकी पागल आदतों का समय-समय पर पता चलता है। ताजा घटना उत्तर कोरिया के 66 वर्षीय रक्षामंत्री ह्योन योंग चोल की है। दक्षिण कोरिया की खुफिया एजेंसी के अनुसार ह्योन योंग चोल के झपकी लेने से तानाशाह शासक किम जोंग इतने नाराज हुए कि उन्हें सरेआम तोप से उड़ा दिया। यह जानकारी दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी (एनआईएस) ने बुधवार को अपने सांसदों के साथ हुई बैठक में दी। एजेंसी के अनुसार 66 वर्षीय ह्योन को सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में 30 अप्रैल को एक सैन्य प्रशिक्षण रेंज में विमान में ही तोप से उड़ा दिया गया। एनआईएस के अनुसार ह्योन को मौत की सजा उनकी गिरफ्तारी के तीन दिन बाद दी गई थी। ह्योन पर कोई मुकदमा नहीं चलाया गया, इससे उन्हें सफाई में कुछ भी कहने का भी मौका नहीं मिला। एजेंसी के अनुसार ह्योन को सजा किम के एक कार्यक्रम में झपकी लेने और पीछे बैठक कर एक कनिष्ठ अधिकारी से बात करने की वजह से दी गई है। किम ने इसे अपने आदेशों की अवहेलना माना। यह भी कहा जा रहा है कि ह्योन किम जोंग उनके आदर्शों की लगातार अवहेलना करते आ रहे थे। कुछ समय पहले रूस में एक सम्मेलन के दौरान भी उन्होंने किम के खिलाफ टिप्पणी की थी। इससे भी किम उनसे काफी नाराज थे। हालांकि अभी तक सजा की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है। लेकिन माना जा रहा है कि यदि यह खबर गलत होती तो उत्तर कोरिया सरकार की ओर से अब तक इसका खंडन आ चुका होता। तानाशाह शासक किम जोंग इतने सिरफिरे हैं कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को भी नहीं छोड़ा। दिसम्बर 2013 में किम ने अपने फूफा जंग सोंग कीक को भूखे कुत्तों के पिंजरे में डाल कर दी थी मौत की सजा। मई 2014 में अपनी बुआ किम क्योंग हई को भी जहर देकर मौत के घाट उतारा। इसका खुलासा हाल में हुआ था। 2011 में अपने पिता किम जोंग इल के निधन के बाद सत्ता संभालने के बाद से किम जोंग अपने राजनीतिक विरोधियों या सत्ता को चुनौती देने वाले करीब 70 नेताओं और अधिकारियों को मौत के घाट उतार चुके हैं। ऐसे 15 लोगों को तो इसी साल सजा दी गई है। तोप से उड़ा दिए गए ह्योन 2012 में उत्तर कोरिया के रक्षामंत्री बने थे। 2010 से वह जनरल के पद पर थे। दिसम्बर 2011 में दिवंगत नेता किम जोंग इल के अंतिम संस्कार के लिए बनी समिति के लिए भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी थीं। उत्तर कोरिया आज दुनिया के सबसे असुरक्षित देशों की सूची में शुमार है। परमाणु हथियारों से लैस उत्तर कोरिया के इस सिरफिरे तानाशाह किम जोंग की वजह से अमेरिका सहित पश्चिमी देश इस देश से चिंतित रहते हैं। यह कब, क्या कर दे कोई कुछ नहीं कह सकता। आए दिन उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया व अमेरिका को धमकाता रहता है। परमाणु बमों से लैस उत्तर कोरिया आज दुनिया के सबसे असुरक्षित देशों में से एक बन गया है।
-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल का सर्पुलर उन्हीं की भद पिटवाने का सबब बऩा

सुप्रीम कोर्ट का गुरुवार को आया आदेश दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए झटका तो है ही साथ-साथ सबक भी है। अदालत ने दिल्ली सरकार के विवादास्पद आदेश पर प्रतिबंध लगा दिया जिसमें सरकारी अधिकारियों से कहा गया है कि मीडिया में जिन खबरों से सरकार की मानहानि होती है उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाए। दिल्ली सरकार ने गत छह मई को यह सर्पुलर जारी किया था। इसमें कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति दिल्ली के मुख्यमंत्री, मंत्री या दिल्ली सरकार के अधिकारियों की छवि खराब करने वाली सामग्री छापता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का