Tuesday, 17 September 2013

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना का ही फैसला नहीं सारे देश की यही मांग थी

वसंत विहार गैंगरेप मामले में दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने का फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है। जहां साकेत की विशेष फास्ट ट्रैक अदालत ने पहली बार किसी मामले में फांसी की सजा सुनाई वहीं यह अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना के कार्यकाल में उनके द्वारा सुनाई गई पहली फांसी की सजा है। साकेत अदालत द्वारा भी किसी मामले में सुनाई गई यह फांसी की शायद पहली सजा है। फैसला वही आया जो देश चाहता था। चारों दरिन्दोंöपवन गुप्ता, मुकेश सिंह, विनय कुमार और अक्षय सिंह को सजा-ए-मौत। शुक्रवार 2.30 बजे जज योगेश खन्ना ने जैसे ही कहा `डैथ टू ऑल' कोर्ट रूम में तालियां बज उठीं। पूरा देश इन दरिन्दों के लिए मौत मांग रहा था। पूरे देश को इंसाफ मिल गया। जिस समय कोर्ट में फैसला सुनाया जा रहा था उस वक्त कोर्ट के बाहर जमा सैकड़ों लोग दोषियों को फांसी की सजा की मांग कर रहे थे। जैसे ही खबर आई सब लोग खुशी से चिल्ला पड़े। इसके बाद दोषियों को तत्काल भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच अदालत कक्ष से वापस लाया गया। अभियुक्तों की अदालत में पेशी, सजा सुनाने एवं वापस जेल भेजने की पूरी प्रक्रिया में महज 20 मिनट का समय लगा। फैसला सुनाने के लिए साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज योगेश खन्ना 2.22 बजे अदालत में दाखिल हुए और करीब 4 मिनट में यह ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। शायद यह पहला मौका था  जब फैसला आते ही साकेत कोर्ट के बाहर खड़ी भीड़ जज के समर्थन में जिन्दाबाद के नारे लगाने लगी। खुशी और जोश इतना ज्यादा था कि मुकदमे की कार्यवाही खत्म होने के बाद बाहर निकले सरकारी वकील को भी लोगों ने कंधे पर उठा लिया। दरिन्दों को मौत की सजा सुनाने के बाद जज खन्ना ने ब्रिटिश काल से चली आ रही परम्परा के मुताबिक कलम की निब तोड़ दी। कोर्ट के सूत्रों के अनुसार युवती के खिलाफ हुए आपराधिक मामले की सुनवाई के लिए गठित फास्ट ट्रैक कोर्ट में नियुक्त किए गए जज योगेश खन्ना ने पहली बार मौत की सजा सुनाई है। उन्होंने फैसला सुनाने के बाद 20 पृष्ठों के अपने फैसले पर हस्ताक्षर किए और फिर पेन की निब तोड़ दी। दोषियों ने अपने अमानवीय कृत्य से पूरे देश को सकते में ला दिया। उनको दी जाने वाली सजा उदाहरण बनेगी और उसका समाज में संदेश जाएगा कहा जज महोदय ने। जैसे ही जज ने फैसला सुनाया दुष्कर्मियों के वकील एपी सिंह ने गुस्से में जोर से मेज पर हाथ मारा। जज बाहर जाने लगे तो वकील जोर से चीखा। बोला यह अन्याय है। बाहर निकलकर बोला ः जज साहब आपने सत्यमेव जयते की जगह झूठमेव जयते को अपलोड किया। वकील साहब अपने आपे से बाहर हो गए और आलतू-फालतू दलीलें देने लगे। कहा कि अगर दिल्ली एनसीआर में बलात्कार की वारदातें बन्द हो जाएं तो हम हाई कोर्ट में अपील नहीं करेंगे। यही नहीं यह दोहराने से भी नहीं चूके कि सरकारी दबाव में यह फैसला आया है। जबकि जज साहब ने उनकी हर दलील का जवाब दिया। बचाव पक्ष ने दलील दी कि सभी दोषी कम उम्र के हैं। मुकेश कुमार (26), अक्षय ठाकुर (28), पवन गुप्ता (19) और विनय शर्मा (20) साल के हैं। जज साहब ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई फैसलों को उद्धृत करते हुए कहा कि कम उम्र के दोषियों को पहले भी फांसी सुनाई जा