Tuesday 30 January 2024

बिहार में मंडल भारी या कमंडल?

बिहार  में अयोध्या का असर रहेगा या फिर मंडल भारी पड़ेगा? 1990 के दशक में जब अयोध्या में राम मंदिर बनने को लेकर आंदोलन शुरू हुआ था, उस वक्त बिहार मंडल की राजनीति चल रही थी। राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी के सबसे बड़े नेता लालवृष्ण आडवाणी को बिहार में ही 23 अक्तूबर 1990 को गिरफ्तार किया गया था। तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रासाद यादव थे। लालू यादव अब भी आडवाणी की गिरफ्तारी का श्रेय लेते हैं और कहते हैं कि उन्होंने बिहार को साम्प्रादायिक तनाव से बचा लिया था। सोमवार को अयोध्या में जब राम मंदिर की प्राण प्रातिष्ठा हो रही थी तब बिहार की सड़कों पर भी इसका असर दिख रहा था। हालांकि बिहार उन राज्यों में शामिल रहा, जिसे अयोध्या में राम लला की प्राण प्रातिष्ठा के अवसर पर किसी तरह की छुट्टी की घोषणा नहीं की थी। इधर पूरा बिहार अयोध्या में 500 वर्षो बाद रामलला के लौटने की खुशी मना रहा था।

उधर बिहार को डबल खुशी का अवसर मिल गया। बिहार के बड़े नेता कर्पूरी ठावुर की जयंती के 100 साल पूरा होने के ठीक एक दिन पहले प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाईं में केन्द्र सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देकर चौंका दिया। इस एक पैसले से आम चुनाव से पहले दिल्ली से लेकर पटना तक राजनीतिक माहौल तेज हो गया। भारत रत्न के ऐलान के बाद प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्स पर कहा, मुझे इस बात की बहुत प्रासन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के पुरोधा महान कलात्मक कर्पूरी ठावुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। दरअसल, पिछले वुछ दिनों से बिहार में पिछड़े की राजनाि़त जोरों पर है। बीजेपी के हिन्दुत्व और राम मंदिर पैक्टर से मुकाबला के लिए नीतीश वुमार ने बिहार में जाति जनगणना का कार्ड खेला, महागठबंधन सरकार ने न सिर्प जाति जनगणना के आंकड़े जारी किए बल्कि इसके बाद पिछड़ों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाईं। वहीं बुधवार को जेडीयू की रैली में कर्पूरी ठावुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग भी एजेंडे में भी। बीजेपी को पता था कि आरजेडी के मुस्लिम और यादव वोट समीकरण और साथ में नीतीश वुमार को पिछड़े वोट के सियासी गणित को हटाना इतना आसान नहीं है। ऐसे में कर्पूरी ठावुर को भारत रत्न देने के साथ ही बीजेपी ने पिछड़ों की राजनीति और नीतीश के वोट में सेंध लगाने की कोशिश की है। कर्पूरी ठावुर को भारत रत्न देकर सामाजिक न्याय को बड़ी मान्यता दी है।

कर्पूरी ठावुर के बहाने बीजेपी बिहार के अलावा उत्तर प्रादेश और सारे राज्यों में भी बड़ा अभियान शुरू कर सकती है, पहले भी नरेन्द्र मोदी की अगुवाईं में बीजेपी ने विपक्ष के प्रातीकों को अपने पाले में करने की सफल राजनीति की है, ऐसे में बीजेपी ने एक पैसले से दो शिकार किए हैं और मंडल-कमंडल दोनों कार्ड को अपने पाले में करने की कोशिश की है। 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है, देखना यह है कि बीजेपी की यह चाल दोनों मंडल और कमंडल साथ लेने की रणनीति कितनी कामयाब रहती है।

