Thursday 30 April 2020

पाक में नमाज में शर्तों की धज्जियां उड़ींöसेना के हवाले

पाकिस्तान में रमजान के महीने में सामूहिक नमाज की अनुमति जिन शर्तों के साथ दी गई थी, उनमें से कुछ की पहली रमजान को ही धज्जियां उड़ गईं। पाक में लॉकडाउन के कारण मस्जिदों में सामूहिक नमाज पर प्रतिबंध था। पर उलेमा ने साफ कहा कि रमजान में वह प्रतिबंध नहीं मानेंगे। इस पर संघीय सरकार व देश के विख्यात धर्मगुरुओं की बैठक में समझौता हुआ कि 20 शर्तों के पालन के साथ मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ी जा सकती है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पट्टन डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में साफ हुआ कि पंजाब प्रांत में और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की 80 प्रतिशत मस्जिदों में सरकार और उलेमा के बीच शर्तों का शनिवार को उल्लंघन किया गया। इस शर्त का पालन नहीं हुआ कि तरावीह नमाज सड़क और फुटपाथ पर नहीं पढ़ी जाएगी। चारों दिशाओं में नमाजियों के बीच छह फुट की दूरी का भी ख्याल नहीं रखा गया। बहुत-सी मस्जिदों में बड़ों के साथ बच्चे भी दिखे जबकि शर्त में साफ था कि बच्चों को मस्जिद नहीं लाया जाएगा। उधर इमरान खान सरकार ने लॉकडाउन का पालन नहीं करने वालों पर कार्रवाई करने का अधिकार सेना को दे दिया है। इसके तहत सेना लॉकडाउन नियम तोड़ने वाले मौलवियों और धार्मिक संगठनों पर भी कार्रवाई कर सकती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक रावलपिंडी स्थित आईएसआई मुख्यालय में प्रधानमंत्री इमरान खान, सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा, डीजी फैज अहमद, कुछ मंत्रियों और सलाहकारों की बैठक हुई थी। इसमें ही यह फैसला लिया गया। देश में अब तक कोरोना के 12 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं। जबकि 265 मौतें हो चुकी हैं। उधर पाकिस्तान मेडिकल एसोसिएशन (पीआईएमए) ने कोरोना को लेकर सरकार को चेताया है, पीआईएमए अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार बर्नी ने कहा कि पाक में मस्जिदें कोरोना संक्रमण का प्रमुख स्रोत बन गई हैं। डॉ. बर्नी ने बताया कि 100 डाक्टरों समेत 200 मेडिकल स्टॉफ कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। मई और जून में संक्रमण और तेजी से बढ़ने की आशंका है।

-अनिल नरेन्द्र

किराये की उधेड़बुन

लॉकडाउन के दौरान किराया देने और मकान खाली न करवाने के दिल्ली सरकार के निर्देश के बावजूद ऐसी शिकायतें मिल रही हैं। जैसे कि किल्लत के बीच ऐसे छात्र और मजदूर जो किराये के मकान में रहते हैं, उनसे मकान मालिक जबरदस्ती न तो मकान का किराया वसूल सकेंगे और न ही मकान खाली करा पाएंगे। मुख्य सचिव विजय देव ने 29 मार्च को जारी एक आदेश का हवाला देकर कहा है कि ऐसे मामले सरकार की नजर में आ रहे हैं जिनमें छात्रों से जबरदस्ती तुरन्त किराये की मांग कर रहे हैं या फिर मकान खाली करने का दबाव बना रहे हैं। आपदा प्रबंधन कानून 2005 में मिली शक्ति का इस्तेमाल करते हुए स्टेट एग्जीक्यूटिव कमेटी के चेयरमैन होने के नाते मुख्य सचिव विजय देव ने एक आदेश जारी करके डीएम को आदेश दिया है कि वो जिन इलाकों में अधिक मजदूर, प्रवासी मजदूर रहते हैं या छात्र रहते हैं वहां इस आदेश को लेकर जागरुकता अभियान चलाएं। दिल्ली के मुखर्जी नगर, लाडो सराय, लक्ष्मीनगर, शकरपुर, साउथ कैंपस के आसपास बड़ी संख्या में छात्र रहते हैं। इन इलाकों में छात्रों के पास पैसे का संकट होने की दशा में मकान खाली कराने के दबाव की शिकायतें आ रही थीं। इसी तरह दिल्ली में कई अनाधिकृत कॉलोनी औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास मजदूरों से किराया मांगने या किराया नहीं चुकाने पर मकान खाली कराए जाने की शिकायतें आ रही थीं। दूसरी तरफ वेस्ट दिल्ली के बुढेला, नांगलोई, निलोठी, हस्तसाल और बिंदापुर इलाकों में ज्यादातर लोगों के लिए मकान किराये पर देना ही रोजगार है। एक और मकान मालिक नरेश का कहना है कि 53 साल हो गए हैं, बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर के सभी खर्चे अभी तक किराये के पैसे से चलते आए हैं। इस महामारी के दौर में हमारी पूरी कोशिश है कि किसी जरूरतमंद को परेशान न करें। उन्होंने बताया कि कई लोगों ने किराये पर दुकानें दी हैं। एक महीने से दुकान बंद है, लेकिन बिजली-पानी का बिल तो आ रहा है, जो उन्हें देना होगा। नरेश के मुताबिक उन्होंने किरायेदारों से कहा है कि किराया नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं। पर बिजली-पानी का बिल तो भरना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जो भी कमाई थी किराये से ही थी। अब सब बंद है। कमाई का और कोई जरिया भी नहीं है। सरकार को मकान मालिकों को भी तो सुविधा देनी चाहिए। मकान मालिक दीपक ने बताया कि वेस्ट दिल्ली लाल डोरा है। यहां पर लोगों के लिए एक तरह का रोजगार है, किराये पर मकान देना। उन्होंने कहा कि मकान मालिकों के बारे में भी सोचना चाहिए। किराया न मिलने से वह भी परेशान हैं। परिवार का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। उन्होंने भी कहा कि हमें भी बिजली-पानी का बिल देना है, जब कमाई ही नहीं होगी तो कहां से बिल देंगे। कुल मिलाकर किराये को लेकर उधेड़बुन है। दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं। किसकी दलील में ज्यादा दम है आप ही फैसला करें।

कोरोना पर राज्यों में नई जंग

कोरोना को लेकर बढ़ते मरीजों की संख्या लगातार बढ़ने के बीच संक्रमण फैलाने को लेकर अब राज्यों में नई तनातनी शुरू होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। हरियाणा सरकार ने दिल्ली में काम कर लौटने वाले लोगों से कोरोना फैलने के आरोप के साथ ही दिल्ली आने वाली सब्जी पर भी रोक लगा दी है। इसके चलते दिल्ली में आने वाली हरी सब्जी की किल्लत के साथ दाम बढ़ने की संभावना बढ़ गई है। आजादपुर मंडी के आढ़ती राजीव ने बताया कि लॉकडाउन के समय में हरियाणा से ही हरी सब्जी घीया, तोरी, भिंडी, करेला, खीरा, ककरी आदि की 100 गाड़ी के करीब आ रही थीं। आजादपुर एपीएमसी के चेयरमैन आदिल अहमद खान ने बताया कि आजादपुर मंडी में सामान्य दिनों में फल व सब्जियों की आवक आठ हजार टन रहती है। सोमवार को करीब 7686 टन आवक रही। ऐसे आवक सामान्य रही जिससे फिलहाल दामों पर कोई असर नहीं पड़ा। हरियाणा के मंत्री (स्वास्थ्य) अनिल विज ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से कोरोना कैरियर्स को दिल्ली में ही रोकने की मांग की है। दूसरी तरफ तमिलनाडु ने अवैध रूप से लोगों की आवाजाही रोकने के लिए आंध्र प्रदेश के दो एंट्री प्वाइंट्स पर दीवार खड़ी करवा दी है। विज ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में काम करने वाले कई लोग पास के जरिये हर दिन हरियाणा से आवाजाही कर रहे हैं। यह प्रदेश में कोरोना कैरियर बन गए हैं। पहले तबलीगी जमात के कई सदस्य दिल्ली से आए, जिनसे 120 पॉजिटिव मिले। इनकी वजह से हरियाणा में संक्रमितों की संख्या बढ़ गई। विज ने कहा कि हमने जांच के बाद कोविड से संक्रमित 120 तबलीगी जमात के सदस्यों को ठीक किया है जो दिल्ली के रास्ते हरियाणा में दाखिल हुए। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के बयान पर सोमवार को पलटवार किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में कार्यरत सभी हरियाणा निवासियों को कोरोना कैरियर्स करार देना अनुचित है। सत्येंद्र जैन ने कहा कि बहुत से लोग दिल्ली में रहते हुए राजधानी के सीमावर्ती इलाकों में काम करते हैं और इसका उल्टा भी सही है। कोविड से ठीक हो चुके तबलीगी जमात के लोगों के रक्तदान पर उन्होंने कहा कि खून का अलग-अलग रंग नहीं होता। कोई भी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। जैन ने कहा कि हर धर्म सिखाता है कि संकट के ऐसे समय में एक-दूसरे की मदद करो, किसी से बैर न करो। हर धर्म सिखाता है कि दूसरों की जान बचाने के लिए कुछ करें। रोजाना पास लेकर आवागमन करने वालों की दिक्कतें बढ़ जाएंगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हरियाणा ने संक्रमण के बढ़ते मामलों के लिए दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। विज द्वारा केजरीवाल को अपने कर्मचारियों को दिल्ली में ठहराने की व्यवस्था की मांग संभव नहीं है। बहुत सारे लोग जो दिल्ली में नौकरी करते हैं, वह हरियाणा में रहते हैं। अगर विज साहब अपनी जिद पर अड़े रहे तो कई चलते कार्यालयों के ठप होने की संभावना हो जाएगी। चलते काम पर इस तरह रोक लगाना देशहित में नहीं माना जा सकता। उम्मीद है कि विज कोई बेहतर तरीका निकालेंगे।

Wednesday 29 April 2020

कहीं गुजरात दूसरा इटली-फ्रांस न बन जाए

गुजरात में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। प्रदेश में कोरोना मरीजों की तादाद 3000 पार कर चुकी है। गुजरात में कोरोना से अब तक 151 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि राज्य के अधिकारी कम्यूनिटी ट्रांसफर से इंकार कर रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस के जिस खतरनाक रूप में वुहान में तबाही मचाई थी वही रूप गुजरात में फैल रहा है। उनका कहना है कि वायरस का एल स्ट्रेन जोकि वुहान, इटली, फ्रांस और अमेरिका में पाया गया, वहीं गुजरात में भी है। जबकि देश के दूसरे हिस्सों में वायरस के कमजोर रूप का संक्रमण फैल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गुजरात में अमेरिका और यूरोपीय देशों से अधिक लोग आए हैं इसलिए यहां स्ट्रेन वायरस (सबसे खतरनाक रूप) है। राज्य के प्रधान स्वास्थ्य सचिव जयंती रवि ने बताया कि गुजरात में पहला मामला सामने आने के 35 दिन बाद संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर 3071 तक पहुंच गई है। इटली में इतने ही दिनों में 80,536, फ्रांस में 56,972 और स्पेन में 94,410 मामले सामने आए थे। उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि लॉकडाउन और विदेशों से लौट रहे लोगों को तुरन्त आइसोलेशन की रणनीति कुछ हद तक सफल हो रही है और इसने बीमारी के प्रसार को रोकने में मदद की है। सीएम रूपाणी ने कहा कि हमने विदेश की यात्रा करके लौटे 30,000 लोगों की पहचान कर ली है। जब तक हम दिल्ली में तबलीगी जमात के कार्यक्रम से वापस लौटे लोगों का पता लगाते, तब तक वह दूसरों के सम्पर्प में आ चुके थे। इससे संख्या में अचानक वृद्धि हुई।
-अनिल नरेन्द्र


छोटे व मध्यम उद्योगों के लिए विशेष पैकेज

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि लॉकडाउन ने माइक्रो स्माल मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) सेक्टर को तबाही के कगार पर खड़ा कर दिया है।
डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस की कोरोना परामर्श समिति ने एमएसएमई क्षेत्र को उबारने का एक रोडमैप तैयार किया है। बीते पांच दिनों में इस क्षेत्र से जुड़े लोगों और विशेषज्ञों के आए करीब 60 हजार सुझावों व फीडबैक के अध्ययन के बाद परामर्श समिति ने पांच अहम सुझाव व सिफारिशें की हैं। पीएम से एमएसएमई को विशेष पैकेज का अनुरोध करते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि लॉकडाउन से इस सेक्टर को रोज 30,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। चिन्ता की बात यह है कि इस सेक्टर में 11 करोड़ से ज्यादा नौकरी छिन जाने का खतरा है। कांग्रेस की ओर से दिए गए पांच सुझावों में सबसे पहली तवज्जो एक लाख करोड़ के एमएसएमई सेक्टर वेज प्रोटेक्शन की है ताकि नौकरियों को बचाने और आर्थिक संकट को दूर करने में मदद दी जा सके। दूसरे सुझाव में कारोबार की चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए एक लाख करोड़ रुपए के केडिट गारंटी फंड का सुझाव देते हुए कहा गया है कि इससे तत्काल लिक्विडिटी और जरूरी पूंजी मिल पाएगी। तीसरे सुझाव में कहा गया है कि आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) ने जो राहत का ऐलान किया है उसका जमीनी क्रियान्वयन बैंक की ओर से हो। एमएसएमई को आसान दरों पर व जल्द कर्ज मिले। आरबीआई के मौद्रिक निर्णयों को सरकार की वित्तीय ईकाइयों को फायदा मिल सके। मंत्रालय में 24 घंटे की एक विशेष एमएसएमई मार्गदर्शन की हेल्पलाइन शुरू की जाए। चौथे सुझाव में आरबीआई की तीन माह की घोषित लोन मोरेटोरियम को और बढ़ाने का सुझाव दिया है। एमएसएमई को टैक्स में छूट, कटौती व अन्य सेक्टर विशेष समाधान का रास्ता निकालने को कहा गया है। पांचवीं सिफारिश में अधिक कोलेटरल की वजह से एमएसएमई ईकाइयों को कर्ज मिलने में होने वाली दिक्कत को दूर करने को कहा गया है। पार्टी ने कहा है कि मार्जिन मनी की सीमा मौजूदा स्थिति में बहुत अधिक है जिससे कर्ज में कठिनाई हो रही है। हम समझते हैं कि यह सारे सुझाव अच्छे हैं। फिर इन्हें विशेषज्ञों और क्षेत्रों के जानकारों से सलाह करने के बाद दिए गए हैं। अब इनमें से सरकार क्या मानती है, कितना मानती है, रिजैक्ट करती है यह देखना होगा। सरकार के वित्तीय विशेषज्ञों को इन पर गंभीरता से गौर करना चाहिए। आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार राहत पैकेज जारी होना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि इन सेक्टरों में मदद की सख्त जरूरत है।

