Saturday 30 March 2024

क्या आईएस खुरासान ने रूस पर हमला किया


रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और उनके प्रभाव वाले मीडिया की ओर से लगातार यह कहा जा रहा है कि शुक्रवार को मॉस्को के थिएटर पर होने वाले हमले की जिम्मेदारी यूक्रेन पर डाली जा सके। लेकिन इस हमले की जिम्मेदारी चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) खुरासान ने स्वीकार की है। हमलावरों ने न केवल क्रॉकस सिटी हाल में मौजूद लोगों पर बंदूकों से हमला किया बल्कि उन्होंने इमारत को भी आग लगा दी। रूस की जांच समिति की ओर से जारी वीडियो में कॉन्सर्ट हॉल का न केवल छत गिरने का दृश्य दिखाया गया है बल्कि बीम भी गिरते देखे जा सकते हैं। इस हमले में 137 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। अंग्रेsजी में इस चरमपंथी संगठन को आईएस कहा जाता है जो कथित इस्लामिक स्टेट खुरासान का संक्षिप्त रूप है। यह संगठन वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित किए गए गुट कथित इस्लामिक स्टेट का ही अंग है। इसका पूरा ध्यान अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान पर केंद्रित है। इस संगठन ने खुद को खुरासान का नाम दिया है क्योंकि जिन देशों में यह सक्रिय है वह क्षेत्र इस्लामी खिलाफत के इतिहास में इसी नाम से जाना जाता था। कथित इस्लामिक स्टेट खुरासान पिछले नौ सालों से इस क्षेत्र में सक्रिय है लेकिन हाल के महीनों में यह मूल इस्लामिक स्टेट की सबसे खतरनाक अनुषांगिक शाखा बनकर उभरी है जो अपनी निर्दयता और अत्याचार की वजह से जानी जाती है। यह अतिवादी संगठन सीरिया और इराक में मौजूद अपने केंद्रीय नेतृत्व के साथ मिलकर इस्लामी दुनिया में कथित खिलाफत की व्यवस्था लाना चाहता है जहां वह अपनी मर्जी के सख्त कानून लागू कर सके। अफगानिस्तान में यह संगठन सत्तारूढ़ समूह तालिबान के खिलाफ भी जंग लड़ रहा है। इस साल इसने काबुल में रूसी दूतावास को भी निशाना बनाया था जिसमें छह लोग मारे गए और कई घायल हो गए थे। इन गिरोह की ओर से पहले अस्पतालों, बस अड्डों, पुलिस अधिकारियों को भी निशाना बनाया जाता रहा है। इस साल जनवरी में इस्लामिक स्टेट खुरासान ने ईरान के राज्य मिरयान में दो आत्मघाती हमलों की भी जिम्मेदारी ली थी जिसमें लगभग 100 ईरानी नागरिक मारे गए थे, रूस की सरकारी मीडिया के अनुसार गिरफ्तार किए गए चारों लोग ताजिक थे जिनका संबंध मध्य एशिया देश ताजिकिस्तान से था जो पहले सोवियत यूनियन का हिस्सा हुआ करते थे। इस्लामिक स्टेट खुरासान की ओर से रूस पर हमला करने की कई वजहें हो सकती हैं। यह संगठन दुनिया के अधिकतर देशों को अपना दुश्मन जानती है। यह रूस, अमेरिका, यूरोप, यहूदी, ईसाई, शिया मुसलमान और मुस्लिम बहुल देशों के शासक भी उसकी दुश्मनी की लिस्ट में शामिल हैं। कथित इस्लामिक स्टेट की रूस से दुश्मनी 1990-2000 के दशक में चेचन्या की राजधानी में रूसी फौज की कार्रवाईयों के कारण भी हो सकती है। हाल के दिनों में रूस ने सीरिया में होने वाले गृह युद्ध में राष्ट्रपति अल-असद का साथ दिया था और रूसी वायुसेना ने वहां अनगिनत बमबारी की थी। इन कार्रवाइयों में बड़ी संख्या में कथित इस्लामिक स्टेट और अलकायदा के लड़ाके मारे गए थे। यह रूस को एक ईसाई देश समझता है और इस ग़िरोह की ओर से मॉस्को पर होने वाले हमले के बाद पोस्ट किए गए वीडियो में ईसाइयों की हत्या की बात भी की गई थी। यह भी हो सकता है कि रूस इस समय यूक्रेन में उलझा हुआ है, ऐसे में रूस एक आसान लक्ष्य लगा हो जहां हथियार भी आसानी से उपलब्ध हों। यह हमला यूक्रेन के लिए समर्थन जुटाने के लिए भी हो सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

भाजपा का बढ़ता आत्मविश्वास


जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है। भाजपा को लगता है कि अब वो अपने दम खम पर ही 370 पार कर लेगी। तभी तो उनके गठबंधन साथियों से रास्ता अलग होता जा रहा है। एक के बाद एक सहयोगी दल भाजपा गठबंधन से अलग होता जा रहा है। यह सिलसिला हरियाणा में जेजेपी से शुरू हुआ, उसके बाद बीजू जनता दल तक पहुंचा और अब शिरोमणि अकाली दल तक फिलहाल पहुंच चुका है। हरियाणा में साढ़े चार साल जेजेपी के साथ गठबंधन सरकार चली पर अचानक भाजपा ने न केवल अपना मुख्यमंत्री बदला बल्कि जेजेपी से भी किनारा कर लिया। इसके बाद आया बीजेडी (बीजू जनता दल) का। भाजपा और बीजेडी के बीच गठबंधन को लेकर दो सप्ताह से चल रही अटकलबाजी तब समाप्त हो गई जब बीजेपी के ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी राज्य के सभी 21 लोकसभा और 147 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। लेकिन जिस सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सामल ने यह घोषणा की, उसी में यह भी संकेत मिला कि भाजपा ने चुनाव बाद बीजेडी के साथ अनौपचारिक समझौते के लिए द्वार खुला रखा है। सामल ने कहा कि ओडिशा अस्मिता, गौरव और लोगों के हित से जुड़े विषयों को देखते हुए यह फैसला किया गया है। दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में बीजेडी ने 114 और लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीती थीं। बीजेडी विधानसभा की 147 में से सौ सीटों पर खुद लड़ना चाहती थी। भाजपा लोकसभा की 21 में से 14 सीटों पर दावेदारी जता रही थी। जबकि विधानसभा की आधी सीटों पर लड़ना चाहती थी। भाजपा के फार्मूले के तहत बीजद को अपने कई विधायकों और सांसदों का टिकट काटना पड़ता। इसके कारण चुनाव से पहले उसे बगावत का डर था। भाजपा ने लोकसभा की कुछ सीटों पर बीजद सांसदों को अपने निशान पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, मगर इस पर सहमति नहीं बन पाई। उधर लोकसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल से पंजाब में भाजपा की सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन सकी और बात टूट गई। पंजाब में जहां अकाली दल की शर्तों के साथ भाजपा के स्थानीय नेताओं की आपत्ति गठबंधन में बाधा बनी, वहीं कहा जा रहा है कि पंजाब में दोनों दलों के बीच सीट की संख्या कोई मुद्दा नहीं थी। अकाली दल ने गठबंधन के लिए किसान आंदोलन के संदर्भ में कुछ ठोस आश्वासन देने और अटारी बार्डर पर व्यापार के लिए खोलने की शर्त रखी। इस पर भाजपा नेतृत्व ने राज्य इकाई के नेताओं से बात की तो ज्यादार नेता गठबंधन के पक्ष में नजर नहीं आए। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ सहित कई नेताओं ने कहा कि भाजपा के समक्ष सिख मतदाताओं के बीच पैठ बनाने का यह बड़ा अवसर है। इसे खोना नहीं चाहिए। इन नेताओं ने लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के भाजपा में शामिल होने पर सहमति देने की जानकारी देते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर सिखों में भाजपा के प्रति नाराजगी नहीं है, ऐसे में पार्टी को मोदी सरकार के कार्यकाल में सिख अस्मिता से जुड़े निर्णयों के सहारे मैदान में उतरना चाहिए। भाजपा का अकेले लड़ने का कितना लाभ होगा, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, जब मतगणना होगी।

Thursday 28 March 2024

जेल से ही चलाएंगे सरकार केजरीवाल


अभी सियासी हलको में यह चर्चा हो रही थी कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के गिरफ्तार होने के बाद दिल्ली की सरकार का क्या होगा? क्या वह इस्तीफा देंगे और कोई दूसरे विधायक को दिल्ली सौपेंगे? या फिर वह तिहाड़ जेल से ही सरकार चलाएंगे। सीएम आवास के बाहर एकत्रित आप नेताओं और कार्यकर्ताओं का साफ कहना था कि केजरीवाल इस्तीफा नहीं देंगे और गिरफ्तारी के बाद भी वे जेल से ही सरकार चलाएंगे। उनका यह कहना ही था कि केजरीवाल जी का पहला आदेश तिहाड़ से आ गया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में रहकर सरकार चलाने के दौरान अपना पहला निर्देश देते हुए जल मंत्री आतिशी को शहर के कुछ इलाकों में पानी एवं सीवर से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए कहा। मंत्री आतिशी ने उनके आदेश को मीडिया के सामने पढ़ा। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने आदेश में कहा कि मुझे पता चला है कि दिल्ली के कुछ इलाकों में पानी और सीवर की काफी समस्याएं हो रही हैं। इसे लेकर मैं चिंतित हूं। चूंकि मैं जेल में हूं इस वजह से लोगों को जरा भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए। गर्मियां आ रही हैं, जहां पानी की कमी है। वहां उचित संख्या में टैंकरों का इंतजाम कीजिए। मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों को उचित आदेश दीजिए ताकि जनता को किसी तरह की परेशानी न हो। जनता की समस्याओं का तुरन्त और समुचित समाधान होना चाहिए। जरूरत पड़ने पर उपराज्यपाल महोदय का भी सहयोग लें। वे भी आपकी जरूर मदद करेंगे। कानून क्या कहता है? जानकार कहते हैं कि गिरफ्तारी पर इस्तीफा देने की कोई बाध्यता नहीं है, क्योंकि गिरफ्तारी होने को दोष सिद्धी नहीं माना जा सकता। ऐसे में किसी सीएम की गिरफ्तारी होने से तुरन्त उनका पद नहीं जा सकता, दूसरी ओर विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि देखना होगा कि जेल से सरकार चलाना कितना प्रेक्टिकल होगा, लोकतंत्र की परंपराओं के कितने अनुरूप होगा। इसके लिए जेल नियमों से लेकर तमाम तरह के पहलुओं पर काफी कुछ निर्भर करेगा। लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचार्य का कहना है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए भी कैबिनेट मीटिंग होती है, लेकिन जहां तक जेल से कैबिनेट मीटिंग या मंत्रियों के साथ मीटिंग का सवाल है तो इसके लिए जेल प्रशासन की मंजूरी जरूरी होगी। अगले जेल प्रशासन से मंजूरी नहीं मिलती तो कैबिनेट की बैठक संभव नहीं हो सकती है। अगर केजरीवाल इस्तीफा नहीं देते हैं तो जेल अथॉरिटी पर काफी कुछ निर्भर करता है। अगर मुख्यमंत्री जेल से सरकार चलाना चाहेंगे और जेल अथॉरिटी इसके लिए इजाजत देगी तो ऐसा किया जा सकता है। एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि पिछले साल उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उनकी एक अर्जी थी कि जो मंत्री जेल जाता है उसे पद से वंचित किया जाना चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो मंत्री को पद से इस्तीफा देना अनिवार्य करता है। उपराज्यपाल के पास किसी भी इमारत को जेल में बदलने की शक्ति है और अगर केजरीवाल उन्हें नजरबंद करने के लिए मना सकते हैं तो इससे उन्हें दिल्ली सरकार के दिन-प्रतिदिन के कामकाज का हिस्सा बनने में मदद मिलेगी। भाजपा उधर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही है।