——अनिल नरेन्द्र

लकड़ी व कपड़े से तैयार हुआ मंदिर का शिखर


हुआ मंदिर का शिखर रामलला की प्राण प्रातिष्ठा से पहले श्रीराम मंदिर का शिखर भी तैयार कर लिया गया था। इसे लकड़ी, कपड़े और पूल की मदद से बनाया गया है। प्राण प्रातिष्ठा के बाद इसे हटाकर विधिवत शिखर बनाया जाएगा। बिना शिखर के निर्माण हुए प्राण प्रातिष्ठा पर सवाल उठाए जा रहे थे। वजह, मंदिर के भूतल का काम ही पूरा हो सका है। शिखर, दूसरे तले का काम पूरे होने के बाद लगना है। दूसरी ओर, मंदिर की छवि भी बिना शिखर अधूरी लग रही थी। इसके लिए बीच का रास्ता निकाला गया। मंदिर निर्माण से जुड़े वास्तुकार ने बताया कि लोगों को मंदिर के पूर्ण स्वरूप के दर्शन के लिए फिलहाल लकड़ी, कपड़े और पूल की मदद से शिखर भी तैयार करा दिया गया है। इससे पूर्ण मंदिर का नया दृश्य सामने आ रहा है। हालांकि, वास्तविक ऊंचाईं इससे कहीं अधिक होगी। समारोह के बाद तय योजना के अनुरूप शिखर का निर्माण किया जाएगा। रामलला के साथ ही जन्मभूमि मंदिर के शिखर और कलश के दर्शन पाकर भक्त निहाल हो रहे हैं। प्राण प्रातिष्ठा से पहले एक हफ्ते की कड़ी मशक्कत के बाद कोलकाता व झारखंड के 60 से अधिक कलाकारों ने यह शिखर तैयार किया था। इसे पूलों से सजाया गया। दरअसल राम मंदिर के शिखर का निर्माण दूसरे चरण में होना है। पहले चरण में भूतल, प्राथम तल व सिध द्वार का निर्माण किया गया है। इसके लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने 31 दिसम्बर 2023 की तारीख तय की थी। हालांकि इसके बाद भी निर्माण एजेंसी को दो हफ्ते का समय और लग गया। 15 जनवरी को प्राण प्रातिष्ठा समारोह के लिए साफ-सफाईं शुरू होने पर काम दिया गया था। अब जल्द ही दूसरे चरण का काम शुरू होगा जिसे इस साल दिसम्बर तक पूरा किया जाएगा। प्राण प्रातिष्ठा समारोह के ठीक पहले मंदिर की साज-सज्जा पर विमर्श के दौरान पाया गया कि शिखर के बिना मंदिर अधूरा दिख रहा है। पूलों व रंग बिरंगी रोशनी के बावजूद वैसा दृश्य नहीं बन रहा था, जो वर्तमान में है। इसलिए कोलकाता व झारखंड के दुर्गा पूजा के पंडाल विशेषज्ञ कलाकारों को बुलाया गया। मंदिर परिसर में ही 60 कारीगरों ने शिखर बनाने का काम शुरू किया। एक हफ्ते के अंदर बांस व कपड़े से शिखर का निर्माण किया और गर्भ गृह के ऊपर खूबसूरत शिखर की स्थापना कर दी गईं। यह शिखर लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। राम मंदिर के अंदर भगवान राम से जुड़े सात पात्रों को भी स्थान दिया जाना है, लेकिन अभी तक वे तैयार नहीं हो सके हैं। ऐसे में मंदिर के पास तय स्थान पर वाल्मीकि वशिष्ठ, विश्वामित्र, तुलसीदास, अहिल्या, निषादराज व शबरी के स्वरूप को कपड़े व लकड़ी से बनाया गया है। रामलला का दर्शन करने के लिए पूरे देश से रामभक्त बड़ी संख्या में अयोध्या पहुंच रहे हैं। शुरुआती दो दिनों में ही करीब 8 लाख राम भक्त अपने अराध्य के दर्शन कर चुके हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। भक्तों की व्यवस्था करने में प्राशासन को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। टैम्पो, टैक्सी एवं ईं-बसों का संचालन राम नगरी की सीमा तय होने की वजह से श्रद्धालुओं को वापसी में परेशानी हो रही है। टैम्पो-टैक्सी जालपा चौराहा तक ही जा रही है।

Thursday 25 January 2024

गाजा में अब तक 25000 से अधिक मौतें

25000 से अधिक मौतें इजराइल और हमास के बीच तीन महीने से अधिक समय से जारी युद्ध में 25000 से अधिक फलस्तिनियों की मौत हो चुकी है। गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को यह जानकारी दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार पिछले 24 घंटे में गाजा के अस्पतालों में कम से कम 178 शव और लगभग 300 घायल लाए गए। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इजराइल-हमास युद्ध में महिलाएं और बच्चे सबसे अधिक पीिड़त हैं। सात अक्टूबर को हमास ने इजराइल पर अचानक हमला कर करीब 1200 लोगों को मार डाला था। इनमें से अधिक आम नागरिक थे। हमलावरों ने पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 250 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया। इजराइल ने हवाईं अभियानों के साथ जवाबी हमले शुरू किए और फिर उतरी गाजा में जमीनी आव्रमण किया जिससे पूरा इलाका लगभग तबाह हो गया है। इजराइली बलों की जमीनी कार्रवाईं अब दक्षिणी शहर खास यूनिस और मध्य गाजा में निर्मित शरणार्थी शिविरों पर केन्द्रित है। गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि सात अक्टूबर से अब तक क्षेत्र वें वुल 25105 फिलीस्तीनी मारे गए हैं, जबकि 62,681 अन्य घायल हुए हैं। प्रवक्ता ने कहा कि इजराइली हमलों के कारण मलबों के नीचे दबे हुए हैं जहां चिकित्सक अब तक नहीं पहुंच सके हैं। मंत्रालय ने मरने वालों में नागरिक व लड़ाकों की संख्या के बीच अंतर के बारे में कोईं सटीक जानकारी नहीं दी है। हालांकि, कहा है कि मारे गए लोगों में से लगभग दो तिहाईं महिलाएं और नाबालिग शामिल हैं। इजराइली सेना ने बिना कोईं सुबूत दिए दावा किया कि लगभग 9000 उग्रवादियों को मार गिराया है। उधर कपाला में गुटनिरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन में शामिल हुए राष्ट्राध्यक्षों ने गाजा पट्टी में इजराइल के सैन्य अभियान को शनिवार को अवैध करार दिया और साथ ही फलस्तीन के नागरिकों और बुनियादी ढांचों पर हमलों की कड़ी निंदा की है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन की समाप्ति पर एक बयान जारी कर गाजा पट्टी तक मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए युद्ध विराम की मांग की गईं और 1967 से पहले की सीमाओं के आधार पर द्विराष्ट्र समाधान का आह्वान किया गया। तब इजराइल और पड़ोसी अरब देशों के बीच हुए युद्ध के बाद इजराइल ने गाजा वेस्ट और पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया था। इस समूह ने फिलीस्तीन की संयुक्त राष्ट्र में शामिल करने की मांग की। युगांडा की राजधानी में सप्ताह भर चले गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) शिखर सम्मेलन में 120 देशों के 30 राष्ट्राध्यक्षों सहित 90 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसका समापन शुव्रवार और शनिवार को राष्ट्राध्यक्षों के शिखर सम्मेलन के साथ हुआ। इजराइल गाजा में इतनी तबाही मचाने के बाद भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है। 7 अक्टूबर को हमास हमले में बेशक 1200 इजराइली मारे गए पर उसके बदले इजराइल तो 25 हजार से ज्यादा लोगों को मार चुका है। लाखों लोगों के घर तबाह हो गए। वो दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। अब तो बस करो। हमास की कार्रवाईं को कोईं जायज नहीं ठहरा सकता पर इजराइली जवाब को भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। ——अनिल नरेन्द्र

