Tuesday 31 May 2011

आखिर यह तहव्वुर राणा कौन है और उस पर क्या आरोप है?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th May 2011
अनिल नरेन्द्र
अमेरिका में शिकागो के व्यवसायी तहव्वुर राणा के खिलाफ मुकदमा शुरू हो गया है। उस पर 2008 के मुंबई हमले की साजिश में भागीदार होने का आरोप है। इस मुकदमें पर पूरी दुनिया की नजर है क्योंकि इससे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका पर नई रोशनी पड़ रही है। उल्लेखनीय है कि इन दिनों शिकागो की अदालत में डेविड कोलमैन हेडली और तहव्वुर राणा पर मुंबई में 26/11 हमले का केस चल रहा है। डेविड हेडली के बारे में तो अब सारी दुनिया जान चुकी है पर यह तहव्वुर राणा कौन है?मुंबई हमले में लश्कर-ए-तैयबा की मदद करने का आरोपी पाकिस्तानी मूल का कनाडाई व्यवसायी तहव्वुर राणा तो डेविड हेडली के लिए सिर्प एक मोहरा भर था। हेडली से राणा के वकीलों ने कहा कि उनका मुवक्किल एक अच्छा आदमी है लेकिन उसे एक ऐसे दोस्त ने धोखा दिया, जिस पर वह विश्वास करता था। राणा के वकील चार्ल्स स्विफट ने हेडली से पूछा, वह आपका दोस्त था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया जैसा आप कह रहे हैं। हेडली ने जवाब दिया हां। हेडली ने राणा को एक ऐसा इंटेलीजेंट छात्र बताया,जो धार्मिक मान्यताओं का पालन करता थाऔर शराब नहीं पीता था। हेडली दूसरी ओर ड्रग्स की तस्करी करता था और कई महिलाओं के साथ समय बिताता था।
तहव्वुर हुसैन राणा पाकिस्तान में पढ़े-लिखे, बड़े हुए। चिकित्सा की डिग्री लेने के बाद वे पाकिस्तान सेना के मेडिकल कोर से जुड़ गए। पचास वर्षीय राणा और उनकी पत्नी दोनों ने 2001 में कनाडा की नागरिकता ले ली। उनकी पत्नी भी चिकित्सक है। वर्ष 2009में गिरफ्तारी से पहले राणा अमेरिका के शिकागो में रहता था। वह ट्रेवल एजेंसी समेत कई धंधों में लिप्त था। तीन साल पहले राणा ने बचपन के अपने दोस्त डेविड हेडली को मुंबई में अपनी ट्रेवल एजेंसी की शाखा खोलने में मदद की। आरोप है कि इस व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य था मुंबई हमलों के लिए लक्ष्यों की टोह लेना। हेडली पहले ही मुंबई हमलों की साजिश में शामिल होने की बात स्वीकार कर चुका है। उम्मीद है कि अब वे राणा के खिलाफ अभियोजन पक्ष का मुख्य गवाह होगा। हेडली ने तो लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से सीधे संबंध होने की बात स्वीकार कर ली है। पिछले कुछ दिनों से तो वह अदालत में 26/11हमले की डिटेल्स बता रहा है। राणा पर कुल मिलाकर 12 आरोप लगाए गए हैं, जिनमें अमेरिकी नागरिकों की हत्या में सहायक होने का भी आरोप शामिल है। मुंबई हमलों में मारे गए 160 से ज्यादा लोगों में छह अमेरिकी शामिल थे। राणा और हेडली को अक्टूबर 2009में डेनमार्प के अखबार के कार्यालयों पर हमले की योजना बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसी अखबार ने पहली बार पैगम्बर पर विवादास्पद कार्टून छापे थे। गिरफ्तारी के बाद हुई पूछताछ के दौरान पता चला कि दोनों मुंबई हमलों की साजिश में शामिल हैं। शिकागो की अदालत में दायर चार्जशीट में चार और लोगों के नाम हैं। कैप्टन इकबाल, साजिद मीर, अबू कहाफा और मजहर इकबाल। चारों पाकिस्तानी नागरिक हैं। लेकिन इनमें से सिर्प मजहर इकबाल की ही पाकिस्तान में गिरफ्तारी हो पाई है। हेडली की गवाही से राणा और आईएसआई के संबंध स्थापित होंगे और पाकिस्तान व आईएसआई बेनकाब होगी।

अन्ना हजारे ने अब सोनिया और कांग्रेस नेतृत्व पर हमला किया

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th May 2011
अनिल नरेन्द्र
पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस नेतृत्व पर भी हमले होने लगे हैं। हालांकि यह नाम लेकर तो नहीं किए जा रहे पर इशारा किसकी ओर है यह साफ है। पहले बात करते हैं अन्ना हजारे के ताजा सनसनीखेज हमले की। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने शनिवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कहा कि रिमोट कंट्रोल की वजह से समस्याएं पैदा हो रही हैं। हजारे ने हालांकि पधानमंत्री मनमोहन सिंह की पशंसा करते हुए उन्हें अच्छा इंसान बताया। हजारे ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष का नाम लिए बगैर लेकिन स्पष्ट इशारा करते हुए कहा `पधानमंत्री अच्छे इंसान हैं। पधानमंत्री बुरे नहीं हैं। समस्याएं रिमोर्ट कंट्रोल की वजह से होती हैं।' उन्होंने कहा कि हम सभी को विश्वास हो गया है कि हर सरकार में जनशक्ति सबसे मजबूत होती है। हजारे ने कहा कि अगर लोकपाल विधेयक को 6 अगस्त तक नहीं लाया गया तो वह जंतर-मंतर पर लौटकर आमरण अनशन करेंगे।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जो रिमोट कंट्रोल द्वारा देश पर शासन कर रही हैं, निर्विवाद रूप से कांग्रेस की सर्वोच्च नेता और देश की सबसे ताकतवर महिला हैं। पहले पार्टी के भीतर उनके घाघ और मौकापरस्त लोगों से घिरे रहने की कानाफूसी थी, लेकिन अब कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं आरके धवन, बसंत साठे और जाफर शरीफ के हालिया बयानों ने अपत्यक्ष रूप से राहुल गांधी की कार्य पद्धति पर हमला बोल दिया है। वे सोनिया की बेटी पियंका जिनका व्यक्तित्व करिशमाई है, को राहुल गांधी के बदले सकिय राजनीति में लाने की पार्थना कर रहे हैं। इन तीनों के बयानों में दिख रही सतही बातों के अलावा और भी बहुत कुछ हो सकता है। इन तीनों पुरोधाओं द्वारा सोनिया के कांग्रेस संगठन चलाने की नीति के विरुद्ध एक तरह के असंतोष का भी परिचायक है। यह कांग्रेस पार्टी के भीतर नए चलन की शुरुआत के रूप में पतीत हो रहा है, जो अंततोगत्वा गंभीर रूप से सामने आ सकता है। आंध्र पदेश में जगन रेड्डी जीत के बाद सोनिया और राहुल को खुली चुनौती दे रहे हैं। यह तीनों नेता अत्यंत अनुभवी नेता हैं और जिन्हें किसी अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक कुशल माना जाता है, क्योंकि इन तीनों ने उन दिनों में इंदिरा गांधी का साथ दिया जब वे अपने जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही थीं। इन नेताओं ने सतर्प सोच और कुछ अन्य वरिष्ठ पार्टी नेताओं, जो स्वयं के इस्तेमाल होने और तिरस्कृत महसूस कर रहे थे, के साथ विचार-विमर्श के बाद ही बयान दिया इसलिए इन तीनों के बयानों को पार्टी के भीतर तुच्छ नहीं माना जा सकता।
आरके धवन निश्चित रूप से इंदिरा जी के सबसे करीबी थे। राहुल को सावधान करते हुए उन्होंने कहा कि राहुल अपने पिता राजीव गांधी की तरह गलती को न दोहराएं और राजनीति में पांव पूंक-पूंक कर रखें। राहुल को समझना होगा कि कौन उनका अपना है और कौन उनके कंधे से बंदूक चलाकर अपनी निजी राजनीति चमका रहा है। अपने पिता की तरह उन्हें अपने रिश्तेदारों और करीबियों को तरजीह नहीं देनी चाहिए। धवन के मुताबिक चूंकि राजीव के करीबियों को उनकी अच्छाइयों और खामियों का भी पता रहता था इसलिए उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए उन खामियों को एक्सप्लाइट किया। धवन ने अरुण नेहरू, सतीश शर्मा जैसे नेताओं का नाम ऐसे लोगों के रूप में लिया। कुछ महत्वपूर्ण लोगों का आकलन है बेशक सोनिया जितनी कोशिश करें राहुल शायद ही अगले पीएम के रूप में फिट बैठें?

Monday 30 May 2011

Jail is alright, but recovery of the money, too is very important

Anil Narendra
A few days ago, I met a leader. During our talks, various scams being in the limelight these days, also came up. His views made me to think. He said that scam of any magnitude can be carried out these days. But, if you are ready to go to jail for a few days, you have nothing to fear of. According to him, the moment the leader is put behind the bars, half of public ire gets pacified and half of the case is also won. When he comes out of jail after a few months, he is accorded a hero’s welcome. Then, comes the elections and the leader wins and now he can claim that the public has condoned the corruption or he might say that he has been forgiven by the supreme court of the democracy i.e. the janata durbar. There may be one or two cases, but ultimately disputes are settled in his favour. But, the most important question remains, where is the money, which this man has amassed from the scam?
Let us take the example of 2-G spectrum scam, which amounts to almost staggering 1,76,000 crores rupees. It may be true that more than half a dozen leaders and others including A Raja and Kanimozhi are behind the bars in connection with this scam, but the question remains that how much money has so far been recovered by the CBI? It is not clear from the statements of the CBI as to any amount relating to this scam has so far been recovered or not? According to the charges by the investigation agency in this scam of  1,76,000 crore rupees, Raja had made the company of Shahid Balwa to pay a sum of Rs 200 crores to Kalaignar TV and this amount had reached Kalaignar TV through Cineyug. Kanimozhi and Sharad owned 20% shares each in Kalaignar TV, whereas Dayalu Ammal had a whooping holding of 60%. It is being talked about that if the CBI has not made it public that it has recovered any amount from someone or not, then the money has came back to Shahid Balwa through the same channel through which it had reached Kalaignar TV? In case, the amount of theft is not recovered, there can not be an air-tight case. This amount must be recovered and deposited in the Court, which then becomes the case property. If your mobile phone is stolen in a bus, then the case can not be considered air tight till the police apprehend the culprit and recover and table the stolen mobile in the Court. Of course, the CBI arrested Gautam Doshi, Managing Director, Reliance, Senior Vice Presidents, Hari Nayar and Surendra Papara, Director, Swan Telecom, Vinod Goenka and Director of Unitech Wireless Sanjay Chandra, but there is no indication as to the recovery of any money from these persons. What steps the CBI or the government is contemplating to recover the money involved in the scam? Will the government confiscate the properties of these accused and their companies to recover the scam money? This action is necessary for two reasons. Firstly, it is the property of the country, and secondly this amount has been amassed by looting the country and as such it is the case property. 2-G Spectrum is just one scam, God knows how many more scams are lying undetected. If money involved in these scam is recovered, the people of the country can be relieved of the burden of the poverty.

Sunday 29 May 2011

भुल्लर की याचिका रिजेक्ट होने से शायद अन्य दोषियों को फांसी मिले?


