Thursday 31 May 2018

क्या कर्नाटक का चार राज्यों के विधानसभा चुनाव पर असर होगा?

क्या कर्नाटक के चुनाव नतीजों का असर दूर तक जाएगा यह पश्न सियासी गलियारों में पूछा जा रहा है। इस साल के आखिर में होने वाले चार राज्यों के चुनावों पर भी इसका असर पड़ेगा। इनमें से तीन राज्यों मध्य पदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो भाजपा सरकारें हैं और यहां भाजपा-कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। चार राज्यों के चुनाव और ज्यादा टकराव वाले होंगे। यह चुनाव एक तरह से लोकसभा चुनावों का पूर्वाभ्यास होंगे। ऐसे में चुनावी पारा बेहद ऊपर रहेगा। कर्नाटक चुनाव में जेडीएस के मजबूती से उभरने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की सियासत में क्षेत्रीय दलें का दबदबा बढ़ना तय है। 2019 का आम चुनाव कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर लड़ना होगा। राजस्थान, मध्य पदेश और छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। कर्नाटक का भविष्य तय होने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अब ज्यादा फोकस राजस्थान पर इसलिए होगा क्योंकि सत्ता विरोधी माहौल मध्य पदेश, छत्तीसगढ़ के मुकाबले राजस्थान में ज्यादा है। हालांकि एमपी और छत्तीसगढ़ में भी इसी साल चुनाव होना है पर इन दोनों राज्यों में भाजपा लगातार तीन बार से सत्ता में है। राजस्थान में हाल में हुए दो लोकसभा उपचुनाव व एक विधानसभा उपचुनाव में भी इसी एंटी इनकम्बैंसी की वजह से भाजपा ने तीनों सीटें खो दीं। इसके अलावा दूसरे दोनों राज्यों के मुकाबले राजस्थान में चुनाव का ट्रैंड सरकार विरोधी रहता आया है। यहां हर बार सत्ताधारी दल चुनाव हार जाता है और विपक्षी दल हर 5 साल में सत्ता में आता है। इसलिए एमपी और छत्तीसगढ़ के मुकाबले मोदी-शाह का राजस्थान पर फोकस ज्यादा रहेगा। मध्य पदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चौथी बार (लगातार) सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। उन्हें इस बात का पूरा विश्वास है कि मध्य पदेश के लोग यूं ही मामा नहीं कहते हैं। उन्होंने वास्तव में पदेश की लड़कियों में आत्मविश्वास पैदा किया है, बेटी को वरदान बताया है। जिसके कारण ही उन्हें यह नाम मिला है। इस बार भी चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जाएगा। उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस के विधानसभा के चुनावी चेहरे कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह कांग्रेस को चुनाव नहीं जिता सकते। चौहान ने दो टूक कहा कि जो परफार्म करेगा वह सत्ता में रहेगा। मध्य पदेश में अगर शिवराज सिंह चौहान अपने बूते पर चुनाव जीतने का पयास करेंगे तो छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह की छवि अच्छी है और यहां भी ज्यादा एंटी इनकम्बैंसी फिलहाल देखने को नहीं मिल रही है पर विधानसभा चुनाव से पहले कई उपचुनाव होने हैं। इन पर जीत-हार से पदेश के मूड का पता चलेगा।

-अनिल नरेन्द्र

साजिश या संयोग ः कैसे खराब हो गई ईवीएम मशीनें?

उत्तर पदेश की कैराना और नूरपुर विधानसभा समेत देश की कुल 14 सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान ईवीएम मशीनों की खराबी की शिकायतों के बीच संपन्न हो गया पर मशीनों के खराब होने से चुनाव का मजा किरकिरा जरूर हो गया। सरकार या जनपतिनिधियों को चुनने की पकिया बिल्कुल पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए। यही हमारे लोकतंत्र की बुनियाद भी है। मतदान के दौरान ईवीएम मशीनें यानी इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के खराब होने की शिकायतें जिस पैमाने पर सामने आई हैं वह हैरान-परेशान करने वाली हैं। इससे चुनाव की निष्पक्षता पभावित होती है या नहीं, यह चुनाव पबंधन की विफलता जरूर है। ईवीएम की सबसे ज्यादा शिकायतें उत्तर पदेश और महाराष्ट्र से सामने आईं। कैराना लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय लोक दल की उम्मीदवार ने तो कई सारी जगहों पर ईवीएम के खराब होने की लिखित शिकायतें चुनाव आयोग से की हैं। वहीं विपक्ष के तमाम नेताओं ने ईवीएम की खराबी को चुनाव को बेजा ढंग से पभावित करने का पयास तक बताया है। उत्तर पदेश के शामली जिले की कैराना लोकसभा व नूरपुर विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में सोमवार सुबह से मतदान के दौरान लगभग 150 ईवीएम में खराबी के मामले सामने आए। इसकी भाजपा और सपा समेत तमाम दलों ने अपने-अपने ढंग से राज्य निर्वाचन आयोग से ईवीएम बदलने की मांग व शिकायत की। पदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एल वेंकटेश्वरलु ने ईवीएम की खराबी का कारण भीषण गर्मी बताया है। उन्होंने कहां, तेज गर्मी के कारण ईवीएम मशीनें खराब हो रही हैं, लेकिन कहीं पर भी मशीन की गड़बड़ी के कारण चुनाव पभावित नहीं हुए हैं। हमारे पास पर्याप्त मात्रा में अतिरिक्त मशीनें हैं, हमने मशीनें बदलवा दीं।  उन्हेंने यह भी कहा कि मतदान से पहले सभी ईवीएम और वीवीपैट की जांच हुई थी। उधर महाराष्ट्र में पालघर एवं गोंदिया लोकसभा के उपचुनाव को लेकर संपन्न हुए मतदान के दौरान ईवीएम मशीनों की गड़बड़ी के कारण मतदान तीस पतिशत से अधिक नहीं हो पाया है। ईवीएम की गड़बड़ी को लेकर शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने भाजपा को घेरा। कांग्रेस ने उपचुनाव को रद्द कर फिर से चुनाव कराने की मांग की है वहीं शिव सेना ने मशीन की गड़बड़ी को भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत बताया है। चुनाव आयोग ने मतदान खत्म होने के बाद भाजपा विरोधियों की मांग को ठुकराते हुए कहा कि फिर से चुनाव नहीं होंगे। चुनाव आयोग के अभिमन्यु काले ने कहा कि ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी का आरोप बेबुनियाद है। दुख और चिंता का विषय यह है कि चुनाव आयोग अपना स्टैंड बदलता रहा है। पहले तो कहा कि ईवीएम के खराब होने की बढ़-चढ़कर शिकायतें की जा रही हैं। लेकिन जब दिनभर यूपी और महाराष्ट्र से मशीनों की गड़बड़ी की खबरें आती रहीं, तो आयोग ने दूसरा स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि वोटिंग मशीनें गर्मी के कारण खराब हुईं। सभी दोष मौसम का है, लेकिन विपक्ष ने आरोप लगाया कि पहली बात चुनाव आयोग ने रमजान के दौरान मतदान क्यों रखा? उसे मालूम है कि मुसलमान रोजा रखते हैं वह भी पानी के बगैर और वोट देने के लिए एक बार वह दो घंटे लाइन में लगें और पता चले कि ईवीएम में गड़बड़ी है तो वो दोबारा दो घंटे वोट देने के लिए लाइन में लगने से रहे। क्या यह इत्तेफाक है कि ईवीएम मुस्लिम और दलित इलाकों में ज्यादा खराब हुईं? यह साजिश है या संयोग, आखिर इतने बड़े पैमाने पर ईवीएम मशीनें कैसे खराब हो गईं। कैसे वीवीपैट मशीन खराब हुईं? मशीन की इस खराबी ने उपचुनाव की सियासत को और अधिक गरमा दिया है और निष्पक्ष चुनाव की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सियासी दलों से लेकर जनता तक ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए एक बार फिर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की है। दांव पर है चुनाव आयोग की विश्वसनीयता।

Wednesday 30 May 2018

ग्लोबल वार्मिंग का असर

वैसे तो राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत की जनता गर्मी से परिचित है पर इस साल गर्मी कुछ ज्यादा और कुछ पहले से ही शुरू हो गई है। दिल्ली में पिछले छह दिनों से गर्म हवाएं चल रही हैं। पालम इलाके में अधिकतम तापमान 46.2 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया। वहीं सफदरजंग में अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पहुंच चुका है। इस वर्ष यह दिल्ली में दर्ज किया गया सबसे अधिक तापमान है। इतनी गर्मी के चलते हवा में आर्द्रता का न्यूनतम स्तर घटकर 10 प्रतिशत तक पहुंच गया। इससे पहले 22 मई को पालम में अधिकतम तापमान 46 डिग्री सेल्सियस रहा था। दिल्ली में चिलचिलाती धूप से आदमी से लेकर पशु-पक्षियों तक का बुरा हाल है। ताजा मामले में पशु-पक्षियों का संरक्षण कर रही संस्था वाइल्ड लाइफ एसओएस ने शुक्रवार शाम को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) परिसर में गर्मी से बेहोश पड़ी दो चील को बचाया। पीएमओ से सूचना मिलने पर एसओएस की टीम मौके पर पहुंची। इससे पहले एक सप्ताह पूर्व प्रधानमंत्री निवास से भी एक चील बेहोश मिली थी। अकेले इस महीने में इस संस्था ने दिल्ली में 30 से अधिक पक्षियों को बचाया है, जो गर्मी से बेहोश होकर गिरे मिले थे। पिछले छह दिनों से दिल्ली समेत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी तापमान 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। रिकॉर्डतोड़ गर्मी के बीच बारिश भी दिल्ली व उत्तर भारत वासियों को निराश कर रही है। प्री-मानसून और मानसून तो अभी कुछ दूर है, लेकिन गर्मियों के तीन माह में ही औसत से 17 प्रतिशत कम बारिश हुई है। मार्च एकदम सूखा रहा है। हालांकि अप्रैल और मई की स्थिति कुछ बेहतर हुई है। मौसम विभाग पर लगातार अंगुलियां उठ रही हैं। वर्ष 2016 और 2017 में भी सामान्य मानसून का दावा किया गया, लेकिन बारिश सामान्य से कम हुई। इसी तरह गत आठ मई को आंधी-तूफान के अलर्ट को लेकर भी मौसम विभाग की काफी किरकिरी हुई है। मंत्रालय स्तर पर भी मौसम विभाग के आला अधिकारियों को जमकर फटकार पड़ी। मौजूदा हालात में मानसून के पूर्वानुमान पर भी शंका के बादल मंडराते दिख रहे हैं। गर्मी वैसे तो बहुत है। भीषण गर्मी तो पहले भी आती रही है, लेकिन फर्प यह आया है कि अब भीषण गर्मी हमें परेशान ही नहीं करती, डराती भी है। औसतन तापमान भी बढ़ रहा है और साथ ही यह आशंका भी बढ़ रही है कि हर अगली गर्मी पिछली से ज्यादा सताएगी और यह सब हो रहा है ग्लोबल वार्मिंग की वजह से। हमारा ही नहीं पूरे विश्व का मौसम बदल रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कई दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

आर्पबिशप के खत से मचा सियासी बवाल

दिल्ली के आर्पबिशप अनिल काउंटी की सभी चर्चों को लिखी चिट्ठी सामने आने के बाद बवाल मचना स्वाभाविक ही था। माना जा रहा है कि परोक्ष रूप से उन्होंने वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार नहीं बने इसके लिए लोगों से दुआ करने की अपील की है। आर्पबिशप अनिल काउंटी ने आखिर लिखा क्या था जो इतना हंगामा हो गया? उन्होंने कुछ यूं लिखाöहम लोग अशांत राजनीतिक माहौल के गवाह हैं। इस समय देश के जो राजनीतिक हालात हैं उसने लोकतांत्रिक सिद्धांतों और देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान के लिए खतरा पैदा कर दिया है। राजनेताओं के लिए प्रार्थना करना हमारी पवित्र परंपरा रही है। लोकसभा चुनाव समीप हैं, जिसके कारण यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। 2019 में नई सरकार बनेगी। ऐसे में हमें अपने देश के लिए प्रार्थना करने की जरूरत है। इसीलिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए प्रार्थना के साथ ही हर शुक्रवार को एक दिन खाना न खाएं ताकि देश में शांति, लोकतंत्र, समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा बना रहे। 13 मई को मदर मरियम ने दर्शन दिए थे, इसलिए यह महीना ईसाई धर्म के लिए विशेष महत्व रखता है। आर्पबिशप ने इस पत्र को चर्च में आयोजित होने वाली प्रार्थना सभा में पढ़ने की भी अपील की है, जिससे लोगों तक यह बात पहुंच सके। आर्पबिशप की इस चिट्ठी पर सियासी पारा चढ़ना लाजिमी है। इसका बड़ा कारण ईसाई आबादी का 40 लोकसभा सीटों पर प्रभाव होना है। देश में ईसाइयों की आबादी 2.4 प्रतिशत है, अभी 25 सांसद ईसाई हैं। केंद्र में इस समुदाय से अल्फोंस कन्नाधनम मंत्री भी हैं। वहीं दूसरी ओर नॉर्थ ईस्ट के चार राज्यों मणिपुर (41 प्रतिशत), मेघालय (70 प्रतिशत), मिजोरम (87 प्रतिशत) और नागालैंड (90 प्रतिशत) ईसाई बहुल हैं। छह राज्यों असम, अरुणाचल, गोवा, ओडिशा, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में ईसाई आबादी दूसरे नम्बर पर है। यह आबादी सियासत को सीधे प्रभावित करती है। पत्र पर उठे सियासी बवाल के बाद आर्पबिशप को जवाब देने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित 15 केंद्रीय मंत्री और इतने ही सांसद मैदान पर उतर आए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि लोगों को धार्मिक आधार पर लामबंद नहीं होना चाहिए। वहीं गिरिराज सिंह ने कहाöअगर 2019 में मोदी सरकार न बने इसके लिए चर्च लोगों से प्रार्थना करने को कहे तो देश को सोचना होगा कि दूसरे धर्म के लोग अब कीर्तन-पूजा करेंगे। उधर आरएसएस के विचारक राकेश सिन्हा ने कहा यह भारतीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर हमला है। यह भारतीय चुनाव प्रक्रिया में वेटिकन का सीधा हस्तक्षेप है। क्योंकि आर्पबिशप की नियुक्ति पोप करता है। बिशप की निष्ठा सीधे तौर पर पोप के प्रति होती है, न कि भारत सरकार के प्रति। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आर्पबिशप का समर्थन करते हुए कहा कि हम सभी जाति, समुदाय और कोलकाता समेत पूरे देश के आर्पबिशप का सम्मान करते हैं। आर्पबिशप ने जो कहा, सही ही कहा है। यह सच है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह का कहना था कि भारत धर्म और पंथ के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करता। यहां हर धर्म के लोग सुरक्षित हैं। देश में किसी को भी इस तरह की सोच रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती। अपने पत्र के बाद भाजपा के निशाने पर आए आर्पबिशप ने सफाई दी। उन्होंने कहाöयह टिप्पणी मोदी सरकार पर नहीं थी। हम दुआ करते हैं कि ऐसी सरकार बने जो लोगों को आजादी, अधिकारों और ईसाई समुदाय के कल्याण की चिन्ता करे।