अयोध्या से छोड़ा चुनावी अश्वमेध का घोड़ा

अश्वमेध का घोड़ा अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यंव्रम पूरा हो गया है और इसी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी अश्वमेध का घोड़ा छोड़ दिया है। यानी की 2024 के लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गईं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मुद्दों के रूप में चुनावी अश्वमेध का घोड़ा भी छोड़कर पूरे देश में घूम-घूमकर विरोधियों को चुनौती देने का कार्यंव्रम बना लिया है। चुनावी तैयारी में भाजपा सभी अन्य पार्टियों से आगे है। इंडिया गठबंधन तो अभी तक सीट शेयरिंग फार्मूला तय नहीं कर पाया है और भाजपा अपनी उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने वाली है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट के लिए जो कड़े प्रावधान तय किए हैं उसका असर पार्टी के 40 फीसदी सांसदों पर पड़ सकता है। पार्टी ने इस बार बेहद कम अंतर से जीत हासिल करने वाले लगातार तीन चुनाव जीतने वाले 70 से अधिक उम्र वाले और अति सुरक्षित सीटों पर अपवादस्वरूप ही वर्तमान सांसदों को उतारने का मन बनाया है। वर्तमान में ऐसे सांसदों की संख्या करीब 130 है। मिशन 2024 की तैयारियांे के अंतिम रूप देने में जुटी पार्टी ने लगातार तीसरी जीत हासिल करने के लिए टिकट वितरण में सबसे अधिक सावधानी बरतने का पैसला किया है। पार्टी की योजना न्यूनतम अंतर से जीत वाली सीटों और कठिन सीटों पर मध्यप्रदेश चुनाव की तर्ज पर दिग्गज चेहरों को उतारने की है। सत्ता बरकरार रखने के लिए पार्टी का खास फोकस उन 344 सीटों पर है जहां पार्टी को बीते तीन चुनावों में कभी न कभी जीत हासिल हुईं है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक बीते चुनाव में पार्टी को 27 सीटों पर महज एक फीसदी के अंतर से तो 48 सीटों पर महज दो फीसदी के अंतर से जीत हासिल हुईं थी। इनमें से ज्यादातर सीटों पर पार्टी उम्मीदवार बदलेगी। इसके अलावा वर्तमान में पार्टी के 61 सांसदों की उम्र 70 साल से अधिक है, जबकि लगातार तीन चुनाव जीतने वाले सांसदों की संख्या 20 है। इन सीटों पर भी अपवाद स्वरूप ही सांसदों को फिर से टिकट मिलेगा। लोकसभा चुनाव के लिए देश के लगभग हर बूथ पर चाक-चौबंद रणनीति को अपनाया है। इसमें वह चार वर्गो महिला, युवा, गरीब और किसान को केन्द्र में रखकर संवाद कर रही है। नईं रणनीति में भाजपा उन समाजिक वर्गो तक भी प्रभावी संपर्व बना सकेगी जिनका अधिकांश समर्थन उसके विरोधी दलों को मिलता है। इसमें मुस्लिम समुदाय भी शामिल है। देश की राजनीति में जाति एक बुरा कारक है और विपक्षी इसी पर अपनी संभावित एकता को लेकर भाजपा से दो-दो हाथ करने की तैयारी में है। दूसरी तरफ भाजपा ने भी विपक्ष की इस रणनीति की धार वुंद करने के लिए नया फार्मूला तैयार किया है। बीते दिनों देश के प्रमुख 300 कार्यंकर्ताओं के साथ बैठक में भाजपा नेतृत्व ने यह स्पष्ट भी किया है। इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार की विभिन्न योजनाओं के केन्द्र में कोईं एक समुदाय और जाति नहीं है, बल्कि वह चार वर्ग महिला, युवा, गरीब और किसान को केन्द्र में रखकर बनाईं गईं है। इसे हर किसी को बताना है और हर घर तक पहुंचाना है। राम मंदिर के माहौल में भाजपा के लिए भले ही कोईं बड़ी चुनौती नहीं दिख रही हो। लेकिन भाजपा हर चुनाव की तरह ही इस चुनाव को भी पूरी ताकत से लड़ रही है, भाजपा का मानना है कि विपक्ष को हल्के में नहीं लिया जा सकता। उसे पूरी तैयारी और रणनीति के साथ मैदान में उतरना होगा।