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th May 2011
अनिल नरेन्द्र
पंजाब के देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर और असम के महेन्द्र नाथ दास की दया याचिकाओं को राष्ट्रपति पतिभा पाटिल ने खारिज कर दिया है अब हमें उम्मीद है कि वर्षों से लटकी अन्य दोषियों की दया याचिकाओं के निपटारे का रास्ता खुल गया है। इसमें संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू और राजीव गांधी की हत्या के दोषियों की याचिकाएं भी शामिल हैं। भुल्लर को 25 अगस्त, 2001 को एक निचली अदालत ने 1991 में पंजाब के पुलिस अधिकारी सुमेध सिंह सैनी पर तथा 1993 में युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एमएस बिट्टा पर आतंकवादी हमलों की साजिश रचने के मामले में मौत की सजा सुनाई थी। राष्ट्रपति ने महेन्द्र नाथ दास की भी दया याचिका को खारिज कर दिया है इसको हरकांत दास नामक व्यक्ति की हत्या का दोषी पाया गया। वर्ष 2004 के बाद पहली बार राष्ट्रपति की ओर से किसी दोषी को मृत्युदंड की सजा पर मुहर लगाई गई है। 2004 में धनंजय चटर्जी को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
मौत की सजा पाने वाले लोगों की दया याचिका पर फैसला लेने में होने वाली देरी के मामले में सुपीम कोर्ट ने भी सरकार से पूछा था कि पिछले आठ वर्षों से लंबित देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका का निपटारा अब तक क्यों नहीं किया गया। भुल्लर समेत 28 लागों की दया याचिकाएं राष्ट्रपति के पास लंबित हैं जिनमें से दो का निपटारा हो गया है। दरअसल सुपीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर छह हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि हैरानी की बात है कि याचिका आठ वर्षों से लंबित है इससे पूर्व संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की याचिका का भी मामला उठा था जिस पर दिल्ली सरकार पूरे चार साल तक बैठी रही थी। लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। भुल्लर की ओर से दायर याचिका में बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने कहा कि सुपीम कोर्ट की संविधान पीठ का 1989 का फैसला कहता है कि दया याचिका पर यदि मुनासिब समय में विचार न हो तो ऐसा अभियुक्त अनुच्छेद 32 के तहत सुपीम कोर्ट आकर मृत्युदंड को उम्र कैद में तब्दील करवा सकता है। उन्होंने कहा कि वह 2001 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में 7 गुणा 9 पुट की काल कोठरी में रोजाना 22 घंटे रहता है, जिससे उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया है और उसे दिल तथा स्पाडिलाइटिस की बीमारी भी हो गई है। तुलसी के आग्रह पर जस्टिस जीएस सिंघवी और सीके पसाद की खंडपीठ ने देरी के मुद्दे पर सरकार को नोटिस जारी कर दिया लेकिन मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने के आग्रह को खारिज कर दिया।
अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान में छिपे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया हो, लेकिन अत्यंत दुख से कहना पड़ता है कि भारत में पिछले बीस सालों में तीन दर्जन से अधिक आतंकी हमले और उनमें 1600 से अधिक लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार एक भी आतंकी को सजा नहीं मिल सकी है। चाहे 1993 का मुंबई बम धमाका हो या फिर 2001 का संसद पर हमला, पाकिस्तान में बैठे साजिश रचने वालों तक भी भारतीय एजेंसियों के हाथ नहीं पहुंच सके हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आतंक के लिए जिम्मेदार को सजा दिए बिना इसके खिलाफ लड़ाई बेमानी है। भारत आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित होने के बावजूद आतंकियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने में विफल रहा है।
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जेल तो ठीक है पर पैसे की रिकवरी बहुत जरूरी है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th May 2011
अनिल नरेन्द्र
दो-तीन दिन पहले मुझे एक नेता मिला था। बातों बातों में आजकल सुर्खियों में चल रहे विभिन्न घोटालों का जिक हुआ। उस नेता की बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने कहा कि आजकल जितना बड़ा घोटाला करना चाहो कर लो। हां, अगर आप कुछ दिन जेल जाने को तैयार हों तो फिर आपको कोई और डर नहीं। उसके अनुसार जिस दिन नेता जेल गया उसी दिन जनता का आधा गुस्सा तो ठंडा हो जाता है, आधा केस भी हो जाता है। वह कुछ महीने अंदर रहने के बाद जब बाहर आता है तो उसका अच्छा स्वागत किया जाता है। फिर चुनाव आ जाते हैं और वह नेता चुनाव जीत जाता है और यह कहने की स्थिति में हो जाता है कि जनता ने उसके भ्रष्टाचार पर उसे माफ कर दिया या फिर यह कहता है कि लोकतंत्र की सुपीम अदालत यानी जनता के दरबार में उसे माफी मिल गई है। एक-आध केस चलता रहता है और मामला रफा-दफा हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि वह पैसा कहां गया जिसका इसने घोटाला किया था?
आप 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को ही ले लीजिए। यह घोटाला लगभग 1,76,000 करोड़ रुपए का है। यह ठीक है कि इस घोटाले में ए. राजा, कानीमोझी सहित आधा दर्जन से ज्यादा नेता व अन्य जेलों में हैं पर सवाल यह है कि सीबीआई ने कितने पैसों की अब तक रिकवरी की है? सीबीआई के बयान से अभी तक यह साफ नहीं है कि उसने इस केस में अब तक कोई राशि जब्त की है या नहीं? 1,76,000 करोड़ रुपए के इस घोटाले में अभी तक जो आरोप सीबीआई की ओर से लगाया गया है वह है कि राजा ने 200 करोड़ रुपए कलेंगनार टीवी को शाहिद बलवा की कम्पनी से दिलाए थे जो सिने युग द्वारा कलेंगनार टीवी तक पहुंचे थे। इस टीवी में कानीमोझी और शरद की बीस पतिशत की हिस्सेदारी थी जबकि दयाल अम्मल की भागीदारी साठ पतिशत है। कहा यह जा रहा है कि जिस रास्ते से पैसा कलेंगनार टीवी में आया था उसी रास्ते से वापस शाहिद बलवा के पास पहुंच गया अगर सीबीआई ने अभी तक यह बात सार्वजनिक नहीं की है कि उसने किसी से कोई रकम भी बरामद की है या नहीं? जब तक चोरी की रकम बरामद नहीं हो जाती तब तक कोई भी एयर राइट केस नहीं बनता। उन्हें यह राशि बरामद करके अदालत में जमा करानी आवश्यक होती है जो केस पापर्टी बनती है। अगर आप का मोबाइल बस में चारी हो जाता है तो पुलिस मुजरिम को पकड़ कर जब तक अदालत में चोरी गया मोबाइल पेश नहीं करती तब तक केस एयर राइट नहीं माना जाता। सीबीआई ने रिलायंस के मैनेजिंग निदेशक गौतम दोषी, सीनियर वाइस पेसीडेंट हरी नायर, सुरेन्द्र पपारा, स्वॉन टेलीकॉम के निदेशक विनोद गोयनका और यूनिटेक वायरलैस के निदेशक संजय चंद्रा को गिरफ्तार तो किया है मगर उनसे कोई राशि बरामद हुई है या नहीं, इसका कोई ब्यौरा नहीं दिखा गया। सीबीआई या सरकार घोटाले की रकम को रिकवर करने के लिए क्या कदम उठा रही है? क्या सरकार इन आरोपियों की सम्पत्ति जब्त करके पैसे की रिकवरी करेगी? यह करना इसलिए जरूरी है कि पहली बात तो यह देश की सम्पत्ति है और दूसरी बात यह रकम देश को लूट कर बनाई गई है और केस पापर्टी है। 2-जी स्पेक्ट्रम का तो एक घोटाला है, ऐसे न जाने कितने और घोटाले हैं। अगर इनकी रिकवरी हो जाए तो देश की जनता गरीबी की मार से बच जाए।
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Saturday 28 May 2011

दिल्ली में बम धमाका : चुनौती या चेतावनी?


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th May 2011
अनिल नरेन्द्र
नई दिल्ली के अतिसंवेदनशील इलाके में बुधवार को हाई कोर्ट परिसर में बम धमाके ने हड़कम्प मचा दिया है। हड़कम्प इसलिए नहीं मचा कि बम बहुत शक्तिशाली था और परिणामस्वरूप बहुत ज्यादा जानमाल का नुकसान हुआ पर इसलिए ज्यादा मचा कि वह ऐसी जगह फटा जो नई दिल्ली में सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाका माना जाता है। दिल्ली हाई कोर्ट की कैंटीन में फटा हो या पार्किंग में यह क्षेत्र अतिसुरक्षित माना जाता है। इसके दो-चार किलोमीटर के दायरे में राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ-साउथ ब्लॉक, संसद सभी महत्वपूर्ण ठिकाने आते हैं। जहां बम फटा वह मुश्किल से नेशनल डिफेंस कॉलेज से एक किलोमीटर दूर है। याद रहे कि शिकागो में चल रहे डेविड हेडली के मुकदमे में उसने यह बताया कि दिल्ली डिफेंस कॉलेज आतंकियों के निशाने पर है। दुःखद पहलू यह भी है कि आईबी ने वार्निंग दी थी कि ओासमा बिन लादेन के मारे जाने से आतंकी बौखला गए हैं और वह बदला ले सकते हैं। चार दिन पहले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन इंचार्ज को डाक के माध्यम से एक पत्र भी मिला था जिसमें लश्कर-ए-तोयबा के नाम से किसी अज्ञात संगठन ने यह लिखा था कि वह ओसामा बिन लादेन की मौत का बदला लेने के लिए भारत में बम धमाके करेगा। पत्र में 25 मई की शाम 5 बजे का समय भी दिया गया था और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, चिड़ियाघर, लाल किला और एयरपोर्ट को निशाना बनाने की धमकी भी दी थी। इस पत्र में कानपुर, लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, नागपुर, गाजियाबाद, हरियाणा और महाराष्ट्र में भी हमले की बात लिखी गई है। पत्र में करीम अंसारी नाम लिखा है जो अपने आपको जम्मू-कश्मीर में लश्कर का कमांडर बता रहा है।
मेरा मानना है कि ऐसे मामलों में पुलिस कुछ ज्यादा नहीं कर सकती। कोसने को तो हम दिल्ली पुलिस को कोस सकते हैं पर सवाल यह है कि दिल्ली जैसे शहर में जहां लाखों आदमियों का रोज का आना-जाना है ऐसे कूड बम हादसे को रोकना लगभग असम्भव है। हां कोई संसद हमले, मुंबई हमले जैसी वारदात को रोका जा सकता है पर ऐसे छोटे-मोटे बम विस्फोटों को रोक पाना अति कठिन है। सवाल उठता है कि आखिर इस विस्फोट का मकसद क्या था? क्या यह आतंकी अपनी ताकत दिखाना चाहते थे या फिर यह किसी बड़े हमले का ड्रेस रिहर्सल था? करीब सवा दो साल की चुप्पी के बाद जिस तरह हाई कोर्ट के बाहर कम तीव्रता का विस्फोट रखा गया उससे इतना तो साफ है कि उनका मकसद किसी को हताहत करने का नहीं था। वे पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं तक संदेश पहुंचाना चाहते थे कि हम अब भी उतना ही सक्रिय हैं। बेशक बम कम विस्फोट क्षमता का था पर अगर इसे भीड़ वाली जगह पर रखा गया होता तो काफी नुकसान हो सकता था। आजकल पटियाला हाउस व पास ही पटियाला हाउस कोर्ट में राजा, शाहिद बलवा, कनिमोझी जैसी बड़ी हस्तियां विभिन्न मामलों में सुनवाई के लिए आ रही हैं। इसलिए सुरक्षा एक बड़ा सवाल है। इसलिए ज्यादा सतर्पता की जरूरत है। आतंकी संगठन बौखलाए हुए हैं और वह कोई बड़ी वारदात करने की तैयारी में हैं। यह तो रिहर्सल थी, असल हमला अभी आगे आ सकता है।
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दिल दहलाने वाली त्रासदी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th May 2011
अनिल नरेन्द्र

यह कलयुग है और कलयुग में आदमी ऊपर वाले की रहमत को भूल चुका है। अच्छी सेहत, अच्छा परिवार, सही सलामत बच्चे यह आजकल खास मायने नहीं रखते। इन सबको तो आदमी मानकर चलता है यानि टेकन फॉर ग्राटेंड है। बहुत कम लोग ऊपर वाले का यह शुक्रिया करते हैं कि उसने आज का दिन उन्हें सुरक्षित महफूज रखा है। कोई तो पैसे के लिए भाग रहा है, कोई सत्ता के लिए, कोई पॉवर के लिए। कभी-कभी ऐसी घटना सामने आती है जो आदमी को सोचने पर मजबूर कर देती है कि हम क्या प्लानिंग करते हैं, क्या बड़ी-बड़ी सकीमें, योजनाएं बनाते हैं जबकि हमें यह नहीं पता होता कि अगले क्षण क्या होना है? क्या बिहार के पश्चिम चम्पारण के बेतिया निवासी जो पीलिया से पीड़ित था या उसके परिवार वालों को मालूम था कि जिस हेलीकाप्टर से वह दिल्ली इलाज करवाने जा रहे हैं वह छोटा जहाज गिर जाएगा और सारे मारे जाएंगे? अपोलो अस्पताल का एयर एम्बुलेंस पश्चिम चम्पारण के बेतिया निवासी पीलिया से पीड़ित गंभीर मरीज राहुल राज (20 वर्ष) को लेकर शाम पौने छह बजे पटना से दिल्ली के लिए रवाना होता है। विमान में राहुल के साथ उसके चचेरे भाई रत्नेश, नर्स सीरील और अपोलो के इमरजेंसी डाक्टर अरशद और डाक्टर राजेश सवार थे। विमान के पायलट हरप्रीत और मंजीत थे। राहुल का इलाज पटना के जगदीश मेमोरियल अस्पताल में लम्बे समय से चल रहा था। बुधवार शाम अचानक स्वास्थ्य ज्यादा खराब होने के बाद आनन-फानन में दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उसका इलाज कराने के लिए एयर एम्बुलेंस का इंतजाम किया गया और उसे दिल्ली के लिए रवाना किया गया।
पालम एयरपोर्ट पर लैंडिंग की अनुमति के इंतजार में विमान फरीदाबाद के पास उड़ान भर रहा था। तभी तेज आंधी चलने लगी। शायद उसी के चपेट में आकर विमान का संतुलन बिगड़ा और रात करीब साढ़े दस बजे फरीदाबाद की पर्वतीय कॉलोनी के दो मकानों पर तेज धमाके की आवाज से वह गिर गया। विमान के गिरते ही उसमें आग लग गई। वह दो टुकड़ों में बंट गया। इस हादसे में आसपास के कुछ मकान भी क्षतिग्रस्त हो गए। प्राप्त खबरों के अनुसार जहाज पर सवार लोगों के अलावा जिन तीन लोगों के शव बरामद हुए उनमें सरला, दीपक की पत्नी रानी, शोभाराम की पत्नी सविता के शवों की पहचान हो गई है, इसके अलावा अभी कई लोग लापता हैं जिनके शव मलबे में दबे हो सकते हैं। घनी आबादी एवं संकरी सड़क वाले जिस इलाके में छोटा जहाज गिरा वहां तक एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को पहुंचने में काफी परेशानी हुई। हादसे के शिकार मरीज राहुल राज के मौसा मुकेश चौधरी ने बताया कि राहुल की स्थिति बिगड़ने पर उन्होंने शाम को ही अपोलो में इलाज के लिए उसके एम्बुलेंस के लिए पैसे जमा करवाए थे। बाकी की तैयारी के लिए वे दूसरे विमान से शाम को दिल्ली पहुंच गए थे। फरीदाबाद की पर्वतीय कॉलोनी में आराम से सो रहे सरला, रानी और सविता का इतना कसूर था कि जिस इलाके में उनका घर था वहीं जहाज आकर गिरा और उन्हें हमेशा के लिए मिटा दिया। इसीलिए कहता हूं कि ऊपर वाले का, भगवान का, अल्लाह का, वाहे गुरु का, ईसा मसीह का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसकी रहमत हम पर बनी रहे।
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Friday 27 May 2011