Tuesday 29 May 2018

एक मंच, 17 दल... 2019 की मोर्चाबंदी

कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी ने पहले दो परीक्षण तो पास कर लिए हैं। पहला था बहुमत परीक्षण से पहले कांग्रेस और जेडीएस के लिए विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव जीतना। भाजपा के रेस से हट जाने से कांग्रेस के रमेश कुमार निर्विरोध विधानसभा के नए अध्यक्ष चुन लिए गए। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि हमने अध्यक्ष पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया क्योंकि हम चाहते हैं कि चुनाव अध्यक्ष पद की गरिमा बनाए रखने के लिए सर्वसम्मति से हो। चुनाव से पहले समझा जा रहा था कि यह कर्नाटक के सियासी ड्रामे में एक और बवाल लेकर आएगा, क्योंकि भाजपा ने भी कांग्रेस के उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतार दिया था। इस चुनाव में भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता एस. सुरेश कुमार को प्रत्याशी बनाया था। पर अंतिम क्षण में उन्होंने शायद हार देखते हुए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। दूसरा बड़ा शक्ति परीक्षण था सदन में कुमारस्वामी को विश्वास मत लेना। यह भी उन्होंने आसानी से हासिल कर लिया। विश्वास मत के पक्ष में 117 वोट पड़े। बहुमत के लिए न्यूनतम संख्या की शर्त 113 की थी। जाहिर है कि यह मामूली बहुमत वाली सरकार है। पर अगर इस सरकार की स्थिरता को लेकर अभी भी संदेह जताए जा रहे हैं तो इसके पीछे दूसरी वजहें अधिक हैं। कांग्रेस और जनता दल (एस) का गठबंधन चुनाव बाद का है। दोनों पार्टियों ने न सिर्प भाजपा पर बल्कि एक-दूसरे पर भी कीचड़ उछालते हुए चुनाव लड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तो जनता दल (एस) को भला-बुरा कहते हुए भाजपा की बी टीम तक कहा था। एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा विरोधी दलों के नेताओं ने अपनी एकजुटता का जैसा प्रदर्शन किया उसकी भाजपा अनदेखी नहीं कर सकती। विपक्षी दलों ने जिस प्रभावी ढंग से अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया इसका पता इससे चलता है कि करीब-करीब सभी भाजपा विरोधी दलों के नेता बेंगलुरु में एक मंच पर दिखे। विपक्षी दलों के नेता केवल एक मंच पर जुटे ही नहीं बल्कि यह संदेश देने की भी कोशिश हुई कि वे सब मिलकर भाजपा का मुकाबला करने को तैयार हैं। विपक्षी एकता का पहला शक्ति परीक्षण उत्तर प्रदेश में कैराना उपचुनाव में होगा। समाजवादी पार्टी पूरे विपक्ष को एकजुट करने के लिए पहले से ही प्रयासरत है और बुधवार (शपथ समारोह) को कर्नाटक में सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद के प्रमुखों के बीच जो सहजता दिखाई दी, उससे आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता का प्लेटफॉर्म तैयार हो सकता है। लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा गठबंधन में सहमति बन चुकी है और कैराना उपचुनाव से पहले रालोद भी इनके करीब आया है। ऐसे में कांग्रेस के लिए भी साथ आना मजबूरी ही होगी। कर्नाटक में इस शपथ ग्रहण में 17 विपक्षी दलों के नेताओं की मौजूदगी ने 2019 में मोदी विरोधी मोर्चे की तैयारियों की झलक पेश की। समारोह के बहाने विपक्ष के एक मंच पर आने को बड़ा सियासी महत्व मिला है। समारोह के दौरान बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी एक-दूसरे से बहुत गर्मजोशी से मिलीं। शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि कांग्रेस और जेडीएस मिलकर कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अश्वमेध घोड़े को बांधने में सफल रहे। हमारा लक्ष्य पूरा हो गया है। मैंने कहा था कि उत्तर प्रदेश के चुनाव के नतीजों के बाद मेरा लक्ष्य नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अश्वमेध घोड़े को बांधना है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी सरकार के चार साल

अब जब केंद्र की सत्ता में नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल पूरे हो गए हैं, अब इसका आंकलन करना स्वाभाविक ही है कि इस दौरान इसने क्या हासिल किया, इसने लोगों की अपेक्षाओं को कितना पूरा किया और वे कौन-कौन-सी चुनौतियां हैं, जिनका बचे एक साल में इसे सामना करना है। मोदी सरकार जिस प्रबल बहुमत से सत्ता में आई थी उसके चलते उससे जनता की उम्मीदें भी बहुत बढ़ गई थीं। कटु सत्य तो यह है कि जनता की अपेक्षाओं को बढ़ाने में खुद मोदी सरकार जिम्मेदार है। अच्छे दिन के नारे से जनता को लगने लगा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। विपक्षियों ने भी इसको हवा दी और सवाल पूछने लगे कि क्या आपके खाते में 15 लाख रुपए आ गए? चूंकि अपेक्षाओं की कोई सीमा नहीं होती और कई बार सक्षम होते हुए भी जन आकांक्षाओं पर खरा उतरना मुश्किल हो जाता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार की चार साल की उपलब्धियों पर एक राय नहीं है। नोटबंदी और जीएसटी के दुप्रभाव से जनता में नाराजगी पैदा हुई है। उतार-चढ़ाव के बावजूद जीडीपी की विकास दर 7.2 प्रतिशत के करीब बनी रहना मोदी सरकार की उपलब्धि मानी जा सकती है। देश में विदेशी मुद्रा भंडार में भी पिछले चार वर्षों में 35 प्रतिशत की वृद्धि मजबूत बुनियाद की आश्वस्ति है। आज देश में 417 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है जो सरकार को यह भरोसा देता है कि वह तेल के बढ़ते दामों का मुकाबला कर लेगी। हालांकि पेट्रोल-डीजल के दामों में बेतहाशा वृद्धि ने जनता में त्राहि-त्राहि मचा रखी है। लेकिन तेल के बढ़ते दामों के साथ रुपए का गिरता मूल्य सभी के लिए चिन्ता का विषय है। इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार ने देश को स्थिरता दी है। स्वच्छता अभियान, 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाना, महिलाओं के लिए उज्जवला जैसी ग्रामीण योजना से महिलाएं लाभान्वित हुई हैं, ग्राम स्वराज्य अभियान के जरिये इसने हजारों गांवों में सबसे गरीब तबके को विकास का लाभ पहुंचाने का काम किया है। चार वर्ष के शासन के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जैसी लोकप्रियता हासिल है उसकी मिसाल आसानी से नहीं मिलती। लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई बुनियादी सुधार नहीं हो सके और जो हुए उनमें से कुछ अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके। इसके अतिरिक्त सरकार के कुछ साहसिक फैसले भी नाकामी की चपेट में आ गए जैसे नोटबंदी और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन की सरकार बनाने के। कश्मीर की हालत जो आज है वह पहले कभी नहीं हुई। दरअसल इसी तरह की नाकामियों की वजह से विपक्ष हमलावर है और वह मोदी का मुकाबला करने के लिए जोर-आजमाइश करता दिख रहा है। निसंदेह कार्यकाल के अंतिम साल में हर सरकार अगली पारी की तैयारी में लग जाती है, लेकिन यह समय अधूरी योजनाओं को पूरा करने का भी होता है, लोगों के विश्वास को पुन जीतने का भी होता है। देश में बढ़ती आर्थिक असमानता राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को डांवाडोल करने के लिए काफी है। 2017 में देश में पैदा होने वाली सम्पत्ति का 73 प्रतिशत हिस्सा एक प्रतिशत लोगों ने हथिया लिया। इसीलिए जनता की नजरों में यह सरकार उद्योगपतियों की सरकार मानी जाती है, इसीलिए सीएसडीएस के ताजा सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, दोनों को पसंद करने वाले 43 प्रतिशत हो गए हैं। बढ़ते असंतोष के बावजूद मोदी ने अपने राजनीतिक संवाद और सक्रियता व कठिन परिश्रम से दोनों राष्ट्रीय स्तर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान मजबूत की है। देश की विदेशों में छवि को मोदी ने बढ़ाया है। आज दुनिया के हर कोने में भारतीयों को इज्जत की नजरों से देखा जाता है।

Sunday 27 May 2018

खिलाड़ी तो बहुत मिलेंगे, नहीं मिलेगा तो दूसरा डिबिलियर्स

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अब 360 डिग्री के शॉट नहीं नजर आएंगे। 14 साल तक अपने बल्ले से क्रिकेटप्रेमियों को मंत्रमुग्ध करने वाले दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज एबी डिबिलियर्स ने सभी प्रारूपों से संन्यास का ऐलान कर दुनियाभर में अपने फैंस को चौंका व दुखी कर दिया। एबी के इस बड़े फैसले से न सिर्प फैंस बल्कि क्रिकेट एक्सपर्ट्स भी हैरान हैं। यह सुनते ही सोशल मीडिया पर मानो तो मातम-सा पसर गया। फैंस का कहना है कि खिलाड़ी तो आते-जाते रहेंगे, लेकिन क्रिकेट में अब दूसरा एबी डिबिलियर्स नहीं देखा जा सकता। खिलाड़ी तो बहुत मिलेंगे पर दूसरा डिबिलियर्स नहीं मिलेगा। एबी बेहतरीन कट, जोरदार पुल शॉट और स्पिनरों पर प्रहार करते हुए खुशी मनाते थे। उनका बल्ला बोलता था। यह आक्रमण को ध्वस्त करने के लिए काफी था। वह गेंदबाजों के लिए एक मुस्कुराते हुए हत्यारे की तरह थे। वह दिलचस्प शॉट खोलते थे जो श्रीलंका तिलकरत्ने दिलशान की वजह से प्रसिद्ध हुआ। उनका रिवर्स स्वीप काफी प्रभावी था और वह डेल स्टेन जैसे तेज गेंदबाज पर भी रिवर्स स्वीप खेल सकते थे। ऑफ स्टम्प के बाहर राफल करना और स्क्वॉयर के पीछे की गेंद को चुपके से खेलना उनके ऐसे शॉट थे जिन पर वह अपना दावा कर सकते थे। यूट्यूब पर उनके इन शॉट को एबी इनसेट शॉट क्लिक करके देखा जा सकता है, जिन्हें पहले ही 36 लाख हिट मिल चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय युग से पहले ग्रीम पोलाक का इस तरह का प्रभाव मंडल था। जैक्स कैलिस आश्चर्यजनक ऑल राउंडर थे, लेकिन एबी का टी-20 प्रारूप और छोटे प्रारूप में अपना ही विस्फोटक अंदाज था। विराट कोहली ने हमेशा यह महसूस किया कि डिबिलियर्स की मौजूदगी आरसीबी के ड्रेसिंग रूम में निश्चिंत होने की एक वजह है। इन दोनों बल्लेबाजों के बीच आपसी सूझबूझ देखी जा सकती थी, लेकिन जहां तक गेंदबाजी आक्रमण ध्वस्त करने की बात है तो डिबिलियर्स उन्हें बहुमुखी साबित करता है। खेल के मुक्ताकारा में सुपर मैन, जेंटलमैन, स्पाइडर मैन और मिस्टर 360 डिग्री के नाम से विचरण करने वाले डिबिलियर्स ने अपने देश के लिए हमेशा लाजवाब पारियां खेलीं। वह सबसे तेज 50, 100 और 150 रन बनाने के रिकार्ड होल्डर हैं। खेल की दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले एबी को ]िक्रकेटप्रेमी हमेशा तलाशेंगे। हालांकि उनके नजदीक खिलाड़ियों में आईपीएल के तुरन्त बाद संन्यास लेने पर क्षोभ भी दिखा। डिबिलियर्स ने कहा है कि उनकी विदेशों में खेलने की कोई योजना नहीं है, जिसका मतलब क्या वह आईपीएल के अगले सत्र में आरसीबी की जर्सी में नहीं नजर आएंगे? उन्होंने कहाöमैं उम्मीद करता हूं कि मैं घरेलू क्रिकेट में टाइट्स के लिए उपलब्ध रहूंगा और प्रोटियाज टीम का सबसे बड़ा समर्थक बना रहना चाहूंगा। अगर वह घरेलू लीग में उपलब्ध रहेंगे तो हम क्या यह उम्मीद कर सकते हैं कि वह आरसीबी के लिए भी उपलब्ध रहेंगे?

