Saturday 31 August 2019

भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार की जीरो टॉलरेंस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कर-विभाग के 22 अधिकारियों पर गाज गिरी है। भले ही यह अपने आप में बहुत बड़ा फैसला न हो, लेकिन इससे हमारी उम्मीद बढ़ी है कि देश में भ्रष्टाचार खत्म करने में सरकार ठोस कदम उठाएगी। केंद्रीय अप्रत्यक्ष एवं सीमा शुल्क (सीबीआईसी) ने भ्रष्टाचार पर मुख्य नियम 56(जे) के तहत निरीक्षक स्तर के 22 अधिकारियों को भ्रष्टाचार और अन्य आरोपों में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया है। सीबीआईसी वैश्विक स्तर पर जीएसटी और आयात-कर संग्रह की निगरानी करती है। इस साल जून से तीसरी बार भ्रष्ट कर अधिकारियों पर कार्रवाई की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा था कि कर-प्रशासन के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए ईमानदार करदाताओं को परेशान किया हुआ है। इन अधिकारियों में दिल्ली का भी एक अधिकारी शामिल है जो जीएसटी ऑफिस में था। यह अधिकारी पिछले साल 1200 ग्राम की 10 सोने की ईंट की अवैध तस्करी में पकड़ गया था। वह इस सोने की ईंटों को दुबई भेज रहा था। इसके अलावा 11 नागपुर और भोपाल क्षेत्र के हैं। इन पर आरोप है कि इन्होंने इंदौर की एक कंपनी द्वारा गैर-कानूनी तरीके से सिगरेट विनिर्माण को मंजूरी दी थी। इनके अलावा चेन्नई, कोलकाता, मेरठ और चंडीगढ़ क्षेत्र के एक-एक और मुंबई, जयपुर, बेंगलुरु के दो-दो अधिकारियों को सेवानिवृत्त किया गया है। इसके अलावा 2003 में बेंगलुरु के अफसर गैर-कानूनी तरीके से मोबाइल फोन और कम्प्यूटर पार्ट की तस्करी करते वक्त बेंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से पकड़ा गया था। इन वस्तुओं को राजस्व खुफिया निदेशालय ने जब्त कर लिया था। अब तक कुल मिलाकर 27 अफसरों पर कार्रवाई हो चुकी है। इससे पहले भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के 27 उच्चस्तरीय अधिकारियों को इसी नियम के तहत अनिवार्य रूप से सेवानिवृति दी गई थी। इनमें 12 अधिकारी केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के थे। इन पर भ्रष्टाचार, यौन उत्पीड़न, आय से अधिक सम्पत्ति रखने का आरोप था। जबकि जून में सरकार ने सीबीआई के 15 आयुक्त स्तर के अधिकारियों को सेवानिवृत्त किया था। हमारे समाज में और सरकारी प्रशासनिक तंत्र में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हो चुकी हैं। ऐसी उम्मीद करना कि रातोंरात यह समस्या खत्म हो जाएगी गलत होगा पर भ्रष्ट अधिकारियों को नापना सही दिशा में सही कदम है। फिलहाल जो कोशिश की जा रही है, वह कहां तक जाएगी, यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन अच्छी बात यह है कि एक शुरुआत तो हुई है।

-अनिल नरेन्द्र

गजनवी मिसाइल परीक्षण से पाक ने कई निशाने साधने की कोशिश की है

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 से उत्पन्न हुए तनाव के बीच पाकिस्तान ने गुरुवार को परमाणु हथियार को ले जाने में सक्षम बैलेस्टिक मिसाइल गजनवी (हत्फ-3) का परीक्षण कर भारत को डराने का प्रयास किया है। यह मिसाइल चीन की एम-11 मिसाइल का पाकिस्तानी संस्करण है, जो 290 किलोमीटर दूरी तक मार कर सकती है। पाकिस्तान ने एक दिन पहले ही बुधवार को कराची हवाई क्षेत्र के तीन उड़ान मार्गों को 31 अगस्त तक बंद कर दिया, जिससे संभावित मिसाइल परीक्षण की अटकलें लगाई जा रही थीं। मुस्लिम गजनवी मिसाइल परीक्षण के जरिये पाकिस्तान ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है। तनावपूर्ण माहौल के बीच पाकिस्तान ने विश्व समुदाय और अपनी जनता को संदेश देने को मिसाइल परीक्षण किया है। भारत ने जहां अपनी सारी मिसाइलों के नाम पृथ्वी, अग्नि और त्रिशूल जैसे प्राकृतिक व भारतीय संस्कृति से जुड़े सकारात्मक शब्दों पर रखे हैं। वहीं पाकिस्तान ने ज्यादातर मिसाइलों के नाम आक्रमणकारियों पर रखे हैं। गजनवीöतुर्की फतेह करने वाले गजनवी शहर के महमूद गजनवी 998 ईस्वी में अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। उसका नाम भारत पर आक्रमण करने वाले उन आक्रांताओं में से है, जिन्होंने धन के लोभ में आक्रमण किए। गजनवी ने 1000-1027 ईस्वी में 17 बार भारत पर आक्रमण किए थे। गौरीöमहमूद गजनवी के बाद मोहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किया। भारत में तुर्प साम्राज्य का श्रेय मोहम्मद गौरी को दिया जाता है। कहा जाता है कि 1191 ईस्वी में तेहरान के पहले युद्ध में पृथ्वीराज ने गौरी को हराया था। 1192 में तेहरान के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को धोखे से हराकर बंदी बनाया था। बाबरöजहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर ने 1502 में काबुल पर जीत हासिल की। इब्राहिम लोधी द्वारा शासित दिल्ली सल्तनत पर 1519 में हमला कर दिया। लोधी को पहली लड़ाई में हरा दिया। बाबर पानीपत की लड़ाई में जीतने से पहले भारत पर चार आक्रमण कर चुका था। अव्वलीöअहमद शाह अब्दाली ने भारत पर 1748 से 1758 तक कई बार हमला किया। उसने सबसे बड़ा हमला सन 1757 में जनवरी माह में दिल्ली पर किया। अब्दाली ने दिल्ली और मथुरा में ऐसा विध्वंस किया कि आगरा-दिल्ली सड़क पर एक भी झोपड़ी ऐसी नहीं थी, जिसमें एक आदमी भी जीवित बचा हो। गजनवी मिसाइल का इस समय परीक्षण पाक सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए नहीं किया गया बल्कि युद्ध के उसी अभियान का हिस्सा है जिसे पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ छेड़ रखा है। जब कोई देश युद्ध का माहौल बनाता है तो उसे बार-बार अपनी जनता को दिखाना होता है कि वह युद्ध के लिए या किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। भारत को इस परीक्षण से कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि हम पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है।

Friday 30 August 2019

हाई कोर्ट के जज ने हाई कोर्ट प्रशासन पर लगाए गंभीर आरोप

हमारी न्यायपालिका में ऐसा कम हुआ है जब एक जज ने न्यायपालिका प्रणाली पर ही तीखा प्रहार किया हो। पटना हाई कोर्ट के इतिहास पर पहली बार ऐसा हुआ है। पटना हाई कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस राकेश कुमार ने कहाöलगता है कि हाई कोर्ट प्रशासन ही भ्रष्ट न्यायिक अधिकारियों को संरक्षण देता है। मैंने जब से शपथ ली, देख रहा हूं कि जज, मुख्य न्यायाधीश को मस्का लगाते रहते हैं ताकि भ्रष्ट अधिकारियों का फेवर किया जा सके। पटना के जिस एडीजे के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला साबित हुआ, उनको बर्खास्त करने की बजाय मामूली सजा दी गई, क्यों? उन्होंने निचली अदालत में हुए स्टिंग ऑपरेशन मामले का स्वत संज्ञान लेते हुए इसकी जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी। इस स्टिंग ऑपरेशन में निचली अदालत के कर्मियों को रिश्वत लेते हुए दिखाया गया था। वह बुधवार को पूर्व आईएएस अधिकारी केपी रमैया के मामले की सुनवाई कर रहे हैं। इसी दौरान अपने आदेश में यह सख्त टिप्पणियां कीं। जस्टिस राकेश कुमार ने रमैया की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी थी। उन्होंने आश्चर्य जताया कि हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज होने और सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने के बावजूद वे खुलेआम घूमते रहे। इतना ही नहीं, वे निचली अदालत से नियमित जमानत लेने में भी कामयाब रहे। उन्होंने इस पूरे प्रकरण की जांच करने के निर्देश पटना के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को दिया है। जस्टिस राकेश कुमार ने अपने लंबे-चौड़े आदेश में सूबे की निचली अदालतों और हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है। भ्रष्ट न्यायिक अधिकारियों को मिल रहे संरक्षण की चर्चा करते हुए अपने आदेश में कहा कि जिनके खिलाफ गंभीर आरोप पाया जाता है उसे भी नजरंदाज कर दिया जाता है। अनुशासनात्मक कार्रवाई में जिस न्यायिक अधिकारी के खिलाफ आरोप साबित हो जाता है उसे मेरी अनुपस्थिति में फुल कोर्ट की मीटिंग में बर्खास्त करने की बजाय मामूली सजा देकर छोड़ दिया जाता है। मैंने विरोध किया तो उसे भी नजरंदाज कर दिया जाता है। लगता है कि भ्रष्ट न्यायिक अधिकारियों को संरक्षण देने की परिपाटी हाई कोर्ट की बनती जा रही है। यही कारण है कि निचली अदालत के जज रमैया जैसे अफसर को जमानत देने की  घृष्टता करते हैं, जबकि हाई कोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया था। उन्होंने जजों के सरकारी बंगले पर होने वाली अनावश्यक खर्च पर भी सवाल खड़े किए। कहा कि टैक्सपेयर के करोड़ों रुपए बंगले की साज-सज्जा पर खर्च किया जाता है। जस्टिस कुमार ने अपने इस आदेश की प्रति सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम, पीएमओ, केंद्रीय कानून मंत्रालय के साथ सीबीआई निदेशक को भी भेजने का निर्देश दिया।

-अनिल नरेन्द्र

प्रेस की आजादी वन-वे ट्रैफिक नहीं हो सकती

सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज पोर्टल द वायर की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर तीखी व कठोर टिप्पणी की है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। लेकिन यह वन-वे ट्रैफिक नहीं हो सकती, पीत पत्रकारिता को जगह नहीं मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मंगलवार को यह तीखी टिप्पणी तब की जब वह द वायर की तरफ से अपनी याचिका वापस लेने के लिए लगाई अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह की तरफ से दाखिल मानहानि मामले में गुजरात हाई कोर्ट की तरफ से न्यूज पोर्टल पर मुकदमा चलाने के लिए दिए गए आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी। करीब डेढ़ वर्ष से लंबित याचिका वापस लेने की इजाजत न्यूज पोर्टल ने दी थी। जय ने अवमानना याचिका द वायर में लिखे पर दाखिल की थी। मानहानि के केस को निरस्त करने वाली याचिका को जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने वापस लेने की अनुमति तो दे दी, लेकिन तीखी नाराजगी जताने से नहीं चूकी। पीठ में जस्टिस बीआर शाह और जस्टिस गवई भी शामिल थे। जय शाह को स्पष्टीकरण के लिए केवल चार-पांच घंटे का समय देने और बिना स्पष्टीकरण के ही खबर जारी करने पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने पूछा कि यह किस तरह की पत्रकारिता है? न्यायपालिका के बारे में कुछ न्यूज पोर्टल पर जारी होने वाली खबरों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे हम भी पीड़ित रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में स्वत संज्ञान ले सकता है। लेकिन अंतत याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी। याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल के बीच तीखी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की पत्रकारिता संस्थाओं का बहुत ज्यादा नुकसान कर चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि इस मामले में पहले ही काफी समय बीत चुका है इसलिए निचली कोर्ट को जल्द से जल्द मामले की सुनवाई पूरी करनी चाहिए। गौरतलब है कि वायर ने 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद हुए गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले जय शाह की एक कंपनी में कई गुना ज्यादा लेनदेन की खबर छापी थी। खबर को इस तरह से पेश किया गया था कि जय शाह की कंपनी को अनुचित लाभ मिला हो। जय शाह ने खबर छापने वाले न्यूज पोर्टल, उसके संस्थापक, संपादकों, प्रबंध संपादक, लोक संपादक, खबर लिखने वाले पत्रकार के खिलाफ कोर्ट में मानहानि का केस दर्ज किया था। शुरुआती सुनवाई में आरोपों को सही पाते हुए केस चलाने का फैसला लिया था। मगर इससे बचने के लिए सभी आरोपियों ने गुजरात हाई कोर्ट से केस रद्द करने की गुहार लगाई थी। हाई कोर्ट ने मानहानि के आरोपों को सही मानते हुए केस चलाने की इजाजत दी थी। हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सभी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