आंख की पुतली का हाल देख तिलमिला उठे करुणानिधि

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th May 2011
अनिल नरेन्द्र
तमिल भाषा में कनिमोझी का मतलब होता है आंख की पुतली। डीएमके सुप्रीमो एम. करुणानिधि ने अपनी इस बेटी का नाम बड़े प्यार से रखा था, क्योंकि काली पुतली वाली यह बच्ची उन्हें बहुत भाती थी। तभी तो वह जब तिहाड़ में अपनी आंख की इस पुतली बेटी से मिलने गए तो गले से कनि को लगाकर उनकी आंखें भर आईं। कनि उनके गले से लगकर रोने लगी। कनिमोझी को सहारा देने के लिए पिता करुणानिधि पूरे लाव-लश्कर के साथ तिहाड़ जेल गए। उनके साथ उनकी पत्नी, दामाद और पोता भी था। पार्टी के आठ सांसद भी जेल परिसर तक आए थे। लेकिन उन्हें जेलर के कमरे तक जाने की इजाजत नहीं मिली। अन्दर माता-पिता, बेटी, दामाद के आंसू निकल रहे थे तो बाहर कुछ और ही नजारा था। तिहाड़ की सुरक्षा में तमिलनाडु पुलिस की ड्यूटी रहती है, जो कुछ सिपाही अपने `देश' के सांसदों के साथ खड़े बतिया रहे थे। चार सिपाही और आठ सांसद रोने की मुद्रा में अलर्ट खड़े थे, जैसे ही सामने से करुणानिधि का काफिला आया, ये सांसद फूट-फूट कर रोने लगे। दो तमिल सिपाही भी अपने आंसू नहीं रोक पाए। पास के खड़े एक नेता जी बोले, ये गम के नहीं बल्कि वफादारी के आंसू हैं। ऐसे वफादारी के आंसू कभी आपने भी देखे हैं? करुणानिधि बिना सोनिया से मिले वापस चले गए।
कांग्रेस और द्रमुक के रिश्ते टूटने के कगार पर हैं। तनातनी के इस माहौल में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने और आग लगा दी है। जयललिता ने स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्या में द्रमुक का हाथ होने का आरोप लगा दिया है। मंगलवार को चुनाव जीतने के बाद अपनी पहली ही प्रेस कांफ्रेंस में जयललिता ने एक सवाल के जवाब में कहा कि 1991 से मैं भी एलटीटीई के डर के साये में जी रही हूं। हम हमेशा से कहते रहे हैं कि राजीव गांधी की हत्या में द्रमुक परोक्ष रूप से शामिल था। जयललिता से पूछा गया था कि क्या लिट्टे के पूर्व नेता सी. पद्मानाभन उर्प केपी ने वाकई यह कहा था कि यदि मौका मिला तो तमिल लड़ाके जयललिता की हत्या कर देंगे। जयललिता ने कहा कि 2जी घोटाले में हो रही कानूनी कार्रवाई से लोगों का न्यायपालिका में विश्वास बहाल हुआ है। कनिमोझी की ओर से महिला होने का हवाला देकर अदालत से जमानत मांगने पर उन्होंने कहा, `यह तर्प बिल्कुल गलत है, राजनीति और अपराध के मामलों में महिला होने के कारण छूट नहीं मांगी जा सकती है।'
द्रमुक कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए बेताब है पर उसे समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे? अपने प्रिय सहयोगी ए. राजा और अब बेटी कनिमोझी के जेल में चले जाने से करुणानिधि एकदम तमतमाए बैठे हैं। जेल में बेटी से मिलने के बाद हर बार की तरह वह सोनिया गांधी से मिलने नहीं गए। खबर यह है कि होटल ताज मान सिंह में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व महासचिव दिग्विजय सिंह से भी उन्होंने मिलने से मना कर दिया। कांग्रेस के साथ सात वर्षों की पुरानी दोस्ती में यह पहली बार हुआ है कि करुणानिधि दिल्ली आए और कांग्रेस के किसी भी नेता से मिले बिना वापस चले गए। करुणानिधि यह अच्छी तरह जानते हैं कि इस समय उनके 18 सांसद कांग्रेस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते लिहाजा वे सही अवसर की तलाश में हैं। वैसे भी चुनाव हारने के बाद वह कितने मोर्चों पर एक साथ लड़ेंगे?
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क्या पाकिस्तान का एटमी जखीरा सुरक्षित है?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th May 2011
अनिल नरेन्द्र
कराची के मेहरान नौसेना हवाई अड्डे पर हुए आतंकी हमले से, वहां के अस्थिर सुरक्षा हालात और पाकिस्तानी एटमी हथियारों की हिफाजत को लेकर भारत का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मामले में भारत की चिन्ता प्रकट की है। भारत का मानना है कि सेना मुख्यालय, पुलिस प्रशिक्षण केंद्र के बाद अब सैन्य हवाई अड्डे पर आत्मघाती हमले जैसी आतंकी घटना रोकने में पाकिस्तानी तंत्र की नाकामी न केवल भारत के लिए चिन्ता का सबब है बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है। अहम ठिकाना होने के बावजूद मेहरान महत्वपूर्ण सैन्य प्रतिष्ठानों से बहुत दूर नहीं है। यह पाकिस्तानी वायुसेना के मसरूर केंद्र से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो परमाणु हथियारों का डिपो माना जाता है। एक भारतीय रक्षा विशेषज्ञ के मुताबिक पीएनएस मेहरान पाक के सबसे अहम नेवल एयरबेस में से एक है। अत्याधुनिक उपकरणों और एयरक्राफ्ट से लैस इस जगह आतंकियों का इतनी आसानी से घुस आना गंभीर खामियों की तरफ इशारा करता है। बिना भीतरी शख्स की मदद के आतंकियों को नेवल बेस में एयरक्राफ्ट की मौजूदगी का पता नहीं चल सकता था। जिस तरह वे घंटों डटे रहे, उससे मालूम होता है कि वे पुख्ता जानकारी के साथ आए थे। न्यूयार्प टाइम्स ने खुलासा किया है कि मेहरान नौसैनिक अड्डे के पास ही मसरूर वायुसेना प्रतिष्ठान है जहां पाक का परमाणु जखीरा है। यहां वे परमाणु बम हैं जिन्हें मिसाइलों और युद्धक विमानों से सम्भावित लक्ष्यों पर छोड़ा जा सकता है। अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों का अनुमान है कि पाक के पास इस समय 100 परमाणु बम हैं।
सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि पाकिस्तानी फौज के अन्दर अलकायदा, लश्कर-ए-तोयबा जैसे आतंकी संगठनों की गुप्त मदद करने वाले मौजूद हैं। इनकी मदद से अगर आतंकी मसरूर वायुसेना प्रतिष्ठान पर हमला करते हैं तो उसके भयानक परिणाम हो सकते हैं? मान लीजिए हमला होता है और इस हमले में परमाणु बम प्रभावित हो जाते हैं और रेडियो एक्टिव किरणें लीक कर जाती हैं तो क्या होगा? दूसरा खतरा यह है कि अगर इनमें से कुछ आतंकियों के हाथ लग जाते हैं तो? यह कम से कम छोटा `डर्टी बम' तो बना ही सकते हैं। तीसरा खतरा यह है कि पाक फौज में बैठे इन आतंकियों के हमदर्द आतंकियों को परमाणु बम बनाने की तकनीक मुहैया करवा देते हैं तो क्या होगा? इन सब सम्भावनाओं को देखते हुए यह अत्यंत जरूरी है कि पाक अपने परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर और ज्यादा ध्यान दे। अपने अन्दर मौजूद भेदियों की पहचान करे और इस बात की जांच करे कि क्या मेहरान एयर बेस पर जो हमला हुआ उसमें क्या किसी पाक सेना के भेदिए का भी हाथ तो नहीं था। अमेरिका भी इसी को लेकर चिन्ता में पड़ा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति के पूर्व रक्षा सलाहकार जैक करावली ने खुलासा किया है कि कराची में हुए दुस्साहसिक हमले के मद्देनजर अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अपने कब्जे में लाने की आपातकालीन योजना पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में पाक के परमाणु हथियारों और सामग्री को कब्जे में लेने की गुप्त योजना मौजूद है। यह चिन्ता की बात है कि पाक आंतरिक तालमेल खोता जा रहा है और फिर भी यह कहने से थकता नहीं कि हम अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को और बढ़ाएंगे?
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Thursday 26 May 2011

नक्सलियों के पास अत्याधुनिक हथियार, हिंसा बढ़ने की आशंका

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th May 2011
अनिल नरेन्द्र
इसमें कोई सन्देह नहीं कि 26/11 मुंबई हमले के बाद से भारत के अन्दर कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ पर वहीं बढ़ती नक्सली हिंसा चिन्ता का विषय जरूर है। अभी दो दिन पहले ही छत्तीसगढ़ के गरियाबंद पुलिस जिले के उड़ीसा जुड़ी सीमा क्षेत्र में गश्त पर गए एक अपर पुलिस अधीक्षक सहित 12 पुलिस कर्मियों का अता-पता नहीं है। खबरों के अनुसार सभी नक्सलियों के हमले में शहीद हो गए हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी कहा था कि नक्सली समस्या भारत की सबसे बड़ी समस्या है। देश का एक-तिहाई से अधिक भाग इस नक्सली आंदोलन से प्रभावित है। नक्सली खुलेआम कहते हैं कि हमारी लड़ाई तो व्यवस्था बदलने की है, सत्ता बदलने की नहीं। हजारों लोग नक्सली, माओवादी हिंसा के शिकार हो चुके हैं। सरकार की ढुलमुल नीति के कारण इनका प्रभाव क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। उगाही के क्षेत्र में भी इनके पास इतना पैसा आ गया है कि यह अपनी मूवमेंट आगे बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक हथियार इत्यादि खरीद रहे हैं। अब तो नक्सली वह हथियार इस्तेमाल करने लगे हैं जो भारतीय सेना व अर्द्धसैनिक बल इस्तेमाल करते हैं।
बस्तर के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों के पास मौजूद तकनीक से हमारे खुफिया एजेंसियों की नींद उड़ गई है। नक्सली अब केवल बारुदी सुरंग विस्फोट एवं एके-47 तक ही सीमित नहीं रह गए हैं। सूत्रों के दावों पर यकीन करें तो खुफिया रिपोर्ट में नक्सलियों के पास अत्याधुनिक रॉकेट लांचर होने की बात भी सामने आई है। वहीं खबर तो यह भी है कि अब इनके पास हैंड ग्रैनेड का जखीरा और जहरीली गैस छोड़ने वाले संसाधन भी उपलब्ध हैं। नक्सलियों को चीनी हथियार मिल रहे हैं, इनमें हैंड ग्रैनेड, रॉकेट लांचर शामिल हैं। सुरक्षाबलों को हाल में उल्लेखनीय सफलता मिली है और इससे नक्सली बौखला उठे हैं। बीते कुछ महीनों में अंदरुनी जंगलों में मुठभेड़ और सर्च ऑपरेशनों के दौरान भी नक्सलियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इससे पहले वे बिना रोक-टोक रणनीतियों के तहत आगे बढ़ रहे थे। नक्सलियों की इस बौखलाहट को पुलिस की सफलता मानी जा रही है।
2010 का साल नक्सली हिंसा का सबसे खूनी साल रहा है। पिछले एक साल में एक हजार से ज्यादा लोग नक्सली, माओवादी हिंसा की भेंट चढ़ गए। 44 वर्ष पहले 1967 में शुरू हुए नक्सलवादी आंदोलन के इतिहास में यह सबसे रक्तरंजित साल था। 2010 में नक्सल प्रभावित नौ राज्यों में उन्होंने 998 लोगों की जान ली। इनमें 285 पुलिसकर्मी और 700 से ज्यादा आम नागरिक थे। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकी घटनाओं में मारे गए लोगों से यह संख्या पांच गुना ज्यादा है। नक्सली हिंसा का शिकार ज्यादातर वे गरीब आदिवासी और ग्रामीण हुए जिन्होंने उनका विरोध किया या पुलिस के मुखबिर बने। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने बीते दिसम्बर में अपनी रिपोर्ट में एक बार फिर नक्सली, माओवादी हिंसा को देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया। चिदम्बरम ने सुरक्षाबलों से कहा कि उन्हें सुरक्षात्मक नहीं बल्कि आक्रामक होने की जरूरत है। मुश्किल यह है कि यही चिदम्बरम साहब और प्रधानमंत्री कभी तो सख्ती की बात करते हैं कभी वार्ता की अपील करते हैं, नतीजा यह है कि सुरक्षाबलों को यह नहीं पता लगता कि सरकार की नीति आखिर है क्या?
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विधानसभा चुनावों में मुस्लिम पार्टियों को शानदार सफलता मिली