हाई कोर्ट का निजी स्कूलों को जून तक फीस न लेने का निर्देश

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को एक अभिभावक की याचिका का निपटारा करते हुए आदेश दिया है कि वह स्कूलों को सख्त निर्देश दे कि वह ट्यूशन फीस के अलावा कोई अन्य फीस न वसूलें और फीस न दे पाने वाले छात्रों के लिए भी ऑनलाइन कक्षा का लाभ दें। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने अपने आदेश में कहा कि इस संकट के समय सभी की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है। इसलिए उन्होंने जून तक फीस न वसूलने का निजी स्कूलों को निर्देश भी दिया है। हाई कोर्ट बैंच ने कहा कि जो ट्यूशन फीस नहीं दे सकता उनसे निजी स्कूल जबरदस्ती न करें। इससे पहले जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने गौर किया कि दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों को शिक्षण शुल्क (ट्यूशन फीस) के अलावा अन्य कोई शुल्क मांगने से रोक दिया है। हाई कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा कि ट्यूशन फीस की मांग उचित है क्योंकि शिक्षक कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान भी ऑनलाइन कक्षाएं ले रहे हैं और अपना काम कर रहे हैं। हाई कोर्ट ने इस संबंध में एक याचिका का निपटारा करते हुए दिल्ली सरकार के एक आदेश का जिक्र किया कि जो छात्र वित्तीय संकट के कारण फीस देने में असमर्थ हैं, उन्हें भी ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ उठाने की अनुमति दी जाएगी। हाई कोर्ट ने अपने निर्देश के तहत अभिभावकों को भी कहा है कि अगर कोई स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा अन्य फीस भी मांगे तो इसकी तुरन्त शिकायत दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग को करें, इस पर शिक्षा विभाग तुरन्त कार्रवाई करेगा। हाई कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है और यह नीतिगत मामला है इसलिए हाई कोर्ट इसमें हस्तक्षेप करने का इच्छुक नहीं है। याचिकाकर्ता रजत वत्स ने दलील दी थी कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान दिल्ली के विभिन्न निजी स्कूलों के छात्रों द्वारा परिवहन शुल्क, पाठ्येतर गतिविधियों के लिए शुल्क और अन्य शुल्क का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने अनुरोध किया था कि क्योंकि स्कूल काम नहीं कर रहे हैं, इसलिए शिक्षण शुल्क का भुगतान भी कुछ माह के लिए स्थगित किया जाना चाहिए। क्योंकि लॉकडाउन की वजह से काफी अभिभावक स्कूल फीस देने में असमर्थ हैं। दिल्ली सरकार के स्थायी वकील रमेश सिंह ने हाई कोर्ट को बताया कि अधिकारी याचिका में उठाए गए मुद्दों के बारे में पूरी तरह से सचेत हैं और 17 अप्रैल को शिक्षा निदेशालय पहले ही आदेश जारी कर चुका है कि शिक्षण शुल्क को छोड़कर कोई अन्य शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए। वह भी इसलिए क्योंकि शिक्षक घर से ऑनलाइन कक्षाएं लेकर अपना शिक्षा देने का काम जारी रखे हुए हैं।

Tuesday 28 April 2020

अजीबोगरीब सुझाव दे ट्रंप मजाक का पात्र बने

ऐसा लगता है कि कोरोना महामारी के दौर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप डॉक्टर भी बन गए हैं और वैज्ञानिक की भूमिका में ही आ गए हैं। वह आए दिन कोई न कोई ऊटपटांग सुझाव देते ही रहते हैं जिसके कारण वह मजाक के पात्र बन जाते हैं। अब ट्रंप ने अजीबोगरीब सुझाव देकर अपने आपको आलोचनाओं का शिकार बना लिया है। उन्होंने कोरोना पर शोध की सलाह दी है कि क्या कीटाणुनाशक इंजेक्शन या अल्ट्रावायलेट लाइट से कोरोना रोगियों का इलाज संभव हो सकता है। ट्रंप ने यह विचित्र सलाह विज्ञान और प्रौद्योगिकी निदेशालय के कार्यकारी प्रमुख विलियम ब्रॉयन के साथ एक वैज्ञानिक अध्ययन जारी करने के दौरान दी। ब्रॉयन के इस अध्ययन में बताया गया है कि सूरज की रोशनी में आने से वायरस जल्द खत्म हो सकता है। इस पर अचरज जाहिर करते हुए ट्रंप ने पूछा कि क्या कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में इंजेक्शन के जरिये केमिकल को पहुंचाना संभव हो सकता है? ट्रंप ने व्हाइट हाउस में गुरुवार को पत्रकारों से नियमित बातचीत में इस संभावना पर भी गौर करने को कहा। क्या खतरनाक कोरोना वायरस के संक्रमण के मुकाबले के लिए अल्ट्रावायलेट लाइट या पराबैंगनी किरणों का उपयोग किया जा सकता है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने सलाह दी है कि कोरोना वायरस को मारने के लिए कीटनाशक के इंजेक्शन पर रिसर्च की जानी चाहिए। कीटनाशक उत्पाद बनाने वाली कंपनी रेकिट बेंकिसर ने लोगों से कहा है कि कीटनाशक पीने से लोगों की जान को खतरा हो सकता है। कीटाणुनाशक आइसोप्रोपिल अल्कोहल तो इसे 30 सैकेंड में मारता है यह सलाह व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने दी थी। रेकिट बेंकिसर कंपनी ने कहा कि एक जिम्मेदार कंपनी होने के नाते हम यह साफ करना चाहते हैं कि हमारे कीटनाशकों को किसी भी परिस्थिति में इंसानों के शरीर में (इंजेक्शन या फिर किसी और जरिये से) नहीं डालना चाहिए। अमेरिकी विशेषज्ञ पहले ही लोगों को इससे मना कर चुके हैं। उनका कहना है कि ऐसा कोई टेस्ट नहीं होना चाहिए। हम सभी को जवाब पता है कि ऐसा कुछ भी करना खतरनाक हो सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर कहां हैं मौलाना साद? 26 दिन बाद भी हाथ खाली

तबलीगी जमात के मौलाना मोहम्मद साद तक दिल्ली पुलिस 26 दिन बाद भी नहीं पहुंच सकी है। साउथ-ईस्ट दिल्ली के जाकिर नगर में उनके क्वारंटीन होने की चर्चा थी, जिसका पीरियड खत्म होने के 10 दिन बाद भी वह सामने नहीं आए। क्राइम ब्रांच ने गुरुवार को शामली में छापेमारी की, लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं लगा। सूत्र बताते हैं कि क्राइम ब्रांच के पास फिलहाल साद की कोई जानकारी नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि वह हरियाणा के मेवात में हैं तो कुछ कहते हैं कि दिल्ली पुलिस कह रही है कि पहले वह अपना कोरोना का टेस्ट करवाएं फिर हम उन्हें गिरफ्तार करेंगे। अगर ऐसा है तो इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि पुलिस को यह मालूम है कि मौलाना साद कहां हैं और वह उन्हें जानबूझकर उन पर इसलिए हाथ नहीं डाल रही क्योंकि वो कोरोना से ग्रसित न हों? खबर है कि मौलाना साद ने कोरोना टेस्ट करवा लिया है। साद रिपोर्ट आने के बाद उसे क्राइम ब्रांच को सौंपेंगे। साद को पिछले सप्ताह ही क्राइम ब्रांच ने एम्स या फिर किसी सरकारी संस्थान से कोरोना टेस्ट कराने को कहा था। इसके लिए क्राइम ब्रांच ने जब उनके घर की तलाशी ली थी तो बेटे को भी इसके बारे में कहा था। मौलाना साद ने कहा कि दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मेरे बेटे से कहा था कि कोरोना जांच कराएं। हम उस निर्देश के मुताबिक कोरोना वायरस की जांच करा चुके हैं। लेकिन अभी रिपोर्ट नहीं आई है। जांच रिपोर्ट आते ही दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को इसकी जानकारी दी जाएगी। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच जो कह रही है, हम उनका पालन कर रहे हैं। साद एक के बाद एक वीडियो जारी कर चुके हैं। इन ऑडियो के जरिये वह जमातियों को लगातार संबोधित करते रहे हैं और उनसे एहतियात बरतने को कह रहे हैं। पिछले महीने निजामुद्दीन मरकज के भीतर हजारों की संख्या में लोग आए थे। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि देश में 4291 जमाती कोरोना पॉजिटिव मिले हैं, जो भारत के कुल कोरोना पॉजिटिव मरीजों का 29.8 प्रतिशत है। इनकी वजह से 23 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश कोरोना से प्रभावित हैं। सूत्रों के मुताबिक यह सिर्प अभी तक पॉजिटिव पाए गए मरीज हैं। सैकड़ों जमाती क्वारंटीन सेंटरों में हैं, जिनके भीतर भी वायरस होने की आशंका है। फिलहाल देशभर में एक हजार से ज्यादा जमातियों के ठिकानों के बारे में पुलिस और प्रशासन अनजान है। मौलाना साद की गिरफ्तारी को लेकर अभी भी सवाल बने हुए हैं। जांच एजेंसियां और पुलिस कोरोना वायरस की महामारी से उपजे हालातों में पहले से ही कड़ी चुनौतियों का सामना कर रही हैं।

सबकी निगाहें 3 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिकी हैं

एक महीने से ऊपर का वक्त हो गया है जब जीवन की रफ्तार थम-सी गई है और लोग जीवन में अच्छे-बुरे अनुभवों का सामना कर रहे हैं। परिवार, दोस्तों और सहयोगियों के साथ रिश्तों में फिर से सामंजस्य बिठाया जा रहा है और रोज जब अब उनकी आंखें खुलती हैं और हकीकत से वास्ता पड़ता है तो सभी 3 मई की ओर देखते हैं। सभी की जुबान पर यही सवाल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 मई को क्या लॉकडाउन बढ़ाएंगे या फिर कुछ ढील देंगे? लोगों की बेचैनी बढ़ने लगी है और उनकी निगाहें पीएम मोदी पर लगी हैं कि वह 3 मई को लॉकडाउन पर क्या फैसला लेते हैं? कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के प्रयास में प्रधानमंत्री मोदी की ओर से 24 मार्च शाम को देशव्यापी बंद की घोषणा के एक दिन बाद से भारत में लॉकडाउन लागू है। इसके बाद से अब तक गुजरे दिनों में 1.3 अरब भारतीय, केंद्रीय स्थानों और दूरस्थ कोनों में बसे अमीर-गरीब, सभी ने दुनियाभर में फैली महामारी के डर का सामना किया है। 3 मई तक बढ़ाए गए लॉकडाउन की बेचैनी से कोई भी अछूता नहीं है, न तो शानदार कोठियों में रह रहे रईस कारोबारी, न घरों में बंद मध्यम वर्ग और न ही किराये के छोटे-छोटे घरों में दिहाड़ी मजदूर। भय की स्थिति भले ही सबके लिए सामान्य हो लेकिन इनके बीच की असमानताओं का फर्प भी तुरन्त देखने को मिला। गुड़गांव के पारस अस्पताल की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक प्रीति सिंह के मुताबिक इस लॉकडाउन ने लोगों को जरूरत और इच्छाओं के बीच फर्प करना सिखाया है और उन्हें अपनी जरूरतों को प्राथमिकता देने में मदद की है। सिंह ने कहाöइसने लोगों को एहसास कराया है कि कोई भी व्यक्ति अल्पतम जरूरतों के साथ और दुनिया में व्याप्त वस्तुवाद के बिना भी गुजारा कर सकता है। बंद के इन दिनों को लोग जीवनभर याद रखेंगे और इसने सामाजिक दूरी बनाए रखने की जरूरत के मद्देनजर सामाजिक संवाद, त्यौहारों का जश्न और यहां तक कि शोक मनाने के नए तरीके भी सीखे हैं। कई लोगों ने माना है कि यह उनकी ताकतों को फिर से आंकने और कई मामलों में छिपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाने का भी अवसर है। केंद्रीय सरकार में विभिन्न स्तरों पर हो रही लगातार समीक्षा में लॉकडाउन को और आगे बढ़ाने के बारे में विचार हो रहा है। अब तक किसी राज्य सरकार ने भी लॉकडाउन समाप्त करने की बात नहीं कही है बल्कि कुछ राज्यों ने तो 3 मई के बाद भी कुछ समय के लिए प्रतिबंध जारी रखने के निर्देश दिए हैं। हालात को नियंत्रण में रखने के लिए गृह मंत्रालय लगातार रियायतों की घोषणा कर रही है जिससे लोगों की दिक्कतें कम हों। छोटे स्तर पर ही सही आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत होने से मजदूरों को कुछ राहत मिल सकती है। विभिन्न क्षेत्रों में दुकानों को खोलने से लोगों की दिक्कत कम होंगी। सूत्रों के अनुसार विभिन्न एजेंसियों का मानना है कि जब तक संक्रमितों की संख्या में कमी आना शुरू नहीं होगी, उसके पहले लॉकडाउन समाप्त करने से ज्यादा खतरे हैं। ऐसे में राज्य और केंद्र इसे कुछ समय के लिए आगे बढ़ा सकते हैं। जिन क्षेत्रों में कोरोना केस कम हुए हैं और नए केस नहीं आए वहां जरूर कुछ छूट की संभावना है। पूरे देश की निगाहें 3 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिकी हुई हैं।