Thursday 29 August 2019

मोदी से लड़ने के तरीके पर कांग्रेस में मतभेद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर बात पर विरोध करना क्या अब कांग्रेस को महंगा पड़ रहा है? अभी इसलिए क्योंकि पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के बड़े नेता खुलकर इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि मोदी को खलनायक की तरह पेश करना पार्टी हित में नहीं है। ऐसा करके विपक्ष एक तरह से उल्टा मोदी की ही मदद कर रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश के बाद मनु सिंघवी ने भी ट्वीट कर कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को खलनायक की तरह पेश करना गलत है। विपक्ष सिर्प उनके विरोध का रास्ता अख्तियार किए हुए है। इससे सही मायनों में प्रधानमंत्री को ही फायदा हो रहा है। किसी भी व्यक्ति के काम अच्छे, बुरे और कुछ अलग हो सकते हैं। इनका व्यक्ति नहीं बल्कि मुद्दों के आधार पर आकलन किया जाना चाहिए। निश्चित रूप से उज्जवला स्कीम उनके कई अच्छे कामों में से एक है। इससे पहले जयराम रमेश ने कहा था कि अगर मोदी को हमेशा खलनायक बताया जाता रहेगा तो आप उनका सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। वे (मोदी) ऐसी भाषा बोलते हैं, जिसमें लोग जुड़ते हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद से ही कांग्रेस में अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है। अनुच्छेद 370 का मामला हो या फिर चिदम्बरम की गिरफ्तारी या कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का, पार्टी का स्टैंड हर मुद्दे पर बंटा हुआ नजर आता है। अनिर्णय की स्थिति ने इन सारे मामलों ने पार्टी की गलत छवि पेश कर दी है। कांग्रेस के अधिकांश नेता मानते हैं कि हर बात के लिए सीधे मोदी पर हमला करने की रणनीति नाकाम होने के बावजूद पार्टी इसी रुख पर कायम है, जिसमें वह आम लोगों से जुड़ नहीं पा रही। वे इसके लिए राफेल, राष्ट्रवाद व अनुच्छेद 370 का सीधा उदाहरण देते हैं। वरिष्ठ नेता शशि थरूर की भी कुछ ऐसी ही राय है। हाल में उनका बयान था कि मैं छह साल पहले से ही यह कहता आ रहा हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर अच्छा काम करते हैं तो उसकी प्रशंसा भी होनी चाहिए। कांग्रेस पार्टी में इन बयानों का विरोध हो रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से भी कहा कि जब पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल (हार और अनुच्छेद 370 को लेकर) गिरा हुआ है, तब वरिष्ठ नेताओं के ऐसे बयान पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। बताया जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, आनंद शर्मा और कुमारी शैलेजा सरीखे कई वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस हाई कमान को कहा है कि पार्टी में अनुशासन कायम किए जाने की जरूरत है। सोनिया गांधी से कहा है कि व्यक्तिगत राय बताकर पार्टी लाइन के खिलाफ बोलने वाले नेताओं को तुरन्त नसीहत दी जाए। संभव है कि कांग्रेस अध्यक्ष इन नेताओं पर लगाम लगाएंगी।

-अनिल नरेन्द्र

1.76 लाख करोड़ रुपए का सही इस्तेमाल होना चाहिए

आखिरकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी जमा पूंजी से सरकार को चालू वित्त वर्ष के लिए 1.76 लाख करोड़ रुपए देने का फैसला कर ही लिया। रिजर्व बैंक के इतिहास में पहली बार यह हो रहा है कि रिजर्व बैंक सरकार को अपनी सुरक्षित जमा पूंजी में से इतनी मोटी रकम देने जा रहा है। यह रकम इतनी बड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जीएसटी से संग्रह प्रति माह करीब एक लाख करोड़ रुपए का हो रहा है। गौरतलब है कि गत शुक्रवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए कुछ कदमों की घोषणा की थी। इनमें से एक थी सरकारी बैंकों को 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी फौरन दी जाएगी। केंद्रीय बैंक ने यह ऐतिहासिक फैसला जालान समिति की सिफारिश पर किया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में आरबीआई ने सोमवार को 1,76,051 करोड़ रुपए सरकार को देने की मंजूरी दी है। यह सिफारिश पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति ने की थी। लेकिन आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल इसके खिलाफ थे। इसी वजह से उन्होंने और डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने इस्तीफा दिया था। पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सरकार के कदम का विरोध करते समय अर्जेंटीना का उदाहरण दिया था। 6.6 बिलियन डॉलर सरकार को देने के दवाब में अर्जेंटीना सैंट्रल बैंक के गवर्नर मार्टिन रेडरेडो ने भी इस्तीफा दिया था। बाद में सरकार को फंड मिल गया। इसके कुछ महीने बाद ही अर्जेंटीना के बांड करेंसी और स्टाक मार्केट धाराशायी हो गए। सवाल यह है कि सरकार रिजर्व बैंक से मिलने वाली इस रकम का कैसा इस्तेमाल करेगी? जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सरकार ने आरबीआई से मिले कोष के उपयोग के बारे में निर्णय नहीं किया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने आरबीआई का आरक्षित धन जुटाने के कांग्रेस के आरोप पर भी कड़ी प्रतिक्रिया जताई। उन्होंने कहा कि वह ऐसे आरोपों की परवाह नहीं करती और विपक्षी नेता ऐसे आरोप लगाते ही रहते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरबीआई की ओर से सरकार को रिकॉर्ड नकद धन हस्तांतरित करने के निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को स्वयं पैदा किए हुए आर्थिक संकट के समाधान का रास्ता पता नहीं है। इसी सन्दर्भ में कांग्रेस नेता ने सरकार पर केंद्रीय बैंक से धन चोरी का आरोप लगाया। यह पैसा सरकार को मिलने वाला था पर सरकार इसका इस्तेमाल कैसे करेगी यह महत्वपूर्ण है। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय बैंक पूर्व में इस तरह पैसे दिए जाने के पक्ष में नहीं रहा है। जाहिर है कि आरबीआई को कहीं न कहीं  इसे लेकर कुछ संदेह रहे होंगे। मसला यह नहीं है कि पैसे मांगे जा रहे हैं बल्कि इन पैसों को किन-किन मदों में और कैसे खर्च किया जाना है, इसमें सरकार और बैंक के बीच पारदर्शिता होनी चाहिए। हालांकि केंद्रीय बैंक सरकार को हर साल सरप्लस पैसा देता रहा है, जो एक तरह से लाभांश ही होता है। तात्कालिक तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि इस पैसे का इस्तेमाल देश को मौजूदा आर्थिक संकट से निकालने का होगा। इस पैसे के इस्तेमाल पर बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्राr समीर नारंग और इंडियन ओवरसीज बैंक के पूर्व सीएम डीएस नरेंद्र ने बताया कि सरकार बजट से पहले बता चुकी थी कि आरबीआई से मिलने वाले फंड को इंफ्रास्ट्रक्चर, हाउसिंग, रेलवे और सड़क निर्माण में इस्तेमाल किया जाएगा। दूसरी ओर इस फंड से बाजार का प्रवाह बढ़ेगा। इस खबर से ही बाजार में तेजी देखने को मिल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है, देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। जीडीपी निरंतर गिर रही है। अर्थव्यवस्था के सभी सूचकांक नीचे हैं। रुपए का लगातार अवमूल्यन हो रहा है। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि रिजर्व बैंक को यह राशि 1.76 लाख करोड़ की बजट में शॉर्टफाल के लिए इस्तेमाल की जाएगी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अर्थव्यवस्था की जैसी हालत है उसमें नई ताकत की जरूरत है। बैंकों की हालत खस्ता है, जिनके फिर से पूंजीकरण की जरूरत है, वहीं नोटबंदी के बाद से एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) सुस्त पड़े हैं और ऑटो मोबाइल क्षेत्र अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इसके साथ ही राजकोषीय घाटे को नियंत्रण रखना एक बड़ी चुनौती है। बिक्री घटने के साथ ही रोजगार भी खत्म हो रहे हैं। अब रिजर्व बैंक ने तो अपना काम कर दिया है अब देखना यह है कि सरकार इस पूंजी का सही इस्तेमाल करती है या नहीं?

Wednesday 28 August 2019

पहलू के हत्यारों को बचाने में जुटी थी पुलिस

गौरतलब है कि एक अपैल 2017 को हरियाणा के नूहं निवासी पहलू खान को बेहरोड में हाईवे पर भीड़ ने घेर लिया और जमकर पिटाई की। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी। अदालत ने 6 आरोपियों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। इस मॉब लिचिंग की पूरे देश में चर्चा हुई और सुर्खियां बनी। आरोपियों के बरी होने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर मामले की फिर से जांच करने हेतु एसआईटी को गठित करने का निर्देश दिया। मामले की जांच में जुटी एसआईटी (स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम) के सामने पुलिस की कई खामियां नजर आई है। पुलिस की आरोपियों से मिली-भगत नजर आई है, वह इस ओर इशारा करती है कि पुलिस हत्यारोपियों को सजा दिलाने की बजाए उन्हें बचाने में जुटी थी। पारंभिक जांच में सामने आया कि पुलिस के सिस्टम ने पहलू खान को एक बार नहीं बल्कि कई बार मारा। दो fिदन की पारंभिक जांच में एसआईटी अधिकारियों ने माना कि यदि पुलिस अधिकारी सही तरीके से जांच करते तो अलवर एडीजे से कोर्ट में छह आरोपी बरी नहीं हो सकते थे। बता दें कि मामले में यह पांचवीं बार जांच हो रही है। सूत्रों के अनुसार एसआईटी को कुछ वीडियो मिले हैं जिसमें साफ दिख रहा है कि स्थानीय पुलिस की मौजूदगी में किस तरह से लोगों ने पहलू खान की बेरहमी से पिटाई की। वह घायल हो गया, तब पुलिस ने उसे बचाया। इसके बाद पहलू खान चार घंटे तक सड़क के किनारे पड़ा रहा। उसके बाद रात के 11 बजे उसे बेहरोड के एक निजी अस्पताल में भेजा गया। एसआईटी की जांच में सामने आया है कि पहलू खान ने जिन छह लोगों को आरोपित बताया था वह हिंदुवादी संगठनों से जुड़े थे। जैसे ही उनके नाम सामने आए, तत्कालीन भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहुजा ने उनकी पैरवी की। तत्कालीन गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने भी आहुजा को सही मानते हुए आरोपियों का बचाव किया। इसके बाद पुलिस ने जांच में छह आरोपियों को निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया। पुलिस ने एक वीडियो फुटेज के आधार पर नौ आरोपियों की पहचान का दावा किया, लेकिन जब केस का कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ तो चार्जशीट दाखिल करते वक्त जांच अधिकारी ने वीडियो बनाने वाले रविंद यादव को कोर्ट में पेश तक नहीं किया। वीडियो को एफएमएल जांच के लिए भी नहीं भेजा। न ही पहलू खान के दोनों बेटों से आरोपियों की शिनाख्त कराई। उम्मीद की जाती है कि एसआईटी बिना भेदभाव के इस जघन्य हत्या को अंजाम देने वाले कसूरवार हत्यारों को सलाखों तक पहुंचाएगी और पहलू खान की आत्मा को शांति मिलेगी, इंसाफ होगा।

-अनिल नरेन्द्र

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मोदी की बड़ी कूटनीतिक जीत

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मोदी ने कश्मीर मुद्दे पर भारी सफलता हासिल की है। फांस के बिआरित्ज में जी-7 की बैठक में मोदी की भरी भावभंगिमा से स्पष्ट हो गया कि वह कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका सहित अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का समर्थन हासिल करने में सफल रहे। खासतौर पर अमरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजदूगी में मोदी का यह कहना कि द्विपक्षीय मुद्दे पर वे किसी तीसरे देश को कष्ट नहीं देना चाहते, भारत का कश्मीर मुद्दे पर कड़ा रूख जाहिर करता है। भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करना भारत का आंतरिक मामला है। इसमें तीसरे देश के दखल की कोई गुंजाइश नहीं है। मोदी की दुनिया के तमाम देशें के साथ निजी कैमिस्ट्री कूटनीतिक रूप से भारत के लिए मददगार हो रही है। वह डोनाल्ड ट्रंप को यह जताने में कामयाब रहे कि दोनों देशों के मजबूत सामरिक और व्यापारिक रिश्तों में पाकिस्तान से नूराकुश्ती आड़े नहीं आनी चाहिए। पाकिस्तान आवश्यक रूप से कश्मीर में दखल की कोशिश कर रहा है, भारत के इस फैसले से भौगोलिक सीमा में कोई बदलाव नहीं हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप और नरेन्द मोदी की मुलाकात में बेfिफकी भी दिखी और ठहाके भी। इनकी अंग्रेजी बहुत अच्छी है, लेकिन ये बात करना ही नहीं चाहते ट्रंप ने हंसते हुए कहा। एक दोस्त के इतना कहते ही दूसरे दोस्त (मोदी) जोर से हंस पड़े, दोनों ने एक-दूसरे के हाथों को गर्मजोशी से पकड़ लिया। एक ने दूसरे के हाथों पर दोस्ती में रची-बसी हल्की सी चपत भी लगा दी और कुछ देर तक हंसी गूंजती रही। एक दोस्त दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का पधानमंत्री और दूसरा सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका का राष्ट्रपति। फांस के खूबसूरत शहर बिआरित्ज में सोमवार को भारत के पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जी-7 सम्मेलन में यह मुलाकात हुई। जी-7 सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे नरेन्द्र मोदी ने यहां कई देशों के पमुखों से मुलाकात की। इस दौरान ट्रंप और मोदी की मुलाकात का इंतजार सबको था। यह मुलाकात इसलिए भी अहम हो गई थी, क्योंकि पिछले महीने पाकिस्तान के पधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात के दौरान कश्मीर मसले पर ट्रंप के बयान से हालात कुछ तल्ख हो गए थे। लेकिन जैसे ही फांस में मोदी और ट्रंप की मुलाकात आगे बढ़ी, ट्रंप को लेकर कुछ दिनों में बनी अविश्वास की छवि भी साफ होती दिखी। मुलाकात में दोनों नेताओं का सहज अंदाज से लगा मानों पुराने दोस्त कई दिन बाद मिले हों। ऐसे समय जब बिआरित्ज में दुनिया के दिग्गज नेता जुटे हुए हों और सबकी नजरे वहां टिकी हों, पधानमंत्री के इस स्पष्ट रुख से भारत की कूटनीतिक जीत की तरह देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर पर उठाए गए मोदी सरकार के कदमों का फांस, रूस जैसे देश पहले ही समर्थन कर चुके हों और स्वीकार करने कि यह पूरी तरह से उनका आंतरिक मामला है इसकी पुष्टि करती हैं कि तमाम देशों ने इसे मान लिया है। ट्रंप के ताजा रुख से भारत की स्थिति और मजबूत हुई है और एक तरह से पाकिस्तान के लिए भी संदेश है कि वह आतंकवाद के मुद्दे पर अपना रुख बदले वरना उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। आखिर तीन दिन पहले ही आतंकी फंडिंग की निगरानी करने वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई की है और अब उसके पास इसकी काली सूची से बचने के लिए महज अक्टूबर तक का समय है। यह आवश्यक है कि भारत सभी आवश्यक मंचों पर यह स्पष्ट करे कि वह कश्मीर में मध्यस्थता का राग सुनने को इसलिए तैयार नहीं, क्योंकि यह उसका अपना आंतरिक मामला है और पाकिस्तान से कोई बात होती है तो वह उसके कब्जे वाले भारतीय भू-भाग को लेकर ही होगी।