-अनिल नरेन्द्र

अभिभावकों के 750 करोड़ रुपए प्राइवेट स्कूलों की जेब में

प्राइवेट स्कूलों द्वारा बेतहाशा फीस वृद्धि से दिल्ली के पेरेंट्स आज से ही नहीं, पहले से ही परेशान हैं। मनमानी फीस बढ़ाने पर दोनों सख्त हैंöदिल्ली सरकार भी और अदालतें भीं। दिल्ली सरकार ने सात दिनों के अंदर 575 निजी स्कूलों को बढ़ी फीस वापस देने का आदेश दिया है। स्कूलों को यह फीस नौ प्रतिशत ब्याज के साथ अभिभावकों को देनी होगी। दिल्ली सरकार ने इन स्कूलों की सूची शिक्षा निदेशालय की वेबसाइट पर डाल दी है। निर्धारित समय के अंदर ब़ढ़ी फीस नहीं लौटाने की स्थिति में कड़ी चेतावनी भी दी है। दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए यह आदेश दिया है। निजी स्कूलों ने छठे वेतन आयोग के नाम पर अभिभावकों से अधिक शुल्क वसूला लेकिन उन्होंने यह पैसा शिक्षकों को नहीं दिया। उसके बाद मामला उच्च न्यायालय में गया और इस बारे में सुनवाई होने और अदालत के आदेश के बाद दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने यह आदेश जारी किया है। पहले फीस नहीं लौटाने वालों में राजधानी के कुल 1169 स्कूल थे लेकिन अदालत के आदेश के बाद कुछ स्कूलों ने बढ़ा हुआ शुल्क वापस किया और कुछ ने अभिभावकों को पैसा लौटाया। अब भी 575 स्कूलों ने बढ़ी फीस नहीं लौटाई। जस्टिस अनिल देव सिंह कमेटी के अनुसार स्कूलों से 750 करोड़ रुपए वसूले जाने थे लेकिन निजी स्कूलों ने अभिभावकों को पैसा नहीं लौटाया। 11 फरवरी 2009 को दिल्ली सरकार ने एक आदेश निकाला कि निजी स्कूल 500 रुपए तक फीस बढ़ा सकते हैं। दिल्ली अभिभावक महासंघ समेत कई संगठनों ने इसे अदालत में चुनौती दी। 12 अगस्त 2011 को इस मामले में कमेटी बिठाई गई जिसने 80 प्रतिशत स्कूलों को फीस लौटाने की बात कही। अशोक ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के प्रेजिडेंट अशोक अग्रवाल बताते हैं, लगभग 800 स्कूलों से सरकार करीब 10 सालों से पैसा वापस नहीं ले पा रही है। सरकार ने जो 575 स्कूलों की लिस्ट निकाली है, उनमें वे स्कूल शामिल हैं जो इस मामले को लेकर न कोर्ट गए और न ही उन्होंने बढ़े पैसे वापस किए। इनके अलावा अभी 150 स्कूल कोर्ट में इस केस को लड़ रहे हैं। इससे पहले पांचवें पे-कमीशन के नाम पर भी प्राइवेट स्कूलों ने फीस बढ़ाकर पेरेंट्स का 400 करोड़ रुपए का नुकसान किया था। दिलचस्प बात यह है कि 1998 में इसे लेकर भी जस्टिस संतोष दुग्गल कमेटी बनी थी, मगर कोई पैसा वापस नहीं मिला। कुछ प्राइवेट स्कूलों ने किसी न किसी बहाने से मां-बाप को लूटने की आदत बना रखी है। कभी यूनिफॉर्म के बहाने तो कभी स्कूल बस के बहाने यह अपनी जेबें भरते हैं। हम दिल्ली सरकार के फैसले का समर्थन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि सरकार सख्ती बरतेगी और बढ़ी फीस लौटाने का प्रयास करेगी।

Saturday 26 May 2018

उत्तराखंड में धधक रहे जंगल, आदमी और जानवर सभी हलकान

उत्तर भारत में गर्मी अपने चरम पर है और अभी से कई शहरों में पारा 45 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र का विदर्भ इलाका और राजधानी दिल्ली गर्मी से अधिक प्रभावित है। उत्तराखंड के जंगलों में गर्मी के कारण जंगलों में आग लगी हुई है। दिल्ली में मंगलवार इस सीजन का सबसे गरम दिन दर्ज हुआ। अधिकतम तापमान सामान्य से चार डिग्री सेल्सियस ज्यादा सफदरजंग में 44 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ। मौसम विभाग के सफदरजंग स्टेशन में दर्ज तापमान को दिल्ली का औसत माना जाता है। वहीं पालम में 46 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ। छह राष्ट्रीय पार्प, सात अभ्यारण्य और चार कंजर्वेशन रिजर्व वाला उत्तराखंड इन दिनों जंगलों की आग से हलकान है। 71 प्रतिशत वन भूभाग वाले राज्य में जंगल सुलग रहे हैं। इससे वन सम्पदा को तो खासा नुकसान पहुंच ही रहा है, बेजुबान भी जान बचाने को इधर-उधर भटक रहे हैं। यही नहीं, वन्य जीवों के आबादी के नजदीक आने से मानव और इनके बीच संघर्ष तेज होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में जंगल की दहलीज पार करते ही उनके शिकार की भी आशंका है। हालांकि दावा है कि राज्यभर में गांवों, शहरों से लगी वन सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई है। मंगलवार को पौड़ी में एक केंद्रीय विद्यालय और कमिश्नर के आवास तक आग पहुंच गई। बच्चों को बचाने के लिए स्कूल में छुट्टी करनी पड़ी। जंगल से गुजरने वाली सड़कों पर यातायात रोकना पड़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान की बढ़ोत्तरी आग का प्रमुख कारण है। आग से चारों ओर फैली धुंध के कारण हिमालय तक नजर नहीं आ रहे हैं। हिमालय नहीं दिखाई देने से पर्यटन पर भी खासा असर पड़ा है। सोमवार को राज्य में आग लगने की 386 सूचनाएं दर्ज की गई थीं जो मंगलवार को बढ़कर 917 हो गईं। इस फायर सीजन में अब तक 800 स्थानों पर कुल 1213 हैक्टेयर जंगल स्वाह हो चुके हैं। बेकाबू होती जंगलों की आग पर काबू पाने के लिए हेलीकॉप्टरों की मदद लेने की तैयारी है। मंगलवार को चमोली में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि जरूरत पड़ी तो आग बुझाने को हेलीकॉप्टरों की मदद ली जाएगी। आग पर काबू पाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई है। वन कर्मियों के साथ पुलिस, एनडीआरएफ के जवान और बड़ी संख्या में स्थानीय लोग आग बुझाने में जुटे हैं। इनकी संख्या 4306 है। दावानल पर नियंत्रण के मद्देनजर 248 वाहन भी लगाए गए हैं। वन्य जीवों की सुरक्षा को देखते हुए सभी संरक्षित-आरक्षित वन क्षेत्रों में गांव-शहरों से लगी सीमा पर वन कर्मियों की नियमित गश्त बढ़ा दी गई है। इसके साथ ही जंगलों में बनाए गए वॉटर होल में पानी का इंतजाम करने पर खास फोकस किया जा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

राज्यसभा और लोकसभा में बदलता दलीय अंक-गणित

उपचुनावों के कारण दोनों लोकसभा और राज्यसभा में दलों की स्थिति बदलती रहती है। पहले बात करते हैं लोकसभा की। लोकसभा में दलीय अंक-गणित लगातार बदल रहा है। कर्नाटक के भाजपा नेता येदियुरप्पा और बी. श्रीरामुलु के अलावा जेडीएस के सीएस पुत्तराजु के इस्तीफा स्वीकार हो जाने के बाद भाजपा की मौजूदा संख्या 272 तक पहुंच गई है। दरअसल कैराना समेत चार लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है। इसके बाद कर्नाटक की तीन लोकसभा सीटों को मिलाकर कुल सात सीटें खाली रहेंगी। इस लिहाज से सदन के मौजूदा संख्याबल में भाजपा की स्थिति सहज बनी रहेगी। लेकिन विपक्ष नैतिक रूप से दबाव के  लिए अपने बड़े संख्याबल को आधार बनाने का प्रयास जरूर करेगा। कई उपचुनावों के हार के बावजूद भाजपा की अगुवाई में एनडीए की ताकत]िवरोधी दलों की तुलना में काफी ज्यादा है। उसके पास 306 के आसपास सीटें हैं। जबकि कांग्रेस के साथ खड़े दलों के अलावा तटस्थ मानी जा रही अन्नाद्रमुक, टीआरएस, बीजद आदि राजनीतिक पार्टियों को भी मिला लें तो भी  लोकसभा में इनकी संख्या 230 के आसपास है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी मूल संख्या 44 में चार सीटों का इजाफा किया है। सदन में कांग्रेस की मौजूदा संख्या 48 है। कांग्रेस ने भाजपा से दो सीटें राजस्थान और एक मध्यप्रदेश में छीनी है। समाजवादी पार्टी ने दो सीटें उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर की अत्यंत महत्वपूर्ण सीटें भाजपा से छीनी हैं। यह दोनों सीटें मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के त्यागपत्र से खाली हुई थीं। कांग्रेस के बाद अन्नाद्रमुक की संख्या ही उसके पास है, जिसकी 37 सीटें हैं। तृणमूल कांग्रेस 34 सीटों के साथ चौथा सबसे बड़ा दल है। जबकि बीजद की संख्या 20 और शिवसेना की संख्या 18 सीटें हैं। तेलुगूदेशम के पास 16 सीटें और टीआरएस के पास कुल 11 लोकसभा सीटें हैं। 16वें लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने 282 सीटें हासिल की थीं। अब उसकी संख्या 272 है। राज्यसभा की 58 सीटों के लिए हाल ही में हुए द्विवार्षिक चुनावों के बाद भाजपा के खाते में 11 सीटों का इजाफा हुआ है। भाजपा की सीटों में वृद्धि हुई है जबकि कांग्रेस ने अपनी चार सीटें खो दी हैं। आंकड़ों की गणना यह दर्शाती है कि 245 सदस्यीय राज्यसभा में अब भाजपा की सीटों की संख्या मौजूदा 58 से बढ़कर 69 हो जाएगी और कांग्रेस की सीटें अब 54 से गिरकर 50 रह जाएंगी। हालांकि अब भी भाजपा गठबंधन राजग राज्यसभा में बहुमत से बहुत दूर है। पार्टी को अभी हाल में एक झटका लगा है जब चार साल से उसकी सहयोगी रही तेलुगूदेशम पार्टी ने उससे नाता तोड़ लिया। सदन में इस समय तेदेपा के छह सदस्य हैं। पर्याप्त संख्याबल न होने के कारण मोदी सरकार द्वारा लाए गए विधेयक लोकसभा में पारित होने के बावजूद विपक्षी दलों के एकजुट हो जाने के कारण अटक जाते हैं।

Friday 25 May 2018

सोने-चांदी का 60 अरब डॉलर का भंडार

अब समझ आया कि चीन आखिर अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार क्यों जमाना चाह रहा है। ताजा रिपोर्टों के अनुसार अरुणाचल सीमा के पास बड़े पैमाने पर सोने-चांदी का भंडार पाया गया है। बताया जा रहा है कि यहां सोने-चांदी और अन्य बहुमूल्य खनिजों का करीब 60 अरब डॉलर का भंडार पाया गया है। चीन की सरकारी मीडिया साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट के मुताबिक खनन परियोजना भारत की सीमा से लगे चीनी क्षेत्र में पड़ने वाले लउंजे काउंटी में चलाई जा रही है। अखबार ने स्थानीय अधिकारियों, चीनी भूगर्भ शास्त्रियों और रणनीतिक विशेषज्ञों से मिली जानकारी के आधार पर यह दावा किया है। बीजिंग स्थित चीन भूविज्ञान विश्वविद्यालय के प्राध्यापक थेंग चुन्चे के मुताबिक नए पाए गए अयस्क हिमालय क्षेत्र में चीन और भारत के बीच संतुलन बिगाड़ सकते हैं। ऐसे में सीमा से लगे इस इलाके में चीन की परियोजना से डोकलाम के बाद एक बार फिर दोनों देशों में तनाव हो सकता है। यह ऐसे वक्त हो रहा है जब एक माह पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच डोकलाम जैसी गतिरोध टालने पर चर्चा हुई थी। समाचार पत्र की रिपोर्ट में खनन काम को चीन द्वारा अरुणाचल को अपने नियंत्रण में लेने की रणनीति के तौर पर दिखाया गया है। इसके मुताबिक खनन काम से अवगत लोगों का मानना है कि यह बीजिंग की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है। जिससे वह दक्षिण तिब्बत क्षेत्र पर अपना दावा पुख्ता कर सकता है। स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर चीन के दावा जताने की उसकी कोशिश और तेजी से निर्माण कार्य करने के चलते यह इलाका दूसरा दक्षिणी चीन सागर बन सकता है। रिपोर्ट में स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि चीन के भू-वैज्ञानिक और सामरिक मामलों के विशेषज्ञों ने हाल ही में इस इलाके का दौरा किया। चीन ने दक्षिणी चीन सागर में द्वीप बनाए और अपना नियंत्रण कर रखा है। चीन ने दक्षिणी चीन सागर में शुरुआत में खनिज पदार्थों को निकालने के नाम पर मामूली शुरुआत के बाद वहां सैन्य ठिकाने बनाए। चीन की निगाह अरुणाचल प्रदेश समेत भारत के अन्य सीमावर्ती इलाकों पर है। भारत और चीन के बीच निर्धारित सीमा नहीं है, जिसके चलते अकसर विवाद पैदा होता रहता है। हाल के दिनों में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की भी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। अब जब सोने-चांदी व अन्य बहुमूल्य धातुओं के निकलने की बात सामने आ रही है तो नए सिरे से विवाद पैदा हो सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