Sunday 26 April 2020

जर्मनी ने भेजा चीन को 149 बिलियन यूरो का बिल

चीन के वुहान शहर की प्रयोगशाला कोरोना वायरस की वजह से आजकल सुर्खियों में है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन की इसी लैब इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजी से कोरोना फैला है। अब इस लैब की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं जिसमें कोरोना वायरस के 1500 सैंपल को रखने वाले फ्रिज में से एक दरवाजे की सील टूटी हुई है। इन तस्वीरों को पिछले महीने ट्विटर पर डाला गया था। बाद में इन्हें डिलीट कर दिया गया। पिछले हफ्ते ब्रिटेन की मीडिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि वुहान की इस लैब में चमगादड़ों पर प्रयोग करने के लिए यूनान से 1000 मील दूर से उन्हें पकड़ा था। उधर फ्रांस के नोबेल पुरस्कार विजेता लक मांटेगनियर ने भी दावा किया है कि चीन के वुहान की लैब से कोरोना वायरस फैला। उन्होंने कहा कि लैब में एड्स की वैक्सीन तैयार करने की कोशिश की जा रही थी और दुर्घटना से यह वायरस बाहर फैल गया। वहीं दुनिया के तमाम देश जिनमें अमेरिका भी शामिल है इस वायरस के पीछे चीन की साजिश बता रहे हैं। अमेरिका ने तो खुलेआम धमकी दे डाली है और अब जर्मनी ने तो चीन से भारी-भरकम जुर्माना भी मांग लिया है यानि कोरोना के जनक माने जाने वाले चीन के पीछे दुनिया पड़ गई है। जर्मनी में अब तक करीब डेढ़ लाख कोरोना केस आ चुके हैं और यहां 4500 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। कोरोना प्रभावित देशों में अमेरिका, इटली, स्पेन और फ्रांस के बाद जर्मनी पांचवें नम्बर पर है यानि जर्मनी में भी कोरोना ने भारी तबाही मचाई है। इस तबाही से गुस्साए जर्मनी ने चीन से हिसाब चुकता करने के लिए कहा है। जर्मनी ने चीन को 149 बिलियन यूरो का बिल भेजा है ताकि कोरोना वायरस से हुए नुकसान की भरपायी की जा सके। इसमें 27 बिलियन यूरो टूरिज्म से हुए नुकसान, 712 बिलियन यूरो फिल्म इंडस्ट्री, जर्मन एयरलाइंस और छोटे बिजनेस को हुए 50 बिलियन यूरो के नुकसान का बिल चीन को भेजा है यानि जर्मनी ने बाकायदा कोरोना वायरस से हुआ अपना पूरा नुकसान तो गिनाया ही है, साथ ही चीन को इसका बिल भी भेज दिया है। जर्मनी ने जहां बिल भेजा है तो अमेरिका जांच टीम भेजने को तैयार बैठा है। रविवार को व्हाइट हाउस में प्रेसवार्ता करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वुहान से कोरोना की शुरुआत हुई और चीन से हम खुश नहीं हैं। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका इस बात की जांच कर रहा है कि क्या यह जानलेवा वायरस चीन की लैब से पैदा किया गया है। इसके लिए हम चीन से जानना चाहते हैं और समझना चाहते हैं कि आखिर हुआ क्या है? इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अगर चीन कोरोना वायरस फैलाने का जिम्मेदार पाया गया तो उसे याद रखना चाहिए कि इसके नतीजे उसे भुगतने पड़ेंगे। हालांकि चीन बार-बार यह सफाई दे रहा है कि वह इस वायरस के लिए जिम्मेदार नहीं। उसने अमेरिका द्वारा जांच टीम वुहान भेजने की मांग को तो ठुकरा दिया है। जर्मनी ने शुरुआत कर दी है और जल्द ही दुनिया के अन्य देश चीन पर कंपेनसेशन के दावे ठोकेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

लॉकडाउन ः अग्नि- परीक्षा के 30 दिन

दो दिन पहले एक पाठक प्रीति पांडे का यह मैसेज सामने आया। प्रस्तुत हैं उसके कुछ अंश। लॉकडाउन के 30 दिन पूरे हो चुके हैं। अब तीन मई को पता चलेगा कि लॉकडाउन आगे बढ़ेगा या नहीं? हमें तो लगता है कि शायद यह आगे बढ़ेगा, यह हो सकता है कि कुछ क्षेत्रों में जहां कोरोना संक्रमण न के बराबर हुआ है या जो पूरी तरह क्लियर हो चुके हैं वहां थोड़ी ढील दी जाए। इस लॉकडाउन में आपने अपना दिन कैसे गुजारा है? मुझे लगता है कि पिछले एक महीने में हम सुबह उठकर सबसे पहला काम बाथरूम में जाकर निवृत्त होकर टीवी खोलकर बैठ जाते हैं और न्यूज चैनलों को देखना हमारी दिनचर्या का सबसे पहला काम बन गया है। कहां कितने लोगों को कोरोना हुआ, कितने मरे, कितने इलाके सील हुए, क्या खुला और क्या बंद हुआ? इन्हीं के आसपास हमारी जिंदगी घूम रही है। वॉट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, टिकटॉक और यहां तक कि जोक्स कुछ भी देख लो हर जगह बस कोरोना ही कोरोना नजर आता है। हर कोई कोरोना पर अपना ज्ञान बांटने को बैठा है और आप उसे समेटने में। सोचिए जब दिन की शुरुआत ही मौत के भय के साये में हो तो आपका दिन कैसे बीतेगा? खबरें देखने में कोई बुराई नहीं है। यकीनन हमारे आसपास क्या हो रहा है हमें पता होना चाहिए। आंखें बंद कर लेने से हम सच्चाई से नहीं भाग सकते लेकिन हर समय खबरों में रहना और वही सुनते रहना आपको दिमागी रूप से परेशान कर सकता है। आजकल किसी भी न्यूज चैनल की पहली और आखिरी खबर कोरोना से शुरू होकर कोरोना पर ही खत्म हो रही है, क्योंकि देश में अभी फिलहाल इससे बड़ी शायद ही कोई अन्य समस्या हो। हमें कोरोना से डरना नहीं बस हमें सतर्प रहना है। आज दुर्भाग्य से हालात ऐसे हो गए हैं कि लोगों के चेहरों पर एक दहशत-सी छाने लगी है जो अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। अगर आप दिमागी रूप से मजबूत हैं तो आप बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाल सकते हैं। आपने अकसर सुना होगा कि जब हम सारा टाइम नेगेटिव बातें सुनते हैं या बोलते हैं तो कहीं न कहीं हमारे अंदर भी एक नेगेटिविटी आ जाती है। उसका असर यह होता है कि आप स्ट्रेस से घिर जाते हैं और यह बात सभी जानते हैं कि स्ट्रेस आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है। इसलिए जरूरी है कि आप कोशिश करें कि तनावमुक्त रहें। इस बात से कोई दो राय नहीं है कि कोरोना एक गंभीर समस्या है, ऐसी समस्या है जिसका हमें अपनी जिंदगी में पहली बार अनुभव हुआ है और कोई भी देश इससे अछूता नहीं है। यह समस्या कब तक रहेगी यह भी पता नहीं तो फिर आप उपर वाले को धन्यवाद करें और मस्त रहें। लॉकडाउन का सख्ती से पालन करें। सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें। आपका जितना घर में रहना जरूरी है उतना ही जरूरी है तनावमुक्त रहना और अपने परिवार को पॉजिटिव थिंकिंग में लगाए रखना। सच तो यह है कि आपके न्यूज देखने या न देखने से आंकड़ों पर कोई फर्प नहीं पड़ने वाला। केस उतने ही आएंगे जितने आ रहे हैं। लेकिन बार-बार देखने से आंकड़ों पर तो नहीं आपके दिल-दिमाग पर जरूर असर पड़ता है और यह चिंता का विषय जरूर है। इसलिए अपने दिमाग को कहिए कि वह अपने आपको व्यस्त रखे और दिल से कहिए कि ऑल इज वैल।

Saturday 25 April 2020

नॉर्थ कोरिया तानाशाह किम जोंग सर्जरी के बाद ब्रेन डेड?

नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन गंभीर रूप से बीमार हैं। अमेरिका मीडिया में तो किम जोंग के ब्रेन डेड होने की भी अटकलें तेज हैं। मंगलवार को एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि हाल ही में किम जोंग की सर्जरी की गई थी लेकिन उसके बाद उनकी हालत और खराब हो गई। यह अटकलें उस वक्त और तेज हो गईं जब किम जोंग 15 अप्रैल को अपने देश की स्थापना दिवस और स्वर्गीय दादा के 108वें जन्मदिन पर होने वाले कार्यक्रम में भी नहीं दिखे। खबरों की मानें तो स्मोकिंग और मोटापे की वजह से किम जोंग काफी समय से बीमार चल रहे हैं। आखिरी बार उन्हें 11 अप्रैल को एक बैठक के दौरान देखा गया था। इन तमाम अटकलों पर उत्तरी कोरिया के दो आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि किम जोंग के स्वास्थ्य को लेकर आ रही खबरों में कोई सच्चाई नहीं है, उनका इलाज चल रहा था लेकिन वह गंभीर रूप से बीमार हैं उसकी सूचना नहीं है, वह ठीक हो रहे हैं और उनका इलाज चल रहा है। किम जोंग की बहन किम यो जोंग नॉर्थ कोरिया का दूसरा सबसे  लोकप्रिय चेहरा हैं। 11 अप्रैल 2020 को किम यो जोंग को देश के पोलित ब्यूरो में अल्टरनेट सदस्य के रूप में दोबारा शामिल किया गया। वह कई बार दुनिया में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। किम जोंग बीमार हैं इतना तो तय है क्योंकि यह तो उत्तरी कोरिया के अधिकारियों ने भी माना है पर वह ब्रेन डेड हैं इसकी पुष्टि होना बाकी है। हम सिर्प अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट पर ही इसे सही नहीं मान सकते। दूसरी ओर अगर यह सही है तो इसे ज्यादा दिन तक छिपाया भी नहीं जा सकता।

-अनिल नरेन्द्र

प्लाजमा थेरेपी से देश में पहली बार कोरोना ठीक

दुनियाभर में अबूझ पहेली बने कोरोना संक्रमण के इलाज में प्लाजमा थेरेपी ने उम्मीद की किरण दिखाई है। देश में पहली बार इस थेरेपी से गंभीर रूप से संक्रमित व्यक्ति का सफल इलाज किया गया है। चार दिन में ही मरीज के ठीक होने से डॉक्टर बेहद उत्साहित हैं। दिल्ली के मैक्स अस्पताल, साकेत में यह ट्रायल इतना कारगर हुआ कि चार दिन में ही मरीज वेंटिलेटर से बाहर आ गया है। प्लाजमा थेरेपी का यह देशभर में पहला सफल मामला है। इससे आगे की एक नई उम्मीद जगी है। दिल्ली सरकार ने भी इस पर ट्रायल करने का आदेश दे दिया है। आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली के दो सरकारी अस्पतालों में देश में पहली बार प्लाजमा थेरेपी से कोरोना के गंभीर मरीज का इलाज किया है। कोरोना से जंग जीत चुके एक डोनर से प्लाजमा लेकर आईसीयू में भर्ती 49 साल के एक व्यक्ति को चढ़ाया गया। यह थेरेपी इतनी कारगर रही कि मरीज थेरेपी के चौथे दिन ही वेंटिलेटर से बाहर आ गया। न केवल वेंटिलेटर से बल्कि आईसीयू से भी बाहर आ गया है। अब उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। यह मरीज दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी में रहने वाला है। चार अप्रैल को उन्हें मैक्स में एडमिट किया गया था। जांच में उन्हें कोविड पॉजिटिव पाया गया। आठ अप्रैल को आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट देने की नौबत आ गई। परिवार के लोगों ने अस्पताल प्रशासन से प्लाजमा थेरेपी से इलाज के लिए आग्रह किया। डोनर भी खुद लेकर आए। डोनर तीन हफ्ते पहले ही कोरोना से ठीक हुए थे। दो बार उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली। अस्पताल में डोनर की जांच की। फिर उनके ब्लड से प्लाजमा लेकर 14 अप्रैल को मरीज को चढ़ाया गया। इसके बाद उनकी हेल्थ में सुधार दिखने लगा। 18 अप्रैल को वेंटिलेटर सपोर्ट हटा दिया गया। रविवार को उन्होंने खाना भी खाना शुरू कर दिया। डॉक्टरों के मुताबिक अब उनका स्वास्थ्य ठीक है। डॉ. संदीप बुद्धिराजा ने कहा कि एक डोनर 400 मिलीलीटर प्लाजमा दे सकता है। एक मरीज के इलाज के लिए 200 मिलीलीटर प्लाजमा पर्याप्त है। इस तरह एक डोनर से दो मरीजों की जान बच सकती है। अंतत एक किरण नजर आई है।

