Sunday 29 September 2013

अध्यादेश बकवास, फाड़कर फेंको ः राहुल का मास्टर स्ट्रोक?

कांग्रेस उपाध्यक्ष व युवराज राहुल गांधी ने शुक्रवार को अचानक बिना किसी पूर्व कार्यक्रम व सूचना के नई दिल्ली के प्रेस क्लब पहुंचकर मौजूद लोगों को चौंका दिया। तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार कांग्रेस के मीडिया प्रभारी सांसद अजय माकन ने मीट द प्रेस का प्रोग्राम रखा था। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान माकन को एक फोन आया और वह बाहर निकलकर चले गए। कुछ मिनटों में लौटकर उन्होंने बताया कि पार्टी उपाध्यक्ष का फोन था। वह खुद आ रहे हैं। सवाल यह है कि राहुल ने यूं अचानक एंट्री क्यों ली? क्यों प्रेस क्लब के मंच को चुना। खैर, उन्होंने आकर प्रेस वालों को और चौंका दिया जब उन्होंने कहा कि सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने के लिए लाए  गए विवादास्पद अध्यादेश बकवास है इसे फाड़कर फेंको। राहुल की बात सुनकर सब हक्के-बक्के रह गए। इससे पहले कि वह प्रेस वालों के सवालों के जवाब देते वह उठकर चले गए। राहुल से ठीक पहले इसी  प्रेस वार्ता में अजय माकन सरकार का बचाव कर रहे थे और भाजपा पर दोहरा रुख अपनाने का आरोप लगा रहे थे। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति के अध्यादेश रोकने और दिग्विजय सिंह, मिलन देवड़ा और संदीप दीक्षित जैसे नेताओं के विरोध पर मनीष तिवारी ने सबको हिदायत दी थी कि वे पहले अध्यादेश को बारीकी से देखें और फिर आलोचना इत्यादि करें। कटु सत्य तो यह है कि इस अध्यादेश को लेकर मनमोहन सरकार और कांग्रेस पार्टी के कान गुरुवार को ही खड़े हो गए थे जब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने केंद्र के तीन मंत्रियों को तलब कर पूछा था कि आखिर दागियों को बचाने के लिए इस अध्यादेश की क्या जरूरत पड़ गई? राहुल ने जिन तेवरों में सरकार के फैसले का विरोध किया उससे सरकार में न केवल दो पॉवर सेंटर उभरकर एक बार फिर आए बल्कि सरकार और पार्टी के बीच कोआर्डिनेशन यानि समन्वय की कमी भी सामने आई है। हाल के दिनों में सरकार के अन्दर दो पॉवर सेंटर की बात पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह भी कई बार उठा चुके हैं, लेकिन हर बार पार्टी व सरकार ने इससे इंकार किया। हालांकि प्रेस क्लब से राहुल के जाने के बाद अजय माकन ने इस सवाल को टाल दिया कि क्या राहुल की आलोचना के दायरे में पीएम आते हैं। राहुल की टिप्पणी पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को न्यूयार्प से रिएक्ट करना पड़ा, कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष ने मुझे चिट्ठी लिखी थी। यह अध्यादेश लोगों के बीच बहस का मुद्दा बन गया है। सरकार को इन बातों की जानकारी है। देश लौटकर इसकी कैबिनेट में चर्चा होगी। एक युवा कांग्रेस जो राहुल कैम्प का है, का कहना था कि यह राहुल का मास्टर स्ट्रोक है। कांग्रेस ने लालू प्रसाद यादव व रशीद मसूद समेत उन सभी नेताओं जिन पर यह संशोधन लागू होता है को बचाने के लिए प्रयास किया गया। कांग्रेसी लालू को कह सकते हैं कि देखो हमने तो कोशिश की पर अगर इसका चौतरफा विरोध हो रहा है तो हम मजबूर हैं। वहीं ऐसा करके बैकफुट पर भले ही रहे खुद राहुल लेकिन कांग्रेस पार्टी को फ्रंटफुट पर लाने की रणनीति चली है और साथ ही राहुल ने खुद को आम आदमी के साथ विशेषकर युवा वर्ग को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह भी उनके बीच के ही व्यक्ति हैं। राहुल ने उस आदमी के साथ आवाज मिलाने की कोशिश की है जो राजनीति में अपराधीकरण और भ्रष्टाचार से तंग आ चुका है। राहुल गांधी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कुछ सदमे में चल रहे थे। इस दौरान भाजपा के नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय परिदृश्य में उदय हुआ और मोदी तेजी से छा गए। युवाओं में राहुल का केज कम हुआ और नरेन्द्र मोदी का बढ़ता जा रहा है। आज नरेन्द्र मोदी के सामने राहुल बौने पड़ रहे हैं। युवाओं में फिर पैठ बनाने के लिए राहुल ने दागी सांसदों के बेहद संवेदनशील मुद्दे को उठाने की रणनीति बनाई। अन्ना आंदोलन से पहले दलितों के घर रोटी खाने, गांवों में रात बिताने, भट्टा पारसौल के किसानों के साथ खड़े होने, ट्रेन में आम आदमी के साथ सफर करने जैसे कदमों से उनकी जनता में सकारात्मक छवि बन रही थी पर राहुल ने किसी भी मुद्दो को फॉलोअप नहीं किया। कभी-कभी लगता है कि राहुल राजनीति में आने को पूरी तरह तैयार नहीं। कभी हां कभी न की स्थिति में नरेन्द्र मोदी को और उभार रहे हैं। राहुल के ताजा बयान से एक बार फिर मनमोहन सिंह और उनकी सरकार की असहज स्थिति बन गई है। यह पहली बार नहीं जब सरकार और संगठन में मतभेद खुलकर सामने आए हैं। कोलगेट मामले में कानून मंत्री अश्विनी कुमार और रिश्वत मामले में रेलमंत्री पवन बंसल के इस्तीफे में देरी पर भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कड़ी नाराजगी जताई थी। मनमोहन ने दोनों मंत्रियों का बचाव किया था। पिछले साल केंद्र सरकार ने एलपीजी की कीमतों में भारी बढ़ोतरी की तो उस पर भी कांग्रेस ने सरकार का विरोध किया था। नतीजतन रसोई गैस की लिमिट बढ़ा दी गई। फूड बिल का मामला कैबिनेट में बार-बार पेश न किए जाने पर सोनिया ने कड़ी नाराजगी जताते हुए इस बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। फूड बिल सोनिया का ड्रीम बिल माना जाता है और कहा जाता है कि पीएम आर्थिक वजहों से इसे टालना चाहते थे। राहुल गांधी का यह मास्टर स्ट्रोक है या नहीं अब आप खुद फैसला करें।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday 28 September 2013

नैरोबी के आतंकी हमले में ब्रिटिश व अमेरिकी आतंकी?

केन्या की राजधानी नैरोबी में मुंबई जैसा आतंकी हमला मंगलवार को चौथे दिन भी नहीं थमा जबकि सोमवार को केन्या के राष्ट्रपति उहूरु ने कहा कि सभी  बंधक छुड़ा लिए गए हैं। उन्होंने दावा किया था कि वेस्टगेट मॉल को आतंकियों से मुक्त करा लिया गया है। माल पर सेना ने कब्जा कर लिया है लेकिन मंगलवार को मॉल में से फिर धमाके सुनाई दिए। आतंकी संगठन अल-शबाब ने दावा किया कि अब भी उसके पास कुछ बंधक है, लेकिन वह पूरी तरह सुरक्षित हैं। अल-शबाब ने धमकी दी है कि जब तक केन्या सोमालिया से अपनी सेनाएं नहीं हटा लेता  तब तक उसके हमले जारी रहेंगे। संगठन ने केन्या के अधिकारियों के दावे को गलत बताते हुए कहा है कि इस हमले में कोई अमेरिका या ब्रिटिश शामिल नहीं है। इसमें पहले कहा गया था पांच अमेरिकी तथा ब्रिटिश व्हाइट विडो इस हमले में शमिल रहे हैं। केन्या की विदेश मंत्री अमीना मुहम्मद ने कहा है कि हमलावर अमेरिका से आए थे। वे मूल रूप से अमेरिकी पांतों सिनेमोटा और मिंसूरी के थे। मॉल से बचकर भागे लोंगों में अब भी 65 लोगों की तलाश है। पुलिस का कहना है कि या तो वे सुरक्षित निकल गए हैं या फिर मॉल की ही पांच मंजिलों में कहीं छिपे हुए हैं। नैरोबी के एमपी शाह अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में लुधियाना के डाक्टर मनविंद्र चौबीसों घंटे घायलों की जान बचाने में लगे रहे। इस हमले में मरने वालों की संख्या 62 तक पहुंच गई जिनमें तीन भारतीय भी शामिल हैं। हमले के तुरंत बाद अल शबाब ने ट्विटर पर हमलावरों में शामिल नौ लोगों की सूची जारी की थी।  इनमें से तीन अमेरिकी, दो सोमालियाई और एक ब्रिटेन का नागरिक है। कनाडा और फिनलैंड का भी एक आतंकी सूची में शामिल था। सीएनएन की खबर के मुताबिक अमेरिकी सरकार इस बात की जांच कर रही है कि हमलावरों में अमेरिकी नागरिक के शामिल होने की बात किस हद तक सही है। सभी अधिकारियों और सोमालियाई मूल के अमेरिकी नेताओं ने कहा है कि अल-शबाब ने अफीका में लड़ने के लिए अमेरिका के मिनी पोलिस शहर से युवाओं की भती की है।एक दिलचस्प बात यह भी उभर कर आ रही है कि हमले की पूरी योजना में एक ब्रिटिश महिला के शामिल होने का शक है। सूत्रों के मुताबिक 2005 में लंदन ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर हमला करने के दौरान मारे गए ब्रिटिश व्यक्ति की विधवा के इसमें शामिल होने के संकेत हैं। मॉल के अंदर से वीडियो से भी पता चलता है कि एक महिला भी हमलावरों में शामिल थी। हालांकि केन्या के आंतरिक मामलों के मंत्री जोसेफ ओले लेंकू ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि सभी हमलावर पुरुष थे। लेंकू ने कहा कि यह हो सकता है कि कुछ हमलावर महिलाओं की तरह के कपड़े पहने हुए हों। अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के एबटाबाद में मारे जाने के बाद माना जा रहा था कि दुनिया का यह सबसे कुख्यात आतंकी संगठन कमजोर पड़ जाएगा। लेकिन अलकायदा आज पहले से भी ज्यादा खौफनाक रूप में सामने है। इसके अलग-अलग सगंठन दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में खौफ का पर्याय बने हुए हैं ।

अनिल नरेन्द्र

राजीव गांधी का सपना साकार हुआ ः जाफना क्षेत्र में नई सुबह आई

पच्चीस वर्ष से भी लंबे समय तक चले गृह युद्ध में तबाह हो चुके श्रीलंका के उत्तरी पांत में हुए सफल चुनावों से स्वगीय राजीव गांधी का सपना पूरा हुआ। मुझे आज भी याद है कि राजीव जी की यह इच्छा थी कि जाफना का समाधान लोकतांत्रिक चुनाव है न कि पभाकरण की बंदूकें। एक बार जब उन्होंने भारतीय शांति सेना जाफना भेजी थी तो मैं उनसे मिलने गया। मैंने राजीव जी से कहा कि शांति सेना का लिट्टे बहुत  विरोध कर रहा है कहीं यह कदम हमें भारी न पड़ जाए तो राजीव  जी ने कहा कि श्रीलंका को अगर तबाही से बचाना है, जाफना के तमिलों को बचाना है तो जाफना क्षेत्र में चुनाव होने चाहिए तभी वहां शांति स्थापित होगी। इसके बाद क्या हुआ यह इतिहास है। राजीव जी को अपने पाण तक की कीमत देनी प़ड़ी। पूरे घटनाकम को मद्रास कैफे पिक्चर में जॉन अब्राहम ने खूबसूरती से पेश किया है। पाठकों को अगर पूरे घटनाकम की जानकारी चाहिए तो यह पिक्चर जरूर देखें। इन चुनावों में तमिल पार्टियों की शानदार जीत ने एक बार फिर वहां के तमिल बहुल इलाके की स्वायत्तता से जुड़ी चुनौतियों को सामने ला दिया है। पांच तमिल पार्टियों के गठजोड़ तमिल राष्ट्रीय गठबंधन यूनाइटेड पीपुल्स फीडम एलाइंस को हाशिए में ढकेल दिया है। यह वही इलाका है जहां अलगाववादी और खूंखार लिट्टे के नेता पभाकरण ने अलग तमिल राष्ट्र की स्थापना के लिए दशकों तक खूनी जंग छेड़ी थी। वर्षों तक चली इस लड़ाई में पूरे श्रीलंका खासकर इसके तमिल बहुल उत्तरी और पूवी इलाकों में हजारों लोग मारे गए और लाखों बेघर हुए और भारत में शरण लेने पर मजबूर हुए थे। बाद में पभाकरण और इसके गुरिल्ला संगठन तमिल लिबरेशन टाइगर-लिट्टे को सरकार ने बेरहमी से कुचल दिया था और श्रीलंका की फौज के खिलाफ निर्देष तमिलों पर अत्याचार के तमाम आरोप भी लगे थे। तमिल बहुल इस क्षेत्र में पांतीय परिषद के लिए हुए चुनावों में अपेक्षा के अनुरूप ही पांच दलों के गठबंधन  टीएनए ने जाफना सहित क्षेत्र के पांच जिलों में भारी जीत हासिल की है। अगर जिस तरह से इस गठबंधन को 80 फीसदी के करीब वोट मिले हैं, इसके राजनीतिक निहतार्थ भी बहुत गहरे हैं इन नतीजों का साफ मतलब है कि श्रीलंका की महिंद्रा राजपक्षे सरकार और वहां की सेना ने बेशक तमिल विद्रोहियों का सफाया कर दिया हो, लेकिन स्वशासन और समान नागरिकता जैसे तमिलों के मुद्दे अब भी अहम हैं। तमिल विद्रोहियों के गढ़ रहे इस क्षेत्र में पांतीय परिषद के लिए हुआ यह पहला चुनाव वाकई बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके जरिए श्रीलंका के अल्पसंख्यक तमिलों ने दिखा दिया है कि वे लोकतांत्रिक तरीके से अपना अधिकार पाना   चाहते हैं। यह हकीकत राजीव गांधी समझ गए थे और उन्होंने अपने तरीके से इसे पूरा करने की कोशिश की थी। अब देखना यह है कि राजपक्षे की सरकार जाफना क्षेत्र में किस हद तक तमिलों को हक देती है और राष्ट्रीय मुख्यधारा में जोड़ने को तैयार है। हालांकि इस चुनाव के जरिए राजपक्षे ने काफी हद तक अपने दाग धोने का पयास किया है पर यदि उन्होंने तमिलों के साथ सौतेला व्यवहार किया तो वह श्रीलंका के लिए ही अहित होगा। बहरहाल जाफना में नई सुबह का स्वागत होना चाहिए। 

Friday 27 September 2013

दुर्गाशक्ति नागपाल ने अखिलेश सरकार को थूककर चाटने पर मजबूर किया

आखिर दुर्गा को शक्ति मिल ही गई। अखिलेश यादव सरकार को थूक कर चाटना ही पड़ा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दुर्गाशक्ति नागपाल का निलंबन वापस लेते हुए उनकी बहाली कर दी। एसडीएम सदर के पद पर रहते हुए दुर्गा को 27 जुलाई को निलंबित कर दिया गया था। हालांकि सरकार का कहना था कि कादलपुर स्थित एक धार्मिक स्थल की दीवार गिराने के मामले में उन्हें निलंबित किया गया, लेकिन माना जा रहा था कि खनन माफियाओं के दबाव में दुर्गा का निलंबन किया गया था। यही कारण रहा कि न केवल स्थानीय स्तर पर पदेश सरकार को इसका विरोध झेलना पड़ा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सपा को विरोध का सामना करना पड़ा। दुर्गा पंजाब कैडर की आईएएस हैं और बाद में उन्होंने यूपी कैडर ले लिया था इसलिए पंजाब सरकार ने उन्हें अपने यहां लेने की पेशकश भी कर दी थी। यही नहीं आईएएस एसोसिएशन भी दुर्गाशक्ति नागपाल के समर्थन में पदेश सरकार के सामने आ गई थी। न केवल राजनीतिक और सामाजिक संगठन स्तर पर इसका मामला उठा बल्कि सुपीम कोर्ट तक इस मामले को  पहुंचाया गया। एक तरफ जहां दुर्गा के निलंबन का विरोध चल रहा था, वहीं सपा अपनी जिद पर अड़ी थी। सपा नेता और यूपी एग्रो के चेयरमैन नरेन्द भाटी ने तो यहां तक कह दिया था कि धार्मिक स्थल की दीवार गिराने पर 41 मिनट में उन्हेंने दुर्गा का निलंबन कर दिया। दुर्गा मामले को लेकर तत्कालीन जिलाधिकारी कुमार रविकांत सिंह द्वारा भेजी गई रिपोर्ट रास न आने पर अखिलेश सरकार के निशाने पर वह भी आ गए थे। दुर्गा के निलंबन के ठीक एक माह बाद 27 अगस्त को कुमार रविकांत का तबादला कर दिया गया। दुर्गा के विरोध में न केवल स्थानीय सपा नेता बोले बल्कि गद्दावर मंत्री आजम खां, शिवपाल यादव और मुख्यमंत्री भी विरोध में थे। अपैल में एसडीएम सदर के रूप में तैनाती के बाद दुर्गा ने 27 जुलाई तक अवैध खनन के आरोप में 297 वाहनों के खिलाफ कार्रवाई की। यहां तैनाती के दौरान अपने कार्यकाल में उन्होंने अवैध खनन करने वालों से 82.5 लाख राजस्व की वसूली भी की थी जो उनके निलंबन की असल वजह बनी। दुर्गा ने यूपी सरकार की आंखें खोल दां। पदेश में सकिय खनन माफिया कई साल तक दुर्गाशक्ति को याद करेगा। उनके निलंबन के बाद भी पदेश सरकार ने सभी जिलों में अवैध खनन के खिलाफ क़ड़ी कार्रवाई के आदेश दिए। नोएडा व ग्रेटर नोएडा में तो निलंबन के बाद अचानक पुलिस की सकियता ऐसी बढ़ी कि देखते ही देखते हर दिन बीस से पचास जब्त डंपर थाने में दिखाई देने लगे। यमुना नदी हो या हिंडन नदी। इसके किनारे बसे गांवें में चल रहा अवैध खनन का खेल खत्म करने के लिए पुलिस अधिकारियों को खुद खादर में उतरना पड़ा। भाजपा जिलाध्यक्ष हरीश ठाकुर ने कहा कि अखिलेश सरकार ने दुर्गाशक्ति नागपाल का निलंबन कर गलत किया था। निलंबन वापस लेकर सरकार ने अपनी भूल सुधारी है। आईएएस (सेवानिवृत्त) गणेश शंकर त्रिपाठी का कहना था दुर्गाशक्ति को जिस मामले में निलंबित किया गया, असल में वह मुद्दा ही नहीं था। इसको राजनीतिक तूल देने से बवाल हुआ। उनकी बहाली तो पहले से ही तय थी। चार्जशीट दाखिल होने पर वक्त लगता है। देर से ही सही मगर सरकार ने सही फैसला किया है।
अनिल नरेन्द्र


