Sunday 31 May 2015

मौसम के दो रंग ः मैदानों में लू का कहर, पहाड़ों पर बर्पबारी

मौसम के अजीब रंग देखने को मिल रहे हैं। मैदानों में लू का कहर है तो पहाड़ों पर बर्पबारी हो रही है। कश्मीर घाटी और हिमाचल में पिछले दिनों मैदानी इलाकों में तो बारिश हो रही है और पहाड़ों पर बर्प गिरने से ठंड बढ़ गई है। कश्मीर घाटी को लद्दाख से जोड़ने वाला नेशनल हाइवे भू-स्खलन और ताजा बर्पबारी के बाद बंद करना पड़ा। हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्फीति की पहाड़ियों पर बर्पबारी हो रही है। इससे घाटी का पारा गिर गया है। केलोंग में तीन सेंटीमीटर बर्प गिरी है। कालपा व किन्नौर में 18 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। ताजा बारिश और बर्पबारी से पहाड़ों में ठंडक फिर लौट आई है। उत्तर भारत के अनेक हिस्सों में जबरदस्त गर्मी पड़ रही है। दिल्ली में पिछले तीन दिनों से पारा 45 डिग्री सेल्सियस के नीचे नहीं गया है। आने वाले दिनों में ही हीट बेव चलेगी। गर्मी से मौतों का सिलसिला जारी है। देशभर में गर्मी की वजह से 1800 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। लू के थपेड़ों से बढ़ी गर्मी से लोग बेहाल हो रहे हैं। गर्मी की सर्वाधिक मार झेल रहे दक्षिण राज्योंöतेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पिछले एक पखवाड़े में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं। वहीं लू और गर्म हवाओं ने ओड़िशा से लेकर राजस्थान और झारखंड से लेकर उत्तर प्रदेश और पंजाब तक को अपनी जद में ले लिया है। मई के महीने में पारे का 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचना बहुत सामान्य है लेकिन कई जगह तापमान औसत से पांच डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया है। यही नहीं, राजधानी दिल्ली के पालम क्षेत्र में तो पारा 46 डिग्री सेल्सियस और इलाहाबाद में 48 डिग्री सेल्सियस को छू चुका है। इससे पहले 2010 में गर्मी का प्रकोप देखा गया था जब अमेरिका और फ्रांस से लेकर चीन तक इससे हलकान हो गए थे। उस वर्ष भारत में भी करीब 250 लोगों की भीषण गर्मी की वजह से मौत हो गई थी। उसके मुकाबले तो इस बार गर्मी कहीं अधिक जानलेवा साबित हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग की तमाम अकादमिक बहसों के बीच यह सच है कि आज भी अपने देश में गर्मी से बचने के पारंपरिक उपायों के अलावा कोई व्यवस्था नहीं है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि लू का शिकार होने वालों में आमतौर पर गरीब और मजदूर तबके के लोग होते हैं। उनके लिए रोटी-रोजी के इंतजाम के लिए घर से बाहर निकलना मजबूरी होती है। भले ही धूप और तापमान जानलेवा स्तर तक हो। एक समय था जब सड़कों के किनारे पीने के पानी के लिए सरकारी इंतजाम होते थे, लोग अपने स्तर पर भी प्याऊ लगाते थे। लेकिन आज शहरों की सड़कों पर छांव के लिए पेड़ खोजे नहीं मिलते। बिना पैसा खर्च किए प्यास बुझाना मुश्किल है। पानी को खुद सरकारों ने धीरे-धीरे बाजार के हवाले कर दिया है जिसे इस बात की कोई फिक्र नहीं कि गर्मी में लोगों का लू की चपेट में आना आश्चर्य की बात नहीं रह गई। इस साल बेतहाशा गर्मी झेलने को तैयार रहें क्योंकि 2015 इतिहास का सबसे गर्म साल साबित होगा।

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