देश के लिए सोमवार का दिन ऐतिहासिक रहा। जम्मू कश्मीर में सुरक्षा पबंध बढ़ाए
जाने और घाटी में अमरनाथ यात्रियों, तमाम पर्यटकों के तुरंत लौटने का निर्देश
देने के बाद से तरह-तरह की अटकलों का दौर आरंभ हो गया था। सबके
दिमाग में एक ही पश्न था कि जम्मू कश्मीर में कुछ होने वाला है। क्या होने वाला है
इस पर सस्पेंस बना रहा। अंतत सोमवार को बम फट ही गया। केन्द्राrय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसले का ऐलान
कर दिया। मोदी सरकार ने सोमवार को साहसिक फैसला करते हुए जम्मू कश्मीर को स्वायत्तता
जैसा विशेष दर्जा देने वाले संविधान के विशेष उपबंध अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया। इसके साथ ही 70 साल पुराने अनुच्छेद
370 से जुड़ा जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेषाधिकार देने वाला
अनुच्छेद 35ए भी खत्म हो गया। इतना ही नहीं, आजादी के 72 साल बाद कन्याकुमारी से कश्मीर तक देश में
अब एक संविधान और एक निशान लागू हो गया। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश जम्मू कश्मीर
पुनर्गठन विधेयक राज्यसभा के बाद लोकसभा में भी पारित हो गया और राष्ट्रपति की मुहर
भी लग गई है। बिल के मुताबिक जम्मू कश्मीर राज्य को दो केन्द्र शासित पदेश जम्मू कश्मीर
और लद्दाख में बांट दिया गया है। जम्मू कश्मीर केंद्र शासित पदेश में दिल्ली और पुडुचेरी
की तरह विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख में चंडीगढ़ की तर्ज पर विधानसभा
नहीं होगी। अनुच्छेद 370 खत्म करने वाले राजपत्र पर राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद के दस्तखत करने के साथ ही अधिसूचना लागू, 1954 के आदेश का स्थान लेगी। संविधान में क्या है 370? आर्टिकल
370 के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।
साल 1949 में इस आर्टिकल को संविधान में जोड़ा गया था। इसके तहत
राज्य का अपना संविधान है। देश का कानून यहां लागू नहीं होता था। भारत सरकार सिर्प
राज्य में रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में ही दखल दे सकती
थी। इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू कश्मीर राज्य पर संविधान का अनुच्छेद 356
लागू नहीं होता था। इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त
करने का अधिकार नहीं था। 1976 का शहरी भूमि कानून जम्मू कश्मीर
पर लागू नहीं होता जिसके चलते देश के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं
खरीद सकते। संविधान का अनुच्छेद 360 जिसके तहत
देश में विशेष आपातकाल लगाने का पावधान है पर जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होगा। अनुच्छेद
35ए संविधान में जुड़ा हुआ पावधान है जो जम्मू कश्मीर को यह अधिकार
पदान करता है कि राज्य का स्थायी निवासी कौन है। किस व्यक्ति को सार्वजनिक क्षेत्र
की नौकरियों में विशेष आरक्षण दिया जाएगा, कौन साथ संपत्ति खरीद
सकता है, किन लोगों को वहां की विधानसभा चुनाव में वोट डालने
का अधिकार होगा, छात्रवृत्ति, अन्य सार्वजनिक
सहायता और सामाजिक कल्याण कार्यकमों में लाभ कौन पाप्त कर सकता है। अनुच्छेद के अंतर्गत
यह भी पावधान है कि यदि राज्य सरकार किसी कानून को अपने हिसाब से बदलती है,
तो उसे देश के किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसका यह मतलब
था कि वहां भारतीय संसद से पारित कोई भी बुनियादी मसलों से जुड़े विधेयक मान्य नहीं
थे। यही नहीं, वहां राज्य के बाहर के नागरिकों को संपत्ति खरीदने
का अधिकार नहीं था, यहां तक कि जम्मू कश्मीर की कोई महिला राज्य
के बाहर विवाह करने की स्थिति में अपने ही राज्य की संपत्ति नहीं खरीद सकती थी। पाकिस्तान
से सटे होने के कारण इस मुस्लिम बहुत राज्य की संवेदनशीलता भी समझी जा सकती है,
जो लंबे समय से सीमापार से आतंकवाद और अलगाववाद का सामना कर रहा है।
बेशक पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने कश्मीर के विशेष