पहली बार बीजेपी में दिखी एकता व ताकत, मोदी का बढ़ता तूफान

भारतीय जनता पाटी की भोपाल रैली कई मायनों में महत्वपूर्ण रही। नरेन्द्र मोदी की पधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के बाद यह भोपाल में पहली रैली थी। जिस पकार से मध्य पदेश की राजधानी भोपाल में लाखों लोग एकत्र हुए वह यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि नरेन्द्र मोदी का तूफान तेजी से बढ़ रहा है। बेशक कांग्रेस मोदी को तूल न दे और कहे कि मोदी फेक्टर 2014 लोकसभा चुनाव में कोई खास डैंट नहीं डालेगा पर जिस तरह युवा वर्ग मोदी की रैलियों में जुट रहा है उससे तो लगता है कि वह मोदी के दीवाने हो रहे हैं। यह युवा वर्ग शायद बीजेपी से इतना न जुड़ा हो पर नरेन्द्र मोदी से जरूर जुड़ा पतीत होता है। भोपाल की सभा में एलके आडवाणी, शिवराज सिंह चौहान, राजनाथ सिंह व अन्य बीजेपी के नेता शायद पहली बार इस संख्या में एक मंच पर थे। इससे दो-तीन बातें उभर कर आती हैं। पहली बात तो यह है कि इससे पाटी में एकजुटता का संकेत मिलता है। सारे मतभेदों के बावजूद सबका इकट्ठा  होना पाटी के लिए जरूरी है। दूसरी बात कि जैसा आडवाणी चाहते थे कि राज्यों का चुनाव उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों व वहां की सरकार (मध्य पदेश, छत्तीसगढ़) की परफारमेंस पर लड़ा जाए ताकि नरेन्द्र मोदी की लोकपियता पर वह भी पूरा होता दिख रहा है। मोदी ने शिवराज सिंह चौहान की जमकर तारीफ की। यह बहस भी समाप्त हो गई कि बीजेपी में तो पधानमंत्री पद के लिए होड़ लगी हुई है और पाटी में एकता नहीं। अब न तो कोई दूसरी पंfिक्त का नेता रहा न पहली पंfिक्त का। मोदी सर्वसम्मति से बीजेपी के पधानमंत्री पद के उम्मीदवार बन गए हैं। सबसे बड़ा फर्क मोदी फेक्टर का यह है कि पहले इतनी अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद जनता बीजेपी को कांग्रेस का स्वभाविक विकल्प नहीं मानती थी और कहती थी कि जिस पाटी में नेताओं में एका नहीं वह पाटी एक नहीं हो सकती, जिसके नेता पीएम बनने की होड़ में लगे हैं वह देश का क्या भला कर पाएगी। अब इस पकार की दलीलों व असमंजसता भी समाप्त हो गई है और अब जनता भी बीजेपी को कांग्रेस का विकल्प मानने लगी है। नरेन्द्र मोदी के पधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के बाद बीजेपी का यह सबसे बड़ा पब्लिक शो रहा। करीब 5 लाख लोगों की भीड़ के सामने बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व एक मंच पर था। मंच पर मौजूद लालकृष्ण आडवाणी शुरू में तो थोड़े खिंचे-खिंचे नजर आए लेकिन बाद में उन्होंने न केवल अच्छे भाषण के लिए मोदी की ओर हाथ बढ़ाकर उन्हें बधाई दी बल्कि मजबूती के साथ खड़े होने का एहसास fिदलाते हुए मोदी का हाथ उठाकर एकता का स्पष्ट संकेत भी दिया। मोदी ने अपने भाषण में बूथ स्तर से ही कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि वह कांग्रेस का खात्मा चाहते हैं, भाजपा कार्यकर्ता राष्ट्रपिता का सपना पूरा करें। fिशवराज सिंह सरकार की तारीफ करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भाजपा के पक्ष में देश भर में हवा बह रही है। मध्य पदेश व छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का जीतना तय है इसके लिए कार्यकर्ताओं को पक्ष में बह रही इस हवा को मतपेटियों तक पहुंचाना होगा। यूपीए को आड़े हाथों लेते हुए अपने राजनीतिक पतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए सीबीआई का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए मोदी ने बुधवार की इस रैली को जिसे कार्यकर्ता महापुंभ भी कहा जा रहा है में कहा कि कांग्रेस के बदले सीबीआई आगामी चुनाव लड़ेगी। मोदी ने दावा किया कि कांग्रेस पाटी मध्य पदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली में लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार खड़े नहीं करेगी। (कांग्रेस) खुद अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगी बल्कि उसकी जगह सीबीआई को मैदान में उतारेगी। लालकृष्ण आडवाणी ने गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए मोदी, शिवराज और रमन सिंह सरकार की पशंसा की। उन्होंने कहा कि गुजरात, मध्यपदेश और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों ने शानदार काम किया है। मध्य पदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अगर दम है तो वह सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के यहां भी छापा पड़वाएं, जिनको सत्ता के गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया। शिवराज ने कहा कि जल्द ही कांग्रेस के पाप की लंका जल कर राख हो जाएगी।  

Thursday 26 September 2013

पाकिस्तान में मजहबी हिंसा में अब तक 800 से अधिक मौतें

पाकिस्तान में गैर मुसलमान अल्पसंख्यकों पर अकसर हमले होते ही रहते हैं। इसके पीछे गैर मुसलमानों को देश से भगाना उद्देश या मार देना है। रविवार को पाकिस्तान के पेशावर शहर के एक ऐतिहासिक चर्च पर आत्मघाती हमलावरों ने ताबड़तोड़ हमला कर दिया। पेशावर के सेंट्स चर्च में तालिबान के दो फिदायीन आतंकियों के हमले के समय चर्च में 600-700 लोग थे। इस घटना के बाद ईसाइयों ने पाकिस्तान में जगह-जगह पदर्शन शुरू कर दिए। इस हमले में महिलाओं और बच्चों समेत कम से कम 82 लोग मारे गए और 140 से अधिक घायल हो गए हमले के शिकार हुए। लोग रविवार को नियमित पार्थना के बाद गिरजाघर से बाहर निकल रहे थे। इस पाकिस्तान के इतिहास में ईसाई समुदाय पर अब तक का सबसे विध्वंसक हमला माना जा रहा है। पेशावर के कमिश्नर साहिबजादा मोहम्मद अनीस ने बताया कि शहर के हिसांग्रस्त कोहाटी गेट जिले में स्थित पाचीन सेंट्स चर्च पर उस समय दोहरा हमला हुआ जब श्रद्धालु रविवार की पार्थना के बाद बाहर निकल रहे थे। विस्फोट की तीव्रता के कारण आसपास की इमारतें भी क्षतिग्रत हो गईं। अल्पसंख्यकों पर पाकिस्तान में हमले लगातार बढ़ रहे हैं। पेशावर में 11 सितम्बर को खालसा-1 के पूर्व नाजिम जान गुल के आवास के बाहर अज्ञात लोगों ने बम फेंका। मकसद था डर पैदा करना ताकि अल्पसंख्यक इलाका छोड़ कर चले जाएं। 1 जुलाई को पेशावर के बड़वहर इलाके में पंटियर कोर के दल पर कार से किए गए विस्फोट में 18 नागरिक मारे गए, 146 अन्य जख्मी हुए। 21 जून को हुसैनी मदरसे में हुए धमाकों में 15 लोग मारे गए, कई घायल हुए। इससे पहले 22 मई को एक मस्जिद और मदरसे पर किए आत्मघाती हमले में 15 लोग मारे गए। हमले के वक्त लोग नमाज अदा कर रहे थे। 16 अपैल को राजनीतिक दल एएनपी की पेशावर रैली में धमाके में 16 लोगों की जान गई। लहूलुहान पेशावर की यह है कहानी। पाकिस्तान में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के अशांत पांत खैबर पख्तूनिस्तान में तालिबान ने बम विस्फोट कर पाक सेना के एक मेजर जनरल और एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी सहित तीन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। सड़कों के किनारे लगे आरईडी में रिमोट से किए गए विस्फोट में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा का दौरा कर वापस आ रहे स्वात डिवीजन के कमांडर जनरल ऑफिसर मेजर जनरल सन्नाउल्ला और लेफ्टिनेंट कर्नल की मौत हो गई। इस दौरान अमेरिका ने लश्कर-ए-तैयबा, अलकायदा और तालिबान की मदद के आरोप में उत्तर पश्चिम पाकिस्तान के पेशावर स्थित एक मदरसे को आतंकी संगठन करार दिया है। गंज मदरसा ऐसा पहला मदरसा है जिस पर अमेरिका ने पतिबंध लगाया है। इसका आधिकारिक नाम जामिया-तालीम-उल-कुरान-वल-हदीस मदरसा है। अब कोई अमेरिकी नागरिक इस मदरसे के साथ व्यावसायिक या अन्य किसी पकार का संबंध नहीं रख सकता। पाकिस्तान में पिछले साल जनवरी से मजहबी समुदायों को लक्ष्य बनाकर की गई हिंसा के 203 मामलों में कम से कम 717 लोगों की मौत हो गई और 1108 लोग घायल हो गए। यह बात अमेरिकी कांग्रेस द्वारा गठित एक स्वतंत्र आयोग की रिपोर्ट `पाकिस्तान मजहबी हिंसा परियोजना' पाकिस्तान रिलीजियस बायोलैंस पोजेक्ट में कही गई है। आयोग पिछले 18 माह में पाक में मजहबी समुदायों के खिलाफ हो रहे कfिथत हमलों पर नजर रखे हुए था। मरने वालों में बड़ी संख्या शिया समुदाय की है।

-अनिल नरेन्द्र

15 हजार करोड़ खर्चने के बावजूद आधार कार्ड पर पश्नचिन्ह

आधार कार्ड सरकारी लाभकारी योजना का लाभ पाने के लिए अनिवार्य नहीं है। माननीय सुपीम कोर्ट ने सोमवार को यह आदेश दिया। इससे सरकार की सभी लोगों को आधार नम्बर देने की योजना को तग़ड़ा झटका लगा है। जस्टिस बीएस चौहान और एसए बोबडे की पीठ ने सरकार से यह भी कहा है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि आधार कार्ड किसी अवैध नागरिक को न मिले। पीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस केएस पुट्टास्वामी की जनहित याचिका पर विचार कर रही है। याचिका में कहा गया है कि लोगों को विशिष्ट पहचान नम्बर (यूआईडी) देने की आधार स्कीम असंवैधानिक है, क्योंकि इसके बारे में अब तक कोई कानून नहीं बना है। याचिका के मुताबिक सरकार भले ही यह कह रही है कि आधार कार्ड बनवाना आपकी इच्छा पर है, चाहे तो इसे न बनवाएं। मगर जिस तरह इसे योजनाओं का लाभ लेने के लिए अनिवार्य बताया जा रहा है, उससे सरकार का दावा झूठा साबित हो रहा है। लोग कई-कई घंटे लाइन में लगकर आधार नम्बर हासिल कर रहे हैं। लोगों को यह डर है कि कहीं यह नम्बर न होने के कारण उन्हें किसी योजना से वंचित न कर दिया जाए? देश में अवैध रूप से घुसे लोगों को भी पहचान नम्बर दिया जा रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह गंभीर खतरा है। याचिकाकर्ता ने कहा कि आधार नम्बर लेने वालों से उनकी व्यfिक्तगत जानकारी मांगी जा रही है इसमें अंगुलियों के निशान और पुतली के बायोमैट्रिक पिंट लिए जा रहे हैं। ऐसे पिंट लेना निजता के अधिकारों (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है। इन पिंटों का दुरुपयोग नहीं होगा या ये सरकार के पास सुरfिक्षत रहेंगे। इस बारे में कोई व्यवस्था, दंड, कानून नहीं है। जल्दबाजी में सरकारी आदेश से आधार लागू करने का मकसद राजनीतिक लाभ उठाना है। सुपीम कोर्ट के आदेश से लोगों में असमंजस की स्थिति बन गई है। आधार योजना को लेकर पहले दिन से ही सवाल उठते रहे। कई स्तर पर अफसरों ने कहा कि जरूरतमंदों को किए जाने वाले किसी पेमेंट या सुविधा को आधार कार्ड के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इस तरह के सुझावों की वजह से ही केंद्र सरकार ने डायरेक्ट बेनीफिट स्कीम (डीबीटी) या किसी और मामले में आधार कार्ड की अनिवार्यता घोषित नहीं की। लेकिन बिना अनिवार्य किए बिना बेनीफिट पाने वालों के बैंक अकाउंट से लेकर एलपीजी गैस और दूसरे कनेक्शन लेने तक को आधार कार्ड के साथ जोड़ दिया। लिहाजा डीबाटी स्कीम के बेनीफिट दिए जाने लगे हैं, जहां खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दो और तीन रुपये किलों में अनाज दिया जाना है वहां सभी जगह अभी तक आधार कार्ड को ही सुविधा देने का आधार बना दिया गया है। जो बात अब सुपीम कोर्ट ने कही है वही बात लोकसभा की स्थायी संसदीय समिति भी पिछले तीन साल से लगातार कह रही है कि बिना कानून के आधार कार्ड बनाना गैरकानूनी है लेकिन सरकार ने उसकी एक नहीं सुनी। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) में नाम लिखना और राष्ट्रीय पहचान पत्र बनाना अनिवार्य था लेकिन सरकार ने एनपीआर को कम और नंदन नीलेकणी की अध्यक्षता वाली यूआईडीएआई को ज्यादा तवज्जो दी। अब तक देश भर में करीब 43 करोड़ आधार कार्ड बन चुके हैं  जिन पर करीब 15 हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं जबकि एनपीआर भी यही काम कर रही है। एनपीआर बनाना कानूनी अनिवार्यता है लेकिन पधानमंत्री मनमोहन सिंह स्वयं नंदन नीलेकणी को लेकर आए थे और उन्हें कैबिनेट का दर्जा दिया हुआ है। इसलिए केंद्र सरकार कानूनी रूप से अनिवार्य पणाली को तवज्जो देने के बजाय यूआईडीएआई के लिए थैले का मुंह खोलती चली गई। केंद्र की डीबीटी योजना आधार कार्ड से चल रही है। संसदीय स्थायी समिति ने तीन बार (42वीं, 53वीं और 65वीं रिपोर्ट में) विशिष्ट पहचान पाधिकरण बिल-2010 को वापस लेने और आधार कार्ड बनाने के निर्णय पर दोबारा विचार करने की सिफारिश की लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। गृह मंत्रालय ने आधार कार्ड योजना पर आपत्ति की थी। उसका कहना था जो काम एनपीआर कर रहा है वही काम आधार भी कर रहा है। यानि सरकार की दो एजेंसियां एक ही काम कर रही हैं जिस पर सरकार अब तक 15 हजार करोड़ खर्च कर चुकी है। सवाल यह है कि अब आगे क्या होगा? क्या आधार कार्ड की जरूरत नहीं है? केंद्र सरकार को अब इस बात का जवाब देना होगा कि बिना होमवर्प किए पधानमंत्री ने देश का इतना रुपया क्यों लगवा दिया? जनता में कंफ्यूजन है । केंद्र सरकार स्थिति स्पष्ट करे। 

Wednesday 25 September 2013

क्या बाबा रामदेव को रेड अलर्ट की वजह से लंदन में रोका गया?