-अनिल नरेन्द्र

सीजेआई की ट्रोलिंग


प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने उनके साथ हाल ही में हुई उस घटना को याद किया जब एक सुनवाई के दौरान कमर दर्द के कारण उन्हें अपनी कुर्सी ठीक करने की वजह से विवाद खड़ा किया गया और उन्हें ट्रोल किया गया और सोशल मीडिया पर शातिर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। बेंगलूरू में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने न्यायिक अधिकारियों के लिए तनाव प्रबंधन और जीवन शैली व काम के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत पर जोर डाला। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कर्नाटक राज्य न्यायिक अधिकारी संघ द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश के पास काफी काम होता है और परिवार तथा अपनी देखभाल के लिए समय नहीं निकाल पाने के कारण उन्हें उपयुक्त रूप से काम करने की मशक्कत करनी पड़ सकती है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, तनाव का प्रबंधन करना और कामकाज एवं जीवन के बीच संतुलन बनाने की क्षमता पूरी तरह से न्याय प्रदान करने से जुड़ी हुई है। दूसरों के घाव भरने से पहले आपको अपने घाव भरना सीखना चाहिए। यह बात न्यायाधीशों पर भी लागू होती है। उन्हेंने न्यायिक अधिकारियों के 21वें द्विवार्षिक राज्य स्तर सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद अपने एक हालिया व्यक्तिगत अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि एक अहम सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के आधार पर हाल में उनकी आलोचना की गई। उन्होंने कहा, महज चार-पांच दिन पहले जब मैं एक मामले की सुनवाई कर रहा था, मेरी पीठ में थोड़ा दर्द हो रहा था, इसलिए मैंने बस इतना किया थाकि अपनी कोहनियां अदालत में अपनी कुर्सी पर रख दीं और मैंने कुर्सी पर अपनी मुद्रा बदल ली। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर कई टिप्पणियां की गई, जिनमें आरोप लगाया गया कि प्रधान न्यायाधीश इतने अहंकारी हैं कि वह अदालत में एक महत्वपूर्ण बहस के बीच उठ गए। प्रधान न्यायाधीश ने उल्लेख किया उन्होंने आपको यह नहीं बताया कि मैंने जो कुछ किया वह केवल कुर्सी पर मुद्रा बदलने के लिए किया था। 24 वर्षों से न्यायिक कार्य करना थोड़ा श्रमसाध्य हो सकता है जो मैंने किया है। उन्होंने कहा मैं अदालत से बाहर नहीं गया। मैंने केवल अपनी मुद्रा बदली, लेकिन मुझे काफी दुर्व्यवहार ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा... लेकिन मेरा मानना है कि हमारे कंधे काफी चौड़े हैं और हमारे काम को लेकर आम लोगों का हम पर पूरा विश्वास है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों के समान ही तालुक अदालतों में (न्यायधीशों को) सुरक्षा नहीं मिलने के संदर्भ में उन्होंने एक घटना को याद किया जिसमें एक युवा दीवानी न्यायाधीश को बार के एक सदस्य ने धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उसके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया तो वह उनका तबादला करवा देगा। कामकाज और जीवन के बीच संतुलन तथा तनाव प्रबंधन इस दो दिवसीय सम्मेलन के विषयों में से एक था। इस बारे में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि तनाव प्रबंधन की क्षमता एक न्यायाधीश के जीवन में महत्वपूर्ण है। खासकर जिला न्यायाधीशों के लिए। उन्होंने कहा कि अदालतों में आने वाले कई लोग अपने साथ हुए अन्याय को लेकर तनाव में रहते हैं। उन्होंने कहा प्रधान न्यायाधीश के रूप में मैंने बहुत से वकीलों और वादियों को देखा है, जब वे अदालत में अपनी सीमा पार कर जाते हैं इसका उत्तर यह नहीं कि उन्हें अवमानना का नोटिस दें बल्कि यह समझना जरूरी होता है कि उन्होंने यह सीमा क्यों पार की।

Saturday 23 March 2024

चिराग पर मेहरबान पारस को ठेंगा




पारस को ठेंगा भारतीय जनता पाटा (भाजपा) आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार की 17 सीट पर खुद चुनाव लड़ेगी जबकि जनता दल (यूनाइटेड) 16 सीट और चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पाटा (लोजपा) पांच सीट पर चुनाव लड़ेगी। सीट बंटवारे को लेकर हुए समझौते में राजग में शामिल वेंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पाटा के दावे को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है और उसे एक भी सीट नहीं दी गईं। पारस खुद हाजीपुर से लोकसभा सांसद हैं और एलजेपी में दूर होने के बाद पाटा के चार अन्य सांसद भी उनके साथ हैं। पशुपति पारस का कहना है कि मैंने ईंमानदारी से एनडीए की सेवा की। नरेन्द्र मोदी बड़े नेता हैं, सम्मानित नेता हैं लेकिन हमारी पाटा के साथ और व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ नाइंसाफी हुईं है। इसलिए मैं भारत सरकार के वैबिनेट मंत्री पद से त्याग पत्र देता हूं। पशुपति वुमार पारस लोक जनशक्ति (एलजेपी) पाटा के नेता रामविलास पासवान के भाईं हैं। लोक जनशक्ति पाटा के चिराग पासवान को उनके चाचा व वेंद्रीय मंत्री पशुपति वुमार पारस से अधिक महत्व देने के पीछे भाजपा पर चिराग का कोईं दबाव नहीं बल्कि इसके पीछे भाजपा की 400 पार करने की रणनीति है। मौजूदा राजनैतिक परिस्थितियों में चिराग पासवान भाजपा को उनके चाचा पशुपति वुमार पारस से अधिक फायदेमंद दिखाईं दे रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा ने चाचा को दरकिरना कर भतीजे को प्राथमिकता दी है। पशुपति पारस को नजरअंदाज करने के पीछे अब चाचा की जगह भतीजा भाजपा की पहली पसंद हो गईं है। इसके पीछे भाजपा की तीसरी बार सत्ता में आने के लिए भाजपा की चुनावी रणनीति रही है। दरअसल भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा किसी प्राकार का भी जोखिम उठाने की बजाए एक-एक सीट की गहराईं से समीक्षा कर अपनी रणनीति तैयार कर रही है। चिराग को चाचा से ज्यादा महत्व देना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। यह राजनैतिक समीक्षक भी मानते हैं कि जनता के बीच जो राजनीतिक हैसियत चिराग के पिता रामविलास पासवान थी वह पशुपति पारस की नहीं है, अपने भाईं की वृपा से ही पशुपति पारस सांसद बने थे। रामविलास पासवान के निधन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है, ऐसे में रामविलास पासवान के निधन से उनके समर्थकों की सहानुभूति का फायदा पशुपति पारस को नहीं बल्कि चिराग पासवान को ही मिलेगा। एनडीए में पशुपति पारस यह अमान मिलने के बाद जहां यह माना जा रहा था कि वह कोईं बड़ा ऐलान करेंगे लेकिन उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीपे के अलावा कोईं बड़ा ऐलान अभी तक नहीं किया है। यही नहीं इस्तीपे के ऐलान के दौरान उन्होंने प्राधानमंत्री को बड़े पद का नेता बताते हुए उनकी तारीफ भी की। दरअसल पशुपति पारस गुट अभी भी एनडीए व भाजपा से कोईं सम्मानजनक पेशकश की उम्मीद लगाए हुए हैं। यही कारण है कि पारस ने चुपचाप अपमान तो सह लिया लेकिन अभी तक एनडीए व भाजपा के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। भाजपा के वुछ नेता चाहते हैं कि चाचा-भतीजा मिलकर चुनाव लड़े लेकिन भतीजा अंतत: अपने चाचा पर भारी पड़ गया। पशुपति क्या इंडिया एलाइंस में जा सकते हैं? 
——अनिल नरेन्द्र 

पुतिन की रिकार्ड तोड़ जीत

ब्लादिमीर पुतिन पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति चुने गए हैं। अब उनका कार्यंकाल 2030 तक के लिए होगा। इस चुनाव में पुतिन को रिकार्ड 87 फीसदी वोट मिले। इसके पहले चुनाव में उन्हें 76.7 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि उनके सामने कोईं मजबूत प्रातिद्वंद्वी नहीं था। क्योंकि क्रेमलिन रूस के राजनीतिक तंत्र, मीडिया और चुनाव पर कठोर नियंत्रण रखता है। पािमी देशों के कईं नेताओं ने इस चुनाव की आलोचना की है। उनका कहना है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हुए। चुनाव की आलोचना करने वालों में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की भी शामिल हैं। उन्होंने पुतिन को ऐसा तानाशाह बताया है, जिस पर सत्ता का नशा हावी है। 71 साल के हो चुके पुतिन 1999 में पहली बार राष्ट्रपति चुने गए थे। जो जोसेफ स्टालिन के बाद रूस पर शासन करने वाले दूसरे नेता हैं। वो स्टालिन का भी रिकार्ड तोड़ देंगे। यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध तीसरे साल में प्रावेश कर गया है। इस युद्ध में रूसियों की मौत लगातार हो रही है। वहीं इस युद्ध की वजह से पािम के देशों में रूस को अलग-थलग कर दिया है। पत्रकार ओद्रेईं सोलातोव निर्वासन में लंदन में रह रहे हैं। उन्हें 2020 में रूस छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। वह कहते हैं कि पुतिन जानते हैं कि देश में होने वाली हर तरह की राजनीतिक चर्चा को वैसे दबाया जाए। वह कहते हैं कि पुतिन इसमें बहुत अच्छे हैं। वह अपने राजनीतिक विरोधियों को हटाने में सच में बहुत अच्छे हैं। 2024 के चुनाव के मतपत्र पर केवल तीन अन्य उम्मीदवारों के नाम थे। इनमें से कोईं भी पुतिन के लिए वास्तविक चुनौती साबित नहीं हुआ। उन सभी ने राष्ट्रपति और यूक्रेन में जारी युद्ध दोनों के लिए समर्थन दिया। राष्ट्रपति के वास्तविक खतरों को या तो जेल में डाल दिया गया है या मार दिया गया है या किसी अन्य तरीके से हटा दिया गया है। हालांकि क्रेमलिन इसमें किसी भी तरह से शामिल होने से इंकार करता है। राष्ट्रपति चुनाव शुरू होने से ठीक एक महीने पहले पुतिन के सबसे कट्टर प्रातिद्वंद्वी 47 साल के एलेक्सी नवेलनी की जेल में मौत हो गईं थी। उल्लेखनीय है कि 1999 में तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के इस्तीपे के बाद पुतिन पहली बार कार्यंवाहक राष्ट्रपति बने और फिर 2000 में राष्ट्रपति बने थे। संवैधानिक बाधता के चलते जब 2008 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा, तब उन्होंने अपने साथी दिमित्री मेदवेदवे को राष्ट्रपति बनाया और खुद देश के प्राधानमंत्री बन गए। संविधान संशोधन के जरिए पुतिन फिर 2012 और 2018 में राष्ट्रपति बने। फिर 2020 में किए गए संविधान संशोधन में उनका 2036 तक राष्ट्रपति बनने का मार्ग खुल गया है। जाहिर है कि ज्यादातर तानाशाहों की तरह पुतिन भी लंबे समय तक सत्ता में रहना चाहते हैं। चुनाव परिणामों के तुरन्त बाद पुतिन ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर पािमी देशों ने यूक्रेन में अपनी सेना तैनात की तो तीसरा विश्व युद्ध अवश्यभावी है। रूसी राष्ट्रपति की यह बड़ी चेतावनी पर प्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रो के उस बयान के संदर्भ में आया जिसमें उन्होंने यूक्रेन में प्रांस और नाटो के सैनिकों को तैनात करने के बारे में कहा था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी पुतिन को क्रूर, हत्यारा, तानाशाह और युद्ध अपराधी बताया था। पुतिन अगले कईं वर्षो तक मजबूती के साथ सत्ता में बने रहेंगे और अमेरिका व पािमी देशों को इस बात का ध्यान रखना होगा।

Thursday 21 March 2024

चंदा देने वालो के नाम पर चुप हैं राष्ट्रीय पार्टियां!