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th May 2011
अनिल नरेन्द्र
भारत के मुसलमानों का मैं समझता हूं कि यह दुर्भाग्य रहा है कि राजनीति के क्षेत्र में उन्हें अपने समुदाय का कभी सही नेतृत्व नहीं मिला और प्रमुख राजनीतिक दलों ने हमेशा इनका शोषण किया और वोट बैंक की तरह व्यवहार किया। अब यह बात हमारे मुसलमान भाइयों को समझ में आ रही है और वह राजनीतिक रूप से संगठित होने का प्रयास कर रहे हैं, यह अच्छी डेवलपमेंट है। यूं तो आजादी के बाद से ही भारतीय राजनीति में छोटे-मोटे मुस्लिम राजनीतिक दल हमेशा बने रहे हैं लेकिन अब उन्हें शानदार सफलताएं मिलने लगी हैं। हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि मुसलमान राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से निराश हैं। वे क्षेत्रीय मुस्लिम राजनीतिक दलों के आसपास गोलबंद हो रहे हैं। केरल में मुस्लिम लीग और असम में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोकेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को मिली सफलता और तमिलनाडु में नई बनी मुस्लिम राजनीतिक पार्टी एमएनएमके को भी दो सीटें मिलना इस तरफ इशारा करता है। इसका असर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ना लाजिमी है। खासकर उत्तर प्रदेश में मुस्लिम राजनीतिक दलों में मुस्लिम वोटों के लिए जबरदस्त जोर-आजमाइश होगी। यूं तो केरल में मुस्लिम लीग हमेशा से ही ताकतवर रही है लेकिन इस बार उसने सफलता के सभी पुराने रिकार्ड तोड़ दिए हैं। उसके 24 में से 20 उम्मीदवार जीते हैं। वहीं असम में एआईयूडीएफ की सीटें 10 से बढ़कर 19 हो गई हैं। यह इस बात का सबूत है कि इन राज्यों के मुसलमानों ने एकजुट होकर इन क्षेत्रीय मुस्लिम पार्टियों को वोट दिया। केरल में मुस्लिम लीग यूडीएफ का हिस्सा थी तो एआईयूडीएफ ने असम में अकेले चुनाव लड़कर अपनी ताकत बढ़ाई। तमिलनाडु में एमएनएमके जयललिता के गठबंधन का हिस्सा थी। लेकिन चुनाव के तुरन्त बाद उसका मन जयललिता से खट्टा हो गया क्योंकि उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में नरेन्द्र मोदी को बुलाया था। प. बंगाल में ममता बनर्जी की सफलता में मुस्लिम वोटों की अहम भूमिका रही। परम्परागत तौर पर माकपा का जनाधार रहे मुसलमानों ने इस बार ममता के प्रति ममता दिखाई। मुस्लिम मतदाताओं के रुख को ममता की तरफ मोड़ने में मुस्लिम संगठन जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आंध्र प्रदेश में भी एक मुस्लिम राजनीतिक दल मजलिस-ए-मुशावरत को हैदराबाद और उसके आसपास के इलाकों में अच्छी सफलता मिली है। उसके नेता ओबेसी लोकसभा सदस्य हैं।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। वहां 6-7 मुस्लिम राजनीतिक दल राज्य के 18 फीसद मुस्लिम वोटों को हथियाने के लिए मैदान में होंगे। यूपी में सबसे ताकतवर मुस्लिम पार्टी है पीस पार्टी। इसने पिछले उपचुनावों में अच्छे-खासे वोट हासिल कर राजनीतिक हल्कों में खलबली मचा दी है। लेकिन इसका प्रभाव पूरे सूबे में नहीं हो पाया और ज्यादातर गोरखपुर और उसके आसपास के इलाकों तक ही फिलहाल सीमित लगता है। हाल में जमाते इस्लामी ने भी पार्टी बनाई हैöवेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया। एआईयूडीएफ ने भी यूपी के चुनाव में उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। हैरानी की बात यह है कि देश के मुस्लिम सांसदों में से एक भी शिया नहीं है। इसलिए कई शिया संगठनों ने यह महसूस किया है कि उन्हें भी संगठित होकर अपनी पार्टी बनानी चाहिए ताकि शियाओं को सही प्रतिनिधित्व मिल सके। यह पार्टियां कितनी सफल होती हैं यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा पर इतना जरूर है कि कुछ सैक्युलर दलों की नींद हराम हो रही है।
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Wednesday 25 May 2011

ओबामा की धमकी का पाकिस्तान ने उसी अंदाज में दिया जवाब

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th May 2011
अनिल नरेन्द्र
अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद अमेरिका और पाकिस्तान का वाप्युद्ध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। दोनों ही एक-दूसरे को धमकियां दे रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि पाकिस्तान में आतंकवाद का खात्मा करने के लिए अमेरिका ऑपरेशन ओसामा अभियान दोहराने में नहीं चूकेगा। एक इंटरव्यू के दौरान ओबामा ने कहा कि अपनी सुरक्षा के लिए वे पाक में दोबारा सेना भेजने से नहीं चूकेंगे। बीबीसी को दिए इंटरव्यू में ओबामा ने कहा कि वे पाकिस्तान की सप्रभुत्ता का सम्मान करते हैं लेकिन अमेरिका की सुरक्षा उनकी पहली प्राथमिकता है। वे किसी को यह इजाजत नहीं दे सकते कि उनके खिलाफ साजिश और रची जाए और इस पर अमेरिका कार्रवाई न करे। उन्होंने कहा कि अगर तालिबान का सरगना पाकिस्तान में पाया जाता है तो अमेरिकी सेना को दोबारा पाक भेजने में उन्हें कोई संकोच नहीं होगा। उन्होंने पाकिस्तान को नसीहत देते हुए कहा कि भारत के प्रति पाकिस्तान का दुराग्रह उसकी बड़ी भूल है, इसी वजह से भारत उसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि अगर वह इस मनोवृत्ति से परे हटकर काम करे तो बहुत अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान इस बात को महसूस करे कि उसके लिए सबसे बड़ा खतरा बाहर से नहीं बल्कि घर के भीतर से ही है।
दूसरी ओर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख अहमद शुजा पाशा ने अमेरिका को चेतावनी भरे स्वर में कहा कि अगर अमेरिका ने कबायली इलाकों में ड्रोन हमले नहीं रोके तो पाक इसका जवाब देगा। पाशा ने सीआईए के डिप्टी डायरेक्टर माइकल मोरेल के साथ शनिवार को हुई बैठक में यह विचार जताए। अखबार `द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' की रिपोर्ट के मुताबिक पाशा ने मोरेल से कहा, `अगर आप ड्रोन हमले नहीं रोकेंगे तो हम जवाब देने के लिए मजबूर होंगे।' पाशा ने हाल ही में पाकिस्तानी वायु सीमा में नॉटो हेलीकॉप्टरों की घुसपैठ की घटना का जिक्र करते हुए इस घटना को अमेरिका और पाकिस्तान के सैन्य सहयोग को एक झटका बताया। पाकिस्तान की यात्रा पर आए मोरेल सीआईए के ऑपरेशनल अफसरों और आईएसआई अफसरों पर आए हुए हैं।
दरअसल हमें लगता है कि अमेरिका अब पाकिस्तान की दोहरी नीति को समझ गया है। एक तरफ तो वह वार ऑन टेरर में अमेरिका का सबसे विश्वासपात्र सहयोगी बताता है और दूसरी ओर आतंकियों को पूरी सुरक्षा, ट्रेनिंग, पैसा देता है। वहीं अमेरिका को आंखें दिखाने के लिए चीन को आगे कर देता है। पाक प्रधानमंत्री गिलानी द्वारा अपनी हाल ही की चीन यात्रा के दौरान उनके द्वारा साम्यवादी देश के प्रति दिखाए गए सौहार्द ने कुछ अमेरिकी सांसदों की भृकुटियां चढ़ा दी हैं और वे पूछ रहे हैं कि चीन को अपना सबसे अच्छा मित्र बताने वाला पाकिस्तान अमेरिका से अधिक से अधिक सहायता क्यों मांग रहा है? सीनेट की विदेशी मामलों की समिति में सीनेटर जिम रिश ने कहा, `हमारे द्वारा खर्च किए गए एक डालर में से 40 सेंट उधार से आते हैं। अमेरिकी लोगों को यह समझाना कठिन है कि हम 40 सेंट उधार लेकर उसे पाकिस्तान में खर्च कर देते हैं और उसके बाद भी पाक सरकार चीन को अपना सबसे विश्वासपात्र दोस्त बताता है?'
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जैसे बीज बोओगे वैसी ही फसल काटोगे

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th May 2011
अनिल नरेन्द्र

पाकिस्तान के अंदरुनी हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं। शायद ही अब कोई दिन ऐसा जाता हो जब वहां आतंकी हिंसा न होती हो। रविवार रात को पाकिस्तानी तटीय शहर में अति सुरक्षित माने जाने वाला एक नौसेना बेस मेहरान हवाई ठिकाने पर आतंकियों ने जबरदस्त हमला किया। सुरक्षाबलों से 16 घंटे तक मुठभेड़ चली और तभी जाकर आतंकियों पर काबू पाया जा सका। इस हमले में 10 सुरक्षाकर्मी और 14 आतंकी मारे गए। मुठभेड़ के बीच ही चार आतंकवादियों ने खुद को उड़ा लिया। कराची का यह हमला मुंबई 26/11 हमले की तरह का ही था। फर्प सिर्प इतना था कि वह बहुत बड़ा था और लम्बा चला था, यह हमला छोटा था और जल्द खत्म हो गया पर यह हमला इसलिए गम्भीर है क्योंकि यह एक फौजी ठिकाने पर हुआ है और यहां घुसकर लगभग 15 घंटे तक सुरक्षाबलों का मुकाबला करके तालिबान ने पाकिस्तानी सत्ता सत्र व सेना को गम्भीर चुनौती दी है। पाकिस्तान में सेना, आईएसआई मुख्यालय, पुलिस ठिकाने, मिलिट्री कॉलेज लगभग सभी सुरक्षा ठिकाने आतंकवादी हमलों के शिकार हो चुके हैं। रावलपिण्डी स्थित सेना मुख्यालय पर अक्तूबर 2009 में हुए हमलों के बाद यह सबसे भयानक हमला था।
यह हमला इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह ठिकाना उन चुनिन्दा महत्वपूर्ण ठिकानों में से एक है, जहां सुरक्षा इंतजाम चाक-चौबंद रहते हैं क्योंकि यहां पाक फौज से जुड़े कुछ अहम संस्थान हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पीएनएस मेहरान जहां आतंकियों ने हमले को अंजाम दिया वहां पाक नेवी और एयरफोर्स का आसपास ही मजबूत बेस है। यह पाक नौसेना का पहला नेवल एयर स्टेशन है यानि यह पाकिस्तानी नेवी के हवाई दस्ते का ठिकाना है। यही नहीं, इससे बिल्कुल पास में ही स्थित है पाकिस्तान का फैजल एयरबेस। यहीं पर पाकिस्तानी एयरफोर्स का साउदर्न एयर कमांड मौजूद है। इस हमले ने अमेरिका को भी हिलाकर रख दिया है। पाक में सबसे महफूज माने जाने वाले कराची के मेहरान नौसैनिक अड्डे की सुरक्षा व्यवस्था को भेदते हुए आतंकवादियों ने जिस तरह से यह वारदात की उससे अमेरिका व पश्चिमी देशों में यह आशंका बलवती हो गई है कि पाक के एटमी हथियार सुरक्षित नहीं हैं। पाक के एटमी हथियारों का एक बड़ा हिस्सा कराची के इन बेसों में ही सुरक्षित रखा गया है। अमेरिका को अब यह डर सताने लगा है कि कहीं पाकिस्तान के एटमी हथियार आतंकियों के हाथ न लग जाएं। कराची का यह हमला पाक एटमी हथियारों को अपने कब्जे में लेने के लिए ड्रेस रिहर्सल भी तो हो सकता है। आतंकियों ने सोचा हो कि क्यों न हम इस बेस पर हमला करके तजुर्बा करें कि क्या अगली बार हम एटमी हथियारों को अपने कब्जे में ले सकते हैं?
हमारे बड़े बूढ़े कहते हैं कि जैसा बीज बाओगे वैसी ही फसल काटोगे। पाकिस्तान आज दुनिया की सबसे बड़ी टेरर फैक्टरी है। यहां बच्चों तक को जिहादी बनाया जा रहा है और इस काम के लिए धन दे रहे हैं सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात। पाकिस्तान के प्रमुख पत्र डॉन ने विकीलीक्स के हवाले से रविवार को यह खबर दी कि खाड़ी देशों से इन संगठनों को हर साल करीब 10 करोड़ डालर की मदद मिल रही है। इस राशि से पाकिस्तान के जेहादी संगठन अपने शिविर चला रहे हैं। आज पाकिस्तान अपने बुने हुए जाल में ही फंस गया है। उसे समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे? इधर कुआं है तो उधर खाई।
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Tuesday 24 May 2011

