Thursday, 15 August 2019

कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट का दखल देने से इंकार

जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने के बाद राज्य में कुछ प्रतिबंध लगाने और अन्य कड़े उपाय करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ विभिन्न दायर याचिकाओं पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 मामले में दखल देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने मंगलवार को इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा कि मामला गंभीर है और कानून-व्यवस्था से जुड़ा है। सरकार पर भरोसा रखना चाहिए। रातोंरात कुछ नहीं हो सकता। कांग्रेस एक्टिविस्ट तहसीन पूनावाला की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया था कि घाटी में फोन और इंटरनेट सेवाएं बंद होने के अलावा कई तरह के प्रतिबंध लागू हैं। वहां असल में क्या हो रहा है, किसी को नहीं पता। इनके खिलाफ केंद्र को तुरन्त निर्देश जारी किया जाए। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने इससे इंकार करते हुए कहा कि हालात सामान्य होने का इंतजार किया जाए। कोर्ट ने केंद्र की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि यह स्थिति कब तक बनी रहेगी? अटॉर्नी जनरल ने बताया कि सभी पहलुओं को देखा जा रहा है। हम रोजाना स्थिति का आकलन कर रहे हैं। 2016 में हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद भी इसी तरह की स्थिति बनी थी, तब उसे काबू करने में तीन महीने लगे थे। उस दौरान 47 लोग मारे गए थे। लेकिन इस बार पिछले सोमवार से एक भी मौत नहीं हुई है। इस दौरान याचिकाकर्ता की वकील मेनका गुरुस्वामी ने आरोप लगाया कि लोग अस्पताल और थाने तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस पर कोर्ट ने पूछा कि ऐसे प्रभावित कौन हैं? अदालत ने साफ किया कि जम्मू-कश्मीर में यही स्थिति जारी रहती है तो तथ्यों के साथ सामने आएं। इस मामले को देखेंगे। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि सरकार का प्रयास सामान्य स्थिति बहाल करने का है, इसलिए वह दैनिक आधार पर स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं। यदि जम्मू-कश्मीर में कल कुछ हो गया तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? निश्चित ही केंद्र। वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी से कहा कि वह स्पष्ट रूप से  बताएं, जहां राहत की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि आप हमें स्पष्ट दृष्टांत बताएं और हम उन्हें राहत उपलब्ध कराने का निर्देश देंगे। मेनका जब यह दलील दे रही थीं कि राज्य में हर तरह के संचार माध्यम ठप कर दिए गए हैं और त्यौहार के अवसर पर लोग अपने परिजनों का हालचाल तक नहीं पूछ सकें, पीठ ने कहा कि रातोंरात कुछ भी नहीं हो सकता। कुछ गंभीर मुद्दे हैं। हालात सामान्य होंगे और हम उम्मीद करते हैं कि ऐसा समय के साथ होगा। इस समय यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि किसी की जान नहीं जाए। पीठ ने इस मसले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हुए कहा कि लोगों की स्वतंत्रता के अधिकार के मुद्दे पर हम आपके साथ हैं। लेकिन इसके लिए हमारे सामने सही तस्वीर होनी चाहिए। इससे पहले सुनवाई शुरू होते ही गुरुस्वामी ने सवाल उठाया कि संचार व्यवस्था पर पूरी तरह पाबंदी कैसे लगाई जा सकती है? राज्य में तैनात सैनिक भी अपने परिवारों के सदस्यों से बात नहीं कर पा रहे हैं। इस पर पीठ ने जानना चाहा कि आप जवानों की समस्याओं को कैसे उठा रहे हैं, यह तो आपकी प्रार्थना नहीं है। जवानों को अनुशासन बनाकर रखना है और यदि उन्हें कोई शिकायत है तो उन्हें हमारे पास आने दीजिए। गुरुस्वामी ने जब अनुच्छेद 370 का हवाला देने का प्रयास किया तो पीठ ने उन्हें आगाह किया कि इस तरह का कोई बयान मत दीजिए। उन्होंने कहा था कि वह अनुच्छेद 370 पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहीं लेकिन वह लोगों के संवैधानिक अधिकार के मुद्दे पर हैं।

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