योगगुरू बाबा रामदेव को लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर रोकने और पूछताछ की वजह अभी तक साफ नहीं हुई है। गत शुक्रवार को बाबा रामदेव को लंदन हीथ्रो हवाई अड्डे पर रोककर उनसे आव्रजन और कस्टम अधिकारियों ने छह घंटे से ज्यादा वक्त तक पूछताछ की थी। अगले दिन शनिवार को भी पूछताछ का सिलसिला जारी रहा। शनिवार को बाबा एक ब्रिटिश सांसद कीथ वाज के साथ एयरपोर्ट पूछताछ के लिए पहुंचे। थोड़ी देर बाद ही उन्हें जाने को कह दिया गया। दो दिन की पूछताछ में अभी तक यह ठीक से पता नहीं चल सका कि इसका मकसद क्या था? सूत्रों के मुताबिक रामदेव से दूसरे दिन वीजा के बारे में सवाल किए गए। विषय था टूरिस्ट वीजा या बिजनेस वीजा। हालांकि पूछताछ की वजहों को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। इससे पहले रामदेव ने भी कहा कि उन्हें पूछताछ की कोई वजह नहीं बताई गई है। उन्होंने कहा कि इस दौरान भारत सरकार की ओर से उनकी मदद नहीं की गई। बाबा ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ रेड अलर्ट जारी कर ब्रिटिश अधिकारियों को भ्रमित किया गया था। बाबा ने दावा किया कि वह किसी गैर-कानूनी गतिविधि में शामिल नहीं हैं और न ही कोई गलत काम किया है। बाबा ने कहा कि उन्होंने कस्टम अधिकारियों से लगातार इस पूछताछ की वजह जाननी चाही। लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला। वे सिर्प यह कहते रहे कि इसका खुलासा नहीं किया जा सकता। बाबा रामदेव को इस तरह घंटों रोकना ठीक नहीं है। सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार ने रेड अलर्ट जारी किया था? रेड अलर्ट तो आमतौर पर खतरनाक अपराधियों के खिलाफ जारी होता है? या फिर ब्रिटिश अधिकारियों ने बाबा अपने साथ कुछ दवाएं ले जा रहे थे उस पर एतराज किया? रामदेव ने आरोप लगाया कि पूरे मामले में उन्हें भारत सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली। एयरपोर्ट के बाहर पत्रकारों से बातचीत के दौरान रामदेव ने कहा, `पूछताछ के दौरान मुझे बताया गया कि मेरे नाम को लेकर रेड अलर्ट जारी है।  जबकि ऐसा अलर्ट आतंकियों या अपराधियों के लिए ही जारी किया जाता है। मैं विस्तृत ब्यौरे का इंतजार करूंगा। लेकिन मुझे शक है कि मेरे बारे में भारत सरकार ने ब्रिटिश इमिग्रेशन अधिकारियों को गुमराह किया है।' पूरे मामले पर बीजेपी ने कड़ा एतराज जताया है। बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस मामले को बेहद गम्भीर करार दिया है और कहा  कि केंद्र सरकार को इसमें संज्ञान लेना चाहिए। नई दिल्ली में पत्रकारों के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि योगगुरू को रोकने की वजहों का खुलासा नहीं किया गया है। लेकिन मुझे जहां तक जानकारी है बाबा के पास एक डायरी थी और उसमें मंत्र लिखे थे। इन मंत्रों की वजह से उन्हें रोका गया था। यह डायरी जब्त कर ली गई और उन्हें शनिवार को दोबारा पूछताछ के लिए बुलाया गया था। बहरहाल उनको रोकने की वजहों पर साफतौर पर कुछ भी नहीं कहा जा रहा है। पतंजलि योग पीठ स्वामी विवेकानन्द की 120वीं जयंती पर लंदन में एक समारोह का आयोजन कर रहा है। इसी समारोह में हिस्सा लेने के लिए रामदेव लंदन पहुंचे हैं। एक सूत्र का कहना है कि बाबा बिजनेस वीजा विजिटर वीजा पर आए थे और उनके पास कुछ दवाइयां भी थीं इसी वजह से पूछताछ हुई।

-अनिल नरेन्द्र

विज्ञान भवन से नसीहत देना आसान है उसे जमीनी स्तर पर लाओ तब मानें

सांप्रदायिक विभाजन दूर करने के लिए बुलाई गई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुजफ्फरनगर दंगों को राजनीतिक नफा-नुकसान के नजरिये से देखने वालों को आड़े हाथ लिया। साथ ही कहा कि दंगा करने या फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई हो, चाहे वह किसी भी दल का क्यों न हो। किश्तवाड़, मुजफ्फरनगर और नवादा में सांप्रदायिक हिंसा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को ऐसी घटनाओं से सख्ती से निपटना चाहिए और भी बहुत कुछ कहा डॉ. सिंह ने। विज्ञान भवन से भाषण देने में और असलियत में बहुत फर्प है। प्रधानमंत्री ने जो कहा उससे सभी सहमत होंगे। होना तो यही चाहिए पर क्या वास्ताव में ऐसा हो रहा है? हम प्रधानमंत्री से भी पूछते हैं कि आज पूरे देश में इस सांप्रदायिक विस्फोट का जिम्मेदार कौन है? क्या केंद्र सरकार और उसकी तुष्टीकरण व वोट बैंक की राजनीति इसके लिए जिम्मेदार नहीं? जब केंद्र सरकार यह कहे कि देश के संसाधनों पर वर्ग विशेष का पहला हक है, उनको बढ़ावा देने के लिए विभिन्न स्कीमें चलाई जाएं, उनकी पढ़ाई के लिए विशेष सुविधाएं दी जाएं तो देश के बाकी वर्ग क्या समझेंगे? समस्या तो यह है कि केंद्र सरकार दोहरे मापदंड अपनाती है। अगर कांग्रेस शासित प्रदेश में उदाहरण असम में हिन्दू-मुस्लिम फसाद हो तो तरुण गोगोई इसके लिए न तो जिम्मेदार माने जाते हैं और न ही उनसे कोई सवाल-जवाब होता है। अगर राजस्थान के भरतपुर में एक धार्मिक स्थल में घुसकर वर्ग विशेष के लोगों को मार देते हैं तो प्रधानमंत्री वहां के कांग्रेसी मुख्यमंत्री से कोई सवाल-जवाब नहीं करते पर 2002 के गुजरात दंगों पर आज भी नरेन्द्र मोदी को लपेटने से बाज नहीं आते। गुजरात के दंगों को तो 11 साल हो गए पर प्रधानमंत्री जी ने हाल में हुए मुजफ्फरनगर दंगों पर कौन-सा सपा सरकार या मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सवाल-जवाब किया? उत्तर प्रदेश में जब से अखिलेश यादव की सरकार बनी है तब से अब तक 105 सांप्रदायिक दंगे तथा 35 खूनी संघर्ष हो चुके हैं। अब तक यूपी के इतिहास में तीन बार सेना बुलाई गई और तीनों बार सपा का शासन था पर प्रधानमंत्री ने कभी भी अपना मुंह नहीं खोला। शायद इसलिए क्योंकि उन्हें संसद में  बिल पास करवाने, मत विभाजन की स्थिति में समाजवादी पार्टी के वोट चाहिए थे। राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक महज रस्म अदायगी बनकर रह गई है। इस बैठक में सिवाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के और कुछ हासिल नहीं हुआ। ऐसी बैठकें तब तक बेनतीजा रहेंगी जब तक प्रमुख राजनीतिक दल पंथनिरपेक्षता की मनमानी व्याख्या करते रहेंगे। समस्या यह है कि पंथनिरपेक्षता की केवल मनमानी व्याख्या ही नहीं की जा रही है बल्कि उसके आधार  पर नीतियां भी बनाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने भाजपा मुख्यमंत्रियों को तो नसीहत दे डाली पर उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को कुछ नहीं कहा? मुजफ्फरनगर में पहले सियासत हुई और उसे अमली जामा पहनाने के लिए सांप्रदायिक दंगे भड़काए गए। आज तमाम मुसलमान न तो कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं और न ही समाजवादी पार्टी का क्योंकि वह मानकर चल रहे हैं कि सपा सरकार ने केंद्र के संरक्षण में दंगा भड़काया और फिर मुस्लिमों को सुरक्षा देने में विफल रही। सुनिए देश में प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का क्या कहना है। मौलाना मदनी ने मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में पिछले दिनों भड़की सांप्रदायिक हिंसा को 2002 के गुजरात दंगों जैसा करार देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में आम जनता अखिलेश यादव सरकार से नाराज हैं और आने वाले लोकसभा चुनाव के नतीजों पर इसका असर देखने को मिलेगा। जिस तरह से मुजफ्फरनगर में दंगों को `प्लांट' किया गया है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसमें और गुजरात के दंगों में कोई फर्प नहीं है। यह सभी को समझने की जरूरत है कि दोषपूर्ण और एकपक्षीय पंथनिरपेक्षता के आवरण में सांप्रदायिकता फैलाने का जो काम हो रहा है उससे अगर पंथनिरपेक्षता के बहाने किसी एक वर्ग का तुष्टीकरण होगा तो दूसरे वर्ग का ध्रुवीकरण अपने आप होना स्वाभाविक है। अगर अल्पसंख्यकों का  तुष्टीकरण और वोट बैंक कार्ड खेला जाएगा तो फिर कोई न कोई तो बहुसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिए आगे आएगा ही। जरूरी है कि सबसे पहले पंथनिरपेक्षता की एक सर्वमान्य परिभाषा तय हो।

Tuesday 24 September 2013

मुजफ्फरनगर दंगे में हुईं गिरफ्तारियों पर उठे कुछ जरूरी सवाल

मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के मामले में गिरफ्तारियां आरम्भ हो गई हैं। भड़काऊ भाषण देने के आरोपी भाजपा विधायक संगीत सोम और बसपा विधायक नूर सलीम राणा को पुलिस ने शनिवार को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद पुलिस ने संगीत सोम, नूर सलीम  राणा और लखनऊ में एक दिन पहले गिरफ्तार शामली के थाना भवन से भाजपा विधायक सुरेश राणा को कड़ी सुरक्षा में कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। इनकी जमानत पर 23 व 24 सितम्बर को सुनवाई होगी। संगीत सोम मेरठ के सरगना क्षेत्र और नूर सलीम राना मुजफ्फरनगर के चरथावल क्षेत्र से विधायक हैं। संगीत सोम पर कवाल की कथित वीडियो पर शेयर करने के साथ ही भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। नूर सलीम राणा पर मुजफ्फरनगर के चरथावल क्षेत्र से विधायक राणा पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप है। हैरानी की बात यह है कि आजतक के स्टिंग आपरेशन में आजम खान का नाम आने के बावजूद न तो वह आरोपी बनाए गए हैं और न ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हो रही है। जिन 16 नेताओं के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए गए थे उनमें से चार भाजपा के विधायक हैं। जिन लोगों पर दंगा फैलाने का आरोप है उनमें किसान नेता, बसपा विधायक और कांग्रेस के नेता हैं लेकिन इसमें एक भी सपा नेता का नाम नहीं है। विधानमंडल का मानसून सत्र खत्म होते ही मुजफ्फरनगर दंगे में गिरफ्तारियां भले शुरू हो गई हों पर भाजपा नेताओं की गिरफ्तारी के लिए हुई मशक्कत से एक बार फिर एकतरफा कार्रवाई के संकेत मिल रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि अव्वल तो यह गिरफ्तारियां पहले होनी चाहिए थीं, फिर हुईं तो सिर्प एक ही ओर से ज्यादा गिरफ्तारियों का क्या मतलब? पुलिस मुजफ्फरनगर में दंगे में दर्ज की गई दो महत्वपूर्ण एफआईआर पर गिरफ्तारियां चल रही हैं। पहली एफआईआर 30 अगस्त को हुई जिसमें बसपा के सांसद व दो विधायकों समेत एक दर्जन नेता नामजद हुए। दूसरी एफआईआर 7 सितम्बर को महापंचायत के सिलसिले में दर्ज हुई। अव्वल तो पुलिस ने उल्टी गिनती शुरू की यानि बाद में दर्ज एफआईआर जिसमें भाजपा नेता नामजद हैं, उनकी गिरफ्तारियां शुरू हुईं। सवाल है कि पहली एफआईआर में दर्ज बड़े बसपा नेताओं की गिरफ्तारियां साथ-साथ क्यों नहीं हुईं? पुलिस ने भाजपा नेताओं की गिरफ्तारी के लिए जैसी  घेराबंदी की लेकिन क्या वैसी ही घेराबंदी बसपा नेताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर में गिरफ्तारियों के लिए की गई? सवाल है अगर की गई तो सिर्प एक विधायक नूर सलीम राणा ही क्यों गिरफ्तार हुए? पुलिस ने पहली ही एफआईआर में दर्ज कांग्रेस के पूर्व सांसद सईदुजमा, उनके बेटे और सलमान और कांग्रेस नेता नौशाद कुरैशी व एहसान कुरैशी की गिरफ्तारियां क्यों नहीं हुईं? उनके खिलाफ भी अदालती वारंट हैं। क्या कवाल कांड के बाद धरे गए चार आरोपियों जिन्हें थाने से छोड़ दिया गया अब तक पुलिस ने गिरफ्तार किया?  जवाब है कि वह फरार हैं। महापंचायत का आयोजन करने वाली भारतीय किसान यूनियन के नेताओं में से कितने लोगों की गिरफ्तारी हुईं? फिलहाल पुलिस का जवाब नहीं में है। मुजफ्फरनगर में 30 अगस्त को हुई महापंचायत के मंच पर मौजूद समाजवादी पार्टी के कुछ पदाधिकारियों को क्यों बख्श दिया गया? भाजपा नेताओं का आरोप है कि उन्हें नामजद भी नहीं किया गया। आखिर यह भेदभाव क्यों? यकीन मानिए कि अभी भी मुजफ्फरनगर क्षेत्र में मामला शांत नहीं हुआ है एक छोटी-सी चिंगारी फिर भड़का सकती है हिंसा। जब तक पूरी तरह निष्पक्ष कार्रवाई नहीं होगी तब तक दंगा शांत नहीं होगा।

-अनिल नरेन्द्र

मुंबई 26/11 की तर्ज पर नैरोबी में गैर मुसलमानों पर आतंकी हमला

शनिवार को केन्या की राजधानी नैरोबी के एक शापिंग मॉल में जबरदस्त आतंकी हमला हुआ जो अब तक जारी है। इस हमले ने हमें मुंबई 26/11 की याद ताजा करा दी है। उसी तर्ज पर हुए इस हमले में अलकायदा समर्थित सोमाली आतंकियों ने विदेशियों और डिप्लोमेट्स के बीच लोकप्रिय वेस्टगेट सेंटर मॉल पर 26/11 की तर्ज पर हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए, एके 47 से अंधाधुंध फायरिंग कर गोलियां बरसाईं। इस हमले में अभी तक जो खबर आई है उसके अनुसार दो भारतीयों समेत 70 लोगों की मौत हो चुकी है। करीब 200 लोग जख्मी हैं जिनमें चार भारतीय हैं। भीड़ भरे मॉल में शनिवार को दोपहर घुसे आतंकवादियों ने रविवार को खबर लिखने तक 30 लोगों को बंधक बना रखा था। चूंकि यह मॉल यहूदियों का है और यहां पर बहुत से यहूदी व विदेशी मूल के लोग जाते हैं इसलिए इजरायली सेना भी वहां पहुंच चुकी है और कीनिया के सैनिकों के साथ इजरायली आर्मी ने मोर्चा सम्भाल लिया है। करीब एक हजार लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है लेकिन 49 लोग लापता हैं। नैरोबी में 1998 के बाद यह सबसे भीषण हमला है। चश्मदीदों के मुताबिक सोमालियाई इस्लामी उग्रवादियों के संगठन अल शबाब के 10 से 15 आतंकियों ने चेहरे काले नकाबों से ढक रखे थे और मॉल में घुसते ही उन्होंने लोगों से उनका पूरा परिचय लिया और कहा कि मुसलमान एक तरफ हो जाओ, हम सिर्प गैर मुसलमानों को मारने आए हैं। इसके बाद मुसलमानों को मॉल छोड़ने को कहा और शेष बचे लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इस हमले में 70 गैर मुस्लिम मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हो गए। अपुष्ट खबरों के अनुसार यह संख्या ज्यादा है। मरने वालों में अमेरिकन, ब्रिटिश, आस्ट्रेलियन व अन्य पश्चिमी नागरिक भी बताए जा रहे हैं। यह जानकारी देते हुए कीनिया के गृहमंत्री जोसेफ ओले ने बताया कि इजरायली सेना मॉल में घुस चुकी है लेकिन अन्दर उग्रवादियों ने कई लोगों को बंदी बना रखा है और इजरायली सेना उन्हें बचाने के लिए आतंकियों से लोहा ले रही है। समाचार लिखे जाने तक उग्रवादियों से इजरायली सेना की मुठभेड़ जारी थी। दोनों तरफ से चल रहीं गोलियों के बीच रेस्क्यू आपरेशन भी जारी है। इस मॉल को टारगेट इसलिए बनाया गया क्योंकि यह इजरायली स्वामित्व का है और यहां अकसर विदेशी आते हैं। मारे जाने वालों में दो कनाडाई, दो फ्रैंच और एक दक्षिण कोरियाई नागरिक की पुष्टि हो चुकी है। सोमालिया के चरमपंथी विद्रोही समूह अल शबाब ने हमले की जिम्मेदारी ली है जिसमें विशेष रूप से गैर मुस्लिमों को निशाना बनाया गया। हमले में 100 से अधिक लोगों के मरने का भी उन्होंने दावा किया है। हमले में मारे गए लोगों में एक आठ वर्षीय बच्चा भी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने बताया कि इस हमले में तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले 40 वर्षीय श्रीधर नटराजन और बैंक ऑफ बड़ौदा की स्थानीय शाखा के प्रबंधक के आठ वर्षीय बच्चे परमांशु जैन की भी मौत हो गई है। इस्लामाबाद की खबर के अनुसार मॉल पर हमला करने वाले संगठन अल शबाब के सुरक्षा और प्रशिक्षण मामलों के सरगना पाकिस्तानी मूल के व्यक्ति कार्रवाई का मुख्य सूत्रधार माना जा रहा है। दलांग वाल जर्नल ने 2010 की एक रिपोर्ट में कहा था कि पाकिस्तानी नागरिक अबू मूसा मोमबासा शबाब का सुरक्षा एवं प्रशिक्षण प्रमुख है।