भारतीय चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रोल बॉन्ड को लेकर राजनीतिक दलों से मिली जानकारी रविवार को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोल बॉन्ड की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से कहा था कि सभी राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग से इलेक्ट्रोल बॉन्ड के बारे में जानकारी. चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों से ये जानकारी लेनी थी कि उन्हें कौन सा बॉन्ड किसने दिया है. बॉन्ड शुरू होने से लेकर सितंबर 2023 तक ये जानकारी चुनाव आयोग को सौंपी गई. एक सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया। अब चुनाव आयोग ने इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है। और उन्हें कब भुनाया गया। जबकि कई पार्टियों ने सिर्फ यह बताया है कि उन्हें किस बांड से कितने रुपये मिले। प्रमुख राजनीतिक दलों में एआईडीएमके, डीएमके और जाट दिल सेक्युलर ने जानकारी दी है कि उन्होंने इलेक्ट्रोल बॉन्ड के जरिए दान दिया है? जबकि सिखम डेमोक्रेटिक फ्रंट और महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी जैसी छोटी पार्टियों ने कहा है कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड के जरिए उन्हें जो चंदा मिला है, वह कलेक्शन से आया है। वहीं आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2019 तक के दानदाताओं का ब्योरा दिया है. जबकि नवंबर 2023 में जब ताजा जानकारी चुनाव आयोग को सौंपी गई तो उसने दानदाताओं की जानकारी नहीं दी. उन्होंने केवल यह बताया कि बांड कितने के थे और उन्हें कब भुनाया गया। 2019 में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि ये बांडधारक बांड हैं। टीएमसी ने यह भी कहा कि ये बांड उसके कार्यालय के पते पर भेजे गए थे . फिर वहां से उन्हें बैंकों में जमा किया गया या हमारी पार्टी के समर्थकों ने इसे गुप्त रखने के लिए किसी और के माध्यम से भेजा था. इस बीच, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने भी कहा कि उनके पटना कार्यालय में चेनवी बांड किसने रखा था. उन्हें नहीं पता हालांकि जेडी एस ने अप्रैल 2019 में प्राप्त 13 करोड़ रुपये में से 3 करोड़ रुपये के दानकर्ता की पहचान का खुलासा किया। लेकिन टीएमसी ने किसी भी दानकर्ता की पहचान उजागर नहीं की। बांड से संबंधित जानकारी देने से संबंधित नियमों का हवाला दिया गया। .बीजेपी ने कहा कि जन प्रतिनिधि कानून के मुताबिक राजनीतिक दलों को हर साल इलेक्ट्रोल बॉन्ड से मिलने वाले पैसे का ब्योरा सार्वजनिक करना होता है. अन्यथा उसे यह जानकारी देनी होगी कि उसे बांड कहां से मिले। बीजेपी ने यह भी कहा कि आयकर अधिनियम के तहत पार्टी को केवल उतनी ही जानकारी देनी है, जितना कानून के तहत है। पार्टी के लिए यह देना जरूरी नहीं है। इलेक्ट्रोल बॉन्ड देने वालों के बारे में जानकारी इसलिए उसने यह ब्योरा अपने पास नहीं रखा। कोभानाया और उनके खाते में कितने पैसे आए।

दक्षिण की 129 सीटें होंगी निर्णायक!

आम चुनाव में 5 दक्षिण भारतीय राज्यों की 129 सीटों की भूमिका अहम रहने वाली है. इन दोनों राजनीतिक दलों से काफी उम्मीदें हैं. इन दोनों राजनीतिक दलों के अलावा डीएमके, वाईएसआर, बीआरएस और कम्युनिस्ट पार्टी जैसी स्थानीय पार्टियां भी हैं. क्षेत्रीय पार्टियां भी अपनी क्षेत्रीय सत्ता बचाने की कोशिश कर रही हैं। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ही ऐसे 2 राज्य हैं जहां बीजेपी ने पिछले चुनाव में सीटें जीती थीं। इसमें बीजेपी ने कर्नाटक में 25 और तेलंगाना में 4 सीटें जीती थीं .बाकी 3 राज्यों में तो उनका खाता भी नहीं खुला. इसके बावजूद दक्षिण के राज्यों में बीजेपी के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं. दक्षिण की बाकी 100 सीटों पर बीजेपी ने पिछले 5 साल में काफी काम किया है और इसमें से कुछ सीटें जीतने की भी उम्मीद है। तमिलनाडु में प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष गठबंधन ने पिछली बार अच्छा प्रदर्शन किया था। डीएमके का नेतृत्व कांग्रेस और वाम दलों ने किया था। उसने 39 में से 38 सीटें जीती थीं। बार भी है वहां और उन्हें अपना प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद है. आंध्र प्रदेश में बीजेपी ने केडीपी और जन सेना के साथ गठबंधन किया है. पिछली बार वाईएसआर ने 25 में से 22 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था और टीडीपी केवल तीन सीटें जीत पाई थी. बीजेपी नहीं जीत सकी थी कोई भी सीट जीतें लेकिन इस बार बीजेपी टीडीपी, जिनसेना गठबंधन ने वीएसआर कांग्रेस को चुनौती दी है। इस बार भी तेलंगाना में मुकाबला दिलचस्प होगा। पिछली बार बीआर.एस ने 9, बीजेपी ने 4, कांग्रेस ने 3, एमआईएम ने 1 सीट जीती थी। कुल 17 सीटें हैं. इस बार वहां कांग्रेस सत्ता में है. डीआरएस कमजोर हो गई है. बीजेपी ने भी जमीनी स्तर पर अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश की है. सीटें जीत लीं. कांग्रेस और जेडीएस ने 1-1 सीटें जीतीं, जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती. यह इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर के संकेत हैं. यहां कांग्रेस सत्ता में है और डीके शिव कुमार जैसे नेता हैं. एक चतुर राजनेता कांग्रेस के साथ है. इसलिए बीजेपी के लिए वहां पुराना इतिहास दोहराना मुश्किल होगा. पिछली बार केरल में , कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा, उसने 20 में से 15 सीटें जीतीं। जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और आरएसपी को एक-एक सीट मिली। सफल रही जबकि कम्युनिस्ट पार्टी और आरएसपी ने एक-एक सीट जीती। दो सीटें इंडियन मुस्लिम लीग और एक सीट जीतीं सीएम द्वारा. वहां बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़कर 13% हो गया लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली. बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार यहां उसका खाता खुल सकता है. पूरे देश की तरह बीजेपी का ट्रंप कार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. साथ ही बीजेपी का जोर भी रहेगा. दक्षिण पर हो. कांग्रेस के पास दक्षिण भारत में भी अच्छा प्रदर्शन करने का विकल्प है. राहुल गांधी की पहली यात्रा भी कन्याकुमारी से शुरू हुई. (अनिल नरेंद्र)

Tuesday 19 March 2024

नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह को टिकट


नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में जब राजनाथ सिंह गृहमंत्री के बदले रक्षा मंत्री बने तो उनके सियासी भविष्य को लेकर अटकले तेज हो गई थीं। इसी तरह नितिन गडकरी को बीजेपी के संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से बाहर किया गया तो उनके सियासी भविष्य को लेकर भी कई तरह की बातें होने लगी थीं। शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे हैं और विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो भी कई तरह के सवाल उठने लगे थे। लेकिन बीजेपी ने इन तीनों को 2024 के आम चुनाव में टिकट दिया है। इन तीनों दिग्गजों को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में उतारा है लेकिन आने राले दिनों में सरकार और पार्टी में इनकी हैसियत क्या होगी यह अहम सवाल है। बीजेपी की पिछले दस सालों में पूरी तरह बदल गई है। नेतृत्व नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के हाथों में है। इस लिहाज से संगठन और सरकार में इन्हीं की टीम का दबदबा है। राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान अटल-आडवाणी के नेतृत्व वाली बीजेपी से हैं। राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी खुद भी बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश के विदिशा से नितिन गडकरी को नागपुर से और राजनाथ सिंह को लखनऊ से टिकट दिया गया है। बीजेपी की पहली सूची में नितिन गडकरी का नाम नहीं आने के बाद से यह कहा जाने लगा था कि उनका टिकट कट सकता है लेकिन बीजेपी ने उन्हें नागपुर से एक बार फिर मैदान में उतारा है। शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का सीएम नहीं बनाने के बाद से ही उन्हें केंद्र की राजनीति में भेजे जाने की बातें होने लगी थी। 2019 में सरकार बनने के कुछ समय बाद ही जून में राजनाथ सिंह को कई कमेटियों से बाहर कर दिया गया। लेकिन 24 घंटे के अंदर ही ये फैसला बदल गया। नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह के बारे में बातें कही जा रही थी कि इनका टिकट कट सकता है। लेकिन बीजेपी ने बताया कि वो अब भी इन नेताओं पर दांव खेल रही है। दरअसल बीजेपी इस बीच कुछ भी उथल-पुथल के मूड में नहीं है। उनकी भर कोशिश है कि किस तरह से वो अपनी जीत पक्की कर सकते हैं। बीजेपी किसी भी सीट पर कोई चांस नहीं लेना चाहती। नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह को टिकट मिलना इस बात का भी संकेत हैं कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। बीजेपी अंदर से थोड़ी घबराई हुई है कि वह अब की बार 400 पार तक पहुंच जाएगी। इसलिए बीजेपी अपने ही उस फार्मूले को लागू नहीं कर रही है कि 70 साल से ज्यादा को टिकट नहीं देना है। पार्टी दावा कर रही थी कि पुराने चेहरे बाहर और नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। दरअसल बीजेपी हाईकमान सेफ प्ले करना चाहती है ताकि अधिक से अधिक सीटें हासिल कर सके। नए चेहरों पर इसलिए भी दांव नहीं खेला गया क्योंकि पता नहीं कि वो सीट निकाल पाएं या नहीं। इसलिए पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया जाए। 2013 में जब राजनाथ सिंह पार्टी के अध्यक्ष थे तो उन्होंने ही नरेन्द्र मोदी के नाम की घोषणा पीएम उम्मीदवार के रूप में की थी। उन्हेंने तब एक इंटरव्यू में कहा था ये जरूरी नहीं है कि पार्टी अध्यक्ष लोगों को अपनी तरफ खींचने वाला ही हो और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी हो। राजनाथ सिंह को भी गडकरी की तरह ही राजनीतिक विश्लेषक मोदी कैंप से बाहर मानते हैं। नितिन गडकरी को टिकट मिलने का एक अर्थ यह भी है कि बीजेपी अंदर खाते इस बात पर कांफीडेंट नहीं है कि अब की बार 400 पार। अंदर से पार्टी का विश्वास डगमगा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

क्या गेम चेंजर हो सकता है इलेक्टोरल बॉन्ड?


इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से विपक्ष गदगद है। आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन इंडिया इस मुद्दे को बड़ा हथियार बनाने की तैयारी कर रहा है। विपक्ष के कई नेताओं का मानना है कि अगर विपक्ष ने इसे ठीक से जनता के सामने रखा तो यह गेम चेंजर साबित हो सकता है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस का आरोप है कि वो पहले से ही कह रही है कि सरकार जांच एजेंसियों का डर दिखाकर चंदा वसूल रही है। उनका कहना है कि ऐसी कई कंपनियां हैं जिनको लेकर कहा जा रहा है कि उनकी ओर से दिए जाने वाले चंदे की वजह से जांच एजेंसियों की रेड का डर है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग को बांड खरीददारों की जो लिस्ट सौंपी है। उससे कई अहम जानकारियां सामने आई हैं। सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदने वालों में कई ऐसी कंपनियां शामिल हैं जिनके खिलाफ ईडी और इन्कम टैक्स विभाग की कार्रवाई हो चुकी है। दिलचस्प ये है कि ये कार्रवाईयां बॉन्ड खरीदने के समय के आसपास हुई हैं। फ्यूचर गेमिंग, वेदांता लिमिटेड और मेघा इंजीनियरिंग जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा बॉन्ड खरीदने वालों में शामिल हैं। लेकिन इन कंपनियों की ओर से ये खरीददारी ईडी और इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट की कार्रवाईयों के आसपास हुई हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक खास रिपोर्ट में कहा है कि सिर्फ यही कंपनियां नहीं, करीब दस कंपनियों की बॉन्ड खरीददारी में भी यही पैटर्न दिखता है। अखबार लिखता है कि आरपीएसजी की हल्दिया एनर्जी, डीएलएफ, फार्मा कंपनी हेटरो ड्रग्स, वेल स्पन ग्रुप, डिवीस लेबोरेट्रीज और बायोकॉन की किरण मजूमदार राये ने काफी बॉन्ड खरीदते हैं। लेकिन ये सारी खरीददारी केंद्रीय एजेंसियों की जांच के समय में खरीदे गए हैं। मसलन, इलेक्टोरल बॉन्ड की चौथी सबसे बड़ी खरीददारी हल्दिया एनर्जी पर सीबीआाr ने 2020 में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज किया था। आरपीएसजी ग्रुप की कंपनियां हल्दिया एनर्जी ने 2019 से लेकर 2024 के बीच 377 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। मार्च 2020 में सीबीआई ने हल्दिया एनर्जी और अडानी, वेदांता, जिंदल स्टील बीआईएलटी समेत 24 कंपनियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए। डीएलएफ शीर्ष बॉन्ड खरीददारों में शामिल है। उसने 130 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। सीबीआई ने एक नवम्बर 2017 को सुप्रीम कोर्ट के निदेश के बाद केस दर्ज किया था। 25 जनवरी 2019 को सीबीआई ने कंपनी के गुरुग्राम के दफ्तर और कई ठिकानों पर छापेमारी की थी। इन कार्रवाईयों के बाद डीएलएफ ने 9 अक्टूबर 2019 को बॉन्ड खरीदने शुरू किए। कंपनी ने कुल 130 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। एक बार फिर 25 नवम्बर 2023 को ईडी ने कंपनी के गुरुग्राम में मौजूद दफ्तरों पर छापेमारी की। फार्मा कंपनी हैंरारो बायोलैण्ड के जरिए 60 करोड़ रुपए के बांड खरीदे। ये कंपनी 2021 से इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट की निगरानी में थी। अक्तूबर 2021 में आयकर विभाग ने कंपनी के कई ठिकानों पर छापेमारी की और 140 करोड़ रुपए से ज्यादा का कैश बरामद किया। रोडमैप लेबोरेट्रीज देश की सबसे बड़ी एपीआई मैन्यूफैक्चर्स में शामिल है। इस कंपनी ने 2023 में 55 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। कंपनी के "िकानों पर 14 से 18 फरवरी तक इन्कम टैक्स के छापे पड़े थे। बायोकॉन की शॉ ने 6 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे। ऐसी सूची बहुत लम्बी है। यह शायद ही जनता के सामने आए। पर साफ है कि ईडी इंकम टैक्स, सीबीआई के जरिए न केवल सरकारें गिराई जाती हैं, पार्टी तोड़ी जाती है बल्कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से पार्टियों के फंडिंग भी की जाती है।

Saturday 16 March 2024

हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन


लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हरियाणा में भाजपा और जननायक जनता पार्टी (जजपा) का गठबंधन टूटना, उन चौंका देने वाले अप्रत्याशित निर्णयों की कड़ी में नया जुड़ाव है, जो पिछले काफी समय से भाजपा के केन्द्राrय नेतृत्व की शैली बन गई है। चाहे राजस्थान हो, बिहार हो या मध्य प्रदेश, विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों के नेता जिस तरह भाजपा के प्रति आक्रोशित हो रहे हैं, वह भाजपा की चुनावी तैयारी और गंभीरता को दर्शाता है। ताजा उदाहरण हरियाणा का है। हरियाणा की राजनीति में मंगलवार को दिन की शुरुआत भाजपा व जजपा के गठबंधन में दरार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे की चर्चा के साथ हुई। दोपहर तक खट्टर बाहर हो गए और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी को नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया। इससे एक दिन पहले ही नरेन्द्र मोदी ने खट्टर की जमकर सराहना की थी। इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व ने उन्हें क्यों बदला, यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है। पार्टी विधायक दल की बैठक में खुद मनोहर लाल खट्टर ने अगले मुख्यमंत्री के लिए नायाब सिंह सैनी के नाम का प्रस्ताव रखा। हरियाणा में यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गुरुग्राम के एक कार्यक्रम में हरियाणा के विकास के लिए खट्टर और उनके दृष्टिकोण की सराहना करने के एक दिन बाद हुआ। गुरुग्राम के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने द्वारका एक्सप्रेस-वे के हरियाणा खंड के शुभारंभ में बताया था कि कैसे वह अक्सर खट्टर की मोटर साइकिल पर पिछली सीट पर बैठकर रोहतक से गुड़गांव (अब गुरुग्राम) तक यात्रा करते थे। छोटी सड़कें थीं, लेकिन आज पूरा गुरुग्राम क्षेत्र एक्सप्रेस-वे सहित कई प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा है जो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रगतिशील मानसिकता को दर्शाता है। आज मुख्यमंत्री के नेतृत्व में हर हरियाणावासी का भविष्य सुरक्षित है। हfिरयाणा वासियों का तो भविष्य बेशक सुरक्षित हो पर खुद खट्टर साहब को यह अंदाजा नहीं था कि उनका अपना भविष्य 24 घंटों में बदलने वाला है। इस पूरे घटनाक्रम में अगर कोई फंसा तो वह है जजपा अध्यक्ष व पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला। गठबंधन में होते हुए भी एक-दूसरे को मात देने के लिए चल रहे शह और मात के खेल में आखिरकार जजपा नेता और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला भाजपा के चक्रव्यूह में फंसते चले गए। जजपा को बड़ा झटका देते हुए आनन-फानन में मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा देकर पूरा खेल ही पलट दिया। न तो अधिकारिक रूप से गठबंधन तोड़ने का आरोप लगा और और न ही जजपा का साथ। उल्टा जजपा के 5 विधायकों को भाजपा ने साध लिया है और दुष्यंत के लिए अपनी पार्टी ही टूटने का खतरा पैदा हो गया है। साढ़े चार साल पहले बनी पाटी पर अब संकट के बादल छाए हुए हैं। भाजपा के हरियाणा मामलों के प्रभारी बिल्पब देव ने एक साल पहले ही साफ कर दिया था कि चुनावों में भाजपा जजपा के साथ नहीं चलेगी। बावजूद इसके दुष्यंत चौटाला भाजपा हाईकमान के संपर्क में रहे और गठबंधन में खटपट चलती रही। सबसे बड़ा राजनीतिक संकट दुष्यंत चौटाला के सामने आने वाला है। हालांकि वह यह ऐलान कर चुके हैं कि राज्य की दसों सीट पर वह अपने उम्मीदवार उतारेंगे। गठबंधन तोड़ने के भाजपा के पास और भी कई कारण हैं।

-अनिल नरेन्द्र

सवाल चुनाव से ठीक पहले सीएए लागू करने का


नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लाए जाने के करीब चार साल बाद सोमवार को केन्द्राrय गृह मंत्रालय ने उसे लागू करने की घोषणा कर दी। जब यह कानून लाया गया था, तब इसके खिलाफ काफी लंबा शांतिपूर्ण विरोध हुआ था। शायद इसे नोटिफाई करने में इतनी देर के बाद लाने के पीछे एक तर्क यह हो सकता है कि सरकार चाहती थी कि दोबारा इस मुद्दे पर देश में इस तरह के हालात न बने जैसे चार साल पहले बने थे। केन्द्र सरकार के इस फैसले पर पूरे देश से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, लेकिन सबसे तीखी प्रतिक्रिया पश्चिम बंगाल और असम से आई है। जब 2019 में कानून बना था उस वक्त भी दोनों ही राज्यों में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे। पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सीएए बंगाल में दोबारा विभाजन और देश से बंगालियों को खदेड़ने का खेल है। तृणमूल कांग्रेस के अलावा वामपंथी दलों ने भी इसे चुनावी लॉली पॉप करार दिया है। ममता बनजी ने कहा है कि अगर नागरिकता कानून के जरिए किसी की नागरिकता जाती है तो मैं इसका कड़ा विरोध करूंगी। सरकार किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देगी। ममता ने कहा, यह बच्चों का खेल नहीं है। ममता का सवाल था कि यह कानून साल 2020 में पारित किया गया था। अब सरकार ने चार बाद लोकसभा चुनाव के ऐन पहले इसे लागू करने का फैसला क्यों किया? वहीं उत्तर 24 परगना समेत दूसरे राज्यों में फैले मतुआ समुदाय ने इस पर खुशियां जताई है और उत्सव मनाया है। मतुआ समुदाय के लोग लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि ममता बनजी राज्य में सीएए और एनआरसी लागू होने का पहले से ही विरोध करती रही हैं। उनकी दलील थी कि मतुआ समुदाय के लोग पहले से ही भारतीय नागरिक हैं। अगर नहीं हैं तो उन्होंने अब तक चुनाव में भाजपा को वोट कैसे दिया था? ऐसे में उनको दोबारा नागरिकता कैसे दी जा सकती है? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने भी इस कानून को लागू करने की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर इसे चुनाव से पहले क्यों लागू किया गया है? साफ है कि इसका मकसद चुनावी फायदा उठाना है। दूसरी ओर सीपीएम सचिव मोहम्मद सलीम ने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ममता बनजी के बीच की मिलीभगत का नतीजा बताया है। पत्रकारों से बातचीत में उनका दावा था कि ममता महज दिखावे के लिए इस कानून का विरोध कर रही हैं। उनका कहना था कि केन्द्र ने धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण के लिए चुनाव से ठीक पहले इस कानून को लागू करने का फैसला किया है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इलेक्ट्रोरल बांड से उत्पन्न हुई विस्फोट स्थिति से जनता का ध्यान हटाने के लिए इस कानून को लाया गया है। उधर भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार कहते हैं कि केंद्र सरकार ने हमेशा अपने वादे पूरे किए हैं। केन्द्राrय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने का भरोसा दिया था। अब यह वादा पूरा हो गया है। इस कानून से आतंकित होने की जरूरत नहीं है। चुनावी लाभ-हानि का जो भी गणित हो, यह उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी पक्ष इस मसले पर संवेदनशीलता और संयम बनाए रखें और प्रदर्शन बेशक करें पर कानून व्यवस्था भंग न करें।