चुकी है। कोलकाता के धनंजय चटर्जी और आतंकी अजमल आमिर कसाब दोनों ही कम उम्र के थे। दरअसल अदालत सभी परिस्थितियों पर गौर करती है। बचाव पक्ष ः इनमें से किसी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। ये गरीब तबके से आते हैं। इनके परिवार को दो जून की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। अदालत ः गरीब होने के आधार पर राहत नहीं प्राप्त की जा सकती है। आखिर किसने उन्हें शराब पीने को कहा था। शिबू बनाम हरियाणा सरकार और कृष्णप्पा बनाम कर्नाटक मामले में अदालत ने ऐसी ही दलील को नकारा था। बचाव पक्ष ः सुप्रीम कोर्ट के अनुसार उम्र कैद नियम है जबकि मौत की सजा उपवाद है। अदालत ः घटना को जिस वहशियाने, घिनौने, वीभत्स और पैशाचिक तरीके से अंजाम दिया गया, वह रौंगटे खड़े करने वाली है। इससे पूरे समाज में रोष पैदा हो गया। यह किसी भी जुल्म का सबसे घिनौना रूप है। पीड़िता के शरीर पर अत्याधिक जख्म दिए गए। इस घटना ने सामाजिक आर्डर को प्रभावित किया। बचाव पक्ष ः इन्हें साजिश रचने के आधार पर दोषी करार दिया गया। ऐसा नहीं है कि हर एक की भूमिका के आधार पर दोषी करार दिया जाए? अदालत ः हमारे अनुसार पेश मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर कैटेगरी का है। क्योंकि दोषियों ने पीड़िता के शरीर के अन्दर लौहे की रॉड और हाथ डाला था। उसकी आंतड़ियां बाहर निकाल दीं। आंतड़ियों पर जख्म के निशान थे। महिला द्वारा बिना उकसाए ही दोषियों ने इस तरह का पशुवत व्यवहार प्रदर्शित किया। यह उनकी मानसिक हैवानियत को दिखाता है। दोषियों ने पीड़िता के साथ गैंगरेप करने के बाद उसे बस के पिछले दरवाजे से बाहर फेंकने की कोशिश की। लेकिन दरवाजा जाम था। इसके बाद उसके बाल पकड़कर घसीटा गया और अगले दरवाजे तक ले जाकर बाहर फेंक दिया। पूरे शरीर के निशान इसकी पुष्टि करते हैं। कुछ जुर्म इस तरह के होते हैं जिनके बारे में समाज को बताना आवश्यक होता है कि इनमें फांसी की सजा मिल सकती है। न्यायाधीश ने कहा कि आए दिनों महिलाओं के खिलाफ जिस तरह अमानवीय अपराध बढ़े हैं, अदालत उसके प्रति अपनी आंखें मूंद नहीं सकती है। ऐसे अपराध को रोकने के लिए कड़ा संदेश दिया जाना आवश्यक है। इसलिए इन जैसे अपराधियों के प्रति रहम बरतने की कोई गुंजाइश नहीं बनती है। आम लोगों के मन में कानून के प्रति भरोसा कायम रहे इसके लिए जरूरी है कि उन्हें अधिकतम सजा मिलनी चाहिए। भगवान समझे जाने वाले डाक्टर भी इन दरिन्दों के लिए मौत की दुआ कर रहे थे। पीड़ित युवती का इलाज करने वाले एक चिकित्सक ने कहा कि अस्पताल प्रशासन इसी फैसले की दुआ कर रहा था। आज दुआ कबूल हुई। पहली बार पूरे मामले पर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीडी अथानी  ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि निश्चित रूप से छात्रा के अन्दर गजब की जीने की इच्छा थी जिसकी वजह से ही कानून में बदलाव हुआ और देश की जनता सड़क से संसद तक पहुंच गई। मामले बहुत आते हैं लेकिन कभी नहीं देखी थी ऐसी बर्बरता। अपील के लिए 30 दिन का समय है। सारा देश चाहता है कि हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट व राष्ट्रपति इन दरिन्दों की अपील पर जल्द से जल्द फैसला करें और हमारा प्रयास होना चाहिए कि इन्हें एक वर्ष में फांसी पर लटका दिया जाए। माननीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना सारे देश की बधाई के पात्र बन गए हैं।
-अनिल नरेन्द्र





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