महामारी कानून में सख्त प्रावधान जुड़े, डॉक्टरों, नर्सों पर हमले

जिस तरीके से अपनी जान की बाजी लगाने वाले डॉक्टरों, नर्सों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले हो रहे हैं उस पर अंकुश लगना अतिआवश्यक था। हमले के उनके साथ हो रहे बुरे बर्ताव को देखते हुए कानूनी प्रावधानों को सख्त करने के अलावा और कोई कारगर उपाय करना अतिआवश्यक हो गया था। इसलिए सरकार ने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमितों के इलाज में जुटे डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने वालों को सात साल तक की जेल हो सकती है। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को ऐसी घटनाओं को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दी। इसके जरिये 123 साल पुराने महामारी कानून में सख्त प्रावधान जोड़े गए हैं। राष्ट्रपति के दस्तखत (जो हो जाएंगे) होते ही यह लागू हो जाएगा। फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि डॉक्टरों और नर्सों पर हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। स्वास्थ्य कर्मी काफी समय से अध्यादेश की  मांग कर रहे थे। डॉक्टरों पर हमलों को देखते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आंदोलन की चेतावनी दी थी। लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने  बुधवार सुबह ही उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया। इसके बाद आईएमए ने विरोध प्रदर्शन वापस ले लिया। गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आईएमए के डॉक्टरों से वीडियो कांफ्रेंसिंग में अपील की थी कि वह अपनी सांकेतिक प्रदर्शन न करें। सरकार पूरी तरह उनके साथ है और जल्द डॉक्टरों की सुरक्षा और समस्याओं पर कानून लाएंगे। फिर हुई कैबिनेट मीटिंग में कानून को मंजूरी दे दी गई। बताते हैं कि इस कानून का ड्राफ्ट कुछ महीनों से सरकार के पास ही था। कुछ प्रावधानों पर सहमति न बनने से इसे पास नहीं किया जा सका था। अध्यादेश पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा का सरकार का पक्का इरादा है। महामारी अधिनियम में संशोधन से स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा और उनके रहने और काम करने की जगह पर हिंसा से बचाने में मदद मिलेगी। यह पूछे जाने पर कि कोरोना संकट के बाद भी क्या यह बदलाव लागू रहेंगे, जावड़ेकर ने सीधा जवाब नहीं दिया और कहा कि यह अच्छी शुरुआत है। इस कानून के तहत आरोपी पर ही बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी होगी। बाकी कानून में जांच एजेंसी को दोष साबित करना होता है। यह कानून तब तक लागू रहेगा, जब तक महामारी घोषित रहेगी। इसके बाद भी अगर कोई राज्य सरकार महामारी घोषित करती है तो यह कानून लागू माना जाएगा। कोरोना के खिलाफ जंग में असहयोग करने वाले, अभद्रता करने पर आजाद तत्वों का दुस्साहस कितना बढ़ गया है, यह इससे पता चलता है कि वह डॉक्टरों, नर्सों को तो छोड़िए पुलिस पर भी सीधा हमला करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इंदौर, मुरादाबाद, अलीगढ़ के साथ कुछ अन्य शहरों में डॉक्टरों के साथ पुलिस पर हमले की घटनाएं गलतफहमी का परिणाम मानना एक भूल ही होगी। यह घटनाएं तो किसी सुनिश्चित दुप्रचार का हिस्सा जान पड़ती है। पुलिस पर हमला तो कानून के शासन पर आघात है। हम सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि इस सख्त कानून के रहते अब डॉक्टरों, नर्सों व स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस पर हमले बंद हो जाएंगे।

Thursday 23 April 2020

मक्का-मदीना में नहीं पढ़ी जाएगी नमाज

सऊदी अरब में मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ने पर रोक और बढ़ा दी गई है। सऊदी प्रशासन ने रमजान का महीना शुरू होने से पहले ही रोक को बढ़ा दिया है। लोग मक्का और मदीना स्थित दो बड़ी मस्जिदों में रमजान के महीने के दौरान भी नमाज नहीं पढ़ पाएंगे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह फैसला कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए किया गया है। इस महामारी से बचाव के  लिए मक्का स्थित ग्रांड मस्जिद और मदीना स्थित प्रोफेट मस्जिद में रमजान के दौरान नमाज पढ़ने पर रोक लगाई गई है। मक्का की मस्जिद अल-हराम और मस्जिद अल-नवाबी में रमजान के दौरान लाउडस्पीकर पर अजान की जाएगी, लेकिन इन मस्जिदों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी। गौरतलब है कि इससे पहले सऊदी अरब ने 19 मार्च से ही देश की मस्जिदों में नमाज अदा करने पर रोक लगाई हुई थी। सऊदी अरब के ग्रैंड मुफ्ती शेख अब्दुल अजीज बिन अब्दुल्ला अल-शेख ने लोगों से अपील की है कि इस महामारी के मद्देनजर अगले हफ्ते से शुरू होने वाले रमजान के महीने में तरावीह की नमाज को भी घर पर ही पढ़ें, ताकि सऊदी अरब में वायरस का संक्रमण फैलने से रोका जा सके।

-अनिल नरेन्द्र

सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव

दिल्ली सरकार के लोकनायक अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजों को ठीक उपचार नहीं मिलने पर मरीज की बेटी और पत्नी का दर्द छलक गया। मां-बेटी के दर्द का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ। इसके बाद मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के हस्तक्षेप करने पर मरीज को ठीक उपचार मिलना शुरू हो गया है। सोमवार सुबह से फेसबुक, ट्वीटर, वॉट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मां-बेटी के दर्द का वीडियो प्रसारित होना शुरू हुआ। वीडियो में कोरोना वायरस संक्रमित मरीज की बेटी और पत्नी दावा कर रही हैं कि उनके पिता और पति को लोकनायक अस्पताल में बेहतर उपचार नहीं मिल रहा है। वीडियो में मरीज अरविन्द की बेटी प्रतिभा ने कहा कि वह जहांगीरपुरी की रहने वाली हैं और 16 अप्रैल को उसके पिता की हालत खराब हो गई थी। तबीयत खराब होने के बाद उन्हें निजी अस्पताल में ले गए जहां कोरोना की जांच हुई, जिसमें रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद मरीज को लोकनायक अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। प्रतिभा का दावा है कि उनके पिता का अस्पताल में सही उपचार नहीं हो रहा है। पिता को 102 बुखार है और सोमवार तक किसी डॉक्टर ने उन्हें नहीं देखा। वह शुगर और हाइपरटेंशन के मरीज हैं, लेकिन उन्हें खाने को कुछ नहीं दिया जा रहा। इस संबंध में प्रतिभा ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को टैग कर ट्वीट किया और मदद मांगी कि जल्द से जल्द उनके पिता को उपचार मिले। ट्वीट के बाद यह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गया। लाखों लोगों ने इसे देखा। इसके तुरन्त बाद मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए अस्पताल प्रशासन को बेहतर उपचार देने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद मरीज को अलग कमरे में शिफ्ट कर दिया गया, जिसकी पुष्टि मरीज की बेटी प्रतिभा ने की। मरीज को ठीक उपचार दिलाने की कोशिश मुख्यमंत्री के आदेश पर तिमारपुर के आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक दिलीप पांडे की ओर से की गई। मां-बेटी के वीडियो पर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी अपने ट्वीटर अकाउंट के जरिये शेयर किया और सरकार के इंतजामों पर सवाल किए। चलो प्रतिभा के पिता का तो बेहतर इलाज हो रहा है और वह भगवान करे बच जाएं पर उन सैकड़ों कोरोना संक्रमित का पता नहीं अगर यही हाल है तो दिल्ली सरकार के प्रबंधों पर अस्पतालों के उपचार करने पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगता है। सोशल मीडिया का आज कितना प्रभाव है इस केस से पता चलता है।

चीनी रैपिड टेस्ट किट फेल

गुणवत्ता के दावों के साथ चीन से आई रैपिड टेस्ट किट पहली नजर में फेल होती दिख रही है। इस किट से मिले नतीजों में 6 से 71 प्रतिशत तक अंतर है। किट की गुणवत्ता की जांच के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने अपने आठ संस्थानों के सदस्यों को फील्ड में भेजने का फैसला किया है। यह सदस्य गड़बड़ी की शिकायत वाले इलाकों में जाएंगे और वहीं रैपिड टेस्टिंग किट की जांच करेंगे। पिछले हफ्ते ही चीन से 6.5 लाख रैपिड टेस्टिंग किट आई थी। कोरोना वायरस की जांच का सबसे बड़ा हथियार मानी जा रही रैपिड टेस्ट किट फेल हो गई है। राजस्थान में मंगलवार को इस पर रोक लगा दी। राजस्थान ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जयपुर के एसएमएस में भर्ती कोरोना के 100 मरीजों की इस रैपिड टेस्ट किट से जांच की गई जिसमें सिर्प पांच ही पॉजिटिव मिले। इसे देखते हुए फैसला लिया गया है। इतना ही नहीं 10 लाख में से शेष 8 लाख रैपिड किट की खरीद भी रोक दी गई है। इन किट्स की एक्यूरेसी (शुद्धता) 90 प्रतिशत होनी चाहिए थी लेकिन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार सिर्प 5.4 प्रतिशत ही आ रही है। यानि कई संक्रमितों को भी यह नेगेटिव बता रही है। उन्होंने बताया कि सरकार ने आईसीएमआर को लिखा है कि हम किट लौटाएंगे। उधर आईसीएमआर ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वह अगले 2 दिन तक कोरोना रैपिड टेस्ट किट का इस्तेमाल न करें। आईसीएमआर के आर. गंगाखेड़कर ने कहा कि रिजल्ट में बहुत भिन्नताएं आ रही थीं, इसके चलते अब आईसीएमआर के 8 इंस्टीट्यूट की टीमों द्वारा मौके पर ही किट का परीक्षण करने के बाद 2 दिनों में एडवाइजरी जारी की जाएगी। आईसीएमआर को पश्चिम बंगाल से भी रैपिड किट की शिकायत मिली थीं। यह किट चीन से मंगवाई गई थीं। चीन से भेजी जा रही टेस्टिंग किट, मास्क और अन्य मेडिकल उपकरणों की गुणवत्ता सवालों में घिर गई है। इससे पहले स्पेन और तुर्की भी टेस्टिंग किट से सही नतीजे न आने की शिकायत करते हुए इसे वापस कर चुके हैं। वहीं नीदरलैंड ने भी अपने कर्मचारियों के लिए 6 लाख मास्क मंगवाए थे। दावा किया गया था कि यह मास्क उच्च गुणवत्ता के हैं, लेकिन नीदरलैंड के मुताबिक कई मास्क साइज में छोटे थे तो कई के फिल्टर ठीक नहीं थे। इसलिए इन सभी मास्कों को चीन को वापस भेज दिया गया है। सारी दुनिया जानती है कि चीनी माल सब स्टैंडर्ड होता है, बस सस्ता होने के कारण उसकी गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जा सकता। हम ह्यूमन लाइफ की यहां बात कर रहे हैं जिसमें कोई समझौता नहीं हो सकता।

तीन चरणों में अर्थव्यवस्था खोलेंगे ट्रंप

अमेरिका में कोरोना वायरस के कारण मरने वाले लोगों की संख्या 41,000 के पास  पहुंच चुकी है। जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक बीते 24 घंटों से संक्रमण के कारण 4491 लोगों की मौत हो चुकी है जो कोरोना के कारण एक दिन में मौतों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। कोरोना के बढ़ते कहर के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश की अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने की नई चरणबद्ध योजना पेश की। ट्रंप ने राज्यों के गवर्नरों को अपने-अपने राज्यों में पाबंदियों को हटाने पर फैसला लेने की अनुमति दी है। अभी अमेरिका की 95 प्रतिशत से अधिक आबादी अपने घरों में बंद हैं। ट्रंप ने पत्रकारों से कहा कि उनका प्रशासन नए संघीय दिशानिर्देश जारी कर रहा है जिससे गवर्नर अपने-अपने राज्यों को फिर से खोलने पर चरणबद्ध तरीके से फैसला ले सकेंगे। उन्होंने कहा कि आर्थिक दबाव के बीच लंबे समय तक  लॉकडाउन से जन स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। ट्रंप ने 18 पन्नों में पेश किया  लॉकडाउन खोलने का प्लान। पहला चरणöगैर-जरूरी यात्रा से बचें। समूहों में इकट्ठा नहीं हों। रेस्तरां, पूजा स्थल और खेल स्थल सख्त फिजिकल डिस्टेंस प्रोटोकॉल के तहत काम करें। दूसरा चरणöकोरोना वायरस के लौटने के सबूत नहीं हैं, तो गैर-जरूरी यात्रा की जा सकती है। स्कूल और छोटे बार खोले जा सकते हैं, कुछ क्षेत्र समीक्षा के बाद सामान्य रूप से पटरी पर लौट सकते हैं। तीसरा चरणöजिन राज्यों में मामले घट रहे हैं, वह फिजिकल डिस्टेंसिंग के साथ सार्वजनिक स्थानों को खोल सकते हैं। केयर होम जाने या अस्पतालों में मरीजों को देखने जाने की छूट दी जा सकती है। बता दें कि अमेरिका में कोरोना वायरस का प्रकोप झेल रहे अमेरिका में संक्रमण मामले शुक्रवार को 7,00,000 का आंकड़ा पार कर गए हैं जबकि 35,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अमेरिका में ऐसे लोग भी कम नहीं हैं जो राष्ट्रपति ट्रंप के लॉकडाउन प्लान का विरोध कर रहे हैं। कुछ राज्य समर्थन भी कर रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली में बड़ा कम्यूनिटी ट्रांसमिशन का खतरा