34 साल बाद ईश्वर लौटे राइटर्स बिल्डिंग में

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 Published on 24th May 2011
अनिल नरेन्द्र
पश्चिम बंगाल में शुक्रवार को पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर ममता बनर्जी ने एक नए युग की शुरुआत की। 34 साल बाद भगवान पश्चिम बंगाल में लौटे। ममता ने शुक्रवार को दोपहर ठीक 1ः01 बजे ईश्वर के नाम पर शपथ ली। इससे पहले वाम मोर्चा के मंत्रियों ने 34 साल के शासन में भगवान का नाम नहीं लिया और शपथ हमेशा संविधान के नाम पर ही ली जाती रही। आखिर इस समय
1 बजकर 1 मिनट के पीछे क्या खास बात है? ज्योतिषियों का कहना है कि यह समय ममता बनर्जी के लिए शुभ है जो उन्हें पांच साल की पारी पूरी कराएगा, थोड़ा सतर्प रहते हुए। अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद जनभावनाओं का ध्यान रखते हुए परम्परा तोड़कर ममता बनर्जी राजभवन से राइटर्स बिल्डिंग (मुख्यमंत्री) तक जुलूस के साथ पैदल गईं। उनके समर्थकों की भीड़ देखते हुए राइटर्स बिल्डिंग के सभी गेट खोल दिए गए। राजभवन में दोपहर ठीक एक बजकर एक मिनट पर राज्यपाल एमके नारायणन ने ममता को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। अपनी ट्रेड मार्प साड़ी, रबड़ की चप्पल और सफेद सूती शाल पहनें ममता ने बंगला में ईश्वर के नाम पर शपथ ली। वाम मोर्चा राज में राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए परिवारों के लोगों को खासतौर पर बुलाया गया था। ममता बनर्जी के कालीघाट स्थित आवास से राजभवन तक एक किलोमीटर के रास्ते में दोनों ओर जमा भीड़ उनके समर्थन में नारे लगा रही थी। समर्थक शंखध्वनि कर रहे थे और फूल बरसा रहे थे। भीड़ की वजह से ममता बनर्जी को राजभवन पहुंचने में आधा घंटा लगा। समारोह के दौरान राजभवन के बाहर खड़ी भीड़ ममता के समर्थन में नारे लगाती रही।
ममता ने अपनी 43 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और महिलाओं यानि समाज के सभी वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया है। यों कहने को तो किताबी सिद्धांतों के अनुसार वाम मोर्चा के रूप में पश्चिम बंगाल में सर्वहारा वर्ग का शासन था लेकिन ममता बनर्जी का शपथ ग्रहण समारोह देखकर कहा जा सकता है कि व्यवहारिक रूप से सर्वहारा शासन अब स्थापित हुआ है। 1977 में पहली बार वाम मोर्चा सरकार बनने पर उसके मुख्यमंत्री ज्योति बसु से अपमान का बदला 18 वर्ष बाद ममता ने लिया। ममता ने तब कसम खाई थी कि वे अब राज्य की मुख्यमंत्री के रूप में ही राइटर्स बिल्डिंग की सीढ़ियां चढ़ेंगीं। सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के जरिये जनता में अपनी पैठ बनाने वाली ममता का सपना पूरा हुआ। वे राज्य में 11वीं मुख्यमंत्री बनीं। लगभग ढाई दशक तक पश्चिम बंगाल में जिस वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ ममता ने निरन्तर संघर्ष किया, उस मोर्चे के शीर्ष नेताओं को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित कर ममता ने राजनीतिक भद्रता के साथ यह भी संकेत दिया कि वे टकराव के नहीं मेल-मिलाप और संवाद के रास्ते पर चलेंगी। ममता ने अपने शपथ ग्रहण में नंदीग्राम, नेताई और सिंगूर के आंदोलन में मारे गए लोगों के परिजनों के अलावा विशिष्ठ अतिथियों के रूप में सोनागाछी की सेक्स वकर्स और रिक्शा चालकों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित कर आश्वस्त किया कि वे अब वाकई एक नए बंगाल बनाने के लिए काम करेंगी। ममता के सामने चुनौतियों का अम्बार है। हिंसा और वित्तीय मोर्चे पर हालात काबू से बाहर बताए जा रहे हैं। राजकोष खाली है। पूरी गाड़ी ही पटरी से उतरी हुई है। गाड़ी को वापस पटरी पर लाना आसान काम नहीं होगा। ममता बनर्जी की शानदार सफलता पर हमारी बधाई और उम्मीद है कि शायद अब उनके नेतृत्व में प. बंगाल की किस्मत संवरे।
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अलकायदा का मिस्री कनेक्शन : सैफ अल अदेल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

 Published on 24th May 2011
अनिल नरेन्द्र
अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के मरने के बाद इस आतंकी संगठन ने अपना नया नेता चुन लिया है। अलकायदा का मिस्री कनेक्शन सामने आ गया है। बिन लादेन का उत्तराधिकारी है मिस्र का एक पूर्व सैन्य अधिकारी, उसका नम है सैफ अल अदेल। सैफ अल अदेल को लादेन के मारे जाने के करीब एक पखवाड़े बाद अस्थायी नेता चुना गया है। अल अदेल के बारे में कहा जाता है कि वह 1981 में मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति अनवर सदात की हत्या के लिए जिम्मेदार संगठन इस्लामिक जिहाद का सदस्य रह चुका है। वह अफगानिस्तान में 1980 के दशक में सोवियत संघ की सेना के खिलाफ संघर्ष में भी शामिल रहा था। 2001 में तालिबान के पतन के बाद वह ईरान भाग गया था। सीएनएन ने दो दशक से अधिक समय से अलकायदा से वाकिफ नोमान बेनोटमैन के हवाले से बताया कि सैफ अल अदेल अलकायदा का अंतरिम नेता है। खबर के अनुसार अल अदेल की संगठन में लम्बे समय से महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
उधर ओसामा को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए अमेरिका द्वारा घोषित 25 लाख डालर (करीब 111 करोड़ रुपये) का ईनाम किसी को नहीं दिया जा रहा। अमेरिकी अधिकारियों ने यह रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि ओसामा के खात्मे की वजह कोई मुखबिर नहीं बल्कि अत्याधुनिक मशीनें और खुफिया एजेंसियां थीं। इस फैसले से उन अटकलों पर भी विराम लगा दिया है जिनमें कहा जा रहा था कि आतंकी संगठन से जुड़ी किसी शख्स ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को ओसामा तक पहुंचाया। ओसामा बिन लादेन अमेरिका की मोस्ट वांटेड आतंकियों की सूची में शीर्ष पर था।
वेबसाइट बीबीसी डॉट को डॉट यूके ने ओसामा द्वारा उनकी मौत से कुछ अरसा पहले कथित तौर पर रिकार्ड किया गया एक ऑडियो टेप जारी किया है। लादेन का यह ऑडियो टेप 12 मिनट का है जिसे एक इस्लामिक वेबसाइट पर जारी किया गया है। टेप में लादेन ने ट्यूनीशिया और मिस्र के विरोधी प्रदर्शनों का तो उल्लेख किया है लेकिन सीरिया, लीबिया और यमन का कोई जिक्र नहीं है। लादेन ने कहा, मुझे लगता है कि अल्लाह की मर्जी से बदलाव की बयार पूरे मुस्लिम जगत में बहेगी। आपके सामने दोराहा है और मुस्लिम समुदाय के साथ उठ खड़े होने तथा खुद को शासकों की इच्छाओं, इंसानी कानूनों और पश्चिमी प्रभुत्व से मुक्त कराने का एक महान तथा दुर्लभ ऐतिहासिक अवसर है। लादेन ने कहा है, तो आप किसका इंतजार कर रहे हैं?
लादेन की मौत के बाद अलकायदा के अंतरिम प्रमुख सैफ अल अदेल ने धमकी देने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया। ब्रिटिश अखबार डेलीमेल की एक रिपोर्ट के अनुसार सैफ ने लादेन की मौत का बदला लेने की धमकी दी है। अखबार ने तालिबान प्रवक्ता एहसानुल्ला एहसान के हवाले से कहा है कि हमारे नेता लंदन में बड़े हमले की तैयारी कर रहे हैं। एहसान के अनुसार अल अदेल का मानना है कि ब्रिटेन यूरोप की रीढ़ है और इसे तोड़ने की जरूरत है। ऐसे में लंदन पर बड़ा हमला कर यूरोप सहित पूरी दुनिया को हिलाया जा सकता है। इस बीच यह भी खबर है कि तालिबान और अलकायदा नेता पाक सीमा से सटे अफगानिस्तान के इलाके में मिले हैं और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श हुआ है। अल अदेल को अम्मान अल जवाहरी और इलियास कश्मीरी को दरकिनार कर नई जिम्मेदारी सौंपी गई है।
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Sunday 22 May 2011

Pakistan plays Beijing card again

Anil Narendra
Estranged Pakistan has once again played its Beijing card. Pak Prime Minister, Yousuf Raza Gilani is in Beijing these days to pay his obeisance. For quite some time, China has been the most dependable friend for Pakistan. In the presence of Gilani, China warned US to keep away from Pakistan. China also assured Pakistan of going to any extent to ensure its security and providing all types of assistance and also said that America cannot harm Pakistan’s sovereignty. This information has been given by a Pak English Daily The Nation. According to a media report, China has clearly warned US that any attack on Pakistan will be considered as an attack on it. This warning comes in the wake of US operation in Abbotabad against al Qaeda Chief, Osama bin Laden. The Chinese Foreign Minister also communicated this warning-laden message during Sino-US political talks and discussions on economic affairs in Washington. America has also been advised to respect the sovereignty and integrity of Pakistan. The Chinese Prime Minister, Wen Jiabao told this to Yousuf Raza Gilani during the formal talks at Great Hall of the People.
China is the biggest businessman in the world. It does not do any favour without getting a price for it. If, today, it is supporting Pakistan openly, then it is gradually grabbing land in PoK too. And, Pakistan is handing over our land to the Chinese. China has already grabbed thousands of kilometer of land. GOC-in-C Northern Command, Lt Gen KT Parnaik, recently said in a Seminar that the presence of Chinese troops in PoK is continuously increasing and Chinese troops have been stationed on LoC. China is involved in a number of road, airport and hydro-power projects in PoK. Unfortunately, India tops the list of enemies of both Pakistan and China. US is second to us in the list. It may be noted that during the Indo-China war of 1962, China had occupied 38,000 sq. Km. area in the Northern sector of Aksai Chin. Next year, in order to pressurize India, Pakistan, under a pact handed over 5120 sq Km land in PoK for development. Military experts consider this area, strategically and politically very important.
Pakistan has always been playing the Beijing card to pressurize the US. China has helped Pakistan from nuclear to all types of assistance. Although China would not like to annoy America by its deeds, but for it, India has little significance. Pakistan has always been serving its interest by blackmailing other. Sometimes it blackmails America by staging war against al Qaeda-Taliban and sometime by playing Chinese card.