Thursday 14 March 2024

तो इसलिए 400 पार का नारा

भाजपा नेता आए दिन 400 पार का नारा देते हैं। इस नारे के पीछे असल मकसद क्या है? इस पर अटकलें लगाईं जा रही हैं। अब एक भाजपा के ही सांसद ने इसके पीछे की रणनीति का खुलासा किया है। भाजपा सांसद अनंत वुमार हेगड़े ने रविवार को कहा कि प्रास्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने के लिए भाजपा संविधान में संशोधन करेगी। उन्होंने लोगों से लोकसभा में भाजपा को दो-तिहाईं बहुमत देने का आह्वान किया ताकि देश के संविधान में संशोधन किया जा सके। हेगड़े ने छह साल पहले भी इसी तरह का बयान दिया था। हेगड़े ने कहा कि भाजपा के संविधान में संशोधन करने के लिए और कांग्रोस द्वारा इसमें जोड़ी गईं अनावश्यक चीजों को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाईं बहुमत की जरूरत होगी। उन्होंने यहां एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा को इसके लिए 20 से अधिक राज्यों में सत्ता में आना होगा। कर्नाटक से छह बार के लोकसभा सदस्य हेगड़े ने कहा, अगर संविधान में संशोधन करना है, कांग्रोस ने संविधान में अनावश्यक चीजों को जबरदस्ती भरकर विशेष रूप से ऐसे कानून लाकर जिनका उद्देश्य हिन्दू समाज को दबाना था, संविधान को मूलरूप से विवृत कर दिया है— यदि यह सब बदलना है तो इस (वर्तमान) बहुमत के साथ संभव नहीं है, उन्होंने कहा अगर हम सोचते हैं कि यह किया जा सकता है, क्योंकि लोकसभा में कांग्रोस नहीं है और प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास लोकसभा में दो-तिहाईं बहुमत है और चुप रहे तो यह संभव नहीं है। हेगड़े ने कहा, मोदी ने कहा है कि अबकी बार 400 पार। 400 पार क्यों? हेगड़े के इस बयान पर गंभीर चिता व्यक्त करते हुए कांग्रोस ने इसे देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ढांचे पर हमले का प्रायास करार दिया। कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर पोस्ट किया — मोदी सरकार, भाजपा और आरएसएस गुप्त रूप से तानाशाही लागू करना चाहती है। वे भारत के लोगों पर अपनी मनुवादी मानसिकता थोपेंगे और एससी-एसटी तथा ओबीसी के अधिकार छीन लेगी। कोईं चुनाव नहीं होगा। ज्यादा से ज्यादा दिखावटी चुनाव होंगे। संस्थानों की स्वतंत्रता में कटौती की जाएगी। अभिव्यक्ति की आजादी पर बुलडोजर चलाया जाएगा। भाजपा हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और विविधता में एकता को नष्ट कर देगी। संघ परिवार के इस गलत इरादों को कांग्रोस सफल नहीं होने देगी। राहुल गांधी ने कहा, नरेन्द्र मोदी और भाजपा का अंतिम तथ्य बाबा साहेब के संविधान को खत्म करना है। उन्हें न्याय, बराबरी, नागरिक अधिकार और लोकतंत्र से नफरत है। समाज को बांटना मीडिया को गुलाम बनाना अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा बनाकर विपक्ष को मिटाने की साजिश करके भारत के महान लोकतंत्र को तानाशाही में बदलना चाहते हैं। वैसे भाजपा की कर्नाटक इकाईं ने सोशल मंच एक्स पर पोस्ट किया, संविधान पर हेगड़े की टिप्पणी उनके निजी विचार हैं और पाटा के रूख को प्रातिबिबित नहीं करती है। भाजपा देश के संविधान को बनाए रखने के लिए अपनी अटूट प्रातिबद्धता दोहराती है और हेगड़े से उनकी टिप्पणी के संबंध में स्पष्टीकरण मांगेगी। ——अनिल नरेन्द्र

अरुण गोयल ने इस्तीफा क्यों दिया?

लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने में अब वुछ ही दिन बाकी रह गए हैं, लेकिन उससे पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। कानून मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में इस बात की जानकारी दी गईं कि राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। यह नौ मार्च से प्राभावी हो गया है। गोयल का कार्यंकाल पांच दिसम्बर 2027 तक था और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईंसी) राजीव वुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद वे अगले साल फरवरी में संभवत: सीईंसी का पदभार संभालते। इसी के साथ चुनाव आयोग में इस समय सिर्प मुख्य चुनाव आयुक्त ही बचे हैं। चुनाव आयोग में दो चुनाव आयुक्त और एक मुख्य चुनाव आयुक्त होते हैं। एक चुनाव आयुक्त का पद पहले से ही खाली था तो अब अरुण गोयल के जाने से सिर्प मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार ही बचे हैं। तत्काल यह पता नहीं चल पाया है कि गोयल ने इस्तीफा क्यों दिया? उनका इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब चुनाव आयोग (ईंसी) चुनाव तैयारियों की समीक्षा के लिए देश भर में यात्रा कर रहा था और वुछ दिनों में लोकसभा चुनाव के कार्यंव््राम की घोषणा होने की उम्मीद है। लोकसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में गोयल ने हाल में तमिलनाडु, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रादेश और पािम बंगाल के दौरे किए थे। बंगाल के दौरे से लौटने के बाद गोयल ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार की अगुवाईं में चुनाव आयोग के द्वारा बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। तब एक अधिकारी ने कहा था कि स्वास्थ्य कारणों से गोयल इसमें हिस्सा नहीं ले सके। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर बने नए कानून के अनुसार कानून मंत्री की अध्यक्षता में दो वेंद्रीय सचिवों वाली एक खोज समिति पांच नामों का चयन करेगी। फिर एक चयन समिति नाम को अंतिम रूप देगी। प्राधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति में उनके (प्राधानमंत्री) द्वारा नामित एक वेंद्रीय मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे। विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीपे को लेकर तरह-तरह के सवाल दागकर सियासी गमा बढ़ा दी है। इस्तीपे के पीछे सरकार के दबाव से लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार से उनके मतभेद की खबरों के बीच विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। कांग्रोस समेत विपक्षी दलों ने सरकार से जवाब मांगा है कि अरुण गोयल ने मोदी सरकार या मुख्य चुनाव आयुक्त जिसके साथ मतभेद के कारण इतना बड़ा कदम उठाया, जबकि उनका कार्यंकाल अभी चार साल बाकी था और मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की लाइन में थे। कांग्रोस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने तो गोयल के इस्तीपे की खबर आने के तत्काल बाद शनिवार रात ही इस पर सवाल उठाए तो एसोसिएशन फार डेमोव््रोटिक रिफाम्र्स ने कहा अरुण गोयल के इस्तीपे से पता चलता है कि वह ऊपर खाते किस दबाव में काम कर रहे थे। कांग्रोस का कहना था क्या वास्तव में स्वतंत्र होकर काम करने के प्रायास में चुनाव आयुक्त या मोदी सरकार के साथ मतभेदों या व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दिया गया है? टीएमसी प्रावक्ता ने कहा कि पद बीच में छोड़ कर इस्तीफा देने के पीछे इस अचानक रहस्य की वजह क्या है? इस्तीफे के कारण का जल्द खुलासा होगा।

Tuesday 12 March 2024

बिहार में लोकसभा व विधानसभा चुनाव साथ होंगे?


बिहार के औरंगाबाद में 2 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने नीतीश कुमार ने जो कहा उसकी खूब चर्चा हुई। नीतीश ने मोदी से कहा था, इधर हम गायब हो गए थे। हम फिर आपके साथ हैं। हम आपको आश्वस्त करते हैं कि अब हम इधर-उधर होने वाले नहीं हैं। हम रहेंगे आप ही के साथ। इसलिए जरा तेजी से यहां वाला काम सब हो जाए। नीतीश की इस बात पर प्रधानमंत्री मोदी समेत मंच के ज्यादातर लोग हंस रहे थे और भीड़ में भी ठहाकों की आवाज आ रही थी। लोगों ने यह बयान नहीं दिया कि नीतीश किस काम को तेजी से करने की मांग कर रहे थे? बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर साल 2005 से नीतीश कुमार जमे हुए हैं। लेकिन साल 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जनता दल युनाइटेड को महज 42 सीटें मिली थीं। नीतीश और उनकी पार्टी जेडीयू इसके पीछे एलजेपी के चिराग पासवान को बड़ी वजह मानते हैं। चिराग ने 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए में रहकर भी जेडीयू के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे। इससे जेडीयू को सीटों का बड़ा नुकसान हुआ था। जानकारों के मुताबिक इन्हीं आंकड़ों में नीतीश कुमार का सबसे बड़ा दर्द छिपा हुआ है। इसी को बेहतर करने की कोशिश में वो महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में वापस आए थे। नीतीश ने इसी मंशा का जिक्र औरंगाबाद में भी मोदी के आगे किया था। माना जाता है कि अब नीतीश की पार्टी का गिरता ग्राफ उन्हें असहज कर रहा है। बिहार के सियासी गलियारों में यह चर्चा लगातार जारी है कि नीतीश कुमार राज्य विधानसभा भंग कर इसी साल होने वाले लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा का चुनाव भी कराना चाहते हैं। बिहार की पिछली सरकार में नीतीश के सहयोगी और उपमुख्यमंत्री रहे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी दावा कर चुके हैं कि नीतीश कुमार विधानसभा भंग करना चाहते थे। विशेषज्ञो के अनुसार महागठबंधन सरकार के दौरान मंत्रिमंडल की अंतिम बैठक में नीतीश कुमार बिहार की विधानसभा को भंग करने का प्रस्ताव लेकर आए थे, जिसे आरजेडी और बाकी सहयोगी दलों ने ठुकरा दिया। दरअसल विधानसभा भंग कर चुनाव कराने में फायदा केवल नीतीश कुमार का हो सकता है। हो सकता है कि उनकी कुछ सीटें बढ़ जाएं। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि आरजेडी ही सबसे बड़ी पार्टी बने और कांग्रेस या वामदल भी अपनी सफलता का दोहरा ही लें। माना जाता है कि पटना में विपक्ष की जन विश्वास महारैली ने एनडीए के अंदर सियासत पर भी असर डाला है, नीतीश कुमार के मन में यह हो सकता है कि सहयोगियों के सहारे उनकी विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ सकती है। लेकिन नीतीश करीब दो दशक से बिहार की सत्ता पर बैठे हैं और माना जाता है कि राज्य में उनके खिलाफ एंटी इंकंबेसी से सहयोगी दलों को नुकसान हो सकता है। माना जाता है कि नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ने के पीछे यह एक बड़ी वजह थी। इसलिए नीतीश कुमार इसी शर्त पर एनडीए में वापस हुए ताकि बिहार विधानसभा भंग कर लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभा के चुनाव हों। बिहार में विधानसभा और लोकसभा एक साथ कराने में कुछ समस्याएं आ सकती हैं। मसलन इतने कम समय में दोनों चुनाव संभव नहीं हैं। मौजूदा बिहार विधानसभा के कार्यकाल में अभी डेढ़ दो साल बचे हैं और बहुत से विधायक अभी से चुनाव का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