जम्मू के सीमांत गांव में पसरा सन्नाटा, हजारों की जिंदगियां दांव पर

सुनसान गलियां, खामोशी इस कदर कि तिनका भी गिरे तो आवाज सुनाई दे। जम्मू-कश्मीर की सरहद के गांवों में माहौल अब बद से बदतर होता जा रहा है। छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्रामीण भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में अब हजारों परिवारों की जिंदगी दांव पर है। जम्मू-कश्मीर से हमारे संवाददाता अनिल साक्षी की यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है। प्रस्तुत है यह रिपोर्टöआज भी जम्मू सीमा के बीसियों गांवों पर पाक सेना ने जबरदस्त बमबारी कर युद्ध के हालात बनाते हुए जो तबाही मचाई उसके चलते पांच और नागरिकों की मौत हो चुकी है। गोलाबारी में 70 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हैं। 400 से ज्यादा पशु मारे जा चुके हैं। 250 घरों को भारी क्षति पहुंची है और 50 हजार से ज्यादा लोग पालयन करने पर मजबूर हो गए हैं और यह सब सीजफायर के चालू रहते हो रहा है। पाक सेना ने जम्मू क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के साथ लगी अग्रिम चौकियों और गांवों को निशाना बनाकर मोर्टार के गोले दागे। इस दौरान गोलाबारी में 70 वर्षीय एक महिला समेत आधा दर्ज से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। सैकड़ों ग्रामीणों ने अपना घर छोड़कर या तो दूरदराज इलाकों में अपने रिश्तेदारों के यहां या फिर सरकार द्वारा स्थापित राहत शिविरों में शरण ली है। इस पूरे इलाके में शिक्षण संस्थान अब भी बंद हैं। अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 80 मिलीमीटर और 120 मिलीमीटर मोर्टार गिरने से करीब एक दर्जन गांव प्रभावित हुए हैं। अधिकारियों ने कहाöगोलीबारी और मोर्टार के गोले गिरने का यह सिलसिला पूरी-पूरी रात जारी रहता है और अखनूर से लेकर सांबा तक सीमा से लगे सभी सैक्टर इसकी चपेट में हैं। बीएसएफ की जवाबी कार्रवाई में कुछ पाकिस्तानी रेंजरों के हताहत होने की खबर है और उनके कई बंकर भी नष्ट हुए हैं। पाकिस्तान द्वारा पिछले कुछ दिनों से सीमा पर गोलीबारी तेज की गई है। जम्मू के पुलिस महानिरीक्षक एसडी सिंह जाम्वाल ने कहा कि पुलिस दलों की तैनाती की गई है जो लोगों को प्रभावित इलाकों से सुरक्षित स्थानों पर जाने में मदद कर रहे हैं। जम्मू के मंडलायुक्त हेमंत कुमार शर्मा ने कहा कि सीमा से लगने वाले इलाकों में राहत शिविर स्थापित किए गए हैं, खासतौर पर आरएसपुरा और अरनिया सैक्टर में। पाक रेंजर्स द्वारा जम्मू-सांबा और कठुआ जिलों में सैन्य और असैन्य ठिकानों पर लगातार की जा रही गोलीबारी और बमबारी के कारण सीमावर्ती गांवों से 50 हजार से अधिक लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा है। पुलिस ने बताया कि कुछ लोगों ने प्रशासन द्वारा बनाए गए अस्थायी शिविरों में शरण ली है। जबकि अधिकांश अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के घर में शरण लेने के लिए मजबूर हुए हैं। हालांकि मवेशियों और घरों की रखवाली के लिए हर घर में एक पुरुष सदस्य को छोड़ दिया गया है।

Thursday 24 May 2018

The plight of Hindus in Jammu Region

Periodically it is reported that Indian Security Forces causes mayhem in the Pakistani side by their heavy retaliatory fire and recently Pakistani Rangers ''pleaded" ceasefire to BSF along the international border. This might sound true, but contrary to that, unprovoked firing was witnessed from the Pakistan side on the same day. What does it all mean? Over 700 cases of ceasefire violation by Pakistan have already been witnessed along the LOC and International border this year which has left 38 people, including 18 security personnel, dead and a dozen other injured. Thousands of people are forced to leave their villages for safer locations.

Heavy shelling in Jammu is causing severe damage to the region which is accounted. Bharatiya Janta Party (BJP) along with Mehbooba Mufti’s PDP runs the government in the state. In yet another incident of ceasefire violation, the Pakistani Rangers on Monday fired mortar shells at border outpost in several villages along the border, in which an eight month’s old boy and six people including special police officer were injured in the firing. Yesterday I watched a video clip in which because of firing at a border village in Jammu a man had to carry the corpse of his brother and other villagers in the tractor trolley.

Can’t Government provide them basic amenities? BJP got majority of votes from Jammu region only, but being in government what have they done to ensure the safety and upliftment of the community? The situation is so grim that Hindus from Jammu region have started migrating to nearby places like Chandigarh, Delhi and other parts of the country. They are helpless to leave their homes behind and settle elsewhere. Forget about the development, they can’t even provide basic security cover to the community. BJP has completely surrendered to Mehbooba Mufti in the state. BJP gave nod to the ceasefire in the month of Ramzan even though Army kept stating that they cannot agree to one sided ceasefire. Central Govt. took the decision just before Prime Minister Narendra Modi’s visit to Jammu & Kashmir.In the wake of it, Army will pause it’s operations against militants during the holy month of Ramzan. The moment centre declared the ceasefire in Ramzan, the security contingent was attacked in Shopian. When Army Patrol lays ambush on terrorists, they have to face locals pelting stone on them, castigating abuse’s on them but they have to tolerate this nuance. How can Army be asked to restrain itself in such a hostile environment? Isn't their lives precious enough? For how long it is going to continue like this. It would be better if BJP snap ties with it's coalition partner and allow President’s Rule for Army to take control of the region. BJP must not forget that they received the massive mandate only due to regional hindus to whom they have failed to provide protection just to placate a separatist supporter Chief Minister.

ANIL NARENDRA

...और अब चमगादड़ से फैलने वाला निपाह वायरस

आजकल हम अजीबो-गरीब वायरसों के बारे में सुन रहे हैं। मैंने तो कम से कम ऐसे वायरस के बारे में नहीं सुना। देश में पहली बार आए मलेशियाई वायरस निपाह ने केरल में नौ लोगों की जान ले ली है। केरल के कोझिकोड जिले में सिरदर्द व तेज बुखार के बाद एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत हो गई। उनकी देखभाल करने वाली नर्स की भी सोमवार सुबह मौत हो गई। मलप्पुरम जिले में भी इन्हीं लक्षणों के साथ पांच लोगों के मरने की सूचना है। जानवरों से फैलने वाला यह वायरस चमगाद़ड़ के जरिये फैला है। फ्रूट बैट कहा जाने वाला चमगादड़ मुख्यत फल या फल के रस का सेवन करता है। निपाह वायरस जानवरों से आदमियों में फैलने वाला एक नया संक्रमण है। यह इंसानों और जानवरों को गंभीर रूप से बीमार कर देता है। कोझिकोड के जिस परिवार में इस वायरस से तीन लोगों की मौत हुई है और कुछ अन्य का इलाज चल रहा है, उनके घर के कुएं में यह फ्रूट बैट मिला है। स्वास्थ्य मंत्री केके शिलाजा ने कहा कि अब यह कुआं बंद कर दिया गया है। इस वायरस की सबसे पहले पहचान 1998 में मलेशिया में हुई। उस वक्त यह सूअरों में फैला था। यह संक्रमित चमगादड़ द्वारा खाए गए फल खाने से फैलता है। यह संक्रमण फ्रूट बैट प्रजाति के चमगादड़ से तेजी से फैलाता है। इसकी वजह यह है कि यह एकमात्र स्तनधारी है जो उड़ सकता है। यह पेड़ पर लगे फलों को खाकर उसे संक्रमित कर देता है। जब पेड़ से गिरे इन संक्रमित फलों को इंसान खा लेता है तो वह इस बीमारी की चपेट में आ जाता है। इस बीमारी के लक्षण कुछ ऐसे होते हैंöधुंधला दिखना, सांस में तकलीफ, एनसेफलाटिस जैसे अन्य लक्षण। सिर में लगातार दर्द रहना, चक्कर आना। बचने के उपायöपेड़ से गिरे फल न खाएं। जानवरों के निशान हों तो ऐसी सब्जियां न खरीदें। जहां चमगादड़ अधिक रहते हैं वहां खजूर खाने से परहेज करें। संक्रमित रोगी, जानवरों के पास न जाएं। फिलहाल निपाह वायरस से संक्रमण का कोई इलाज नहीं है। एक बार संक्रमण फैल जाने पर मरीज 24 से 48 घंटे तक कोमा में जा सकता है और मौत तक संभव है। इसलिए आप अपना ध्यान रखें और जहां चमगादड़ हों वहां के फ्रूट-सब्जी खाने से बचें।

-अनिल नरेन्द्र

कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण में विपक्षी एकता का संदेश?

कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी एकता दिखाने का एक अवसर मिल गया। बेंगलुरु में बुधवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में सभी विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा अध्यक्ष मायावती प्रमुख नेता हैं जो शामिल हुए। दरअसल कर्नाटक की कुश्ती में भाजपा को मिली मात प्रकरण से तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, चन्द्रबाबू नायडू तथा तेलंगाना के नेताओं की बांछें खिलने लगी हैं। कर्नाटक के घटनाक्रम से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि भाजपा के सामने एकजुट होकर चुनाव लड़ने से ही सत्ता हासिल होगी। साथ ही राजग के कुछ घटक दल भी तीसरे मोर्चे में शामिल हो सकते हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि श्री कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह को लोकसभा के नजरिये से देखा जाए तो समारोह में जिन दलों को न्यौता दिया गया, वह लोकसभा की 270 से अधिक सीटों पर मजबूत दावेदारी रखते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के दौरे में संपादकों से बातचीत में यह पूछे जाने पर कि क्या वह 2019 में मोदी के खिलाफ जीत हासिल कर पाएंगे तो राहुल ने जवाब दिया कि विपक्ष अगर एकजुट हो जाएगा तो वह दिन निश्चित रूप से आएगा। विपक्ष के गठबंधन का नेतृत्व क्या वह करेंगे, यह पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस सामने वाली पार्टी की विचारधारा का सम्मान करती है जबकि भाजपा अपनी विचारधारा को मानने को मजबूर करती है। 2019 में अगर भाजपा बनाम विपक्ष में वन टू वन फाइट होती है तो भाजपा को हराया जा सकता है। दूसरी ओर कर्नाटक में जिस तरह कांग्रेस ने जेडीएस जैसे छोटे क्षेत्रीय दल का जूनियर पार्टनर बनना स्वीकार किया है, उससे तो यही जाहिर होता है कि कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों के पिछलग्गू की भूमिका निभानी पड़ सकती है। कांग्रेस ने बहुत भारी भूल की कर्नाटक में। नतीजे बताते हैं कि अगर कांग्रेस ने जेडीएस से चुनाव पूर्व गठबंधन यानि प्री-पोल एलायंस किया होता तो न तो गवर्नर येदियुरप्पा को पहले बुलाते और न ही इतना हंगामा होता। अगर प्री-पोल एलायंस होता तो कर्नाटक की 224 से 157 सीटों पर गठबंधन की जीत होती यानि भाजपा को महज 65 सीटों पर सिमटना पड़ता। इन्हीं नतीजों को अगर लोकसभा के स्तर पर देखा जाए तो भाजपा कर्नाटक की 28 सीटों में 10 सीटें ही जीत पाएगी। ममता बनर्जी और मायावती ने कांग्रेस को जेडीएस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की सलाह दी थी तब सिद्धारमैया को कन्नड़ और लिंगायत कार्ड की बदौलत जीतने का पूरा भरोसा दिया था। कर्नाटक के नतीजों ने सिद्धारमैया का अहंकार तो तोड़ा ही साथ-साथ जीती हुई बाजी हाथ से निकाल दी।

Wednesday 23 May 2018

कर्नाटक फॉर्मूले पर 5 राज्यों में सरकार बनाने का मौका?

