Sunday 29 May 2011

भुल्लर की याचिका रिजेक्ट होने से शायद अन्य दोषियों को फांसी मिले?


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th May 2011
अनिल नरेन्द्र
पंजाब के देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर और असम के महेन्द्र नाथ दास की दया याचिकाओं को राष्ट्रपति पतिभा पाटिल ने खारिज कर दिया है अब हमें उम्मीद है कि वर्षों से लटकी अन्य दोषियों की दया याचिकाओं के निपटारे का रास्ता खुल गया है। इसमें संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू और राजीव गांधी की हत्या के दोषियों की याचिकाएं भी शामिल हैं। भुल्लर को 25 अगस्त, 2001 को एक निचली अदालत ने 1991 में पंजाब के पुलिस अधिकारी सुमेध सिंह सैनी पर तथा 1993 में युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एमएस बिट्टा पर आतंकवादी हमलों की साजिश रचने के मामले में मौत की सजा सुनाई थी। राष्ट्रपति ने महेन्द्र नाथ दास की भी दया याचिका को खारिज कर दिया है इसको हरकांत दास नामक व्यक्ति की हत्या का दोषी पाया गया। वर्ष 2004 के बाद पहली बार राष्ट्रपति की ओर से किसी दोषी को मृत्युदंड की सजा पर मुहर लगाई गई है। 2004 में धनंजय चटर्जी को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
मौत की सजा पाने वाले लोगों की दया याचिका पर फैसला लेने में होने वाली देरी के मामले में सुपीम कोर्ट ने भी सरकार से पूछा था कि पिछले आठ वर्षों से लंबित देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका का निपटारा अब तक क्यों नहीं किया गया। भुल्लर समेत 28 लागों की दया याचिकाएं राष्ट्रपति के पास लंबित हैं जिनमें से दो का निपटारा हो गया है। दरअसल सुपीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर छह हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि हैरानी की बात है कि याचिका आठ वर्षों से लंबित है इससे पूर्व संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की याचिका का भी मामला उठा था जिस पर दिल्ली सरकार पूरे चार साल तक बैठी रही थी। लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। भुल्लर की ओर से दायर याचिका में बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने कहा कि सुपीम कोर्ट की संविधान पीठ का 1989 का फैसला कहता है कि दया याचिका पर यदि मुनासिब समय में विचार न हो तो ऐसा अभियुक्त अनुच्छेद 32 के तहत सुपीम कोर्ट आकर मृत्युदंड को उम्र कैद में तब्दील करवा सकता है। उन्होंने कहा कि वह 2001 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में 7 गुणा 9 पुट की काल कोठरी में रोजाना 22 घंटे रहता है, जिससे उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया है और उसे दिल तथा स्पाडिलाइटिस की बीमारी भी हो गई है। तुलसी के आग्रह पर जस्टिस जीएस सिंघवी और सीके पसाद की खंडपीठ ने देरी के मुद्दे पर सरकार को नोटिस जारी कर दिया लेकिन मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने के आग्रह को खारिज कर दिया।
अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान में छिपे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया हो, लेकिन अत्यंत दुख से कहना पड़ता है कि भारत में पिछले बीस सालों में तीन दर्जन से अधिक आतंकी हमले और उनमें 1600 से अधिक लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार एक भी आतंकी को सजा नहीं मिल सकी है। चाहे 1993 का मुंबई बम धमाका हो या फिर 2001 का संसद पर हमला, पाकिस्तान में बैठे साजिश रचने वालों तक भी भारतीय एजेंसियों के हाथ नहीं पहुंच सके हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आतंक के लिए जिम्मेदार को सजा दिए बिना इसके खिलाफ लड़ाई बेमानी है। भारत आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित होने के बावजूद आतंकियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने में विफल रहा है।
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