Tuesday 27 August 2019

दुनिया का फेफड़ा कहे जाने वाले अभेद्य जंगल में लगी भयंकर आग

दो हफ्ते से ज्यादा समय से ब्राजील स्थित दुनिया के सबसे बड़े रेन फॉरेस्ट अमेजन जंगल धू-धू कर जल रहे हैं। ब्राजील के इस जंगल में लगी आग बढ़ती ही जा रही है। आग हर मिनट 3 फुटबॉल मैदान जितने इलाके को कवर कर रही है। ब्राजील सहित कुल 9 देशों तक फैले इन जघन्य जंगलों को दुनिया का फेफड़ा कहा जाता है। दुनियाभर में इसे लेकर चिन्ता क्यों है और इस आग में हमारा क्या-क्या जलकर खाक हो रहा है, आइए इस पर नजर डालते हैं। कहा जाता है कि जंगल है तो जल है। जंगल से पृथ्वी की आमद पर सबसे अच्छा असर पड़ता है। दुनिया के 10 प्रतिशत रेन फॉरेस्ट अमेजन के भूभाग पर है। ये जंगल जल गए तो धरती बारिश के लिए तरस जाएगी। इंसानी सांस चलाने वाली ऑक्सीजन में अमेजन के जंगलों की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत बताई जाती है। ये जंगल जले तो धरती पर कार्बन डाइआक्साइड बड़ी मात्रा में घर कर लेंगे। अमेजन की आग से केवल इस साल 228 मेगाटन कार्बन डाइआक्साइड वायुमंडल में तैर रहा है। पर्यावरण की शुद्धता पर यह सबसे बेरहम मार है। दहकते सूरज के सामने जंगल इंसान के माथे की छतरी हैं। वे सूरज की तेज किरणों को थामते हैं। अमेजन के जंगल जिस रफ्तार से जल रहे हैं उससे आग के दरम्यान और आग के बाद धरती पर गर्मी बेहिसाब बढ़ जाने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन पर इसका बेहद बुरा असर पड़ेगा। बता दें कि अमेजन के जंगल की बहुत अहमियत है। दुनिया की एक-तिहाई जीव-जन्तुओं का एक घर है अमेजन के जंगल। यह धरती पर अद्भुत जैव संतुलन कायम रखते हैं। अमेजन जंगल में 16 हजार से ज्यादा पेड़-पौधों की प्रजातियां हैं। 55 लाख वर्ग किलोमीटर फैले अमेजन के क्षेत्रफल में 39 हजार करोड़ पेड़ आबाद हैं। 5 हजार ज्यादा नायाब चीजें इन जंगलों की मदद से बनती हैं। इनमें लकड़ियां, ईंधन, भोजन के अलावा दवाइयों की अचूक जड़ी-बूटियां सबसे अहम हैं। 400 से ज्यादा यानि धरती पर आबाद कुल 50 प्रतिशत आदिवासी प्रजातियों का घर है अमेजन जंगल। उन्होंने बाहर की दुनिया की चमक-दमक को अस्वीकार कर रखा है। इनके जंगलों के जलने या कटने से ये अचानक बेघर हो जाएंगे। ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो ने कहा है कि सेना लगाकर आग पर काबू पाएंगे। ब्राजील सहित दूसरे दक्षिण अमेरिकी देशों के राष्ट्र प्रमुख इसके लिए दुनिया से बढ़ते दबाव पर टिप्पणी कर रहे थे। यूएन, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी समेत तमाम देशों ने आग से रेन फॉरेस्ट पर मंडरा रहे संकट पर चिन्ता जताई है। साथ ही आग बुझाने के लिए अमेरिकी देशों को आगे आने की अपील की है। पर्यावरणविदों और सेलिब्रिटी भी अमेजन को बचाने की अपील कर रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस आग को ग्लोबल संकट बताया है। कहाöयह जी-7 समिट का प्रमुख एजेंडा होगा।

-अनिल नरेन्द्र

पीवी सिंधु ने रचा इतिहास

खेलों में रविवार का दिन भारत की बेटियों के लिए स्वर्णिम रहा। पीवी सिंधु ने बीडब्ल्यूएफ विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में महिला एकल खिताब जीतकर इतिहास रच दिया। वह इस प्रतिष्ठित चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बन गई हैं। इससे पहले कोई भी पुरुष या महिला भारतीय शटलर यह उपलब्धि हासिल नहीं कर सका था। 5वीं वरीयता प्राप्त खिलाड़ी पीवी सिंधु ने अपना वर्चस्व साबित करते हुए सिर्प 38 मिनट चले एकतरफा फाइनल मुकाबले में जापान की नाजोमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से रौंद कर स्विट्जरलैंड के बासेल शहर में विश्व चैंपियन के ताज पर कब्जा कर लिया। 2017 से फाइनल में ओकुहारा से मिली हार का हिसाब भी बराबर कर लिया। सिंधु ने तीसरे प्रयास में यह जीत दर्ज की। इससे पहले उन्हें दो बार रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। कितना गर्व होगा उस परिवार को जिसकी संतान ने दुनिया के बैडमिंटन इतिहास में महिला विश्व चैंपियनों की सूची में भारत का नाम आखिरकार दर्ज कराकर ही दम लिया। बिना शोरगुल के एक हल्की-सी आहट के बीच पांच फुट 10 इंच की इस लड़की ने अपनी मेहनत से बैडमिंटन की दुनिया में अपने कद को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा कर ही दम लिया। अपनी मां के जन्मदिन के दिन ही स्वर्ण खिताब को जीत घर-परिवार सहित देश की झोली में खुशियां ही खुशियां भरकर इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बन गईं। बैडमिंटन विश्व चैंपियन बनते ही पीवी सिंधु के तमाम कमाल हर किसी की जुबान पर छा गए। यकीनन समूचे भारत और दुनियाभर में रह रहे भारतीयों के लिए बेहद फख्र की बात है। बैडमिंटन में भारत की इस उभरती हुई खिलाड़ी ने अपने प्रदर्शन को और भी बेहतर बनाते हुए कई खिताब जीते हैं। पेशेवर पूर्व बॉलीवाल खिलाड़ी दम्पत्ति पीवी रमण और श्रीमती पी. विजया के घर 5 जुलाई 1995 को जन्मी पीवी सिंधु के पिता को बॉलीवाल में उत्कृष्ट योगदान के लिए साल 2000 में भारत सरकार का प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार भी मिल चुका है। लेकिन पीवी सिंधु का रूझान बैडमिंटन में महज 6 साल की उम्र में उस वक्त से हो गया जब पुलेला गोपीचंद ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन के चैंपियन बने। 8 साल की होते-होते सिंधु बैडमिंटन में ऐसी रमी कि फिर कभी पीछे नहीं देखा। इंडियन रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार के बैडमिंटन कोर्ट में अपने पहले गुरु महबूब अली से बैडमिंटन की शुरुआती बारीकियों को समझा और बाद में पहले से ही प्रभावित पुलेला गोपीचंद के गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी चली गईं जो उनके घर से 56 किलोमीटर दूर थी। पीवी सिंधु पर हर भारतीय को गर्व है। हो भी क्यों न, क्योंकि वो स्वयं स्थापित आईकॉन है जिनकी डिक्शनरी में नामुमकिन शब्द ही नहीं है। निश्चित रूप से सिंधु युवाओं के लिए नई प्रेरणास्रोत हैं और बैडमिंटन के प्रति आकर्षण बढ़ाती हैं।

पाक पीओके में भारत से जंग की तैयारी में जुटा

जी-7 की बैठक के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात से बौखलाए पाकिस्तान ने कुछ ही देर बाद इमरान खान ने अपने सरकारी टीवी पर अपनी अवाम को संबोधित करते हुए कहा कि कश्मीर पर दुनिया में कोई हमारा साथ नहीं दे रहा। दोनों तरफ परमाणु हथियार हैं। अगर युद्ध हुआ तो दोनों देशों के साथ पूरी दुनिया की तबाही होगी। हम कश्मीर के लिए किसी हद तक जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में एक बार तल्खी आ गई है। एक तरफ प्रधानमंत्री इमरान खान दुनिया से कश्मीर मसले पर कूटनीतिक मदद की अपील कर रहे हैं तो दूसरी ओर पाकिस्तान आर्मी ने चुपचाप पीओके में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। बालाकोट हमले से सीख लेते हुए आर्मी इस बार पहले से कहीं ज्यादा सोच-समझकर रणनीति बना रही है। इसीलिए घाटी से 370 हटने के अगले दिन से ही पाक सेना एलओसी पर सक्रिय हो गई है। पाक आर्मी के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक सेना भारत के साथ एक छोटे युद्ध की तैयारी में जुटी है। आर्मी के अफसर कश्मीर में `स्टेटस को' बदलने के बाद सैन्य जवाब देने की रणनीति पर तेजी से काम कर रहे हैं। पाक मिलिट्री के एक कमांडिंग अफसर जो पीओके दाना सेक्टर में तैनात है, उन्होंने बताया कि मौजूदा हालात किसी युद्ध की तैयारी से कम नहीं हैं। एलओसी के करीब जिस तरह से गोली-बारूद और साजो-सामान इकट्ठा किया जा रहा है, वो तरीका सामान्य नहीं है। हालात से तो यही लगता है कि युद्ध कभी भी छिड़ सकता है। सूत्रों से पता चला है कि एलओसी के हर क्षेत्र में सेना की 6 ब्रिगेड जमा की जा रही हैं। सेना का मुख्य फोकस दाना और बाघा सेक्टर में है, क्योंकि लॉजिस्टिक और रणनीतिक रूप से ये क्षेत्र बेहद अहम हैं। इन ब्रिगेडों के साथ हैवी आर्टिलरी भी इस इलाके में  पहुंचाई जा रही है। सबसे ज्यादा हैवी आर्टिलरी बाघा, लीपा और चंबा सेक्टर में ही जुटाई जा रही है। इस्लामाबाद और सियासी गलियारों में भी यह सुगबुगाहट है कि पाकिस्तान युद्ध की तैयारी में जुट गया है। पाक फौज के एक उच्चस्तरीय अफसर ने बताया कि कब युद्ध शुरू हो जाएगा, यह कहना मुश्किल है। पर यह तय है कि भारत और पाकिस्तान की सेनाएं युद्ध के लिए तैयार हैं। यह भी तय है कि जो कुछ भी होना है वह सितम्बर से अक्तूबर के बीच होना है। क्योंकि फिर बर्प पड़नी शुरू हो जाएगी और युद्ध लड़ना असंभव हो जाएगा। पाक सेना का मानना है कि बर्प पड़ने से पहले भारत उन्हें नीलम नदी से पीछे धकेलना चाहती है। फिर अगली गर्मी तक के लिए दोनों सेनाओं का यह स्टैंड स्टिल पोजीशन बन जाएगी। अगर ऐसा होता है तो सेना हर हालत में इसे रोकेगी। 21 अगस्त को न्यूयॉर्प टाइम्स को दिए इंटरव्यू में पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि अब भारत से बात करने का कोई तुक नहीं बनता है। जिस तरह का वातावरण चल रहा है एक लिमिटेड वार का खतरा बढ़ता जा रहा है।

मान न मान मैं तेरा मेहमान

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर मुद्दे पर तीसरी बार मध्यस्थता की पेशकश कर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आदतन खुद की मजबूत छवि पेश करने की कोशिश भले ही की हो, लेकिन इस प्रक्रिया में उन्होंने अपनी ही छवि को धक्का पहुंचाया है। पता नहीं, यह उनकी अफगानिस्तान में तुरत-फुरत कुछ कर दिखाने की तमन्ना है या कोई बेसब्री, ट्रंप आजकल आए दिन कोई न कोई नया शिगूफा छोड़ रहे हैं। एक दिन वह कहते हैं कि भारत ने उनसे कश्मीर पर मध्यस्थता के लिए कहा है और दूसरे दिन ही इससे पलट जाते हैं। दो दिन बाद फिर दोहरा देते हैं कि वह मध्यस्थता के लिए तैयार हैं। इतने पर ही नहीं रुके ट्रंप, उन्होंने कश्मीर को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी कर डाली, जिसकी न तो कम से कम अमेरिकी राष्ट्रपति से उम्मीद थी और न ही इसकी जरूरत थी। अब उन्होंने ताजा शिगूफा छोड़ा है कि भारत को अफगानिस्तान में आकर आतंकवाद से लड़ने का काम करना चाहिए। यह भी कहा कि भारत ने अफगानिस्तान में कुछ नहीं किया। शायद उनकी सोच यह हो कि अमेरिका सात हजार किलोमीटर की दूरी से काम कर रहा है और भारत, पाकिस्तान व रूस आसपास होते हुए भी कुछ नहीं कर रहे। अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की मौजूदगी को लेकर उनके देश पर जो दबाव है, उन्हें समझा जा सकता है, लेकिन बयानों की बेसब्री डोनाल्ड ट्रंप दिखा रहे हैं वह कतई स्वीकार्य नहीं है। उन्हें पता होना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान के विपरीत भारत सरकार कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता कभी स्वीकार नहीं करेगी। सिर्प यही नहीं कि फ्रांस, ब्रिटेन और बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों ने अनुच्छेद 370 पर फैसले को भारत का आंतरिक मामला बताते हुए कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा बता चुके हैं, बल्कि हद तो यह है कि ट्रंप ने पिछले सप्ताह आई अमेरिकी विदेश मंत्रालय की उस प्रतिक्रिया तक की अनदेखी कर दी, जिसमें कहा गया था कि कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान को ही सुलझाना है। यह पहला मौका नहीं जब ट्रंप ने भारत की भूमिका को लेकर व्यंग्य कसे हों। कुछ समय पहले भी उन्होंने वहां लाइब्रेरी बनवाने को लेकर भारत का मजाक उड़ाया था। जबकि हकीकत यह है कि पूरी दुनिया और खुद अफगानिस्तान ने कई मौकों पर भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया है। भारत अब तक अफगानिस्तान में तीन अरब डॉलर से ज्यादा की रकम खर्च कर चुका है। यह उम्मीद है कि फ्रांस में जो जी-7 की बैठक में कश्मीर पर अपना पक्ष भारत की तरफ से रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्थिति को एक बार और स्पष्ट करेंगे। इतना तय है कि समय एक बार फिर बताता है कि ट्रंप किसी के दोस्त या हितैषी नहीं हो सकते।

