Monday, 5 August 2019

तीन तलाक की मनमानी कुप्रथा से मुक्ति

तलाक--बिद्दत यानि तीन तलाक से संबंधित मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण विधेयक 2019 के राज्यसभा से पारित होने के साथ ही इस मनमानी कुप्रथा से मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। यह एक ऐतिहासिक घटना है। भारत जैसे देश में जहां राजनीतिक दलों की मुख्य चिन्ता वोट बैंक होती है, वहां एक समुदाय के बड़े वर्ग का विरोध झेलते हुए ऐसे प्रगतिशील न्यायपूर्ण कानून बनाने की कुछ वर्ष पूर्व में कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। यही देश है जहां एक बूढ़ी महिला शाहबानो को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए गुजारा-भत्ता के आदेश को संसद ने एक समुदाय के दबाव में पलट दिया था। दो वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि एक साथ तीन तलाक गैर इस्लामी, गैर कानूनी एवं संविधान विरोधी है यानि एक साथ तीन तलाक कहने भर से तलाक नहीं होगा। इसके बावजूद तीन तलाक होते रहे। राज्यसभा में पारित होने के बाद तीन तलाक भारत में भी प्रतिबंधित हो गया है। दुनिया के 19 इस्लामिक देशों में यह प्रथा पहले से ही प्रतिबंधित है। मिस्रöयह दुनिया का ऐसा पहला देश है जहां तत्काल तीन तलाक को वर्ष 1929 में मुस्लिम न्यायाधीश की खंडपीठ ने सर्वसम्मति से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। मिस्र की नजीर मानते हुए सूडान की अदालत ने अपने देश में तीन तलाक को बैन कर दिया। पाकिस्तान में 1956 में ही तत्काल तीन तलाक प्रतिबंधित कर दिया गया था। बांग्लादेश ने भी संविधान में संशोधन कर तत्काल तीन तलाक को बैन कर दिया था। 1959 में इराक दुनिया का पहला अरब देश बना था, जिसने शरिया कोर्ट के कानूनों को सरकारी कोर्ट के कानूनों के साथ बदल दिया। इसके साथ ही यहां तीन तलाक खत्म कर दिया गया। सीरिया में करीब 34 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है वहां तीन तलाक के नियम को इस तरह से तैयार किया गया है कि कोई भी पुरुष आसानी से पत्नी से अलग नहीं हो सकता। मलेशिया और इंडोनेशियाöमलेशिया में अगर किसी पति को तलाक लेना है तो उसे अदालत में अपील दायर करनी होती है। यहां अदालत के बाहर दिए गए तलाक की कोई मान्यता नहीं है। तुर्की में तलाक तभी शुरू हो सकता है जब शादी का पंजीकरण वाइटल स्टैटिस्टिकस ऑफिस में कराया गया है। फिर तलाक की पूरी प्रक्रिया नागरिक अदालत में होगी। साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, इराक, मोरक्को, कतर, श्रीलंका, सऊदी अरब व यूएई में भी तत्काल तीन तलाक पर बैन है। मैंने इन देशों का इसलिए हवाला दिया है कि भारत अगर तीन तलाक को अपने मौजूदा स्वरूप में पाबंद कर रहा है तो वह ऐसा करने वाला पहला देश नहीं है। बेशक इसमें कोई शक नहीं कि भारत सरकार ने नया कानून लाने का ऐतिहासिक और साहसी काम किया है पर इस नए कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर मुस्लिमों का एक वर्ग और कुछ सियासी पार्टियां इसका खुलकर विरोध भी कर रही हैं। मंगलवार शाम को राज्यसभा द्वारा पारित कानून में ट्रिपल तलाक को आपराधिक बनाने के प्रावधान पर बहस एक साधारण प्रश्न के चारों ओर घूमती नजर आईöजब शादी एक सिविल अनुबंध है और सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही तत्काल ट्रिपल तलाक को अमान्य करार दिया है तो कानून द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होने पर अपनी पत्नी को तलाक देने की कोशिश करने वाले व्यक्ति को दंडित करने की आवश्यकता क्या है? जल्द ही यह विधेयक