Tuesday 23 January 2024

यूपी में सपा-रालोद का गठबंधन

भारत के विपक्षी गठबंधन में शामिल पार्टियों के बारे में दो जानकारियां सामने आई हैं। एक तरफ समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने गठबंधन का औपचारिक ऐलान कर दिया है। हाथ, पटना में। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार से उनके घर पर मुलाकात की। इस मौके पर लालू प्रसाद यादव के बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी उनके साथ थे। .बैठक के बाद तेजस्वी यादव ने अपने आवास पर पत्रकारों से कहा कि दरार की अफवाहें जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. घोषणा की. यादव ने अपने एक पोस्ट में कहा कि राष्ट्रीय लोकदल और सपा गठबंधन सभी एकजुट हैं. सभी को एकजुट होकर एकजुट होना चाहिए. जीत। जयंत चौधरी ने एक्स पर लिखा। वे हमेशा राष्ट्रीय और संवैधानिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। उम्मीद है कि इत्तिहाद के सभी कार्यकर्ता अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास और समृद्धि के लिए कदम आगे बढ़ाएंगे। जयंत चौधरी ने अपने पोस्ट के साथ तस्वीरें भी अपलोड की हैं जिसमें वह और अखिलेश यादव हाथ मिलाते नजर आ रहे हैं. रालोद प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि दोनों नेताओं के बीच हुई मुलाकात में सीटों के बंटवारे को निश्चित रूप दे दिया गया है. उन्होंने कहा कि रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 7 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. .जिसमें 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में एसपी ने 111 सीटें जीतीं, जबकि आरएलडी को 8 सीटें मिलीं. 2019 के चुनाव में आरएलडी ने एसपी बीएसपी के साथ गठबंधन किया था. आरएलडी ने मथुरा, बागपत जीती. और मुजफ्फरनगर सीट जीती. जबकि सभी में उसे हार मिली तीन सीटें। जबकि एसपी और बीएसपी ने पांच और 10 सीटें जीतीं। नए गठबंधन में आरएलडी ने किन 7 सीटों पर चुनाव लड़ा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि एसपीए और आरएलडी के बीच सात सीटों पर समझौते की बात चल रही है। इनमें मथुरा, हाथरस, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, बागपत, अमरोहा और कैराना लोकसभा सीटें हैं। चूंकि दोनों नेताओं ने अभी तक सीटों पर गठबंधन नहीं किया है। गठबंधन के बाद अब एसपी-आरएलडी कांग्रेस पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए अधिक दबाव बनाएगी। अपनी सीटों को लेकर।मायावती के गठबंधन में शामिल होने की संभावना खत्म होने के बाद।सपा और आरएलडी गठबंधन से कांग्रेस को यूपी में अलग-थलग पड़ने का डर सताने लगा है।कांग्रेस गठबंधन में मायावती के शामिल होने की संभावना बताकर सपा पर दबाव बना रही थी। लेकिन अब हालात बदल गए हैं. एसपी को लगता है कि अब उनके सामने कोई विकल्प नहीं है. 2 दिन पहले एसपीए ने कांग्रेस को जल्द स्थिति साफ करने का संदेश भेजा था. अब एसपीए ने डी को सात सीटें देकर कांग्रेस पर दबाव बढ़ा दिया है रालोसपा.कांग्रेस ने सीटों का बंटवारा कर दिया है.इसमें काफी वक्त लग रहा है.कहीं ऐसा न हो कि यहां लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाए और कांग्रेस हाथ पर हाथ धरे रह जाए.अखिलेश ने एकता की राह दिखा दी है.समझने वाले क्या करेंगे अभी तक समझ नहीं आया? (अनिल नरेंद्र)

मणिपुर में हिसा थमने का नाम नहीं ले रही है

का नाम नहीं ले रही है मणिपुर में बीते वुछ दिनों में अलग-अलग जगह पर हुईं हिसा में पांच नागरिकों समेत दो सुरक्षार्कमियों की मौत हुईं है। इसमें से एक मामला विष्णुपुर ि़जले का है। यहां संदिग्ध हथियारबंद चरमपंथियों ने गुरुवार शाम एक पिता-पुत्र समेत चार लोगों की हत्या कर दी। मरने वाले लोगों की पहचान थियाम सोमेन सिह, ओइनम बामोइजाओ सिह, उनके बेटे ओइनम मनितोम्बा सिह और निगथौजम नबादीप मैतेईं के रूप में की गईं है। वहीं बुधवार रात इंफाल पािम ि़जले के कांगचुप में हमलावरों ने एक मैतेईं बहुल गांव के ग्राम रक्षक की हत्या कर दी। बुधवार को ही संदिग्ध चरमपंथियों ने टैंगनोपल ि़जले में म्यांमार सीमा से सटे मोरेह शहर में सुरक्षाबलों पर हमला किया था। इसमें पुलिस के दो जवानों की मौत हो गईं थी। हिसा की इन अलग-अलग घटनाओं में मारे गए सभी लोग मैतेईं समुदाय के थे। इसके बाद राजधानी इंफाल से लेकर बिष्णुपुर जैसे मैतेईं बहुल इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। मणिपुर में 3 मईं से रह-रहकर हो रही हिसा के बीच पिछले वुछ दिनों से शांति का माहौल बना हुआ था। लेकिन बुधवार को मोरेह शहर से फिर शुरू हुईं हिसा ने राज्य में भय और दहशत का माहौल पैदा कर दिया है। मणिपुर में चरमराईं कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस ता़जा हिसा के पीछे क्या वजह है? क्यों पिछले आठ महीनों से यहां हिसा रुकने का नाम नहीं ले रही है? पिछले 8 महीनों में मणिपुर के जिन शहरी इलाकों में व्यापक स्तर पर हिसा हुईं, उसमें सीमावता मोरेह शहर भी एक है। वुकी जनजाति बहुल इस शहर में हिसा के दौरान मैतेईं लोगों के अधिकतर घरों को जला दिया गया था। इस समय मोरेह में एक भी मैतेईं परिवार नहीं है। मोरेह में असम राइफल्स और बीएसएफ के साथ मणिपुर पुलिस कमांडो की तैनाती को लेकर विरोध होता रहा है। वहां वुकी जनजाति के लोग मणिपुर पुलिस कमांडो को इलाके से हटाने की मांग करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि मणिपुर पुलिस कमांडो में मैतेईं समुदाय के जवान हैं, जिसके कारण वे लोग सुरक्षित महसूस नहीं करते। उनका यह भी आरोप है कि पुलिस कमांडो के साथ वुछ मैतेईं हमलावर भी इलाके में आ गए हैं। वुकी जनजाति के प्रमुख संगठन वुकी इंग्पी के वरिष्ठ नेता थांगमिलन किपजेन की मानें तो इस लड़ाईं को रोकने के लिए भारत सरकार का हस्तक्षेप ़जरूरी है। उन्होंने कहा, कि राज्य में तुलनात्मक शांति थी। क्योंकि वेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने कहा था कि पहाड़ी इलाकों की कानून-व्यवस्था वे खुद देखेंगे और घाटी वाले इलाकों को मुख्यमंत्री बीरेन सिह संभालेंगे। लिहा़जा अब तक राज्य पुलिस के कमांडो पहाड़ी इलाके में नहीं आ रहे थे। अब हिसा इसलिए बढ़ गईं कि मणिपुर सरकार मैतेईं समुदाय के पुलिस कमांडो को हेलीकॉप्टर के जरिए मोरेह भेज रही है। राज्य सरकार को शांति कायम करने के लिए इन कमांडो को वापस बुलाने की ़जरूरत है। मैतेईं समाज के हितों के लिए बनी कोर्आडिनेशन कमेटी ऑ़फ मणिपुर इंटीग्रिटी के वरिष्ठ नेता किरेन वुमार मानते हैं कि वेंद्र और राज्य सरकार मणिपुर में स्थिति संभालने में सफल नहीं हो रहे। वो कहते हैं कि सरकार वुकी आतंकियों को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। वुकी बॉर्डर टाउन मोरेह पर कब्जा करना चाहता है। म्यांमार के विद्रोही इन वुकी आतंकियों के साथ मिलकर आरपीजी विस्फोटक से हमला कर रहे हैं। किसी भी जातीय हिसा में आरपीजी चलाने की बात किसी ने नहीं सुनी होगी। राज्य में शांति स्थापित करने के सवाल पर मैतेईं नेता किरेन वुमार कहते हैं कि प्रदेश में शांति केवल भारत सरकार के हस्तक्षेप से ही कायम हो सकती है। हिसा को शुरू हुए आठ महीने से ज्यादा हो चुके हैं। बीरेन सरकार पूरी तरह पेल हो गईं है। लोगों की हत्या की जा रही है। घरों को जलाया जा रहा है लेकिन मणिपुर को किसी की भी चिता नहीं है।