Sunday 22 September 2013

पहले ही महंगाई की मार से परेशान जनता और पिसेगी

इस यूपीए सरकार को लगता है कि लाखों मजदूर, नौकर पेशा व रोजाना कमाने वाले लोगों की कोई चिन्ता नहीं है। वह दो वक्त की रोटी-रोजी कैसे जुटा पा रहे हैं इसका शायद उसे न तो कोई एहसास है और न ही परवाह। प्याज, सब्जियों, ईंधन, पानी, बिजली, परिवहन सब कुछ महंगा होता जा रहा है। पहले से ही महंगाई से त्रस्त जनता के लिए यह खबर और डराने वाली है कि मुद्रास्फीति दर छह माह के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है और खाद्य उत्पादों की महंगाई 18 फीसदी के पार चली गई है। बीते अगस्त महीने में खाने-पीने की महंगाई तीन साल में सबसे ज्यादा 18.18 फीसदी बढ़ी है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर बढ़कर 6.10 फीसदी पर पहुंच गई है। पिछले साल के मुकाबले इस साल अगस्त में प्याज 245 फीसदी (करीब ढाई गुना) महंगी हुई है, जबकि सब्जियों के दाम 78 फीसदी बढ़ गए। डीजल पर 27 फीसदी और एलपीजी पर करीब 8 फीसदी महंगाई बढ़ी है। वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार कारखानों में बनने वाले सामानों की महंगाई गत अगस्त महीने में सिर्प 1.9 फीसदी बढ़ी लेकिन थोक महंगाई दर में करीब 14 फीसदी महत्व रखने वाली खाने-पीने की चीजों की महंगाई 18 फीसदी बढ़ने से कुल महंगाई दर छह महीने में सबसे ज्यादा रही है। यदि यही स्थिति बनी रही तो आम जनता की मुसीबतें और अधिक बढ़ना तय है। दुखद पहलू यह है कि मौजूदा स्थितियों में जनता किसी भी तरह की राहत की उम्मीद बिल्कुल नहीं रख सकती, क्योंकि सिर उठाती महंगाई के चलते इसके आसार न्यून हो गए हैं कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर सकता है। महंगाई दर में ताजा वृद्धि का कारण प्याज जैसी रोजमर्रा की गरीब आदमी की खुराक के बढ़े दाम तो हैं ही इसके अतिरिक्त सब्जियों और मांस-मछली के दामों में तेजी भी है। यह निराशाजनक है कि तमाम आश्वासनों के बावजूद केंद्र अथवा राज्य सरकारें ऐसा कुछ नहीं कर सकीं जिससे महंगाई नियंत्रित हो। सच तो यह है कि इस बारे में सभी ने अपने-अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसा लगता है कि इसी के साथ बढ़ती महंगाई की परवाह करना भी छोड़ दिया गया है। ऐसा एहसास इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए न तो तात्कालिक उपाय किए जा रहे हैं और न ही दीर्घकालिक। त्यौहारों के सीजन में यह बढ़ती महंगाई दीवाली के उत्साह को भी कम करेगी । कार या कोई टिकाऊ सामान खरीदने की योजना बनाने वाले उपभोक्ता को भी धक्का लग सकता है। बढ़ती महंगाई, गिरता रुपया और धीमी आर्थिक विकास दर ने केंद्र सरकार की चिन्ताओं को और भी बढ़ा दिया होगा। चुनावी वर्ष में महंगाई की बढ़ती दर से सत्तारूढ़ पार्टी के वोटों पर भी सीधा असर पड़ेगा। आज अधिकतर जनता के लिए महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है। इस साल के अन्त तक कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले आठ महीने में लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं। खुद सरकारी आंकड़े यह बता रहे हैं कि भारत में प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपए की फल-सब्जियां और अनाज के रखरखाव के अभाव में, ढुलाई की उचित व्यवस्था न होने के कारण बर्बाद हो जाते हैं। फल-सब्जियों और अनाज की इतने बड़े पैमाने पर बर्बादी जारी रहते महंगाई पर नियंत्रण की आशा ही नहीं की जा सकती। पहले से ही टूटी गरीब आदमी की कमर और टूटेगी।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday 21 September 2013

सीबीआई की अजीबो-गरीब दलील ः नौकरशाहों से मुक्त करो?

गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली हमारी प्रीमियर जांच एजेंसी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (सीबीआई) ने अब अजीबो-गरीब गुहार सुप्रीम कोर्ट में लगाई है। यह गुहार हमारी समझ से तो बाहर है। कोयला घोटाला आवंटन के मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि उसे नौकरशाही के चंगुल से मुक्त किया जाए। सीबीआई के मुताबिक इसकी वजह से उसे कई व्यावहारिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जस्टिस आरएम लोधा की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि सीबीआई नौकरशाही का इतना विरोध क्यों कर रही है? इस पर सीबीआई के वकील उमरेन्द्र शरण ने बताया कि वे जो भी प्रस्ताव भेजते हैं उन्हें वापस कर दिया जाता है और हर प्रस्ताव हेड क्लर्प स्तर से होकर गुजरता है। क्या यह पहेली नहीं कि देश की शीर्ष जांच एजेंसी नौकरशाही से मुक्त होना चाहती है, लेकिन उसे सरकार के साये में काम करने और यहां तक कि उसका अंग बने रहने में कोई परेशानी नहीं? सीबीआई सरकार के अधीन रहते हुए कुछ विशेष अधिकार आखिर क्यों चाह रही है? सीबीआई जिस तरह से सत्तारूढ़ पार्टी से अलग नहीं रहना चाहती, लेकिन उनकी नौकरशाही से खुद को परे रखना चाहती है उससे तो कई सवाल खड़े होंगे और इस दलील से इस संदेह को भी बल मिलता है कि स्वयं ही पूरे तौर पर स्वतंत्र होने को तैयार नहीं। इसका मतलब है कि तोता पिंजरे से बाहर निकलने का इच्छुक नहीं है। हैरानगी तो इस बात की है कि इधर सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को सरकारी चंगुल से मुक्त होने का अवसर दे रहा है और उधर सीबीआई सिर्प नौकरशाहों से मुक्त होने की गुहार लगा रही है। उल्टा यह दलील दे रही है कि इससे तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी। इस सन्दर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कोयला घोटाले की जांच के सिलसिले में उसने किस तरह यह दलील दी थी कि उसे सरकार से अपनी जांच साझा करने की इजाजत दी जाए और वह भी तब सुप्रीम कोर्ट ने उसे स्पष्ट रूप से ऐसा करने से मना किया था। बेशक सीबीआई सम्भवत एक मात्र ऐसी जांच एजेंसी है जो खुद को साबित करने और अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए सजग-सक्रिय नहीं है। दुर्भाग्य से यह तब है जब आम जनता यह महसूस कर रही है कि घपले-घोटालों एवं अन्य मामलों की जांच के लिए देश में वास्तव में एक स्वायत्त और विश्वसनीय जांच एजेंसी की आवश्यकता है। सीबीआई अमेरिका की प्रमुख जांच एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन  (एफबीआई) की तर्ज पर बनाई गई थी। एफबीआई बिल्कुल स्वतंत्र जांच एजेंसी है। वह जांच करने के लिए हर तरह से स्वतंत्र है चाहे जांच अमेरिकी राष्ट्रपति तक क्यों न जाती हो? सीबीआई को यह समझ लेना चाहिए कि जब तक खुद को विश्वसनीय नहीं बना सकती जब तक वह सरकार के साये में काम करते रहने की अपनी प्रवृत्ति का परित्याग नहीं  करती है। सीबीआई के इस ढुलमुल रवैये से सुप्रीम कोर्ट भी अनिश्चितता की स्थिति में होगा। इस रवैये को देखते हुए यह फैसला भी अब सुप्रीम कोर्ट को ही करना पड़ेगा कि सीबीआई की स्वायत्तता के मुद्दे पर वह आगे कैसे बढ़े?

-अनिल नरेन्द्र

Friday 20 September 2013

मुजफ्फरनगर दंगों की असलियत का आजतक ने पर्दाफाश किया

हमने जैसा इस कॉलम में लिखा था और सुदर्शन टीवी के एक कार्यक्रम में कहा भी था कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव की सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों को भड़काया और जानबूझ कर समय रहते कार्रवाई नहीं की वह धीरे-धीरे साबित होने लगा है। इन दंगों को लेकर अखिलेश सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। एक तरफ अदालती डंडा, दूसरी तरफ आईबी की रिपोर्ट और रही-सही कसर आज तक के स्टिंग ऑपरेशन ने निकाल दी है। मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सपा सरकार के दौरान हुए सभी दंगों पर सरकार से जवाब-तलब किया। दंगा पीड़ितों की राहत को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले से ही सुनवाई कर रहा है। हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा और जस्टिस अरविन्द कुमार त्रिपाठी की बैंच ने सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर की याचिका पर सपा सरकार में हुए सभी दंगों पर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। राज्य के अपर महाधिवक्ता को सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद बैंच ने दंगों के संबंध में दायर मुकदमों की स्थिति से भी अवगत कराने को कहा गया है। याचिका में मौजूदा सरकार और उसके अधिकारियों पर एक समुदाय के प्रति झुकाव और अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई में शिथिलता बरतने का आरोप है। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दंगों की बाबत याचिका पर सुनवाई करेगा। अब बात करते हैं इंटेलीजेंस ब्यूरो यानि आईबी की रिपोर्ट की। आईबी ने मुजफ्फरनगर दंगों पर एक रिपोर्ट दी है जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो सांप्रदायिक हिंसा हुई उसके बारे में खुफिया ब्यूरो ने अगस्त माह में उत्तर प्रदेश सरकार को आगाह किया था। कुछ और राज्यों को भी इस संबंध में चेताया गया था। इसके कुछ दिन बाद गृह मंत्रालय ने भी बिहार, मध्य प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश को भी एडवाइजरी जारी कर कहा था कि गणेश चतुर्थी के दौरान सांप्रदायिक हिंसा का खतरा है। दंगों पर आईबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुजफ्फरनगर का दंगा रुक सकता था, लेकिन सरकार ने ही पुलिस प्रशासन के हाथ बांध दिए थे। अलर्ट के बावजूद संबंधित इलाकों में न तो फोर्स बढ़ाई गई और न ही कोई एक्शन प्लान बना। आईबी सूत्रों के मुताबिक कवाल के तिहरे हत्याकांड के बाद यदि निष्पक्ष कार्रवाई  होती तो बवाल नहीं बढ़ता लेकिन सरकार में नम्बर दो की हैसियत वाले एक मंत्री ने पुलिस प्रशासन को कार्रवाई न करने के निर्देश दिए थे। आईबी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की हिंसा को सुनियोजित बताया है जो अधिक चिन्ताजनक है। इसका असर पूरे देश में पड़ सकता है। मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में हुई हिंसा पर सिलसिलेवार अगर नजर डालें तो यह हूबहू ऐसी ही नजर आती है मानो इसकी बाकायदा पटकथा लिखी गई हो। जिस छोटी घटना के बाद यह बड़ी हिंसा हुई वैसी घटनाएं तो पश्चिम उत्तर प्रदेश में साल में दो दर्जन से ज्यादा घटती हैं। वहां इससे पहले किसी भी ऐसी  छोटी घटनाओं ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप नहीं लिया। इसी वजह से सभी को और आईबी को शक है कि यह हिंसा सुनियोजित थी। बड़ी पंचायतें भी शक के घेरे में हैं क्योंकि तनाव के माहौल के बीच भारी भीड़ जुटी और उसमें भड़काऊ भाषण हुए। इसके साथ-साथ पाकिस्तान की चार साल पुरानी सीडी का पहले सोशल मीडिया पर डालना और उससे अफवाहों का गरम होना भी पूरी तरह सुनियोजित लगता है। जब इसे सोशल मीडिया पर रुकवाया गया तब यह बड़ी तादाद में लोगों के बीच बंटने लगी। इस सीडी को लेकर पुलिस प्रमुख की अपील अभी तक अखबारों में छप रही है कि यह सीडी पाकिस्तान की है और सालों पुरानी है। जिससे जाहिर होता है कि पुलिस भी महसूस कर रही है कि उक्त सीडी ने जहर का बीज बोने में बड़ी भूमिका निभाई। इस सीडी का बड़े पैमाने पर आना और कई जिलों में बड़ी तादाद में बंटना सुनियोजित नहीं है तो और क्या है? 80 हजार लोगों को पंचायत के बाद घर वापसी के दौरान लोगों पर घात लगाकार कई स्थानों पर हमला होना क्या इस पूरे वाकया को सुनियोजित नहीं बताता? मौके से एके-47 के खोखों का मिलना भी यही इशारा कर रहे हैं कि साजिशकर्ता पूरी तैयारी से थे। दंगे की जड़ रहे कवाल कांड के बाद सपा नेताओं के सियासी दबाव ने किस तरह पुलिस-प्रशासन के हाथ बांध दिए थे उसकी पुष्टि आज तक के स्टिंग ऑपरेशन ने उजागर और साबित कर दिया है। मंगलवार और बुधवार को आज तक टीवी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन का प्रसारण किया तो पुलिस-प्रशासन और सियासी हलकों में खलबली मच गई। खुफिया कैमरे में सीओ जानसठ जगतराम जोशी और एसडीएम आरसी त्रिपाठी के अलावा एसपी क्राइम कल्पना सक्सेना, एसओ फुगाना आरएस गौर, एसओ शाहपुर सत्य प्रकाश सिंह, एसएचओ रामपाल सिंह, एसएचओ मीरपुर एके गौतम और हटाए गए इंस्पेक्टर बुढ़ाना ऋषिपाल सिंह भी बोलते नजर आ रहे हैं। वह साफ कहते दिखाई दे रहे हैं कि कवाल में शाहनवाज और मलिकपुर में सचिन और गौरव की हत्या के बाद तलाशी अभियान चलाकर सात संदिग्ध आरोपियों को हिरासत में लिया था। तभी एक कद्दावर सपा नेता ने फोन कर सातों को छुड़वा  दिया। एफआईआर भी फर्जी कराई गई। एसएचओ मीरपुर बोल रहे हैं कि सपा नेता ने डीएम-एसएसपी को हटवाया जबकि दोनों अधिकारी अच्छा काम कर रहे थे, चैनल के सनसनीखेज खुलासे के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार और खासतौर पर आजम खान ने स्टिंग ऑपरेशन को ही फर्जी (कट एंड पेस्ट) बता दिया। अगर यह सीडी फर्जी है, कट एंड पेस्ट है तो अखिलेश और आजम खान बताएंगे कि उन्होंने उन पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों करनी शुरू कर दी जो इस रिपोर्ट में है? मंगलवार किसी का तबादला कर दिया गया तो किसी को लाइन अटैच करने के आदेश जारी कर दिए गए। आठ सितम्बर को फुगाना इलाके में सबसे ज्यादा लोग मारे गए। थाने के सैकेंड अफसर आरएस मगौर ने बताया कि कम से कम 16 लोगों की मौत हुई। उन्होंने बताया कि मौके पर पुलिस फोर्स बहुत कम थी। उनके पास असलाह भी नहीं है और जो हैं वह चलते ही नहीं... जो चल गया तो मानो ऊपर वाले की कृपा है। अगर ऊपर वाला गुस्सा हो जाए तो वो भी नहीं चलेगा। स्टिंग ऑपरेशन से यह भी साबित हुआ कि सपा सरकार ने दंगा बढ़ाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। दंगा प्रभावित इलाके के एक पुलिस अफसर ने स्टिंग में बताया कि लखनऊ से सपा के बड़े नेता आजम खान का फोन आया। इसके बाद सभी आरोपियों को छोड़ना पड़ा। नेता ने कहा, `जो हो रहा है होने दो।'

-अनिल नरेन्द्र

Thursday 19 September 2013

अग्नि-5 के सफल परीक्षण से चीन समेत आधी दुनिया जद में

सीमा पर पड़ोसी देशों की आक्रामकता और ओच्छी हरकतों से फैली निराशा को अग्नि-5 के दूसरे सफल परीक्षण ने खत्म करने में मदद जरूर की है। नहीं तो आए दिन चीन और पाकिस्तान कुछ न कुछ उल्टी सीधी हरकत करते ही रहते थे। बड़े विमानों के बाद अब स्वदेशी तकनीक से निर्मित 5000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली अन्तर महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम-इंटर कांटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल) अग्नि-5 का रविवार को ओडिसा के व्हीलर द्वीप का सफल परीक्षण निश्चित रूप से हमारी सैन्य शक्ति में न केवल एक बड़ी उपलब्धि है बल्कि हमारी सेनाओं के गिरते मनोबल को थामने में मरहम का काम करेगा। इस मिसाइल की मारक क्षमता 5000 किलोमीटर से अधिक है जिसका सीधा मतलब है कि इससे पूरे चीन में कहीं भी और यूरोप में निशानों को अब हम भेद सकते हैं। आईसीबीएम विकसित करने की क्षमता अभी केवल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के पास ही थी। चीन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और ब्रिटेन। कल्ब में शामिल होने वाले हम छठे देश हैं। अग्नि-5 की विशेषज्ञता यह भी है कि इसमें एक ही बार में कई परमाणु अस्त्राsं को दागा जा सकता है। यह एमआईआरवी (मल्टीपल इंडिपेंटडेंटली टारगेटबल रिएंट्री व्हीकल) तकनीक से लैस है। एमआईआरवी पेलोड उसे कहते हैं जिसमें किसी मिसाइल से एक ही बार में कई परमाणु हथियारों को ले जाने की क्षमता होती है। इन परमाणु हथियारों से अलग-अलग लक्ष्य को भेदा जा सकता है। कैनिस्टर लांचिंग सिस्टम इसकी एक और खासियत है। इसके चलते सेना अपनी सुविधानुसार इसे सड़क मार्ग द्वारा ले जाकर कहीं भी तैनात कर सकती है। इससे पहले की अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों में यह सहूलियत नहीं है। पिछले साल इस मिसाइल का पहला परीक्षण किया गया था। अग्नि-5 से पहले सेना के अस्त्राsं में अग्नि की चार मिसाइलें शामिल हो चुकी हैं। अगर हम अपने दो पड़ोसियों से अपनी मिसाइल ताकत को मिलाए तो चीन हमसे अब भी आगे है। चीन की डीएफ-31 7,250 किलोमीटर क्षमता रखती है और उसकी डीएफ-31ए 11,270 किलोमीटर तक मार कर सकती है। पाकिस्तान से अब हम आगे हैं। पाकिस्तान की गौरी-2 2300 किलोमीटर तक क्षमता रखती है जबकि शाहीन-2 2500 किलोमीटर तक मार कर सकती है। अग्नि-5 20 मिनट में 5000 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकती है और डेढ़ मीटर तक के लक्ष्य पर भी निशाना साध सकती है। रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने कहा कि अग्नि-5 मिसाइल सभी पैमानों पर खरी उतरी है।  80 फीसद से ज्यादा स्वदेशी उपकरणों से बनी इस मिसाइल ने भारत को नाभिकीय बम के साथ सुदूर लक्ष्य पर सटीक वार करने वाली अतिजटिल तकनीक का रणनीतिक रक्षा कवच दिया है। इसके जरिये भारत अपने किसी भी हमलावर को भरोसेमंद पलटवार क्षमता के साथ मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। इस मिसाइल से भारत जरूरत पड़ने पर चीन के किसी भी इलाके में वार कर सकेगा। सतह से सतह पर मार करने वाली यह मिसाइल पूरे एशिया, ज्यादातर अफ्रीका व आधे से अधिक यूरोप तथा अंडमान से छोड़ने पर आस्ट्रेलिया तक पहुंच सकती है। हम डीआरडीओ व तमाम भारतीय वैज्ञानिकों को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर अपनी बधाई देते हैं। उम्मीद करते हैं कि इस सफल परीक्षण का मतलब हमारे पड़ोसी भी समझेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक रामसेतु को तोड़ने पर तुली यह सरकार

