Saturday 12 May 2018

पद छोड़ने के बाद मुख्यमंत्री भी आम आदमी है

मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी से हटते ही आम नागरिक की श्रेणी में आ जाता है। ऐसे में उसे सरकारी आवास क्यों चाहिए? इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के उस कानून को निरस्त कर दिया जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को ताउम्र सरकारी बंगला देने का प्रावधान था। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर. भानुमति की पीठ ने ऐतिहासिक और दूरगामी फैसले में कहा कि पूर्व सीएम और आम नागरिक में किसी तरह का भेद नहीं हो सकता। पूर्व मुख्यमंत्री अपने पास रहे पद की विशेषता के कारण सुरक्षा सहित अन्य प्रोटोकॉल पाने के हकदार हैं। लेकिन पद से हटने के बाद भी सरकारी आवास में रहने की अनुमति देना समानता के संवैधानिक सिद्धांत के विपरीत है। शीर्ष अदालत ने कहाöप्राकृतिक संसाधन, सरकारी जमीन व चीजें, जिनमें सरकारी व आधिकारिक आवास भी आते हैं, सार्वजनिक सम्पत्ति है। यह देश के लोगों की है। राज्यों को अपने संसाधनों के वितरण में न्याय की अवधारणा से निकलने वाले समानता के सिद्धांत से प्रेरित होना चाहिए। पीठ ने कहाöउत्तर प्रदेश के मंत्री (वेतन, भत्ते व विविध प्रावधान) 1981 अधिनियम नागरिकों का एक अलग वर्ग तैयार करता है। यह उन्हें पूर्व पब्लिक ऑफिस के आधार पर सरकारी सम्पत्तियों का हकदार बनाता है। पद छोड़ने के बाद भी उन्हें अलग वर्ग की मान्यता देना मनमाना व भेदभावपूर्ण है। यह संवैधानिक प्रावधानों के फैसले के विपरीत है। अभी उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम एनडी तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, अखिलेश यादव और मायावती को राजधानी लखनऊ में सरकारी बंगला मिला हुआ है। दिल्ली में सीएम को पद से हटने के बाद तीन महीने में बंगला खाली करना होता है। इसके बाद वह बाजार दर से किराया देकर छह महीने तक इसमें रह सकते हैं। देश के सभी राजनीतिक दलों को स्वयं आगे आकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समर्थन करना चाहिए और जितने भी पूर्व मुख्यमंत्री इस गैर-संवैधानिक सुविधा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें स्वेच्छा से इसे छोड़ देना चाहिए। दरअसल राजनीतिक वर्ग का आचरण, व्यवहार और संस्कृति सामंतों की तरह हो गई है जो आम जनता को प्रजा और स्वयं को प्रजापति यानि शासक वर्ग मानता है। अगस्त 2016 में एक गैर-सरकारी संगठन लोक प्रहरी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम को सरकारी बंगला आवंटित करने के प्रावधान को निरस्त कर दिया था। लेकिन तब की अखिलेश सरकार ने उत्तर प्रदेश मंत्रिगण कानून 1981 में संशोधन करके पूर्व मुख्यमंत्रियों के विशेषाधिकार को सुरक्षित कर दिया था। इस संशोधन को लोक प्रहरी संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश के तमाम राज्यों पर भी लागू होगा। राजस्थान, बिहार, असम जैसे राज्य भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। बंगले जितनी जल्दी खाली हो जाएं, उतना ही अच्छा है।
-अनिल नरेन्द्र

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