हर नागरिक को सरकारी फैसले की आलोचना का अधिकार


जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने की आलोचना करने और पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस पर उसके नागरिकों को बधाई देने के आरोपित एक प्रोफेसर के विरुद्ध बंबई हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा, समय आ गया है कि पुलिस तंत्र को भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा के बारे में जागरूक और शिक्षित किया जाए। महाराष्ट्र पुलिस ने वाट्सअप मैसेज पोस्ट करने पर प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम के विरुद्ध कोल्हापुर में आईपीसी की धारा-153 ए के तहत एफआईआर दर्ज की थी। इन वाट्सअप मैसेज में प्रोफेसर जावेद ने लिखा था, जम्मू-कश्मीर के लिए पांच अगस्त काला दिन है। 14 अगस्तö पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस की बधाई। जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा, अगर एक नागरिक 14 अगस्त पर पाकिस्तान के नागरिकों को बधाई देता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है, पीठ ने कहा 75 से अधिक वर्षों से हमारा देश लोकतांत्रिक गणराज्य है। लोग लोकतांत्रिक मूल्यों का महत्व जानते हैं। इसलिए यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि ये राष्ट्र विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य या शत्रुता या देश की भावनाओं को बढ़ावा देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के हर नागरिक को सरकार के फैसले की आलोचना करने का अधिकार है। साथ ही कहा कि भारत के किसी व्यक्ति का दूसरे देशों के नागरिकों को उनके स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएं देने में कुछ गलत नहीं है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने की वाट्सअप के जरिए आलोचना करने के मामले में एक प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के संबंध में बंबई हाईकोर्ट के आदेश को भी रद्द कर दिया। महाराष्ट्र पुलिस ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के सबंधं में वाट्सअप पर संदेश पोस्ट करने के लिए प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम के खिलाफ कोल्हापुर के एक थाने में मामला दर्ज किया था। उनके खिलाफ साप्रादायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए थे। प्रोफेसर हजाम ने अपने वाट्सअप संदेशों में कहा था, पांच अगस्त जम्मू-कश्मीर के लिए काला दिवस और 14 अगस्त पाकिस्तान को स्वंतत्रता दिवस मुबारक। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइंया की पीठ ने प्रोफेसर जावेद अहमद की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत का संविधान अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसके तहत प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की कार्रवाई और उस मामले में सरकार के फैसले की आलोचना करने का अधिकार है। उन्हें यह कहने का अधिकार है कि वह सरकार के फैसले से नाखुश हैं। पीठ ने कहा कि अगर भारत का कोई नागरिक 14 अगस्त को पाकिस्तान के नागरिकों को शुभकामनाएं देता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। पाकिस्तान 14 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है। लिहाजा यह अदालत हाईकोर्ट के 10 अप्रैल 2023 के फैसले और एफआईआर को रद्द करती है।

Saturday 9 March 2024

कांग्रेस कम सीटों पर लड़कर स्ट्राइक रेट बढ़ाएगी


लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने पहली लिस्ट जारी करके विपक्षी दलों पर दवाब बढ़ा दिया है। खासकर विपक्षी गठबंधन इंडिया और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए यह बड़ा संदेश माना जा रहा है।

भाजपा ने विपक्ष को साफ संदेश देने की कोशिश की है कि चुनाव को लेकर वह पूरी तरह से तैयार है। वह सिर्प जीत का दावा ही नहीं कर रही, बल्कि उम्मीदवारों का ऐलान कर चुनावी तैयारियों का शंखनाद भी कर दिया है। माना जा रहा है कि इससे अब न सिर्प विपक्ष पर दबाव बढ़ गया है कि वह भी जल्द से जल्द गठबंधन में सीट बंटवारे को फाइनल करे और सीटों और उम्मीदवारों का ऐलान करें। कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और पांच राज्यों में आम आदमी पार्टी के साथ तालमेल हो गया है। बिहार से आरजेडी, महाराष्ट्र में एमवीए के बीच, झारखंड में झामुमो और दूसरे दलों के साथ और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ तालमेल होना बाकी है। दावा किया जा रहा है कि महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के सहयोगियों में सीट शेयरिंग का फार्मूला तय हो गया है। इसकी औपचारिक घोषणा भी की जा सकती है। सूत्रों के अनसार फाइनल हुईं सीट बंटवारे के तहत शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट) 20, कांग्रेस 18 व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) 10 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। गठबंधन के अन्य सहयोगियों को शिव सेना अपने कोटे से समायोजित करेगी। सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के महाराष्ट्र पहुंचने से पहले ही सीट बंटवारे को लेकर औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी। न्याय यात्रा में सहयोगी दलों के नेता भी शामिल होंगे। इतना ही नहीं राहुल गांधी की रैली में भी इंडिया के नेता मौजूद रहेंगे। सूत्रों के अनुसार महाराष्ट्र के साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी सीटों के बंटवारे का मामला तय हो गया है। केवल आधिकारिक घोषणा की जानी है। राहुल और अखिलेश यादव के गले मिलने से उत्तर प्रदेश में सीट शेयरिंग का पैसला हो गया है। 63 सीटें समाजवादी पार्टी लड़ेगी और कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस गठबंधन के साथ एक बार फिर यूपी में दो लड़कों की जोड़ी विपक्ष की ओर से भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभालेंगी। सूत्रों का मानना है कि 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पार्टी को यह समझौता इंडियन नेशनल डेवेलेपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के घटक दलों के साथ गठबंधन की वजह से करना पड़ेगा। क्योंकि पार्टी कईं राज्यों में इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। वर्ष 2019 में पार्टी ने 421 सीट पर चुनाव लड़ा था।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ने से ज्यादा अहम जीत है। यही वजह है कि पार्टी इंडिया गठबंधन के साथ समझौता करने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। कांग्रेसी नेता ने कहा कि फसल तो तैयार है, काटने वाला चाहिए। देखा गया है कि कांग्रेस का संगठन अक्सर कमजोर पड़ जाता है और जीती जिताईं बाजी हार जाते हैं। इस समय हमें एक नेता ऐसा लगता है जो कि कांग्रेस के संगठन को मजबूती दे सकता है वह कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिव वुमार हैं।

उन्होंने कईं बार साबित किया है कि वह हार के मुंह से जीत निकाल सकते है। उन्हें लोकसभा चुनाव का इंचार्ज बनाना चाहिए। जैसे मैंने कहा राहुल ने माहौल तो बना दिया है, गठबंधन भी हो गए हैं, पर वोटों को निकालना है। क्या कांग्रेस और महागठबंधन यह कर सकेगा।

——अनिल नरेन्द्र 

माननीयों को घूसखोरी का विशेषाधिकार नहीं



का विशेषाधिकार नहीं सुप्रीम कोर्ट ने संसद और विधानसभाओं में रिश्वत लेकर वोट या भाषण देने वाले सांसदों और विधायकों को आपराधिक मुकदमों से मिलने वाली छूट खत्म कर दी। अदालत ने कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में सांसदों को संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है।

भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है। मुख्य न्यायाधीश डीवाईं चंद्रचूड़ की अगुवाईं वाली सात जज की पीठ ने पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव बनाम सीबीआईं मामले में 1998 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जज के बहुमत से पारित पैसले को पलट दिया। उक्त पैसले में सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेकर सदन में वोट करने पर आपराधिक मुकदमे से छूट थी। सीजेआईं डीवाईं चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 1998 में दिए पैसले को पलटते हुए कहा कि 5 संसदीय संविधान पीठ का वो पैसला अनुच्छेद 105 और 194 का भी विरोधाभासी है। इन अनुच्छेदों के सहारे सांसद-विधायक सदन में कही किसी बात या वोट के लिए कोर्ट में जवाबदेही नहीं बनाए जा सकते हैं, लेकिन इसमें उन्हें रिश्वतखोरी की छूट नहीं मिल जाती। 135 पन्ने का ताजा पैसला झामुमो विधायक सीता सोरेन की याचिका पर आया है। उन पर 2012 में राज्यसभा में वोटिंग के लिए एक निर्दलीय सांसद से पैसे लेने का आरोप है। जब उन्होंने उक्त सांसद को वोट नहीं किया तो सीबीआईं ने केस दर्ज किया। सीता ने अनुच्छेद 194(2) का जिव्र किया और केस रद्द करने के लिए झारखंड हाईं कोर्ट में याचिका लगाईं, लेकिन राहत नहीं मिली तो वे सुप्रीम कोर्ट गईं। पहले केस 3, फिर 5 और बाद में 7 संसदीय बेंच के पास गया। संविधान पीठ ने वैश फॉर वोट जिसे झामुमो रिश्वत कांड के नाम से भी जाना जाता है, उस पर 1998 में दिए अपने पैसले को वजनदार तर्को से पलट दिया है। इस पैसले के आलोक में देखें तो वह पुराना पैसला विशेषाधिकार का मजाक और उत्कोच का खुला प्रोत्साहन लगता है। मामला यह था कि 1993 में पीवी नरसिंहराव की बहुमत विहीन सरकार को बचाने के लिए झामुमो के अध्यक्ष व सांसद समेत छह सांसदों ने रिश्वत लेकर वोट दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इसके लिए उन पर विशेषाधिकार के तहत आपराधिक मुकदमा नहीं चलेगा, जबकि घूस लेकर भी वोट न देने वालों पर आपरधिक मुकदमा चलेगा। यह तो लोकतंत्र के मंदिर में खुलेआम घूसखोरी की वैधता प्रदान करना हुआ। शीर्ष अदालत के पैसले का एक संदेश यह भी है कि जन प्रतिनिधि सदन के भीतर या बाहर जो बोलते हैं या जो वुछ करते हैं उसे लेकर वे ज्यादा जिम्मेदार हों और उनका आचरण ऐसा हो, जो सर्वोच्च नैतिकता के आदर्श को बढ़ावा देने वाला हो। लोकतंत्र का प्रदूषण तभी रुकेगा, जब जनप्रतिनिधि इस दिशा में आगे आएंगे। मुख्य न्यायाधीश का यह कहना उचित है कि विधायिका के सदस्यों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी संसदीय लोकतंत्र की नींव को खोखला करती है। यह ऐसी राजनीति का निर्माण करती है, जो नागरिकों को जिम्मेदार, उत्तरदायी और प्रतिनिधि लोकतंत्र से वंचित करती है। सवाल संसदीय लोकतंत्र में एक सांसद या विधायक की विश्वस्तरीयता का भी है। एक जनप्रतिनिधि के तौर पर उनके वुछ कर्तव्य होते हैं, जिनके निर्वहन में उनसे ईंमानदारी की उम्मीद की जाती है। इस संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश डीवाईं चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी एक सबक की तरह है कि विधायिकाओं के सदस्यों द्वारा भ्रष्टाचार सार्वजनिक शुचिता नष्ट कर देती है। पर सवाल उठता है कि क्या हमारे राजनेता इससे कोईं सबक लेंगे और एक स्वच्छ व पारदर्शी व्यवस्था बनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।

