Sunday, 22 September 2013

पहले ही महंगाई की मार से परेशान जनता और पिसेगी

इस यूपीए सरकार को लगता है कि लाखों मजदूर, नौकर पेशा व रोजाना कमाने वाले लोगों की कोई चिन्ता नहीं है। वह दो वक्त की रोटी-रोजी कैसे जुटा पा रहे हैं इसका शायद उसे न तो कोई एहसास है और न ही परवाह। प्याज, सब्जियों, ईंधन, पानी, बिजली, परिवहन सब कुछ महंगा होता जा रहा है। पहले से ही महंगाई से त्रस्त जनता के लिए यह खबर और डराने वाली है कि मुद्रास्फीति दर छह माह के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है और खाद्य उत्पादों की महंगाई 18 फीसदी के पार चली गई है। बीते अगस्त महीने में खाने-पीने की महंगाई तीन साल में सबसे ज्यादा 18.18 फीसदी बढ़ी है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर बढ़कर 6.10 फीसदी पर पहुंच गई है। पिछले साल के मुकाबले इस साल अगस्त में प्याज 245 फीसदी (करीब ढाई गुना) महंगी हुई है, जबकि सब्जियों के दाम 78 फीसदी बढ़ गए। डीजल पर 27 फीसदी और एलपीजी पर करीब 8 फीसदी महंगाई बढ़ी है। वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार कारखानों में बनने वाले सामानों की महंगाई गत अगस्त महीने में सिर्प 1.9 फीसदी बढ़ी लेकिन थोक महंगाई दर में करीब 14 फीसदी महत्व रखने वाली खाने-पीने की चीजों की महंगाई 18 फीसदी बढ़ने से कुल महंगाई दर छह महीने में सबसे ज्यादा रही है। यदि यही स्थिति बनी रही तो आम जनता की मुसीबतें और अधिक बढ़ना तय है। दुखद पहलू यह है कि मौजूदा स्थितियों में जनता किसी भी तरह की राहत की उम्मीद बिल्कुल नहीं रख सकती, क्योंकि सिर उठाती महंगाई के चलते इसके आसार न्यून हो गए हैं कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर सकता है। महंगाई दर में ताजा वृद्धि का कारण प्याज जैसी रोजमर्रा की गरीब आदमी की खुराक के बढ़े दाम तो हैं ही इसके अतिरिक्त सब्जियों और मांस-मछली के दामों में तेजी भी है। यह निराशाजनक है कि तमाम आश्वासनों के बावजूद केंद्र अथवा राज्य सरकारें ऐसा कुछ नहीं कर सकीं जिससे महंगाई नियंत्रित हो। सच तो यह है कि इस बारे में सभी ने अपने-अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसा लगता है कि इसी के साथ बढ़ती महंगाई की परवाह करना भी छोड़ दिया गया है। ऐसा एहसास इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए न तो तात्कालिक उपाय किए जा रहे हैं और न ही दीर्घकालिक। त्यौहारों के सीजन में यह बढ़ती महंगाई दीवाली के उत्साह को भी कम करेगी । कार या कोई टिकाऊ सामान खरीदने की योजना बनाने वाले उपभोक्ता को भी धक्का लग सकता है। बढ़ती महंगाई, गिरता रुपया और धीमी आर्थिक विकास दर ने केंद्र सरकार की चिन्ताओं को और भी बढ़ा दिया होगा। चुनावी वर्ष में महंगाई की बढ़ती दर से सत्तारूढ़ पार्टी के वोटों पर भी सीधा असर पड़ेगा। आज अधिकतर जनता के लिए महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है। इस साल के अन्त तक कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले आठ महीने में लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं। खुद सरकारी आंकड़े यह बता रहे हैं कि भारत में प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपए की फल-सब्जियां और अनाज के रखरखाव के अभाव में, ढुलाई की उचित व्यवस्था न होने के कारण बर्बाद हो जाते हैं। फल-सब्जियों और अनाज की इतने बड़े पैमाने पर बर्बादी जारी रहते महंगाई पर नियंत्रण की आशा ही नहीं की जा सकती। पहले से ही टूटी गरीब आदमी की कमर और टूटेगी।

-अनिल नरेन्द्र

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