-अनिल नरेन्द्र

भाजपा के संकटमोचक और चाणक्य जेटली का जान

सुषमा स्वराज राजनीति से क्या गईं, 18 दिन बाद ही राजनीति के अरुण का अस्त हो गया। अरुण जेटली नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद उन्हें 9 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था। जेटली सॉफ्ट टिश्यू कैंसर से पीड़ित थे। अजीब इत्तेफाक रहा कि सुषमा और जेटली दोनों का जन्म 1952 में हुआ था। दोनों की मृत्यु भी इसी साल अगस्त में हो गई। दोनों पहली बार वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। सुषमा 1996 में और जेटली 1999 में। दोनों नेता प्रतिपक्ष रहे। सुषमा लोकसभा में और अरुण राज्यसभा में विपक्ष के नेता चुने गए थे। दोनों ने ही सुप्रीम कोर्ट में वकालत भी की थी। दोनों की किडनी ट्रांसप्लांट और दोनों की मौत भी एम्स में हुई। मैं अरुण जी से पिछले साल सर्दियों में मिला था। उन्होंने मेरे पिता स्वर्गीय के. नरेन्द्र जी से जुड़े कई किस्से बताए। छात्र राजनीति के समय जब अरुण कोई कार्यक्रम रखते थे तो वह मेरे पिता स्वर्गीय के. नरेन्द्र को अध्यक्षता करने के लिए बुलाते थे। एक बार पिताश्री ने अरुण जी से पूछा कि आप हर बार मुझे ही क्यों बुलाते हैं? आपको कोई और अध्यक्षता करने के लिए नहीं मिलता? इस पर अरुण जी ने कहा कि आप ही आसानी से मिल जाते हो इसलिए हम आपको ही बुलाते हैं। अरुण जेटली का जाना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। अरुण जेटली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकटमोचक भी थे और मोदी के चाणक्य भी। जब भी भाजपा किसी समस्या में फंसती थी अरुण जेटली ही उसे बाहर निकालते थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण तहलका मामले में फंसे तो अटल जी को सलाह दी कि पार्टी के टॉप नेता चन्दा न लें। अटल जी मान गए। कोषाध्यक्ष ही चन्दा लेगा, ऐसी व्यवस्था का अरुण जेटली की ही सलाह पर अमल हुआ। 2002 के गुजरात दंगों के बाद मोदी की कानूनी दिक्कतें दूर करने की जिम्मेदारी जेटली ने ही उठाई। लोग इसलिए उन्हें मोदी का चाणक्य भी मानते थे। जेटली ने भाजपा में जूनियर और सीनियर नेताओं को प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के नाम पर राजी किया। 2010 में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में कोर्ट ने अमित शाह के गुजरात में प्रवेश पर रोक लगाई थी। तब शाह मदद मांगने जेटली के घर पहुंचे। उन्होंने शाह के वकीलों को गाइड किया और तब जाकर अमित शाह पर रोक हटी। अरुण जेटली एक नेक, दरियादिल इंसान थे। कुछ बातें अब पता लगती हैं। जहां अरुण जेटली के बच्चे पढ़े उन्होंने अपने ड्राइवर और कुक के बच्चों को भी वहीं पढ़ाया। दान वही जो गुप्त दान हो और मदद वही जो दूसरे हाथ को भी पता न चले। पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली भी कुछ ऐसा ही किया करते थे। जेटली अपने निजी स्टाफ के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाते थे। उनके परिवार की देखरेख भी अपने परिवार की देखरेख की तरह करते थे, क्योंकि वे उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते थे। दूसरी ओर कर्मचारी भी परिवार के सदस्य की तरह जेटली की देखभाल करते थे। उन्हें समय पर दवा देनी हो या डाइट, सबका खूब ख्याल रखते थे। जेटली ने एक अघोषित नीति बना रखी थी जिसके तहत उनके कर्मचारियों के बच्चे चाणक्यपुरी स्थित उसी कार्मल कान्वेंट स्कूल में पढ़ते थे, जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं। अगर कर्मचारी का कोई प्रतिभावान बच्चा विदेश में पढ़ने का इच्छुक होता था तो उसे विदेश में वहीं पढ़ने भेजा जाता था, जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं। ड्राइवर जगन और सहायक पदम सहित करीब 10 कर्मचारी जेटली के परिवार के साथ पिछले दो-तीन दशकों से जुड़े हुए हैं। इनमें से तीन के बच्चे अभी भी विदेश में पढ़ रहे हैं। सहयोगी का एक बेटा डॉक्टर, दूसरा बेटा इंजीनियर, जेटली परिवार के खानपान की पूरी व्यवस्था देखने वाले जोगेन्द्र की दो बेटियों में से एक लंदन में पढ़ रही हैं। संसद में साये की तरह जेटली के साथ रहने वाले सहयोगी गोपाल भंडारी का एक बेटा डॉक्टर और दूसरा इंजीनियर बन चुका है। आज के युग में ऐसा कौन करता है? जेटली की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। भाजपा ने तो अपना दिग्गज, विजनरी नेता खोया है और देश ने एक नेक इंसान। हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हैं और उनके परिवार को इस भारी क्षति का मुकाबला करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें शक्ति दे, धैर्य दे। उन्हें इतना संतोष तो होगा कि अरुण जी के जाने से सिर्प उन्होंने नहीं पूरे देश ने एक महान, नेक सपूत खो दिया जिसकी कमी पूरी होना मुश्किल लगती है।

Sunday 25 August 2019

बिस्कुट कंपनी पारले पर जीएसटी की मार

भारतीय अर्थव्यवस्था की मंदी का असर देश की सबसे बड़ी बिस्कुट निर्माता कंपनी पारले पर देखने को मिल रहा है। इस वजह से आने वाले दिनों में पारले के 10 हजार कर्मचारियों की नौकरी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पारले अपने प्रॉडक्ट्स के इस्तेमाल में सुस्ती की वजह से हजारों कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है। बता दें कि पूरे देश में प्रसिद्ध पारले जी बिस्कुट का निर्माता है पारले। पारले जी आज घर-घर की पसंद बन चुका है और अगर इस पर प्रभाव पड़ा तो उसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। कंपनी के कैटेगरी हैड मयंक शाह के मुताबिक यह सुस्ती गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) की वजह से आई है। मयंक शाह ने कहा कि हम लगातार सरकार से बिस्कुट पर जीएसटी घटाने की मांग कर रहे हैं। मगर सरकार ने हमारी बात नहीं मानी या कोई विकल्प नहीं बताया तो हमें मजबूरन आठ से 10 हजार लोगों की छंटनी करनी पड़ सकती है। मयंक शाह ने बताया कि हमने सरकार से 100 रुपए प्रति किलो या उससे कम कीमत वाले बिस्कुट पर जीएसटी घटाने की मांग की है। दरअसल जीएसटी लागू होने से पहले 100 रुपए प्रति किलो से कम कीमत होने वाले बिस्कुट पर 12 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता था। लेकिन सरकार ने दो साल पहले जब जीएसटी लागू किया तो सभी बिस्कुटों को 18 प्रतिशत स्लैब में डाल दिया। इसका असर यह हुआ कि बिस्कुट कंपनियों को इनके दाम बढ़ाने पड़े और इस वजह से बिक्री में गिरावट आ गई है। मयंक शाह के मुताबिक पारले ने बिस्कुट पर पांच प्रतिशत दाम बढ़ाया है। इस वजह से बिक्री में बड़ी गिरावट आई है। शाह ने बिक्री में गिरावट की वजह बताते हुए कहा कि कीमतों को लेकर ग्राहक बहुत ज्यादा भावुक होते हैं। वे यह देखते हैं कि उन्हें कितने बिस्कुट मिल रहे हैं। इस अंतर को समझने के  बाद ग्राहक सतर्प हो जाते हैं। यहां बता दें कि 90 साल पुरानी बिस्कुट कंपनी पारले के 10 प्लांट अपने 125 कांट्रैक्ट वाले हैं। इनमें एक लाख कर्मचारी जुड़े हुए हैं। कंपनी का सालाना रवेन्यू करीब 9940 करोड़ रुपए का है। बीते दिनों पारले के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर वरुण बेरी ने भी बिक्री में गिरावट का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि ग्राहक पांच रुपए के बिस्कुट पैकेट भी खरीदने से कतरा रहे हैं। बेरी ने कहा कि हमारी ग्रोथ सिर्प छह प्रतिशत हुई है। मार्केट ग्रोथ हमसे भी सुस्त है। इससे पहले मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन ने कहा था कि इकोनॉमिक स्लो डाउन की वजह से कंज्यूमर गुड्स इंडस्ट्री ठंडी पड़ी है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में खपत घट गई है। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक नमकीन, बिस्कुट, मसाले, साबुन में अधिक सुस्ती दिख रही है।

-अनिल नरेन्द्र

जज कुहार की अदालत में चला कोर्ट रूम लाइव

पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम को सीबीआई ने गुरुवार को भोजनावकाश के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच 3.15 मिनट पर राऊज एवेन्यू स्थित न्यायाधीश अजय कुमार कुहार की अदालत में पेश किया। चिदम्बरम पर गंभीर आरोप लगाते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विशेष अदालत को बताया कि वे पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहे हैं। वे कुछ जानकारी नहीं दे रहे हैं। उनके पास आईएनएक्स मीडिया मामले से संबंधित कई दस्तावेज हैं, उन्होंने पहले हामी भरी और बाद में मुकर गए। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी उनकी अग्रिम जमानत निरस्त करते हुए उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि जांच अभी चल रही है और उनसे और पूछताछ करनी है। उनके खिलाफ काफी आपत्तिजनक दस्तावेज मिले हैं। कई दस्तावेज चिदम्बरम के नाम हैं। वे उसे दे नहीं रहे हैं। उनके विदेशी निवेश की अनुमति देने से पहले और बाद में भी षड्यंत्र करने की बात सामने आई है। अभी तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है। इसलिए उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरूरत है। उन्हें पांच दिनों की सीबीआई हिरासत में सौंपा जाए क्योंकि सारे काम उनके कार्यकाल में हुए हैं। इस तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी हिरासत में लेकर पूछताछ करने की बात कही है। चिदम्बरम की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सीबीआई उनसे 22 बार पूछताछ कर चुकी है। हमेशा उन्होंने सहयोग किया है। इस मामले में उनके पुत्र कार्ति चिदम्बरम को नियमित जमानत व भास्कर को अग्रिम जमानत मिल चुकी है। विदेशी निवेश की अनुमति देने वाले छह अधिकारियों में से अभी तक किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है। इस मामले में इंद्राणी मुखर्जी भी जमानत पर हैं। इसलिए चिदम्बरम को हिरासत में सौंपने की जरूरत नहीं है। अगर सीबीआई को फिर से पूछताछ करनी है तो वह उन्हें बुला सकती है। सीबीआई सभी प्रश्नों की सूची दे दे और उसका जवाब दे दिया जाएगा। इस मामले में आरोप पत्र का मसौदा भी तैयार हो चुका है। वरीय अधिवक्ता ने कहा कि जमानत अधिकार है और हिरासत विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है। इसलिए उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाए। केस डायरी को साक्ष्य नहीं माना जा सकता है। उनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं हैं। सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि केस डायरी भले ही साक्ष्य न हो, लेकिन अभी जांच का समय है और सीबीआई सभी बातों का खुलासा नहीं कर सकती है। वे जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। यह सीबीआई अधिकारी पर निर्भर करता है कि वह प्रश्न कैसे पूछे। इसके लिए उस पर दबाव नहीं बनाया जा सकता। सीबीआई ने हाई कोर्ट में भी केस डायरी सौंपी है और वहां भी कहा है कि उसकी जांच जारी है। इसलिए जांच समाप्त होने की बात नहीं कही जा सकती और न ही आरोप पत्र तैयार होने की बात। अभिषेक मनु सिंघवी ने चिदम्बरम की ओर से पेश होते हुए कहा कि केस डायरी सबूत नहीं होती। इसमें सिर्प अधिकारी द्वारा लिखी बातें हैं। पूरा मामला इंद्राणी मुखर्जी के बयान पर आधारित है। उसके चार महीने बाद चिदम्बरम से पूछताछ हुई। सीबीआई इसलिए हिरासत मांग रही है क्योंकि उसके मन मुताबिक जवाब नहीं मिल रहे। सीबीआई चिदम्बरम से क्या पूछना चाहती है? सवाल कोर्ट में बताएं। मेहताöकोर्ट में कैसे बता दें? आप मेरा पूछताछ का हक नहीं छीन सकते। हम देशहित में काम कर रहे हैं। शातिर लोगों से निपट रहे हैं। सिंघवीöजून 2018 में इस मामले में सीबीआई ने एक नया शब्द गढ़ा हैöग्रेविटी। इसका कानून में कोई मतलब नहीं। जमानत खारिज करने के तीन आधार हो सकते हैं। जांच में असहयोग, कानून से भागने का जोखिम और सबूतों से छेड़छाड़। इनमें से कोई भी इस केस में चिदम्बरम पर लागू नहीं होता। विशेष न्यायाधीश अजय कुमार कुहार ने सीबीआई से यह जानना चाहा कि उसने चिदम्बरम की अग्रिम जमानत पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय में क्या हलफनामा दिया है। इसका जवाब देते हुए मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय में भी हलफनामा दाखिल कर चिदम्बरम को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की इजाजत मांगी थी। अदालत में इस मामले में करीब पौने दो घंटे जोरदार बहस हुई। इस दौरान चिदम्बरम कठघरे में खड़े रहे। मामले की सुनवाई के दौरान चिदम्बरम ने कहा कि वे कुछ कहना चाहते हैं। इस पर सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि पहले से ही दो वरिष्ठ अधिवक्ता उनका पक्ष रख रहे हैं, इसलिए उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पर अदालत ने इजाजत दे दी। चिदम्बरम ने अदालत को बताया कि जब उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया था तो इस मामले से जुड़ा कोई सवाल नहीं किया। उन्होंने बताया कि सीबीआई ने सिर्प इतना पूछा था कि आपके विदेश में बैंक खाते हैं। करीब 4.55 बजे अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इसके बाद करीब छह बजकर 35 मिनट पर अदालत ने चिदम्बरम को पांच दिन के लिए पुलिस हिरासत में भेजने के आदेश  दे दिए। 26 अगस्त को उन्हें दोबारा पेश किया जाएगा। सीबीआई की हिरासत में रहने के दौरान वकील और परिवार के लोग रोज आधा-आधा घंटा चिदम्बरम से मिल सकेंगे। जज अजय कुमार ने कहा कि तथ्यों और हालात को देखते हुए सीबीआई की हिरासत न्यायोचित है। आरोप बेहद गंभीर हैं। इसलिए लेनदेन की तय सीमा तक पहुंचना जरूरी है। लेकिन आरोपी की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। कोर्ट में सारा समय चिदम्बरम की पत्नी और बेटे कार्ति मौजूद रहे।