लाखों-करोड़ों हिन्दुस्तानियों की भावनाओं और विरोध को दरकिनार करते हुए रावण वंशी द्रमुक पार्टी और इस हिन्दू विरोधी यूपीए सरकार ने एक बार फिर विवादास्पद सेतु समुद्रम परियोजना को आगे बढ़ाने की इच्छा जाहिर की है। बता दें कि यह सरकार वह सेतु तोड़ना चाहती है जो भगवान राम की सेना को लंका तक पहुंचाने के लिए हनुमान जी ने बनाया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह कहकर कि 25000 करोड़ रुपए की लागत वाली सेतु समुद्रम परियोजना के संबंध में तमिलनाडु सरकार की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया है और उसकी परियोजना पर आगे बढ़ने की मंशा है क्योंकि आरके पचौरी की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति तर्पसंगत और वैधानिक आंकड़े के साथ नहीं आई है। तमिलनाडु सरकार का सुप्रीम कोर्ट में स्टैंड था कि विवादास्पद परियोजना को निरस्त कर दिया जाना चाहिए और केंद्र को समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करना चाहिए जिसने पाया है कि समूची परियोजना आर्थिक और पारिस्थितिकीय दोनों मोर्चों पर व्यावहारिक नहीं है। परियोजना से समुद्रीय जैव विविधता और केंद्र को रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का निर्देश दिए जाने की राज्य सरकार   की दलील के जवाब में केंद्र ने कहा कि इस संबंध में पर्यावरण अनुमति सभी तर्पसंगत कारकों की सतर्प जांच के बाद दी गई और परियोजना सार्वजनिक और आर्थिक मामले में लाभप्रद होगी। दूसरे शब्दों में पैसे की भूखी इस यूपीए सरकार के सामने व्यापारिक लाभ के लिए हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक और पर्यावरण दृष्टिकोण ही नहीं बल्कि सामरिक तौर पर भी अति महत्वपूर्ण रामसेतु को त़ोड़ने के लिए अड़ी हुई है। विकास और व्यापार के सैकड़ों, लाखों, करोड़ों रास्ते हैं पर इस सरकार को न तो हिन्दुओं की भावनाओं, मान्यताओं, परम्पराओं की परवाह है और न ही इस बात की परवाह है कि जिस सेतु को सुनामी तक तोड़ नहीं सकी उसे यह भटके मानव कैसे तोड़ेंगे। हजारों साल से यह सेतु हिन्दुओं की आस्था, विश्वास और पूजा का प्रतीक रहा है। सारी दुनिया में जहां भी हिन्दू हैं सब श्रीराम और रामभक्त हनुमान की पूजा-अर्चना करते हैं पर इस भूखी-नंगी, हिन्दू विरोधी सरकार को इससे कोई फर्प नहीं पड़ता। चूंकि द्रमुक पार्टी का इन्हें केंद्र में समर्थन चाहिए और मोटे पैसों का खेल है, इसलिए इसे तोड़ने पर आमादा है। जयललिता सरकार ने रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग की है। यह बिल्कुल सही मांग है। रामसेतु को विध्वंस करने की जगह केंद्र सरकार को रामसेतु को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की योजना बनानी चाहिए। सेतु समुद्रम परियोजना से कई लाख गुणा आय रामसेतु को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने से होगी। अगर हम सभी आस्था व गौरव के प्रतीकों को विकास और व्यवसायिक प्रसंग से जोड़कर देखेंगे तो देश के अन्दर आस्था रखने या गर्व करने के लिए बचेगा क्या? कल कोई सरकार रामसेतु की तरह ही महात्मा गांधी की समाधि स्थल, राजघाट, संसद भवन, इंडिया गेट, लालकिला, जामा मस्जिद व हिमालय आदि का विध्वंस कर तरह-तरह के व्यापारिक प्रतिष्ठान व विकास योजनाओं की बात भी कर सकती है। हम एक बार फिर केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि वह करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं व विश्वास का आदर करे और इस परियोजना को हमेशा के लिए त्याग दें। राजनीतिक दृष्टि से भी यह मुद्दा यूपीए सरकार के लिए नुकसानदेह हो सकता है। केंद्र सरकार और कांग्रेस की यह विक्षिप्त नीति भाजपा की जड़ों में ऑक्सीजन का काम करेगी? दक्षिण में भाजपा और नरेन्द्र मोदी को नई जमीन तैयार करने का अवसर मिल रहा है। श्री मोदी को इस मुद्दे को उठाना होगा इससे उन्हें मजबूती मिलेगी। भगवान का आशीर्वाद मिलेगा और दक्षिण भारत में पांव जमाने का अवसर। करोड़ों हिन्दुओं का धन्यवाद अलग मिलेगा। अविलम्ब इस मुद्दे को उठाना होगा और इस हिन्दू विरोधी सरकार के इरादों को फेल करना होगा। जय श्रीराम जय श्री हनुमान।


Wednesday 18 September 2013

एबीवीपी ने दिया नरेन्द्र मोदी को पहला तोहफा

दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी द्वारा नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री  पद का उम्मीदवार घोषित करने का कितना नफा-नुकसान होगा इसका फैसला तो भले ही अगले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद ही होगा। फिलहाल तो दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अध्यक्ष सहित तीन पदों पर कब्जा कर शुक्रवार को ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को पहला शानदार तोहफा दिया है। दिल्ली की राजनीति की नर्सरी माने जाने वाले डूसू चुनाव में एबीवीपी की इस धमाकेदार जीत ने युवाओं के रुझान को भी जाहिर कर दिया है। क्योंकि पिछले कुछ समय से एबीवीपी की चमक फीकी पड़ती जा रही थी। वर्ष 2011 में  एबीवीपी से अध्यक्ष पद छिन गया था और 2012 में तो उसे सिर्प संयुक्त सचिव पद ही मिल पाया था। एबीवीपी का साफ कहना है कि इस बार डूसू चुनाव में नरेन्द्र मोदी फैक्टर ने बड़ा काम किया है। एबीवीपी ने अपने सभी प्रत्याशियों के नाम और क्रमांक में मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल किया था। प्रचार के दौरान पोस्टर में भी नरेन्द्र मोदी का चेहरा प्रमुखता से रखा गया था। एबीवीपी के प्रवक्ता साकेत बहुगुणा कहते हैं कि नरेन्द्र  मोदी युवाओं के लोकप्रिय नेता हैं। देश का युवा उनसे बदलाव की उम्मीद रखता है। डीयू के छात्रों को भी यही उम्मीद है और इसीलिए जमकर मतदान हुआ है। क्या मोदी फैक्टर अगले विधानसभा चुनाव में दिल्ली की शीला सरकार को हराने में मदद करेगा? मुकाबला कांटे का चल रहा है। एबीपी न्यूज-नीलसन सर्वे के मुताबिक तीन बार से सत्ता में काबिज कांग्रेस को इस बार हार का सामना करना पड़ सकता है। सर्वे के मुताबिक भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर आएगी लेकिन किसी भी दल को बहुमत नहीं हासिल होगा। भाजपा को 32, कांग्रेस को 27 और आम आदमी पार्टी को 8 सीटें मिलने की सम्भावना है। तीन सीटें अन्य को मिलेंगी। सर्वे के मुताबिक भाजपा को 34, कांग्रेस को 29 व `आप' को 15 फीसदी वोट हासिल होंगे। सर्वे के नतीजे 14-20 अगस्त के बीच राजधानी के सात हजार से अधिक मतदाताओं से पूछे गए सवाल के जवाब पर आधारित है। यह सर्वे राजधानी की 70 विधानसभा सीटों में से 35 सीटों पर किया गया था। सर्वेक्षण में जो खास बात उभरकर आई है वह है अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम पार्टी के उभरने की और दिल्ली में अपने पांव जमाने की। मुझे विभिन्न इलैक्ट्रॉनिक चैनलों में जाने का अवसर मिलता है। बातचीत में यही फीड बैक मिला है कि आम पार्टी ने दिल्ली के देहाती इलाके में छोटे तबके के वर्ग में अपने पांव जमा लिए हैं। छोटे और मजदूर वर्ग, ऑटो वाले, छात्रों में आम पार्टी को जरूर वोट मिलेंगे। चूंकि आमतौर पर पिछड़ा और छोटा वर्ग व झुग्गी-झोपड़ी के वोट कांग्रेस को जाते हैं इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि वोटों का ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हो सकता है। बेशक भाजपा के भी कुछ वोट कटेंगे पर ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हो रहा है। भाजपा के अगर कुछ वोट कटेंगे तो पार्टी यही उम्मीद करती है कि नरेन्द्र मोदी फैक्टर उसकी भरपायी कर देगा। अभी चुनाव दूर हैं तस्वीर बदलती रहेगी। देखें क्या होता है?
-अनिल नरेन्द्र

17 दिन बाद 6 घंटों के लिए अखिलेश का दंगा प्रभावित इलाके का दौरा

हिंसा प्रभावित लोगों के जख्म पर मरहम लगाने दंगों के 17 दिन बाद आखिर रविवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुजफ्फरनगर पहुंचे। अखिलेश को दंगा पीड़ितों का भारी विरोध झेलना पड़ा। आक्रोशित भीड़ ने जहां अखिलेश के विरोध में जमकर नारेबाजी की तो वहीं कैबिनेट मंत्री आजम खान जिन्दाबाद के भी नारे लगाए। 10.50 बजे रविवार को अखिलेश यादव का हेलीकाप्टर कवाल गांव पहुंचा, यहां उन्हें काले झंडे दिखाए गए और जमकर नारेबाजी हुई। हैलीपैड से सीधे मृतक शाहनवाज के घर पहुंचे और शाहनवाज के पिता से मिले। पिता सलीम कुरैशी ने पुलिस के रवैये की शिकायत की। इस दौरान कुछ लोगों ने दंगों के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा किया। इसके बाद मुख्यमंत्री मलिकपुर पहुंचे और सचिन व गौरव के परिजनों से मिले। गौरव के पिता रविन्द्र ने कहा कि उनके बच्चों की बेरहमी से हत्या की गई और उन्हें भी फर्जी नामजद कर दिया गया है। इसके बाद सीएम कांधला होते हुए बसीकलां के राहत शिविर में पहुंचे। इसके बाद 3.47 बजे सीएम का हेलीकाप्टर पुलिस लाइन में लैंड हुआ। सीएम पत्रकार राजेश शर्मा के घर गए और 4.50 बजे हेलीकाप्टर लखनऊ के लिए रवाना हो गया। इस तरह अखिलेश ने 17 दिन बाद 6 घंटों में दंगा प्रभावित क्षेत्र व लोगों से मिलने की औपचारिकता पूरी कर ली। वहां अखिलेश यादव ने आश्वासन भी ऐसे दिए जो ज्यादा रस्मी थे। उदाहरण के तौर पर मृतक के परिजनों को नौकरी, दस लाख रुपए का मुआवजा, बेघरों को मिलेंगे घर, तोड़े गए घरों की मरम्मत। अखिलेश विपक्ष पर आरोप लगाने में भी पीछे नहीं रहे। विपक्षी दलों ने कराया दंगा। अफसरों ने बरती लापरवाही। बुजुर्गों ने नहीं किया हस्तक्षेप। मीडिया भी संवेदनशील नहीं। रही कार्रवाई की बात तो सीएम ने एसएसपी को निलंबित किया। दंगाइयों पर लगेगा रासुका। कई थानेदारों पर गिरेगी गाज और नपेंगे कई स्थानीय नेता। अधिकृत रूप से इन दंगों में 39 लोगों की मौत को सीएम ने स्वीकार किया पर वास्तविक संख्या कहीं ज्यादा होगी। यूपी की खुफिया एजेंसियों ने सरकार को आगाह किया है कि अगर जल्दबाजी में और गिरफ्तारी भी की गईं तो हिंसा शांत होने की जगह और भड़क सकती है। साथ ही यूपी एलआईयू ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अभी तक मुजफ्फरनगर जनपद और आसपास से करीब 71 लोग लापता हैं जिनका कुछ पता नहीं चला है। गायब लोगों में से 50 फीसदी के बचने की आशंका बहुत कम है। दो दिन पहले गाजियाबाद में धार्मिक सद्भावना एवं विश्व शांति केंद्र के राष्ट्रीय महासचिव कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी के नेतृत्व में सभी धर्मों का एक प्रतिनिधिमंडल राशिद गेट में स्थित मदरसे में पहुंचा। इस मदरसे में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है जो मुजफ्फरनगर दंगों के कारण अपने गांव छोड़कर यहां आए हैं। वो लोग इतने भयभीत हैं कि यह कहने पर कि सरकार यदि सुरक्षा की पूरी गारंटी दे तो क्या वो वापस गांव लौट जाएंगे? वो कहते हैं बिल्कुल नहीं। सरकार की गारंटी पर थोड़ा भी यकीन बचा होता तो हम भागते क्यों? सरकार रातों को तो हमारे साथ सोएगी नहीं। हमारी वर्षों पुरानी दोस्ती में दरार डाली गई और विश्वास एक बार टूट जाए तो फिर उसमें गांठ पड़ ही जाती है। प्रशासन ने माना है कि 38 शरणार्थी शिविरों में इस समय 41,000 से अधिक लोग शरण लेने पहुंचे हैं। इन परिस्थितियों में सूबे में सामान्य स्थिति लौटने में अभी समय लगेगा। अखिलेश यादव की दंगा प्रभावित क्षेत्र का दौरा कुछ खास नहीं कर पाया।


Tuesday 17 September 2013

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना का ही फैसला नहीं सारे देश की यही मांग थी

