Thursday 27 July 2023

तीन साल में बंद हुईं 20 हजार छोटी और परित्यक्त फैक्ट्रियां!

सरकार ने पिछले गुरुवार को लोकसभा में बताया था कि जुलाई 2020 से मार्च 2023 तक देश में 19687 छोटे, मझोले कारखाने या उद्योग बंद हो गए हैं या उनका उत्पादन बंद हो गया है. लघु उद्योग राज्य मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा ने लोकसभा सदस्य क्लियोग बनर्जी के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी. सदस्य ने पूछा कि क्या वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 10655 एमएसएमई बंद हो गए हैं जो पिछले चार वर्षों में सबसे अधिक है। मंत्री ने कहा कि ये औद्योगिक पंजीकरण पोर्टल के आंकड़े हैं. उनके मुताबिक, जुलाई 2020 से मार्च 2021 तक 175 एमएसएमई बंद हो गए या उन्होंने काम करना बंद कर दिया. वहीं, अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक 63322 एमएसएमई बंद हो गए। इसी तरह, 1 अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक 13,290 एमएसएमई बंद हो गए या उन्होंने उत्पादन बंद कर दिया। इस तरह जुलाई 2020 से मार्च 2023 तक 19687 छोटी, बड़ी और मझोली फैक्ट्रियां बंद हो गईं या काम बंद हो गया. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एनएसएमई मंत्रालय एमएसएमई को प्रौद्योगिकी सहायता और संरचना विकास, प्रतिभा विकास और प्रशिक्षण और बाजार समर्थन के क्षेत्रों में विभिन्न योजनाएं लागू कर रहा है। एमएसएमई को सहायता प्रदान करने के लिए कई पहल की गई हैं। जिसमें व्यवसाय के लिए 5 लाख रुपये की त्वरित ऋण सुविधा, गारंटी योजना, रेड ट्रैक किए गए लोगों को आत्मनिर्भर भारत फंड के माध्यम से 50 हजार रुपये की सहायता और उनके लिए व्यवसाय करने में आसानी, एमएसएमई के लिए फैक्ट्री पंजीकरण, वर्गीकरण में नया संशोधन शामिल है। एमएसएमई, मानकों और विनियमों सहित। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है कि कारखाने बंद हो रहे हैं। बेरोजगारी बढ़ रही है और नये कारखाने नहीं लग रहे हैं. वे सभी लोग जो वर्षों से इन छोटे-छोटे कोहरे में शामिल थे, सड़क पर आ गए। जब तक नये कारखाने नहीं बनेंगे या पुराने व्यवसाय दोबारा नहीं खुलेंगे, बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं हो सकता। दुख की बात यह है कि सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. बेरोजगार परिवार किन हालात में जी रहे हैं? (अनिल नरेंद्र)

इसलिए नागरिकता छोड़ रहे हैं भारतीय!

यूं तो भारतीयों के लिए विदेश में पढ़ाई करना और रहना कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में भारतीयों ने वहां की नागरिकता छोड़ दी है। जब व्यक्तिगत सुविधाएं, दैनिक रोजगार और जीवन की गुणवत्ता समाप्त हो जाती है अगर किसी देश के लोग अपनी नागरिकता छोड़कर दूसरे देशों में बसने लगें तो यह निश्चित तौर पर उस देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। नागरिकों के पलायन को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जा रही है. अब स्थिति यह हो गई है कि काम-धंधा छोड़कर दूसरे देशों में जाना आम बात हो गई है. संसद में दिए एक लिखित जवाब के मुताबिक, केंद्र सरकार बताया गया है कि 2011 के बाद से करीब 17 लाख 50 हजार भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है. अकेले इस साल जून तक, 87,026 लोग, भारतीय, ऐसा कर चुके हैं। हालांकि विदेश मंत्री का मानना ​​है कि सरकार का मानना ​​है कि देश से बाहर रहने वाले लोग हमारे लिए बहुत मायने रखते हैं, उनकी सफलता और समृद्धि से देश को फायदा होता है. विदेश मंत्री ने कहा कि भारतीयों ने 130 से ज्यादा देशों की नागरिकता हासिल की है. हालाँकि अमेरिकी सपना अभी भी भारतीयों के बीच सबसे लोकप्रिय है, 2021 में 78 हजार से अधिक भारतीयों ने वहां की नागरिकता ली, इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम का स्थान रहा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पुख्ता आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि देश का अमीर वर्ग इस समय दूसरे देशों में रह रहा है। इसी साल की रिपोर्ट बताती है कि इस साल 6500 सुपर रिच यानी करोड़पति देश छोड़ सकते हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत ऐसे देशों की सूची में दूसरे स्थान पर हो सकता है। इस सूची में चीन पहले स्थान पर है जहां सबसे ज्यादा करोड़पति देश छोड़ रहे हैं। हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अब वहां चीन से ज्यादा भारतीय मूल के लोग हैं। और अब वे केवल अंग्रेज़ों के पीछे पड़े हैं। इससे पहले, भारतीय कनाडा और ग्रेट ब्रिटेन को बसने के मामले में बहुत परेशान कर रहे थे। भारतीय मध्यम वर्ग वर्षों से अच्छी नौकरी के अवसरों के लिए पलायन कर रहा है, लेकिन करोड़पति दुबई और सिंगापुर जैसे देशों में बसना पसंद करते हैं। ये लोग भारत में घुटन महसूस कर रहे हैं. सरकार के कदम, टैक्स का बोझ और अन्य कुछ कारण हैं. यह वर्ग चिंतित है. उसे ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स के छापों की चिंता है. रोजगार के घटते अवसर शिक्षित युवाओं के लिए देश से बाहर जाकर नौकरी की तलाश करने का एक प्रमुख कारण है। चालीस प्रतिशत को उनकी इच्छा और योग्यता के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाता है। इसके अलावा कई लोगों को असुरक्षा के कारण कहीं और जाकर रहना पड़ता है। (अनिल नरेंद्र)

Tuesday 25 July 2023

क्या सेक्स सहमति की उम्र कम करनी चाहिए?