 कर्नाटक में बहुमत वाले कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के बजाय 104 विधायकों वाली भाजपा को सरकार बनाने के लिए न्यौता देकर गवर्नर वजुभाई वाला ने एक नई समस्या खड़ी कर दी है। उनके इस फैसले का असर अन्य राज्यों में भी दिखना शुरू हो गया है। शुक्रवार को कांग्रेस ने गोवा, मणिपुर व मेघालय, राजद ने बिहार और एनपीएफ ने नागालैंड में सबसे बड़ा दल होने के नाते सरकार बनाने का मौका देने की मांग कर डाली। कर्नाटक में सरकार बनाने के फैसले व न्यौते के पूरे घटनाक्रम का सीधा असर देश के इन पांच राज्यों पर पड़ा है। बिहार में राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, कांग्रेस, हम और माले नेताओं के साथ राजभवन पहुंचे। उन्होंने राज्यपाल सत्यपाल मलिक के समक्ष बिहार में सरकार बनाने का दावा पेश किया। राज्यपाल ने प्रतिनिधिमंडल को मामले पर विचार करने का आश्वासन दिया। तेजस्वी ने बताया कि उन्होंने महामहिम से मुलाकात कर विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा। उन्होंने दावा किया कि राजद, कांग्रेस, हम और माले के 111 विधायक हैं। इसके अलावा जदयू के कई विधायक उनके सम्पर्प में हैं। फ्लोर टेस्ट का मौका मिलने पर वह आसानी से अपना बहुमत साबित कर देंगे। बिहार में राजद के 50, कांग्रेस के 27 विधायक हैं जबकि जदयू के 71 और भाजपा के 53 विधायक हैं। मणिपुर कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने कार्यवाहक राज्यपाल जगदीश मुखी से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता के जयकिशन सिंह ने बताया कि कांग्रेस विधायक दल के 9 नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह की अगुवाई में राज्यपाल से मुलाकात की। मणिपुर में कांग्रेस के 28, भाजपा के 21 तथा अन्य के 7 विधायक हैं। मेघालय में कांग्रेस की ओर से मुकुल संगमा ने राज्यपाल गंगा प्रसाद से मुलाकात की और राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया। राज्य में कांग्रेस 21 विधायकों के साथ सबसे बड़ा दल है, लेकिन भाजपा ने 20 विधायकों वाली एनपीपी को समर्थन दिया। साथ ही अन्य 17 का समर्थन हासिल करने में भी मदद की। नतीजतन राज्य में कांग्रेस सत्ता नहीं हासिल कर सकी। उधर गोवा में भी कांग्रेस 17 विधायकों के साथ सबसे बड़ा दल है। अन्य 7, भाजपा 13 और निर्दलीय 3 हैं। बड़ी पार्टी होने के नाते उन्हें भी सरकार बनाकर बहुमत साबित करने का मौका मिलना चाहिए। कांग्रेस ने राज्यपाल मृदुला सिन्हा को आग्रह पर विचार करने के लिए 7 दिन का समय दिया है। इस दौरान कांग्रेस के 14 विधायक मौजूद थे। नागालैंड में सबसे बड़ी पार्टी एनपीएफ ने भी सरकार बनाने का दावा पेश किया। उनके प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल पीवी आचार्य से मुलाकात कर पत्र सौंपा। राज्य विधानसभा चुनाव में एनपीएफ ने 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि भाजपा को 18 सीटें मिली थीं। वहीं एनडीपीपी को 18 और अन्य को चार सीटों पर जीत मिली। जैसा मैंने कहा कि कर्नाटक के राज्यपाल के एक फैसले ने नई समस्या खड़ी कर दी है।
-अनिल नरेन्द्र



जम्मू में सीमावर्ती हिन्दुओं की दुर्दशा

आए दिन हमें यह बताया जाता है कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना के करारे-मुंहतोड़ जवाब से पाकिस्तान में त्राहि-त्राहि मच गई है और पाकिस्तानी रेंजर्स बीएसएफ अधिकारियों से अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर शांति स्थापित करने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। बेशक यह सही भी हो पर फिर उसी दिन रात को पाक की तरफ से फिर फायरिंग आरंभ हो जाती है, इसका क्या मतलब? इस साल पाकिस्तान ने अभी तक जम्मू-कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर 700 बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया है। इससे सुरक्षाबलों के 18 जवानों सहित 38 लोगों की मौत हो चुकी है। हजारों लोग अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। जम्मू क्षेत्र में तो पाक गोलाबारी से इतनी तबाही हो रही है जिसका कोई हिसाब नहीं। जम्मू-कश्मीर में भाजपा की महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ सरकार है। पाकिस्तानी सैनिकों ने कल यानि सोमवार को जम्मू जिले में सीमावर्ती गांवों को मोर्टार के गोलों व छोटे हथियारों से निशाना बनाया जिससे आठ महीने के एक बच्चे की मौत हो गई और एक विशेष पुलिस अधिकारी सहित छह लोग घायल हो गए। मैंने कल एक वीडियो क्लिप देखा जिसमें जम्मू के सीमावर्ती गांव में बमबारी के कारण एक नौजवान की मौत हो गई और उसके भाई ने क्लिप में बताया कि वह अपने भाई और दूसरे मृत गांव वालों की लाशें ट्रैक्टरों पर लाने पर मजबूर हुए। क्या सरकार इन्हें इतनी-सी भी सुविधा नहीं दे सकती? भाजपा को जितने भी वोट मिले वह जम्मू क्षेत्र से ही मिले। आज अगर वह जम्मू-कश्मीर में सत्ता में है तो जम्मू के हिन्दुओं की वजह से है। भाजपा ने जम्मू के हिन्दुओं की सुरक्षा व विकास के लिए आखिर क्या किया है? आज स्थिति इतनी खराब हो गई है कि जम्मू से हिन्दुओं का देश के अन्य भागों में पलायन शुरू हो गया है। वह मजबूर हो गए हैं कि अपने घर-बार को छोड़कर, बच्चों को लेकर दिल्ली व चंडीगढ़ या भारत के अन्य भागों में जा बसें। क्या इस दिन के लिए जम्मू के हिन्दुओं ने भाजपा को वोट दिया था? विकास तो छोड़िए उनकी सुरक्षा तक नहीं हो सकती। राज्य में भाजपा ने महबूबा मुफ्ती के सामने जैसे घुटने टेक दिए हैं। भाजपा ने रमजान के दौरान सीजफायर के फैसले पर अपनी मुहर क्यों लगा दी? जब सेना कहती रही कि हम इस तरह के एकतरफा सीजफायर के खिलाफ हैं पर भाजपा ने एक नहीं सुनी। क्या जम्मू-कश्मीर में भारतीय सैनिकों की जान की कोई कीमत नहीं? नरेंद्र मोदी के जम्मू-कश्मीर दौरे से ठीक पहले केंद्र सरकार ने कश्मीर में सीजफायर का फैसला किया। इसके तहत रमजान के पवित्र महीने के दौरान राज्य में आतंकियों के खिलाफ सेना अपना अभियान स्थगित रखेगी। इधर केंद्र ने कहाöरमजान में बंदूकें बंद रहेंगी। उधर शोपियां जिले में सुरक्षाबलों पर अटैक हुआ। त्राल में सेना की पेट्रोलिंग पार्टी पर आतंकियों ने बम फेंका। सेना जब आतंकियों को मारने के लिए घेरती है तो कश्मीरी युवा उन पर पत्थर मारते हैं, थूकते हैं और सेना बर्दाश्त करती है। पीठ पर हाथ बांधकर आप सेना को कैसे लड़ने को कह सकते हैं? क्या हमारे सैनिकों के जीवन की कोई कीमत नहीं है? आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा? इससे बेहतर तो यह है कि भाजपा जम्मू-कश्मीर गठबंधन से अलग हो और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर राज्य को सेना के हवाले कर दिया जाए। भाजपा को याद रखना चाहिए कि वह इन हिन्दुओं के वोटों से ही सत्ता में आई है। आज उन्हीं हिन्दुओं की सुरक्षा व विकास करने में असफल रही है वह भी एक अलगाववादी प्रवृत्ति की मुख्यमंत्री के लिए?

Tuesday 22 May 2018

राज्यपाल के विवेकाधिकार की समीक्षा जरूरी है

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सुनवाई के दौरान बेबाक टिप्पणी की कि राज्यपाल के विवेकाधिकार की न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए और बेशक वह संविधान की उच्चतर संस्था है। लेकिन उनकी कार्रवाई को देखा जाएगा कि वे कानूनी रूप से वैध है या नहीं? जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली तीन जजों की विशेष पीठ ने कहा कि यह वृहत्तर मुद्दा है और इसकी सुनवाई 10 हफ्ते बाद होगी। पीठ ने टिप्पणियां वरिष्ठ अधिवक्ता और सांसद राम जेठमलानी की याचिका पर की। याचिका में जेठमलानी ने कहा कि सर्वोच्च अदालत को इस मामले में व्यवस्था देनी चाहिए क्योंकि राज्यपाल ने ऐसे तरीके से काम किया है जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। पीठ ने स्पष्ट किया था कि राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुलाने के मामले में किसी अन्य को पक्ष बनने की अनुमति नहीं दी जाएगी। लेकिन पीठ जेठमलानी को सुनने के लिए तैयार हो गई। जेठमलानी ने पीठ के अन्य दो जजोंöजस्टिस भूषण और बोब्डे से भी अनुमति मांगी और उसके बाद कहा कि राज्यपाल का आदेश संविधानिक शक्तियों का भयानक दुरुपयोग है, इससे संवैधानिक कार्यालय बदनाम हुआ है। भाजपा ने जो कहा उन्होंने वही मूर्खतापूर्ण कार्रवाई कर दी। राज्यपाल का आदेश भ्रष्टाचार को खुला आमंत्रण है। कर्नाटक मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जहां तथ्य खुद बोल रहे हों वहां विवेकाधिकार नहीं होना चाहिए। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा ने राज्यपाल वजुभाई वाला को लिखे पत्र में बहुमत का दावा किया था। इस पर बैंच ने पूछा कि क्या आप वह पत्र लाए हैं? वेणुगोपाल ने कहा कि यह पत्र रोहतगी के पास है। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव बाद हुए गठबंधन का स्थान सबसे बड़े दल से नीचे होता है। कांग्रेस-जद (एस) की याचिका की सुनवाई कर रही पीठ के न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि सरकारिया आयोग की सिफारिशों के मुताबिक सबसे बड़े दल को राज्यपाल सरकार बनाने के लिए बुलाएंंगे। अगर उस दल के पास बहुमत है तो कोई समस्या नहीं है। अगर बहुमत न हो तो दो स्थितियां होती हैंöचुनाव पूर्व गठबंधन और चुनाव बाद का गठबंधन। चुनाव पूर्व गठबंधन के पास अगर बहुमत है तो सरकार बनाने के लिए बुलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि हालांकि चुनाव बाद के गठबंधन की स्थिति वह नहीं होती जो चुनाव पूर्ण गठबंधन की होती है। हम सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत करते हैं। राज्यपाल कभी-कभी पक्षपातपूर्ण फैसले करते हैं जो अलोकतांत्रिक होते हैं। संविधान में भी राज्यपाल के अधिकारों का विश्लेषण नहीं है, इसलिए बेहतर है कि सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के अधिकारों को परिभाषित करे। यह विवेकाधिकार समाप्त होना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

कांग्रेस की किलेबंदी ने मोदी-शाह की रणनीति पर पानी फेर दिया

कर्नाटक मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सियासी गुगली ने राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के किए-कराए पर पानी फेर दिया। उनकी रणनीति को बखूबी अंजाम दिया उनके दो वरिष्ठ सिपहसालारोंöगुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत ने। राज्य में भाजपा को सत्ता पाने से रोकने के राहुल के प्लान ने दो स्पष्ट संकेत दिए। पहला कि भाजपा को हराया जा सकता है। दूसरा कि अगर विपक्ष एक हो जाए तो वह सत्ता की बाजी जीत सकता है। अतीत की गलतियों से सीख लेते हुए इस बार चुनाव परिणाम से पहले ही पूरी तैयारी कर ली गई थी और सभी को इस अनुरूप जिम्मेदारी भी सौंप दी गई थी। कांग्रेस खराब मैनेजमेंट के कारण हाल के दिनों में कई बार सत्ता के करीब पहुंचने के बाद भी सरकार बनाने में विफल रही है। इस बार वह यह नहीं दोहराना चाहती थी, इसलिए पहले से ही पूरी तैयार कर ली गई। आखिरकार शनिवार को जब कांग्रेस को अपनी रणनीति में कामयाबी मिली तब पार्टी नेताओं ने राहत की सांस ली। पार्टी ने परिणाम से पहले ही तमाम संभावनाओं के मद्देनजर तैयारी के बाद सोमवार देर रात ही अचानक ही अशोक गहलोत और गुलाम नबी आजाद को बेंगलुरु भेजा ताकि वे प्लान बी के साथ तैयार रहें। देर शाम वे वहां पहुंच चुके थे। चुनाव परिणाम आधिकारिक रूप से घोषित होने से पहले ही कांग्रेस का बिना संकोच जेडीएस को समर्थन देना स्पष्ट संकेत दे रहा था कि इस चुनाव में कांग्रेस अल्पमत में आने के बावजूद पूरी रणनीति से काम कर रही थी। प्लान बी के तहत पार्टी ने बिना किसी आधिकारिक शर्त के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने पर समर्थन दे दिया। यह भी खास बात थी कि अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में कर्नाटक में कांग्रेस पहली बार चुनाव लड़ रही थी। चुनाव के पहले राहुल गांधी सिलसिलेवार जनसभाएं करते रहे, जबकि चुनाव के बाद तीनों रणनीतिकारों ने सामने आकर मैदान संभाल लिया। बिसात बिछाने के साथ पूरी रणनीति सोनिया गांधी को बताई जा रही थी। सोनिया लगातार इन तीनों नेताओं को निर्देश दे रही थीं। जब गवर्नर ने कांग्रेस को दरकिनार करते हुए भाजपा को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया तो अभिषेक मनु सिंघवी ने कानूनी तौर पर मोर्चा संभाला। सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इसे इस स्तर पर लेकर आए कि सर्वोच्च न्यायालय को आधी रात में सुनवाई करनी पड़ी। इस कानूनी लड़ाई में कपिल सिब्बल और पी. चिदम्बरम भी उनके साथ थे। नतीजों के बाद चली उठापटक में कुमारस्वामी जब राज्यपाल से मिलने पहुंचे तो उनके साथ आजाद, अशोक गहलोत और मल्लिकार्जुन खड़गे मौजूद थे। मंगलवार रात कांग्रेसी नेताओं ने बेंगलुरु के होटल में देवेगौड़ा और कुमारस्वामी से मुलाकात की, जहां आजाद भी ठहरे हुए थे। बताया जाता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डी. शिवकुमार भी होटल में मौजूद थे। इस मौजूदगी का ही परिणाम था कि जब कर्नाटक में भाजपा की सरकार गिर चुकी थी और जिसे कांग्रेस की अतिसक्रियता और विशेष रणनीति का नतीजा बताया जा रहा है। कर्नाटक से पहले गुजरात में राज्यसभा सांसद के चुनाव के दौरान भी अमित शाह की रणनीति को असफलता हाथ लगी थी, तब कांग्रेस के खेवनहार सोनिया गांधी के करीबी रहे अहमद पटेल बने थे। गुजरात चुनाव के दौरान अगर अहमद पटेल पार्टी के संकटमोचक बने तो कर्नाटक में गुलाम नबी आजाद, अशोक गहलोत, मल्लिकार्जुन खड़गे और डी. शिवकुमार पार्टी के संकटमोचक बने। उन्होंने कर्नाटक के फ्लोर टैस्ट से पहले तक कांग्रेसी विधायकों को टूटने से बचाए रखा। इन नेताओं ने सुनिश्चित किया कि कोई भी विधायक टूटे नहीं। ममता बनर्जी, मायावती और सीताराम येचुरी ने भी इस मामले में इनपुट दिए वहीं टीडीपी और टीआरएस भी कांग्रेस के इन शीर्ष नेताओं से लगातार सम्पर्प में थे। इस तरह सब ने मिलकर मोदी-शाह की रणनीति को मात दी।