Thursday 7 March 2024

मिशन 400 पूरा करने में पहला कदम


बीजेपी की पहली लिस्ट में उन राज्यों से परहेज किया गया जहां गठबंधन है या होने की उम्मीद है। मसलन बिहार से एक भी उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया। वहां जेडीयू सहित दूसरे छोटे दलों के साथ सीटों के बंटवारे पर बातचीत का दौर जारी है। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं हुई, जहां गठबंधन की बात चल रही है। पहली लिस्ट में साफ संकेत है कि मोदी जी इस बार कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते। वह उन पुराने चेहरो को रिपीट कर रहे हैं जो उन्हें लगता है कि सीट निकाल सकते हैं, बेशक वह 70 साल से ज्यादा की उम्र के हों। टिकट में सीट जीतने की क्षमता को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। मसलन केरल जहां भाजपा के लिए कठिन राह है वहां पार्टी ने पहली लिस्ट में राजीव चंद्रशेखर को उतारा है। इस सीट से कांग्रेस के शशि थरूर सांसद हैं। पार्टी ने संकेत दिया है कि आने वाली लिस्ट में और मजबूत नाम देखने को मिलेंगे। बीजेपी की पहली लिस्ट में कुछ ऐसे सांसदों के टिकट कटे हैं जिनके विवादित बयानों की वजह से विपक्ष ने बीजेपी पर जमकर हमला किया था। दिल्ली की दक्षिणी दिल्ली सीट से सांसद रमेश बिधूड़ी ने संसद में सांसद दानिश अली पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। जिस पर काफी बवाल हुआ था। उनका टिकट काटकर अब उस सीट पर रामवीर सिंह बिधूड़ी को टिकट दिया गया है। बीजेपी ही नहीं बल्कि आरएसएस भी पिछले काफी वक्त से मुस्लिम आउटरीच का काम कर रहा है। पीएम नरेन्द्र मोदी खुद पार्टी की कई बैठकों में कह चुके हैं कि हमें सबके पास पहुंचना है, बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने के लिए कई कार्यक्रम चला रही है। ऐसे में पार्टी के सांसद के मुस्लिम विरोधी बयान पार्टी को असहज स्थिति में डालते हैं। बीजेपी पहले पैंगबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में अपने दो प्रवक्ताओं को पार्टी से निष्कासित कर चुकी है। भोपाल से बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा का टिकट काट दिया है, उनके विवादित बयान आए दिन वायरल होते थे। एक विवादित बयान पर मोदी कुछ समय पहले कह चुके थे कि वे दिल से उन्हें माफ नहीं करेंगे। लिस्ट देखकर एक तरफ जहां यह लग रहा है कि विवादित बयान कुछ सांसदों पर भारी पड़े। वहीं कई नेता हैं जो विवादों में तो रहे लेकिन पार्टी ने उनका साथ दिया। उदाहरण के तौर पर झारखंड के गोण्डा से निशिकांत दुबे, किसान अवहेलना के दौरान विवादों में रहे अजय मिश्र टैनी। हैदराबाद सीट से बीजेपी ने माधवी लता को टिकट दिया है, इस सीट पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सांसद हैं। दूसरी पार्टी छोड़कर बीजेपी में आए नेताओं को भी टिकट दिया गया। बीएसपी छोड़कर आए रितेश पांडे को यूपी के अम्बेडकर नगर से उम्मीदवार बनाया गया है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी और कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा कुछ दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हुईं थीं उन्हें भी चाईबासा से टिकट दिया गया है। बीआरएस से बीजेपी में आए बीबी पाटिल को भी तेलंगाना की जहीराबाद सीट से टिकट दिया गया है। बांसुरी स्वराज को इसलिए उतारा गया है क्योंकि वह बहुत मिलनसार हैं और पार्टी कार्यकर्ता उनमें उनकी दिवंगत मां सुषमा स्वराज की छवि देखते हैं। दिल्ली में कुल पांच सीटों पर अभी तक नाम घोषित किए गए हैं और उनमें केवल मनोज तिवारी अकेला ऐसा नाम है जो अपनी उम्मीदवारी बचा पाए हैं। यहां तक कि मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे डा. हर्षवर्धन जैसे ईमानदार व्यक्ति को भी दरकिनार कर दिया गया है। पहली लिस्ट का पब्लिक में रिस्पांस कुछ मिला-जुला सा है।

-अनिल नरेन्द्र


पटना में इंडिया गठबंधन ने भरी हुंकार


विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने रविवार को बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित जनविश्वास महारैली के जरिए लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा दिया। पटना के गांधी मैदान में रविवार को महागठबंधन की इस रैली में भीड़ देखने लायक थी, लाखों लोग मैदान में खचाखच भरे हुए थे। जहां भी नजर जाती भीड़ नजर आती। कहा जा रहा है कि श्री जयप्रकाश नारायण की महारैली की याद रविवार को ताजा हो गई। इससे ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बिहार के दौरे पर थे। उन्होंने औरंगाबाद और बेगुसराय में सभा की थी। ऐसे में महागठबंधन की रैली और पीएम मोदी की सभा को एनडीए और विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा था। बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर फिलहाल एनडीए का कब्जा है। एनडीए के लिए चुनौती है कि वह 2019 की जीत को बरकरार रखे जबकि विपक्ष के लिए चुनौती है कि वह बीजेपी को बिहार में रोके विपक्षी गठबंधन ने गांधी मैदान की रैली को जन विश्वास महारैली का नाम दिया था। कुछ लोग पेड़ों पर लटक रहे थे तो कुछ टॉवर और खंभों पर चढ़कर विपक्षी नेताओं को देखने की कोशिश कर रहे थे। बड़ी संख्या में मैदान के बाहर से भी लोग विपक्ष की रैली देख रहे थे तो दूसरी तरफ भीड़ को काबू करने की कोशिश में लगी हुई थी पुलिस। गांधी मैदान में बूंदाबांदी भी शुरू हुई लेकिन भीड़ का उत्साह कम नहीं हुआ। गांधी मैदान कई बड़ी सियासी रैलियों का गवाह रहा है। विपक्षी दलों ने दावा किया था कि रविवार को पटना में ऐसी भीड़ होगी जो पहले कभी नहीं देखी गई। रैली में आए एक नेता ने कहा कि इस बार विपक्षी गठबंधन बिहार में जीत हासिल करेगा। मोदी जी के विजय रथ को बिहार में ही रोका जाएगा। रैली में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव, पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी समेत विपक्ष के कई बड़े नेता शामिल हुए। रैली का सुपर स्टार रहा तेजस्वी यादव। तेजस्वी ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने भाजपा पर झूठ का कारखाना होने का आरोप लगाते हुए कहा कि राजद का मतलब अधिकार, रोजगार और विकास है। तेजस्वी ने कहा कि भाजपा हमेशा जुमलेबाजी करती है। लेकिन हम इस देश और बिहार के लोगों के अधिकारों और नौकरियों के लिए लड़ते हैं। तेजस्वी ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि राजद मुस्लिम और यादव (एमवाई) की पार्टी है। असल में यह एम-वाई और बाद (बीएएपी) की पार्टी है। इसमें बी से बहुजन, ए से अगड़ा, ए से आधी आबादी (महिलाएं) और पी से गरीब है। उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि हमने 17 महीनों में जो किया भाजपा से हाथ मिलाने वाले नीतीश पिछले 17 वर्षों से नहीं कर सके। शनिवार को औरंगाबाद में मोदी की सभा में नीतीश ने भी कहा था कि वो शुरू में बीजेपी के साथ है और बीच में गायब हो गए थे, लेकिन अब कहीं नहीं जाएंगे। नीतीश की इस बात पर मोदी जी भी हंस पड़े। विपक्षी गांधी मैदान की रैली को ऐतिहासिक बता रहे हैं। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा, देश में जब भी बदलाव आता है तो तूफान बिहार से शुरू होता है। बिहार से ही बदलाव का तूफान पूरे देश में जाता है। आज देश में 40 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। छोटे व्यापारियों के काम बंद हो गए हैं। किसान और युवा सड़कों पर उतरे हुए हैं। राहुल गांधी की इस बात पर गांधी मैदान में जमकर तालियां बजी। विपक्षी दलों का प्रयास है कि बेरोजगारी को बिहार का सबसे बड़ा मुद्दा बनाना है।

Tuesday 5 March 2024

नहीं होगी सांसदों-विधायकों की निगरानी


सुप्रीम कोर्ट ने बेहतर प्रशासन के लिए सांसदों और विधायकों की चौबीसों घंटे डिजिटल निगरानी करने के लिए केन्द्र को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि क्या अदालत सांसदों की गतिविधियों पर चौबीसों घंटे नजर रखने के लिए उनके शरीर में कोई चिप लगा सकती है। सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश ने दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता सुरिंदर नाथ कुंद्रा को आग्रह किया कि उन्हें ऐसे मामले पर न्यायिक समय का दुरुपयोग करने के लिए पांच लाख रुपए का जुर्माना करना पड़ सकता है। पीठ ने कहा यदि आप बहस करते हैं और हम आपसे सहमत नहीं होते हैं तो आपसे पांच लाख रुपए भू-राजस्व के रूप में वसूल किए जाएंगे। यह जनता के समय की बात है। यह हमारा अहंकार नहीं है। पीठ ने कहा कि क्या आपको एहसास है कि आप क्या बहस कर रहे हैं? आप सांसदों और विधायकों की चौबीसों घंटे निगरानी चाहते हैं। ऐसा केवल उस सजायाफ्ता अपराधी के लिए किया जाता है जिसके न्याय से बचकर भागने की आशंका होती है। निजता का अधिकार नाम की कोई चीज होती है और हम संसद के सभी निर्विचित सदस्यों की डिजिटल निगरानी नहीं कर सकते। याचिकाकर्ता सुरिंदर कुंद्रा ने कहा कि सांसद और विधायक जो नागरिकों के वेतनभोगी सेवक होते हैं, वे शासकों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते हैं। इस पर पीठ ने कहा, आप सभी सांसदों पर एक समान आरोप नहीं लगा सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में व्यक्ति कानून नहीं बना सकते और उन्हें केवल निर्वाचित सांसदों के माध्यम से लागू किया जा सकता है। प्रधान-न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, तब लोग कहेंगे कि ठीक है हम जजों की जरूरत नहीं है। हम सड़कों पर ही फैसला करेंगे और चोरी के अपराधी को मार डालेंगे। क्या हम चाहते हैं कि ऐसा हो? सांसदों और विधायकों की डिजिटल निगरानी का अनुरोध करने वाली याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता इस मामले को आगे बढ़ाता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। लेकिन हम जुर्माना लगाने से बचते हुए आगाह करते हैं कि भविष्य में ऐसी कोई याचिका दायर नहीं की जानी चाहिए। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि चुने जाने के बाद सांसद व विधायक शासकों की तरह व्यवहार करते हैं। इस पर पीठ ने कहा, हर सांसद व विधायक के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। आपको व्यक्ति विशेष से शिकायत हो सकती है पर आप सभी सांसदों पर आरोप नहीं लगा सकते। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, निजता का अधिकार नाम की भी कोई चीज होती है।

-अनिल नरेन्द्र

बेंगलुरु कैफे में धमाका ः पीछे कौन?


कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के मशहूर रामेश्वरम कैफे में शुक्रवार दोपहर हुआ धमाका हर लिहाज से एक बड़ी चिंताजनक घटना है। एक तो यह धमाका ऐसे समय हुआ जब आम चुनावों की घोषणा होने ही वाली है और दूसरे, भारत की कही जाने वाली सिलिकन वैली शहर में हुआ। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने श्gाक्रवार शाम इसकी पुष्टि की। दोपहर करीब एक बजे इस धमाके में 9 लोग घायल हुए। शुरू में पुलिस और दमकल को बताया गया कि यह सिलेंडर ब्लास्ट है। शाम को सिद्धारमैया ने इसकी पुqिष्ट की यह कम तीव्रता का आईईडी ब्लास्ट था। एक युवक दोपहर 12 बजे के करीब कैफे में बैग छोड़कर गया, जिसके बाद विस्फोट हुआ। कैफे में धमाके वाली जगह से बैटरी, जला हुआ बैग और कुछ आईडी कार्ड मिले हैं। सीसीटीवी और अन्य चीजों की जांच की जा रही है। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा कि यह कम तीव्रता का ब्लास्ट था। इसमें एक घंटे बाद धमाका होने के लिए टाइमर लगा हुआ था। डीजीपी आलोक मोहन ने कहा कि जांच जारी है और पुलिस उन लोगों का पता लगाएगी, जो इसके पीछे हैं। हम निश्चित रूप से पहचान लेंगे कि यह किसने किया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजयेन्द्र येदियुरप्पा ने कहा कि घटना में खुफिया तंत्र की नाकामी स्पष्ट है। इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। ब्लास्ट बिगड़ती कानून व्यवस्था का ज्वलंत उदाहरण है। पुलिस के अनुसार घटनास्थल के हालात आतंकी साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं। हालांकि जांच के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी। चिंता का विषय तो यह भी है कि बेंगलुरु के जिस रामेश्वरम कैफे में धमाका हुआ वह उस इलाके में है जिसे आईटी गतिविधियों का गढ़ कहा जाता है। इसके पीछे क्या यह मकसद है कि कैफे को इसलिए निशाना बनाया जाए ताकि इससे दुनियाभर का ध्यान आकर्षित कर सकें? यह गनीमत रही कि इस धमाके में किसी की जान नहीं गई। सिर्फ कुछ लोग घायल हुए हैं नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता था। लगता है कि जिस किसी व्यक्ति या संगठन ने यह किया है उसका मकसद ध्यान खींचने का रहा होगा। अगर वो ज्यादा शक्तिशाली धमाका करते जो कर सकते थे तो इससे ज्यादा जानमाल का नुकसान हो सकता था। इसके पीछे राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं। कर्नाटक में अभी-अभी तो कांग्रेस की सरकार बनी है। उसे बदनाम करने के लिए और यह जताने के लिए कि राज्य में कानून व्यवस्था खराब है यह धमाका किया गया है। भारतीय जनता पार्टी तो सिद्धारमैया सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रही है तो स्वाभाविक ही है। कर्नाटक सरकार के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वह इस मामले की तह तक जाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। यह पता लगाना जरूरी है कि क्या यह एक आतंकी साजिश थी या नहीं? अगर यह आतंकी साजिश थी तो यह मामला गंभीर है। जरूरत पड़ने पर इसमें दूसरी सरकारी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को भी विश्वास में लिया जा सकता है ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करके मामले की तह तक पहुंचा जा सके। चुनाव नजदीक है इसलिए भी जरूरी है कि राज्य में कानून व्यवस्था बनी रहे। कर्नाटक सरकार के लिए यह चुनौती है कि जिसे जल्द से जल्द सुलझाना होगा।

Saturday 2 March 2024

पाकिस्तान की पहली महिला मुख्यमंत्री


इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की ओर से विरोध और बॉयकाट के बीच नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज को पंजाब सूबे की मुख्यमंत्री के रूप में चुन लिया गया है। मरियम नवाज साल 2011 से लगातार राजनीति में सक्रिय हैं। लेकिन 8 फरवरी को हुए चुनाव में वह पहली बार पाकिस्तानी संसद नेशनल असेंबली की सदस्य बनी हैं। मरियम नवाज पाकिस्तान में मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने वाली पहली महिला बन गई हैं। मरियम नवाज को पाकिस्तान की सबसे अहम लेकिन विवादित महिला राजनेता के रूप में देखा जाता है। उनकी पार्टी में लोग उनकी हिम्मत और शानदार शख्सियत के मुरीद हैं। लेकिन इमरान खान के समर्थकों के बीच उनके भ्रष्ट परिवारवादी राजनीति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। वे लाहौर में पली-बढ़ी हैं और उनकी शादी सेना के अधिकारी रहे चुके एक शख्स से हुई, जो 90 के दशक में उनके पिता के प्रधानमंत्री रहते हुए उनके (नवाज शरीफ के) एडीसी थे। शरीफ परिवार पारंपरिक रूप से रुढ़िवादी स्वभाव का है। मरियम के पिता नवाज शरीफ का पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने अक्टूबर 1999 में जब तख्तापलट करके उन्हें कैद में डाला, तब तक वे लो प्रोफाइल रहकर अपने दो बच्चों की परवरिश कर रही थीं। बाकी मर्द भी नजरबंद थे। उन हालातों में मरियम अपनी मां के साथ पहली बार सार्वजनिक तौर पर सामने आईं। लोगों के सामने आकर उन्होंने जनरल मुशर्रफ को खुली चुनौती दी और अपने पिता का समर्थन किया। कुछ महीने बाद सऊदी अरब के किंग की मदद से मरियम और उनकी मां ने जनरल मुशर्रफ से एक डील की। इस डील के तहत नवाज शरीफ जेल से रिहा हुए और दिसम्बर 2000 से सपरिवार सऊदी अरब निर्वासित हो गए। साल 2007 में नवाज शरीफ पाकिस्तान लौटे। पाकिस्तान की राजनीति में मरियम नवाज की शुरुआत 2011 में हुई जहां उन्होंने अपने चाचा शहबाज शरीफ के लिए समर्थन जुटाने के लिए महिला शिक्षण संस्थानों का दौरा किया। शाहबाज तब पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री थे। पीएमएल-एन की 50 वर्षीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष मरियम ने पूर्व पीएम इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) समर्थक सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल के निवार्चित प्रतिनिधियों के बहिर्गमन के बीच मुख्यमंत्री पद का चुनाव जीता। मरियम ने कहा कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बदले की भावना से काम नहीं करेंगी। 50 वर्षीय मरियम ने कहा कि मुझे खुशी है कि आज मैं उस कुर्सी पर बैठी हूं जिस पर कभी मेरे पिता बैठ चुके हैं। उम्मीद है कि भविष्य में भी महिलाओं के नेतृत्व की परम्परा जारी रहेगी। नवाज शरीफ की राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाली मरियम ने कहा कि मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि कार्यालय कैसे चलाना है। उन्होंने कहा कि आज सूबे की हर औरत एक महिला मुख्यमंत्री को देखकर गर्व महसूस कर रही है। उन्होंने कहा कि उन्होंने जेल में कैद होने जैसा कठिन समय देखा है, लेकिन उन्हें मजबूत बनाने के लिए वह अपने विरोधियों की आभारी हूं। मरियम नवाज एक अच्छी वक्ता हैं, वे भीड़ को भी अपनी ओर खीचंती हैं। उनके कई समर्थक मरियम नवाज की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से भी करते हैं। लड़काना की एक सभा में मरियम ने कहा था कि कई मायनों में उनका संघर्ष मोहतरमा बेनजीर भुट्टो जैसा ही है। कई मायनों में मुझे लगता है कि बेनजीर के साथ मेरी राजनीतिक समानता भी है।

-अनिल नरेन्द्र

आप-कांग्रेस गठबंधन से भाजपा सतर्क


राजधानी में आप-कांग्रेस के बीच गठबंधन से भाजपा नेतृत्व सतर्क हो गया है। प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में योग्य प्रत्याशियों की तलाश शुरू हो गई है। आम आदमी पार्टी (आप) ने तो अपने चार लोकसभा प्रत्याशियों के नाम भी घोषित कर दिए हैं। दिल्ली की सातों सीटों पर पुन जीत का लक्ष्य रखते हुए योग्य प्रत्याशियों के चयन के लिए संबंधित संसदीय क्षेत्र के पदाधिकारियों से बात कर रिपोर्ट बनाई जा रही है। नमो एप पर सांसदों के कामकाज को लेकर आम जनता से प्रतिक्रिया ली जा रही है। इसे भी टिकट बंटवारे का आधार बनाया जा रहा है। माना जा रहा है कि अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं और जनता से दूरी बनाने वाले सांसदों की मुश्किल बढ़ सकती है। आप-कांग्रेस के बीच गठबंधन होने से लोकसभा चुनाव में लड़ाई आमने-सामने की हो गई है। इसे ध्यान में रखकर पार्टी प्रत्याशियों का चयन करेगी। कई सांसदों को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों के साथ उनके संबंध एवं क्षेत्र में उनकी सक्रियता की जानकारी एकत्रित की जा रही है। खबर है कि दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर संभावित प्रत्याशियों के नाम के सुझाव के लिए प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में रायशुमारी की गई है। प्रत्येक लोकसभा सीट के लिए दिल्ली भाजपा के एक वरिष्ठ नेता व पदाधिकारी को ऑब्जर्वर बनाया गया था। रायशुमारी करने वालों में पिछली बार विधानसभा चुनाव लड़े भाजपा प्रत्याशी, एमसीडी पार्षद, जिला अध्यक्ष, निवर्तमान जिलाध्यक्ष और जिला महामंत्री शामिल रहे। प्रत्येक लोकसभा सीट से 4 या 5 लोगों के नाम का सुझाव दिया था। लेकिन कार्यकर्ताओं में उत्साह इतना अधिक था कि इससे अधिक नामों का सुझाव दिया गया। कुल मिलाकर 40-50 नामों के सुझाव मिले हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार नई दिल्ली संसदीय सीट के लिए संभावित प्रत्याशियों की लिस्ट तैयार करने के लिए वेद व्यास महाजन और प्रदेश महामंत्री कवलजीत सहरावत को ऑब्जर्वर नियुक्त किया गया था। सूत्रों का कहना है कि यहां से जिन नामों के सुझाव मिले हैं उनमें दो चर्चित नाम हैं इनमें से एक केन्द्राrय मंत्री का भी नाम है। नार्थ-ईस्ट दिल्ली संसदीय क्षेत्र में संभावित प्रत्याशियों की लिस्ट तैयार करने के लिए प्रदेश मंत्री हरीष खुराना और प्रदेश महामंत्री योगेश चंदोलिया को ऑब्जर्वर बनाया गया था। प्रत्येक संसदीय सीट पर संभावितों के नाम के सुझाव देने के लिए 15 से 18 लोगों के टीम बनाई गई थी। ईस्ट दिल्ली संसदीय क्षेत्र के लिए ऑब्जर्वर पूर्व मेयर राजा इकबाल सिंह व अन्य एक पदाधिकारी को बनाया गया था। साउथ दिल्ली सीट के लिए ऑब्जर्वर अशोक देवराहा और जयभगवान अग्रवाल को बनाया गया था। सभी सातों सीटों के लिए कुल मिलाकर 40-45 नामों के सुझाव आए हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार सातों सीटों से जितने नाम लोगों के आए हैं, उन नामों की सूची एक पैकेट में प्रदेश अध्यक्ष को भेज दी गई है। यहां से ये लिस्ट प्रदेश प्रभारी को भेजी जाएगी। सूत्रों का कहना है कि प्रत्येक प्रभारी नामों की सूची केन्द्राrय नेतृत्व को भेजेंगे। इसमें देखने वाली बात यह है कि दिल्ली में 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल पूर्वी दिल्ली और उत्तर पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट के प्रत्याशी बदले गए थे। फिलहाल अंतिम मोहर लगने से पहले तक वर्तमान सांसद भी आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें इस बार टिकट मिलेगी भी या नहीं।