क्या 18 साल से कम के युवा को यौन संबंध बनाने की सहमति देने का अधिकार मिलना चाहिए? विशेषकर जब भारत में 18 साल से कम उम्र वाले शख्स को बालिग नहीं माना जाता है। भारत में इंडियन मैजोरिटी एक्ट, 1875 के अनुसार 18 साल के युवा व्यस्क या बालिग माने गए हैं और इसके साथ ही उन्हें कईं अधिकार भी दिए गए हैं। संविधान के 61वें संशोधन में 18 साल के युवा को मतदान, ड्राइविग लाइसेंस बनवाने आदि का अधिकार दिया गया। वहीं बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक शादी के लिए भारत में लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होना अनिवार्यं बताईं गईं है। हालांकि अब शादी की उम्र बढ़ाए जाने को लेकर भी वेंद्र सरकार विचार कर रही है। अब यह बहस तेज है कि सहमति की उम्र को 18 साल से कम किया जाना चाहिए। मध्य प्रादेश और कर्नाटक हाईं कोर्ट इस पर अपना पक्ष रख चुके हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाईं चंद्रचूड़ सहमति से बने रोमांटिक रिश्तों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में लाने को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। सहमति की उम्र पर विधि आयोग ने महिला और विकास मंत्रालय से अपने विचार देने को कहा है। लेकिन इस पर एक सवाल यह भी है कि अगर सहमति की उम्र को घटाया जाता है तो इससे यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए बने कानून (पॉक्सो) के प्रावधान और नाबालिग से जुड़े अन्य कानूनों पर भी असर होगा। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए पॉक्सो एक्ट 2012 में लगाया गया था। इसमें 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा परिभाषित किया गया है और अगर 18 साल से कम उम्र के साथ सहमति से भी संबंध बनाए जाते हैं तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसी स्थिति में दोनों अगर नाबालिग हैं तब भी यही प्रावधान लागू होता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाईं चंद्रचूड़ ने एक कार्यंव््राम में सहमति से बने रोमांटिक रिश्तों के मामलों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में शामिल करने पर चिंता जाहिर की थी। इस कार्यंव््राम में सीजीआईं ने कहा था—आप जानते हैं कि पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों के बीच सभी प्राकार के यौन वृत्य अपराध है। भले ही नाबालिगों के बीच सहमति हो। कानून की धारणा यह है कि 18 साल से कम उम्र के लोगों के बीच कानूनी अर्थ में कोईं सहमति नहीं होती है। उन्होंने कहा—जज के रूप में मैंने देखा कि ऐसे मामले जजों के समक्ष कठिन प्राश्न खड़े करते हैं। इस मुद्दे पर चिंता बढ़ रही है। किशोरों पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा किए गए शोध को देखते हुए विधायिका का इस मामले पर विचार करना चाहिए। इसी पृष्ठभूमि में विधि आयोग ने महिला और बाल विकास मंत्रालय से विचार मांगे हैं। सहमति की उम्र घटाए जाने को लेकर अलग-अलग राय सामने आ रही है। एक पक्ष जहां यह चाहता है कि आजकल के माहौल में सहमति की उम्र घटाईं जानी चाहिए वहीं दूसरा पक्ष इससे होने वाली दिक्कतों की लिस्ट गिनवाने लग जाता है। ——अनिल नरेन्द्र

देश के लिए लड़ा पर पत्नी को न बचा सका

महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने की वीडियो सामने आने के बाद देश स्तब्ध है। पिछले लगभग ढाईं महीने से हिसा से कराहते हुए मणिपुर में सबसे ज्यादा दंश महिलाओं को झेलना पड़ रहा है। राज्य में रोज लगभग एक सौ से ऊपर एफआईंआर दर्ज की जा रही हैं। तीन मईं से 28 जून तक के आंकड़ों के अनुसार मणिपुर में 5960 एफआईंआर दर्ज हुईं। इनमें से 1771 मामले जीरो एफआईंआर के रूप में दर्ज हुए। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार मणिपुर में 2019 में 2830, 2020 में 2349 और 2021 में 2004 एफआईंआर ही दर्ज हुईं थी। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मणिपुर की क्या हालत है। एक अन्य पदस्थ सूत्र के अनुसार एफआईंआर में से अधिकांश महिला उत्पीड़न के मामले हैं। राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन ने खुद माना है कि ऐसे मामले तो आए दिन हो रहे हैं। आंखों में गुस्सा और बेबसी। कारगिल के मोच्रे पर दुश्मन से लोहा लेने वाले जाबांज थाउबल की घटना के ढाईं महीने बाद भी दर्द में है। चूराचांदपुर के राहत शिविर में असम राइफल्स के रिटायर्ड सूबेदार का कहना है कि मैंने कारगिल में देश को दुश्मन के नापाक इरादों से बचाया लेकिन दंगाइयों से अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया। दो महिलाओं को निवस्त्र कर घुमाने के मामले में एक महिला इस सूबेदार की पत्नी है। उन्होंने बताया कि एक हजार की भीड़ से मैं घर, पत्नी और गांव वालों को नहीं बचा पाया। पुलिस वालों ने भी हमें सुरक्षा नहीं दी। तीन घंटे तक भीड़ दरिदगी करती रही। सवाल यह है कि आखिर मणिपुर की स्थिति काबू में क्यों नहीं आ रही? मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिह नाकारा सिद्ध हो चुके हैं। उन्हें हटाया क्यों नहीं जा रहा? वह सभी पक्षों का विश्वास खो चुके हैं। अगर भाजपा मैतेईं समुदाय के वोटों की चिंता कर रही है तो क्यों नहीं उसी समुदाय से किसी काबिल व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना देती? बीरेन सिह के रहते हिसा थमने वाली नहीं। सारी लड़ाईं की जड़ हाईं कोर्ट का पैसला है। सुप्रीम कोर्ट उस विवादास्पद पैसले को निरस्त क्यों नहीं करती? अगर उस पैसले को निरस्त कर दे तो फर्व पड़ सकता है। मणिपुर की हिसा से देश की सारी दुनिया में थू-थू हो रही है। ब्रिटेन की संसद में भी यह मामला उठ गया है। ब्रिटेन में धार्मिक आजादी से जुड़े मामलों की स्पेशल राजदूत और सांसद फिचोना ब्रूस ने बृहस्पतिवार को बीबीसी पर मणिपुर हिसा की ठीक से रिपोर्टिग न करने का आरोप लगाया। ब्रूस ने ब्रिटेन के निचले सदन में कहा—मणिपुर में मईं से कईं सौ चर्च जलाए गए हैं, 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। 50 हजार से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा। न सिर्प चर्च, बल्कि उनसे जुड़े स्वूलों को भी निशाना बनाया जा रहा है। इससे साफ होता है कि यह सब योजना के तहत किया जा रहा है और धर्म इन हमलों में बड़ा पैक्टर है। मणिपुर के लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं। वेंद्र सरकार और भाजपा को तुरन्त एक्शन में आना चाहिए और मणिपुर को शांत कराना चाहिए।