Friday 23 August 2019

30 साल में 490 अरब डॉलर का काला धन बाहर गया है

वित्त मंत्रालय की स्थायी समिति द्वारा काले धन को लेकर जो रिपोर्ट दी गई है, वह बेहद चिंतनीय है। यह और भी चौंकाने वाली बात है कि भाजपा जो दो बार काले धन के मुद्दे को लेकर देश की सत्ता में आई, आज वह कह रही है कि विदेशों में जो अनुमानित नौ लाख 41 हजार करोड़ रुपए गरीबों, किसानों और मजदूरों के हक का पैसा काले धन के रूप में चन्द नेताओं, उद्योगपतियों और अधिकारियों ने लूटकर रखा है, उसे वापस नहीं लाया जा सकता, यह कहना था आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह का। सांसद संजय सिंह ने बयान जारी कर कहा कि मेरा मानना है कि अगर विदेशों में जमा काला धन वापस आ जाए तो देश में बेरोजगारी कम की जा सकती है, किसानों के कर्ज माफ किए जा सकते हैं, किसानों को उनकी फसल का डेढ़ गुना दाम दिया जा सकता है, नए स्कूलों, कॉलेजों व अस्पतालों का निर्माण किया जा सकता है। राष्ट्र निर्माण में यह पैसा अहम भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे लोग जो देश का हजारों करोड़ रुपए लूटकर विदेशों मे बैठे हैं, सरकार को उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और करनी पड़ेगी। वित्त पर स्थायी समिति ने तीन प्रतिष्ठित आर्थिक और वित्तीय शोध संस्थानों की रिपोर्ट के हवाले से जानकारी दी है कि भारतीयों द्वारा 1980 से लेकर 2010 तक की अवधि में 216.48 अरब डॉलर से 490 अरब डॉलर का काला धन देश के बाहर भेजा गया। काले धन पर राजनीतिक विवाद के बीच मार्च 2010 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तीन संस्थाओं को देश के बाहर भारतीयों के काले धन का अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी थी। इन तीन संस्थानों में राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) राष्ट्रीय व्यवहारिक आर्थिक शोध परिषद (एनसीएईआर) और राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंध संस्थान (एनआईएफएम) शामिल हैं। कांग्रेस के वीरप्पा मोइली वाली इस स्थायी समिति ने 16वीं लोकसभा भंग होने से पहले गत 28 मार्च को ही लोकसभा अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। 7000 करोड़ रुपए जमा हैं स्विस बैंकों में भारतीयों के 2018 के मुताबिक। 100 लाख करोड़ रुपए जमा हैं सभी विदेशी ग्राहकों का पैसा स्विस बैंकों में। काला धन बाहर भेजने वाले शीर्ष पांच देशों में भारत चौथे नम्बर पर है। पहला चीन है, दूसरा रूस, तीसरा मैक्सिको, चौथा भारत और पांचवा मलेशिया। लगभग एक अरब डॉलर का काला धन विकासशील देशों से हर साल बाहर जाता है। खबर यह भी आई है कि स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीयों के जमा धन में कमी आई है। स्विस नेशनल बैंक की ओर से जारी डेटा के मुताबिक 2018 में छह प्रतिशत की गिरावट के साथ स्विस बैंकों में भारतीयों के 6,757 करोड़ रुपए थे। दो दशक में यह दूसरा सबसे निचला स्तर है। कुछ रिपोर्टों में यह गिरावट 11 प्रतिशत बताई गई है।

-अनिल नरेन्द्र

चिदम्बरम की गिरफ्तारी का हाईवोल्टेज ड्रामा

आईएनएक्स मीडिया मामले में गिरफ्तारी से  बचने के लिए 27 घंटे तक लापता रहे पूर्व वित्तमंत्री, गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को नाटकीय घटनाक्रम के बाद आखिरकार बुधवार रात को गिरफ्तार कर लिया गया। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के जोरबाग स्थित आवास पर लगभग एक घंटे चले हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद सीबीआई उन्हें एजेंसी मुख्यालय ले गई। सीबीआई प्रवक्ता ने बताया कि कोर्ट द्वारा वारंट के आधार पर चिदम्बरम को गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले मंगलवार शाम से लापता रहे चिदम्बरम रात 8.15 बजे अचानक कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ पार्टी मुख्यालय की प्रेस कांफ्रेंस में पहुंचे। उन्होंने खुद को बेगुनाह बताया। कहा, वह कानून से भाग नहीं रहे  बल्कि कानून का सहारा ले रहे हैं। चिदम्बरम के पार्टी कार्यालय में होने की खबर मिलते ही सीबीआई की टीम वहां पहुंच गई। करीब सात मिनट का बयान देने के बाद चिदम्बरम पूर्व मंत्री व उनके वकील कपिल सिब्बल व अभिषेक मनु सिंघवी के साथ अपने घर रवाना हो गए। चिदम्बरम के पीछे-पीछे सीबीआई की तीन टीमें भी उनके घर जोरबाग पहुंच गईं। मुख्य गेट बंद होने से तीन अधिकारी दीवार फांदकर भीतर दाखिल हुए और गेट खोला। इस बीच ईडी की टीम भी वहां पहुंच गई। बड़ी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता भी पहुंच गए। अधिकारियों को कार्यकर्ताओं का भारी विरोध झेलना पड़ा। सीबीआई चिदम्बरम को लेकर घर से निकली तो एक कार्यकर्ता उस कार पर ही चढ़ गया जिसमें चिदम्बरम को ले जाया जा रहा था। इस बीच भाजपा के वर्पर भी वहां पहुंच गए। दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में हाथापाई होने लगी। सीबीआई ने स्थिति बिगड़ती देख दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों को भी बुला लिया। चिदम्बरम को हिरासत में लेकर सीबीआई मुख्यालय लाया गया। इस मुख्यालय का उद्घाटन अप्रैल 2011 में तब के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने किया था। इस कार्यक्रम में चिदम्बरम बतौर विशिष्ट अतिथि शरीक हुए थे। उनकी कानूनी लड़ाई लड़ रहे कपिल सिब्बल भी साथ थे। चुनाव में करारी हार के बाद से बुरी तरह बिखरी कांग्रेस पहली बार चिदम्बरम के पक्ष में एकजुट दिखी है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुक्रवार को तय होने के बाद कपिल सिब्बल ने अहमद पटेल के जरिये सोनिया गांधी को इसकी सूचना दी। सोनिया के कहने पर पार्टी ने रणनीति बनाई कि अब भगोड़ा दिखने के बजाय हालात का मुकाबला किया जाए। शाम 6.30 बजे तय हुआ कि प्रेस कांफ्रेंस करेंगे। सात बजे फोन पर बातचीत में सोनिया ने कहा कि चिदम्बरम भी प्रेस कांफ्रेंस में आएं। पहले चिदम्बरम को सामने लाने का जिक्र नहीं था। अब पार्टी इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई के तौर पर मुद्दा बनाने की तैयारी में है। पी. चिदम्बरम के  पीछे एकजुट कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि मोदी सरकार अब पार्टी के कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं को निशाना बना सकती है। भविष्य के इस खतरे को देखते हुए कांग्रेस अब और ज्यादा सतर्प और मुस्तैद हो गई है। पार्टी महासचिव प्रियंका वाड्रा और राहुल गांधी के ट्वीट में पार्टी ने स्पष्ट संदेश दिया था कि हमें चिदम्बरम के साथ एकजुट खड़े रहना है। इसी के तहत बुधवार रात पार्टी मुख्यालय में चिदम्बरम की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल, गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, सलमान खुर्शीद और विवेक तन्खा मौजूद थे। पार्टी इस मामले को राजनीतिक लड़ाई के तौर पर पेश करना चाहती है। कांग्रेसी खुलकर कह रहे हैं कि गृहमंत्री अमित शाह चिदम्बरम से बदला ले रहे हैं। सोहराबुद्दीन केस में चिदम्बरम ने शाह को जेल भिजवाया था। इसी का बदला अमित शाह ले रहे हैं। साथ ही कांग्रेस यह भी संदेश देना चाहती है कि सीबीआई, ईडी की जो भी कार्रवाई हो रही हैं, वह सत्ता का दुरुपयोग है और राजनीतिक बदले की भावना से की जा रही हैं। चिदम्बरम तो इस कड़ी में पहले शिकार हैं। रॉबर्ट वाड्रा, राहुल गांधी और खुद सोनिया गांधी का भी नम्बर आ सकता है। वैसे कई लोगों का मानना है कि जिस ढंग से सीबीआई ने चिदम्बरम को गिरफ्तार किया उसकी जरूरत नहीं थी। सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक एनके सिंह के अनुसार इस तरह से चिदम्बरम को गिरफ्तार किया जाना सीबीआई की ज्यादती है जिसमें बचा जा सकता था। उन्होंने कहाöयह सही है कि कानून की नजर में सब बराबर हैं। लेकिन केस को देखना पड़ेगा कि केस है क्या? केस बहुत पुराना है। 10 साल के बाद 2017 में केस रजिस्टर किया गया। इंद्राणी मुखर्जी जो खुद अपनी लड़की की हत्या के आरोप में जेल में बंद है और उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है। वो इस केस में सीबीआई के कहने पर सरकारी गवाह बन जाती है और उनके बयान पर चिदम्बरम के खिलाफ इस मामले की जांच हो रही है। जांच को पूरा किया जाता, अदालत के सामने रखा जाता। यह जो अभियोग है उसकी गंभीरता को देखते हुए यह पुराना मामला है और इसका जो आधार है उन सारी बातों को देखते हुए मुझे तो लगता है कि सीबीआई का एक्सेसिव एक्शन यानि अत्याधिक कार्रवाई है। आखिर सीबीआई शुक्रवार तक क्यों इंतजार नहीं कर सकी जब सुप्रीम कोर्ट चिदम्बरम की जमानत अर्जी की अपील सुनाने वाली थी? ऐसी क्या जल्दी थी? अब यह मामला पूरी तरह राजनीतिक बन गया है। मोदी जनता को संदेश देना चाहते हैं कि वो ताकतवर से ताकतवर लोगों को जेल भेज सकते हैं। मोदी-अमित शाह यह संदेश देना चाहते हैं कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूती से लड़ेगी, सरकार का मजबूत इरादा है।

