Monday 2 September 2013

अंतत मनमोहन सिंह ने मुंह तो खोला पर मुंह की खानी पड़ी

अमूमन मुंह बन्द रखने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इतने आक्रामक रुख में हमने पहले कभी नहीं देखा जैसा कि उस दिन खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, गिरता रुपए के मुद्दे पर रज्यासभा मं देख। देश के गहराते आर्थिकसंक पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को दोनों सदनों में वक्तव्य तो दिया लेकिन कहा नहीं जा सकता कि इस बयान से अर्थव्यवस्था के प्रति बढ़ती नकारात्मक धारणा और भविष्यगत आशंकाओं को दूर करने में मदद मिलेगी। उल्टे उनके बयान से यह संदेश जरूर निकलता है कि आगे की राह और कठिन है और आम लोगों की कठिनाई अभी और बढ़ने वाली है। उम्मीद तो यह की जा रही थी कि डॉ. सिंह मामले की संवेदना समझेंगे और देश को आश्वस्त कराएंगे पर उन्होंने तो उल्टे विपक्ष पर तीखे प्रहार कर दिए। राज्यसभा में तो ऐसा नजारा देखने को मिला जैसे मनमोहन सिंह ने 9 साल के कार्यकाल में पहले कभी देखने को नहीं मिला। उन्होंने गुस्से में कहा कि विपक्ष उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाते हुए शोर मचाता है। दुनिया के किसी देश में ऐसा नहीं होता कि प्रधानमंत्री का सदन में आने पर पीएम को चोर-चोर कहता है। विपक्ष को ही सवालों में खड़ा करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि विपक्ष विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित कर रहा है। वह उनके सामने भारत की नकारात्मक तस्वीर पेश कर रहा है। पीएम के इस हमले का उतना ही तीखा जवाब राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने दिया। अरुण जेटली ने भी सवाल दागा कि क्या आपने किसी देश के बारे में सुना है, जहां विश्वास मत हासिल करने के लिए पैसों से सांसदों को खरीदा जाता हो। पीएम के भाषण के दौरान जेटली जवाब देते रहे। पीएम ः अर्थव्यवस्था का हाल खस्ता है। लेकिन उतनी नहीं। फिलहाल 1991 जैसे आर्थिक संकट की नौबत नहीं आई है। पूरी दुनिया की आर्थिक हालत खराब है। बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। इसका असर हम पर भी पड़ेगा। अरुण  जेटली ः आप वैश्विक कारण गिना रहे हैं? आपको याद नहीं कि दुनिया में हर किसी ने आपकी सरकार को आगह किया था कि निर्णय न लेने की क्षमता और नीति न बनाने के मामले में सरकार के पंगु होने से भारत की साख गिर रही है? निवेशकों का विश्वास घोटालों के कारण उठा है। पीएम ः हमने आर्थिक सुधारों के लिए जो कदम उठाए थे वे उठाए जा चुके हैं। अब जरूरत सब्सिडी कम करने, बीमा और पेंशन सेक्टर में सुधार, नौकरशाही पर अंकुश, जीएसटी लागू करने की है और इसके लिए हमें विपक्ष का सहयोग चाहिए। जेटली ने कहा कि अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेलने के बाद सरकार राजनीतिक सहमति की बात कर रही है? राज्य सरकारों और विपक्ष की आपत्ति के बावजूद जिस तरह सरकार ने 2009-2011 तक फैसले किए उसी से अर्थव्यवस्था का बंटाधार हुआ। पीएम ः भाजपा 2004 और 2009 की हार पचा नहीं पाई है, इसलिए आलोचना करती रहती है। क्या आपने कोई ऐसा देश देखा है, जहां विपक्ष पीएम चोर-चोर के नारे लगाता है? (यह शब्द हटाने से पहले पीठासीन अधिकारी ने मना कर दिया पर बाद में हटा दिया गया)। जेटली ः क्या आपने ऐसा देश देखा है, जहां विश्वास मत के ले प्रधानमंत्री कुछ भी कर सकता है? जेटली का यह शब्द भी विलोपित कर दिया गया। कोल आवंटन घोटाले की फाइलें गायब होने पर मनमोहन सिंह ने कहा ः यह सच है कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। लेकिन सरकार किसी भी दोषी को न तो बचाएगी, न छोड़ेगी, जहां तक कोल खदान आवंटन का मामला है तो उनकी सुरक्षा करना मेरा काम नहीं है। इस पर जेटली ने कहा ः सरकार कोल घोटाले की फाइलें गायब होने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। कोर्ट ने भी फटकार लगा चुकी है। ऐसे में अकेला विपक्ष दोषी कैसे? जेटली ने कहा कि हर फेल होने वाला बच्चा यही दिखाता है कि पूरी क्लास के ही अंक खराब हैं। संप्रग की नीतियों से बीते दो दशक में बनी भारत की विकास गाथा अब गर्त में जा रही है। उनके मुताबिक सरकार स्पष्ट करे कि वह सुधार की नीतियों पर चलना चाहतस्है या सस्ती लोकप्रियता की? आर्थिक हालात सुधारने में सभी साथ आने के आह्वान पर तंज कसते हुए जेटली ने कहा कि सरकार जब मुसीबत में होती है तो उसे लोकतांत्रिक परम्परा और सहमति की फिक्र नजर आती है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री की आक्रामकता का तब कोई मतलब हो सकता था जब वह देश के समक्ष उपस्थित और आम आदमी की उद्वेलित करने वाले सवालों का कोई ठोस जवाब देते। उन्होंने जिस तरह आर्थिक हालात के लिए दूसरों पर दोष मढ़ दिया उसी तरह घपले-घोटाले के लिए एक ढर्रे को जिम्मेदार बताने की कोशिश की। कोयला घोटाले की गुम फाइलों पर सिर्प यह कहने से कि मैं फाइलों का रखवाला नहीं हूं, प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती है। खासकर जब तब कि लम्बे समय तक यह विभाग उनके अधीन रहा हो। उन्हें बताना चाहिए था कि आखिर इस मामले में उनकी सरकार अधिकारियों का बचाव करती क्यों दिख रही है? आखिर कोयले का विषय देश के आयात-निर्यात असंतुलन से नजदीकी तौर पर जुड़ा है। जब देश में जरूरतभर का कोयला मौजूद है, बावजूद हम कोयला का आयात करने पर मजबूर हैं तो जिम्मेदार कौन? सवाल यह भी है कि जिन पर फाइलों की रखवाली की जिम्मेदारी है उनकी जवाबदेही कौन तय करेगा?

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