Thursday 20 July 2023

स्वतंत्रता पर अंवुश लगाना

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि निवारक हिरासत को लेकर कानून सख्त है और यह ऐसे किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंवुश लगाते हैं जिसे बिना मुकदमे के सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है इसलिए निर्धारित प्राव््िराया का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने एक व्यक्ति की रिहाईं का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की जिसकी हिरासत अधिकारियों द्वारा उसके अयादेन पर विचार किए बिना दो बार बढ़ा दी गईं थी। न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें प्राकाश चंद्र यादव उर्प मुंगेरी यादव की हिरासत को बरकरार रखा गया था। यादव को झारखंड अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2002 के तहत असामाजिक तत्व घोषित किया गया था। पीठ ने 10 जुलाईं को दिए अपने आदेश में कहा कि कानून की प्राव््िराया का पालन नहीं किया गया और यादव को झारखंड के साहिबगंज जिले की राजमहल जेल से रिहा करने का आदेश दिया। पीठ ने का—निवारक हिरासत को लेकर सभी कानून कठोर हैं। वह ऐसे किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंवुश लगाते हैं जिसे बिना किसी मुकदमे के सलाखों के पीछे रखा जाता है। ऐसे मामलों में एक बंदी के पास केवल कानूनी प्राव््िराया ही होती है। झारखंड अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2002 असामाजिक तत्वों के निर्वासन और हिरासत से संबंधित है। अधिनियम के प्रावधानों के तहत राज्य सरकार किसी असामाजिक तत्व को अवांछित गतिविधियों में शामिल होने से रोकने के लिए उसे हिरासत में ले सकती है। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की तीन महीने की अवधि से अधिक हिरासत की अवधि अनधिवृत और अवैध थी। उसने कहा—सात नवम्बर 2022 और सात फरवरी 2023 के आदेश, जिसमें हिरासत की अवधि बढ़ा दी गईं थी, को रद्द कर दिया गया है। झारखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ के दो मार्च, 2023 और एकल जज के दो नवम्बर 2022 के आदेशों को भी खारिज कर दिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने झारखंड के अपर महाधिवक्ता अरुणाम चौधरी की इस दलील से सहमति जताईं कि आठ अगस्त 2022 के प्रारंभिक हिरासत आदेश को चुनौती देने का कोईं आधार नहीं है और कहा कि यादव ने केवल बाद के आदेश को चुनौती दी है, जिनमें हिरासत की अवधि को बढ़ाया गया था। उच्चतम न्यायालय का यह महत्वपूर्ण पैसला है जिससे हजारों को फायदा होगा। जो इस समय बिना किसी मुकदमे के जेलों में पड़े हुए हैं। ——अनिल नरेन्द्र

पवार-शिदे को साथ लेने का फायदा?

क्या हार में, क्या जीत में, किचित नहीं भयभीत मैं, कर्तव्य पथ पर जो मिला, यह भी सही वो भी सही। 1996 में तत्कालीन प्राधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बहुमत के आगाज में 13 दिन के भीतर गिर गईं थी। राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए संसद में बहुमत नहीं जुटा पाने के दर्द के तौर पर अटल जी ने यह कविता संसद में पढ़ी थी। वाजपेयी के दौर में भाजपा सत्ता के लिए कोईं समझौता नहीं करने का स्टैंड दिखाती रही थी, परन्तु वह बदलते दौर में किसी भी तरह का समझौता करने में नहीं हिचक रही है। महाराष्ट्र की राजनीति की मौजूदा तस्वीर से इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। महाराष्ट्र विधानसभा के मॉनसून सत्र के हंगामेदार होने की उम्मीद है। आार्यं यह भी है कि सत्ता में शामिल राजनीतिक दलों की मुश्किलें, विपक्षी दलों से कम नहीं दिख रही हैं। महाराष्ट्र में मौजूदा विधानसभा में 105 विधायकों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पाटा है। शिदे के समर्थन से भाजपा सत्ता में आईं और सबसे बड़ी पाटा होने के बाद भी उसे मुख्यमंत्री का पद 40 विधायकों वाली शिदे गुट को देना पड़ा। एक साल बाद जब लगा कि मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा के कईं चेहरों को शामिल किया जाएगा तभी अजीत पवार की एनसीपी गठबंधन में शामिल हो गईं और उनके नौ विधायकों को मंत्री बना दिया गया। शिदे गुट वाली शिवसेना के चार और भाजपा के पांच मंत्री पद एनसीपी के खाते में चले गए। इतना ही नहीं, अब भी आशंका जताईं जा रही है कि भाजपा को अपने वुछ अहम विभाग पवार गुट के लिए छोड़ने होंगे। ऐसे में भाजपा विधायकों को सत्ता में अपना पूरा हिस्सा नहीं मिल रहा है और इस बात को लेकर उनकी नाराजगी लगातार बढ़ रही है। एक साल से चल रही शिदे सरकार में शिदे जरूर मुख्यमंत्री थे लेकिन अधिकांश अहम मंत्रालय फड़नवीस और भाजपा के पास थे। जब पवार के नेतृत्व में एनसीपी के नौ मंत्रियों ने शपथ ली तो उन्होंने अहम मंत्रालयों की मांग की। वित्त, सहकारिता, खादृा एवं नागरिक आपूर्ति, चिकित्सा, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी भाजपा से लेकर एनसीपी गुट को दे दिए गए। हालांकि भाजपा विधायकों के पास वेंद्रीय नेतृत्व के पैसले का समर्थन करने के अलावा कोईं विकल्प नहीं है, लेकिन अहम मंत्रालयों के छिन जाने से भारी नाराजगी देखी जा रही है। हालांकि सरकार में मंत्रालय के बंटवारे से जुड़ी समस्या को सुलझाना मुश्किल नहीं होता, लेकिन इस गठबंधन की उलझनें कहीं अधिक हैं। दरअसल गठबंधन में शामिल हुए अजीत पवार गुट के वुछ नेताओं की अपनी-अपनी विधानसभा सीटों पर भाजपा से सीधी टक्कर रही है। सालों तक एनसीपी के खिलाफ आव््रामक रुख अपनाने वाले विधायकों और पदाधिकारियों के सामने अब असमंजस की स्थिति है। महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद इन सीटों पर पाटा पदाधिकारियों ने तीनों दलों के खिलाफ चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन अब उन्हें अजीत पवार और एकनाथ शिदे के साथ काम करना होगा। असल संकट यही है। हालांकि अभी यह नाराजगी अंदरुनी लग रही है, लेकिन चुनाव के दौरान विवाद बढ़ने की आशंका जताईं जा रही है। पिछले चुनाव में भाजपा ने जहां विधानसभा की 160 सीटों पर चुनाव लड़ा था, वहीं इस बार दो पार्टियों से तालमेल बिठाते हुए कम सीटों पर समझौता करना होगा। पवार-शिदे दोनों को साथ लेने से भाजपा को कितना चुनावी लाभ होगा यह तो समय ही बताएगा।