Thursday 22 August 2019

तीन साल और बने रहेंगे जनरल बाजवा सेना चीफ

पाकिस्तान के वर्तमान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा नवम्बर में इसी साल रिटायर होने वाले थे लेकिन सोमवार को प्रधानमंत्री इमरान खान के ऑफिस ने घोषणा की कि जनरल बाजवा और तीन साल सेना प्रमुख बने रहेंगे। इससे पहले 2010 में तत्कालीन जनरल अशफाक परवेज कियानी को विस्तार दिया गया था। 58 वर्षीय बाजवा को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नवम्बर 2016 को सेना का प्रमुख नियुक्त किया था। शरीफ ने तब तीन अन्य जनरलों को दरकिनार करते हुए बाजवा को सेना प्रमुख बनाया था। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस फैसले पर कहा कि अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया और भारत के साथ कश्मीर पर बढ़े तनाव को लेकर यह जरूरी फैसला है। उन्होंने इस फैसले को पाकिस्तान की सुरक्षा से भी जोड़ा है। पाकिस्तान के पास दुनिया की छठी सबसे बड़ी सेना है जिसका देश के परमाणु हथियारों पर भी नियंत्रण है। पाकिस्तानी सेना ने पाकिस्तान बनने के बाद से कई तख्ता पलट किए हैं और अब तक करीब आधे समय तक देश पर उनका ही राज रहा है। इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाने में जनरल बाजवा की उल्लेखनीय भूमिका थी। यह कहा जाए कि इमरान का जो फेवर बाजवा ने किया था उसे इमरान ने रिटर्न कर दिया है। कई दिनों से यह कयास लगाए जा रहे थे कि प्रधानमंत्री जनरल बाजवा को दूसरा कार्यकाल दे सकते हैं क्योंकि दोनों मिलकर काम करते हैं। पीएम इमरान खान की हाल ही में अमेरिकी यात्रा पर बाजवा भी गए थे। पाक सेना प्रमुख की नियुक्ति पीएम व उनकी सरकार को प्राथमिकता है। सबसे वरिष्ठ अधिकारी को सेना प्रमुख बनाए जाने की परंपरा का पालन नहीं किया जाता। पीएम व सरकार द्वारा नियुक्ति को राष्ट्रपति मंजूरी देते हैं। 2016 में सेना प्रमुख बनने के बाद पाकिस्तान में सैनिक शासन की आशंकाएं बनी थीं पर उनको खारिज करने वाले जनरल बाजवा भी अपने पूर्ववर्तियों जैसे ही हैं। आमतौर पर कहा जाता है कि निर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान उनके हाथों की कठपुतली माने जाते हैं। सेना प्रमुख के कार्यकाल को बढ़ाया जाना गैर-मुनासिब बताते हुए विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के वरिष्ठ सदस्य फरहतुल्लाह बाबर ने ट्वीट किया कि मजबूत संस्थाएं किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं करतीं चाहे वह व्यक्ति कितना भी मजबूत, सक्षम और प्रतिभावान ही क्यों न हो। वैसे मजेदार बात है कि सत्ता में आने से पहले इमरान खान सेना प्रमुख का कार्यकाल बढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने कहा था कि किसी भी सेना प्रमुख का कार्यकाल बढ़ाना सेना के नियमों को बदलने का काम है जो एक संस्था के रूप में सेना को कमजोर करता है। इमरान का यह बयान 2010 में पीपीपी के सेना प्रमुख अशफाक परवेज कियानी के कार्यकाल को बढ़ाए जाने के बाद आया था पर आज जो पाकिस्तान की अंदरूनी हालत है उस पर हम इमरान खान की इस नियुक्ति को समझ सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

बालाकोट के वायुवीरों को वीरता सम्मान

तीनों सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से हर साल की तरह स्वतंत्रता दिवस के मौके पर वीरता पुरस्कारों की घोषणा की गई। इस साल बालाकोट एयर स्ट्राइक पुरस्कारों में छाया रहा। पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक के बाद गुलाम कश्मीर में पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराने वाले विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को वीर चक्र से नवाजा जाएगा। कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तान के अत्याधुनिक एफ-16 विमान को अपने मिग-21 बाइसन से मार गिराया था। इस दौरान अभिनंदन का भी विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिससे वह पाक सीमा में पहुंच गए थे और तीन दिन बंदी रहे थे। बता दें कि वीर चक्र युद्धकाल में बहादुरी के लिए दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा सैन्य सम्मान है। वहीं बालाकोट में जैश--मोहम्मद के ठिकानों पर हमला करने वाले वायुसेना के अन्य पायलट विंग कमांडर अमित रंजन, स्क्वाड्रन लीडर राहुल बोसाया, पंकज मुंजडे, बीएन रेड्डी, शशांक सिंह को वायुसेना मैडल से सम्मानित किया जाएगा। बालाकोट में एयर स्ट्राइक के बाद कश्मीर में पाक विमानों की घुसपैठ के दौरान फाइटर कंट्रोलर की जिम्मेदारी संभालने वाली स्क्वाड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल को युद्ध सेवा मैडल दिया जाएगा। इस बार बहादुरी पाने वालों में मिंटी अकेली महिला हैं। मिंटी को यह पुरस्कार बालाकोट हवाई हमले के बाद भारत-पाक में हवाई संघर्ष के दौरान दिए गए योगदान के लिए दिया जाएगा। जब पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों ने उनके एयर बेस से उड़ान भरी और पीओके के रास्ते भारतीय वायु सीमा में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़े, तभी मिंटी अग्रवाल जो उस समय वायुसेना के रडार कंट्रोल स्टेशन पर तैनात थीं, ने श्रीनगर स्थित वायुसेना के एयर बेस को सूचित कर दिया, जहां विंग कमांडर अभिनंदन सहित कई भारतीय लड़ाकू विमान हाई अलर्ट पर थे। फाइटर कंट्रोलर की भूमिका निभाने वाली स्क्वाड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल से सूचना मिलते ही अभिनंदन वर्धमान ने उड़ान भरी और अपनी वायुसीमा पर पहुंच गए थे। इस बीच मिंटी अग्रवाल अभिनंदन को हर पल पाकिस्तानी जेट की स्थिति के बारे में उन्हें अवगत कराती रहीं, जिससे अभिनंदन ऑपरेशन को पूरा करने में सफल रहे। इसके अलावा पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड गाजी रशीद का सफाया करने वाले आरआर राइफल्स के मेजर विभूति शंकर ढोंढियाल समेत उत्तराखंड के सात जांबाजों को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने बहादुरी पुरस्कार का ऐलान किया। मेजर ढोंढियाल (मरणोपरांत) को शौर्य चक्र और उनके मित्र रहे मेजर चित्रेश बिष्ट (मरणोपरांत) को सेना मैडल दिया गया। मेजर ढोंडियाल और मेजर बिष्ट दोनों देहरादून के निवासी थे। साथ-साथ फौज में गए थे और इसी साल फरवरी में शहीद हुए थे। मेजर ढोंढियाल 18 फरवरी को पुलवामा के विंगलिया गांव में आतंकियों के साथ चले 100 घंटे के ऑपरेशन के बाद शहीद हो गए थे। हम इन जांबाजों को सलाम करते हैं। जय हिन्द।

Wednesday 21 August 2019

जनसंख्या विस्फोट रोकना भी है देशभक्ति

दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इसमें सबसे चिंताजनक बात यह है कि भारत की जनसंख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है। यही हालात रहे तो हम साल 2027 तक  चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएंगे। वैश्विक जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा fिरपोर्ट से यह बात सामने आई है। भारत की स्थिति  यह है कि 27.30 करोड़ लोग बढ़ जाएंगे 2019 से 2050 तक। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सदी के अंत तक भारत की आबादी 150 करोड़ हो जाएगी। वहीं जनसंख्या को नियंत्रित करने की नीतियों के कारण चीन की आबादी 110 करोड़ पर रूक जाएगी। 40.30 करोड़ की आबादी के साथ पाकिस्तान पांचवे नंबर पर होगा। 15 अगस्त को लाल किले से देश को संबोधित करते हुए 90 मिनट के भाषण में जिस नए और अहम मामलों का जिक पधानमंत्री मोदी ने किया, वह है देश की बढ़ती जनसंख्या। पीएम मोदी ने कहा कि देश की जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए सरकार और आम लोग क्या कर रहे हैं, क्या कर सकते हैं? मोदी ने कहा कि बेहताशा बढ़ रही जनसंख्या सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। समाज का एक छोटा वर्ग जो अपना परिवार छोटा रखता है, वह सम्मान का हकदार है। वे जो कर रहे हैं वह भी एक पकार की देश भक्ति है। यह शायद पहली बार है जब पीएम ने इन शब्दों के जरिए जनसंख्या का मुद्दा उठाया है। पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का देश में जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताना और इसकी रोकथाम के लिए हर नागरिक को जवाबदेही तय करने के लिए एकजुट होकर आगे आने का आह्वान सकारात्मक और असरदार भूमिका अदा कर सकता है। बढ़ती जनसंख्या व घटते जल व अन्य संसाधनों से यह तो तय है कि यदि केन्द्र समेत राज्य सरकारों के साथ हर युवा अलर्ट नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। परिवार नियोजन को स्वैच्छिक आंदोलन बनाना होगा। केन्द्र और राज्य सरकारें पहले से अधिक सुविधाएं और रियायतें देकर हम दो हमारे दो का और ध्यान खींचने का जो पयास कर रही है उसमें तेजी लानी होगी। देश को परिवार नियोजन में सख्ती का कड़ा अनुभव 1975-76 के इमरजेंसी में हो चुका है। इससे बढ़ाई सबसे बेहतर रास्ता है सामाजिक जागरुकता। पधानमंत्री मोदी के मुताबिक समय आ गया है जब देश छोटे परिवारों की पैरवी करे क्योंकि यदि पढ़े-लिखे, स्वस्थ नहीं होंगे तो न देश खुश होगा और न ही परिवार। 1.3 अरब लोगों वाला हमारा देश दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है। यदि लोग देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो इस जरिए भी देशभक्ति कर सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

और अब हुड्डा ने दिखाए बगावती तेवर

जब हाल में सोनिया गांधी ने पार्टी की बागडोर संभाली तो कांग्रेसियों की यह उम्मीद जगी कि अब पार्टी मौजूदा संकट से उबर जाएगी, पार्टी में गुटबाजी, अनुशासनहीनता एवं उसे छोड़ने की पवृत्ति खत्म हो जाएगी। पर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने पार्टी से बगावती सुर दिखा दिए हैं। हुड्डा अपनी ही पार्टी से बागी हो गए हैं। उनका कहना है कि हरियाणा कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि वो अपनी नई पार्टी की घोषणा करेंगे और रोहतक में एक बड़ी रैली कर उन्होंने रविवार को पार्टी हाईकमान के सामने एक तरह का शक्ति पदर्शन भी कर डाला। हुड्डा के मंच पर कांग्रेस के 16 में से 13 विधायक मौजूद थे। हुड्डा ने बागी होने का सबसे पहला संकेत तब दिया जब उन्हेंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का खुलकर समर्थन किया जबकि उनकी पार्टी का हाई-कमान इसका विरोध कर रहा था। भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रोहतक में महापरिवर्तन रैली में जो तेवर दिखाए वे यही संकेत करते हैं कि पार्टी में अब भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। उन्होंने कहा कि वह सभी बंधनों से मुक्त होकर आए हैं और जनता की लड़ाई के लिए कोई भी फैसला करने को तैयार हैं। उनका कहना कि जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लगाया था तब उसका औचित्य था। मगर इतने सालों के बाद इसका कोई औचित्य नहीं है। अपनी पार्टी तक लाइन से अलग बोलते हुए हुड्डा ने अपनी ही पार्टियों की कमियों को गिनवाना शुरू कर दिया। हरियाणा कांग्रेस में आपसी खिंचतान काफी लंबे समय से जारी है और पदेश के नेता समय-समय पर दिल्ली में पार्टी हाईकमान से मिलकर अपनी शिकायत दर्ज कराते रहे हैं। हालांकि पदेश अध्यक्ष अशोक तंवर पर राहुल गांधी काफी भरोसा करते हैं। अब जब पार्टी की कमान एक बार फिर सोनिया गांधी के हाथों में गई है तब हुड्डा के करीबी माने-जाने वाले नेताओं को लगता है कि शायद अब हरियाणा कांग्रेस में उथल-पुथल होगी। हरियाणा में कांग्रेस का पदर्शन बहुत खराब रहा और हाल में हुए आम चुनावों में उसे एक भी सीट नहीं मिल पाई। हरियाणा की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि इतनी बड़ी रैली आयोजित कर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस हाई कमान को ये संदेश भी देने की कोशिश की कि वो आज भी हरियाणा में पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं और दूसरों के मुकाबले उनका सियासी कद काफी ऊंचा है। सोनिया गांधी व उनके परिवार के लिए हुड्डा का महत्व बहुत ज्यादा है। राबर्ट वाड्रा केस में हुड्डा भी महत्वपूर्ण हैं। भाजपा हुड्डा को तोड़ लेती है तो इसका असर राबर्ट वाड्रा केस पर पड़ सकता है। खबर है कि हुड्डा अपनी नई पार्टी की घोषणा करने वाले थे पर रविवार रात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बातचीत हुई। विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी ने हुड्डा को सकारात्मक आश्वासन दिया और इसके बाद ही हुड्डा ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया। हुड्डा के समर्थकों ने यह उम्मीद लगाई हुई थी कि रविवार को इस महापरिवर्तन रैली में हुड्डा अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा करेंगे पर ऐसा हुआ नहीं। इसका श्रेय सोनिया गांधी को जाता है। हुड्डा कहते हैं कि संगठन तो है ही नहीं, न कोई ढांचा है। पदेश स्तर पर नेता बड़ी-बड़ी बातें भले ही कर लें लेकिन सच तो यह है कि कांग्रेस का संगठन न तो जिला स्तर पर है और न ही पचंड स्तर पर। ऐसे कहीं चुनाव लड़ा जाता है? वैसे हरियाणा में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब कांग्रेस के किसी बड़े कद्दावर नेता ने पार्टी से बगावत की हो। वर्ष 1971 में चौधरी देवी लाल ने कांग्रेस से बगावत कर लोकदल की स्थापना की थी फिर बंसीलाल ने भी ऐसा किया। हुड्डा नई पार्टी बनाते हैं तो निश्चित ही कांग्रेस को हfिरयाणा में काफी नुकसान होगा। अकेले हरियाणा में ही कांग्रेस की गुटबाजी नहीं है, कई और राज्यों में भी कमोबेश यही स्थिति है। कांग्रेस नेतृत्व को इससे सूझ-बूझ से निपटना होगा। मगर संगठन के साथ-साथ उसे नीतिगत पहलू पर भी ध्यान केन्द्रित करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो हरियाणा जैसा किस्सा अन्य राज्यों में भी हो सकता है।