Sunday 20 May 2018

जहां रोज 100 किमी रफ्तार के 4 से 6 तूफान आते हैं

आंधी-तूफान ने रविवार को देश के उत्तर से लेकर दक्षिणी और पूर्व से लेकर पश्चिमी हिस्सों में तबाही मचाई। दिल्ली में 109 किलोमीटर की रफ्तार से आंधी चली। 24 घंटे के दौरान आंधी-तूफान और बारिश की वजह से हुए हादसों में छह राज्यों में 50 से ज्यादा लोग मारे गए, सैकड़ों पेड़ गिर गए, कई घर तबाह हो गए। हवा की रफ्तार की बात करें तो दैनिक भास्कर में मैंने एक दिलचस्प रिपोर्ट पढ़ी। इस साल दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ माउंट एवरेस्ट पर जाने के लिए भारत की आठ महिलाओं को परमिट मिला है। इन आठ में एक मध्यप्रदेश की मेघा परमार भी हैं। मेघा अभी सफर में हैं। करीब 23 हजार फुट की ऊंचाई तक पहुंच चुकी हैं। 15 मई के आसपास वह 29 हजार फुट ऊंचाई वाले शिखर के लिए निकलेंगी। यह रिपोर्ट एवरेस्ट के रास्ते से उन्होंने भेजी है। रविवार दोपहर तीन बजकर 30 मिनट पर। मैं माउंट एवरेस्ट के कैंप दो यानि 21 हजार फुट पर हूं। तापमान माइनस 18 डिग्री है। तीन घंटे पहले आए बर्फीले तूफान से बचने के लिए हम कैंप के अंदर बैठे हैं। बाहर करीब 100 किलोमीटर की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चल रही हैं लेकिन मुझे अपने गांव की मिट्टी को चोटी तक पहुंचाना है। यहां रोज चार से छह बर्फीले तूफान आते हैं। कई बार तो बर्प के बड़े टुकड़े भी खिसक आते हैं। ऐसे तूफान दिन में ज्यादा आते हैं। इसलिए चढ़ाई रात दो बजे के बाद करते हैं। हम लोग प्रेस्टीज एडवेंचर ग्रुप के साथ हैं और मेरे अलावा इसमें ईरान से मेहर दादशहलाए, इटली की मार्को जाफरोनी और पोलैंड की पावेल स्टम्पनिस्वस्की हैं। पिछले सप्ताह जब हम कैंप दो से तीन के बीच सीधी पहाड़ी पर चढ़ रहे थे तब रात दो बजे तेज हवाएं हमारा रास्ता रोक रही थीं और आठ घंटे लगातार सीधी चढ़ाई के बाद हम कैंप तीन पर पहुंचे थे। कैंप दो से तीन के बीच पीठ पर बंधा ऑक्सीजन सिलेंडर हमेशा सांस लेने में मदद करता है। कैंप तीन से आने के बाद भी हम लगातार यहां आसपास मौजूद छोटी-छोटी पहाड़ियों पर चढ़ने की प्रैक्टिस करते रहते हैं ताकि एनर्जी बनी रहे। बेस कैंप से शिखर तक कुल चार कैंप हैं। बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़ने पर शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है। इसे दूर करने के लिए पहाड़ पर जमी बर्प को काटकर एल्युमीनियम के बर्तन में गरम करते हैं। यही पानी पीते हैं। अभी-अभी खबर आई है कि आठ शेरपा शिखर पर पहुंच चुके हैं। ऐसा करने वाले इस साल के पहले पर्वतारोही हैं। मेरे ग्रुप का 15 मई के आसपास शिखर पर जाने का प्लान है। अब जैसे-जैसे हम ऊंचाई तक पहुंचेंगे ऑक्सीजन कम होती जाएगी। फेफड़ों में पानी भरने व दिमाग शून्य होने का खतरा होता है। इस साल भारत से आठ महिलाएं माउंट एवरेस्ट पर जाने वाली हैं, मुझे लगता है कि सबसे पहले मैं ही शिखर पर पहुंचूंगी। बैस्ट ऑफ लक मेघा परमार।

-अनिल नरेन्द्र

कैराना और फूलपुर उपचुनाव का महत्व

उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर में हाल ही में उपचुनाव में विपक्ष को मिली जीत से उत्साहित राष्ट्रीय लोक दल ने घोषणा कर दी कि वह 28 मई को होने वाले कैराना लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष के पूर्ण समर्थन में उतरेगी। कुछ दिन पहले लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के बीच हुई लंबी मुलाकात में इस पर सहमति बनी थी कि तबस्सुम सपा के बजाय रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी और सपा उनका समर्थन करेंगी। कैराना और नूरपुर में होने वाले दोनों उपचुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि इन्हीं नतीजों के आधार पर एक साल से भी कम में होने वाले लोकसभा चुनाव का कुछ अंदाजा लग सकेगा। तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी बसपा का समाजवादी पार्टी से गठबंधन होगा। विधानसभा उपचुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर और फूलपुर में मिली सफलता को देखते हुए इसकी पहले से उम्मीद की जा रही थी। अगर उत्तर प्रदेश में बसपा, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस व रालोद मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो इनका वोटर शेयर (पिछले लोकसभा चुनाव में) 49.3 प्रतिशत बनता है। भाजपा का 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल वोट शेयर था 43.3 प्रतिशत। इस तरह अगर वोट बंटते नहीं और फाइट वन टू वन होती है तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। कैराना और नूरपुर चुनाव से थोड़ा अंदाजा हो जाएगा। उधर उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने सपा और बसपा के बीच भ्रष्टाचार का पैक्ट होने और कांग्रेस तथा रालोद पर इसकी अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि सीबीआई प्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार के कार्यकाल में 21 चीनी मिलें औने-पौने दाम पर बेचे जाने की जांच में सच सामने लाकर इस कॉकटेल को खत्म करेगी। भाजपा ने दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की पुत्र मृगांका सिंह को कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए उतारा है। इनका मुकाबला संयुक्त विपक्ष की उम्मीदवार तबस्सुम बेगम से होगा। भाजपा को हाल ही में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भी इसी प्रकार के मुकाबले का सामना करना पड़ा था। भाजपा सांसद हुकुम Eिसह के निधन के बाद यह सीट फरवरी से रिक्त है। वहीं बिजनौर जिले के उपचुनाव नूरपुर विधानसभा सीट पर भाजपा ने दिवंगत भाजपा विधायक लोकेन्द्र चौहान की पत्नी अवनी सिंह को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर सपा ने नईमुल हसन को मैदान में उतारा है। आम चुनाव के सेमीफाइनल माने जा रहे कैराना उपचुनाव को लेकर बड़ा सवाल यह है कि इसके परिणाम से क्या वैस्ट यूपी की आगे की सियासत में कोई बदलाव आएगा? अगर विपक्ष का प्रयोग यहां भी सफल हो गया तो इसका सीधा असर आगामी लोकसभा चुनाव में पड़ेगा। वहीं अगर यहां कमल खिलता है तो यह संदेश जाएगा कि दंगे के बाद जाट और मुस्लिम के बीच खड़ी हुई नफरत की दीवार अब भी नहीं टूटी है। वैस्ट यूपी में हमेशा से दलित और जाट के बीच टकराव जगजाहिर रहा है लेकिन संदेश जाएगा कि बसपा के साथ आने के बाद भी जातीय टकराव कम नहीं हुआ है।

Saturday 19 May 2018

कैराना और फूलपुर उपचुनाव का महत्व

 उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर में हाल ही में उपचुनाव में विपक्ष को मिली जीत से उत्साहित राष्ट्रीय लोक दल ने घोषणा कर दी कि वह 28 मई को होने वाले कैराना लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष के पूर्ण समर्थन में उतरेगी। कुछ दिन पहले लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के बीच हुई लंबी मुलाकात में इस पर सहमति बनी थी कि तबस्सुम सपा के बजाय रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी और सपा उनका समर्थन करेंगी। कैराना और नूरपुर में होने वाले दोनों उपचुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि इन्हीं नतीजों के आधार पर एक साल से भी कम में होने वाले लोकसभा चुनाव का कुछ अंदाजा लग सकेगा। तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी बसपा का समाजवादी पार्टी से गठबंधन होगा। विधानसभा उपचुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर और फूलपुर में मिली सफलता को देखते हुए इसकी पहले से उम्मीद की जा रही थी। अगर उत्तर प्रदेश में बसपा, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस व रालोद मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो इनका वोटर शेयर (पिछले लोकसभा चुनाव में) 49.3 प्रतिशत बनता है। भाजपा का 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल वोट शेयर था 43.3 प्रतिशत। इस तरह अगर वोट बंटते नहीं और फाइट वन टू वन होती है तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। कैराना और नूरपुर चुनाव से थोड़ा अंदाजा हो जाएगा। उधर उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने सपा और बसपा के बीच भ्रष्टाचार का पैक्ट होने और कांग्रेस तथा रालोद पर इसकी अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि सीबीआई प्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार के कार्यकाल में 21 चीनी मिलें औने-पौने दाम पर बेचे जाने की जांच में सच सामने लाकर इस कॉकटेल को खत्म करेगी। भाजपा ने दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की पुत्र मृगांका सिंह को कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए उतारा है। इनका मुकाबला संयुक्त विपक्ष की उम्मीदवार तबस्सुम बेगम से होगा। भाजपा को हाल ही में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भी इसी प्रकार के मुकाबले का सामना करना पड़ा था। भाजपा सांसद हुकुम Eिसह के निधन के बाद यह सीट फरवरी से रिक्त है। वहीं बिजनौर जिले के उपचुनाव नूरपुर विधानसभा सीट पर भाजपा ने दिवंगत भाजपा विधायक लोकेन्द्र चौहान की पत्नी अवनी सिंह को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर सपा ने नईमुल हसन को मैदान में उतारा है। आम चुनाव के सेमीफाइनल माने जा रहे कैराना उपचुनाव को लेकर बड़ा सवाल यह है कि इसके परिणाम से क्या वैस्ट यूपी की आगे की सियासत में कोई बदलाव आएगा? अगर विपक्ष का प्रयोग यहां भी सफल हो गया तो इसका सीधा असर आगामी लोकसभा चुनाव में पड़ेगा। वहीं अगर यहां कमल खिलता है तो यह संदेश जाएगा कि दंगे के बाद जाट और मुस्लिम के बीच खड़ी हुई नफरत की दीवार अब भी नहीं टूटी है। वैस्ट यूपी में हमेशा से दलित और जाट के बीच टकराव जगजाहिर रहा है लेकिन संदेश जाएगा कि बसपा के साथ आने के बाद भी जातीय टकराव कम नहीं हुआ है।