दिल्ली में विकराल हो रहे कोरोना वायरस का प्रकोप अब समुदाय में फैलने लगा है यह चिन्ता की बात है। जहांगीरपुरी इलाके में एक परिवार और उससे जुड़े 26 लोगों का संक्रमित होना व तुगलकाबाद में एक ही गली के 35 कोरोना पॉजिटिव मरीज का मिलना ऐसी खतरे की घंटी है, जिसका संज्ञान हम सबको लेना चाहिए। 21 दिन के लॉकडाउन के बाद भी दिल्ली की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। तिलक नगर में भी 21 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग की मानें तो 14 दिन के लिए बढ़ाए गए लॉकडाउन के दौरान यदि ऐसे मामले आते रहे तो समस्या और बढ़ेगी। तुगलकाबाद एक्सटेंशन की गली नम्बर 26 में करीब 93 लोगों के टेस्ट करवाए गए थे। इस टेस्ट की रिपोर्ट में 35 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं जिसके बाद पूरे इलाके को सील कर दिया गया है। विभाग के अधिकारी ने बताया कि इस गली में सबसे छोटी मरीज एक साल की लड़की है। फिलहाल उसके सैंपल नहीं लिए गए। यहां पांच साल से 61 साल तक के मरीज कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। फिलहाल इलाके को सील कर दिया गया है। बता दें कि जहांगीरपुरी में के-सी ब्लॉक में एक ही परिवार के 31 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए थे। अधिकारियों ने सभी लोगों को नरेला स्थित क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया है। जाहिर है कि कोरोना संक्रमण का प्रसार नहीं होना चाहिए। किन्तु यदि सील होने के बावजूद आप सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करेंगे तो फिर कोरोना कभी भी और किसी  समय आपको ग्रसित कर लेगा। वह ऐसे लोग हैं, जिनके घर एक-दूसे से लगे हैं। वह आपस में मिलते रहे, एक-दूसरे के घर भी आते-जाते रहे। सरकार द्वारा किसी क्षेत्र को हॉटस्पॉट घोषित कर उसे सील कर देना ही पर्याप्त नहीं है। हालांकि सील किए गए क्षेत्रों में किसी को बाहर जाने की अनुमति नहीं है। वहां पुलिस या अन्य सामाजिक संस्थाएं उनके लिए आवश्यक सामानों की आपूर्ति कर रही हैं। दुखद पहलू यह भी है कि थोड़ी-सी छूट सामान लेने की भी लोग मिलने-जुलने में कर रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा रहे हैं। इसे हर हाल में रोकना होगा। दिल्ली में कोरोना का मुकाबला अच्छे से चल रहा था। पहले निजामुद्दीन ने इसे बिगाड़ा अब जहांगीरपुरी व तुगलकाबाद जैसे इलाकों ने सरकार की कोशिशों पर पानी फेर दिया। यह संभव नहीं है कि अधिकारी किसी मोहल्ले के एक-एक घर पर नजर रखें, पड़ोसियों के आपस में मिलने-जुलने को रोक पाएं। जहांगीरपुरी की घटना यह बताती है कि ऐसा न किए जाने से स्थिति कितनी विस्फोटक हो सकती है। कल्पना कीजिए कि अगर दिल्ली की कई सारी गलियों में एक साथ ऐसा हो जाए तो फिर कितनी विस्फोटक स्थिति बनेगी? एक जिम्मेदार नागरिक के नाते हम सबको भी समझना होगा कि हमारी, हमारे परिवार, रिश्तेदार सबकी जिंदगी का सवाल है। जब तक हमें खुद को इस बात का एहसास नहीं होगा तब तक कोरोना पर विजय पाना मुश्किल हो जाएगा। नियमों का सख्ती से पालन करें।

पालघर लिंचिंग ः मामले की तह तक पहुंचना जरूरी

महाराष्ट्र के पालघर के गढ़चिंचली इलाके में दो साधुओं सहित तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या की घटना ने देश को चौंका दिया है। गुरुवार को करीब 200 लोगों की भीड़ ने चोर के शक में दो संतों और उनके ड्राइवर को लाठी-डंडे से पीट-पीटकर मार डाला। इस मॉब लिंचिंग में मारे गए लोगों की  पहचान सुशील गिरी महाराज, चिकने महाराज कल्पवरुक्षगिरी और ड्राइवर नीलेश तेलगाड़े के तौर पर हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक दोनों साधु पालघर के  गढ़चिंचली गांव में जब इंटिरयर रोड से होते हुए मुंबई से गुजरात की ओर जा रहे थे तभी किसी ने अफवाह उड़ा दी कि कुछ चोर भाग रहे हैं। इसके बाद दर्जनों लोगों की भीड़ उनके ऊपर टूट पड़ी। बताया जाता है कि यह पूरी घटना वहां मौजूद पुलिस कर्मियों के सामने हुई लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया। कुछ न करना तो अलग  बात है लेकिन जब भीड़ संतों को डंडों से मार रही थी तो पुलिस वाला वहां से भाग गया। पालघर में साधुओं की हत्या के  बाद संत समाज में काफी गुस्सा स्वाभाविक है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इस मामले में सभी आरोपियों को सजा नहीं दिलाई गई तो महाराष्ट्र में बड़ा आंदोलन होगा। इस मामले में भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने ट्वीट करते हुए कहा है कि सभी आरोपियों पर रासुका लगाया जाना चाहिए। राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने रविवार को जांच के आदेश दिए जाने की जानकारी देते हुए इस घटना को कोई सांप्रदायिक रंग नहीं देने की भी चेतावनी दी। सीएम ठाकरे ने बताया कि यह सही है कि साधुओं के साथ घटना महाराष्ट्र के पालघर में हुई। लेकिन गढ़चिंचली इलाका जिला मुख्यालय से करीब 110 किलोमीटर दूर केंद्र शासित राज्य दादरा-नगर हवेली से चन्द मीटर दूर है। दोनों साधु लॉकडाउन की वजह से दुर्गम रास्ते से गुजरात जा रहे थे। दादरा-नगर हवेली बॉर्डर पर साधुओं को रोका गया और लौटा दिया गया। वापसी में गढ़चिंचली के अत्यंत दुर्गम इलाके से वह गुजर रहे थे। वहां गलतफहमी में इन पर हमला हुआ और भीड़ ने हत्या कर दी। यदि उस रात दादरा-नगर हवेली के बॉर्डर पर उन्हें रोक लिया गया होता और सुबह महाराष्ट्र पुलिस को सौंपा होता तो यह घटना नहीं घटती। ठाकरे ने बताया कि जिस गांव में घटना घटी, वहां कुछ दिनों से रात के वक्त चोरों के घूमने की अफवाह फैली हुई थी। अब तक 5 प्रमुख हमलावरों सहित 101 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका है और भी गिरफ्तारियां हो रही हैं। 250 से ऊपर फरार हैं। थाने के असिस्टेंट इंस्पेक्टर आनंद राव काले और सब-इंस्पेक्टर सुधीर कटारे को निलंबित कर दिया गया है। पुलिस की भूमिका की भी जांच हो रही है। यह भी पता लगाया जा रहा है कि लॉकडाउन के बीच तीनों साधु यात्रा कैसे कर रहे थे?

Wednesday 22 April 2020

मरकज कार्यक्रम में शामिल रोहिंग्या कहां गए?

देश में जारी कोरोना के कहर के बीच गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक चिट्ठी लिखी है। इसमें कहा गया है कि ऐसी रिपोर्ट है कि निजामुद्दीन मरकज शिविर में तबलीगी जमात के लोगों के साथ कुछ रोहिंग्या भी शामिल हुए थे। राज्यों के चीफ सेकेटरी, डीजीपी और दिल्ली पुलिस कमिश्नर को लिखी चिट्ठी में कहा गया है कि ऐसी रिपोर्ट है कि रोहिंग्या मुस्लिम तबलीगी जमात के धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। ऐसी संभावना है कि वह कोरोना संक्रमित हो सकते हैं। हैदराबाद के कैंप में रहने वाले रोहिंग्या हरियाणा के मेवात में आयोजित तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और वह निजामुद्दीन मरकज भी गए थे। गृह मंत्रालय ने अपनी चिट्ठी में आगे लिखा है, ठीक उसी तरह दिल्ली के श्रम विहार और शाहीन बाग में रहने वाले रोहिंग्या भी तबलीगी जमात के कार्यक्रम में गए थे, जो अपने कैंपों में वापस नहीं आए हैं। मंत्रालय ने कहा है कि इसके अलावा तबलीगी जमात के कार्यक्रम में भाग लेने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों की उपस्थिति पंजाब के डेरा बस्सी और जम्मू में होने की भी खबर है। इसलिए रोहिंग्या मुस्लिम और उनके संपर्प में आए लोगों की क्रीनिंग जरूरी है। राज्यों को इस दिशा में जरूरी कदम जल्द से जल्द उठाना चाहिए। बता दें कि दिल्ली में कोरोना संक्रमित कुल मामलों में से 63 प्रतिशत मरकज निजामुद्दीन तबलीगी जमात कार्यक्रम से जुड़े हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि 23 राज्यों में जमात के कार्यक्रम की वजह से कोरोना के मरीज दिल्ली में बढ़े। दिल्ली में 63 प्रतिशत मरीज इसी कार्यक्रम से जुड़े हैं।

-अनिल नरेन्द्र

दस्तावेज बताते हैं कि चीन कोरोना की जानकारी छिपाता रहा

अमेरिकी नागरिक कोरोना वायरस के कारण हुई मौत और आर्थिक नुकसान के लिए हर्जाना हासिल करने के लिए संघीय अदालत में चीन पर मुकदमा कर सकेंगे। अमेरिका के दो सांसदों ने गुरुवार को कांग्रेस में ऐसा विधेयक पेश करने की घोषणा की जिसमें चीन पर मुकदमे का प्रावधान है। विधेयक को सीनेट में टॉम कॉटन और प्रतिनिधि सभा में डैन केन शॉ ने पेश किया। यह कानून में तब्दील हुआ तो महामारी से निपटने में चीन द्वारा हुए नुकसान के लिए विदेशी संप्रभु प्रतिरक्षा अधिनियम में संशोधन करेगा। इससे अमेरिका को चीन पर मुआवजे के लिए मुकदमा करने का अधिकार मिल जाएगा। कॉटन ने कहा कि कोरोना के बारे में दुनिया को आगाह करने की कोशिश करने वाले डॉक्टरों और पत्रकारों को चुप कराकर चीन ने विषाणु को फैलने दिया। दरअसल चीन कोरोना वायरस की जानकारी बहुत दिनों तक दुनिया से छिपाता रहा था। चीन की शीर्ष एजेंसी (स्वास्थ्य) ने 14 जनवरी को प्रांतीय अधिकारियों को बताया था कि वायरस से वह महामारी जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं। तब भी उसने छह दिनों तक दुनिया को सतर्प नहीं किया। आंतरिक दस्तावेजों में बताया गया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने गुप्त रूप से महामारी से निपटने की तैयारियों के आदेश दिए जबकि राष्ट्रीय टेलीविजन पर उन्होंने महामारी के फैलने को तवज्जो नहीं दी। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सातवें दिन 20 जनवरी को लोगों को आगाह किया। पूर्व प्रभावी संक्रमण आंकड़ों के मुताबिक तब तक करीब एक हफ्ते की चुप्पी के कारण तीन हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके थे। चीन के रोग नियंत्रण केंद्र ने स्थानीय अधिकारियों से प्राप्त किसी मामले को रजिस्टर नहीं किया। 5 से 17 जनवरी के दौरान अस्पतालों में सैकड़ों रोगी भर्ती हो रहे थे, जो न केवल वुहान में बल्कि पूरे देश में ऐसा हो रहा था। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने बुधवार को चीन से कोविड-19 की सच्चाई की मांग दोहराई। पोम्पियो ने कहा कि अब भी वक्त है, चीन को इसकी पूरी सच्चाई साझा करनी चाहिए कि वुहान में कोरोना वायरस महामारी कैसे शुरू हुई? अमेरिकी एजेंसियां इसकी जांच शुरू कर चुकी हैं। पोम्पियो ने कहाöहम जो जानते हैं वह यह है कि यह वायरस चीन के वुहान में उत्पन्न हुआ था। हम यह भी जानते हैं कि वो मार्केट जहां थी, वहां से कुछ ही मील की दूरी पर वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजी है। गहराई से जानने के लिए अभी बहुत कुछ बाकी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका यह सत्यापित कर रहा है कि कोरोना पहली बार उस गलती से मनुष्य में गया, जो वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजी लैब में चमगादड़ों के साथ प्रयोग के दौरान हुई थी। मामला बहुत संगीन है, चीन को साफ-साफ बताना होगा कि इस महामारी के फैलने में उसकी भूमिका क्या थी?