Tuesday 18 July 2023

क्या सीमा हैदर आईंएसआईं एजेंट है?

इन दिनों पाकिस्तान से आईं सीमा हैदर काफी चर्चा में है। वह अवैध तरीके से सिध से अपने चार बच्चों के साथ दुबईं से नेपाल होकर नोएडा पहुंच गईं। यहां पर सीमा हिन्दू धर्म को अपनाकर सचिन से शादी करने का दावा कर रही है। सवाल यह है कि यह सीमा हैदर कौन है, क्यों इस तरह से अवैध तरीके से भारत पहुंची? पाकिस्तानी सीमा हैदर का चार बच्चों के साथ प्रोमी सचिन के पास यूं ग्रोटर नोएडा आना संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। बरेलवी उलेमा मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने शुव््रावार को कहा कि यह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईंएसआईं का षड्यंत्र का हिस्सा हो सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए वेंद्र सरकार सीमा पर सख्त निगरानी कराए। उन्हें पाकिस्तान वापस भेज दिया जाना चाहिए। दरगाह आला हजरत से जुड़े ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी ने पूरे प्राकरण को पाकिस्तान के नापाक मंसूबे से जोड़ा है। उन्होंने बताया कि पड़ोसी देश हमारे विरुद्ध विभिन्न तरीके से षड्यंत्र रचता आया है। हमारी सीमाओं पर घुसपैठ कराईं जाती है। नए प्राकार के षड्यंत्र की आशंका जताईं जा रही है। उनका नेपाल पहुंचकर मंदिर में शादी करना, इसके बाद सहजता से ग्रोटर नोएडा तक पहुंचना सामान्य नहीं है। एक घरेलू महिला अपने चार बच्चों के साथ इतने सहज तौर पर ऐसा बड़ा कदम नहीं उठा सकती। यह सुनियोजित प्रातीत हो रहा है। सीमा के तलाक के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वह इस्लाम छोड़कर मतांतरण कर चुकी है। ऐसे में तलाक की जरूरत नहीं है। चारों बच्चे हैदर से पैदा हुए हैं इसलिए शरीयत के अनुसार उन्हीं के माने जाएंगे। इसके अलावा तीन तलाक पीिड़तों की आवाज उठाने वाली मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष फरहत नकवी ने भी सीमा हैदर पर सवाल उठाए। पाकिस्तान आतंकवाद का पोषित करने वाला देश है, इसलिए उसके किसी नागरिक पर तुरन्त भरोसा करना उचित नहीं है। रघुपुरा में रह रही पाकिस्तानी महिला सीमा हैदर लगातार दूसरे दिन भी किसी से नहीं मिली। उत्तर प्रादेश के अलावा दूसरे प्रांत के लोग भी उससे मिलने के लिए आते रहे। पूरे दिन मीडिया कर्मियों का भी तांता लगा रहा। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से जानकारी होने पर सीमा से मिलने आए एक व्यक्ति ने बताया कि वह सीमा व सचिन को उपहार देने के लिए उनसे मिलने के लिए आए थे, लेकिन सीमा और सचिन नहीं मिल सके। वह दोबारा मिलने आएंगे। सीमा क्या आईंएसआईं द्वारा भारत में जासूसी करने के लिए भेजी गईं है? ——अनिल नरेन्द्र

