Thursday, 29 August 2019

1.76 लाख करोड़ रुपए का सही इस्तेमाल होना चाहिए

आखिरकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी जमा पूंजी से सरकार को चालू वित्त वर्ष के लिए 1.76 लाख करोड़ रुपए देने का फैसला कर ही लिया। रिजर्व बैंक के इतिहास में पहली बार यह हो रहा है कि रिजर्व बैंक सरकार को अपनी सुरक्षित जमा पूंजी में से इतनी मोटी रकम देने जा रहा है। यह रकम इतनी बड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जीएसटी से संग्रह प्रति माह करीब एक लाख करोड़ रुपए का हो रहा है। गौरतलब है कि गत शुक्रवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए कुछ कदमों की घोषणा की थी। इनमें से एक थी सरकारी बैंकों को 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी फौरन दी जाएगी। केंद्रीय बैंक ने यह ऐतिहासिक फैसला जालान समिति की सिफारिश पर किया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में आरबीआई ने सोमवार को 1,76,051 करोड़ रुपए सरकार को देने की मंजूरी दी है। यह सिफारिश पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति ने की थी। लेकिन आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल इसके खिलाफ थे। इसी वजह से उन्होंने और डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने इस्तीफा दिया था। पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सरकार के कदम का विरोध करते समय अर्जेंटीना का उदाहरण दिया था। 6.6 बिलियन डॉलर सरकार को देने के दवाब में अर्जेंटीना सैंट्रल बैंक के गवर्नर मार्टिन रेडरेडो ने भी इस्तीफा दिया था। बाद में सरकार को फंड मिल गया। इसके कुछ महीने बाद ही अर्जेंटीना के बांड करेंसी और स्टाक मार्केट धाराशायी हो गए। सवाल यह है कि सरकार रिजर्व बैंक से मिलने वाली इस रकम का कैसा इस्तेमाल करेगी? जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सरकार ने आरबीआई से मिले कोष के उपयोग के बारे में निर्णय नहीं किया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने आरबीआई का आरक्षित धन जुटाने के कांग्रेस के आरोप पर भी कड़ी प्रतिक्रिया जताई। उन्होंने कहा कि वह ऐसे आरोपों की परवाह नहीं करती और विपक्षी नेता ऐसे आरोप लगाते ही रहते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरबीआई की ओर से सरकार को रिकॉर्ड नकद धन हस्तांतरित करने के निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को स्वयं पैदा किए हुए आर्थिक संकट के समाधान का रास्ता पता नहीं है। इसी सन्दर्भ में कांग्रेस नेता ने सरकार पर केंद्रीय बैंक से धन चोरी का आरोप लगाया। यह पैसा सरकार को मिलने वाला था पर सरकार इसका इस्तेमाल कैसे करेगी यह महत्वपूर्ण है। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय बैंक पूर्व में इस तरह पैसे दिए जाने के पक्ष में नहीं रहा है। जाहिर है कि आरबीआई को कहीं न कहीं  इसे लेकर कुछ संदेह रहे होंगे। मसला यह नहीं है कि पैसे मांगे जा रहे हैं बल्कि इन पैसों को किन-किन मदों में और कैसे खर्च किया जाना है, इसमें सरकार और बैंक के बीच पारदर्शिता होनी चाहिए। हालांकि केंद्रीय बैंक सरकार को हर साल सरप्लस पैसा देता रहा है, जो एक तरह से लाभांश ही होता है। तात्कालिक तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि इस पैसे का इस्तेमाल देश को मौजूदा आर्थिक संकट से निकालने का होगा। इस पैसे के इस्तेमाल पर बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्राr समीर नारंग और इंडियन ओवरसीज बैंक के पूर्व सीएम डीएस नरेंद्र ने बताया कि सरकार बजट से पहले बता चुकी थी कि आरबीआई से मिलने वाले फंड को इंफ्रास्ट्रक्चर, हाउसिंग, रेलवे और सड़क निर्माण में इस्तेमाल किया जाएगा। दूसरी ओर इस फंड से बाजार का प्रवाह बढ़ेगा। इस खबर से ही बाजार में तेजी देखने को मिल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है, देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। जीडीपी निरंतर गिर रही है। अर्थव्यवस्था के सभी सूचकांक नीचे हैं। रुपए का लगातार अवमूल्यन हो रहा है। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि रिजर्व बैंक को यह राशि 1.76 लाख करोड़ की बजट में शॉर्टफाल के लिए इस्तेमाल की जाएगी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अर्थव्यवस्था की जैसी हालत है उसमें नई ताकत की जरूरत है। बैंकों की हालत खस्ता है, जिनके फिर से पूंजीकरण की जरूरत है, वहीं नोटबंदी के बाद से एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) सुस्त पड़े हैं और ऑटो मोबाइल क्षेत्र अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इसके साथ ही राजकोषीय घाटे को नियंत्रण रखना एक बड़ी चुनौती है। बिक्री घटने के साथ ही रोजगार भी खत्म हो रहे हैं। अब रिजर्व बैंक ने तो अपना काम कर दिया है अब देखना यह है कि सरकार इस पूंजी का सही इस्तेमाल करती है या नहीं?

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