सिर्प एक महीने की ट्यूशन फीस ले सकते हैं

हम दिल्ली सरकार के इस फैसले का तहेदिल से स्वागत करते हैं जिसमें उन्होंने साफ कहा है कि बिना सरकार की अनुमति के बच्चों की स्कूल फीस आप नहीं बढ़ा सकते। यही नहीं, स्कूल तीन माह की फीस एक साथ वसूलने के बजाय अब एक-एक महीने की फीस ले सकेंगे। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने डिजिटल प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि सभी प्राइवेट स्कूलों को आदेश दिया गया है कि वह सरकार से बिना अनुमति लिए स्कूल फीस नहीं बढ़ा सकते हैं। स्कूल तीन-तीन महीने की फीस एक साथ वसूलने की बजाय अब सिर्प महीनेवार ट्यूशन फीस ही वसूल सकेंगे। यह स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा ट्रांसपोर्ट फीस, वार्षिक शुल्क या कोई अन्य शुल्क भी नहीं वसूल सकेंगे। फीस न जमा करने पर स्कूल किसी छात्र को ऑनलाइन क्लास की सुविधा से वंचित भी नहीं कर सकते। इसके साथ ही सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि इन आदेशों का पालन न करने वाले निजी स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। निश्चित रूप से अभिभावकों के लिए यह आदेश राहत प्रदान करेगा, सिसोदिया ने कहा कि कोरोना की वजह से मुख्य रूप से आर्थिक और शिक्षा के सेक्टर ज्यादा प्रभावित हुए हैं। आर्थिक स्तर पर भी बहुत सारे काम हो रहे हैं। शिक्षा के मामले में दिल्ली सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दी हैं। उसमें आईफोन और ऑनलाइन समेत कई माध्यमों से कक्षाएं ली जा रही हैं। साथ ही और कदम उठाने की तैयारी है। सिसोदिया ने कहा कि प्राइवेट स्कूल दिल्ली समेत पूरे भारत में कंपनियों द्वारा नहीं संचालित किए जाते हैं, बल्कि एक ट्रस्ट/संस्थाओं द्वारा संचालित किए जाते हैं। दिल्ली सरकार को कई जगह से शिकायत मिल रही है कि कुछ स्कूल बढ़ाचढ़ा कर फीस मांग रहे हैं। सरकार की अनुमति लिए बिना बहुत से स्कूलों ने फीस बढ़ा दी है। कई स्कूलों ने पूरे-पूरे क्वार्टर की फीस मांग रखी है। शिकायत मिली है कि किसी छात्र ने फीस नहीं दी है तो उनकी ऑनलाइन क्लासें बंद करा दी हैं। सिसोदिया ने कहा कि इन शिकायतों के बाद सीएम ने फैसला किया है कि किसी भी प्राइवेट हो चाहे वह सरकारी जमीन पर चल रहा हो या निजी जमीन पर चल रहा है, उसको फीस बढ़ाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। सरकार से पूछे बिना कोई स्कूल फीस नहीं बढ़ा सकता है। कोई भी स्कूल तीन महीने की फीस नहीं मांगेगा। स्कूल सिर्प ट्यूशन फीस की मांग करेगा। वह भी महीनेवार लेंगे। मौजूदा हालात में यदि कोई अभिभावक फीस नहीं दे पाता तो छात्र को ऑनलाइन शिक्षा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और न ही स्कूल द्वारा उस छात्र या अभिभावक पर फीस के लिए दबाव बनाया जाना चाहिए। सभी स्कूलों को यह कोशिश करनी चाहिए कि इस मुश्किल समय में बच्चों को पढ़ाई से वंचित न किया जाए। सरकार के आदेशों का उल्लंघन करने पर स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

Tuesday 21 April 2020

समस्या होम डिलीवरी ब्वॉय की

15 अप्रैल से शुरू हुए लॉकडाउन-2 के दौरान सरकार ने 20 अप्रैल से कई सेवाओं में राहत देने का फैसला किया था। छूट वाली श्रेणी में ई-कॉमर्स वाली कंपनियों को भी शामिल किया गया है। यह कंपनियां होम डिलीवरी की सेवाएं देती हैं। मगर जिस तरह से हाल में दिल्ली में पिज्जा डिलीवरी ब्वॉय कोरोना पॉजिटिव मिला, वह चिंता का विषय जरूर है। लॉकडाउन के दौरान आप घर में ही रहते हैं, कहीं बाहर नहीं जाते, लिहाजा सोशल डिस्टेंसिंग तो अपने आप हो जाता है। जब आप बाहर ही नहीं निकलोगे तो किसी के साथ सामाजिक मेलजोल का सवाल ही नहीं उठता। पर घर बैठे-बैठे अगर बच्चों ने पिज्जा मंगवा  लिया और यही आपकी मौत का कारण बन जाए तो इसमें आपकी क्या गलती है? हुआ यही कि दिल्ली की एक कॉलोनी में उन्होंने पिज्जा का ऑर्डर फोन से दिया। पिज्जा उनके घर पर डिलीवर हो गया। उस पिज्जा ब्वॉय को कोरोना था। उसे भी शायद यह पता नहीं होगा। इससे जहां-जहां उसने पिज्जा डिलीवर किया वहां-वहां कोरोना संक्रमित होने का अंदेशा हो गया। लिहाजा एक पिज्जा डिलीवरी ब्वॉय की वजह से 72 परिवार जो उसके संपर्प में आए थे वह क्वारंटीन हो गए। पिज्जा ब्वॉय के कोरोना पाए जाने के बाद कई कॉलोनियों ने अपने स्तर पर कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। जैसे कि डिलीवरी ब्वॉय के हाउसिंग सोसाइटी में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। बहुत-सी कॉलोनियों में तो बैरिकेड लगा दिए गए हैं। अगर किसी का सामान आता है तो वह खुद बैरिकेड तक जाकर अपना सामान ले रहे हैं। हम सुंदर नगर में रहते हैं। हमारी आरडब्ल्यूए ने यही इंतजाम किया हुआ है। गेट के अंदर कॉलोनी में किसी भी डिलीवरी ब्वॉय को आने की इजाजत नहीं है। सामान अगर आता है तो हमारे घर का कोई आदमी गेट पर जाता है और वहीं सामान कलैक्ट कर लेता है। वहीं स्थानीय लोगों को पुलिस और आरडब्ल्यूए समझा रहे हैं कि वह स्थानीय सब्जी-फल विकेताओं से ही खरीददारी करें। कुछ कॉलोनियों ने स्थानीय विकेताओं की पहचान कर 100 से अधिक टोकन वितरित किए हैं। खरीददारी के लिए सुबह 7 से 12 बजे और शाम 5 से रात 9 बजे तक समय निर्धारित किया है। ऐसे ही कई अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि इस सख्ती से लॉकडाउन का पालन करने में मदद मिल रही है। आप भी कोई जोखिम न उठाएं। पार्सल को सेनिटाइज जरूर कर लें। सेफ रहें सुरक्षित रहें।

-अनिल नरेन्द्र

मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी पर कसता शिकंजा

निजामुद्दीन स्थित तबलीगी मरकज में धर्म के नाम पर चल रही देश विरोरधी गतिविधियों की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। लॉकडाउन से पहले मरकज के खातों में विदेश से बेशुमार दौलत आई थी, ऐसा कहा जा रहा है। तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा प्रीवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट यानि हवाला कानून के तहत मामला दर्ज किए जाने के साथ उन पर कानूनी शिकंजा और कस गया है। सूत्रों के मुताबिक निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मरकज पर कार्यक्रम से पहले बैंकों की ओर से एक अलर्ट जारी किया गया था। यह अलर्ट इसलिए जारी किया गया था, क्योंकि मरकज के एकाउंट में अचानक से कैश फ्लो तेजी से बढ़ा था। बैंक ने अपने अलर्ट में कहा था कि मरकज के एकाउंट में अचानक कैश फ्लो बढ़ गया है। यह पैसा विदेशों से आ रहा है। बैंक के अधिकारियों ने जमात के अमीर मौलाना साद से मुलाकात करने की कोशिश भी की, लेकिन वह नहीं मिला। इसके पीछे के कारणों को जानने और बैंक अलर्ट को नजरंदाज करने के मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जमात के एकाउंटेंट्स से जवाब मांगा है। वहीं मरकज के बैंक खातों को लेकर ईडी ने शिकंजा कसते हुए मुकदमा दर्ज कर लिया है। वस्तुत दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी की जांच के दौरान पता चला कि 13-15 मार्च तक हुए विशेष आयोजन से पहले जमात के बैंक खातों में विदेश से बहुत बड़ी रकम आई थी। जाहिर है कि साद की जो हैसियत रही है, उनमें बैंक के निर्देश की अवहेलना हुई। बैंक अधिकारियों ने समय मांगा, लेकिन व्यस्तता का हवाला देकर मौलाना साद ने मिलने से मना कर दिया। हालांकि बैंक प्रबंधन ने खाते से लेनदेन पर रोक नहीं लगाई। पुलिस ने भी बैंक से जानकारी लेकर जमात के सीए को नोटिस देकर जवाब मांगा है। चूंकि अब साद से पूछताछ हो रही है तो संभव है कि जानकारियां सामने आएं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मौलाना मोहम्मद साद की कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं। पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी, जिसमें अब गैर-इरादतन हत्या का मामला भी जुड़ गया है तथा हवाला मामले को एक साथ देखने की जरूरत है। प्रवर्तन निदेशालय के आ जाने का मतलब है कि उनकी देश-विदेश की संपत्तियों का खुला चिट्ठा खुलेगा। उधर मौलाना साद और तबलीगी जमात से जुड़े विदेशी नागरिकों पर पुलिस ने शिकंजा कसने की तैयारी कर ली है। पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव ने क्राइम ब्रांच को निर्देश दिया है कि तबलीगी जमात से जुड़ा कोई भी विदेशी नागरिक क्राइम ब्रांच की जानकारी के बगैर देश छोड़कर जाना नहीं चाहिए। गौरतलब है कि जमात से जुड़े 1309 विदेशी थे, इनमें से 225 दिल्ली में ही थे। वहीं बृहस्पतिवार को ईडी ने भी मौलाना साद के खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर लिया है। सूत्रों का कहना है कि मौलाना साद बार-बार अपना निवास स्थान बदल रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि मौलाना साद प्राइवेट डॉक्टर के संपर्प में था और कोरोना जांच भी करवाई थी। हालांकि उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आई है, ऐसा दावा किया जा रहा है। साद पर शिकंजा कसता जा रहा है। पकड़े जाने पर कई राज खुलेंगे।

अपने देश से कहीं ज्यादा सुरक्षित हम भारत में हैं

पिछले दिनों खबर आई थी कि भारत में काम करने वाले विदेशी कोरोना महामारी के चलते भारत में ही फंस गए हैं। उनके देशों के प्रशासन व सरकारें उन्हें वापस अपने देश ले जाना चाहती हैं। हजारों की संख्या में फंसे अमेरिकियों को स्वदेश ले जाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने पूरी व्यवस्था कर ली पर अमेरिकियों ने स्वदेश लौटने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि हम घर नहीं लौटना चाहते क्योंकि हम भारत में ही ज्यादा सुरक्षित हैं। अब खबर आई है कि लॉकडाउन के पहले उदयपुर आए विदेशी पर्यटकों में से 15 देशों के 74 पर्यटक अलग-अलग होटलों में ठहरे हैं। इनमें से कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के पर्यटकों ने कहा है कि मौजूदा स्थिति में वह अपने देश से कहीं ज्यादा सुरक्षित भारत या उदयपुर में हैं। हालांकि उनके देश और दूतावास जो फैसला लेंगे, उसे मानना पड़ेगा। लेकिन व्यक्तिगत रूप से लॉकडाउन के बाद भी उदयपुर से जाने की जल्दबाजी नहीं करेंगे। यह पर्यटक मार्च में उदयपुर पहुंचे थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण फ्लाइटें बंद हो जाने से वापस नहीं जा पाए। हालांकि कुछ पर्यटक ऐसे भी हैं जो अपने देश लौटना चाहते हैं, जिसके लिए उच्चस्तरीय बात चल रही है। पर्यटन विभाग की डिप्टी डायरेक्टर शिखा सक्सेना का कहना है कि जिन देशों की रेस्क्यू फ्लाइट के बारे में जानकारी आ रही है, उससे संबंधित पर्यटकों को बताया जा रहा है। अगर वह जाना चाहते हैं तो उन्हें यहां से रेस्क्यू कराया जा रहा है। कुछ वीजा एक्सटेंड की प्रोसेस पूछ रहे हैं। 49 रेस्क्यू पर्यटकों के अलावा अभी किसी की रेस्क्यू फ्लाइट की जानकारी नहीं आई है। मैल्कम रेमंड, निकोला फ्लोरेसे और कैथरीन मैरी ब्रिटेन से यह तीनों 20 मार्च को उदयपुर आए थे और लेक पिफेनला होटल में हैं। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में हालत नाजुक है। परिवार के सदस्यों से रोज वीडियो कॉल पर बात होती है। ब्रिटिश सरकार जो फैसला लेगी उसका पालन करेंगे। हालांकि वहां से ज्यादा सुरक्षित हम भारत में हैं। होटल स्टॉफ हमारा पूरा ध्यान रख रहा है। फ्रांस की जैकलिन मरिया करीब एक माह से गज विलास होटल में ठहरी है। उन्होंने कहाöमैं जानती हूं कि कोरोना से फ्रांस की हालत बिगड़ी हुई है। मैं यहां ज्यादा सुरक्षित हूं और हालात स्थिर होने के बाद ही यहां से जाना चाहूंगी। अमेरिका की जस्टिन 24 मार्च से उदयपुर में हैं। कहती हैंöअमेरिका से ज्यादा सुरक्षित उदयपुर है। यहां लोग संक्रमण को रोकने में मदद कर रहे हैं। वह घर में हैं और दूसरों से दूर भी, मुझे भी यही तरीका सुरक्षित लग रहा है।

