Saturday 21 May 2011

केवल माफी मांगने से काम नहीं चलेगा, जनता को सही जवाब चाहिए


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

Published on 21st May 2011
अनिल नरेन्द्र
भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को सौंपी गई 50 सर्वाधिक वांछित भगोड़ों की सूची में 2003 में मुंबई के मुलुंड सहित कुछेक जगहों पर हुए धमाकों में नामजद वजाहुल कमर खान को लेकर हुई गड़बड़ी को मामूली क्लेरिकल मिसटेक कहकर मामले को रफा-दफा नहीं किया जा सकता। गृह मंत्रालय के इस बलंडर से भारत की पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया में बेइज्जती हुई है। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश की खुफिया एजेंसियों में आपसी तालमेल का कितना अभाव है। यह हमारी समझ से तो बाहर है कि कैसे इन 50 वांछित भगोड़ों की सूची बिना सही जांच-पड़ताल, चैकिंग-क्रॉस चैकिंग के बिना जारी कर दी गई? इस सूची में मुंबई हमले के एक आरोपी वजाहुल कमर खान जो कि न केवल भारत में मौजूद है बल्कि जमानत पर रिहा भी हो गया, उसका नाम इस सूची में कैसे आ गया? केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का गलती स्वीकार करना काफी नहीं है। उन्हें इन तीन बातों का जवाब देना होगा। पहली बात कि यह सूची किसने बनाई थी? क्या यह काम किसी आरामपसंद, जरूरत से ज्यादा तनख्वाह लेने वाले बाबू ने बनाई थी जिसे यह मालूम है कि उसकी नौकरी नहीं जा सकती और उसे किसी की परवाह नहीं? दूसरी क्या यह सूची आईबी, रॉ, एनआईए व सीबीआई में पहले बांटी गई थी? अगर उन्हें यह सूची दिखाई गई थी तो सीबीआई क्यों चुप रही और उसने यह क्यों नहीं बताया कि वजाहुल कमर खान नामक व्यक्ति मुंबई के मुलुंड इलाके में मौजूद है और फिलहाल जमानत पर रिहा है? तीसरी इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह भी कि आईबी क्या कर रही थी जबकि उसका यह काम है कि जो आरोपी ऐसे संगीन केस में जमानत पर है उस पर कड़ी नजर रखी जाए जो उसने लगता है नहीं किया? उसे यह भी नहीं पता कि वजाहुल कमर खान फिलहाल रहता कहां है? जब तक इन प्रश्नों का उत्तर चिदम्बरम नहीं देते तब तक इस मामले में गफलत कहां हुई, का पता नहीं चल सकेगा।
यह अत्यंत दुःख की बात है कि हमारी खुफिया एजेंसियों में कोई आपसी तालमेल नहीं है और हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करती हैं। सीबीआई जैसी एजेंसी को सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक हित साधने पर ज्यादा ध्यान देते हैं बनिस्पत देशद्रोहियों के खिलाफ निगरानी रखने की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। वह बेशक अब कहें कि गृहमंत्री चिदम्बरम ने उन्हें अंधेरे में रखा पर प्रधानमंत्री का काम है कि इतने महत्वपूर्ण मसले पर खुद ध्यान दें। पाकिस्तान तो हमेशा से यह कहता आ रहा है कि भारत की मांग विश्वसनीय नहीं होती। यह घटना देश की साख पर सवाल बनकर उभरी है, क्योंकि हम कहते ही नहीं, सबूत भी पेश करते आए हैं कि भारत में आतंकी घटनाओं को पाकिस्तान की जमीन से अंजाम दिया जा रहा है। ऐसे में इस तरह की चूक पाकिस्तान को अपना पक्ष मजबूत करने का मौका दे सकती है, क्योंकि वह यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि भारत में आतंकी हमलों को अंजाम देने वालों को उसने पनाह दे रखी है। यह समझ नहीं आता कि भारत इतनी लम्बी वांछित भगोड़ों की सूची क्यों बनाता है? हमें तो गिने-चुने मुट्ठीभर उन सरगनाओं व वांछित आतंकियों को छोटी सूची देनी चाहिए जो हमारे देश की सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा अहम हैं।

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