Tuesday 20 August 2019

पहलू खान को किसी ने नहीं मारा?

देशभर में चर्चित रहे अलवर जिले के पहलू खान मॉब लिंचिंग मामले में छह आरोपियों के कोर्ट से बरी हो जाने पर आश्चर्य भी हुआ और यह चौंकाने वाला फैसला है। न्याय से जुड़े सरोकारों में सबसे पहला यही है कि इस मामले में दुनिया के उन कई शहरों से बेहतर मान सकते हैं, जहां इंसाफ के तराजू को मजहबी और सत्ता के दबाव में जब तक मनमाफिक तरीके से एकतरफा झुका लिया जाता है। पर न्यायिक सक्रियता जैसे चमकदार तमाचे से विभूषित हमारी न्यायाकि व्यवस्था तब निस्संदेह बहुत निराश करती है जब सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से किसी बड़े मामले में कसूरवार आसानी से बरी हो जाते हैं। गौरतलब है कि एक अप्रैल 2017 को हरियाणा के नूहं मेवात जिले के जयसिंहपुरा गांव में रहने वाले पहलू खान की हत्या भीड़ ने कर दी थी। उस वक्त वह अपने दो बेटों के साथ जयपुर के बाजार दुधारू पशु खरीद कर अपने घर जा रहा था। राजस्थान के अलवर के बहरोड़ पुलिया के पास भीड़ ने उनकी गाड़ी रुकवा कर पहलू खान और उनके बेटों से मारपीट की थी। जब इस घटना की जानकारी पुलिस को मिली तो घटनास्थल पर पुलिस ने पहुंचकर पहलू खान को बहरोड़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया। यहां इलाज के दौरान चार अप्रैल 2017 को उनकी मौत हो गई थी। इस मामले में दो अप्रैल को मुकदमा दर्ज हुआ। पुलिस ने इस मामले में पहलू खान के बेटों सहित 44 गवाहों के बयान कोर्ट में करवाए थे। हालांकि पहलू खान के बड़े बेटे इरशाद ने आदेश अपने हक में न आने के बाद कहा कि पहले उन्हें आरोपित पक्ष की ओर से लगातार धमकियां मिल रही थीं। इससे केस प्रभावित हुआ। बता दें कि इस मामले में कुल नौ आरोपी थे। इनमें से तीन आरोपियों की उम्र कम थी यानि वह नाबालिग थे। अदालत ने छह आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। हालांकि उन सभी आरोपियों को जांच के दौरान क्लीन चिट दे दी थी। जिस तरह से सभी छह अभियुक्त बरी हुए हैं, वह हमारी पूरी व्यवस्था के लचर होने से ज्यादा संवेदनशून्य होने की सच्चाई बयां करता है। अलबत्ता सरकारी वकील यह कहकर अपने जमीर के न मरने की खुद गवाही जरूर दे रहे हैं कि वे इस मामले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे पर जिस तरह जिला अदालत में वे जघन्य अपराध के इस मामले में सबूतों को लेकर ढीले साबित हुए हैं और एक के बाद एक कई गवाह पलटे हैं, उससे उनकी संजीदगी का पता चलता है और हर तरफ से इसे न्याय व्यवस्था की कमजोरी से आगे सिस्टम फेल्योर बताया गया। आप लोगों की समझ से भी यह बात हलक से नहीं उतर रही कि भीड़ के इतने चर्चित मामले में जिसमें घटना के वीडियो साक्ष्य मौजूद थे, पीड़ित ने मरने से पहले खुद बयान दिया था, सैकड़ों लोग इस घटना के गवाह रहे, उसे न्याय की मेज पर अपराध साबित करने में कहां चूक हो गई? अदालत ने वीडियो फुटेज को सबूत नहीं माना। पहलू खान के बेटे आरोपियों की पहचान करने में असफल रहे। जिस व्यक्ति के बारे में दावा किया गया कि उसने घटना की वीडियो बनाया था, उसने कोर्ट में आकर गवाही नहीं दी। मोबाइल लोकेशन से यह साबित नहीं होता कि आरोपियों के पास उस वक्त उनका मोबाइल था या वे वहां मौजूद थे। इस तरह के जघन्य कृत्य के बाद भी अपराधी अगर कानून के हाथों नहीं धरे जाते तो फिर देश-समाज में न्याय और कानून-व्यवस्था के प्रति अवाम की आस्था कैसे मजबूत होगी? पहलू खान मामले में अन्याय का मामला इसलिए भी बड़ा है क्योंकि भीड़ हिंसा देश में कम से कम सरकार की तरफ से ऐसा कुछ नहीं किया गया है जिससे ऐसे दोषियों का मनोबल टूटे और जनता का न्यायपालिका व सरकार द्वारा दोषियों को सजा न मिले। इससे घोर निराशा हुई है। ऐसे लोगों के मंसूबों को आखिर हौंसला कहां से मिल रहा है। ऐसे लोगों के मंसूबों को, हिंसा के खिलाफ अहिंसा का आख्यान अगर उदाहरण न बना, तो देश फिर न्यू इंडिया जैसे उत्साही आह्वानों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। ऊपर वाला ही तय करेगा कि पहलू खान कैसे मरा? पहलू खान को किसी ने नहीं मारा?

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