वॉलमार्ट के आने से छोटे कारोबारियों- दुकानदारों को भारी नुकसान होगा

कुछ साल पहले अपने देश में बहुत सारे लोगों ने वॉलमार्ट का नाम पहली बार तब सुना था जब खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने की पहल हुई थी। तब बड़े पैमाने पर यह आशंका भी जताई गई थी कि अगर यह पहल आगे बढ़ी तो भारत के खुदरा कारोबार पर वॉलमार्ट जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों का कब्जा हो जाएगा और इससे करोड़ों छोटे दुकानदारों की आजीविका पर खराब असर पड़ेगा। उस समय वॉलमार्ट के भारत आने के विरोध करने वालों में भाजपा भी शामिल थी। विरोध के फलस्वरूप आखिरकार मनमोहन सिंह सरकार को बहु-खुदरा व्यवसाय में एफडीआई को मंजूरी देने का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था। लेकिन जिस वॉलमार्ट को यूपीए सरकार के समय तीखे विरोध के कारण रुक जाना पड़ा था, अब उसने राजग सरकार के समय भारत में प्रवेश के लिए अपने कदम बढ़ा दिए हैं। खुदरा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वॉलमार्ट ने कई महीनों की चर्चा के बाद आखिरकार भारतीय ऑनलाइन कंपनी फ्लिपकार्ट की 77 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने का ऐलान किया है जिससे भारतीय ऑनलाइन बाजार की पूरी तस्वीर बदल जाएगी। अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट 16 अरब डॉलर (1.07 लाख करोड़ रुपए) में फ्लिपकार्ट की 77 प्रतिशत हिस्सेदारी लेगी। दुनिया की यह सबसे बड़ी ई-कॉमर्स डील है। डील में फ्लिपकार्ट की वैलुएशन 20.8 अरब डॉलर (1.39 लाख करोड़ रुपए) आंकी गई है। इस लिहाज से यह ई-कॉमर्स में दुनिया की सबसे बड़ी डील है। वैसे यह हमारी समझ से परे है ]िक एक फली-फूलती कंपनी के मुख्य साझेदारों ने इस तरह अपने को क्यों बेच दिया? 77 प्रतिशत का मतलब है कंपनी का अधिग्रहण है। हालांकि एक मायने में यह अद्भुत भी है। सामान्य स्टार्टअप के तहत खड़ी की गई कंपनी वॉलमार्ट ने 20.8 अरब डॉलर की कीमत लगाई। इस नाते फ्लिपकार्ट की उपलब्धि भी मानी जा सकती है। हालांकि इसके कुछ शेयरधारकों ने अभी इस डील को अपनी स्वीकृति नहीं दी है। इस डील का विरोध भी हो रहा है। वॉलमार्ट के विरोध में देश व दिल्ली के व्यापारियों ने विरोध में एक विशेष रैली के आयोजन का फैसला किया है। आयोजकों का कहना है कि इस डील से स्पष्ट है कि वॉलमार्ट हमारे देश में बैक डोर एंट्री लेने में सफल रहा है। अगर एफडीआई की बात करें तो हमारे देश में केवल सिंगल ब्रांड की अनुमति है, जबकि वॉलमार्ट मल्टी ब्रांड है। संयोजकों ने कहा कि हमारा विरोध न केवल वॉलमार्ट के खिलाफ है बल्कि केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ भी है, जिसने हमारे देश के छोटे व मझौले व्यापारियों के भविष्य का ख्याल रखे बगैर इस समझौते को होने दिया है। लेकिन इस डील का एसोचैम जैसे कारपोरेट संघ ने स्वागत किया है। वहीं स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि यह सौदा छोटे और मझौले कारोबारियों व दुकानदारों को खत्म करेगा और रोजगार सृजन के अवसर भी खत्म करेगा। यह भी आशंकाएं खड़ी की जा रही हैं कि कहीं यह खुदरा बाजार में परोक्ष तरीके से प्रवेश का प्रयास तो नहीं? हालांकि अभी भारत में ई-कॉमर्स को लेकर एकदम साफ नीति-नियम नहीं है, इसलिए यह देखना होगा कि इस सौदे को सरकार की किस तरह मंजूरी मिलती है? वास्तव में वॉलमार्ट को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग सहित कई संस्थाओं से मंजूरी लेनी होगी। सब कुछ होते हुए एक वर्ष तो लग जाएगा। जो भी हो एक विदेशी मल्टीनेशनल कंपनी का आम सामानों की खरीद-फरोख्त में इस तरह का वर्चस्व कोई सुखद प्रगति नहीं मानी जा सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में निर्माणाधीन फ्लाइओवर का गिरना

वाराणसी में एक निर्माणाधीन फ्लाइओवर के दो स्लैब गिरने से हमें पता चलता है कि अतीत में हुए इसी प्रकार के हादसों से कोई सबक नहीं लिया गया। वाराणसी के चौका घाट से कैंट रेलवे स्टेशन होते हुए लहरतारा तक जाने वाले फ्लाइओवर का काम चल रहा था। मंगलवार की शाम लगभग साढ़े पांच बजे कैंट रेलवे स्टेशन के पास दो पिलर को जोड़ने वाली स्लैब असंतुलित होकर नीचे चलते ट्रैफिक पर जा गिरा। इस हादसे में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई जबकि 30 से ज्यादा घायल हैं। आधा दर्जन से ज्यादा वाहन इन बीमों के नीचे दब गए। एनडीआरएफ, सेना, पुलिस, पीएसी व स्थानीय लोगों की मदद से चार घंटे तक चले राहत और बचाव कार्य के बाद दोनों बीमों को मौके से हटा दिया गया। उत्तर प्रदेश सेतु निर्माण निगम की लापरवाही से यह हादसा हुआ। तेज धमाका सुनकर लोग घरों से निकल कर भागे। राहगीरों में भी भगदड़ मच गई। आधे घंटे के बाद पुलिस पहुंची व डेढ़ घंटे बाद बचाव कार्य शुरू हो सका। नौ केनों से बीम को हल्का से उठाया गया तो दो ऑटो, दो बोलेरो कार को निकाला गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देर रात को वाराणसी पहुंचे। उन्होंने डीएम-कमिश्नर से पूछा कि बीम कैसे गिरा? इस सवाल का जवाब अफसरों से देते नहीं बना। उन्होंने कहा कि हादसे की जांच रिपोर्ट आने के बाद दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी। हादसे की हकीकत जानने के लिए तकनीकी टीम का गठन किया गया है। योगी आदित्यनाथ ने मृतकों को पांच-पांच लाख और घायलों को दो-दो लाख रुपए देने की घोषणा की है। वह बीएचयू ट्रॉमा सेंटर भी गए और वहां घायलों का हाल जाना। हालांकि राष्ट्रीय आपदा दल की टीम के जल्द वहां पहुंचने से अनेक घायल लोगों को समय रहते चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा सकी, लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि हमारे यहां ऐसे बड़े निर्माण के दौरान आम लोगों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की कोई व्यवस्था नहीं है। अलबत्ता दिल्ली में मेट्रो लाइन के निर्माण के दौरान संबंधित इलाके की इस तरह से घेराबंदी की जाती है जिससे नियमित यातायात न तो प्रभावित हो, न लोगों को परेशानी हो, पर इसके बावजूद हादसे हुए हैं। कुछ दिन पहले गुड़गांव और गाजियाबाद में ऐसे हादसे हुए थे जब निर्माणाधीन पुल के हिस्से गिर गए थे। वाराणसी में हुआ हादसा घनघोर आपराधिक लापरवाही का उदाहरण है, जहां प्रशासन ने सावधानी बरती होती तो यह हादसा टाला जा सकता था। हादसे की असली वजह निश्चय ही जांच से पता चलेगी, लेकिन जो शहर प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र हो वहां ऐसी लापरवाही की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। मुझे याद है कि जब कोलकाता में फ्लाइओवर गिरा था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यह भगवान का संदेश है कि बंगाल की तृणमूल कांग्रेस से बचाया जाए। आज मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक फ्लाइओवर गिर गया है, अब इसे क्या समझें?

Thursday 17 May 2018

नतीजों के बाद सबकी नजरें टिकीं राजभवन पर

कर्नाटक विधानसभा चुनाव पर देश भर की निगाहें लगी हुई थीं। 224 संसदीय विधानसभा की 222 सीटों पर शनिवार को मतदान हुआ था। मतदान के बाद विभिन्न चैनलों के एग्जिट पोल में त्रिशंकू विधानसभा की संभावना सही साबित हुई है। एग्जिट पोल की बात करें तो पांच चैनलों के एग्जिट पोल में भाजपा और चार में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में fिदखाया गया था। हालांकि दो चैनलों में तो भाजपा और कांग्रेस के बहुमत का अनुमान भी व्यक्त किया गया था। परिणामों में वह चार एग्जिट पोल तो कुछ हद तक सही साबित हुए जिन्होंने दावा किया था कि भाजपा सबसे बड़ी पाटी बनकर उभरेगी। यह भी सही रहा कि त्रिशंकू विधानसभा होगी। फाइनल परिणाम कुछ इस पकार रहे ः भाजपा 104 (46.4 पतिशत), कांग्रेस 78 (34.8 पतिशत) और जेडीएस (37)। यह भी सही रहा कि जेडीएस किंग मेकर की भूमिका में रहेगी। त्रिशंकू विधानसभा के हालात सामने आने के बाद भाजपा और कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन दोनों ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है। इसके बाद राज्य में भावी सरकार को लेकर संशय और गहरा गया है और जोड़-तोड़ की सियासत शुरू हो गई है। अब सारी नजरें राज्यपाल वनुभाई वाला पर टिक गई हैं। उन्हें फैसला करना है कि वे सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी भाजपा को आमंत्रित करें या कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन को। भारतीय राजनीति में हमेशा बोली की मर्यादा का ख्याल रखा गया है पर दुख से कहना पड़ता है कि इस चुनाव में यह मर्यादा टूट गई। पूर्व पधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने राष्ट्रपति कोविंद को चिट्ठी लिखकर पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाषा पर आपत्ति जताई है। कर्नाटक चुनाव में डा. सिंह के अनुसार पधानमंत्री कांग्रेस को धमकाने का काम कर रहे हैं। दरअसल कर्नाटक के हुबली में 6 मई को चुनाव पसार के दौरान पीएम मोदी ने भाषण देते हुए कहा था, `कांग्रेस के नेताओं कान खोलकर सुन लीजिए, अगर सीमाओं को पार करेंगे तो ये मोदी है लेने के देने पड़ जाएंगे।' कांग्रेस ने इस भाषण का उल्लेख करते हुए इसे आपत्तिजनक बताया है और राष्ट्रपति से पीएम को चेतावनी जारी करने के लिए कहा है। कांग्रेस ने आगे लिखा है कि यह सोचना मुश्किल है कि हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में पीएम के पद पर बैठा कोई व्यक्ति इस तरह की डटने वाली भाषा का इस्तेमाल करे। इस चुनाव में एक नया रिकार्ड भी बना है। वह है कि यह चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव रहा। यह सर्वेक्षण सेंटर फार मीडिया स्टडीज ने किया है। यह सेंटर खुद को अपनी वेबसाइट पर एक गैर सरकारी संगठन और थिक टैंक बताता है। इसके द्वारा किए गए सर्वेक्षण में कर्नाटक चुनाव को धन पीने वाला बताया है। सीएमएस के अनुसार विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और उसके उम्मीदवारों द्वारा कर्नाटक चुनाव में 9,500 से 10,500 करोड़ केंद्रीय धन खर्च किया गया है। यह खर्च राज्य में आयोजित पिछले विधानसभा चुनाव के खर्च से दोगुना है। सर्वेक्षण में बताया गया कि इसमें पधानमंत्री के अभियान में हुआ खर्चा शामिल नहीं है। सीएमएस के एन भास्कर राव ने खर्च की दर अगर यही रही तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 50,000-60,000 कऱोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव के लिए कड़ी मेहनत और मुश्क्कत की। हालांकि कर्नाटक की उत्तर पदेश से आधी सीटें हैं, आबादी भी एक तिहाई है, पर मोदी ने ताकत बराबर लगाई। पीएम ने 21 रैलियां कीं। दो बार नमो एप से मुखातिब हुए। करीब 29 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। मोदी कर्नाटक में एक भी धार्मिक स्थल पर नहीं गए। इनके मुकाबले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 20 रैलियां कीं और 40 रोड शो-नुक्कड़ सभाएं कीं। राहुल ने मोदी से दोगुनी अधिक दूरी तय की। 55 हजार किलोमीटर की यात्रा की। कांग्रेस की बात करें तो ऐसा पतीत होता है कि इस बार उसे यह एहसास हो गया था कि उसे बहुमत नहीं मिलने वाला है और त्रिशंकू विधानसभा होगी। इसलिए कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मतगणना से पहले दलित कार्ड खेला। कांग्रेस गोवा की गलती दोहराने को तैयार नहीं थी और उसने पार्टी हाई कमान से सबक लिया। जैसे ही परिणाम आए सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं को आदेश दिया कि वह कुमार स्वामी से जाकर मिलें और उनसे कहें कि कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के लिए उन्हें समर्थन देने को तैयार है। यह राजनीति के लिहाज से एक बड़ा दांव रहा। अब कम से कम कांग्रेस-जेडीएस सरकार बनाने की रेस में शामिल तो है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण थे। यह लड़ाई कांग्रेस के अस्तित्व की और भाजपा के लिए 2019 के चुनाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था बोमई बनाम केंद्र सरकार के एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए सुपीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि बहुमत का फैसला विधानमंडल के पटल पर होगा न कि राजनिवास में। अगर राज्यपाल भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं तो जाहिर है कि उसे जेडीएस का समर्थन चाहिए। ऐसे में विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। अलबत्ता हार्स ट्रेडिंग को रोकने के लिए और राजनीति में शुचिता स्थापित करने के लिए कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना बेहतर होगा। देखें, राज्यपाल महोदय क्या फैसला करते हैं?

