Thursday, 15 August 2019

370 मसले पर पाकिस्तान को मुस्लिम देशों का भी समर्थन नहीं मिला

मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे अनुच्छेद 370 को खत्म करने की संसद में घोषणा की तो पाकिस्तान तत्काल सक्रिय हो गया। भारत सरकार के इस फैसले पर पाकिस्तान की तत्काल और तीखी प्रतिक्रिया आई। इस फैसले की निन्दा करते हुए भारत के साथ लगभग सारे द्विपक्षीय संबंध तोड़ लिए। भारत के राजदूत को वापस भेज दिया गया और सारे व्यापारिक रिश्ते खत्म करने की घोषणा की। इसी के साथ पाकिस्तान ने डिप्लोमेटिक ओफेसिंव भी शुरू कर दिया। उसे बहुत उम्मीद थी कि कम से कम इस्लामिक देशों से तो उसे अपने स्टैंड पर समर्थन मिलेगा। पाकिस्तान इस मामले को लेकर मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन यानि ओआईसी में भी ले गया। जिसके दुनियाभर के 57 मुस्लिम बहुल देश सदस्य हैं। ओआईसी ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन की तो निन्दा की पर साथ-साथ यह भी कहा कि इसे सुलझाने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत शुरू की जाए। पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी भारत की शिकायत लेकर चीन गए। चीन ने भी कहा कि कश्मीर समस्या का समाधान दोनों देश मिलकर सुलझाएं और भारत को चाहिए कि यथास्थिति बनाए रखे। चीन लद्दाख पर अपना दावा पेश करता रहा है इसलिए लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश पर बहरहाल उसने आपत्ति जरूर की पर फिर भी मसले को आपसी सहमति से सुलझाने की बात कही। पाकिस्तान ने बहुत ही उम्मीद के साथ मुस्लिम देशों की तरफ निगाहें टिकाईं। खासकर मध्य-पूर्व के मुस्लिम देशों की ओर। पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा झटका संयुक्त अरब अमीरात का रहा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल से एक पत्रकार ने पूछा कि भारत का मुकाबला पाकिस्तान कैसे करेगा? इस पर उन्होंने कहा कि हम मुसलमान हैं और हमारी डिक्शनरी में डर नाम का कोई शब्द नहीं है। भारत में यूएई के राजदूत ने दिल्ली की लाइन को मान्यता देते हुए कहा कि भारत सरकार का जम्मू-कश्मीर में बदलाव का फैसला उसका आंतरिक मामला है और इससे प्रदेश की प्रगति में मदद मिलेगी। हालांकि इसके बाद यूएई के विदेश मंत्री ने थोड़ी नरमी दिखाते हुए कहा कि दोनों पक्षों को संयम और संवाद से काम लेना चाहिए। यूएई के बयान की तरह ही मध्य-पूर्व के बाकी मुस्लिम देशों का भी बयान आया। इनमें साऊदी अरब, ईरान और तुर्की शामिल हैं। तीनों देशों ने कहा कि भारत और पाकिस्तान आपस में बात कर मसले को सुलझाएं और तनाव कम करें। हालांकि तुर्की को लेकर पाकिस्तानी नेता और मीडिया ने दावा किया कि तुर्की के राष्ट्रपति रेयेप तैय्यब अर्दोवान से प्रधानमंत्री इमरान खान की बात हुई और तुर्की ने पाकिस्तान को इस मसले पर आश्वस्त किया है। आखिर मध्य-पूर्व से इतनी ठंडी प्रतिक्रिया क्यों आई? एक बड़ा कारण तो यह है कि मध्य-पूर्व के मुस्लिम देशों के लिए पाकिस्तान की तुलना में भारत ज्यादा महत्वपूर्ण कारोबारी साझेदार है। पाकिस्तान की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार नौ गुना बड़ा है। जाहिर है कि भारत इन देशों में कारोबार और निवेश का ज्यादा अवसर दे रहा है। इसके उलट पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था संकट से जूझ रही है। ओआईसी ने भारत का अहम मौकों पर समर्थन करने वाले मुस्लिम देश काफी मुखर रहे हैं। वो चाहे ईरान हो या इंडोनेशिया हो। भारत का संबंध सऊदी से भी अच्छा है और ईरान से भी। भले ही सऊदी और ईरान में शत्रुता क्यों न हो। ईरान कश्मीर मुद्दे पर भारत के साथ रहा है। ऐसा शायद इसलिए भी है कि उसे भी पाकिस्तान के साथ अपनी सीमाओं में समस्या है। ईरान पाकिस्तान पर आरोप लगाता रहा है कि वो सऊदी अरब के पीछे आंख मूंद कर चल रहा है और उसके लिए बलोच विद्रोहियों को मदद पहुंचाता है। बलोच विद्रोही ईरानी सुरक्षा बलों को निशाने पर लेते रहे हैं। पाकिस्तान हर हाल में चाहता है कि वो एफएटीएफ से ब्लैकलिस्ट न हो। कुल मिलाकर यह भारत की बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत है कि पाकिस्तान का आज मुस्लिम बहुल देश भी 370 पर समर्थन नहीं कर रहे हैं। हम पाकिस्तान की बौखलाहट को समझ सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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