दर्जे को समाप्त कर सबसे बड़ा राजनीति संदेश दिया है। लेकिन जहां पूरे देश में इसके
कारण जश्न का माहौल है और भाजपा ने अपने घोषणा पत्र के एक महत्वपूर्ण बिंदु को पूरा
करके दिखा दिया, वहीं इस फैसले के रास्ते में आगे चुनौतियां भी
कम नहीं हैं। इस कदम का क्या रिएक्शन हो सकता है। इस रिएक्शन को तीन बिंदुओं में बांटा
जा सकता है। पहला-कश्मीर घाटी में, दूसरा-पाकिस्तान में और तीसरा-अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी पर (खासकर इस्लामी देशों में)। कश्मीर के निवासी इस कानून
को चुनौती देंगे। वह अदालत जाएंगे जहां इस कानून का कानूनी पहलों पर विवाद खड़ा करने
का पयास किया जाएगा। सीनियर एडवोकेट एमएल लोहानी कहते हैं कि आर्टिकल 370 (3)
में कहा गया है कि राष्ट्रपति संविधान सभा की सहमति से ही विशेष दर्जा
वापस ले सकते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या नए संवैधानिक आदेश को संविधान सभा
की सहमति है? क्योंकि यह सभा तो 1956 में
ही भंग हो गई थी? हालांकि सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे कहते हैं
कि धारा 370 में पावधान था कि ये अस्थायी पावधान है। जहां तक
पाकिस्तान का सवाल है तो पाक समर्थित आतंकी हमलों में बढ़ोतरी का खतरा है। पाकिस्तान
भारत सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले से तिलमिला गया है, फैसले को
अवैध और एकतरफा बताते हुए पाक ने कहा है कि वह इसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में अपील करने के साथ ही सभी संभावित विषयों पर
विचार कर रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर पाकिस्तान के लिए एक सीमेटिंग
का काम करता है। सारी समस्याओं, पाकिस्तान के लिए अलगाववाद को
बढ़ाने में कश्मीर बहुत काम आता है। अब अगर यह सीमेटिंग फोर्स हटा ली गई है तो पाकिस्तान
के टूटने का खतरा भी बढ़ जाता है। बलूचिस्तान, सिंध समेत कई राज्य
पाकिस्तान से अलग होने की मांग बहुत समय से कर रहे हैं। वहीं पाकिस्तान सेना के हाथ
कश्मीर सबसे बड़ा मुद्दा है। क्या वह इतनी आसानी से इसे छोड़ सकता है? वह कश्मीर की स्थिति बरकरार रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। आईएसआई
कुछ भी करने-मरने की सोच सकती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका
का खासकर रुख देखना पड़ेगा। अमेरिका को अफगानिस्तान से भागना है और उसे लगता है कि
ऐसा करने के लिए उसे पाकिस्तान का समर्थन जरूरी है। इसी परिदृश्य में राष्ट्रपति डोनाल्ड
ट्रंप ने दो बार कश्मीर में मध्यस्थता की बात कही है। अमेरिका तथा अरब देशों का क्या
रुख होता है यह देखना जरूरी है। भारत हर पकार की रोड ब्लाक को पार करने को तैयार है।
फिर गुलाम कश्मीर का भी सवाल है। डा. सुब्रह्मणियम स्वामी ने
सोमवार को कहा कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद सरकार का
अगला एजेंडा गुलाम कश्मीर को वापस हासिल करना होना चाहिए। पर चीन की गुलाम कश्मीर में
मौजूदगी ऐसा करने में अलग चुनौती होगी। मैंने यह सब संभावनाएं बताई हैं, हो सकता है कि इनमें से कुछ न हो, हो भी तो भारत उनका
दृढ़ता से मुकाबला करेगा। धारा 370 को हटाने और राज्य को दो केन्द्र
शासित पदेशों में विभाजित करने का फैसला न सिर्प ऐतिहासिक है बल्कि अत्यंत साहसिक भी।
नोटबंदी, पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान में घुसकर
एयर स्ट्राइक करने जैसे दमदार फैसले लेने वाली मोदी सरकार ने एक बार फिर दिखा दिया
है कि वह किसी समस्या से निपटने के लिए उसके पास राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी नहीं
है। सात दशक से चली आ रही एक व्यवस्था को खत्म किए जाने से भले ही घाटी, पाकिस्तान में कुछ पतिकूल पतिकिया देखने को मिले लेकिन इस फैसले पर पूरा देश
सरकार के साथ खड़ा है। जयहिंद
-अनिल नरेन्द्र
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