आपराधिक मुकदमा किया जा सकता है। सर्पुलर पर रोक लगाने के साथ ही अदालत ने दिल्ली सरकार से डेढ़ महीने के भीतर यह बताने को भी कहा है कि इस तरह का सर्पुलर क्यों जारी किया गया। अदालत का यह आदेश वकील अमित सिब्बल की याचिका पर आया। अमित सिब्बल की ओर से बृहस्पतिवार को पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि केजरीवाल दोहरा मापदंड अपना रहे हैं। एक तरफ तो उन्होंने मानहानि के कानून आईपीसी की धारा 499 और 500 की वैधानिकता को चुनौती देकर शीर्ष अदालत से राहत ले रखी है। दूसरी ओर इसी कानून के तहत मीडिया के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने के लिए सर्पुलर जारी किया है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने पूछा कि दोनों बातें कैसे हो सकती हैं? अमित सिब्बल ने केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली की निचली अदालत में मानहानि का मुकदमा दाखिल कर रखा है। जो सिब्बल के बारे में केजरीवाल की ओर से दिए गए बयान पर दाखिल किया गया है। केजरीवाल ने मानहानि के कानून धारा 499 और 500 की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। कोर्ट ने केजरीवाल की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए उनके खिलाफ निचली अदालत में लंबित मानहानि के मुकदमे पर रोक लगा दी थी। अदालत के रुख से साफ है कि मीडिया को निशाने पर लेने और उसे डराने के दिल्ली सरकार के रवैये को उसने काफी गंभीरता से लिया है। लोकतंत्र में ऐसी कार्यवाही के लिए कोई गुंजाइश नहीं हो सकती। यह हैरत की बात है कि ऐसा निहायत अलोकतांत्रिक कदम उस पार्टी की सरकार ने उठाया जो पारदर्शिता और जवाबदेही का दम भरती है। क्या वह अपने उसूलों से भटक गई है? केजरीवाल कुछ समय से मीडिया के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं। हाल ही में  बगैर कोई ठोस सबूत पेश किए उन्होंने कहा था कि मीडिया ने उनकी पार्टी को खत्म करने की सुपारी ले रखी है। जैसे यह आरोप काफी न हो, उन्होंने यह भी कहा कि वह मीडिया के खिलाफ पब्लिक ट्रायल चलाएंगे यानि उसे जनता के कठघरे में घसीटेंगे। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकारों और राजनीतिक दलों की आलोचना आम बात है। आलोचना के अधिकार बिना लोकतंत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आलोचना के प्रति जैसी असहिष्णुता का भाव केजरीवाल ने दिखाया है उसे देखते हुए ऐसे लोगों की कमी नहीं जो यह सोचकर भारी राहत महसूस करते होंगे कि शुक्र है कि केजरीवाल के हाथ में पुलिस का नियंत्रण नहीं है। केजरीवाल की यह शिकायत कुछ हद तक सच हो सकती है कि मीडिया का एक तबका उनके प्रति नकारात्मक रुख रखता है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि करदाताओं की गाढ़ी कमाई उनकी प्रतिष्ठा बचाने पर खर्च की जाए। सर्पुलर निकालने से बेहतर यह होता कि मीडिया के जिस हिस्से से उन्हें शिकायत थी अपने पार्टी जनों, समर्थकों और आम जनता से उसका बहिष्कार करने की अपील जारी करते। इसके बजाय यह आरोप लगाना कि पूरा मीडिया ही उन्हें और उनकी पार्टी को खत्म करने की सुपारी ले चुका है, बेहद आपत्तिजनक, बचकाना और सतही आचरण है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर सूचना या विचार को नियंत्रित करने की कोशिश की गई तो उसके नतीजे लोकतंत्र के लिए खराब होते हैं। मीडिया की लगाम तो हर मिनट जनता के हाथ में रहती है। यहां राजनीति की तरह उसके सामने मजबूरी नहीं होती कि गलत चुनाव का अहसास होने के बावजूद किसी पार्टी की सरकार को पांच साल तक झेलना ही पड़े। बहरहाल जिस प्रतिष्ठा को बचाने के फेर में केजरीवाल ने यह सर्पुलर निकाला, वही उनकी भद पिटवाने का सबब बन रहा है। क्या अब भी वह चतेंगे?

