Thursday, 12 May 2011

सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सभी पक्षों को राहत

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 12 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आमतौर पर सभी पक्षों ने स्वागत किया है। यह तर्पसंगत है कि जब किसी भी पक्ष ने जमीन के बंटवारे की मांग ही नहीं की थी तब कैसे हाई कोर्ट ने विचलित करने वाला यह फैसला दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद के फैसले को अजीब और चकित करने वाला बताया है। सितम्बर में जब यह फैसला सुनाया गया था, तब प्राय सभी लोगों ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया था कि कोर्ट ने वह काम अपने हाथ में क्यों ले लिया, जिसके लिए किसी ने भी उससे प्रार्थना नहीं की थी। हाई कोर्ट का फैसला किसी एक के पक्ष में नहीं था। तीनों जजों के अलग-अलग फैसले में हर एक के पक्ष में कुछ न कुछ आया। सार यह था कि जहां रामलला की मूर्तियां रखी हैं, वे वहीं रहेंगी और विवादित भूमि दोनों पक्षों में बांट दी जाएगी। जहां तीनों जजों ने यह माना कि इस वक्त जहां रामलला विराजमान हैं, उसे राम जन्म स्थान माना जाता है। वह क्षेत्र हिन्दुओं यानि मंदिर के हिस्से में आएगा, वहीं दो जजों ने यह फैसला दिया था कि विवादित क्षेत्र का मालिकाना हक दोनों हिन्दुओं और मुसलमानों का है। बंटवारा इस तरह से हो कि मुसलमानों का हिस्सा एक-तिहाई से कम न हो।
विवाद तो बाबरी मस्जिद के पूरे परिसर के मालिकाना हक को लेकर था, जिसे हाई कोर्ट ने अपनी तरफ से तीन हिस्सों में बांट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जनवरी, 1993 वाली स्थिति को बरकरार रखा है, जब बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद मामला अदालत में गया था और जिसके तहत रामलला की पूजा-अर्चना जारी रखने का प्रारम्भिक फैसला सुनाया गया था। हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे देने का अर्थ है कि रामलला जहां विराजमान हैं, वहीं रहेंगे और पूजा-अर्चना का काम जैसे हो रहा था होता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यथास्थिति जारी रहेगी। यह फैसला सभी पक्षों को संतुष्ट करता है, कम से कम फिलहाल तो करता ही है। वरिष्ठ वकील रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हम संतुष्ट हैं। अयोध्या में परिस्थितियां जस की तस रहेंगी। केंद्र के 7 जनवरी 1993 के आदेश के तहत रामलला की पूजा-अर्चना जारी रहेगी। वहीं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि फैसले से देश में शांति बनी रहेगी। प्रत्येक पक्ष ने विवादित जमीन पर दावेदारी की है। इसलिए हाई कोर्ट के जमीन के तीन हिस्से करने के फैसले पर रोक लगनी चाहिए थी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् अध्यक्ष महंत ज्ञानदास ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समाधान की दिशा में हो रहे प्रयास को बल मिलेगा। बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी ने भी फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से किसी भी बहकावे में न आने की अपील करते हुए कहा है कि बातचीत से इस मसले के समाधान का प्रयास जारी रहेगा। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व राम मंदिर आंदोलन से जुड़े नेता सांसद विनय कटियार ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि हम हाई कोर्ट के फैसले के बाद से ही कह रहे थे कि बंटवारा स्वीकार नहीं होगा, क्योंकि किसी पक्ष ने बंटवारे की मांग नहीं की थी। वैसे पिछले दो दशकों से देश और जनता की ऊर्जा इस मसले पर लगी है और जितनी जल्द फैसला होगा सभी के लिए अच्छा रहेगा।

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