Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
प्रकाशित: 06 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र
-अनिल नरेन्द्र
एक मुसलमान अमेरिकन राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने जब ओसामा बिन लादेन को मारने के आदेश पर हस्ताक्षर किए, उन्होंने एक मिनट के लिए यह नहीं सोचा कि इससे अमेरिका में बसे मुसलमानों में और दुनियाभर के एक बिलियन मुस्लिमों पर इसका क्या असर होगा? उन्होंने वही किया जो उनके देशहित में था, अमेरिका की सुरक्षा व अखंडता के लिए जरूरी था। उन्होंने 9/11 का बदला ले लिया। भले ही अमेरिका को इस काम में दस साल लगे, खरबों डालर लगे पर उन्होंने जो कसम खाई थी वह पूरी की। ओबामा, सीआईए और अमेरिकी फौज ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर जो अभियान चलाया उससे भारत को क्या सबक मिलता है? राज्य प्रायोजित आतंकवाद जैसी जटिल चुनौतियों से निपटने में बहुत ज्यादा नैतिकता बरतने, कानूनी अड़चनों की परवाह न करना, वोट बैंक पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर ही काम करना पड़ता है। जो देश ऐसा नहीं करता उस देश की दशा असहाय पीड़ित जैसी हो जाती है।
अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान के अन्दर घुसकर 9/11 के मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया हो, लेकिन भारत में पिछले बीस सालों में तीन दर्जन से अधिक आतंकी हमले और उनमें 1000 से अधिक लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार एक भी आतंकी को सजा नहीं मिल सकी है। चाहे 1993 का मुंबई बम धमाका हो या फिर 2001 का संसद पर हमला, पाकिस्तान में बैठे साजिश रचने वालों तक भारतीय एजेंसियों के हाथ नहीं पहुंच सके। वहीं हमले के लिए जिम्मेदार जिन आतंकियों को गिरफ्तार भी किया गया, उनके खिलाफ अदालती कार्रवाई का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। 26/11 से पहले 1993 के मुंबई बम धमाकों को भारत में सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जाता है। 300 से अधिक को घायल करने वाला, 300 से अधिक को मौत के घाट उतारने वाला इस हमले में अभी तक इसके एक भी आरोपी को सजा नहीं हो पाई। आतंकी हमले के 13 साल बाद 2006 में विशेष टाडा अदालत का फैसला आया तो सजा पाने वाले दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी जहां अब तक सुनवाई चल रही है। भारत या भारतीय एजेंसी सीबीआई अब तक मुख्य आरोपी दाऊद इब्राहिम समेत 35 दूसरे आरोपियों को गिरफ्तार तक नहीं कर सकी। वहीं 2001 में संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु की फांसी की सजा पर 2005 में सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के छह साल बाद भी अमल नहीं हो पाया है जबकि 2000 में दिल्ली के लालकिले में घुसकर सेना के तीन जवनों की हत्या और 11 को घायल करने वाले लश्कर-ए-तोयबा के आतंकी मोहम्मद आरिफ को फांसी की सजा पर अब तक अदालती कार्रवाई जारी है। इसी तरह 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हमला कर 31 लोगों को मौत के घाट उतारने वाले लश्कर आतंकियों को फांसी देने का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। यह सब हमारी कमजोर इच्छाशक्ति, लम्बी कानूनी प्रक्रिया और वोट बैंक पॉलिटिक्स के कारण हुआ। भारत के हुक्मरानों को राष्ट्रहित समझना चाहिए और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से सीख लेनी चाहिए।
अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान के अन्दर घुसकर 9/11 के मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया हो, लेकिन भारत में पिछले बीस सालों में तीन दर्जन से अधिक आतंकी हमले और उनमें 1000 से अधिक लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार एक भी आतंकी को सजा नहीं मिल सकी है। चाहे 1993 का मुंबई बम धमाका हो या फिर 2001 का संसद पर हमला, पाकिस्तान में बैठे साजिश रचने वालों तक भारतीय एजेंसियों के हाथ नहीं पहुंच सके। वहीं हमले के लिए जिम्मेदार जिन आतंकियों को गिरफ्तार भी किया गया, उनके खिलाफ अदालती कार्रवाई का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। 26/11 से पहले 1993 के मुंबई बम धमाकों को भारत में सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जाता है। 300 से अधिक को घायल करने वाला, 300 से अधिक को मौत के घाट उतारने वाला इस हमले में अभी तक इसके एक भी आरोपी को सजा नहीं हो पाई। आतंकी हमले के 13 साल बाद 2006 में विशेष टाडा अदालत का फैसला आया तो सजा पाने वाले दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी जहां अब तक सुनवाई चल रही है। भारत या भारतीय एजेंसी सीबीआई अब तक मुख्य आरोपी दाऊद इब्राहिम समेत 35 दूसरे आरोपियों को गिरफ्तार तक नहीं कर सकी। वहीं 2001 में संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु की फांसी की सजा पर 2005 में सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के छह साल बाद भी अमल नहीं हो पाया है जबकि 2000 में दिल्ली के लालकिले में घुसकर सेना के तीन जवनों की हत्या और 11 को घायल करने वाले लश्कर-ए-तोयबा के आतंकी मोहम्मद आरिफ को फांसी की सजा पर अब तक अदालती कार्रवाई जारी है। इसी तरह 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हमला कर 31 लोगों को मौत के घाट उतारने वाले लश्कर आतंकियों को फांसी देने का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। यह सब हमारी कमजोर इच्छाशक्ति, लम्बी कानूनी प्रक्रिया और वोट बैंक पॉलिटिक्स के कारण हुआ। भारत के हुक्मरानों को राष्ट्रहित समझना चाहिए और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से सीख लेनी चाहिए।
No comments:
Post a Comment