Sunday 17 May 2015

पाक सेना और आईएसआई की मदद से मारा लादेन को

दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन के बारे में एक बड़ा खुलासा हुआ है। इस खुलासे में कहा गया है कि अमेरिका को लादेन के ठिकाने की जानकारी पाकिस्तान के एक खुफिया अधिकारी ने दी थी। यही नहीं, लादेन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संरक्षण में एबटाबाद में एक कैदी जैसा जीवन बिता रहा था। इसी जानकारी के आधार पर अमेरिकी नेवी सील ने 2 मई 2011 में आतंकी सरगना को मौत के घाट उतार दिया था। पाकिस्तान के ही एक गुप्तचर ने 2.5 करोड़ डॉलर के इनाम के लालच में अमेरिका को लादेन का ठिकाना बताया था। द डॉन ने अमेरिकी खोजी पत्रकार और लेखक सेमूर एम. हर्ष के हवाले से यह खुलासा किया है। उसने कहा कि अगस्त 2010 में पाकिस्तान के एक पूर्व वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास में सीआईए के तत्कालीन स्टेशन मुखिया जोनाथन बैंक से सम्पर्प किया था। उसने सीआईए को ओसामा का पता बताने का प्रस्ताव दिया और इसके एवज में वह इनाम मांगा जो कि वाशिंगटन ने 2001 में उसके सिर पर रखा था। हर्ष ने कहा कि खुफिया अधिकारी सेना का सदस्य था। वह अब सीआईए का सलाहकार है और वाशिंगटन में रहता है। मैं उसके बारे में इससे ज्यादा कुछ नहीं बता सकता। हर्ष ने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान को अभियान के लिए राजी किया और उसे किल ओसामा योजना के बारे में  बताया। हर्ष ने दावा किया कि ओबामा प्रशासन ने ओसामा को मारने के अभियान के बारे में जो कुछ भी बताया वह काल्पनिक था और असल कहानी पूरी तरह अलग थी। हर्ष के अनुसार सबसे बड़ा झूठ यह बोला गया था कि पाकिस्तानी सेना अध्यक्ष और आईएसआई चीफ को इस अभियान की कोई जानकारी नहीं थी। हर्ष के अनुसार पाकिस्तान सेना और आईएसआई ने ओसामा को कैद कर रखा था और अमेरिकी सील कमांडो के हवाले कर दिया था। अमेरिका ने इस्लामिक रीतियों के साथ ओसामा बिन लादेन के शव को समुद्र में नहीं दफनाया बल्कि राइफल की गोली से शव के टुकड़े-टुकड़े किए और कुछ हिस्से हिन्दुकुश पर्वत पर फेंके। पुलितजर पुरस्कार विजेता सेमूर हर्ष ने दावा किया कि लादेन को उचित इस्लामिक तरीके से दफनाने की अमेरिकी सरकार की बात गलत है। अमेरिकी विमान वाहक पोत यूएसएस कार्ल विनसन से उसका शव ले जाकर समुद्र में नहीं फेंका गया। राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा नेवी सील के हाथों लादेन के खात्मे की घोषणा के बाद हर कोई उसका शव सामने आने की उम्मीद कर रहा था। लेकिन लादेन की मौत के कुछ घंटों बाद उसके उलट अमेरिकी सरकार ने कहा कि उसका शव अफगानिस्तान के जलालाबाद में अमेरिकी सेना के एक हवाई क्षेत्र में ले जाया गया। इसके बाद उसे उत्तरी अरब सागर में नियमित गश्त लगाने वाले विमान वाहक पोत यूएसएस कार्ल विनसन से ले जाकर समुद्र में फेंका गया। पाक के तत्कालीन सैन्य प्रमुख जनरल अशफाक कयानी और खुफिया प्रमुख जनरल अहमद शुजा पॉशा हर प्लानिंग में शामिल थे जबकि अभी तक अमेरिका लादेन को मारने का श्रेय खुद ही लेता रहा।
-अनिल नरेन्द्र



केजरीवाल ने छेड़ी नजीब के खिलाफ जंग