Saturday 20 January 2024

ठंड, कोहरे और प्रदूषण की ट्रिपल मार

इन दिनों पूरा उत्तर भारत ठंड, कोहरे और प्रदूषण की ट्रिपल मार से जूझ रहा है। पूरे उत्तर भारत में शीतलहर का प्रकोप है। कड़कड़ाती ठंड के बीच कोहरे की घनी चादर ने उत्तर भारत के बड़े इलाके को अपनी आगोश में ले लिया है। सुबह के वक्त पंजाब से लेकर असम तक का इलाका घने कोहरे में डूबा रहता है। दिल्ली समेत कईं शहरों में दृश्यता का स्तर शून्य तक गिर गया। रेल और हवाईं यातायात पर भी इनका खासा असर देखने को मिल रहा है। मौसम विभाग के अनुसार, अमृतसर, गंगानगर, पटियाला, अंबाला, चंडीगढ़, बरेली, लखनऊ, बहराइच, वाराणसी, प्रयागराज, तेजपुर समेत कईं शहरों में सुबह के समय दृश्यता का स्तर शून्य मीटर तक रहा। मौसम विभाग के मुताबिक कोहरे की चादर सिंधु, गंगा के मैदान और ब्रrापुत्र नदी क्षेत्र में भी पैली रही। कोहरे की चादर लगभग 2300 किलोमीटर लंबी रही और 10.71 लाख वर्ग किलोमीटर हिस्सा इससे प्रभावित है। एक दिन तुलना में कोहरे की चादर में 24 प्रतिशत का इजाफा हुआ। उधर खगोलीय घटनाओं के लिहाज से 2024 बेहद रोमांचक साल होने जा रहा है। इस साल तीन बड़े उल्कापात होने जा रहे हैं। पृथ्वी की ओर बढ़ रहे 24 बड़े एस्ट्रेरॉइड के सुंदर नजारे दिखेंगे। इसके अलावा चार ग्रहण भी लगेंगे। यदि आप इन रोमांचक घटनाओं का गवाह बनना चाहते हैं तो इसके लिए पहले से ही तैयार रहना होगा। नैनीताल स्थित आर्यंभट्ट विज्ञान शोध संस्थान के डा. विरेन्द्र यादव के अनुसार इस साल चार बार ग्रहण देखने को मिलेंगे। जिसमें दो सूर्यं और दो चंद्र ग्रहण होंगे। साल का पहला चंद्र ग्रहण 25 मार्च को लगेगा। इसके बाद 18 सितम्बर को दूसरा चंद्र ग्रहण होगा। वहीं पहला सूर्यं ग्रहण आठ अप्रैल को होगा और दूसरा दो अक्टूबर को लगेगा। सुदूर अंतरिक्ष से इस साल 24 बड़ी चट्टानें पृथ्वी की ओर आ रही है। इसमें से 12 एस्ट्ररॉइड को तो इस साल के पहले महीने यानी जनवरी में ही देख सकते हैं। बता दें अगले वुछ दिनों के भीतर चार एस्ट्ररॉइड पृथ्वी और चांद के बीच से गुजरेंगे। मौसम के मिजाज में बदलाव की बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है। वहीं सर्दी का प्रकोप लोगों के लिए मश्किलें पैदा कर रहा है और फिर थोड़े दिन बाद ही गर्मी बढ़नी शुरू होगी तो उसे झेलना मुश्किल हो जाएगा। पिछले वुछ वर्षो से न केवल गर्मी की अवधि बढ़ी है, बल्कि इसकी तीव्रता भी सहनशक्ति के पार जा रही है। यही वजह है कि हर वर्ष गर्मी में तेज लू चलने के कारण लोगों की मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं। पिछली गर्मी में उत्तर प्रदेश के वुछ इलाकों में लू की चपेट में आकर सौ से अधिक लोगों के मरने के आंकड़े दर्ज हुए। यही हाल बरसात का भी है। बरसात की अवधि घट गईं है और बरसने वाली बूंदों का आकार बढ़ गया है। इससे कम समय में हुईं बारिश से भी जगह-जगह बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। मगर कईं इलाके बरसात का इंतजार करते रह जाते हैं। उन्हें सूखे की मार झेलनी पड़ती है। इस वजह से अब और फसलों, सब्जियों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ने लगा है, जो खादृा सुरक्षा की दृष्टि से चिंताजनक स्थिति माना जा रहा है। पहाड़ों पर कम बर्प गिरने से पारंपरिक जलस्त्रोत, झीलों, तालाबों आदि में कम जल संचय हो पाएगा। वुल मिलाकर लगता नहीं कि अगले चार-पांच दिनों में कोईं राहत मिलने वाली है। ——अनिल नरेन्द्र