न तो कभी सुनी थी न ही देखी थी

दिल्ली में ऐसी बरसात हुईं जो न तो पहले कभी देखी थी न सुनी थी। दिल्ली का एक हिस्सा पानी में डूब गया। कईं सालों बाद दिल्ली में अत्याधिक बारिश के कारण बाढ़ जैसे हालात बन गए। कईं लोग बेघर हो गए, तो कईं बाजारों में दुकानों में पानी भर गया। यहां तक कि युवाओं के पेवरेट मोनेस्ट्री माव्रेट, यमुना बाजार, चंदगीराम अखाड़ा, पुराना हनुमान मंदिर और लाल किले का पिछला हिस्सा पानी में डूब गया पानी इतना कि पूरी-पूरी कार डूब रही थी। जाहिर है कि इन इलाकों में रहने वाले लोग परेशान हैं हीं, साथ ही वह छात्र भी परेशान हैं जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाते हैं और कईं जिनका शॉपिंग अड्डा मोनेस्ट्री माव्रेट है। इन युवाओं ने अपनी जिंदगी में शायद पहली बार ऐसी बाढ़ देखी होगी। युवा हैरान हैं कि आखिर राजधानी में ऐसा वैसे हो सकता है? यहां तक कि कईं लोग यमुना और पानी के इलाकों में रुक-रुक कर सेल्फी-फोटोज भी ले रहे हैं। दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रहे एक छात्र ने कहा—मैंने पहली बार इतने भयंकर हालात दिल्ली में देखे। इससे पहले 2013 में खूब बारिश हुईं थी, तब देखा था कि पानी शमशान घाट तक आ गया था। लेकिन उसके आगे पानी आते कभी नहीं देखा। पहले हम दूसरे राज्यों का सुनते थे कि फ्लाना जगह बाढ़ आ गईं मगर कभी नहीं सोचा था कि हम भी ऐसी बाढ़ देखेंगे। बुराड़ी के संत नगर में रहने वाले महेंद्र की बहन का मंगलवार को निधन हो गया था। आईंएसबीटी कश्मीरी गेट स्थित निगम बोध शमशान घाट पर मंगलवार को अंतिम संस्कार किया गया था। पारंपरिक मान्यताओं के चलते बुधवार को परिवार अस्थियां चुनने नहीं आया। पूरा शमशान घाट बाढ़ के पानी में डूबा हुआ था और बाहर सड़क तक पानी जमा था। ऐसे में परिजनों ने शमशान घाट के बाहर खड़े होकर ही बाकी के रीति-रिवाज पूरे किए। महेंद्र ने कहा कि अंदर 6-6 पुट पानी भरा हुआ है। हम तो अब यही मानकर चल रहे हैं कि अस्थियां यमुना जी में विसर्जित हो गईं होंगी, इसलिए हम यहीं बाहर बाकी के व््िरायाव््राम करके चले जाएंगे, यही हाल पुश्ता रोड पर बने गीता कॉलोनी शमशान घाट के भी हैं। शमशान घाट के अंदर भी पानी भर गया है। दाह-संस्कार के लिए बनाए गए सभी प्लेटफार्म पानी में डूब गए। शमशान घाट के आचार्यं जतिन शर्मा ने बताया कि बुधवार को ही शमशान घाट के अंदर पानी आ गया था, लेकिन प्लेटफार्म तक पानी नहीं पहुंचा था, इसलिए दाह-संस्कार में किसी तरह की दिक्कत नहीं आईं। लेकिन फिर पानी बढ़ता ग या और लोगों को रात को ही शमशान घाट पर बुलाकर अपने परिजनों की अस्थियां लेने को कहा गया। अगले तीन दिन तक गीता कॉलोनी शमशान घाट को दाह-संस्कार के लिए बंद कर दिया गया।

Thursday 13 July 2023

गोलवलकर पर विवादित पोस्टर

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं उलटे-सीधे पोस्टर इत्यादि नजर आने लगे हैं। ताजा उदाहरण मध्य प्रादेश का है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रामुख एमएस गोलवलकर को लेकर सोशल मीडिया पर विवादास्पद पोस्टर साझा कर विद्वेष पैलाने के आरोप में कांग्रोस के राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिह के खिलाफ इंदौर में आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। पुलिस के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। शहर के पुलिस आयुक्त मकरंद देउस्कर ने संवाददाताओं को बताया—हमें यह शिकायत प्राप्त हुईं थी कि सिंह ने उन बातों को गोलवलकर का कथन बताते हुए इंटरनेट पर डाला जो उन्होंने (पूर्व सरसंघचालक) कहीं-कहीं ही नहीं थी। इस शिकायत परसिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। देउस्कर ने बताया कि सिंह के खिलाफ आरोपों की जांच के बाद आगामी कदम उठाए जाएंगे। तुकोगंज पुलिस थाने के एक अधिकारी ने बताया कि स्थानीय वकील और संघ कार्यंकर्ता राजेश जोशी की शिकायत पर सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153(ए), (धर्म के आधार पर दो समूहों के बीच वैमनस्य पैलाना), धारा 469 (ख्याति को नुकसान पहुंचाने के इरादे से जालसाजी), धारा 505 (मानहानि) और धारा 505 (सार्वजनिक शांति भंग करने के इरादे से भड़काऊ सामग्री प्रासारित करना) के तहत मामला दर्ज किया गया है। जोशी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि सिंह ने शनिवार को ट्विटर और पेसबुक पर गुरुजी (संघ हलवोर में गोलवलकर का लोकप््िराय नाम) के नाम और तस्वीर वाला विवादास्पद पोस्टर साझा किया ताकि दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और हिन्दुओं में वैमनस्य पैदा कर उन्हें वर्ग संघर्ष के लिए उकसाया जा सके। शिकायत में कहा गया कि गोलवलकर के बारे में सिंह के पेसबुक पोस्ट से संघ कार्यंकर्ताओं और समस्त हिन्दू समुदाय की धार्मिक आस्था कथित तौर पर आहत हुईं है। सिंह के प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जोशी ने कहा—सोशल मीडिया पर सिंह के साझा किए गए पोस्टर में दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के बारे में गुरुजी के नाम और तस्वीर के दुरुपयोग से एकदम फजा बातें छापी गईं हैं। उधर कांग्रोस ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद सूबे में सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधा है। कांग्रोस की प्रादेश इकाईं के मीडिया प्राकोष्ठ के प्रामुख केके मिश्रा ने कहा—सिंह बिना प्रामाण के इंटरनेट पर वुछ भी साझा नहीं करते हैं। गोलवलकर से जुड़े पोस्ट को लेकर सिंह के खिलाफ मामला दर्ज करने में पुलिस ने गजब की पुता दिखाईं, लेकिन पुलिस उन भाजपा नेताओं पर मामला दर्ज करने में हीले-हवाले करती है जो वीडी सावरकर के बारे में तथ्यात्मक बयानों को सोशल मीडिया में काट-छांट कर पेश करते हैं। ——अनिल नरेन्द्र