वसंत विहार गैंगरेप मामले में दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने का फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है। जहां साकेत की विशेष फास्ट ट्रैक अदालत ने पहली बार किसी मामले में फांसी की सजा सुनाई वहीं यह अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना के कार्यकाल में उनके द्वारा सुनाई गई पहली फांसी की सजा है। साकेत अदालत द्वारा भी किसी मामले में सुनाई गई यह फांसी की शायद पहली सजा है। फैसला वही आया जो देश चाहता था। चारों दरिन्दोंöपवन गुप्ता, मुकेश सिंह, विनय कुमार और अक्षय सिंह को सजा-ए-मौत। शुक्रवार 2.30 बजे जज योगेश खन्ना ने जैसे ही कहा `डैथ टू ऑल' कोर्ट रूम में तालियां बज उठीं। पूरा देश इन दरिन्दों के लिए मौत मांग रहा था। पूरे देश को इंसाफ मिल गया। जिस समय कोर्ट में फैसला सुनाया जा रहा था उस वक्त कोर्ट के बाहर जमा सैकड़ों लोग दोषियों को फांसी की सजा की मांग कर रहे थे। जैसे ही खबर आई सब लोग खुशी से चिल्ला पड़े। इसके बाद दोषियों को तत्काल भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच अदालत कक्ष से वापस लाया गया। अभियुक्तों की अदालत में पेशी, सजा सुनाने एवं वापस जेल भेजने की पूरी प्रक्रिया में महज 20 मिनट का समय लगा। फैसला सुनाने के लिए साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज योगेश खन्ना 2.22 बजे अदालत में दाखिल हुए और करीब 4 मिनट में यह ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। शायद यह पहला मौका था  जब फैसला आते ही साकेत कोर्ट के बाहर खड़ी भीड़ जज के समर्थन में जिन्दाबाद के नारे लगाने लगी। खुशी और जोश इतना ज्यादा था कि मुकदमे की कार्यवाही खत्म होने के बाद बाहर निकले सरकारी वकील को भी लोगों ने कंधे पर उठा लिया। दरिन्दों को मौत की सजा सुनाने के बाद जज खन्ना ने ब्रिटिश काल से चली आ रही परम्परा के मुताबिक कलम की निब तोड़ दी। कोर्ट के सूत्रों के अनुसार युवती के खिलाफ हुए आपराधिक मामले की सुनवाई के लिए गठित फास्ट ट्रैक कोर्ट में नियुक्त किए गए जज योगेश खन्ना ने पहली बार मौत की सजा सुनाई है। उन्होंने फैसला सुनाने के बाद 20 पृष्ठों के अपने फैसले पर हस्ताक्षर किए और फिर पेन की निब तोड़ दी। दोषियों ने अपने अमानवीय कृत्य से पूरे देश को सकते में ला दिया। उनको दी जाने वाली सजा उदाहरण बनेगी और उसका समाज में संदेश जाएगा कहा जज महोदय ने। जैसे ही जज ने फैसला सुनाया दुष्कर्मियों के वकील एपी सिंह ने गुस्से में जोर से मेज पर हाथ मारा। जज बाहर जाने लगे तो वकील जोर से चीखा। बोला यह अन्याय है। बाहर निकलकर बोला ः जज साहब आपने सत्यमेव जयते की जगह झूठमेव जयते को अपलोड किया। वकील साहब अपने आपे से बाहर हो गए और आलतू-फालतू दलीलें देने लगे। कहा कि अगर दिल्ली एनसीआर में बलात्कार की वारदातें बन्द हो जाएं तो हम हाई कोर्ट में अपील नहीं करेंगे। यही नहीं यह दोहराने से भी नहीं चूके कि सरकारी दबाव में यह फैसला आया है। जबकि जज साहब ने उनकी हर दलील का जवाब दिया। बचाव पक्ष ने दलील दी कि सभी दोषी कम उम्र के हैं। मुकेश कुमार (26), अक्षय ठाकुर (28), पवन गुप्ता (19) और विनय शर्मा (20) साल के हैं। जज साहब ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई फैसलों को उद्धृत करते हुए कहा कि कम उम्र के दोषियों को पहले भी फांसी सुनाई जा चुकी है। कोलकाता के धनंजय चटर्जी और आतंकी अजमल आमिर कसाब दोनों ही कम उम्र के थे। दरअसल अदालत सभी परिस्थितियों पर गौर करती है। बचाव पक्ष ः इनमें से किसी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। ये गरीब तबके से आते हैं। इनके परिवार को दो जून की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। अदालत ः गरीब होने के आधार पर राहत नहीं प्राप्त की जा सकती है। आखिर किसने उन्हें शराब पीने को कहा था। शिबू बनाम हरियाणा सरकार और कृष्णप्पा बनाम कर्नाटक मामले में अदालत ने ऐसी ही दलील को नकारा था। बचाव पक्ष ः सुप्रीम कोर्ट के अनुसार उम्र कैद नियम है जबकि मौत की सजा उपवाद है। अदालत ः घटना को जिस वहशियाने, घिनौने, वीभत्स और पैशाचिक तरीके से अंजाम दिया गया, वह रौंगटे खड़े करने वाली है। इससे पूरे समाज में रोष पैदा हो गया। यह किसी भी जुल्म का सबसे घिनौना रूप है। पीड़िता के शरीर पर अत्याधिक जख्म दिए गए। इस घटना ने सामाजिक आर्डर को प्रभावित किया। बचाव पक्ष ः इन्हें साजिश रचने के आधार पर दोषी करार दिया गया। ऐसा नहीं है कि हर एक की भूमिका के आधार पर दोषी करार दिया जाए? अदालत ः हमारे अनुसार पेश मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर कैटेगरी का है। क्योंकि दोषियों ने पीड़िता के शरीर के अन्दर लौहे की रॉड और हाथ डाला था। उसकी आंतड़ियां बाहर निकाल दीं। आंतड़ियों पर जख्म के निशान थे। महिला द्वारा बिना उकसाए ही दोषियों ने इस तरह का पशुवत व्यवहार प्रदर्शित किया। यह उनकी मानसिक हैवानियत को दिखाता है। दोषियों ने पीड़िता के साथ गैंगरेप करने के बाद उसे बस के पिछले दरवाजे से बाहर फेंकने की कोशिश की। लेकिन दरवाजा जाम था। इसके बाद उसके बाल पकड़कर घसीटा गया और अगले दरवाजे तक ले जाकर बाहर फेंक दिया। पूरे शरीर के निशान इसकी पुष्टि करते हैं। कुछ जुर्म इस तरह के होते हैं जिनके बारे में समाज को बताना आवश्यक होता है कि इनमें फांसी की सजा मिल सकती है। न्यायाधीश ने कहा कि आए दिनों महिलाओं के खिलाफ जिस तरह अमानवीय अपराध बढ़े हैं, अदालत उसके प्रति अपनी आंखें मूंद नहीं सकती है। ऐसे अपराध को रोकने के लिए कड़ा संदेश दिया जाना आवश्यक है। इसलिए इन जैसे अपराधियों के प्रति रहम बरतने की कोई गुंजाइश नहीं बनती है। आम लोगों के मन में कानून के प्रति भरोसा कायम रहे इसके लिए जरूरी है कि उन्हें अधिकतम सजा मिलनी चाहिए। भगवान समझे जाने वाले डाक्टर भी इन दरिन्दों के लिए मौत की दुआ कर रहे थे। पीड़ित युवती का इलाज करने वाले एक चिकित्सक ने कहा कि अस्पताल प्रशासन इसी फैसले की दुआ कर रहा था। आज दुआ कबूल हुई। पहली बार पूरे मामले पर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीडी अथानी  ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि निश्चित रूप से छात्रा के अन्दर गजब की जीने की इच्छा थी जिसकी वजह से ही कानून में बदलाव हुआ और देश की जनता सड़क से संसद तक पहुंच गई। मामले बहुत आते हैं लेकिन कभी नहीं देखी थी ऐसी बर्बरता। अपील के लिए 30 दिन का समय है। सारा देश चाहता है कि हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट व राष्ट्रपति इन दरिन्दों की अपील पर जल्द से जल्द फैसला करें और हमारा प्रयास होना चाहिए कि इन्हें एक वर्ष में फांसी पर लटका दिया जाए। माननीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना सारे देश की बधाई के पात्र बन गए हैं।
-अनिल नरेन्द्र





Sunday 15 September 2013

हफ्ते में एक दिन शराब की दुकानें बंद क्यों नहीं करते?

कुछ दिन पहले मुझे मेरे कार्यालय में इंद्रप्रस्थ संजीवनी एनजीओ के नेतृत्व में श्री संजीव अरोड़ा और उनके साथी मिलने आए थे। उन्होंने एक जरूरी समाजी विषय उठाया। संजीव जी और उनके साथियों ने एक अभियान चला रखा है कि जब बैंकों, सरकारी दफ्तरों में, मार्केटों में हफ्ते में एक दिन का अवकाश होता है तो क्यों नहीं दिल्ली के शराब ठेकों, दुकानों को हफ्ते में एक दिन बंद किया जाए? शराब भारतीय समाज में जिस तरह से स्वीकार्य होती जा रही है, इसका सेवन जिस रफ्तार से बढ़ रहा है उस पर रोक लगानी चाहिए। इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। महात्मा गांधी भी शराब के खिलाफ थे। आजादी के बाद जैसे-जैसे शराब की खपत बढ़ती गई वैसे-वैसे इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। रोडरेज, रेप, महिलाओं से बढ़ती छेड़छाड़, घरेलू हिंसा में इजाफा इन सबके पीछे कहीं न कहीं छोटे या बड़े रूप में शराब का योगदान है। पिछले दिनों गुड़गांव के एक बार में लगभग 100 नाबालिग बच्चे शराब पार्टी करते पकड़े गए थे। शराब हमारी युवा पीढ़ी का नाश कर रही है। भावना के स्कूल में फेयरवेल पार्टी थी। सभी बच्चे सज-संवर कर आए हुए थे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद 11वीं और 12वीं के बच्चों का डांस का प्रोग्राम था। इस डांस पार्टी में भावना ने देखा कि कई लड़के शराब के नशे में थे। एक दो की तो लड़ाई भी हो गई। भावना ने जब यह बात अपनी मम्मी को बताई तो मां और बेटी एक बार गहरी चिंता में पड़ गईं क्योंकि भावना का भाई भी 12वीं क्लास में पढ़ता था और वह भी अकसर शाम के समय शराब पीकर कर आता था, जिसके कारण घर में काफी कलह होती थी। भावना के पिता रोज शराब पीते थे। आजकल टीनएजर्स एल्कोहलिक बनते जा रहे हैं। श्री संजीव अरोड़ा की मांग है कि दिल्ली में शराब की दुकानों को प्रत्येक मंगलवार को साप्ताहिक अवकाश घोषित किया जाए। इस मांग पर दिल्ली की मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन दिया जा चुका है। इस मांग पर दिल्ली के 23 विधायकों ने अपना लिखित समर्थन भी संस्था को सौंपा है। इस अवसर पर प्रदर्शन में लोगों को हनुमान चालीसा बांटी गई व हनुमान जी का रूप बनाकर लोगों को मंगलवार  को शराब का सेवन न करने के लिए समझाया गया। कमाल की बात तो यह है कि इस अवसर पर शराब की दुकान के मैनेजर व कर्मचारियों ने भी इस मांग का समर्थन करते हुए कहा कि वे भी सातों दिन काम पर नहीं आना चाहते और उन्हें दूसरे कर्मचारियों की तरह एक दिन का अवकाश दिया जाना चाहिए। शराब की दुकानें सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक खुलती हैं। यह समय सीमित होना चाहिए ताकि शराब की उपलब्धता भी सीमित हो सके। श्री अरोड़ा ने बताया कि दिल्ली में कुल 549 शराब की दुकानें चल रही हैं। इनमें 380 सरकारी और 169 निजी दुकानें हैं। दिल्ली सरकार 72 और दुकानें खोलने जा रही है। दिल्ली में बढ़ते अपराधों का एक बहुत बड़ा कारण शराब की आसानी से उपलब्धता भी है। पिछले साल महिला हेल्पलाइन को विभिन्न तरह की 6733 शिकायतें मिली थीं जबकि इस वर्ष जून माह तक ही महिला हेल्पलाइन के पास 5725 शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं। शराब पर रोक लगाना अब जरूरी हो गया है। हमारी युवा पीढ़ी नशे में डूबती जा रही है। हम श्री अरोड़ा और उनके साथियों की इस मांग की कि दिल्ली में हफ्ते में एक दिन शराब बिक्री पर रोक होनी चाहिए का पूरा समर्थन करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

जय केदार उदार शंकर भवं भयंकर दुख हरम् ः केदारधाम में शुरू हुई पूजा

86 दिन बाद हर-हर महादेव से गूंज उठा केदारनाथ धाम। 16/17 जून की जल प्रलय के बाद केदारनाथ धाम एक बार फिर हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठा। बाबा के भक्तों के लिए वहां जाने का रास्ता भले ही अभी नहीं बन पाया हो लेकिन हेलीकाप्टर से पहुंचाए गए लगभग 900 लोगों की मौजूदगी में बुधवार को पूजा शुरू हो गई। 86 दिन बाद शुरू हुई पूजा भैयादूज के कपाट बंद होने तक जारी रहेगी। बुधवार को केदार घाटी में सुबह से ही हल्की बारिश होती रही। इसकी वजह से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पूजा के मौके पर धाम नहीं पहुंच सके। मंदिर के रावल भीमा शंकर लिंग मंगलवार को ही केदारनाथ पहुंच गए थे। पूजा की प्रक्रिया सुबह 7 बजे से शुरू हुई। एक घंटे तक भगवान शंकर का जल व मंत्रों से अभिषेक और शुद्धिकरण यज्ञ किया गया। इसके बाद सुबह 8.30 बजे मंदिर के कपाट खुले। इसके बाद तीर्थ पुरोहितों और शास्त्रियों ने हवन किया। उस दिव्य शिला का भी पूजन किया गया जिसने जल प्रलय के दौरान मंदिर को बचाया था। पूजा की प्रक्रिया दोपहर 12 बजे तक चली। बाढ़ के बाद यह मंदिर 86 दिन बंद रहा और अब भी आम श्रद्धालुओं के लिए नहीं खोला गया है। प्राकृतिक आपदाओं पर इंसान का कोई वश नहीं होता और उत्तराखंड में आई बाढ़ विशेष रूप से विराट और तबाही मचाने वाली थी। जैसे बाढ़ के बाद आम लोगों ने अपनी जिंदगी को संवारना शुरू किया, वैसे ही हिमालय के वासी शिव के मंदिर में ही जीवन लौटा। हिमालय से शिव जी का विशेष संबंध है, इसलिए हिमालय में स्थित इस ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। शिव का घर हिमालय भी उनकी ही तरह है। विराट, बीहड़, शांत और उन्तुंग। हमारे पुरखों ने जब हिमालय में यह तीर्थ बनाए तब उन्हें हिमालय के मौसम और उसके खतरों का तो एहसास रहा होगा, लेकिन इस बात का एहसास शायद न रहा हो कि एक दिन ऐसा भी हो सकता है जैसा 16/17 जून को हुआ। 16/17 जून की जल सुनामी में कितने लोगों की जानें गईं, इसका शायद ठीक-ठीक कभी पता नहीं चल पाए? इस आपदा में 600 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई। हालांकि चर्चा तो यह भी रही है कि केदार घाटी के आसपास के इलाकों में कम से कम 1000 लोग मारे गए हैं। अभी भी जंगलों से शवों का मिलना जारी है। प्रदेश सरकार के पास करीब 4000 लोगों के लापता होने की सूचना दर्ज है। इनमें से कुछ को सरकार ने मुआवजा भी दिया है। आपदा के उन दो दिनों में उत्तराखंड के चार-पांच जिलों में बड़ी विनाश लीला देखने को मिली। इसके चलते केदारनाथ, बद्रीनाथ व गौरीपुंड सहित कई स्थानों पर करीब सवा लाख यात्री फंस गए थे। खराब मौसम के चलते राहत कार्य में भी बहुत कठिनाई आई। लेकिन सेना, अर्द्धसैनिक बलों और अन्य बलों की जांबाजी के चलते इन यात्रियों को कई दिनों की मेहनत के बाद मुक्त कराया गया था। केदारनाथ की पूजा शुरू होने का महत्व केवल उत्तराखंड के  लिए नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए है। लेकिन हम चाहें तो केदारनाथ घाटी और अन्य स्थानों पर हुई त्रासदी से कुछ सीख सकते हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि अगर हिमालय के तीर्थों पर कुछ पाबंदियां लगा दी जाएं तो वह तीर्थ की पवित्रता के लिए भी अच्छा होगा, पर्यावरण के लिए भी और यात्रियों के लिए भी। अगर हम सभी वह गलतियां न दोहराएं तो बेहतर होगा। जिन गलतियों की वजह से उत्तराखंड त्रासदी घटी। एक टाइम था जब तीर्थयात्री केदारनाथ, बद्रीनाथ व अन्य तीर्थों पर सच्ची श्रद्धा, भावना और जज्बे से जाते थे। वह लोग तीर्थ यात्रा में तमाम सुख-सुविधाओं की उम्मीद नहीं करते थे, उनमें कष्ट उठाने का जज्बा और सामर्थ्य था। अब लोग इन तीर्थों पर पिकनिक मनाने जाते हैं और तमाम तरह के उल्टे-सीधे काम करते हैं। उनके लिए तरह-तरह के होटल बन गए, दुकानें खुल गईं। इनसे हिमालय की पवित्रता व पर्यावरण दोनों संकट में पड़ गए। बिजली उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से पहाड़ों को बलास्ट कर खोखला कर दिया गया। बिजली परियोजना के आगे प्राचीन मंदिर (धारी देवी) को भी सारे विरोधों के बावजूद हटा दिया। उम्मीद करते हैं कि अब हम सुधरेंगे। बहरहाल 86 दिन के बाद बाबा केदार के मंदिर में घंटा बजता सुनाई दे रहा है और यह तमाम दुनिया के शिव भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। अभी बहुत काम बाकी है। मुख्य द्वार, गर्भगृह और दोनों बरामदों की सफाई की गई है।  लेकिन चारों ओर अब भी मलबा पड़ा हुआ है। मलबे के कई जगह को टेंट से ढंग दिया गया है। तीर्थ पुरोहितों ने मलबे पर भी मंदिर में आने-जाने के मुख्य मार्ग को ही काम चलाऊ बनाया है। भावना हो तो ऐसी हो कि पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक समर्थकों के साथ 24 किलोमीटर की दुर्गम पैदल यात्रा के बाद देर शाम केदारनाथ पहुंच ही गए। फाटा में दल को प्रशासन ने रोका लेकिन उन्होंने खुद की जिम्मेदारी पर जाने की बात कही और उन्हें जाने दिया। ओम नम शिवाय, हर-हर महादेव।

Saturday 14 September 2013

क्या उत्तर प्रदेश के मुसलमानों का सपा से मोह भंग हो गया है?

मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों ने यूपी की सत्ताधारी अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार की चूलें इस कदर हिला दी हैं कि डेढ़ साल पहले इकट्ठा किया व्यापक जनाधार अब बुरी तरह छिन्न-भिन्न हो रहा है। सपा की इस सरकार को बाहरी विरोध के साथ-साथ अन्दर से उठ रही विरोधी आवाजों से भी जूझना पड़ रहा है। जिन मुसलमानों के वोट के लिए सपा की सरकार बदनाम हुई आज वही मुस्लिम संगठन उनकी सरकार का इस्तीफा मांग रहे हैं, अखिलेश सरकार की नाकामी मुस्लिम संगठनों को बहुत नागवार गुजरी है। मुस्लिम नेताओं का कहना है कि साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार में मुस्लिम समुदाय महफूज नहीं रह सकता। जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने बुधवार को मुजफ्फरनगर का दौरा कर सांप्रदायिक हिंसा में हुई तबाही का जायजा लेने के बाद दिल्ली में कहाöसाफ हो गया है कि अखिलेश सरकार की हुकूमत में मुस्लिम समुदाय के जानमाल की हिफाजत नहीं हो सकती। दंगे से 30 हजार लोग बेघर हुए हैं। जो शिविरों में हैं वे जान गंवाने के डर से गांव लौटने को तैयार नहीं है। वहां राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी हो गया है। कई अन्य मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर अखिलेश सरकार की बर्खास्तगी की मांग की है। जमात-ए-इस्लामी हिन्द के अमीर-ए-आलम मौलाना जलालुद्दीन उमरी ने कहा कि राज्य सरकार चाहती तो दंगे रोक सकती थी लेकिन उसने उसे होने दिया। लोकसभा चुनाव आने वाला है जो सूरत-ए-हाल है, देखिए सपा के साथ क्या होता है? उधर जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के सदर मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि कौन इंकार करेगा कि दंगे न रोक पाने में अखिलेश सरकार की गलती नहीं है। मुजफ्फरनगर में तो 1947 में भी दंगे नहीं हुए थे। अब पीएसी के जवान तलाशी के बहाने मुस्लिम युवकों पर जुल्म ढा रहे हैं। मौलाना ने यह भी कहा कि एक सियासी पार्टी ने रोटियां सेंक लीं। मुस्लिम संगठनों की अखिलेश सरकार से नाराजगी स्वाभाविक है। इन संगठनों को इस नतीजे पर पहुंचने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता कि मुजफ्फरनगर में हिंसा रोकने में यह सरकार नाकाम रही है। अब तो समाजवादी पार्टी के अन्दर भी उनके मुस्लिम नेता सरकार से नाराज होकर घर बैठ गए हैं। सपा के अक्खड़ नेता एवं मुस्लिम चेहरा आजम खान को लेकर एक बार फिर पार्टी और सरकार में तनाव पैदा हो गया है। आगरा में पार्टी के दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आजम खान सारे प्रयासों के बावजूद गैर हाजिर रहे। हालांकि मुलायम सिंह यादव ने आजम खान से आगरा पहुंचने की खुद गुजारिश की थी। खबर है कि मुलायम का फोन भी आजम ने नहीं उठाया। सूत्रों के मुताबिक आजम खान की अखिलेश व पार्टी के बड़े नेताओं से दिलों की दूरियां बढ़ रही हैं। खास बात यह है कि आजम खान के तेवरों से पार्टी आजिज आ चुकी है। पार्टी ने तय किया है कि अब आजम खान को सबक सिखाया जाएगा। इसी के तहत पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने कार्यकारिणी में ही मीडिया से कह दिया कि आजम खान या तो अपने पद की गरिमा समझें वरना इस्तीफा दे दें। रामगोपाल यादव ने मुलायम सिंह और अखिलेश से मंत्रणा के बाद ही इस तरह का बयान दिया होगा। रामगोपाल के बयान के बाद तो पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने आजम खान पर निशाने साधने शुरू कर दिए हैं। पार्टी के दूसरे राष्ट्रीय महासचिव नरेश अग्रवाल ने बड़े दबंग अंदाज में कह डाला है कि कितना भी बड़ा नेता हो, पार्टी से बड़ा नहीं हो सकता। यह बात आजम खान पर भी लागू होती है। अग्रवाल ने मांग कर दी है कि मुलायम सिंह आजम खान पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करें क्योंकि उनके तौर-तरीकों से पार्टी के अन्दर गलत संकेत जा रहा है। नाराजगी जताने वालों में अबू आजमी जैसे मुस्लिम नेता भी रहे। इन लोगों ने मुलायम सिंह से यहां तक कहा कि क्या पार्टी में आपके लिए एक ही मुस्लिम नेता इतना दुलारा है कि वह पार्टी की ऐसी-तैसी करने पर उतारू है, फिर भी आप चुप हैं? पहले शाहिद सिद्दीकी फिर कमाल फारुकी के बाद अब आजम खान जैसे दिग्गज पार्टी को अलविदा कहने को तैयार हैं? आखिर क्यों यह सब हो रहा है? सूत्रों का कहना है कि आजम खान ने मुलायम सिंह को एक शिकायती पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने मुलायम से दस सवाल पूछे हैं जो पूरी तरह मुस्लिम हितों से संबंधित हैं। उन्होंने एक तरह से सपा सरकार पर दोषारोपण करते हुए पूछा है कि जब प्रशासन ने खबर दे दी थी कि मुजफ्फरनगर में बड़ी तादाद में दंगा हो सकता है तो फिर इसे रोकने के एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए और वहां इतनी बड़ी संख्या में खाप पंचायतों का आयोजन क्यों होने दिया? इतना ही नहीं, उन्होंने यह सवाल भी पूछा है कि अल्पसंख्यकों के लिए चुनावी घोषणा पत्र में किए वादों से अभी तक कुछ भी पूरा क्यों नहीं हुआ है? आजम ने यह भी सवाल किया है कि क्या सपा अब संघ या भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद कर रही है? क्या आजम खान इन सवालों का जवाब खुद नहीं जानते या फिर इन बातों को पत्र के माध्यम से पूछने का मकसद इन इल्जामों के साथ सपा से विदाई लेने की तैयारी समझा जाए? इससे पहले सपा से शाहिद सिद्दीकी और कमाल फारुकी जैसे बड़े मुस्लिम चेहरे विदा हो चुके हैं। इन नेताओं की बेरुखी और मुस्लिम नेताओं के आलोचनात्मक बयान अब यह भी दर्शा रहे हैं कि अल्पसंख्यकों का सपा से मोह भंग हो चुका है। क्योंकि यह संदेश लगभग पूरे प्रदेश और उसके बाहर पहुंच गया है कि इन दंगों में ढिलाई सपा सरकार ने जानबूझ कर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए बरती ताकि भाजपा का डर दिखाकर अल्पसंख्यकों को सपा के साथ बांधा रखा जा सके। इसके साथ-साथ मुजफ्फरनगर दंगों से यह भी साबित हो रहा है कि अजीत सिंह के वोट बैंक को तोड़ना। यही वजह है कि अजीत सिंह ने मुजफ्फरनगर दंगों को प्रदेश सरकार  का होने का आरोप लगाया है और इसकी तुलना गुजरात दंगों से कर डाली। अजीत सिंह ने कहा है कि चुनावी फायदे के लिए दंगे करवाए गए हैं। उन्होंने कहा कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जाग गई है और सांप्रदायिक मुद्दों के आधार पर यह सपना पूरा करना चाहते हैं। इस पर किसी ने टिप्पणी की कि मुलायम का सारा परिवार मिलकर एक सूबा तो सम्भाल नहीं पा रहे और सपना देख रहे हैं पूरे देश को सम्भालने का?

-अनिल नरेन्द्र

Friday 13 September 2013

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना का तर्पसंगत, न्यायसंगत ऐतिहासिक फैसला

वसंत विहार गैंगरेप केस में साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना ने एक अत्यंत बहुचर्चित मुश्किल केस में एक अच्छा, तर्पसंगत, न्यायसंगत फैसला सुनाया है। इस केस पर सारे देश की ही नहीं बल्कि दुनिया की नजरें टिकी हुई थीं। जस्टिस खन्ना के फैसले में कोई दोष नहीं दिखा सकता। वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म मामले में अभियुक्त राम सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर व नाबालिग 16 दिसम्बर 2012 की रात अपराध को ही अंजाम देने के लिए घर से निकले थे। इन सभी ने सुनियोजित ढंग से आपराधिक षड्यंत्र रचा। अभियुक्तों का मकसद न केवल सामूहिक दुष्कर्म करना था बल्कि पीड़िता के साथ किए गए घिनौने व अमानवीय कृत्य के बाद पीड़िता व उसके दोस्त की हत्या करना भी था। न्यायाधीश योगेश खन्ना ने 14 तर्कों के फैसले  में वर्णन किया है। ये तर्प इस प्रकार हैं ः अभियुक्त अपराध के मकसद से घर से निकले थे। पीड़िता दोस्त के साथ बस में बैठी तो उन्होंने बस में अन्य व्यक्ति को नहीं बिठाया, क्योंकि वे पीड़िता के साथ वारदात करने का उद्देश्य रच चुके थे। इसमें सभी की राय शामिल थी। पीड़ित शारीरिक रूप से कमजोर थे और अभियुक्त शारीरिक रूप से मजबूत। उन्होंने इसका फायदा उठाया और वारदात को अंजाम दिया। अभियुक्तों को पता था कि वे शारीरिक तौर पर पीड़िता और उसके दोस्त पर हावी हो सकते हैं और इसी के चलते उन्होंने दोनों पर हमला किया। असहाय लड़की व उसका दोस्त कुछ न कर पाए। इस वारदात में जिस तरह लौहे की रॉड का इस्तेमाल हुआ उससे साबित होता है कि यह सब पूर्व नियोजित था। अभियुक्त पीड़िता से सामूहिक दुष्कर्म करना चाहते थे और उस पर काबू पाना चाहते थे। उन्होंने जिस नृशंस तरीके से लौहे की रॉड पीड़िता के नाजुक हिस्सों में डाली एवं उसके शरीर से बच्चेदानी को बाहर निकाला उससे तो यही साबित होता है कि अभियुक्त पीड़िता को मार डालना चाहते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि ऐसा करने से क्या होगा। अभियुक्तों ने पीड़िता व उसके दोस्त पर लौहे की रॉड से हमला किया और पीड़िता को पीछे खींचकर ले गए एवं उसके कपड़े फाड़ डाले। उसके साथ छह अभियुक्तों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। पीड़िता इस कदर असहाय हो गई थी कि वह उन्हें रोक नहीं पाई। यह साबित करता है कि अपराध में सभी की एकराय थी। अभियुक्त रात में सड़क पर बस चला रहे थे। वे बस को यात्रियों के लिए नहीं बल्कि अपराध को अंजाम देने के लिए चला रहे थे। यह घटना अभियुक्तों की इस मनोवृत्ति को साबित करती है। अभियुक्तों ने जिस तरह से पीड़िता के शरीर के अंदरुनी हिस्से को निकाला और बाद में बस को ऐसी जगह रोका, जहां कोई उन्हें देख न सके यह उनका आपराधिक मकसद साबित करते हैं। अभियुक्तों ने पीड़िता व उसके दोस्त को बस के पहिये के नीचे कुचलने की भी कोशिश की। वे इस वारदात को दुर्घटना का रूप देना चाहते थे। ये बातें साबित करती हैं कि अभियुक्त पीड़िता व उसके दोस्त की हत्या ही करना चाहते थे और पूर्व नियोजित ढंग से सबूत भी नहीं छोड़ना चाहते थे। पीड़िता की डाक्टरी रिपोर्ट के अनुसार उसे 18 गम्भीर अंदरुनी चोटें लगी थीं। ये चोटें दर्शाती हैं कि अभियुक्त पीड़िता को मारना ही चाहते थे। अभियुक्तों ने दुर्लभ आपराधिक रणनीति का प्रयोग किया। सोची-समझी साजिश के तहत पीड़िता को सवारी के रूप में बस में चढ़ाया गया और बाद में अपराध को अंजाम दिया गया। मामले में डाक्टर का बयान साबित करता है कि पीड़िता को जो जख्म दिए गए थे उनके कारण उसका किसी भी तरह से बचना मुश्किल था। अभियुक्तों ने यह जख्म दिए थे और वारदात के समय वे इस बात से भलीभांति परिचित थे कि वे क्या कर रहे हैं और इसका परिणाम क्या होगा। पीड़िता के दोस्त का बयान यह साबित करता है कि किस तरह से दोनों को बस में चढ़ाया गया। बाद में पीड़िता व उसके दोस्त पर पहले रॉड से हमला किया गया जब पीड़िता का दोस्त गिर गया तो अभियुक्त पीड़िता को बस में पीछे खींच ले गए। यह पहले ही सुनियोजित कर रखा था कि किस तरह आरोपियों को क्या कार्रवाई करनी है। वारदात के समय बस को रोका नहीं गया बल्कि उसे अभियुक्त लगातार चलाते रहे। ऐसे में बस में घायल एवं असहाय लड़की व उसका दोस्त मदद नहीं पा सके। उन्होंने शोर मचाया मगर किसी ने उनकी आवाज नहीं सुनी। बस को न रोकना आपराधिक साजिश का हिस्सा था। पीड़िता व उसके दोस्त के शरीर पर आई बाहरी चोटें भी गम्भीर थीं। ये चोटें साबित करती हैं कि हमलावर उन्हें मारना ही चाहते थे। माननीय जज महोदय पुलिस और अभियोजन पक्ष की पीठ ठोकने में भी पीछे नहीं रहे। मामले को जल्द हल करने व ठोस साक्ष्य पेश करने पर अदालत ने अपने फैसले में पुलिस व अभियोजन पक्ष की तारीफ की है। अदालत ने कहा कि विशेष अभियोजन अधिकारी बयान कृष्णन, माधव खुराना, एटी अंसारी, राजीव मोहन व अदालत की सहायता के लिए नियुक्त अधिवक्ता राजीव जैन के सहयोग से अदालत को मामले में जल्द निपटाने में काफी मदद मिली। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि जांच अधिकारी से लेकर हर पुलिस कर्मी ने ठीक ढंग से व सही तरीके से साक्ष्य पेश किए, उससे केस को मजबूती मिली। हम न्यायाधीश योगेश खन्ना को इस तर्पसंगत, न्यायसंगत व ठोस फैसले के लिए बधाई देते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल बनाम मोदी ः 2014 चुनाव की बिसात बिछती जा रही है

लीडरशिप को लेकर दोनों कांग्रेस व भाजपा में 2014 की तस्वीर साफ होती जा रही है। भाजपा में बेशक अभी भी श्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में थोड़ी समस्या हो क्योंकि भाजपा के पितामह लाल कृष्ण आडवाणी अभी से मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि मुझे एतराज मोदी की उम्मीदवारी पर नहीं समय पर है। यह घोषणा 5 राज्यों की विधानसभा चुनाव के बाद होना चाहिए और विधानसभा चुनाव वहां के मुख्यमंत्रियों की परफार्मेंस पर ही लड़ा जाना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष, संघ व अन्य नेता उन्हें मनाने में लगे हुए हैं पर देर-सबेर यह पक्का लग रहा है कि भाजपा की ओर से नरेन्द्र मोदी ही पीएम पद के उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस में लीडरशिप की स्थिति साफ होती जा रही है। कांग्रेस  में उपाध्यक्ष राहुल गांधी 2014 लोकसभा चुनाव के प्रधानमंत्री पद के सबसे अच्छे उम्मीदवार हैं। सो 2014 की जंग नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी होगी। कांग्रेस और भाजपा में नेतृत्व को लेकर सांप-सीढ़ी का खेल चल रहा है। जब से कांग्रेस ने देखा कि भाजपा नरेन्द्र मोदी को प्रोजैक्ट करने लगी है तब से पार्टी ने राहुल को मोदी की काट करने के लिए आगे लाना शुरू कर दिया। जब नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाकर उनका कद बढ़ाया तो कांग्रेस ने भी उन्हें पार्टी उपाध्यक्ष बनाकर बता दिया कि यदि भाजपा मोदी को आगे करेगी तो उनके पास राहुल हैं। फिर मोदी ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज आकर अपना आर्थिक विजन सामने रखा तो राहुल ने देश के उद्योगपतियों को सम्बोधित कर वह साबित करने की कोशिश की कि उनके पास भी अर्थव्यवस्था को समझने की क्षमता है। तभी से दोनों नेताओं के बीच परस्पर वाकयुद्ध जारी है। जिस दिन मोदी जयपुर में हुंकार भर रहे थे उसी दिन दिल्ली में राहुल की एक अच्छी रैली हुई। इसमें राहुल खुलकर बोले। राहुल ने कहा कि कांग्रेस केवल विकास नहीं दे रही बल्कि अधिकार दे रही है। विकास व अधिकार में फर्प बताते हुए उन्होंने कहा कि अधिकार देना गारंटी के साथ विकास देना है। कांग्रेस चाहती है कि गरीब इन अधिकारों के बल पर खड़ा हो। राहुल ने कहा कि हमने संसद में भोजन की गारंटी देने की बात की तो विपक्ष ने कहा कि इससे पैसा जाया होगा। अगर गरीबों को भोजन देने से पैसा जाया होता है तो हम ऐसा ही करेंगे। मंगलवार को वह राजधानी के यमुना स्पोर्ट्स काम्पलैक्स में पुनर्वास कॉलोनियों में मालिकाना हक के कागजात बांटने पहुंचे थे। इस मौके पर राहुल ने आधा दर्जन लोगों को पुनर्वास कॉलोनियों में उनके प्लाट के मालिकाना हक के कागजात सौंपे। बुधवार को उदयपुर जिले के सतूम्बर में आदिवासी-किसान सम्मेलन में राहुल गांधी ने एक नई बात कही। इस मौके पर उन्होंने गरीब और आदिवासियों को कांग्रेस का नया नारा देते हुए कहा कि उसे कभी भी भूखा नहीं रहना पड़ेगा बल्कि वह पूरी रोटी खाएगा, 100 दिन काम करेगा और निशुल्क दवाई लेगा और कांग्रेस को सत्ता में लाएगा। उनका कहना था कि पहले पुराना नारा रहा कि आधी रोटी खाएंगे, कांग्रेस को लाएंगे। अब इसकी जरूरत नहीं है। राहुल गांधी ने मेवाड़ की धरा पर कांग्रेस को आदिवासियों और किसानों का सच्चा हमदर्द बताते हुए पूरी रोटी खाएंगे, 100 दिन काम करेंगे, कांग्रेस की सरकार बनाएंगे और देश का विकास करेंगे। जैसा मैंने कहा कि 2014 के चुनावी दंगल में दंगल होगा राहुल बनाम नरेन्द्र मोदी।