पाक का आतंकी चेहरा बेनकाब

चेहरा बेनकाब पाकिस्तान ने गुरुवार को कहा कि उसकी सेना ने ईंरान के भीतर आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला किया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने गुरुवार को सवेरे मर्ग बर सर्मचार नाम का अभियान चलाकर ईंरान में शरण लेकर रह रहे आतंकवादियों को निशाना बनाया है। बयान में कहा गया है, गुरुवार सुबह पाकिस्तान ने ईंरान के सिस्तान-ओ-बलूचिस्तान प्रांत में आतंकवादियों के चिन्हित ठिकानों पर सुनियोजित हमले किए है। खुफिया जानकारी के आधार पर चलाए गए मर्ग बर सर्मचार नाम के अभियान में कईं आतंकी मारे गए हैं। पाक ने कईं आतंकियों के मरने की बात कही है, हालांकि उसने इससे संबंधित कोईं आंकड़ा नहीं दिया है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस अभियान के लिए अपनी सेना को मुबारकबाद दी है। ईंरान इंटरनेशनल न्यूज के अनुसार सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के एक स्थानीय अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि सरावान शहर के पास कईं धमाके हुए हैं। इस प्रांत के डिप्टी गर्वनर जनरल ने ईंरान के सरकारी टीवी चैनल से कहा कि पाकिस्तान ने सरहद के एक गांव पर हमला किया है। इस हमले में तीन महिलाएं और चार बच्चांे की मौत हुईं है। मरने वाला कोईं भी ईंरानी नागरिक नहीं है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने ईंरानी मीडिया में आ रही रिपोर्टो के हवाले से कहा कि सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के एक गांव में कईं मिसाइलें गिरी हैं। समाचार एजेंसी एएफपी ने पाकिस्तानी खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा, मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि हमने ईंरान के भीतर पाकिस्तान विरोधी गुट को निशाना बनाया है। पश्चिम एशिया में संघर्ष के बीच ईंरान द्वारा इराक के वुर्दिस्तान व सीरिया पर हमले के बाद पाकिस्तान पर किए गए मिसाइल व ड्रोन हमले से युद्ध के एकाधिक मोच्रे खुलने की आशंका तो है ही, लेकिन बेहतर द्विपक्षीय रिश्तों के बीच तेहरान की यह आव्रामकता पाकिस्तान के आतंकी मुहिम को एक बार फिर बेनकाब करती है। ईंरान का आरोप है कि उसके दक्षिण-पूर्वी प्रांतों कत्यान और सिस्तान व बलूचिस्तान में पिछले दिनों हुए आतंकी हमले के पीछे जिसमें कईं सेना के अधिकारी मारे गए थे, पाकिस्तान के सुन्नी समूह जैसे अल-अदल का हाथ था जिसका बदला लेने के लिए उसने यह कार्रवाईं की है। बलूचिस्तान के सीमांत शहर में किए गए इस हमले में दो लड़कियां मारी गईं हैं, जबकि वुछ लोग लापता हुए हैं, बलूचिस्तान में छिपे आतंकवादी संगठन जैसे अल अदल पर मिसाइल से हमला कर ईंरान ने पाकिस्तान के आतंकी चेहरे को फिर बेनकाब कर दिया है, देखा जाए तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान पर आतंकवादियों के सबसे सुरक्षित पनाहगाह होने का जो आरोप भारत वर्षो से लगा रह है, उस पर इस्लामिक देशों की भी मुहर लगने लगी है। जानकार मान रहे हैं कि अतंर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को लेकर भारत का दावा पहले के मुकाबले और ठोस हो गया है। इस बीच विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा, यह ईंरान और पाकिस्तान के बीच का आपसी मामला है। जहां तक भारत का सवाल है, आतंकवाद के प्रति हमारी नीति जीरो टालरेंस की है, हम उन कार्रवाइयों को समझते हैं, जो देश आत्मरक्षा के लिए करते हैं। भारत व ईंरान के अलावा अफगानिस्तान की मौजूदा तालिबानी सरकार भी पाकिस्तान में आतंकियों के छिपे रहने का मुद्दा उठाती रही है। पाकिस्तान पर हुआ ईंरानी हमला उसकी आतंकी करतूतों का ही जवाब है जो भारत लंबे समय से कहता आ रहा है और जिसका सामना भारत कर रहा है। लिहाजा ईंरान का यह हमला इस्लामाबाद के लिए शर्मसार होने की वजह जरूर है।

Friday 19 January 2024

डोनाल्ड ट्रंप की धमाकेदार जीत


आयोवा कॉकस के इतिहास में शायद पहली बार ये सबसे चौंकाने वाली जीत रही है। रिपब्लिकन पाटा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए हुए पहले चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने एकतरफा जीत दर्ज की है। महीनों से इस मतदान को परिणामों का अंदाजा लगाया जा रहा था और आखिर में ऐसा ही हुआ। मतगणना के दौरान पूर्व राष्ट्रपति ने एकतरफा बढ़त बनाईं रखी और मंगलवार की रात को उनकी जीत के बाद कड़ाके की ठंड में उनके समर्थक इस जीत का जश्न मना रहे थे। ट्रंप के मुख्य प्रातिद्वंद्वी निक्की हेली, रॉन डेसैंटिस और उनकी विचारधारा से मिलते-जुलते (भारत मूल के) विवेक रामास्वामी कहीं भी उन्हें चुनौती देते नहीं दिखाईं दिए। उनके वोट विभाजित भी नहीं दिखाईं दिए। दूसरी ओर उनके प्रातिद्वंद्वी विवेक रामास्वामी ने घोषणा कर दी है कि वो चुनाव से पीछे हट रहे हैं और न्यू हैम्पशर में मंगलवार को ट्रंप का समर्थन करेंगे। यहां आयोवा के परिणामों को करीब से देखे जाने की जरूरत है क्योंकि व्हाइट हाउस की दौड़ में ये बेहद महत्वपूर्ण है। आयोवा में कोईं भी 12 पाइंट से ज्यादा बढ़त नहीं बना पाया था जबकि ट्रंप ने 30 फीसदी के अंतर से बढ़त बनाईं और पूर्ण बहुमत से जीत दर्ज की। सभी वोटों की गिनती की गईं और ट्रंप को 57 फीसदी, डेसैंटिस को 21 फीसदी और हेली को 19 फीसदी वोट मिले।