कनिमोझी भी पहुंच गईं तिहाड़

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
 Published on 22nd May 2011
अनिल नरेन्द्र
विशेष सीबीआई न्यायाधीश ने शुक्रवार को द्रमुक सांसद और करुणानिधि की बेटी कनिमोझी और कलेंगनार टीवी के प्रबंधक निदेशक शरद कुमार को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें फौरन गिरफ्तार करने का आदेश दिया। कनिमोझी तिहाड़ जेल में बैरक नम्बर 6 में पाक जासूसी कांड में गिरफ्तार माधुरी गुप्ता के साथ रहेंगी। उल्लेखनीय है कि 2जी स्पेक्ट्रम मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा, शाहिद बलवा, सिद्धार्थ बेहरुया, संजय चन्द्रा, एडी, एजी के दो अधिकारी पहले से ही तिहाड़ में बन्द हैं। अदालत ने निर्देश दिया कि 43 वर्षीय कनिमोझी और कुमार को शनिवार को पूर्वाह्न 10 बजे उनके समक्ष पेश किया जाए। कनिमोझी अदालत का आदेश सुनकर एकदम सदमे में आ गईं और रोने लगीं। उनके परिवार के सदस्यों एवं पति अरविन्दन ने उन्हें ढाढ्स बंधाया। अदालत के आदेश सुनाए जाने पर द्रमुक के कुछ समर्थक रोने लगे, कुछ चिल्लाने लगे। अदालत ने अपने 144 पृष्ठों के आदेश में कहा कि गवाही देने वाले अधिकतर लोग कलेंगनार टीवी के कर्मचारी हैं जिन्हें प्रभावित किया जा सकता है।
इससे पहले सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कनिमोझी पर आरोप लगाया कि उन्हें गैर कानूनी तरीके से कलेंगनार टीवी को करीब 200 करोड़ रुपये के लेन-देन का पता था। एक निजी कम्पनी के जरिये इस चैनल को 200 करोड़ रुपये दिए गए, जिसकी जानकारी कनिमोझी को थी। उल्लेखनीय है कि इस घोटाले में पूर्व संचार मंत्री ए. राजा न्यायिक हिरासत में हैं। यह घपला छोटा-मोटा नहीं, यह घपला एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का है। उधर ए. राजा अब दुनियाभर में मशहूर हो गए हैं। कहते हैं न, कि नाम कमाने का एक तरीका बदनाम होना भी है। तभी तो तिहाड़ जेल में बन्द पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा की सुध आजकल सियासी गलियारों में भले ही कोई न ले रहा हो, लेकिन प्रतिष्ठित पत्रिका `टाइम' ने उन्हें याद किया है। पत्रिका ने उन्हें `दुनिया के सबसे बदनाम नेताओं' की सूची में प्रमुखता से जगह दी है। टाइम ने सत्ता के दुरुपयोग के दुनिया के 10 बड़े मामलों में शामिल लोगों की एक सूची बनाई है। इसमें भारत का नाम रोशन करने के लिए 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला दूसरे पायदान पर है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के कार्यकाल के दौरान बहुचर्चित वॉटर गेट से जुड़े मामले को शीर्ष स्थान दिया गया है। `बदनाम नेताओं' के क्लब में मनमोहन सरकार से इस्तीफा दे चुके द्रमुक नेता ए. राजा ने लीबियाई राष्ट्रपति मुअम्मर गद्दाफी, उत्तर कोरियाई नेता किग जोंग इल और बिन्दास शैली के लिए बदनाम इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी को भी पीछे छोड़ दिया है। टाइम ने स्पेक्ट्रम घोटाले पर टिप्पणी में कहा है, `हाल के कुछ महीनों में भारत की यूपीए गठबंधन सरकार इस बड़े घोटाले से हिल गई है। इस मामले ने सत्ता पर अटूट पकड़ रखने वाली सरकार को चुनौती पेश कर दी है।' आरोपों की वजह से पिछले साल राजा को इस्तीफा देना पड़ा।
करुणानिधि का साम्राज्य बिखर रहा है। उनको विधानसभा चुनाव में भारी शिकस्त मिली है। बेटी और विश्वासपात्र दोनों जेल में हैं। परिवार टूटने की कगार पर खड़ा है। देखते रहो आगे-आगे होता है क्या?
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पाकिस्तान ने फिर खेला बीजिंग कार्ड

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
 Published on 22 May 2011
अनिल नरेन्द्र
चारों तरफ से घिरे पाकिस्तान ने एक बार फिर अपना बीजिंग कार्ड खेल दिया है। आजकल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी बीजिंग माथा टेकने गए हुए हैं। चीन पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान का सबसे विश्वासपात्र देश बना हुआ है। चीन ने गिलानी की मौजूदगी में अमेरिका को चेतावनी दे डाली। चीन ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा कि वो पाकिस्तान से दूर रहे। इसके साथ ही चीन ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया कि वो पाकिस्तान की रक्षा और मदद के लिए कुछ भी करेगा और अमेरिका पाकिस्तान की सप्रभुता को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। पाकिस्तान के एक अंग्रेजी अखबार `द नेशन' ने ये जानकारी दी है। मीडिया की एक खबर में कहा गया है कि एबटाबाद में अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के खिलाफ चलाए गए अमेरिकी अभियान के सन्दर्भ में चीन ने साफतौर पर चेतावनी दी है कि पाकिस्तान पर किए गए किसी भी हमले को चीन पर हमले की तरह समझा जाएगा। चेतावनी भरा यह संदेश वाशिंगटन में चीन-अमेरिका राजनीतिक वार्ता तथा आर्थिक मामलों पर हुई बातचीत के दौरान औपचारिक रूप से चीनी विदेश मंत्री ने भी दे दिया। अमेरिका को पाकिस्तान की सप्रभुता और एकता का सम्मान करने की नसीहत भी दी है। चीन के प्रधानमंत्री बेन जियाबाओ ने यूसुफ रजा गिलानी को ग्रेट हाल ऑफ द पीपुल्स में अपनी औपचारिक बातचीत के दौरान इस बारे में बताया।
चीन दुनिया का सबसे बड़ा बनिया है। वह बिना कीमत लिए कोई भी काम नहीं करता। अगर आज वह पाकिस्तान का इतना खुला समर्थन कर रहा है तो उसकी कीमत में पाक अधिकृत कश्मीर की जमीन को धीरे-धीरे हड़पता जा रहा है। पाकिस्तान कश्मीर के हमारे हिस्से को चीन को थमाता जा रहा है। चीन ने पहले से ही हजारों किलोमीटर के क्षेत्र को अपने कब्जे में कर रखा है। भारत के उत्तरी सेना कमांडर ले. जनरल केटी पटनायक ने हाल में एक सेमिनार में कहा कि पीओके में चीनी सैनिकों की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है और एलओसी में इन सैनिकों की मौजूदगी है। समझा जाता है कि चीन पीओके में लगातार निर्माण कराता जा रहा है। चीन पीओके के अन्दर अनेक सड़क, हवाई अड्डे और हाइड्रो-पॉवर परियोजनाओं में शामिल है। भारत दुर्भाग्य से आज चीन और पाकिस्तान दोनों का दुश्मन नम्बर वन है। अमेरिका का नम्बर हमारे बाद आता है। उल्लेखनीय है कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान चीन ने उत्तरी इलाके के 38 हजार वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। इसके अगले साल पाकिस्तान ने भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए चीन से एक समझौता करके पीओके को 5120 वर्ग किमी क्षेत्र चीन को विकास के लिए सौंप दिया था। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षेत्र सुरक्षा के लिहाज से राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है।
पाकिस्तान अमेरिका को आंख दिखाने के लिए हमेशा बीजिंग कार्ड खेलता है। चीन ने पाकिस्तान को परमाणु से लेकर हर तरह की मदद दी है। हालांकि खुले तौर पर चीन कोई ऐसा काम शायद न करे, जिससे अमेरिका नाराज हो जाए पर भारत उसकी किसी गिनती में नहीं। पाकिस्तान ने हमेशा ब्लैकमेलिंग करके अपना उल्लू साधा है, कभी अमेरिका को अलकायदा-तालिबान के खिलाफ लड़ाई का नाटक करके और कभी चीनी कार्ड खेलकर।

Saturday 21 May 2011

ISI Chief Lt Gen Shuja Pasha’s threat to India

- Anil Narendra
After Osama bin Laden episode and Pak exposure before the world, Pakistan has been greatly agitated and every other day, it is issuing confused statements. The other day, it was Prime Minister, Yousuf Raza Gilani who threatened America in the National Assembly to stop drone attacks, otherwise NATO convoys will not be allowed to pass through his country. And now, the Chief of the notorious Pak agency, ISI, Ahmed Shuja Pasha while briefing the members of Pak Senate and National Assembly on Pak military preparedness has threatened India. He has said that if India dares to carry out any Abbotabad type attack on US lines, Pakistan will also raid Indian targets. Pasha said that all preparations in this regard have been completed. He even claimed that ISI has identified Indian targets for such raids. It has, even rehearse as to how it can destroy selected targets in India.
It cannot be denied that in the wake of Osama episode, Pak military establishment can go to any extent to divert its people’s attention and as such India will have to be on alert and state of readiness and also it should not take Pasha’s statement seriously. ISI is directly controlled by the Pak Army. After the elimination of Osama bin Laden, who had been living in Abbotabad in the vicinity of Pak Military Academy and the Headquarters of three regiments of the Pak Army, by the Navy SEALS in a secret mission, Pakistan has been the target of world’s scorn. This has raised a number of questions about its entire military and intelligence establishment. US action on the internal front of Pakistan is seen as a violation of its sovereignty. The national leadership, whether it is the President Asif Ali Zardari or even the Prime Minister, is unable to provide satisfactory answers to the people of the country. To counter this, first, efforts were made to take ISI under the control of the Internal Affairs Ministry of the civilian government, but Pak Army opposed the move, then Pasha was tried to be sidelined. Pasha had already got an inkling of this move, as such during in camera hearing before the National Assembly on May 13, he tried to assure the politicians that in case of US type action by India in the future, there will be immediate retaliatory attacks and for such attacks, Indian targets have already been identified. In fact, the Indian Chief of Staff, General VK Singh had recently said that India, too is capable of taking US type of action to destroy terrorists’ sanctuaries on the other side of the border. His statement has led to confusion in whole of the Pakistan. Not only ISI Chief, the Pakistan as a whole is confused and in this confusion it is likely to take any uncalled for action. As such, we will also have to maintain full preparedness.

हंसराज भारद्वाज को अपने पद पर बने रहने का कोई हक नहीं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21st May 2011
अनिल नरेन्द्र
कर्नाटक के राज्यपाल श्री हंसराज भारद्वाज वैसे तो एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। वह कई महत्वपूर्ण पदों पर भी रह चुके हैं। कर्नाटक के राज्यपाल बनने से पहले वह केंद्र सरकार में कानून मंत्री थे। इन्दिरा जी के समय से वह जिम्मेदार पदों पर रहे हैं। कर्नाटक में जाने के बाद से पता नहीं उन्हें क्या हो गया है। वह इतने गैर जिम्मेदाराना तरीके से व्यवहार कर रहे हैं जो उन्हें शोभा नहीं देता। पता नहीं वह किस निजी एजेंडे पर चलना चाहते हैं। एक चुनी हुई सरकार जिसका विधानसभा में स्पष्ट बहुमत है उसे डराते-धमकाते रहते हैं, उन्हें डिसमिस करने की बेहूदा सिफारिश करते हैं। संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी किस तरह अपनी कथनी और करनी में अन्तर के प्रति बेपरवाह हो गए हैं, इसका सटीक उदाहरण है कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज का यह कथन `मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा चुने हुए प्रतिनिधि हैं। उन्हें जबरदस्त बहुमत प्राप्त है। इस पर किसी को संशय नहीं है। हम मित्र हैं। इस प्रकार के राजनीतिक तनाव अप्रासंगिक हैं। हमें संविधान और कानून के प्रति समर्पित होना चाहिए।'
पता नहीं श्री हंसराज भारद्वाज को इन दिनों क्या हो गया है। एक दिन केंद्र सरकार को येदियुरप्पा सरकार को डिसमिस करने की सिफारिश करते हैं तो उससे अगले दिन येदियुरप्पा की शान में कसीदे पढ़ने लगते हैं। हां इतना जरूर है कि वह अपना पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इतने सब विवादों के बावजूद, हिमाकतों के बावजूद कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं। खुद को वापस बुलाए जाने की भाजपा की मांग पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि राज्यपाल के तौर पर उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति ने की थी तथा उनके (राष्ट्रपति के) अलावा और उन्हें (भारद्वाज को) वापस नहीं बुला सकता। राज्यपाल महोदय अगर आपसे हम यही सवाल करें कि कर्नाटक की जनता ने येदियुरप्पा को न केवल चुना है बल्कि उन्हें स्पष्ट बहुत दिया है तो आप कौन होते हैं उन्हें वापस बुलाने वाले? दिलचस्प पहलू यह है कि हमें नहीं लगता कि हंसराज भारद्वाज कांग्रेस के किसी एजेंडे पर चल रहे हैं। केंद्र सरकार व कांग्रेस पार्टी बेशक येदियुरप्पा सरकार की मौजूदगी से खुश न हो पर वह इस हद तक नहीं जा सकती कि एक स्पष्ट बहुमत वाली चुनी हुई सरकार को बिना वजह हटाया जाए। तभी तो प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा कि कोई गैर संवैधानिक काम नहीं होगा। जब केंद्र की ऐसी कोई नीति नहीं तो राज्यपाल महोदय किसके एजेंडे पर चलने की कोशिश कर रहे हैं?
श्री हंसराज भारद्वाज ने अपनी पक्षपातपूर्ण सिफारिश से न केवल केंद्र सरकार को असहज किया बल्कि राज्यपाल के पद की गरिमा भी गिराई है। यह भी विचित्र है कि एक ओर वह येदियुरप्पा की तारीफ करते हुए उनके पास भारी बहुमत बता रहे हैं और दूसरी ओर विधानसभा का सत्र आरम्भ करने में राज्य कैबिनेट के अनुरोध को स्वीकार करने के पहले अपनी सिफारिश पर केंद्र सरकार के फैसले का इंतजार भी कर रहे हैं। क्या उन्हें अभी भी यह यकीन है कि केंद्र सरकार उनकी सिफारिश मानते हुए कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन थोप सकती है? दरअसल श्री हंसराज भारद्वाज ने अपने पत्ते इतनी बुरी तरह से खेले हैं कि अगर उनमें थोड़ा-सा स्वाभिमान बचा है तो स्वयं राज्यपाल के पद से त्यागपत्र दे दें।
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केवल माफी मांगने से काम नहीं चलेगा, जनता को सही जवाब चाहिए


