Tuesday, 25 July 2023
क्या सेक्स सहमति की उम्र कम करनी चाहिए?
क्या 18 साल से कम के युवा को यौन संबंध बनाने की सहमति देने का अधिकार मिलना चाहिए? विशेषकर जब भारत में 18 साल से कम उम्र वाले शख्स को बालिग नहीं माना जाता है। भारत में इंडियन मैजोरिटी एक्ट, 1875 के अनुसार 18 साल के युवा व्यस्क या बालिग माने गए हैं और इसके साथ ही उन्हें कईं अधिकार भी दिए गए हैं। संविधान के 61वें संशोधन में 18 साल के युवा को मतदान, ड्राइविग लाइसेंस बनवाने आदि का अधिकार दिया गया। वहीं बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक शादी के लिए भारत में लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होना अनिवार्यं बताईं गईं है। हालांकि अब शादी की उम्र बढ़ाए जाने को लेकर भी वेंद्र सरकार विचार कर रही है। अब यह बहस तेज है कि सहमति की उम्र को 18 साल से कम किया जाना चाहिए। मध्य प्रादेश और कर्नाटक हाईं कोर्ट इस पर अपना पक्ष रख चुके हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाईं चंद्रचूड़ सहमति से बने रोमांटिक रिश्तों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में लाने को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। सहमति की उम्र पर विधि आयोग ने महिला और विकास मंत्रालय से अपने विचार देने को कहा है। लेकिन इस पर एक सवाल यह भी है कि अगर सहमति की उम्र को घटाया जाता है तो इससे यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए बने कानून (पॉक्सो) के प्रावधान और नाबालिग से जुड़े अन्य कानूनों पर भी असर होगा। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए पॉक्सो एक्ट 2012 में लगाया गया था। इसमें 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा परिभाषित किया गया है और अगर 18 साल से कम उम्र के साथ सहमति से भी संबंध बनाए जाते हैं तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसी स्थिति में दोनों अगर नाबालिग हैं तब भी यही प्रावधान लागू होता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाईं चंद्रचूड़ ने एक कार्यंव््राम में सहमति से बने रोमांटिक रिश्तों के मामलों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में शामिल करने पर चिंता जाहिर की थी। इस कार्यंव््राम में सीजीआईं ने कहा था—आप जानते हैं कि पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों के बीच सभी प्राकार के यौन वृत्य अपराध है। भले ही नाबालिगों के बीच सहमति हो। कानून की धारणा यह है कि 18 साल से कम उम्र के लोगों के बीच कानूनी अर्थ में कोईं सहमति नहीं होती है। उन्होंने कहा—जज के रूप में मैंने देखा कि ऐसे मामले जजों के समक्ष कठिन प्राश्न खड़े करते हैं। इस मुद्दे पर चिंता बढ़ रही है। किशोरों पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा किए गए शोध को देखते हुए विधायिका का इस मामले पर विचार करना चाहिए। इसी पृष्ठभूमि में विधि आयोग ने महिला और बाल विकास मंत्रालय से विचार मांगे हैं। सहमति की उम्र घटाए जाने को लेकर अलग-अलग राय सामने आ रही है। एक पक्ष जहां यह चाहता है कि आजकल के माहौल में सहमति की उम्र घटाईं जानी चाहिए वहीं दूसरा पक्ष इससे होने वाली दिक्कतों की लिस्ट गिनवाने लग जाता है।
——अनिल नरेन्द्र
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