Saturday 18 April 2020

स्कूल-कॉलेजों में पसरा सन्नाटा

कोरोना वायरस के कारण स्कूलों-कॉलेजों एवं शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने से दुनिया के 191 देशों के 157 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हो गई है, जो विभिन्न स्तरों पर दाखिला लेने वाले कुल छात्रों का 91.3 प्रतिशत है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अध्ययन में सामने आई है। इसमें कहा गया है कि स्कूल बंद होने का सबसे अधिक वंचित तबके के छात्रों एवं लड़कियों पर ज्यादा पड़ा है। यूनेस्को की कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने की वैश्विक निगरानी अध्ययन के अनुसार 14 अप्रैल 2020 तक अनुमानित रूप से 191 देशों में 1,575,270,054 छात्र (लर्नर) प्रभावित हुए हैं।। इसमें लड़कियों की संख्या 74.3 करोड़ है। इसमें कहा गया है कि रूस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, ग्रीनलैंड सहित कई देशों में स्थानीय या क्षेत्रवार (पूर्ण बंदी) स्तर पर पूर्ण बंदी हो गई है और इन देशों में भी लाखों छात्रों का पठन-पाठन प्रभावित हुआ है। अध्ययन में हालांकि इन देशों का आंकड़ा शामिल ही है। यूनेस्को के अध्ययन के अनुसार भारत में कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के कारण अनुमानित रूप से 32 करोड़ छात्रों का पठन-पाठन प्रभावित हुआ है जिसमें 15.81 करोड़ लड़कियां और 16.25 करोड़ लड़के शामिल हैं। यूनेस्को के बयान के अनुसार संगठन प्रभावित देशों में स्कूलों के बंद होने के कारण उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के प्रयास, खासतौर पर वंचित समुदाय की मदद और दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से पढ़ाई जारी रखने के प्रयासों में भी देशों का सहयोग कर रहा है। यूनेस्को के आंकड़ों के मुताबिक चीन में 27.84 करोड़ छात्र, ईरान में 1.86 करोड़ छात्र, इटली में करीब एक करोड़ छात्र, जर्मनी में 1.53 करोड़, फ्रांस में 1.54 करोड़, स्पेन में 97 लाख छात्र, ब्रिटेन में 1.54 करोड़ छात्र कोविड-19 के कारण स्कूल या शिक्षण संस्थान बंद होने के कारण प्रभावित हुए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

डब्ल्यूएचओ ने रमजान पर जारी की एडवाइजरी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस कोविड-19 के मद्देनजर अगले सप्ताह से शुरू हो रहे रमजान के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। संगठन ने कहा है कि जहां तक संभव हो धार्मिक आयोजन और समूह एकत्र होने से बचें। इसके बदले आयोजनों के लिए इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों का इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि आयोजन किया भी जाता है तो इनमें शामिल होने वालों की संख्या बेहद कम हो और सामाजिक दूरी तथा स्वच्छता के नियमों का पालन हो। मुस्लिम कैलेंडर के रमजान का पवित्र महीना 24 अप्रैल से शुरू हेने वाला है। पूरे महीने मुस्लिम समुदाय के लोग दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को एक साथ इफ्तार में शामिल होकर रोजा खोलते हैं। साथ ही मस्जिदों में जाकर एक साथ नमाज पढ़ने की भी परंपरा है। दिशानिर्देशों में कहा गया है कि हर हाल में लोगों के बीच कम से कम एक मीटर की आपसी दूरी रखी जानी चाहिए। साथ ही इफ्तार के दौरान पहले से पैक खाने में अलग-अलग पैकेट देने की व्यवस्था करनी चाहिए। वजू के लिए पानी और साबुन की पर्याप्त व्यवस्था रखी जाए। उसने सलाह दी है कि मस्जिदों में नमाज पढ़ते समय बैठने के लिए हर व्यक्ति को अपनी-अपनी चटाई लाने की कोशिश करनी चाहिए। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि उपवास के कोरोना वायरस से किसी प्रकार के संबंध के बारे में कोई अध्ययन नहीं है, लेकिन लोगों को अपना स्वास्थ्य बनाए रखना चाहिए। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी यही अपील की है। नकवी ने सभी राज्य वक्फ बोर्डों के अधिकारियों से कहा कि रमजान के पवित्र महीने में इबादत, इफ्तार, तराबी एवं अन्य धार्मिक गतिविधियों में केंद्रीय गृह मंत्रालय, राज्य सरकारों एवं सेंट्रल वक्फ काउंसिल के दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित कराने में सक्रिय भूमिका निभाएं। नकवी ने कहा कि कोरोना की चुनौतियों के मद्देनजर देश के सभी मंदिरों, गुरुद्वारों, चर्चों एवं अन्य धार्मिक-सामाजिक स्थलों पर भीड़भाड़ वाली सभी धार्मिक-सामाजिक गतिविधियां रुकी हुई हैं।

चंद जोकरों की वजह से फैल रहा है कोरोना

कोरोना वायरस से लोगों को बचाने के लिए अभिनेता सलमान खान लगातार जागरुकता फैलाने में लगे हैं। गुरुवार को उन्होंने 10 मिनट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। इसमें उन्होंने पुलिस, डॉक्टर और नर्सों पर पत्थर फेंकने को बेवकूफ भरा कदम बताया। कहाöचंद जोकरों की वजह से यह बीमारी फैल रही है। उन्होंने आगाह किया कि दुआ करो कि लोगों को समझाने के लिए कहीं मिलिट्री न बुलानी पड़े। पढ़िए उनके संदेश से संपादित अंशöयह बिग बॉस की शुरुआत नहीं है। यह जिंदगी का बिग बॉस शुरू हो गया है। कुछ लोग हैं, जो नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। पहले ऐसा लगा कि फ्लू है खत्म हो जाएगा। जल्दी ही घर चले जाएंगे। फिर लॉकडाउन हुआ। मामला गंभीर हो गया। सरकार ने सिर्प इतना ही कहा है कि बाहर मत निकलो, सोशल गेदरिंग ने करो, दोस्तों-यारों से न मिलो, परिवार के साथ रहो। यह हम सभी के लिए कहा है। नमाज पढ़ना है तो घर पर पढ़ो, पूजा करनी है तो घर पर करो। बचपन में सीखा था कि भगवान, अल्लाह हमारे अंदर है। हां... भगवान या अल्लाह के पास जाना है? अगर परिवार के साथ जाना है तो निकलो घर से बाहर। अगर आपके एक्शन सही होते तो अब तक यह लॉकडाउन खत्म हो चुका होता और कोरोना वायरस भी। डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिस 18-18 घंटे काम कर रहे हैं। अब जो डॉक्टर, पुलिस, बैंक वाले, नर्स अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं वो आपकी जान बचाने आ रहे हैं, उन पर पत्थर बरसा रहे हो...? जो पॉजिटिव आ रहे हैं, वो अस्पताल से भाग रहे हैं, भागकर जाओगे कहां? जिंदगी की ओर या मौत की ओर भाग रहे हो? चंद लोगों की वजह से जिसके दिमाग में चल रहा है कि उन्हें कुछ नहीं होगा तो उनकी वजह से कई लोगों की जानें जाएंगी। उनकी बात मैं समझ सकता हूं, जिनके पास खाने को नहीं है। उनको मैं सलाम करता हूं। चंद जोकरों की वजह से यह बीमारी फैल रही है। इतने लोगों को कोरोना वायरस नहीं होता, सब अपने काम पर लग गए होते। हर बात के दो पहलू होते हैं, हम सब रहें या फिर कोई न रहे, शुक्रिया अदा करो पुलिस, डॉक्टरों, बैंक, नर्सों का। जिनको हुआ है उनकी रिस्पेक्ट करो। एहतियात बरतो कि यह बीमारी आगे न फैले। दुआ करो कि आपको समझाने के लिए मिलिट्री न बुलानी पड़े।

किसी को किराये की चिंता, कहीं निकाले जाने का डर

राजधानी में काफी संख्या में ऐसे छात्र हैं जो लॉकडाउन के बाद अपने घरों पर नहीं जा पाए। विभिन्न कारणों से छात्र यहीं रुके हुए हैं। कई इलाकों में पेइंग गेस्ट (पीजी) या किराये के मकान में रुके छात्रों को कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। यह छात्र खुलकर अपनी बात भी नहीं रख पा रहे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि मकान मालिक उन्हें बाहर निकाल दे। दिल्ली में काफी संख्या में बाहरी राज्यों के छात्र रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान कोई प्रतियोगी परीक्षा तो कोई विश्वविद्यालय में चलने वाली कक्षा के कारण यहीं रुक गया था। किसी को कोचिंग करनी थी तो किसी को ट्यूशन पढ़ानी थी। कोई खुद किसी स्कूल में बतौर शिक्षक काम कर रहा है। बड़ी संख्या में ऐसे युवक मुखर्जी नगर, सिविल लाइंस, मुनिरका, लक्ष्मीनगर, विजय नगर, जीटीबी नगर, बेर सराय, कमला नगर सहित अन्य इलाकों में पीजी या किराये के मकान में रहते हैं। अब कोरोना के कारण लॉकडाउन की वजह से उन्हें समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। मीडिया ने इन इलाकों में रहने वाले लोगों से फोन पर संपर्प कर उनकी परेशानियों को जानने का प्रयास किया। ज्यादातर ने मकान मालिकों की ओर से किराया देने का दबाव बनाने की बात की। वहां एक पीजी संचालक ने कहा कि वह उनके यहां रहने वाले बच्चों पर किसी तरह का दबाव नहीं बना रहे हैं। विजय नगर में पीजी का संचालन करने वाले राजपाल सिंह का कहना है कि उनके यहां कुल 400 छात्रों के रहने की व्यवस्था है। हालांकि अभी उनके यहां बस 25 बच्चे बचे हैं। ऐसे में कई छात्रों का फोन आ रहा है और वह कह रहे हैं कि हमारा सामान है, जब हम आएंगे तो किराया देंगे। सिंह ने कहा कि जो वर्तमान स्थिति है उससे हम सब वाकिफ हैं। ऐसे में हम किसी पर किराया या अन्य चीज को लेकर दबाव नहीं बना रहे हैं। पिछले दिनों कुछ डॉक्टरों की भी ऐसी ही समस्या थी। मकान मालिक कह रहे थे कि या तो किराया दो या खाली कर दो। ऐसे कठिन समय में जब पूरा देश प्रभावित है तो मकान मालिकों को थोड़ी दरियादिली दिखानी चाहिए और किराये के लिए जोर नहीं देना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

एक बार फिर प्रवासी मजदूर सड़कों पर उतरे

कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ाने की प्रधानमंत्री की घोषणा के कुछ ही घंटे बाद मुंबई और सूरत में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर सड़कों पर उतर आए, रेलवे स्टेशनों की तरफ हजारों ने कूच करना शुरू कर दिया। यह सभी लोग अपने घर जाने की जिद पर अड़ गए। वहीं महाराष्ट्र और गुजरात की सरकारें उन्हें मनाने में जुट गईं। प्रवासियों की मांग थी कि उन्हें उनके मूल स्थानों पर जाने के लिए परिवहन व्यवस्था की जाए। हालांकि बाद में महाराष्ट्र और गुजरात प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रण में बताया। मुंबई में पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार करीब 1000 दिहाड़ी मजदूर बांद्रा बस डिपो पर सड़क पर बैठ गए। दिहाड़ी मजदूर पास के पटेल नगरी इलाके में झुग्गी बस्तियों में किराये पर रहते हैं। वह मूल रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। वहीं पुलिस ने एक हजार अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। एक मजदूर ने अपना नाम बताए बिना कहा कि एनजीओ और स्थानीय निवासी प्रवासी मजदूरों को भोजन मुहैया करा रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन के दौरान अपने मूल राज्यों में वापस जाना चाहते हैं। क्योंकि लॉकडाउन में उनकी आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हुई है। सरकार को हमारे लिए व्यवस्था करनी चाहिए। अधिकारी ने कहा कि किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए विरोध स्थल पर भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है। अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों ने उनके भोजन की व्यवस्था की है। लेकिन उनमें से अधिकतर पाबंदियों के चलते हो रही दिक्कतों के चलते अपने मूल स्थानों को वापस जाना चाहते हैं। सूरत में भी सैकड़ों प्रवासी श्रमिक गांव जाने की मांग को लेकर मंगलवार को फिर से सड़क पर आ गए। पुलिस ने कहा कि प्रवासी श्रमिक सूरत शहर के वराधा इलाके में इकट्ठे हुए और सड़क पर बैठ गए। इससे पहले प्रवासी श्रमिकों ने शुक्रवार को सूरत में हिंसक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें मांग की गई थी कि उन्हें मूल स्थानों पर भेजा जाए। मजदूरों के सड़क पर आ जाने के बाद महाराष्ट्र के सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। महाराष्ट्र में पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने कहा कि यह प्रवासी मजदूर भोजन और आवास नहीं चाहते हैं, वह अपने घर जाना चाहते हैं। उधर भाजपा नेता और राज्य के पूर्व मंत्री आशीष शेलर ने कहा कि मजदूरों का विरोध यह दिखाता है कि राज्य की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार लॉकडाउन लागू करने में पूरी तरह विफल हुई हैं। वहीं भाजपा नेता किरीट सोमैया ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है। उद्धव ठाकरे सरकार इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में असफल रही है। सरकार को लोगों के लिए भरपूर व्यवस्था करनी चाहिए। हालांकि कांग्रेस विधायक जाशीन सिद्दीकी ने कहा कि इसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार नहीं है।

डॉक्टरों और पुलिस पर यह पथराव कौन करा रहा है?

