Saturday 10 August 2019

दिशाहीन, भटकती कांग्रेस पार्टी

जम्मू-कश्मीर में बेशक अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया गया लेकिन इस मामले में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के विभाजित होने की खबरें आना दुखद जरूर है। कांग्रेस कार्यसमिति की बुधवार को हुई बैठक में जम्मू-कश्मीर से आने वाले सांसद तारिक अहमद ने तो यहां तक कह दिया कि अगर पार्टी अनुच्छेद 370 पर विचारधारा से समझौता करती है तो उनके लिए हुर्रियत में शामिल होने या आतंकवादी बनने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचता। बैठक में 370 हटाए जाने वालों में महासचिव और राहुल गांधी के करीबी महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया और दीपेंद्र हुड्डा ने जब इसे राष्ट्र की भावना बताया तो उनकी महासचिव गुलाम नबी आजाद से बहस भी हो गई। इसी क्रम में पहले दिन में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के यहां जम्मू-कश्मीर पर कोर ग्रुप की बैठक हुई और जब समाधान नहीं सूझा तो देर शाम कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई। पार्टी इस मुद्दे को लेकर गहरे संकट में है, क्योंकि पार्टी की राज्य इकाइयां और नेता कह रहे हैं कि जनभावना है कि 370 के हटने का स्वागत किया जाए। राज्यों से बराबर संगठन महासचिव और प्रभारियों को कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस इस पर अड़ियल बनी रही तो उसे बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान होगा। सबसे पहले इस मुद्दे पर राज्यसभा में मुख्य सचेतक भुवनेश्वर कलिता ने पार्टी छोड़ी फिर वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी, पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर 370 हटाने को देश की भावनाओं के अनुरूप बताया। जम्मू-कश्मीर से आने वाले कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद ने इससे असहमति जताई और इसे पार्टी लाइन के खिलाफ बताया। उन्होंने नसीहत दी कि ऐसे व्यक्तियों को पहले कश्मीर और कांग्रेस का इतिहास पढ़ना चाहिए। हालांकि इसके बाद भी कांग्रेस के भीतर से नेताओं के 370 को हटाए जाने के पक्ष में बयान जारी रहे। पूर्व मंत्री अनिल शास्त्राr ने कहा कि कांग्रेस को देश का मूड समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि मंडल आयोग का विरोध करके कांग्रेस ने यूपी और बिहार खो दिया था और 370 से चिपके रहकर वह पूरे देश में जनसमर्थन गंवा देगी। रायबरेली की विधायक अदिति सिंह और पूर्व सांसद रंजीता रंजन ने भी कहा कि वह जनभावनाओं के साथ हैं। कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी जम्मू-कश्मीर में आए बदलाव का स्वागत किया। सिंधिया राहुल के करीबी हैं और पदाधिकारी व कार्यसमिति के सदस्य हैं इसलिए उनके बयान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। वहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट में कहा कि जम्मू-कश्मीर को एकतरफा फैसले में टुकड़े में बंटने, जनप्रतिनिधियों को जेल भेजने और संविधान का उल्लंघन करने से राष्ट्रीय एकता नहीं हो जाती। यह गलत है या सही है इस पर बहस होगी। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कह दिया कि जम्मू-कश्मीर की संयुक्त राष्ट्र मॉनिटर करता है और इसे शिमला एवं लाहौर समझौते की तरह द्विपक्षीय मामला माना गया है तो आप फैसला कर सकते हैं? इससे साथ बैठी सोनिया गांधी बौखला गईं। सच तो यह है कि लंबे समय तक शासन करने वाली और मुख्य विपक्षी दल की यह स्थिति दयनीय है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांट कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने के मसले पर कांग्रेस का दृष्टिकोण राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट होना चाहिए। गुलाम नबी आजाद ने राष्ट्रीय नेता की जगह एक कश्मीरी नेता की लाइन पर भाषण दिया तो अधीर ने पाकिस्तान की ही भाषा बोल डाली। कांग्रेस के इस हाल के लिए नेतृत्वहीन की स्थिति जिम्मेदार है। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद पार्टी में लगभग ढाई महीने से कोई नेतृत्व नहीं है। इसका असर पार्टी की रणनीति से लेकर संगठन तक पर पड़ रहा है। उम्मीद की जाती है कि कांग्रेस पार्टी जल्द अपने नए अध्यक्ष का फैसला करेगी और हर मुद्दे पर स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाकर अपना यूं मजाक नहीं बनाएगी जैसा आज हो रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
an>-कश्मीर के लिए चुनौतीपूर्ण होंगे।

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