कानून भी बन जाएगा। मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 के प्रावधानों के मुताबिक महिला को एक बार में तीन तलाक देना दंडनीय अपराध है। इसके लिए तीन साल की जेल की सजा के साथ जुर्माना भी हो सकता है। इस कानून से क्या वाकई मुस्लिम महिलाओं को राहत मिलेगी या पति का जेल जाना उनके लिए ही मुश्किलों का सबब बनेगा? राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा नए कानून का स्वागत करती हैं और कहती हैं कि मुस्लिम महिलाएं बहुत वक्त से इसका इंतजार कर रही थीं। इस तीन तलाक की वजह से मुस्लिम औरतों को न जाने क्या-क्या बर्दाश्त करना पड़ता था, मिनटों में घर से बाहर निकलना पड़ता था। यह एक ऐतिहासिक कदम है जो मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाली नाइंसाफी को रोकेगा। एक अल्पसंख्यक महिला कार्यकर्ता ने कहा मुझे नहीं लगता कि इस कानून का कोई मतलब भी है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में ही एक बार तीन तलाक दिए जाने को असंवैधानिक करार दिया था। जिस लफ्ज का कानून में कोई मतलब ही नहीं है उसे अपराध बनाए जाने का भी कोई मकसद समझ नहीं आता। अगर तीन तलाक के जुर्म में पति को जेल भेजा गया तो पत्नी व बच्चों की देखरेख कौन करेगा? कैसे साबित होता है कि तीन तलाक ही मुस्लिम औरतों का सबसे ब़ड़ा मुद्दा है? दूसरे शब्दों में एक जालिम मुस्लिम पति को अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता है, वह वही करेगा जो उसके जालिम हुए हिन्दू, ईसाई, जैन, बौद्ध और सिख समकक्ष करते हैंöउसे वैवाहिक घर से बाहर निकाल दे। वह उससे गाली-गलौच भी कर सकता है उसकी बेइज्जती भी कर सकता है, उसे बता सकता है कि शादी खत्म हो गई है और उससे किसी भी पैसे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। जब तक वह उर्दू के तलाक के लिए तीन अवैध शब्द नहीं कहता है, तब तक वह कोई भी जेल की सजा भुगतने से बच  जाएगा। इस तरह का कानून एक हिन्दू पति के लिए है, जो अपनी पत्नी को एक दिन बिना तलाक दिए कहता है कि यह शादी खत्म हो गई है, अब बाहर निकलो। अगर उसके मन में हंसी उड़ाने का भाव है तो वह एक गैर मुस्लिम के रूप में थे, उसे दरवाजे से बाहर धकेलते हुए तलाक, तलाक, तलाक कहकर भी ताना मार सकता है। कुछ विरोधियों का मानना है कि इस कानून का सीधा निशाना मुसलमान पुरुष है। तीन तलाक कानून से महिलाओं का कोई भला शायद होने वाला नहीं है। शादी और तलाक सिविल मामले हैं। भारत में पहली बार इन मामलों में बाकायदा सजा का ऐलान क्यों हुआ है? सामाजिक कुप्रथाओं को कानूनों से नहीं बदला जा सकता। इसलिए जरूरी है कि सामाजिक सोच भी बदले, मौजूदा वक्त में जब मुसलमान समुदाय पहले ही डरे हुए हैं और दूसरे दर्जे के नागरिक जैसा महसूस कर रहे हैं, जब देश में आए दिन मॉब लिंचिंग की घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिल रही हैं तो ऐसे में सरकार को अचानक मुस्लिम औरतों की चिन्ता क्यों सताने लगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहाöतीन तलाक बिल का पास होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। तुष्टिकरण के नाम पर देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया है। मुझे इस बात का गर्व है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने का गौरव हमारी सरकार को प्राप्त हुआ है। मोदी ने इसे ऐतिहासिक दिन बताया और कहा कि सदियों से तीन तलाक की कुप्रथा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को आज न्याय मिला है।

-अनिल नरेन्द्र

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