यह अत्यंत दुख और चिंता का विषय है कि देश के कई हिस्सों में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए अपनी जान की बाजी लगा रहे डॉक्टरों की टीम और पुलिस पर हमले हो रहे हैं। यह हमारी समझ से बाहर है कि यह कैसे लोग हैं जो इस कठिन समय में ऐसी घिनौनी हरकतें कर रहे हैं। जो डॉक्टर उन्हीं को बचाने के लिए कोरोना की जांच करने आए हैं उन्हीं पर पत्थर बरसाना? यह कैसी प्रवृत्ति के लोग हैं जो मानवता के इन योद्धाओं पर फूल बरसाने की जगह पत्थर बरसा रहे हैं और यह एक-दो जगह पर नहीं हो रहा, देश के कई शहरों में हो रहा है। बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और बिहार के औरंगाबाद जिले में डॉक्टर और पुलिस दोनों पर हमला किया गया। दोनों ही जिलों में हुई घटना में लोगों को चोटें आई हैं। इसके अलावा बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के हरसिद्धि प्रखंड क्षेत्र में बुधवार को कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर जागरुकता फैलाने पहुंचे प्रशासनिक और स्वास्थ्य विभाग की टीम पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया। घटना में पांच लोग जख्मी हो गए। मुरादाबाद में कोरोना के कारण नागफनी के नवाबपुरा स्थित हाजी नेब वाली मस्जिद के पास रहने वाले सरताज अली की मंगलवार को मौत हो गई थी। मंगलवार को डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग की टीम सरताज से जुड़े लोगों को क्वारंटाइन करने के लिए हाजी नेब वाली मस्जिद के पास गई थी। तभी स्वास्थ्य विभाग और पुलिस वालों पर कुछ लोगों ने पथराव करना शुरू कर दिया। इन उपद्रवियों ने एम्बुलेंस और एसएचओ की गाड़ी भी तोड़ दी। हमले में डॉक्टर एससी अग्रवाल, ईएमटी पंकज सिंह, चालक मुनिराज सिंह, फार्मासिस्ट संजीव समेत पांच लोग घायल हो गए। मुरादाबाद के एसएसपी पाठक ने कहा कि शामिल लोगों की पहचान की जा रही है और आरोपियों के खिलाफ रासुका (एनएसए) के तहत कार्रवाई होगी। उधर औरंगाबाद जिले के गोह थाना के अधौनी गांव में दिल्ली से आए एक युवक की जांच के लिए पहुंचे गोह के बीडीओ, थानाध्यक्ष और मेडिकल टीम पर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें चार लोग घायल हो गए। मेडिकल टीम को लेकर गई पुलिस टीम के अलावा गोह के बीडीओ व गोह थानाध्यक्ष जान बचाकर भागे। संभल में कोरोना पॉजिटिव मामले आने पर हॉटस्पॉट बने इलाकों में लोगों ने बुधवार को हेल्थ क्रीनिंग टीम का विरोध किया। महिला कर्मचारियों से लोगों ने अभद्रता की तो नोकझोंक के हालात से महिला कर्मचारी जैसे-तैसे बैरंग लौट गए। दिल्ली के अस्पताल में भी महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों से अभद्रता का मामला सामने आया है। यह लोग कौन हैं जो इस प्रकार से डॉक्टरों और पुलिस पर हमला कर रहे हैं? क्या इसके पीछे कोई साजिश है? अगर ऐसा नहीं है तो देश के विभिन्न भागों में इस तरह का बर्ताव क्यों हो रहा है? दिल्ली में मरकज जमात के लोगों ने बड़ी तबाही मचाई है। प्रशासन को ऐसे तत्वों की पहचान करके कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए। यह लोग कोरोना के साथ-साथ मानवता के भी दुश्मन बन गए हैं। ऐसा लगता है कि कोई उन्हें ऐसा करने के लिए उकसा रहा है। हमारी समझ से बाहर है कि अगर ऐसा किया जा रहा तो आखिर क्यों? हम डॉक्टरों और पुलिस व प्रशासन का शुक्रिया करते हैं कि तमाम ओछी हरकतों के बावजूद वह अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। इन्हें हमारा सलाम।

Friday 17 April 2020

लॉकडाउन में शिकायतों में गिरावट पर दुष्कर्म अभी भी हो रहे हैं

कोरोना महामारी को रोकने के लिए जारी लॉकडाउन के बीच महिला आयोग के पास आने वाली अपराध की शिकायत में काफी गिरावट आ रही है। हालांकि दुखद बात यह है कि दुष्कर्म और पॉस्को के मामले फिर भी रिपोर्ट किए जा रहे हैं। हालांकि आयोग का कहना यह भी है कि पीड़िता डर या अपराधी से दूर जाकर शिकायत दर्ज नहीं करवा रही है। आयोग की चीफ स्वाति मालीवाल का कहना है कि जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है तब भी रेप, साइबर क्राइम, घरेलू हिंसा के मामले सामने आ रहे हैं। डीसीडब्ल्यू की तरफ से मंगलवार को 181 पर आने वाली शिकायतों को लेकर एक निष्कर्ष निकाला है। इसमें सामने आया कि छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न, पीछा करने आदि के मामलों में गिरावट आई है। आयोग को 12 मार्च और 24 मार्च के बीच प्रतिदिन छेड़छाड़ से संबंधित औसतन छह शिकायतें मिलीं, जिनकी लॉकडाउन के समय संख्या औसतन दो-तीन शिकायतें प्रतिदिन हो गई हैं। इस श्रेणी की शिकायतों की संख्या में यह 66 प्रतिशत की गिरावट है। दुष्कर्म के मामलों में भी लगभग 71 प्रतिशत की कमी आई है। आयोग को आम दिनों में जहां औसतन तीन-चार शिकायतें प्राप्त होती थीं, वो संख्या अब प्रतिदिन अधिकतम एक-दो शिकायतों पर आ गई है। आयोग के पास अपहरण के मामलों की शिकायत में भी 90 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। स्वाति मालीवाल ने बताया कि उनकी महिला हेल्पलाइन और रेप क्राइसिस सेल 24 घंटे काम कर रही है। आयोग को लॉकडाउन के दौरान हर दिन लगभग 1400 कॉल मिल रही हैं। महिला पंचायत की टीमें राशन पाने में महिलाओं और उनके परिवारों की मदद कर रही हैं, खासतौर पर जेजे कलस्टर इलाकों में। आयोग की हेल्पलाइन 181 को औसतन रोजाना 1500-1800 कॉल मिलती हैं। लॉकडाउन के दौरान 26 मार्च से 31 मार्च के बीच आयोग को सबसे ज्यादा कॉल मिलीं। 27 मार्च को 4341 कॉल, 28 मार्च को 5522 कॉल और 29 और 30 मार्च को 3000 से ज्यादा कॉल मिलीं। आयोग की चीफ स्वाति मालीवाल का कहना है कि राजधानी में अपराधों की संख्या में गिरावट आई है। फिर भी महिलाओं के साथ बलात्कार, घरेलू हिंसा, पॉस्को और साइबर क्राइम के मामले आ रहे हैं। हम टीम और पुलिस की मदद से काम कर रहे हैं। स्वाति मालीवाल ने कहा कि लॉकडाउन में भले ही अपराधों की संख्या में गिरावट आई है। लेकिन चिंता की बात है कि ऐसे कठिन समय में भी महिलाओं और लड़कियों के साथ दुष्कर्म, घरेलू Eिहसा और अन्य के खिलाफ अपराध अभी भी हो रहे हैं। हम लोगों से अपील करते हैं कि इस मुश्किल की घड़ी में थोड़ी तो मानवता दिखाएं।

-अनिल नरेन्द्र

मीडिया को आवश्यक सेवा मानें सरकारें

यूनेस्को ने कोरोना वायरस कोविड-19 संबंधी गलत सूचनाओं की महामारी को रोकने के लिए दुनिया की सभी सरकारों को सोमवार मीडिया को आवश्यक सेवा के तौर पर मान्यता देने और उसका समर्थन करने को कहा है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में संचार एवं सूचना संबंधी नीतियों एवं रणनीतियों के निदेशक गाम बर्जर न्यूज के साथ साक्षात्कार में कहाöऐसा बमुश्किल कोई इलाका बना होगा जहां कोविड-19 संकट के संबंध में गलत सूचनाएं नहीं पहुंची होंगी, यह कोरोना वायरस की उत्पत्ति से लेकर अप्रमाणित बचाव उपाय एवं इलाज से लेकर सरकारों, कंपनियों, हस्तियों और अन्य द्वारा उठाया जा रहे कदमों तक से जुड़ी हुई है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अविश्वसनीय और गलत सूचनाएं पूरे विश्व में इस हद तक फैल रही हैं कि कुछ समालोचक कोविड-19 वैश्विक महामारी से जुड़ी गलत सूचनाओं के इस नए अंबार को सूचनाओं की महामारी कह रहे हैं। बर्जर ने कहा कि यूनेस्को खासकर सरकारों से अपील कर रही है कि वह अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध न लगाएं जो स्वतंत्र प्रेस की आवश्यक भूमिका को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि पत्रकारिता को गलत सूचनाओं के खिलाफ एक ताकत के रूप में पहचाने, उस स्थिति में भी वह ऐसी प्रमाणित सूचनाएं एवं राय प्रकाशित-प्रसारित करें जो सत्ता में मौजूद लोगों को नागवार गुजरती हों। उन्होंने कहा कि यह मानने के ठोस साक्ष्य हैं कि सरकारें मीडिया को इस वक्त आवश्यक सेवा के तौर पर पहुंचाने और समर्थन दें। उन्होंने कहा कि इस वक्त जरूरत है कि सच्ची सूचना के प्रवाह को सुधारा जाए और सुनिश्चित करें कि मांग पूरी हो, बर्जर ने कहाöहम रेखांकित कर रहे हैं कि सरकारों को अफवाह को रोकने के क्रम में ज्यादा पारदर्शिता लानी होगी और सूचना के अधिकार कानून एवं नीतियों के अनुरूप सक्रियता से ज्यादा डेटा सामने रखे। आधिकारिक सूत्रों से सूचना तक पहुंच इस संकट में बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहाöहालांकि यह समाचार मीडिया द्वारा दी जाने वाली सूचना का विकल्प नहीं है इसलिए हम अधिकारियों को इस बात के लिए रजामंद करने के अपने प्रयासों को तेज कर रहे हैं कि गलत सूचना के खिलाफ जंग में सहयोगी के तौर पर मुक्त एवं पेशेवर पत्रकारिता को होने दें।

तेज गर्मी में कोरोना संक्रमण दर में कमी संभव

कोरोना वायरस का पहला मामला बीते साल दिसम्बर में चीन के वुहान शहर में सामने आया था। उसके बाद से वायरस महामारी का रूप ले चुका है और पूरी दुनिया में फैल चुका है। इसे लेकर दुनियाभर में सरकारें अपने नागरिकों को सतर्प कर रही हैं और इस वायरस के संक्रमण से बचने के लिए जानकारी साझा कर रही हैं। लेकिन इसे लेकर अफवाहों का बाजार भी गर्म है और इस कारण लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं। कई जगह इस तरह के दावे किए जा रहे हैं कि गर्मी की मदद से कोरोना वायरस खत्म किया जा सकता है। कई दावों में पानी को गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है। यहां तक कि नहाने के लिए भी गर्म पानी के इस्तेमाल की बात कही जा रही है। बीते दिनों से सोशल मीडिया पर इस तरह के दावों की भरमार है। एक पोस्ट जिसे कई देशों में हजारों लोगों ने शेयर किया है, उसमें दावा किया गया कि गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में रहने से इस वायरस को मारा जा सकता है। इस दावे में आईसक्रीम को न खाने की सलाह भी दी गई है। एयर कंडीशनर न इस्तेमाल करने को भी कहा गया है। इतनी ही नहीं, इस मैसेज के साथ फर्जी तरीके से यह भी बताया जा रहा है कि यह तमाम बातें यूनिसेफ ने कही हैं। यूनिसेफ में काम करने वाली चार्लेट गोर्निज्क ने इस तमाम दावों को सिरे से नकारते हुए इन्हें भ्रामक बताया। उन्होंने साफ कहा कि हमारे पास ऐसा कोई एविडेंस नहीं है जिससे यह दावे से कहा जा सके कि कोरोना वायरस गर्मी में मर जाता है। वहीं भारतीय सूक्ष्म जीव वैज्ञानिकों ने कहा है कि देश में तेज गर्मी पड़ने के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण की दर में कमी आ जाती है। एनआईएच और प्रोजेक्ट एप्रेक्स पर अमेरिकी सेना के लैब में काम कर चुके भारतीय माईक्रो बायोलॉजिस्ट प्रोफेसर वाई. सिंह ने बताया कि अप्रैल अंत तक 40 डिग्री से अधिक तापमान कोरोना वायरस के असर को कम कर सकता है। सीएमआईआर के इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स इंटीग्रेटिड बायोलॉजी के चीफ साइंटिस्ट रहे प्रोफेसर सिंह ने कहाöतापमान अधिक होने पर किसी भी सतह पर वायरस के जीवित रहने की अवधि कम होगी। सतह या एटोसोल के माध्यम से इंसानों में उसका संक्रमण कम होगा। लेकिन कोई संक्रमित है तो बाहर के तापमान उस पर कोई असर नहीं होगा। अमेरिका के प्रसिद्ध संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फौसी के साथ काम कर चुके प्रख्यात बायोलॉजिस्ट डॉ. अखिल सी. बनर्जी के अनुसार अगर तापमान 39 या 40 डिग्री के आसपास है तो यह वायरस को निक्रिय करने में मदद करेगा। हम तो यही मानकर चलें कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा इस मनहूस बीमारी का प्रकोप कम होता जाएगा।