आयोवा में जिस तरह से मतदान हुआ वे इस बात का उदाहरण है कि ट्रंप क्यों अब तक पाटा की चुनावी रणनीति में बाजी मार रहे हैं। पाटा के अधिकतर लोगों का विश्वास अभी भी ट्रंप के मेक अमेरिका ग्रोट अगेन वाले जुमले पर बना हुआ है। ट्रंप की नीति में समाज के सभी वर्गो का योगदान लगभग बराबर रहा है। उन्हें युवाओं, बुजुर्गो, पुरुषों और महिलाओं सभी का पुरजोर समर्थन मिला है। वे धुर दक्षिणपंथी मतदाताओं का वोट लेने में भी सफल रहे जो 2016 में उनसे दूर रहे थे। अमेरिका में आमतौर पर राष्ट्रपति चुनाव में हारने वाले उम्मीदवारों को लोग भूल जाते हैं। हारे हुए उम्मीदवार कभी भी दोबारा कमबैक नहीं कर पाते हैं। लेकिन आयोवा की जीत ने दिखा दिया है कि रिपब्लिकन पाटा में अब भी ट्रंप की खासी धाक है। रिपब्लिकन पाटा के भीतर ट्रंप की ताकतवर मौजूदगी पर कभी किसी को कोईं संदेह नहीं रहा है। लेकिन आयोवा में मिली जीत अमेरिकी राजनीति के हिसाब से असाधारण है। तीन वर्ष पहले ट्रंप ने राष्ट्रपति का पहला कार्यंकाल विवादों के बीच खत्म किया था। 6 जनवरी को वैपिटल हिल पर उनके समर्थकों का हुड़दंग अमेरिकी इतिहास का सबसे दुखद हिस्सा बन चुका है। उस दंगे के लिए ट्रंप पर दो आपराधिक मामले चल भी रहे हैं। अब आयोवा में मिली जीत के बाद उन्होंने नवम्बर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में दोबारा रिपल्किन पाटा का उम्मीदवार बनने की दिशा में कदम बढ़ाया है। लेकिन अब भी ट्रंप को पाटा का उम्मीदवार बनने के लिए कड़ा संघर्ष करना है। आगे की प्राइमरी में भी यही ट्रेंड रहा तो यह कहा जा सकता है ट्रंप ने राष्ट्रपति पद के लिए पाटा की उम्मीदवारी जीती तो उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए डेसैंटिस या निक्की हेली में से कोईं एक चुना जाएगा। हालांकि यह सिर्प एक राज्य के प्राइमरी का नतीजा है। अभी तमाम राज्यों में ऐसा ही होगा, जिसमें तमाम दावेदारों को अपना प्रादर्शन बढ़िया करने का बेहतर मौका मिलेगा। बहरहाल, अगला प्राइमरी 23 जनवरी को न्यू हैंपशर में है। हर प्राइमरी के साथ तस्वीर साफ होगी। आयोवा में मिली जीत के बाद डोनाल्ड ट्रंप के अभियान को नियमित तौर पर एक गति मिलेगी। जब तक मतदान डालने की बारी आएगी तब तक ट्रंप को उम्मीद है कि वो एक ताकतवर उम्मीदवार के तौर पर उभर चुके होंगे।