Tuesday 20 August 2019

इस्लामाबाद में लगे अखंड भारत के बैनर

यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में रहने वाले बलोच समुदाय के लोगों ने 11 अगस्त को बलूचिस्तान दिवस मनाया। इस मौके पर उन्होंने सेमिनार आयोजित कर विश्व समुदाय से मांग की कि उन्हें पाकिस्तान के शिकंजे से आजाद कराया जाए। साथ ही आजादी मिलने तक अपना संघर्ष जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया। इस मौके पर बलोच फ्रीडम फ्रंट ने ट्वीट कर दुनिया को बताया कि ब्रिटिश राज के दौरान 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया था लेकिन 27 मार्च 1948 को पाकिस्तानी फौज ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर उसे गुलाम बना लिया और इसे कल्पात प्रांत का नाम दे दिया। तभी से बलोच आबादी अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रही है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को गठित हुआ था। बर्लिन में बलोच नेशनल मूवमेंट ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर पाकिस्तान छाती पीट रहा है। लेकिन वह खुद अपने यहां बलूचिस्तान पर जो जुर्म ढा रहा है उसकी बात नहीं करता। हैरानी नहीं हुई जब हाल ही में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में कई जगह अखंड भारत के समर्थन वाले बैनर दिखाई दिए। इन इलाकों में रेड जोन क्षेत्र, पाकिस्तानी संसद और प्रधानमंत्री आवास से कुछ ही मीटर की दूरी शामिल है। इन बैनरों पर शिवसेना के नेता संजय राऊत का वह बयान लिखा था जिसमें कहा गया थाöआज जम्मू-कश्मीर लिया है, कल बलूचिस्तान व पीओके लेंगे। मुझे भरोसा है कि देश के पीएम नरेंद्र मोदी अखंड भारत का सपना पूरा करेंगे। इस संबंध में पुलिस ने छापे मारकार तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया है। भारत सरकार द्वारा सोमवार को जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के बाद इस्लामाबाद में ऐसे पोस्टर दिखाई देने से पाकिस्तान इस कदर बौखला गया है कि वहां के जिला प्रशासन ने नगर निगम को नोटिस जारी कर कहा है कि वह 24 घंटों में बताए कि पोस्टरों को हटाने में पांच घंटे क्यों लगे। कहा जा रहा है कि इन बैनरों और पोस्टरों को इस्लामाबाद में रातोंरात लगा दिया गया था। सुबह होने पर सबसे पहले अपने काम पर जा रहे स्थानीय लोगों ने इन्हें देखा। बैनरों के बारे में खबर फैलने से इस्लामाबाद के निवासियों में गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने सवाल किया कि इस्लामाबाद में कोई किस तरह ऐसी कार्रवाई को अंजाम दे सकता है। स्थानीय लोगों ने कहा कि यह हमारी कानून-व्यवस्था की विफलता है कि राजधानी की सुरक्षा के लिहाज से सबसे अहम क्षेत्रों में इस तरह के बैनर लगाए गए हैं और हमारी एजेंसियां उन्हें रोक तक नहीं पाईं। बता दें कि यह इलाका पाकिस्तान नेशनल असेम्बली, पेएम आवास, इंटेलीजेंस ब्यूरो और आईएसआई मुख्यालय के नजदीक है। यहां कई देशों के दूतावास, विदेश मंत्रालय और प्रमुख सरकारी दफ्तरों की इमारतें भी हैं। ऐसे में भारत के पक्ष में लगने वाले बैनरों का लगना जिला प्रशासन, पुलिस व अन्य पाकिस्तानी एजेंसियों को सवालों के घेरे में ले आया है।

-अनिल नरेन्द्र

मंदी की मार से प्रभावित हमारी अर्थव्यवस्था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्त वर्ष 2024-25 तक भारत को पांच अरब अमेरिकी डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का जो लक्ष्य रखा है वह काफी चुनौतीपूर्ण है। इस वक्त भारत की अर्थव्यवस्था करीब 2.7 अरब अमेरिकी डॉलर की है। मौजूदा स्थिति तो बहुत उत्साहजनक नहीं मानी जा सकती। भारत मंदी के दौर से गुजर रहा है। आर्थिक सर्वे का अनुमान है कि प्रधानमंत्री मोदी के तय किए गए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए देश की जीडीपी को हर साल आठ प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा। इस लक्ष्य के बरक्स, देश की अर्थव्यवस्था में तरक्की की रफ्तार धीमी हो गई है। ऐसा पिछले तीन साल से हो रहा है। उद्योगों के बहुत से सैक्टर में विकास की दर कई साल में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। देश की अर्थव्यवस्था की सेहत कैसी है, इसका अंदाजा हम इन पांच संकेतों से लगा सकते हैं। पहला जीडीपी (विकास दर) देश के घरेलू सकल उत्पाद यानि जीडीपी में पिछले तीन वित्तीय वर्षों से लगातार गिरावट आ रही है। 2016-17 में जीडीपी विकास दर 8.2 प्रतिशत प्रति वर्ष थी, तो 2017-18 में घटकर 7.2 प्रतिशत रह गई। वर्ष 2018-19 में यह और गिरकर 6.8 प्रतिशत हो गई। ताजा आधिकारिक आंकड़ों पर यकीन करें तो वर्ष 2019 की जनवरी से मार्च की तिमाही में जीडीपी विकास दर 5.8 प्रतिशत ही रह गई, जो पिछले पांच साल में सबसे कम है। केवल तीन साल में विकास दर की रफ्तार में 1.5 प्रतिशत की कमी बहुत बड़ी कमी है। जीडीपी की विकास दर घटने से लोगों की आमदनी, खपत, बचत और निवेश सब पर असर पड़ रहा है। विकास दर घटने से लोगों की आमदनी पर बुरा असर पड़ा है। मजबूरन लोगों को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही है। ग्राहकों की खरीददारी के उत्साह में कमी का बड़ा असर ऑटो उद्योग पर पड़ा है। जून 2019 के मुकाबले सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति की बिक्री 16.68 प्रतिशत तक गिरी है। दोपहिया वाहन हीरो मोटर कोर्प की बिक्री 12.45 प्रतिशत गिरी। यह निजी कंपनियों के आंकड़े हैं। बिक्री में गिरावट से निपटने के लिए गाड़ियों के खुदरा बिकेता अपने यहां नौकरियों में कटौती कर रहे हैं। देशभर में ऑटोमोबाइल डीलर्स ने पिछले तीन महीने में ही दो लाख नौकरियां घटाई हैं। यह आंकड़े फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के हैं। नौकरियों में यह कटौती, ऑटो उद्योग में की गई उस कटौती से अलग है, जब अप्रैल 2019 से पहले 18 महीनों के दौरान देश के 271 शहरों में गाड़ियों के 286 शोरूम बंद हुए थे। इसकी वजह से 32,000 लोगों की नौकरियां चली गईं। खपत की कमी की वजह से टाटा मोटर्स जैसी कंपनी को अपनी गाड़ियों के निर्माण में कटौती करनी पड़ी है। इसका नतीजा यह हुआ कि कलपुर्जों और दूसरे तरीके से ऑटो सैक्टर से जुड़े हुए लोगों पर भी बुरा असर पड़ा है। जैसे कि जमशेदपुर और आसपास के इलाकों में 30 स्टील कंपनियां बंदी की कगार पर खड़ी हैं। जबकि एक दर्जन के करीब कंपनियां तो पहले ही बंद हो चुकी हैं। अर्थव्यवस्था का विकास धीमा होने का रियल एस्टेट सैक्टर पर भी सीधा असर हो रहा है। बिल्डरों का आकलन है कि इस वक्त देश के 30 बड़े शहरों में 12.76 लाख मकान बिकने को पड़े हैं। इसका मतलब है कि इन शहरों में जो मकान बिकने को तैयार हैं उनका कोई खरीददार नहीं है। आमदनी बढ़ नहीं रही, बचत की रकम बिना बिके मकानों में फंसी हुई है और अर्थव्यवस्था की दूसरी परेशानियों की वजह से घरेलू बचत पर भी बुरा असर पड़ रहा है। घरेलू बचत की जो रकम बैंकों के पास जमा होती है, उसे ही वो कारोबारियों को कर्ज पर देते हैं। जब भी बचत में गिरावट आती है बैंकों के कर्ज देने की विकास दर भी घट जाती है। आज सरकारी बैंकों की हालत खस्ता है। उनके पास लोन देने के लिए पैसा ही नहीं है। आमतौर पर जब घरेलू बाजार में खपत कम हो जाती है तो भारतीय उद्योगपति अपना सामान निर्यात करने और विदेश में माल का बाजार तलाशते हैं। लेकिन आज स्थिति यह है कि विदेशी बाजार में भी भारतीय सामान के खरीददारों का विकल्प बहुत सीमित हो गया है। पिछले दो साल से जीडीपी की विकास दर में निर्यात का योगदान घटता जा रहा है। मई महीने में निर्यात की विकास दर 3.9 प्रतिशत थी। लेकिन इस साल जून में निर्यात में (ö) 9.7 प्रतिशत गिरावट आई है। यह चार महीनों में सबसे कम निर्यात दर है। अगर अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल हों तो इसका सीधा असर विदेशी निवेश पर भी पड़ता है। अप्रैल 2019 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 7.3 अरब डॉलर था। लेकिन मई महीने में यह घटकर 5.1 अरब डॉलर ही रह गया है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का शानदार आगाज हुआ था। लेकिन जल्द ही वो दिशाहीन हो गया। अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलावों के जिस ब्लूप्रिंट की घोषणा हुई थी, उसे 2015 के आखिर में ही त्याग दिया गया। श्रमिक, जमीन से जुड़े कानूनों में बदलाव अधूरे हैं। कृषि क्षेत्र के विकास दर की कमी से निपटने के लिए मेक इन इंडिया की शुरुआत की गई थी, लेकिन उसका हाल भी बुरा है। नोटबंदी, जीएसटी को हड़बड़ी से उठाए गए कदमों का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। टैक्स सुधारों की जो उम्मीद थी वह इस साल के बजट में कोई इरादा नजर नहीं आया। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा पीएम कार्यालय को बार-बार आगाह किए जाने के बावजूद मनमोहन सरकार से विरासत में मिली देश की बदहाल बैंकिंग और वित्तीय व्यवस्था की कमियों को दूर करने की नीतियां बनाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया? पिछले कई दशकों में ऐसा पहली बार है जब वित्त मंत्रालय में ऐसा कोई आईएएस अधिकारी नहीं है, जिसके पास अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हो और जो अर्थव्यवस्था की बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए सरकारी नीतियां बनाने में मदद कर सके।

कश्मीर के हालात सामान्य बने 11 दिनों में?

कश्मीर घाटी में हालात तेजी से सामान्य होते जा रहे हैं। वहां लोगों के रोजमर्रा के कामकाज 11 दिन बाद फिर शुरू हो गए हैं। इसके मद्देनजर सरकार द्वारा संचार व्यवस्था पर लगी पाबंदी हटाने और पूरे राज्य के स्कूल सोमवार से खोलने का ऐलान स्वागतयोग्य है। गृह मंत्रालय के मुताबिक हालांकि आतंकवादी गतिविधियों की आशंका बनी हुई है। इस आशय के खुफिया इनपुट मिल रहे हैं। पाकिस्तान आए दिन भड़काने की पूरी कोशिश कर रहा है। आतंकी संगठन सीमापार से कश्मीरी युवाओं को उकसाने में लगा हुआ है पर हमारे सैन्य बल पूरी तरह से सतर्प हैं। वह किसी भी प्रकार का जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं। पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को निरस्त कर दिया गया था और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। उसके बाद तनाव के हालात तेजी से बदल रहे हैं। शुक्रवार को कई स्थानों पर टेलीफोन और मोबाइल फोन की सेवा बहाल कर दी गई है। सोमवार को स्कूल खुल गए जिससे वहां की जनता को काफी राहत मिली है और जल्द ही सड़कों पर यात्री वाहनों की पाबंदियां भी हटा दी जाएगी। जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बीआर सुब्रह्मण्यम के मुताबिक प्रदेश में स्थिति पूरी तरह से सामान्य है, तब से न किसी की जान गई है और न ही कोई घायल हुआ है। उन्होंने बताया कि अगले कुछ दिनों में पाबंदियों में व्यवस्थित तरीके से ढील दी जाएगी। गत शुक्रवार की नमाज के बाद हिंसा की कोई वारदात न होना अच्छा संकेत है। जम्मू-कश्मीर के 22 में से 12 जिलों में कामकाज सामान्य ढंग से चल रहा है और महज पांच जिलों में रात की पाबंदियां-भर हैं। आने वाले दिनों में और छूट बढ़ाई जाएगी। जम्मू-कश्मीर में हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैं। इसका एक सबूत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का 11 दिन बाद शुक्रवार को कश्मीर से लौट आने से भी मिलता है। कश्मीर प्रवास के दौरान उन्होंने आतंकियों का गढ़ कहलाने वाले दक्षिण कश्मीर के शोपियां का भी दौरा किया। उन्होंने स्थानीय लोगों के अलावा सुरक्षा बलों को मिलकर उनका मनोबल बढ़ाया। वह अनंतनाग, कुलगाम और पोम्पोर भी गए। इसके अलावा उन्होंने उत्तरी कश्मीर के बारामूला का भी दौरा किया। संबंधित अधिकारियों की मानें तो डोभाल ने वादी में कानून-व्यवस्था की स्थिति को यकीनी बनाए रखने की कवायद के तहत सभी सुरक्षा एजेंसियों को सख्त हिदायत दे रखी है कि वह किसी सूरत में अवाम जनहानि से बचें। डोभाल ने कश्मीर में तैनात पुलिस, सीआरपीएफ, सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठकों में भाग लेने के अलावा उनकी संयुक्त बैठकों को भी संबोधित किया। राज्य के भीतरी इलाको में आतंकरोधी अभियानों, कानून-व्यवस्था से जुड़ी कवायद और एलओसी पर घुसपैठ के मुद्दों पर संबंधित सुरक्षा एजेंसियां और खुफिया एजेंसियों में समन्वय-संवाद-संयुक्त कार्रवाई की कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया। यह प्रसन्नता की बात है कि कश्मीर घाटी में स्थिति सामान्य होती जा रही है। हालांकि ढील देने के पहले ही दिन में पत्थरबाजी शुरू हो गई।

-अनिल नरेन्द्र

पहलू खान को किसी ने नहीं मारा?

