लॉकडाउन के दौरान किराया देने और मकान खाली न करवाने
के दिल्ली सरकार के निर्देश के बावजूद ऐसी शिकायतें मिल रही हैं। जैसे कि किल्लत के
बीच ऐसे छात्र और मजदूर जो किराये के मकान में रहते हैं, उनसे मकान मालिक जबरदस्ती न तो मकान
का किराया वसूल सकेंगे और न ही मकान खाली करा पाएंगे। मुख्य सचिव विजय देव ने
29 मार्च को जारी एक आदेश का हवाला देकर कहा है कि ऐसे मामले सरकार की
नजर में आ रहे हैं जिनमें छात्रों से जबरदस्ती तुरन्त किराये की मांग कर रहे हैं या
फिर मकान खाली करने का दबाव बना रहे हैं। आपदा प्रबंधन कानून 2005 में मिली शक्ति का इस्तेमाल करते हुए स्टेट एग्जीक्यूटिव कमेटी के चेयरमैन
होने के नाते मुख्य सचिव विजय देव ने एक आदेश जारी करके डीएम को आदेश दिया है कि वो
जिन इलाकों में अधिक मजदूर, प्रवासी मजदूर रहते हैं या छात्र
रहते हैं वहां इस आदेश को लेकर जागरुकता अभियान चलाएं। दिल्ली के मुखर्जी नगर,
लाडो सराय, लक्ष्मीनगर, शकरपुर,
साउथ कैंपस के आसपास बड़ी संख्या में छात्र रहते हैं। इन इलाकों में
छात्रों के पास पैसे का संकट होने की दशा में मकान खाली कराने के दबाव की शिकायतें
आ रही थीं। इसी तरह दिल्ली में कई अनाधिकृत कॉलोनी औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास मजदूरों
से किराया मांगने या किराया नहीं चुकाने पर मकान खाली कराए जाने की शिकायतें आ रही
थीं। दूसरी तरफ वेस्ट दिल्ली के बुढेला, नांगलोई, निलोठी, हस्तसाल और बिंदापुर इलाकों में ज्यादातर लोगों
के लिए मकान किराये पर देना ही रोजगार है। एक और मकान मालिक नरेश का कहना है कि
53 साल हो गए हैं, बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर
के सभी खर्चे अभी तक किराये के पैसे से चलते आए हैं। इस महामारी के दौर में हमारी पूरी
कोशिश है कि किसी जरूरतमंद को परेशान न करें। उन्होंने बताया कि कई लोगों ने किराये
पर दुकानें दी हैं। एक महीने से दुकान बंद है, लेकिन बिजली-पानी का बिल तो आ रहा है, जो उन्हें देना होगा। नरेश
के मुताबिक उन्होंने किरायेदारों से कहा है कि किराया नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं।
पर बिजली-पानी का बिल तो भरना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जो भी
कमाई थी किराये से ही थी। अब सब बंद है। कमाई का और कोई जरिया भी नहीं है। सरकार को
मकान मालिकों को भी तो सुविधा देनी चाहिए। मकान मालिक दीपक ने बताया कि वेस्ट दिल्ली
लाल डोरा है। यहां पर लोगों के लिए एक तरह का रोजगार है, किराये
पर मकान देना। उन्होंने कहा कि मकान मालिकों के बारे में भी सोचना चाहिए। किराया न
मिलने से वह भी परेशान हैं। परिवार का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। उन्होंने भी
कहा कि हमें भी बिजली-पानी का बिल देना है, जब कमाई ही नहीं होगी तो कहां से बिल देंगे। कुल मिलाकर किराये को लेकर उधेड़बुन
है। दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं। किसकी दलील में ज्यादा
दम है आप ही फैसला करें।
No comments:
Post a Comment