27 साल बाद ब्लास्ट के दोषियों को उम्रवैद

27 साल पुराने लाजपत नगर बम ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चार आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रवैद की सजा सुनाईं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चारों दोषियों को ताउम्र जेल काटनी होगी, यानि उन्हें सजा में छूट नहीं मिलेगी। उन्होंने गंभीर अपराध किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाईं में काफी वक्त लगा। स्पीड ट्रायल समय की मांग है। सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद नौशाद, मिर्जा निसार हुसैन, मोहम्मद अली बट और जावेद अहमद खान को उम्रवैद की सजा सुनाते हुए कहा कि मामले बेहद गंभीर है। बम ब्लास्ट में निदरेष लोगों की जान गईं थी और इसमें आरोपियों का रोल था। सुप्रीम कोर्ट ने दो आरोपियों को भी उम्रवैद की सजा दी है, जिन्हें हाईं कोर्ट ने बरी कर दिया था। जबकि इन दोनों को निचली अदालत ने फांसी की सजा दी थी। 1996 में लाजपत नगर बम ब्लास्ट मामले में अपील पर सुनवाईं के बाद दिए पैसले में जस्टिस बीआर गवईं की अगुवाईं वाली बैंच ने मोहम्मद नौशाद और जावेद अहमद की उम्रवैद की सजा को बहाल रखा। इन दोनों को भी उम्रवैद की सजा दी थी जिसके खिलाफ इन दोनों ने अपील दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दो अन्य आरोपियों—मिर्जा निसार हुसैन और मोहम्मद अली बट को भी उम्रवैद की सजा देते हुए कहा कि वह सजा काटने के लिए सरेंडर करें। न्यायमूर्ति बीआर गवईं, न्यायमूर्ति विव््राम नाथ और न्यायमूर्ति संजय कौल की पीठ ने अपने 190 पन्नों के पैसले में चारों दोषियों-मोहम्मद नौशाद, मिर्जा निसार हुसैन, मोहम्मद अली बट और जावेद अहमद खान को पैसले में हुईं देरी के आधार पर मृत्युदंड नहीं सुनाया। न्यायालय ने कहा—निदरेषों की जान लेने वाले अपराध की गंभीरता और प्रात्येक आरोपी की भूमिका को ध्यान में रखते हुए इन सभी आरोपियों को बिना किसी नरमी के जीवनपर्यंत उम्रवैद की सजा सुनाईं जाती है। आरोपी अगर जमानत पर बाहर है तो तत्काल संबंधित अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करे और उनके जमानती मुचलके रद्द किए जाते हैं। लाजपत नगर सेंट्रल माव्रेट में बम ब्लास्ट से दिल्ली में सनसनी पैल गईं थी। 13 लोगों की मौत हुईं थी, जबकि 38 लोग घायल हुए थे। जेकेआईंएफ ने हमले की जिम्मेदारी ली थी। अप्रौल 2010 में दिल्ली की निचली अदालत ने छह में से तीन आरोपियों को फांसी का सजा सुनाईं थी। मोहम्मद नौशाद, मोहम्मद अली बट और मिर्जा निसार हुसैन को फांसी की सजा देते हुए अदालत ने कहा था कि इनकी संलिप्तता और अपराध की गंभीरता के मद्देनजर फांसी की सजा दी जाती है। जावेद खान को उम्रवैद की सजा सुनाईं थी। साथ ही दो अन्य आरोपियों—फारुक अहमद खान और फरीदा डार को अन्य धाराओं में दोषी करार देते हुए जेल में बिताए गए समय को सजा माना।

Tuesday 11 July 2023

इन पर भ्रष्टाचार मामलों का अब क्या होगा?

दो जुलाईं को महाराष्ट्र में एक नाटकीय राजनीतिक घटनाव््राम के तहत अजीत पवार सहित एनसीपी के नौ विधायक भाजपा-शिवसेना (शिदे) गुट की सरकार में शामिल हो गए। दिलचस्प यह है कि भाजपा ने अजीत पवार सहित इन विधायकों पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। शरद पवार से पाला बदलकर सरकार में शामिल हुए अजीत पवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाने वाले और अजीत दादा चक्की पीसिंग जैसे बयान देने वाले देवेंद्र फड़नवीस, उनके बराबर ही उपमुख्यमंत्री की वुसा पर विराजमान थे। पिछले साल मार्च महीने में आयकर विभाग ने अजीत पवार के रिश्तेदारों के घर पर छापा मारा था। इतना ही नहीं आयकर विभाग ने वुछ सम्पत्तियां भी जब्त की थीं। अजीत पवार से संबंधित चीनी मिल पर जब्ती की कार्रवाईं की गईं थी। भाजपा नेता किरीट सोमैया ने आरोप लगाया था कि अजीत पवार का वित्तीय कारोबार अद्भुत है। बिल्डरों के पास उनके और उनके रिश्तेदारों के खातों में से सौ करोड़ से अधिक की बेनामी सम्पत्ति है। हालांकि राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने सिचाईं घोटाले में अजीत पवार को क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन मईं 2020 में प्रावर्तन निदेशालय ने विदर्भ सिचाईं घोटाले की नए सिरे से जांच शुरू की थी। आयकर विभाग ने यह दावा किया था कि अजीत पवार के रिश्तेदारों पर ईंडी की इस छापेमारी में 184 करोड़ रुपए की बेनामी वित्तीय लेन-देन का पता चला है। छगन भुजबल पर 2014 के बाद से ही जांच एजेंसियों का शिवंजा कस रहा था। मार्च 2016 में उन्हें नईं दिल्ली में महाराष्ट्र सदन निर्माण के कथित गबन और बेहिसाब सम्पत्ति जमा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें आर्थर रोड जेल में रखा गया था। दो साल तक उन्हें जमानत नहीं मिली थी। इस मामले के अलावा छगन भुजबल और उनसे जुड़े लोगों के खिलाफ अलग-अलग मामले दर्ज हैं उनकी सुनवाईं लंबित है। प्रापुल्ल पटेल ने दो जुलाईं को शपथ नहीं ली। लेकिन वह शपथ ग्राहण समारोह में मौजूद थे। यूपीए की वेंद्र सरकार के दौरान पटेल वेंद्रीय उड्डयन मंत्री थे। उनके मंत्री रहने के दौरान ही 2008-09 में एविएशन लॉबिस्ट दीपक तलवार विदेशी एयरलाइंस की मदद कर रहे थे। उन्होंने तीन अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइनों के लिए वुछ ज्यादा कमाईं वाले हवाईं मार्ग सुरक्षित किए। उसके लिए दीपक तलवार को 272 करोड़ रुपए मिले थे। इससे एयर इंडिया को नुकसान उठाना पड़ा था। ईंडी ने आरोप लगाया था कि यह सभी लेन-देन प्रापुल्ल पटेल के वेंद्रीय मंत्री रहने के दौरान हुए थे। इसके साथ ही 70 हजार करोड़ रुपए के 111 विमानों की खरीद के मामले में ईंडी ने जून 2019 में प्रापुल पटेल को नोटिस जारी किया था। उन्हें पूछताछ के लिए भी बुलाया गया था। सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार से जुड़े इन केसों का अब क्या होगा? क्या वाशिंग मशीन इन सबको धो कर पाक साफ कर देगी? ——अनिल नरेन्द्र

