Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
प्रकाशित: 01 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र
-अनिल नरेन्द्र
भारत में अकसर यह कहा जाता है कि बड़ी मछलियां तो फंसती नहीं और छोटी मछलियों से सरकारी एजेंसियां खानापूर्ति कर लेती हैं। बात 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की कर रहा हूं। हालांकि ईडी अपना काम तेजी और पारदर्शिता से कह रहा है और कई दिग्गजों को तिहाड़ पहुंचा चुका है पर सवाल यह भी उठ रहा है कि सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की है उसमें रिलायंस टेलीकॉम के अध्यक्ष अनिल अम्बानी, एस्सार के सीईओ प्रशांत रुइया और टाटा टेलीसर्विसेज जैसी बड़ी मछलियों के नाम गायब हैं? सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में एक एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने आरोप लगाया है कि यह कम्पनियां ही 2जी मामले में वास्तविक लाभार्थी हैं। संगठन की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि शाहिद उस्मान बलवा की स्वान टेलीकॉम रिलायंस कम्युनिकेशन की फ्रंट कम्पनी थी जबकि लूप टेलीकॉम एस्सार ग्रुप की फ्रंट कम्पनी थी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु स्थित एनजीओ को धन देने पर टाटा टेलीसर्विसेज को फायदा पहुंचाया गया। द्रमुक सांसद कनीमोझी इस एनजीओ की निदेशक थीं। उन्होंने कहा कि चार्जशीट में अनिल अम्बानी का नाम नहीं है। सीबीआई ने उन्हें बचाने की कोशिश की है और चार्जशीट में केवल अफसरों को आरोपी बनाया गया है। कोर्ट ने कहा कि उनकी इस दलील पर 3 मई को होने वाली सुनवाई में इस पर विचार किया जाएगा।
उधर उद्योगपति रतन टाटा तथा कारपोरेट जगत के लिए लॉबिंग करने वाली नीरा राडिया की भी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भूमिका की जांच करने के लिए पटियाला हाउस में विशेष रूप से बनी विशेष अदालत में भी यह अर्जी दाखिल की गई है। अदालत ने इस पर विस्तृत रूप से सुनवाई के लिए 2 मई की तारीख तय की है। उत्तर प्रदेश के रहने वाले धर्मेन्द्र पांडे के वकील एसके सिंह द्वारा दायर अर्जी में आरोप लगाया गया है कि सीबीआई ने इस घोटाले में टाटा और राडिया की भूमिका की जांच नहीं की और उनकी अनदेखी की गई है। अर्जी में कहा गया है कि सीबीआई ने टाटा टेलीसर्विसेज को नीतियों और प्रतिक्रियाओं का उल्लंघन कर लाइसेंस दिया गया लेकिन इस तथ्य की पूरी तरह अनदेखी की। अर्जी में आरोप लगाया गया है कि टाटा टेलीसर्विसेज को लाइसेंस दिलाने में नीरा राडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कहा गया है कि सीबीआई को आरोप पत्र दाखिल करने से पहले जांच के दौरान टाटा टेलीसर्विसेज को लाइसेंस दिए जाने में नीतियों, प्रक्रियाओं के उल्लंघन की जानकारी थी पर जानबूझकर इसमें चूक की वजह पर ध्यान नहीं दिया। अर्जी में न्यायमूर्ति शिवराज पाटिल समिति की रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि टाटा ने आखिरी तारीख यानि एक अक्तूबर 2007 तक यूएएस लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं किया था। अर्जी में आरोप लगाया गया है कि उसके बाद ही नीरा राडिया ने अपने प्रयास से लाइसेंस दिलवाया।
सबकी नजरें अब 2 और 3 मई को पटियाला हाउस और सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही पर टिकी हैं। देश देखना यह चाहता है कि क्या बड़ी मछलियों पर हाथ डालने का साहस इस सरकार और उनकी एजेंसियों में है या नहीं?
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