Thursday 12 September 2013

रामदेव उवाच ः भोंधू पप्पू नहीं कर सकता देश पर राज

  1. योग गुरु बाबा रामदेव ने एक बार फिर यूपीए सरकार पर बम फोड़ दिया है। शुक्रवार को राजधानी स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में प्रेस वार्ता में रामदेव ने बताया कि उन्होंने यूपीए सरकार के 21 बड़े पापों का पुलिंदा तैयार किया है। उन्होंने कहा कि भारत गरीब नहीं है बल्कि उसे यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गरीब बना दिया है। वर्तमान में देश में लोकतंत्र नहीं रह गया है। इसका नेतृत्व एक केंद्र से हो रहा है, वह है 10 जनपथ। रामदेव ने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत लगातार गिर रही है। महंगाई और भ्रष्टाचार ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। ऐसे में वक्त आ गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वर्तमान केंद्र सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकें। इसके लिए भाजपा के लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी जैसे साहसी व्यक्ति को ही मैदान में उतारा जाना चाहिए। गुरु रामदेव ने डॉ. मनमोहन सिंह को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि यूपीए सरकार और पीएम ने देश को बेचने की तैयारी कर दी है। रामदेव ने कहा कि पांच करोड़ टन का कोयला घोटाला करने वाले पीएम के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि देश में कानून सबके लिए बराबर है। प्रधानमंत्री घोटाला करता है, उसके बाद फाइल भी गायब कर देता है। उसे ईमानदार कौन कह सकता है? रामदेव ने कहा कि देश के विकास के लिए व्यवस्था को बदलना होगा। इसके लिए वह 13 सितम्बर से व्यवस्था परिवर्तन आंदोलन करेंगे। केंद्र सरकार डीजल, पेट्रोल व गैस आदि जरूरी ईंधनों पर 50 प्रतिशत से अधिक टैक्स लगाकर वसूल रही है। देशवासियों से जबरन टैक्स लगाकर उन्हें गरीब बनाने की साजिश रची जा रही है। योग गुरु ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का नाम लिए बगैर कहा कि `भोंदू पप्पू' को देश पर राज करने का अधिकार नहीं है। मोदी को महानायक का दर्जा देते हुए रामदेव ने कहा कि देश को बचाना है तो सत्ता के अधिष्ठान पर कायरों व पापियों का नहीं महानायकों का शासन होना चाहिए। बाबा ने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले उनकी एक बड़ी रैली रामलीला मैदान में होने जा रही है। इसमें चार से पांच लाख लोगों के आने की सम्भावना है। बाबा उस दिन खासे ताव में थे। उन्होंने लगे हाथ देश के संतों को भी नसीहत दे डाली। कहा कि संतों के भेष में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ गई है, जो संताई के अलावा सब कुछ करते हैं। रामदेव के इस बयान से दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक तमाम संत समाज नाराज हो गया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या संतों और गुरुओं को नसीहत देने का ठेका कारोबारी संत रामदेव को मिल गया है? मंडलेश्वर पदवी वाले स्वामी प्रमोदानन्द ने कहा कि रामदेव संतों की इस तरह की नेतागिरी न करें। रामदेव ने संतों के लिए आचार संहिता की वकालत भी की है। इसमें नया क्या है? जो संत भेष में आता है उसके लिए आचरण की नियमांवली तो पहले से ही तय है। गुरु दीक्षा में ही शुद्ध आचरण की सीख दी जाती है। जिस तरह से रामदेव ने उछाली है उससे ऐसा लगता है कि जैसे कोई सरकार संतों के लिए आचार संहिता का फरमान जारी करे। यह स्वामी रामदेव जैसे संत आचार संहिता का सर्टिफिकेट चाहते हैं। स्वामी रामदेव लम्बी चुप्पी के बाद एक बार फिर धमाके से मैदान में उतरे हैं।
  2. -अनिल नरेन्द्र

अनाम अभागी दामिनी उर्प निर्भया मरकर भी नई राह दिखा गई

16 दिसम्बर की रात को कोई भी कैसे भूल सकता है। उस दिन अभागी निर्भया से वसंत विहार में चलती बस में रौंगटे खड़े करने वाला कृत्य हुआ। उस कृत्य ने पूरे देश को हिला दिया। दिल दहला देने वाली इस घटना को मंगलवार को 261 दिन पूरे हो गए। इस घटना के विरोध में देश में ही नहीं, विदेश में भी आवाज उठी। पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए हजारों लोग सड़क पर उतर आए। जनता का जबरदस्त दबाव रंग लाया और सरकार को इस केस की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालत का गठन करना पड़ा। इस मामले में सरकार द्वारा साकेत स्थित फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज योगेश खन्ना ने 130 दिन की सुनवाई में तमाम गवाहों के बयान दर्ज करके अपना फैसला सुना दिया है। 23 साल की लड़की से गैंगरेप पर करीब नौ महीने चले मुकदमे के बाद अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि तमाम आरोपियों ने मिलकर वारदात को अंजाम दिया। विनय शर्मा, पवन कुमार उर्प कालू, अक्षय ठाकुर और मुकेश को कोर्ट ने हत्या, गैंगरेप, डकैती व सबूत नष्ट करने का दोषी माना है। अब उनकी सजा पर बहस चल रही है और फैसला शुक्रवार को आएगा। उन्हें अब या तो उम्र कैद मिलेगी या फिर फांसी। मंगलवार दोपहर करीब 12.30 बजे साकेत स्थित फास्ट ट्रैक कोर्ट के एडीशनल सेशन जज योगेश खन्ना ने अपने 237 पेज का फैसला सुनाया। गौरतलब है कि इस मामले में पांचवें आरोपी राम सिंह की मौत हो चुकी है जबकि छठा नाबालिग आरोपी को तीन साल के लिए सुधार गृह में भेजा जा चुका है। जिन धाराओं के तहत चार आरोपियों को दोषी ठहराया गया है, उनमें हत्या पर अधिकतम फांसी और कम से कम उम्र कैद का प्रावधान है। गैंगरेप मामले में अधिकतम उम्र कैद हो सकती है। हालांकि इस गैंगरेप के बाद बने नए कानून के तहत गैंगरेप के बाद मौत होना या मरणासन्न होने पर फांसी का भी प्रावधान है। कुछ पवित्र आत्माएं ऐसी होती हैं जो मरने के बाद भी नहीं मरतीं। निर्भया भी ऐसी ही पवित्र आत्मा थी, वह मरकर भी नई राह दिखा गई। बेशक निर्भया के लिए न्याय की घड़ी आ गई है, मगर इंसाफ पूरे देश के साथ होगा। 16 दिसम्बर की इस घटना ने ऐसे अपराधों पर देश की नजरें ही बदल डाली और सरकार को मजबूरन कई नए कदम उठाने पड़े। दुष्कर्म रोधी कानून बनाया गया। इसमें गैंगरेप के दोषियों को न्यूनतम 20 साल सजा का प्रावधान, इसे उम्र कैद तक बढ़ाया जा सकता है। पहले न्यूनतम 10 साल सजा थी। आम बजट में महिलाओं की खातिर एक हजार करोड़ रुपए का निर्भया फंड बनाने की घोषणा हुई। इसकी राशि का उपयोग कैसे और किन हालात में हो, इस पर फैसला अभी बाकी है। दिल्ली सरकार ने बलात्कार संबंधी मामलों के लिए सभी जिला अदालतों में फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया। इस समय पांच फास्ट ट्रैक कोर्ट काम कर रही हैं। महिलाएं अपनी सुविधा के अनुसार कहीं भी मामला दर्ज करा सकती हैं। आसाराम पर दर्ज मामला इसी कदम का एक उदाहरण है। सरकार ने दिल्ली के अस्पतालों को निर्देश जारी किया है कि बलात्कार के मामलों में इलाज पहले हो, कार्रवाई बाद में। यह निजी अस्पतालों पर भी लागू है। कई राज्यों में सरकारों ने महिलाओं के लिए विशेष हेल्पलाइन शुरू की। दिल्ली में 181 नम्बर पर महिलाएं शिकायत दर्ज करा सकती हैं। सहमति से संबंध बनाने की उम्र को 18 वर्ष किया गया है। इससे पहले यह 16 साल थी। पीछा करने और घूरने को भी अपराध की श्रेणी में लाया जा चुका है। न्यूनतम 10 साल की सजा अब तेजाब से हमले करने पर मिल सकती है। पीड़िता को आत्मरक्षा का अधिकार देते हुए तेजाब हमले को अपराध के रूप में व्याख्या की गई है। दिल्ली के हर थाने में महिला पुलिस होने को अनिवार्य किया गया। सरकार ने यह भी पुख्ता किया कि महिलाओं से जुड़े अपराधों में महिला अधिकारी ही जांच करें। महिलाओं में साहस बढ़ा है। पिछले साल के मुकाबले इस साल दिल्ली में उत्पीड़न के करीब छह गुना मामले दर्ज हो चुके हैं। वह पवित्र आत्मा जिसे लोग निर्भया भी कहते हैं और दामिनी भी कहते हैं की मौत ने भावनात्मक रूप से जहां देश के लोगों को एक साथ जोड़ दिया था, वहीं अव्यवस्थाओं से ग्रस्त दिल्ली की तस्वीर ही बदल कर रख दी। घटना के बाद पुलिस, स्वास्थ्य एवं प्रशासनिक स्तर पर बहुत से फेरबदल हुए। यह सभी बदलाव मामलों में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा कड़ा रुख अख्तियार करने के बाद हुए। जैसा मैंने कहा कि मरकर भी नई राह दिखा गई निर्भया उर्प दामिनी।




Wednesday 11 September 2013

यूपी की सपा सरकार न केवल दंगा रोकने में विफल रही बल्कि इसे बढ़ाया

27 अगस्त को मुजफ्फरनगर के कवाल गांव की एक छोटी-सी घटना ने इतना भयानक रूप ले लिया कि दंगा थमने का नाम ही नहीं ले रहा। दंगे और उसके बाद सांप्रदायिक हिंसा अब मुजफ्फरनगर से बढ़कर आसपास के इलाकों में भी फैल गई है। अब तक अधिकृत रूप से 31 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है और प्रशासन ने 200 दंगाइयों को गिरफ्तार किया है। सपा सरकार ने केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह तथा रविशंकर प्रसाद सहित अन्य सांसदों को प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने से मना कर दिया है। सवाल यह उठता है कि दंगा रुक क्यों नहीं रहा, इसके पीछे कौन है और उनका उद्देश्य क्या है? इसके साथ यह भी देखना जरूरी है कि पूरे प्रकरण में अखिलेश सिंह यादव की समाजवादी पार्टी कहां खड़ी है? उत्तर प्रदेश में अब तक तीन बार सेना बुलाई गई है दंगों पर नियंत्रण करने के लिए और तीनों बार राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार रही है जिसकी बागडोर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मुलायम सिंह यादव के हाथ में रही है। अखिलेश सरकार बनने के बाद तो जैसे दंगों में बाढ़-सी आ गई है। अब तक 104 सांप्रदायिक दंगे और 35 खूनी संघर्ष हो चुके हैं। खुद मुख्यमंत्री ने मार्च में विधानसभा में 27 दंगों की लिखित जानकारी दी थी। यह दंगे 15 मार्च 2012 से 31 दिसम्बर 2012 के बीच के थे। इनमें 58 लोग मारे जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हालात इस तरह बिगड़ना जितना दुर्भाग्यपूर्ण है, उतना ही चिन्ताजनक यह है कि प्रशासनिक मोर्चे पर अखिलेश सरकार व उनके अधिकारी बुरी तरह फेल हुए हैं। छोटी-सी बात कहां से शुरू हुई। 27 अगस्त को कवाल गांव में एक समुदाय के लड़के ने दूसरे समुदाय की लड़की से छेड़छाड़ की, यह लड़की पड़ोसी गांव मलिकपुर की थी। लड़की के दो भाइयों गौरव और सचिन ने उस लड़के जिसका नाम शाहनवाज था की प्रक्रियास्वरूप हत्या कर दी। जब शाहनवाज के रिश्तेदारों को इसका पता चला तो उन्होंने दोनों भाइयों को बड़ी बेरहमी से मार डाला। बस यहीं से शुरुआत हुई। अगर स्थानीय प्रशासन और पुलिस उसी समय कानूनी कार्रवाई करते और मेलमिलाप की कोशिश करते तो मामला शायद रुक जाता पर पुलिस क्या करती है? वह सचिन और गौरव के परिवार वालों पर एफआईआर दर्ज कर लेती है और शाहनवाज के रिश्तेदारों को साफ छोड़ दिया जाता है। होना यह चाहिए था कि दोनों पक्षों के खिलाफ केस दर्ज होना चाहिए था। इससे स्थानीय लोगों और समुदाय विशेष को यह लगा कि सरकार पक्षपात कर रही है और उन्हें अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी, इसलिए 31 अगस्त को एक महापंचायत करने का फैसला किया गया पर 30 अगस्त को दूसरे समुदाय के लोगों ने ही जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी। सवाल यह उठता है कि पहले तो दोनों पक्षों के खिलाफ समान कार्रवाई नहीं की, फिर 30 अगस्त को हो रहे हमलों को नहीं रोका और फिर 31 अगस्त को महापंचायत की परमिशन भी दे दी? किसी भी स्टेज पर दोनों समुदायों को बिठा कर सुलह करवाने का प्रयास नहीं किया गया। सूबे के राज्यपाल बीएल जोशी ने सूबे की बिगड़ती कानून व्यवस्था की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेज दी है। राज्यपाल ने माना है कि सूबे में सांप्रदायिक तनाव के लिए प्रदेश सरकार का रवैया जिम्मेदार है और हालत उसके काबू से बाहर दिखाई दे रहे हैं। 27 अगस्त को एक लड़की से छेड़छाड़ के मामले में मुजफ्फरनगर के कवाल में तीन लोगों की हत्या के करीब 11 दिन बाद से वहां जिस कदर हालात बिगड़े और कई लोगों की मौत हुई, राजभवन ने इसे बेहद गम्भीरता से लिया है। राज्यपाल का भी मानना है कि अखिलेश सरकार ने समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए। साथ ही प्रशासनिक कामकाज भी ऐसा रहा जिससे हालात बिगड़े। वोट बैंक की राजनीति से यह यूपी की सपा सरकार इतनी ग्रस्त है कि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ बांध रखे हैं। अफसरों से साफ कहा गया कि एक समुदाय विशेष के खिलाफ नरम रवैया अपनाएं। सरकारी नीति के हिसाब से पुलिस भी पक्षपात कर रही है। एक समुदाय विशेष के खिलाफ कार्रवाई करने से डरती है और बचती है। गिरफ्तार भी जो लोग किए जा रहे हैं उनमें अधिकांश दूसरे समुदाय के लोग हैं और समाजवादी पार्टी कानून का शासन स्थापित करने के बजाय अपने समर्थक संप्रदाय का शासन स्थापित करने में लगी है। जब खुद सरकार किसी खास संप्रदाय का पक्षपात करे तो ऐसी सरकार धर्मनिरपेक्ष तो कतई नहीं हो सकती। यह दंगा अचानक नहीं हुआ, तैयारी के साथ हुआ। दंगाइयों के हौसले इतने बुलंद हैं और तैयारी इतनी जबरदस्त है कि गांव में सेना के सामने ही कार्बाइन से फायरिंग की गई। रविवार सुबह गांव कुटवा में यदि सेना न पहुंचती तो मृतकों की संख्या बहुत बढ़ जाती। यहां आपसी गोलीबारी में चार लोगों की जान चली गई। रविवार की सुबह जिस समय जिले के डीएम और एसएसपी सेना के अफसरों के साथ मीटिंग कर रहे थे तब शाहपुर के कुटवा गांव सुलग गया था। यहां के घरों को आग लगा दी गई और चार लोगों की मौत हो चुकी थी। बताया गया है कि चेतावनी पर उपद्रवियों में एक ने कार्बाइन से फायरिंग की। सेना ने जवाबी फायरिंग की और उपद्रवियों को खदेड़ा। यह असला कहां से और कब आया? क्या स्थानीय प्रशासन सो रहा था? अगर मीडिया रिपोर्ट को सही माना जाए तो एक धार्मिक स्थल से हथियार, गोला-बारुद निकला है। कुछ लोगों का मानना है कि इन दंगों के पीछे सियासत है। सपा सरकार के सुपर चीफ मिनिस्टर की यह चाल है। पश्चिमी यूपी अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल का गढ़ है। यहां के मुसलमान और जाट दोनों ही अजीत की पार्टी का चुनाव में समर्थन करते हैं। सम्भव है कि इन दोनों समुदायों को आपस में भी भिड़ाकर अजीत सिंह की पैंठ तोड़ने का प्लान हो? फार ए चेंज हम दिग्विजय भाई से सहमत हैं कि इस कार्यकाल में सपा का रिकार्ड काफी खराब है। वह सांप्रदायिक ताकतों पर लगाम नहीं लगा पा रही है। बसपा सरकार इससे अच्छी थी। हम सवाल करना चाहते हैं कि जब 2002 के गुजरात दंगों में आज तक मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिन-रात कठघरे में खड़ा किया जाता है तो यह स्यूडो सेक्यूलरिस्ट उसी मापदंड व पैमाने पर अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी  सरकार को कठघरे में क्यों नहीं खड़ा करते? यह है ऐसा साफ केस जब राज्य सरकार ने जानते हुए, समझते हुए कार्रवाई इसलिए नहीं की ताकि दंगा भड़के पर अब हमारा अविलम्ब प्रयास यह होना चाहिए कि सब मिलकर पूजा करें, दुआ करें कि हिंसा का यह दौर थमे और अमन-शांति स्थापित हो। पोस्टमार्टम के लिए बहुत समय है। मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, गिरजाघरों, धर्मगुरुओं और स्थानीय नेताओं सबको मिलकर पहला काम हिंसा रोकना और शांति, अमन व चैन स्थापित करना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र