देशभर में चर्चित रहे अलवर जिले के पहलू खान मॉब लिंचिंग मामले में छह आरोपियों के कोर्ट से बरी हो जाने पर आश्चर्य भी हुआ और यह चौंकाने वाला फैसला है। न्याय से जुड़े सरोकारों में सबसे पहला यही है कि इस मामले में दुनिया के उन कई शहरों से बेहतर मान सकते हैं, जहां इंसाफ के तराजू को मजहबी और सत्ता के दबाव में जब तक मनमाफिक तरीके से एकतरफा झुका लिया जाता है। पर न्यायिक सक्रियता जैसे चमकदार तमाचे से विभूषित हमारी न्यायाकि व्यवस्था तब निस्संदेह बहुत निराश करती है जब सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से किसी बड़े मामले में कसूरवार आसानी से बरी हो जाते हैं। गौरतलब है कि एक अप्रैल 2017 को हरियाणा के नूहं मेवात जिले के जयसिंहपुरा गांव में रहने वाले पहलू खान की हत्या भीड़ ने कर दी थी। उस वक्त वह अपने दो बेटों के साथ जयपुर के बाजार दुधारू पशु खरीद कर अपने घर जा रहा था। राजस्थान के अलवर के बहरोड़ पुलिया के पास भीड़ ने उनकी गाड़ी रुकवा कर पहलू खान और उनके बेटों से मारपीट की थी। जब इस घटना की जानकारी पुलिस को मिली तो घटनास्थल पर पुलिस ने पहुंचकर पहलू खान को बहरोड़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया। यहां इलाज के दौरान चार अप्रैल 2017 को उनकी मौत हो गई थी। इस मामले में दो अप्रैल को मुकदमा दर्ज हुआ। पुलिस ने इस मामले में पहलू खान के बेटों सहित 44 गवाहों के बयान कोर्ट में करवाए थे। हालांकि पहलू खान के बड़े बेटे इरशाद ने आदेश अपने हक में न आने के बाद कहा कि पहले उन्हें आरोपित पक्ष की ओर से लगातार धमकियां मिल रही थीं। इससे केस प्रभावित हुआ। बता दें कि इस मामले में कुल नौ आरोपी थे। इनमें से तीन आरोपियों की उम्र कम थी यानि वह नाबालिग थे। अदालत ने छह आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। हालांकि उन सभी आरोपियों को जांच के दौरान क्लीन चिट दे दी थी। जिस तरह से सभी छह अभियुक्त बरी हुए हैं, वह हमारी पूरी व्यवस्था के लचर होने से ज्यादा संवेदनशून्य होने की सच्चाई बयां करता है। अलबत्ता सरकारी वकील यह कहकर अपने जमीर के न मरने की खुद गवाही जरूर दे रहे हैं कि वे इस मामले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे पर जिस तरह जिला अदालत में वे जघन्य अपराध के इस मामले में सबूतों को लेकर ढीले साबित हुए हैं और एक के बाद एक कई गवाह पलटे हैं, उससे उनकी संजीदगी का पता चलता है और हर तरफ से इसे न्याय व्यवस्था की कमजोरी से आगे सिस्टम फेल्योर बताया गया। आप लोगों की समझ से भी यह बात हलक से नहीं उतर रही कि भीड़ के इतने चर्चित मामले में जिसमें घटना के वीडियो साक्ष्य मौजूद थे, पीड़ित ने मरने से पहले खुद बयान दिया था, सैकड़ों लोग इस घटना के गवाह रहे, उसे न्याय की मेज पर अपराध साबित करने में कहां चूक हो गई? अदालत ने वीडियो फुटेज को सबूत नहीं माना। पहलू खान के बेटे आरोपियों की पहचान करने में असफल रहे। जिस व्यक्ति के बारे में दावा किया गया कि उसने घटना की वीडियो बनाया था, उसने कोर्ट में आकर गवाही नहीं दी। मोबाइल लोकेशन से यह साबित नहीं होता कि आरोपियों के पास उस वक्त उनका मोबाइल था या वे वहां मौजूद थे। इस तरह के जघन्य कृत्य के बाद भी अपराधी अगर कानून के हाथों नहीं धरे जाते तो फिर देश-समाज में न्याय और कानून-व्यवस्था के प्रति अवाम की आस्था कैसे मजबूत होगी? पहलू खान मामले में अन्याय का मामला इसलिए भी बड़ा है क्योंकि भीड़ हिंसा देश में कम से कम सरकार की तरफ से ऐसा कुछ नहीं किया गया है जिससे ऐसे दोषियों का मनोबल टूटे और जनता का न्यायपालिका व सरकार द्वारा दोषियों को सजा न मिले। इससे घोर निराशा हुई है। ऐसे लोगों के मंसूबों को आखिर हौंसला कहां से मिल रहा है। ऐसे लोगों के मंसूबों को, हिंसा के खिलाफ अहिंसा का आख्यान अगर उदाहरण न बना, तो देश फिर न्यू इंडिया जैसे उत्साही आह्वानों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। ऊपर वाला ही तय करेगा कि पहलू खान कैसे मरा? पहलू खान को किसी ने नहीं मारा?

पहले परमाणु नो फर्स्ट यूज की नीति अब हालात पर निर्भर होगी

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद लगातार भड़काऊ भाषण देने वाले और परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की आए दिन धमकी देने पर पाकिस्तान को भारत ने उसी लहजे में जवाब दिया है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त करने के पीएम नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत परमाणु हथियार के इस्तेमाल पर संयम के सिद्धांत को बदल सकता है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहाöनो फर्स्ट यूज भारत की परमाणु नीति है, लेकिन भविष्य में क्या होगा यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यह बयान सरकार के सामरिक नीति में बड़े बदलाव का संकेत है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने पोखरण गए रक्षामंत्री ने वहां से लौटने के बाद ट्वीट कर यह जानकारी दी। 13 मई 1998 को अटल सरकार ने पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। फिर पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया। तब भारत ने कहा था कि वह इस शक्ति का इस्तेमाल पहले नहीं करेगा और भारत नो फर्स्ट यूज की नीति पर चलेगा। कश्मीर के मामले में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में पूरी तरह अलग-थलग हुए पाकिस्तान की इमरान खान की सरकार को व पाकिस्तानी सेना को अब यह सच्चाई समझने में देर नहीं करनी चाहिए कि परमाणु हथियारों के बार-बार सहारे जो ब्लैकमेलिंग की नीति उसने अपना रखी है अब उसकी कोई गुंजाइंश नहीं रह गई है और वह बार-बार युद्ध का जो डर दिखाते रहते हैं वह उनके खोखलेपन को ही उजागर करता है। गृहमंत्री के ताजा बयान से यह भी जाहिर होता है कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में देश मजबूत रहेगा ही नहीं, दिखेगा भी। जिस मजबूती से सर्जिकल स्ट्राइक की गई। जिस संकल्प के साथ अनुच्छेद 370 को हटाया गया उसी दृढ़ता से देश की सुरक्षा के इंतजाम किए जाएंगे। इसके लिए जरूरत हुई तो परंपरा से हटकर भी फैसले लिए जाएंगे। दबे लफ्जों में भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह पाकिस्तान द्वारा बम गिराने की प्रतीक्षा नहीं करेगा। अगर उसे लगा कि पाकिस्तान परमाणु हथियार चलाने वाला है तो भारत उससे पहले ही जवाबी कार्रवाई कर देगा। ध्यान रहे कि 2014 के भाजपा के घोषणा पत्र में वादा भी किया गया था कि परमाणु हथियारों के उपयोग को लेकर नीति का अध्ययन किया जाएगा और फिर उसमें बदलाव किया जाएगा। हालांकि 2019 के घोषणा पत्र में इसका जिक्र हटा लिया गया था। देश के प्रधानमंत्री के पास परमाणु हमले का अंतिम निर्णय होता है। मगर वह भी अकेले यह फैसला नहीं कर सकते। उनके पास स्मार्ट कोड होता है मगर परमाणु बम को दागने के लिए असली बटन परमाणु कमांड की सबसे नीची टीम के पास होता है, जो सही चैनल से मिले निर्देश पर ही काम करती है। प्रधानमंत्री इनसे लेकर ही अंतिम निर्णय ले सकते हैं। पहला, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी। दूसरा, राष्ट्रीय सलाहकार। तीसरा, चेयरमैन ऑफ चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी से। पाकिस्तानी शासन और सेना के लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि अगर परिस्थितियों ने भारत को इस संकल्प (नो फर्स्ट यूज) से बाहर निकलने के लिए विवश किया गया तो वह ऐसा करने में हिचकिचाएगा नहीं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अब तो खुद स्वीकार कर लिया है कि बालाकोट में जो हुआ वह पाकिस्तान की देन है। उन्होंने पुलवामा आतंकी हमले के बाद सैन्य कार्रवाई करके आगे भी हमले करने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान परमाणु हमला करने का सोचें भी नहीं। अगर अपनी बौखलाहट में उसने ऐसा करने की ठान ही ली तो भारत उनके बम का इंतजार अब नहीं करेगा।

Saturday 17 August 2019

आजम खान की मुश्किलें बढ़ीं, 27 प्राथमिकियां दर्ज

समाजवादी पार्टी के नेता एवं लोकसभा सांसद आजम खान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। ताजा मामला हैöआरोप है कि उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में वह जो विश्वविद्यालय चला रहे हैं, उसे शत्रु सम्पत्ति कानून का उल्लंघन है और इस पर कब्जा किया गया जिसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने धन शोधन मामले के तहत जांच शुरू कर दी है। शत्रु सम्पत्ति वह अचल सम्पत्ति है जिसे पाकिस्तान के बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए लोगों और 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद चीन जा चुके लोग यहां छोड़ गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तानी नागरिकों ने करीब 9280 ऐसी सम्पत्तियां छोड़ी हैं जबकि चीनी नागरिकों ने 126 सम्पत्तियां छोड़ी हैं। रामपुर से लोकसभा सांसद और अखिलेश यादव के शासनकाल में राज्य के कैबिनेट मंत्री रहे आजम खान पर केंद्रीय एजेंसी धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर चुकी है। ईडी के निशाने पर मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय है जिसे खान ने 2006 में स्थापित किया था। बताया जाता है कि विश्वविद्यालय में तीन हजार छात्रों का नामांकन है और यह 121 हेक्टेयर में फैला हुआ है। सूत्रों के मुताबिक अगर जमीन हड़पने और शत्रु सम्पत्ति कानून का उल्लंघन करने के आरोप सही पाए जाते हैं तो प्रवर्तन निदेशालय धन शोधन निवारण कानून के प्रावधानों के तहत जल्द ही विश्वविद्यालय परिसर को जब्त कर सकता है। पिछले एक महीने में करीब 27 प्राथमिकियां दर्ज कराई जा चुकी हैं। पुलिस ने बताया कि यह सभी मामले रामपुर में उनके विश्वविद्यालय के लिए किसानों की जमीन हड़पने से जुड़े हैं। रामपुर के पुलिस अधीक्षक अजय पाल शर्मा ने कहा कि 11 जुलाई से करीब दो दर्जन किसान विश्वविद्यालय के लिए उनकी जमीन का अतिक्रमण किए जाने के आरोप के साथ पुलिस के पास आ चुके हैं। हमने इन मामलों में 27 प्राथमिकियां दर्ज की हैं और जांच जारी है। उन्होंने बताया कि यह मामले भारतीय दंड संहिता के अनुच्छेद 323 (जानबूझ कर चोट पहुंचाना), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 447 (आपराधिक अतिक्रमण), 389 (वसूली के लिए किसी व्यक्ति को आरोपी बनाए जाने का डर दिखाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दर्ज किए गए हैं। अब रामपुर में भू-माफिया घोषित आजम खान को गिरफ्तारी का भय सता रहा है। आजम खान ने गिरफ्तारी के डर से रामपुर जिला जज की कोर्ट में शरण ली है। अपनी संभावित गिरफ्तारी में अग्रिम जमानत के लिए अदालत में प्रार्थना पत्र दिए हैं। जमीन पर कब्जा करने के अलावा रामपुर पुलिस ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों के खिलाफ 16 जून को एक आपराधिक मामले को दर्ज किया था। यह मामला 250 साल पुराने रामपुर के ओरियंटल कॉलेज के प्रधानाचार्य की शिकायत पर दर्ज किया गया था। आरोप है कि वहां से करीब 9000 किताबें चोरी कर उन्हें जौहर विश्वविद्यालय में रख लिया गया है।

-अनिल नरेन्द्र