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

Published on 21st May 2011
अनिल नरेन्द्र
भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को सौंपी गई 50 सर्वाधिक वांछित भगोड़ों की सूची में 2003 में मुंबई के मुलुंड सहित कुछेक जगहों पर हुए धमाकों में नामजद वजाहुल कमर खान को लेकर हुई गड़बड़ी को मामूली क्लेरिकल मिसटेक कहकर मामले को रफा-दफा नहीं किया जा सकता। गृह मंत्रालय के इस बलंडर से भारत की पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया में बेइज्जती हुई है। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश की खुफिया एजेंसियों में आपसी तालमेल का कितना अभाव है। यह हमारी समझ से तो बाहर है कि कैसे इन 50 वांछित भगोड़ों की सूची बिना सही जांच-पड़ताल, चैकिंग-क्रॉस चैकिंग के बिना जारी कर दी गई? इस सूची में मुंबई हमले के एक आरोपी वजाहुल कमर खान जो कि न केवल भारत में मौजूद है बल्कि जमानत पर रिहा भी हो गया, उसका नाम इस सूची में कैसे आ गया? केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का गलती स्वीकार करना काफी नहीं है। उन्हें इन तीन बातों का जवाब देना होगा। पहली बात कि यह सूची किसने बनाई थी? क्या यह काम किसी आरामपसंद, जरूरत से ज्यादा तनख्वाह लेने वाले बाबू ने बनाई थी जिसे यह मालूम है कि उसकी नौकरी नहीं जा सकती और उसे किसी की परवाह नहीं? दूसरी क्या यह सूची आईबी, रॉ, एनआईए व सीबीआई में पहले बांटी गई थी? अगर उन्हें यह सूची दिखाई गई थी तो सीबीआई क्यों चुप रही और उसने यह क्यों नहीं बताया कि वजाहुल कमर खान नामक व्यक्ति मुंबई के मुलुंड इलाके में मौजूद है और फिलहाल जमानत पर रिहा है? तीसरी इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह भी कि आईबी क्या कर रही थी जबकि उसका यह काम है कि जो आरोपी ऐसे संगीन केस में जमानत पर है उस पर कड़ी नजर रखी जाए जो उसने लगता है नहीं किया? उसे यह भी नहीं पता कि वजाहुल कमर खान फिलहाल रहता कहां है? जब तक इन प्रश्नों का उत्तर चिदम्बरम नहीं देते तब तक इस मामले में गफलत कहां हुई, का पता नहीं चल सकेगा।
यह अत्यंत दुःख की बात है कि हमारी खुफिया एजेंसियों में कोई आपसी तालमेल नहीं है और हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करती हैं। सीबीआई जैसी एजेंसी को सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक हित साधने पर ज्यादा ध्यान देते हैं बनिस्पत देशद्रोहियों के खिलाफ निगरानी रखने की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। वह बेशक अब कहें कि गृहमंत्री चिदम्बरम ने उन्हें अंधेरे में रखा पर प्रधानमंत्री का काम है कि इतने महत्वपूर्ण मसले पर खुद ध्यान दें। पाकिस्तान तो हमेशा से यह कहता आ रहा है कि भारत की मांग विश्वसनीय नहीं होती। यह घटना देश की साख पर सवाल बनकर उभरी है, क्योंकि हम कहते ही नहीं, सबूत भी पेश करते आए हैं कि भारत में आतंकी घटनाओं को पाकिस्तान की जमीन से अंजाम दिया जा रहा है। ऐसे में इस तरह की चूक पाकिस्तान को अपना पक्ष मजबूत करने का मौका दे सकती है, क्योंकि वह यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि भारत में आतंकी हमलों को अंजाम देने वालों को उसने पनाह दे रखी है। यह समझ नहीं आता कि भारत इतनी लम्बी वांछित भगोड़ों की सूची क्यों बनाता है? हमें तो गिने-चुने मुट्ठीभर उन सरगनाओं व वांछित आतंकियों को छोटी सूची देनी चाहिए जो हमारे देश की सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा अहम हैं।

Friday 20 May 2011

दाऊद के भाई इकबाल कासकर पर जानलेवा हमला

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 Published on 20 May 2011
अनिल नरेन्द्र
अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के छोटे भाई इकबाल कासकर पर मंगलवार देर रात कातिलाना हमले से मुंबई के अंडरवर्ल्ड में जंग छिड़ने की सम्भावना है। इस सनसनीखेज वारदात में इकबाल कासकर बाल-बाल बच गए पर उसका अंगरक्षक मारा गया। वारदात के समय इकबाल कासकर अपने बड़े भाई दाऊद के दक्षिण मुंबई के पाकमोडिया स्ट्रीट स्थित पुश्तैनी घर के पास कार्यालय में बैठा था। तभी दो हथियारबंद हमलावरों ने 6 से 7 राउंड फायरिंग की। इसमें कासकर के दो अंगरक्षक जख्मी हो गए, उन्हें फौरन पास के जेजे अस्पताल में ले जाया गया जहां डक्टरों ने आरिफ नाम के एक अंगरक्षक को मृत घोषित कर दिया। आरिफ इकबाल कासकर का अंगरक्षक होने के साथ-साथ विश्वासपात्र ड्राइवर भी था। इस बीच इलाके से भाग रहे दो संदिग्ध लोगों को स्थानीय लोगों ने पकड़कर पायधुनी पुलिस के हवाले किया है। हालांकि अभी यह साफ नहीं कि इन दोनों ने ही इकबाल पर हमला किया था। पुलिस का दावा है कि पकड़े गए लोगों के पास से विदेशी हथियार बरामद हुए हैं। यह पता नहीं चल रहा है कि दाऊद के भाई इकबाल कासकर पर किसने हमला करवाया?
महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि इकबाल कासकर निशाने पर नहीं था, ड्राइवर ही निशाने पर था। सरकार ने कहा कि जब हथियारबंद लोगों ने दक्षिण मुंबई में गोलीबारी की उस समय इकबाल वहां मौजूद नहीं था। महाराष्ट्र के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने अहमदनगर में पत्रकारों से कहा कि मामले में गिरफ्तार लोगों से शुरुआती पूछताछ में खुलासा हुआ है कि उनके निशाने पर ड्राइवर इरफान था। महाराष्ट्र सरकार का यह भी कहना है कि यह शूटआउट किसी गैंगवार का नतीजा नहीं था क्योंकि मुंबई में कोई गैंग बचा ही नहीं। श्री पाटिल की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा। इस हमले से एक बार फिर मुंबई दहशत में आ गई है। सबको यहां डर सता रहा है कि कहीं मुंबई की सड़कों पर फिर से खूनी गैंगवार न छिड़ जाए। इसी खतरे को देखते हुए शायद सरकार ने यह कहना शुरू कर दिया है कि इकबाल तो मौके पर मौजूद ही नहीं था। लेकिन जिस प्रोफेशनल तरीके से हमला हुआ उससे साफ है कि निशाने पर इकबाल कासकर ही था न कि आरिफ। सूत्रों के मुताबिक इस हमले की पूरी साजिश नेपाल में रची गई। नेपाल यानि अंडरवर्ल्ड के काले चेहरे का पसंदीदा ठिकाना। इकबाल को मारने आए दोनों हमलावर कांट्रेक्ट किलर थे। एक का नाम सैयद बिलाल मुस्तफा बताया जाता है जो ठाणे का रहने वाला है और दूसरे का नाम इन्द्र खत्री बताया जा रहा है। दाऊद के भाई पर हाथ डालना आसान काम नहीं है। ऐसे काम के लिए किसी माहिर और बेखौफ कांट्रेक्ट किलर की जरूरत थी। दोनों किलरज को 10 लाख रुपये दिए गए। हमले से चार दिन पहले दोनों ने रेकी थी। इकबाल की हर मूवमेंट को नोट किया। दोनों को इस बात की पुख्ता जानकारी थी कि रात 8 से 10.30 बजे तक इकबाल उसी जगह बैठता है जहां शूटआउट हुआ। मंगलवार की रात हमले के वक्त इन्द्र खत्री इकबाल कासकर को पहचानने में गलती कर गया। यही वजह है कि उसने थोड़ा पहले गोली चला दी। इकबाल उस समय सीढ़ियों से नीचे आ रहा था उसी वक्त फायरिंग स्टार्ट हुई। सूत्रों का कहना है कि इकबाल के आदमियों ने भागते हमलावरों पर भी गोलियां चलाईं पर वह बच गए। आने वाले दिनों में मामले के खुलासे की सम्भावना है। अगर छोटा राजन ने यह हमला करवाया है तो गैंगवार की पूरी सम्भावना है।

राहुल गांधी का सनसनीखेज आरोप

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Publish on 20 May 2011
अनिल नरेन्द्र
ग्रेटर नोएडा में भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलकर अत्यंत गम्भीर आरोप लगाए हैं। प्रधानमंत्री के साथ करीब आधे घंटे की बैठक के बाद राहुल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने किसानों के आठ सदस्यीय दल की बातों को ध्यान से सुना। उत्तर प्रदेश की स्थिति पर चर्चा के लिए राहुल गांधी के नेतृत्व में इस शिष्टमंडल ने मुलाकात में मनमोहन सिंह को बताया कि गांवों में चारों ओर जलने के निशान मौजूद हैं जहां किसान यूपी की मायावती सरकार से अपनी जमीन के मुआवजे की मांग कर रहे थे। राहुल ने प्रधानमंत्री को कथित जले हुए शव और किसानों एवं उनके परिवार के लोगों के खिलाफ हिंसा के चित्र भी दिखाए। कांग्रेस महासचिव ने संवाददाताओं से कहा, `गंभीर अत्याचार हो रहा है। वहां कम से कम 74 शवों की राख बिखरी पड़ी है। गांव के सभी लोगों को इसके बारे में जानकारी है। हम आपको इसकी तस्वीरें दिखा सकते हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं। लोगों को पीटा जा रहा है।'
राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन पर बहुत गम्भीर आरोप लगाए हैं। बसपा प्रवक्ता ने कहा कि राहुल गांधी निराधार आरोप लगा रहे हैं। वे घटना की आड़ में झूठ व अफवाह फैलाने की घटिया राजनीति कर रहे हैं। बसपा प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस व अन्य विरोधी दल जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राजनीतिक षड्यंत्र के तहत कुछ राजनीतिक दलों ने अराजक तत्वों को अवैध हथियार देकर उन्हें उकसाया और घटना को अंजाम दिया। वहीं राज्य सरकार के प्रवक्ता ने अलग बयान जारी कर दावा किया कि उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण पर केंद्र सरकार से अधिक मुआवजा दिया जा रहा है। राहुल गांधी के इस सनसनीखेज बयान से प्रदेश सरकार में हड़कम्प मचना स्वाभाविक ही था। मंगलवार को मेरठ मंडल के कमिशनर व आईजी से प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भट्टा में 74 लोगों के मारे जाने की बात झूठी है। वहां महिलाओं के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ। पुलिस व ग्रामीणों में संघर्ष में चार मौतें हुईं। दो पुलिसकर्मी थे जबकि दो असामाजिक तत्व थे। आईजी ने बताया कि बिटोरों से राख के नमूने लेकर आगरा की फोरेंसिक लैब में भेजे गए हैं। विपक्ष का कहना है कि राहुल गांधी ने जिस तरह भट्टा पारसौल में बड़े पैमाने पर किसानों की हत्या का आरोप लगाया है, अगर वह सही है तो उत्तर प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए और अगर यह राजनीतिक बयान है तो कांग्रेस का दोहरा चरित्र एक बार फिर सामने आ रहा है।
राहुल गांधी के इतने गम्भीर आरोप पर बहस होना स्वाभाविक ही है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि बिना पुख्ता सबूत के वे इतने गम्भीर आरोप नहीं लगा सकते हैं। उधर राहुल अपनी बात पर पूरी तरह से डटे हुए हैं। बुधवार को वाराणसी में राज्य कांग्रेस समिति के अधिवेशन में राहुल ने कहा कि मैं खुद मायावती सरकार के खिलाफ जनता में संघर्ष का नेतृत्व करूंगा। मैं राज्य के हर कोने में जाऊंगा, न तो मेरे पास टाइम की कमी है और न ही यूपी में मुद्दों की। उत्तर प्रदेश की राजनीति में निश्चित रूप से कांग्रेस-बसपा की लड़ाई गम्भीर रूप लेती जा रही है। देखें कि बहन जी इस ताजे हमले का क्या जवाब देती हैं?