प्राधानमंत्री की आलोचना राजद्रोह नहीं

कर्नाटक हाईं कोर्ट ने एक स्वूल प्राबंधन के खिलाफ राजद्रोह का मामला खारिज करते हुए कहा कि प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपशब्द अपमानजनक और गैर-जिम्मेदाराना थे लेकिन इसे राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है। हाईं कोर्ट की वुलबगा शाखा के जस्टिस हेमंत चंदनगौदर ने शुव््रावार को बिदर के न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईंआर को खारिज करते हुए बिदर के शाहीन स्वूल के प्राबंधन के सभी आरोपियों, अलाऊद्दीन, अब्दुल खालिक, मोहम्मद बिलाल और मोहम्मद मेहताब को क्लीन चिट दे दी है। कोर्ट ने कहा कि विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सद्भावना बिगाड़ने की धारा 153(ए) को इस केस में उपयुक्त नहीं पाया गया है। जस्टिस चंदनगौदर ने अपने पैसले में कहा—प्राधानमंत्री के लिए अपशब्द कहना न सिर्प अपमानजनक है बल्कि गैर-जिम्मेदाराना भी है। सरकार की नीतियों की सकारात्मक आचोलना जायज है। लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को किसी नीतिगत पैसले के लिए अपमानित नहीं किया जा सकता है। खासकर इसलिए किसी समूह विशेष को उनका पैसला पसंद नहीं आया है। हाईं कोर्ट ने कहा कि स्वूल में मंचित नाटक दुनिया के सामने तब आया जब स्वूल के एक व्यक्ति ने अपने इंटरनेट मीडिया पर उसके वीडियो को अपलोड किया। कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने लोगों को सरकार के खिलाफ हिसा के लिए भड़काने या जनता को अस्थिर करने के इरादे से यह कदम उठाया है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि धारा 124(ए)(राजद्रोह) और धारा 505(2) के लिए पर्यांप्त परिस्थितियों की कमी के चलते इन धाराओं को लगाना नाजायज है। हाईं कोर्ट ने अपने आदेश में स्वूल को भी हिदायत दी है कि वह बच्चों को सरकार की आलोचना से दूर रखें। उल्लेखनीय है कि 21 जनवरी 2020 को कक्षा 4, 5 और 6 के छात्रों ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ स्वूल में एक नाटक का मंचन किया था। एबीवीपी कार्यंकर्ता नीलेश रक्षला की शिकायत पर चार लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था जिसमें धारा 504 (जानबूझ कर अपमान करना), 505(2), 124(ए)(राजद्रोह), 153 (ए) और धारा 34 लगाईं गईं थी। कोर्ट ने साफ कहा कि प्राधानमंत्री की आलोचना करना राजद्रोह नहीं है हालांकि यह अपमानित करना जरूर है।

Thursday 6 July 2023

पैसला सात जुलाईं को

दिल्ली की एक अदालत इस बात का पैसला सात जुलाईं को करेगी कि महिला पहलवानों का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न करने के मामले में भारतीय वुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिह के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र पर संज्ञान लेना है या नहीं? बृजभूषण शरण सिह भारतीय जनता पाटा (भाजपा) के सांसद हैं। अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलोटिन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) हरजीत सिह जसपाल ने दिल्ली पुलिस की इस दलील पर गौर किया कि उसकी जांच अब भी जारी है और एक पूरक आरोप पत्र दाखिल किए जाने की संभावना है। अदालत को इस मसले पर पैसला शनिवार को सुनाना था। न्यायाधीश ने कहा—चूंकि एफएसएल रिपोर्ट और सीडीआर (कॉल डिटेल रिकॉर्ड) का इंतजार है और इसमें समय लगने की संभावना है, इसलिए मामले को सात जुलाईं को विचार के लिए सूचीबद्ध करें। दिल्ली पुलिस ने छह बार के सांसद बृजभूषण शरण सिह के खिलाफ 15 जून को भारतीय दंड संहिता (आईंपीसी) की धारा 354 (किसी महिला की गरिमा भंग) करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रायोग, 354ए (यौन उत्पीड़न), 354डी (पीछा करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एक आरोप पत्र दाखिल किया था। आरोप पत्र में डब्ल्यूएफआईं के निलंबन सहायक सचिव विनोद तोमर को भी आईंपीसी की धारा 109 (किसी अपराध के लिए उकसाना, उकसावे के लिए दंड का कोईं स्पष्ट प्रावधान नहीं होना), 354, 354ए और 506 के तहत अपराध के लिए नामित किया गया था। वर्तमान मामले के अलावा नाबालिग पहलवान द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर बृजभूषण शरण सिह के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत एक और प्राथमिकी दर्ज की गईं थी। नाबालिग पहलवान उन सात महिला पहलवानों में शामिल थीं, जिन्होंने बृजभूषण शरण सिह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। दोनों प्राथमिकियों में एक दशक के दौरान अलग-अलग समय और स्थानों पर बृजभूषण शरण सिह द्वारा महिला पहलवानों को अनुचित तरीके से छूना, पीछा करने और डराने-धमकाने जैसे आरोपों का जिव््रा किया गया है। नाबालिग के मामले में दिल्ली पुलिस ने 15 जून को अंतिम रिपोर्ट जमा की थी, जिसमें बृजभूषण शरण सिह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। ऐसी रिपोर्ट उन मामलों में दायर की जाती है, जिसमें पुलिस उचित जांच के बाद पुष्ट साक्ष्य ढूंढने में विफल रहती है। पॉक्सो अदालत संभवत: बृजभूषण के खिलाफ इस प्राथमिकी को रद्द करने वाली रिपोर्ट पर विचार करेगी। ——अनिल नरेन्द्र