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच अधिकारों को लेकर खींचतान चल रही है। अब केजरीवाल ने इस खींचतान को आगे बढ़ाते हुए माननीय उपराज्यपाल के अधिकारों को सीधी चुनौती दे दी है। उन्होंने बुधवार को जंग को पत्र  लिखकर सीधे कह दिया है कि पुलिस, भूमि और कानून व्यवस्था के मामलों पर उनका नहीं बल्कि दिल्ली सरकार का ही अधिकार है। अपने दावे के पक्ष में उन्होंने कहा कि संविधान, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (जीएनटीसी) कानून और दिल्ली सरकार के कार्य सम्पादन नियम (टीबीआर) में कहीं भी उपराज्यपाल को इन विषयों के अधिकार नहीं दिए गए हैं। केजरीवाल ने जंग की ओर से लिखी गई चिट्ठी के जवाब में उन्हें भेजे पत्र में कहा कि दिल्ली सरकार को केंद्र कमजोर करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वह सिर्प संविधान के अनुसार काम करेंगे। जंग ने अपने पत्र में कहा था कि केजरीवाल को राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) को कारण बताओ नोटिस जारी नहीं करना चाहिए था। क्योंकि वह न तो उनकी नियुक्ति करने वाले अधिकारी हैं और न ही उनका कैडर नियंत्रण का अधिकार है। इसके जवाब में केजरीवाल ने कहा है कि भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों (आईएएस) की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और उनके कैडर का नियंत्रण केंद्र सरकार के कार्मिक (डीओपीटी) मंत्रालय के तहत होता है। ऐसे में अगर राज्यों में काम करने वाले आईएएस अधिकारियों का सारा संचालन केंद्र पर छोड़ दिया जाए तब तो संघीय ढांचा चरमरा जाएगा। केजरीवाल ने जंग को याद दिलाया कि नियुक्ति और कैडर नियंत्रण अधिकार न होने के बावजूद खुद उपराज्यपाल ने भी दिल्ली सरकार के अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। अपने पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि जहां जरूरत होगी वह भविष्य में भी उनसे सम्पर्प करते रहेंगे, लेकिन पुलिस, भूमि और कानून व्यवस्था के मामलों पर सिर्प संविधान का ही पालन करेंगे। केजरीवाल ने कहा है कि संविधान, विभिन्न नियम और कानूनों में कहीं भी इन विषयों पर उपराज्यपाल को अधिकार नहीं दिया गया है। एक भी धारा बता दीजिए जिसका पालन करते हुए संबंधित फाइलें उन तक भेजी जाएं। दिल्ली के मुख्य सचिव केके शर्मा की अमेरिका यात्रा उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच जारी सियासी टकराव की नई वजह साबित हो सकती है। शर्मा 10 दिनों की निजी यात्रा पर अमेरिका चले गए हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि उनकी जिम्मेदारी किस अधिकारी को दी जाएगी? नियमानुसार मुख्य सचिव की नियुक्ति केंद्रीय गृह मंत्रालय करता है जबकि कार्यकारी मुख्य सचिव की नियुक्ति उपराज्यपाल करता है। पहले ऐसी नियुक्तियों में किसी विवाद की गुंजाइश इसलिए नहीं होती थी क्योंकि मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच किसी किस्म का विवाद नहीं था। लेकिन अब इसकी संभावना इसलिए बढ़ गई है क्योंकि इन दोनों पदों पर काबिज लोगों के रिश्तों में तल्खी बहुत ज्यादा है। इन दोनों की लड़ाई अब केंद्रीय गृह मंत्रालय और पीएमओ तक पहुंच गई है।