Saturday 21 May 2011

हंसराज भारद्वाज को अपने पद पर बने रहने का कोई हक नहीं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21st May 2011
अनिल नरेन्द्र
कर्नाटक के राज्यपाल श्री हंसराज भारद्वाज वैसे तो एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। वह कई महत्वपूर्ण पदों पर भी रह चुके हैं। कर्नाटक के राज्यपाल बनने से पहले वह केंद्र सरकार में कानून मंत्री थे। इन्दिरा जी के समय से वह जिम्मेदार पदों पर रहे हैं। कर्नाटक में जाने के बाद से पता नहीं उन्हें क्या हो गया है। वह इतने गैर जिम्मेदाराना तरीके से व्यवहार कर रहे हैं जो उन्हें शोभा नहीं देता। पता नहीं वह किस निजी एजेंडे पर चलना चाहते हैं। एक चुनी हुई सरकार जिसका विधानसभा में स्पष्ट बहुमत है उसे डराते-धमकाते रहते हैं, उन्हें डिसमिस करने की बेहूदा सिफारिश करते हैं। संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी किस तरह अपनी कथनी और करनी में अन्तर के प्रति बेपरवाह हो गए हैं, इसका सटीक उदाहरण है कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज का यह कथन `मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा चुने हुए प्रतिनिधि हैं। उन्हें जबरदस्त बहुमत प्राप्त है। इस पर किसी को संशय नहीं है। हम मित्र हैं। इस प्रकार के राजनीतिक तनाव अप्रासंगिक हैं। हमें संविधान और कानून के प्रति समर्पित होना चाहिए।'
पता नहीं श्री हंसराज भारद्वाज को इन दिनों क्या हो गया है। एक दिन केंद्र सरकार को येदियुरप्पा सरकार को डिसमिस करने की सिफारिश करते हैं तो उससे अगले दिन येदियुरप्पा की शान में कसीदे पढ़ने लगते हैं। हां इतना जरूर है कि वह अपना पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इतने सब विवादों के बावजूद, हिमाकतों के बावजूद कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं। खुद को वापस बुलाए जाने की भाजपा की मांग पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि राज्यपाल के तौर पर उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति ने की थी तथा उनके (राष्ट्रपति के) अलावा और उन्हें (भारद्वाज को) वापस नहीं बुला सकता। राज्यपाल महोदय अगर आपसे हम यही सवाल करें कि कर्नाटक की जनता ने येदियुरप्पा को न केवल चुना है बल्कि उन्हें स्पष्ट बहुत दिया है तो आप कौन होते हैं उन्हें वापस बुलाने वाले? दिलचस्प पहलू यह है कि हमें नहीं लगता कि हंसराज भारद्वाज कांग्रेस के किसी एजेंडे पर चल रहे हैं। केंद्र सरकार व कांग्रेस पार्टी बेशक येदियुरप्पा सरकार की मौजूदगी से खुश न हो पर वह इस हद तक नहीं जा सकती कि एक स्पष्ट बहुमत वाली चुनी हुई सरकार को बिना वजह हटाया जाए। तभी तो प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा कि कोई गैर संवैधानिक काम नहीं होगा। जब केंद्र की ऐसी कोई नीति नहीं तो राज्यपाल महोदय किसके एजेंडे पर चलने की कोशिश कर रहे हैं?
श्री हंसराज भारद्वाज ने अपनी पक्षपातपूर्ण सिफारिश से न केवल केंद्र सरकार को असहज किया बल्कि राज्यपाल के पद की गरिमा भी गिराई है। यह भी विचित्र है कि एक ओर वह येदियुरप्पा की तारीफ करते हुए उनके पास भारी बहुमत बता रहे हैं और दूसरी ओर विधानसभा का सत्र आरम्भ करने में राज्य कैबिनेट के अनुरोध को स्वीकार करने के पहले अपनी सिफारिश पर केंद्र सरकार के फैसले का इंतजार भी कर रहे हैं। क्या उन्हें अभी भी यह यकीन है कि केंद्र सरकार उनकी सिफारिश मानते हुए कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन थोप सकती है? दरअसल श्री हंसराज भारद्वाज ने अपने पत्ते इतनी बुरी तरह से खेले हैं कि अगर उनमें थोड़ा-सा स्वाभिमान बचा है तो स्वयं राज्यपाल के पद से त्यागपत्र दे दें।
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