Tuesday 4 July 2023

आदिपुरुष फिल्म का पुनरीक्षण

हाईं कोर्ट ने विवादों में घिरी फिल्म आदिपुरुष का पुनरीक्षण करने का आदेश दिया है। इलाहाबाद हाईं कोर्ट की लखनऊ पीठ ने वेंद्र सरकार को आदेश दिया है कि पुनरीक्षण के लिए पांच सदस्यीय कमेटी बनाईं जाए। समिति में दो सदस्य तुलसीदास वृत श्रीराम चरित मानस व महर्षि बाल्मीकि वृत रामायण से जुड़े विद्वान होंगे। अन्य सदस्य धार्मिक विद्वान होंगे। समिति देखेगी कि फिल्म में भगवान राम, सीता माता, हनुमान जी व रावण की कहानी को इन धार्मिक ग्रांथों के अनुसार दर्शया गया है या नहीं? समिति यह भी देखेगी कि सीता व विभीषण की पत्नी को गलत तरीके से तो चित्रित नहीं किया है? कोर्ट ने कहा—याचिका के साथ दाखिल किए गए दृश्यों में विभीषण की पत्नी के वुछ चित्र अश्लील लग रहे हैं। न्यायमूर्ति राजेश सिह चौहान और न्यायमूर्ति श्रीप्राकाश सिह की खंडपीठ ने दो याचिकाओं पर यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा—हफ्तेभर में समिति बनाईं जाए। सूचना प्रासारण मंत्रालय के सचिव निजी हलफनामे के साथ 15 दिन यानि 27 जुलाईं तक समिति को रिपोर्ट पेश करे। कोर्ट ने सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष को भी आदेश दिया कि संबंधित दस्तावेज के साथ हलफनामा पेश करें कि फिल्म आदिपुरुरष को दिखाने का प्रामाण- पत्र जारी करते समय दिशानिर्देश का पालन किया गया था या नहीं? कोर्ट ने सख्ती से कहा—हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता तो 27 जुलाईं की सुनवाईं पर उप सचिव स्तर के अधिकारी को कोर्ट में पेश होना होगा। कोर्ट ने फिल्म के निर्देशक ओम राऊत, भूषण वुमार व संवाद लेखक मनोज मुंतशिर को भी जवाबी हलफनामे के साथ अगली तारीख को तलब किया है। राज्य सरकार की ओर से पेश मुख्यस्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र वुमार सिह ने इसे हिन्दू आस्था से जुड़ा मामला बताया। वेंद्र की ओर से उप सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय ने दलीलें रखीं। खंडपीठ उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हुईं और मामले को गंभीर सरोकार वाला बताया और फिल्म के पुनरीक्षण का आदेश दिया। हाईं कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में फिल्म पर पूर्ण प्रातिबंध लगाने की गुहार की गईं है। याचियों की ओर से अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री व प््िरांस लेनिन ने फिल्म में दिखाए दृश्यों की तस्वीरों को आपत्तिजनक कहकर पेश किया। उन्होंने इसे हिन्दू सनातन आस्था के साथ खिलवाड़ बताते हुए सख्त कार्रवाईं का आग्राह किया। ——अनिल नरेन्द्र

यूसीसी पर केजरीवाल का स्टैंड?

प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते मंगलवार मध्य प्रादेश के भोपाल में आयोजित एक जनसभा के दौरान यूसीसी यानि समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) का जिव््रा कर एक तरह से अगले साल होने वाले आम चुनावों के लिए एजेंडा तय कर दिया है। प्राधानमंत्री ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा कि ‘एक ही परिवार में दो लोगों के अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर वैसे चलेगा?’ मोदी ने कहा—सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है। सुप्रीम कोर्ट डंडा मारता है, कहता है कि कॉमन सिविल कोड लाओ। लेकिन यह वोट बैंक के भूखे लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं। लेकिन भाजपा सबका साथ-सबका विकास की भावना से काम कर रही है। पीएम के भाषण के बाद अलग-अलग पार्टियों ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी। पिछले हफ्ते पटना में एकजुट हुईं विपक्ष की ज्यादातर पार्टियों ने इसका विरोध किया लेकिन आम आदमी पाटा इस मामले में अलग लाइन लेती दिखी। पाटा ने कहा कि वह सैद्धांतिक रूप से समान नागरिक संहिता का समर्थन करती है। लेकिन साथ ही कहा कि इसे सभी दलों के समर्थन से लागू होना चाहिए। आम आदमी पाटा के नेता संदीप पाठक ने कहा कि उनकी पाटा सैद्धांतिक रूप से यूसीसी का समर्थन करती है। हमारा मानना है कि ऐसे मुद्दे पर आम सहमति के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए। एक ओर आम आदमी पाटा दिल्ली के आर्डिनेंस पर भाजपा पर हमलावर है, वहीं भाजपा के यूसीसी पर उसके साथ नजर आ रही है? हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है, इससे पहले कश्मीर में धारा 370 हटाने का भी पाटा ने खुलकर समर्थन किया था। आखिर आम आदमी पाटा अपनी राजनीति को किस ओर ले जा रही है? कईं जानकार मानते हैं कि ऐसे मुद्दों पर भाजपा का समर्थन कर आम आमी पाटा राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व की अपनी छवि को निखारना चाहती है। वो चाहती है कि भाजपा से नाराज हिन्दू उसकी ओर आएं। पाटा का सीधा निशाना आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हिन्दू वोटों को लुभाने का है। अगले वुछ महीनों में मध्य प्रादेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं। इसके अलावा लोकसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो गईं है। जहां-जहां कांग्रोस कमजोर हो रही है, वहां आम आदमी पाटा मजबूत हो रही है। लेकिन क्या यूसीसी पर आप का यह स्टैंड मुसलमानों और सिखों को उनसे दूर करेगा? पंजाब में उनकी सरकार है और अब निकट-भविष्य में 2020 में आम आदमी पाटा उन सभी पांच सीटों पर जीती जहां कि मुस्लिम आबादी 40 प्रातिशत से अधिक है। एमसीडी चुनावों में भी पाटा को ओखला और सीलमपुर जैसे मुस्लिम इलाकों में जमकर वोट मिले थे। अब पाटा को लगता है कि मुसलमानों का इतना प्राभाव नहीं है, इसलिए वो हिन्दुत्व की राजनीति कर भाजपा की बी पाटा बनना चाहती है। वुल मिलाकर उन्हें अब मुसलमान वोटों की परवाह नहीं उनका सारा ध्यान हिन्दू वोटरों में है।