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday 16 May 2018

जनरल रावत की पथराव करने वालों को चेतावनी

कश्मीर घाटी में पथराव की बढ़ती घटनाओं और आतंकवाद बढ़ने के संकेतों के बीच सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने उपद्रवियों को कड़ा संदेश दिया है। जनरल रावत ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें आजादी कभी नहीं मिलने वाली और इसके लिए हथियार उठाने वालों से हम सख्ती से निपटेंगे। जम्मू-कश्मीर की अस्थिर स्थिति पर यह उनका सबसे बड़ा बयान है। उन्होंने सीधा हमला उस आजादी पर बोला है जिसके नाम पर इन नौजवानों को भड़काया जा रहा है। इसलिए जनरल रावत जब कहते हैं कि यह आजादी उन्हें नहीं मिलने वाली तो इसका सीधा अर्थ यह है कि घाटी में जिस तरह से और जिस तरह की आजादी के सपने बेचे जा रहे हैं। वे बेमतलब तो हैं ही, साथ ही अव्यावहारिक भी हैं। यह सीमा पार से आई एक चुनौती है जिसे नौजवानों के रूप में भारतीय सेना के सामने खड़ा किया जा रहा है। जाहिर है इसका जवाब भारतीय फौज को ही देना है और वह माकूल जवाब दे भी रही है। जनरल रावत ने स्पष्ट किया कि सेना का व्यवहार कभी बर्बर नहीं रहा। इसी स्थिति में सीरिया व पाकिस्तान में टैंक और हवाई हमलों का इस्तेमाल किया जा रहा है। जनरल रावत के बयान की पुष्टि लश्कर--तैयबा के आतंकी एजाज गुजरी के वीडियो से भी होती है, जिसमें उसने माना है कि वह झाड़ियों में छिपा था, जहां सेना उसे मार सकती थी लेकिन उसे बंदी बनाकर उसकी जान बचाई। उसने कहा कि सेना ने मुझे नई जिन्दगी दी है। गुजरी ने गलत रास्ते पर चल रहे अपने साथियों को भी हथियार छोड़कर सामान्य जिन्दगी जीने की अपील की है। पाकिस्तानी करतूतों का भी पर्दाफाश करते हुए उसने बताया कि जिस दिन वह पकड़ा गया उसी दिन पाकिस्तान से आतंकियों को निर्देश मिले थे कि भारतीय सेना बर्बरता कर रही है, इसलिए वे उपद्रव फैलाएं। घाटी में शिक्षित युवाओं का आतंकी गुटों में शामिल होना भी पाकिस्तानी साजिश का ही संकेत है। जनरल रावत ने राज्य की महबूबा मुफ्ती सरकार को भी संदेश दे दिया है जो ईद और अमरनाथ यात्रा का हवाला देकर पथराव करने वालों के खिलाफ कार्रवाई रोकने पर जोर दे रही हैं। सेना और सुरक्षा बल कश्मीर में हमेशा से ही अपनी भूमिका अच्छे से निभाते रहे हैं। वहां आपत्ति दरअसल राजनीतिक दलों से ज्यादा है, हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे अलगाववाद संगठनों से ज्यादा है। यह अपनी भूमिका को सही ढंग से नहीं निभाते। कश्मीरी नौजवानों का मुख्य धारा में शामिल करने का मुद्दा हमेशा ही राजनीति की भेंट चढ़ा है। समस्या के समाधान में राजनीतिक दल भी एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन इन सबको अंजाम देने में प्रदेश की राजनीति नाकाम रही है। इसलिए नौजवानों को समझाने का काम भी थलसेना प्रमुख को ही करना पड़ रहा है। हम जनरल रावत के बयान से पूरी तरह सहमत हैं और बहादुर जवानों को अत्यंत कठिन स्थिति से निपटने के लिए सलाम करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

हिंसा के सहारे चुनाव जीतना

पश्चिम बंगाल में सोमवार को पंचायत चुनाव के लिए मतदान का दिन था। मतदान के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा में कम से कम 18 लोगों की मौत हो गई और 50 लोग घायल हो गए। ये मौतें पश्चिम बंगाल के आठ जिलों में हुई हैं। हालांकि चुनावों के लिए कड़े सुरक्षा के इंतजाम का दावा किया जा रहा था फिर भी इतने बड़े पैमाने पर हुईं मौतें बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है। बूथ कब्जे, आगजनी, बम फेंकने, धमकी देने और मारपीट की कितनी घटनाएं हुईं इसका पूरा हिसाब दे पाना फिलहाल मुश्किल है। चुनाव शांतिपूर्ण, निष्पक्ष, बिना किसी भय या दबाव के होने चाहिए। लेकिन इनमें से किसी भी कसौटी पर ये चुनाव खरे नहीं उतरते। यही नहीं, ये चुनाव कानून-व्यवस्था की नाकामी भी बयान करते हैं। इस हिंसा से यही पता चलता है कि इस राज्य में लोकतंत्र के नाम पर किस तरह लोकतांत्रिक मूल्यों व मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाई गईं। चिन्ता का विषय तो यह है कि इसके पूरे आसार दिख रहे थे कि पंचायत चुनावों के मतदान प्रक्रिया को बाधित करने के लिए हिंसा का सहारा लिया जा सकता है, लेकिन न तो ममता बनर्जी की राज्य सरकार ने उसे रोकने के लिए कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही राज्य चुनाव आयोग ने उसे रोकने के लिए पर्याप्त प्रबंध किए। पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान हिंसा का इतिहास रहा है इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि राज्य सरकार चुनाव आयोग के साथ मिलकर निष्पक्ष-स्वतंत्र चुनाव का प्रबंध करेगी पर इस काम में राज्य सरकार विफल रही है। राज्य सरकार ऐसे समय में केंद्रीय बल मांग लेते हैं पर राजनीतिक कारणों के चलते ममता बनर्जी की तृणमूल सरकार ने केंद्र से सुरक्षा बल मांगने के बजाय उनके प्रति अपना अविश्वास प्रकट करने के लिए मुख्यत गैर-भाजपा शासित राज्यों से पुलिस बलों पर ज्यादा भरोसा किया और मांगे भी कितने, दो हजार। यह महज दिखावा था। हिंसा की ताजा घटनाओं पर माकपा, कांग्रेस और भाजपा यानि विपक्ष की सभी पार्टियों ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए तृणमूल का आतंक उसे करार दिया। इसके पलटवार में तृणमूल ने कहा कि पंचायत चुनाव में हिंसा की घटनाएं पहले भी होती थीं, बल्कि वाम मोर्चे के राज में इससे भी ज्यादा हुई थीं। सवाल यह है कि क्या पहले के आंकड़ों का हवाला देकर राज्य सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ सकती है? यह सही है कि बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा का पुराना इतिहास रहा है और जिस पार्टी की सरकार होती है वह विपक्ष के कार्यकर्ताओं को डराने-धमकाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। जिस तरह उपद्रवी तत्व बेखौफ थे इससे यह स्पष्ट होता है कि इन्हें उपद्रव करने की खुली छुट मिली हुई थी और इसी वजह से चुनावी हिंसा में इतने अधिक लोग हताहत हुए। इस तरह चुनाव जीतना क्या लोकतंत्र के लिए जायज है?

Tuesday 15 May 2018

चौथी बार राष्ट्रपति चुने गए ब्लादिमीर पुतिन

रूस में ब्लादिमीर पुतिन ने बतौर राष्ट्रपति अपनी चौथी पारी शुरू कर दी है। वह 1999 से लगातार सत्ता में हैं और जोसेफ स्टालिन के बाद सबसे ज्यादा लंबे समय तक सत्ता में बने रहने का रिकार्ड बना चुके हैं। रविवार को हुए चुनाव में उन्हें 76 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले, जो पिछली बार से करीब 13 प्रतिशत ज्यादा हैं। बता दें कि जोसेफ स्टालिन 30 साल सत्ता में रहे थे। पुतिन के सामने सात उम्मीदवार मैदान में थे। उनके सबसे बड़े आलोचक रहे अलैक्सी नवाहनी को कानूनी वजहों से चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। नवाहनी ने हालांकि चुनाव को फेल बताया और कहा कि चुनाव में जबरदस्त धांधली हुई है। वहीं चुनाव की कार्यप्रणाली पर नजर रखने वाली संस्था गोलोस के मुताबिक चुनाव के दिन कई जगहों पर अनियमितताएं देखने को मिलीं। जैसे कई बैलेट बॉक्सों में चुनाव शुरू होने से पहले ही कुछ वोटिंग पेपर्स पड़े थे। कई मतदान केंद्रों पर ऑब्जर्वर्स को घुसने नहीं दिया गया। मतदान केंद्रों पर लगे कैमरों को गुब्बारों या अन्य कुछ चीजों से ढंका गया था। हालांकि रूस की सेंट्रल इलेक्ट्रोरल कमीशन की चीफ एला पामलोवा ने कहा कि चुनाव के दिन ज्यादा गड़बड़ियां दर्ज नहीं की गईं। रूस के संविधान के मुताबिक कोई भी शख्स दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता। इसलिए 2008 में पुतिन प्रधानमंत्री पद के  लिए खड़े हुए और जीत हासिल की। 2008-12 में दिमित्री मेददेव राष्ट्रपति रहे। 2012 में पुतिन ने दोबारा राष्ट्रपति बनने में दिलचस्पी दिखाई और उनके लिए देश के संविधान में संशोधन भी कर दिया गया। बदलाव के मुताबिक रूस में दो बार राष्ट्रपति बनने की सीमा खत्म की गई। साथ ही उनके कार्यकाल को चार साल से बढ़ाकर छह साल कर दिया गया। बता दें कि ब्लादिमीर पुतिन रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी में जासूस थे। एक्सपर्ट्स की मानें तो दुनिया के सबसे बड़े देश रूस में उनकी पकड़ गहरी बन चुकी है। विपक्ष को उन्होंने करीब-करीब खत्म कर दिया है और टीवी पर अब सरकारी नियंत्रण है। चुनाव अभियान में पुतिन ने रूस को दुनिया की महाशक्ति बताया। साथ ही कहा कि हमारे नए एटमी हथियार किसी से भी कमतर साबित नहीं होंगे। 65 साल की इकोनॉमिक्स ओलगा मैटयुनीना ने कहाöहां मैंने पुतिन को वोट दिया। वो एक लीडर हैं। जब वह क्रीमिया वापस लाए वे मेरे हीरो बन गए। पुतिन इस समय दुनिया के ताकतवर नेताओं में हैं। उधर चीन में भी शी जिनपिंग आजीवन राष्ट्रपति के लिए चुने गए हैं। दोनों नेता मिलकर अमेरिका को नियंत्रण में रख सकते हैं। पर घरेलू फ्रंट पर पुतिन की चुनौतियां बरकरार हैं।

-अनिल नरेन्द्र

अरसे बाद लालू के घर लौटीं खुशियां

जेल से 140 दिन बाद घर पहुंचे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के घर में खुशियां लौटीं। इसके दो दिन बाद शनिवार को उनके बेटे तेज प्रताप की शादी हुई। करोड़ों रुपए के चारा घोटाले के मामले में सजायाफ्ता लालू को इस शादी में शामिल होने के लिए तीन दिन की पेरोल मिल गई। पिछले वर्ष दिसम्बर से न्यायिक हिरासत में चल रहे लालू जब पटना हवाई अड्डे पहुंचे तो हजारों की संख्या में उनके समर्थक उनका स्वागत करने के लिए पहुंचे हुए थे। पटना के जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डे पर शाम करीब 6.40 बजे पहुंचे लालू का स्वागत उनकी बड़ी बेटी और सांसद मीसा भारती, बड़े पुत्र तेज प्रताप, छोटे पुत्र और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, दामाद शैलेश सहित पार्टी के कई अन्य विधायक और नेता मौजूद थे। हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद लालू को भारी सुरक्षा के बीच व्हीलचेयर के जरिये गाड़ी में बिठाकर 10 सर्कुलर रोड स्थित उनकी पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास के लिए रवाना किया गया। इस बहाने लालू ने अपनी सियासी ताकत भी दिखाई। तेज प्रताप की शादी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत बड़ी संख्या में पक्ष-विपक्ष के नेता शामिल हुए। दरअसल सूबे के दो सियासी परिवारों की दोस्ती, रिश्तेदारी में बदल गई। शनिवार की रात पटना में बैंडबाजे की तेज धुन पर मस्ती में नाचते बड़ी संख्या में लोग, शहनाई की धुन पर पंडितों के मंत्रोच्चारण के बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव और पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पौत्री व पूर्व मंत्री चंद्रिका राय की पुत्री ऐश्वर्या राय से हो गई। विवाह का कार्यक्रम चंद्रिका राय के सरकारी आवास (5 सर्कुलर रोड) पर हुआ। लालू-राबड़ी के घर से पहली बार बारात निकली थी। सात बेटियों की शादी के बाद उनके बड़े बेटे का विवाह हो रहा था। अरसे बाद लालू परिवार जश्न में डूबा था। बारात में कई दिग्गज नेता थे। समारोह में राज्य और देश से जुटने वाले तमाम नेताओं को विपक्षी एकता के रूप में देखा जाने लगा है। राजद के एक नेता ने बताया कि इस समारोह में कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित कई राज्यों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) विरोधी खेमों में शामिल उन नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था, जिनकी पहचान उन क्षेत्रों में क्षत्रपों के तौर पर होती है। बारात में प्रफुल्ल पटेल, शरद यादव, रामविलास पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा, आरके सिंह, दिग्विजय सिंह, राम जेठमलानी, अजीत सिंह, सुबोध कांत सहाय, कीर्ति आजाद आदि शामिल हुए। लालू के लिए राहतभरी एक खबर तब आई जब झारखंड उच्च न्यायालय ने बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता लालू को छह सप्ताह की औपबंधिक जमानत (प्रोविजनल बेल) दे दी। मेडिकल के आधार पर उन्हें छह सप्ताह की बेल दी गई है।