Thursday 19 May 2011

कांग्रेस के पास मौका है कि पवार एण्ड कम्पनी को सही औकात दिखाए

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19 May 2011
अनिल नरेन्द्र
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान जिस तरह वाम मोर्चे का पश्चिम बंगाल में और तमिलनाडु में डीएमके का सफाया हुआ है, उससे एनसीपी सदमें की हालत में अगर है तो वह स्वाभाविक ही है। पार्टी कायकर्ताओं में अब यह चर्चा हो रही है कि द्रमुक की हार की प्रमुख वजह 2जी स्पेक्ट्रम भ्रष्टाचार घोटाला था तो एनसीपी नेता शरद पवार ढेरों मामलों में फंसे हुए हैं। आईपीएल, 2जी स्पेक्ट्रम, लवासा जैसे अनेक विवादित मामलों में जांच एजेंसियों के रॉडार पर चल रहे मराठा क्षत्रप शरद पवार को जनता कैसे बख्शेगी? अकेले पवार ही नहीं बल्कि प्रफुल्ल पटेल के भी विवादास्पद व्यक्तियों (बलवा, हसन अली) से संबंधों का पर्दाफाश हो चुका है। एयर इंडिया स्कैंडल भी सामने आ चुका है। एनसीपी अपने स्थापना दिवस 10 जून को मुंबई में दलितों का एक बड़ा सम्मेलन करने की तैयारी में लगी हुई है, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी के खेमे से आरपीआई के उठावले गुट को अपनी तरफ खींच लेने वाले भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने उसके ठीक एक दिन पहले भ्रष्टाचार विरोधी सम्मेलन करने का ऐलान कर दिया है। महाराष्ट्र राज्य सरकारी बैंक के हजारों करोड़ के घपले में गले तक डूबी नजर आ रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता यह नहीं समझ पा रहे कि पार्टी की स्थापना की 12वीं वर्षगांठ से पहले वे अपने कार्यकर्ताओं को क्या सन्देश दें? यहां तक कि इस सम्मेलन की तैयारी के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी को कार्यकर्ताओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर भी कार्यकर्ताओं की भीड़ लगातार कम होती जा रही है और जो लोग वहां दिख भी रहे हैं उनके चेहरे पर पांच राज्यों के विधानसभा परिणाम ने उदासी पोत दी है। पुणे से आए एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने बताया कि एनसीपी ने अगर अपनी छवि को दुरुस्त करने के लिए कोई बड़ा कदम जल्द नहीं उठाया तो विनायक देशमुख की देखादेखी एनसीपी के तमाम नेता इस साल के अन्त से शुरू हो रहे स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों से पहले कांग्रेस की तरफ दौड़ लगा सकते हैं।
कांग्रेस के लिए भी यह मौका अच्छा है कि शरद पवार से हमेशा के लिए निपट ले। शरद पवार की पार्टी एनसीपी के गठन के बाद यह पहला मौका है कि कांग्रेस ने उसके मर्मस्थल सहकारिता की शुगर लॉबी पर कठोर प्रहार किया है मगर पवार कांग्रेस को कोई करारा जवाब देने की बजाय उसकी चिरोरी करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को छोड़कर अलग पार्टी बनाने वाले शरद पवार कांग्रेस के ही साथ मिलकर पिछले 12 साल से महाराष्ट्र की सत्ता और छह साल से केंद्र की सत्ता भोग रहे हैं। सहयोगी दल होने के बावजूद पवार अपनी आदत के अनुसार समय-समय पर कांग्रेस को अंगुली करते ही रहते हैं। कृषि मंत्रालय में उनकी नीतियों और चालबाजियों ने देश को विकराल महंगाई के कगार पर ला खड़ा किया है, लेकिन पवार ने यह बताने में कोई चूक नहीं की कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इसके लिए पूरे जिम्मेवार हैं। कांग्रेस को शरद पवार डुबा सकते हैं, उन्होंने पहले भी ऐसा ही किया था। यह मौका अच्छा है अगर कांग्रेस थोड़ी हिम्मत करे तो शरद पवार को सही औकात दिखला सकती है। कृषि मंत्रालय और प्रफुल्ल पटेल का मंत्रालय इस झटके में बदल दिया जाना चाहिए।

आईएसआई प्रमुख ले. जनरल पॉशा की भारत को धमकी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19 May 2011
अनिल नरेन्द्र
ओसामा बिन लादेन प्रकरण और सारी दुनिया में बेनकाब हेने के बाद पाकिस्तान बौखला गया है। बौखलाहट में वह आए दिन कोई न कोई उल्टा-सीधा बयान दे रहा है। कभी पाकिस्तानी संसद में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी अमेरिका को धमकी देते हैं कि जब तक अमेरिका ने ड्रोन हमले बन्द नहीं किए तब तक नॉटो के काफिलों को अपने देश से गुजरने नहीं दिया जाएगा। अब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी कुख्यात आईएसआई के प्रमुख अहमद शुजा पॉशा ने पाक की सीनेट और नेशनल असेम्बली के सदस्यों को सैन्य तैयारियों की जानकारी देते हुए भारत को धमकी दे डाली। भारत ने अमेरिकी तर्ज पर एबटाबाद जैसे किसी हमलों को अंजाम दिया तो पाकिस्तान भी उसके ठिकानों पर धावा बोल देगा। इसके लिए पाकिस्तान ने बाकायदा तैयारी कर ली है, पॉशा ने कहा। पॉशा ने यह भी कहा कि आईएसआई ने हमले के लिए भारतीय लक्ष्यों की पहचान भी कर ली है। इतना ही नहीं, भारत स्थित ठिकानों को कैसे तबाह करना है, इसका भी रिहर्सल किया जा चुका है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ओसामा प्रकरण के बाद बौखलाया पाक सैनिक तंत्र अपनी जनता का ध्यान बंटाने के लिए कुछ भी कर सकता है और भारत को हमेशा तैयार रहना होगा पर पॉशा के बयान को ज्यादा गम्भीरता से भी नहीं लिया जाना चाहिए। खुफिया एजेंसी आईएसआई की कमान सीधी पाक फौज के हाथ में होती है। एबटाबाद में मिलिट्री अकादमी व फौज के तीन रेजीमेंटों के मुख्यालय के पास रह रहे दुनिया के सबसे कुख्यात आतंकी बिन लादेन के खिलाफ 2 मई को गुपचुप कार्रवाई कर अमेरिकी नेवी सील कमांडो ने जब उसका सफाया कर दिया है तब से समूची दुनिया में पाकिस्तान की थू-थू हो रही है। इससे उसका समूचा फौजी और खुफिया तंत्र सवालों के घेरे में आ गया है। पाकिस्तान के अंदरुनी मोर्चे पर अमेरिकी कार्रवाई को देश की सप्रभुता पर हमले के रूप में लिया जा रहा है। देश का राजनीतिक नेतृत्व चाहे वह राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी हों या फिर प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ही हों पर देश की आवाम को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहे। इससे निपटने के लिए पहले तो आईएसआई को सिविलियन सरकार के गृह मंत्रालय के तहत लेने की चाल चली गई पर जब पाकिस्तानी फौज इसके लिए तैयार नहीं हुई तो पॉशा को बरतरफ करने की कोशिश हुई। पॉशा को इसका अहसास पहले हो गया था, लिहाजा 13 मई को जब संसद के कमरे में उनकी `इन कैमरा' पेशी हुई तो उन्होंने राजनीतिज्ञों को भविष्य के लिए आश्वस्त होने की गरज से कहा कि भारत यदि अमेरिका की तरह कोई कार्रवाई करता है तो उस पर तत्काल हमले किए जाएंगे और इसके लिए भारतीय ठिकानों की पहचान भी कर ली गई है। दरअसल भारतीय सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने हाल में कहा था कि भारत भी सरहद पार आतंकियों की पनाहगाहों को नेस्तनाबूद करने के लिए अमेरिका जैसी कार्रवाई करने की क्षमता रखता है। इससे पूरे पाकिस्तान में हड़कम्प है। आईएसआई चीफ पॉशा ही नहीं, पूरा पाकिस्तान इस समय बौखला गया है और बौखलाहट में अपनी जनता का ध्यान हटाने के लिए कोई बड़ी हिमाकत भी कर सकता है। इसलिए हमें भी अपनी तैयारी पूरी रखनी होगी।

Wednesday 18 May 2011

5 राज्यों के क्वार्टर फाइनल के बाद सेमीफाइनल यूपी की बारी है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 18 May 2011
-अनिल नरेन्द्र
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव केंद्र में सत्ता के खेल का एक तरह से क्वार्टर फाइनल मैच था। अब बारी है सेमीफाइनल की। सेमीफाइनल 10 महीने बाद उत्तर प्रदेश में होगा। अगर बहन जी ने चाहा तो यह उससे पहले भी हो सकता है। रोचक बात यह होगी कि यूपी के सेमीफाइनल में वह दो टीमें खासतौर पर खेलेंगी जो क्वार्टर फाइनल में सिर्प `सहायक' की भूमिका में नजर आई हैं। यह पुरानी कहावत है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। इस दृष्टि से यूपी विधानसभा चुनाव और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। कांग्रेस और भाजपा के लिए न केवल सूबे की राजनीति इस पर निर्भर करती है बल्कि केंद्रीय राजनीति में भी यूपी का अपना महत्व है। सबकी आंखें सुश्री मायावती पर टिकी हुई हैं। शुक्रवार को पांच राज्यों के परिणाम आए, संयोग ही है कि उसी दिन यूपी में मायावती सरकार ने भी शुक्रवार को ही चार साल पूरे किए। अब उसका काउंट-डाउन शुरू हो रहा है। अगले 12 महीने यूपी के लिए राजनीतिक रूप से बेहद गहमागहमी भरे रहेंगे। यूपी में ए और बी टीम तो बसपा और सपा की ही है। मुख्य लड़ाई भी इन्हीं दोनों में होनी है। स्पष्ट बहुमत पाकर पहली बार `स्थायी' सरकार बचाने में सफल हुई मायावती के लिए यह साल बेहद अहम है। अपना गढ़ बचाए रखने की वह हर सम्भव कोशिश करेंगी। उधर मुलायम सिंह अपनी खोई ताकत वापस पाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। सपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी और पार्टी ने 403 में से 270 प्रत्याशी तो घोषित भी कर दिए हैं। मुलायम ने पूरा जोर अपने पारम्परिक यादव और मुस्लिम वोट पर लगा रखा है।
बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक सत्ता विरोधी रुझान बहन जी के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए। अगर बंगाल में नंदीग्राम और सिंगूर ने सत्तारूढ़ दल के खिलाफ माहौल बनाया तो उत्तर प्रदेश में घोड़ी बछेड़ा, टप्पल और भट्टा पारसौल का किसान आंदोलन मायावती सरकार के खिलाफ माहौल बना रहा है। हालांकि कानून व्यवस्था स्थिति में सुधार हुआ है पर कुछ बसपा विधायकों के कारण वसूली, फिरौती, लूट, बलात्कार व हत्या, आदि की वारदातों ने माहौल दूषित जरूर किया है। शुक्रवार को जब कई राज्यों के चुनाव परिणाम आ रहे थे तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में पिपटाइम विधानसभा सीट का भी नतीजा आया था। इस सीट पर बसपा कहने को तो खुद चुनाव नहीं लड़ रही थी पर एक शराब व्यापारी को पूरा समर्थन दिए हुई थी। यह उम्मीदवार बुरी तरह से हारा। इस चुनाव ने उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए दो सन्देश दिए हैं। सत्तारूढ़ दल से अगर विपक्ष एकजुट होकर लड़ा तो बसपा की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। दूसरा अब फिरकापरस्त ताकतों के लिए भी जीत आसान नहीं है। इस चुनाव में पूर्वांचल में हिन्दुत्व के सबसे बड़े नेता योगी आदित्यनाथ की भी हार हुई जो इस चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाए हुए थे। मायावती के जन्मदिन के सिलसिले में चल रही वसूली के बाद एक इंजीनियर की हत्या से जो माहौल खराब हुआ वह एक के बाद एक घटनाओं से बसपा के कई मंत्रियों और विधायकों को बेनकाब कर गया। इनकी हरकतों से मायावती की छवि कि वह सख्त प्रशासक हैं, को भी धक्का लगा है। लोग मायावती के उस नारे को याद दिलाते हैं `चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगाओ हाथी पर।' इन सब कमियों के बावजूद मायावती का आज भी पलड़ा भारी है। राज्य में उन्होंने काफी काम किया है पर आने वाले कुछ महीने सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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