——अनिल नरेन्द्र

ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हों


निष्पक्ष चुनाव हों मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव वुमार ने बृहस्पतिवार को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईंओ) से मार्च-अप्रौल में होने वाले आगामी लोक सभा चुनाव बेदाग संपन्न कराने को कहा है। वुमार ने लोकसभा चुनाव से पहले यहां मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव की राह कर्तव्य और संकल्प की यात्रा है। उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के अनुरूप सभी हित धारकों को बेहतर चुनावी अनुभव प्रादान करने के लिए की गईं तैयारियों पर भरोसा जताया। दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन चुनाव योजना, व्यय निगरानी, मतदाता सूची, आईंटी अनुप्रायोगों, डाटा प्राबंधन और इलैक्ट्रानिक वोटिग मशीन (ईंवीएम) पर विषयगत चर्चा के साथ-साथ हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के अनुभव और सीख साझा करने के लिए किया जा रहा है। चुनाव कराने के तरीके को लेकर सबसे बड़ा विवाद ईंवीएम को लेकर है। विपक्षी इंडिया गठबंधन ने आयोग को वुछ सुझाव भेजे हैं। गठबंधन ने प्रास्ताव पास कर चुनाव आयोग से मांग की है मत पत्रों के जरिए चुनाव कराए जाएं और अगर ऐसा नहीं हो सकता तो मतदाता सत्यापित पर्चियों (वीवीवीएटी) की सौ फीसदी गिनती की जाए। विपक्ष का सुझाव है कि मतदान के दौरान पचा बॉक्स में डालने की जगह इसे मतदाता को सौंपा जाए और वह अपनी पसंद को स्थापित करने के बाद इसे मतपेटी में डाल देगा। विपक्षी नेताओं का दावा है कि आयोग ने ज्ञापन का जवाब नहीं दिया है। दरअसल हाल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मध्य प्रादेश के नतीजों को लेकर सवाल उठे। कहा गया कि नतीजों से पूर्व सव्रेक्षण के जरिए वहां के परिणाम के बारे में पहले से माहौल बनाने की कोशिश की गईं। लोकतंत्र का अनिवार्यं तत्व है कि चुनाव में सभी सहयोगी पक्षों का यकीन बना रहे। तभी राजनीतिक दल अपनी हार को सहजता से स्वीकार कर पाएंगे। ईंवीएम की बनावट और संचालन को लेकर अरसे से सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के वुछ वकीलों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर ईंवीएम से छुट्टी दिलाने के लिए प्रादर्शन भी किए। प्रादर्शन के दौरान यह भी दर्शाया गया कि ईंवीएम वैसे हैक हो सकती है। राजनीतिक दल ही नहीं, कईं स्तर पर विशेषज्ञ और पेशेवर भी ईंवीएम पर संदेह जताते रहे हैं। चुनाव आयोग ऐसे दावों का खंडन करता आ रहा है। विदेशों की बात करें तो दुनिया के 31 देशों में ईंवीएम का इस्तेमाल हुआ, लेकिन अधिकतर देशों ने इसमें गड़बड़ी की शिकायत के साथ मतपत्र की विधि अपना ली है। अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी जैसे विकसित देशों ने ईंवीएम को नकार दिया है। वहां चुनाव मतपत्रों के द्वारा ही कराए जाते हैं। इन तथ्यों के बरअक्स यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या भारत में मतपत्रों की वापसी संभव है? चुनाव आयोग कईं बार कह चुका है कि तकनीक के मौजूदा दौर में अतीत की ओर लौटना उचित नहीं होगा। चुनाव लोकतंत्र की नींव होते हैं। किसी देश का भविष्य चुनाव में जीतने वाले दल के हाथ में होता है। चाहे उसे वुल मतदाताओं के एक तिहाईं ही मत क्यों न मिले हों। पर उसकी नीतियों का असर सौ फीसदी मतदाताओं और उनके परिवारों पर पड़ता है। इसलिए चुनाव आयोग का हर काम निष्पक्ष, स्वतंत्र और पारदर्शी होना चाहिए। एक स्वस्थ लोकतंत्र में होने वाली सबसे बड़ा प्रातियोगिता चुनाव है। उसके आयोजक मार्ग यानी आयोग से यही अपेक्षा की जाती है कि वह देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदशा चुनाव करवाएं 

Thursday 18 January 2024

वापस जाएं भारतीय सैनिक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों को तो मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने निलंबित कर दिया था लेकिन अपना चीन का पांच दिवसीय दौरा समाप्त करने के बाद उनके भारत विरोधी तेवर और तल्ख हो गए हैं। शनिवार को चीन से माले लौटे मुइज्जू ने रविवार को भारतीय सैनिकों को 15 मार्च तक मालदीव खाली करने का आदेश दिया है। ये 88 भारतीय सैनिक मालदीव की जनता की सेवा के लिए भारत सरकार की तरफ से सौंपे गए हैलीकॉप्टरों के संभालने के लिए तैनात किए गए हैं। मालदीव में मुइज्जू सरकार की ओर से भारत को यह डेटलाइन ऐसे वक्त में दी गईं है जब दोनों देशों के बीच दूरियां देखने को मिली हैं। समाचार एजेंसी पीटीआईं के मुताबिक सरकार के ताजा आंकड़ों के हिसाब से मालदीव में फिलहाल 88 भारतीय सैनिक हैं। मोहम्मद मुइज्जू ने चुनावों में इंडिया आउट का नारा दिया था और राष्ट्रपति बनने के बाद व अपनी शुरुआती प्राथमिकताओं में भारतीय सैनिकों की वापसी को बताया था। मालदीव के मीडिया संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों की वापसी पर भारत से बातचीत शुरू कर दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बातचीत में भारत की ओर से मालदीव में भारत के उच्चायुक्त मनु महावर, विदेश मंत्रालय के अधिकारियों समेत कईं ज्वाइंट सैव्रेट्री शामिल थे। मालदीव की सरकार में पब्लिक पॉलिसी के मुख्य सचिव ने कहा कि भारतीय सैनिक मालदीव में नहीं रह सकते और देश के लोग भी यही चाहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जब मोहम्मद मुइज्जू और पीएम नरेन्द्र मोदी की मुलाकात हुईं थी, तब भी ये मुद्दा उठाया गया था। भारतीय सैनिकों का मालदीव से हटाना बड़ा झटका साबित हो सकता है। हिंद महासागर के देश मालदीव में मुश्किल से साढ़े पांच लाख लोग रहते हैं। लेकिन इसके नए इस्लामिक झुकाव वाले चीन समर्थक राष्ट्रपति बीजिंग की अपनी तीर्थ यात्रा से इतना साहस जुटा पा रहे हैं कि भारत को डेटलाइन दे रहे हैं और भारत को लेकर आव्रामक बयान दे रहे हैं। ताकि मालदीव को तोहपे में जो हेलीकाप्टर दिए गए थे, उनके रखरखाव के लिए मौजूद वुछ दर्जन सैनिकों को भारत भेजा जा सके। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मोहम्मद मुइज्जू ने जैसा कहा था वो वैसे ही भारतीय सैनिकों को हटा सकते हैं, लेकिन ऐसा करके मालदीव राजनयिक स्तर पर नुकसान की स्थिति में रहेगा। भारत के प्रति विरोध व्यक्त करके वो अमेरिका, प्रांस जैसे देशों से भी दूर हो सकता है, अमेरिका ने भले ही दूरी बनाईं हुईं है लेकिन चीन का अगर हिंद महासागर क्षेत्र में दखल बढ़ा तो ये अमेरिकी सरकार के लिए चिंता का विषय हो सकता है। मुइज्जू ने ऐसा माहौल बनाया जैसे भारत ने अपना कोईं सैन्य अड्डा मालदीव में बना रखा है, जबकि वहां मुश्किल से 88 सैनिक ही हैं और वे भी एक समुद्र टोही विमान और दो हैलीकॉप्टर के संचालन और राहत बचाव कार्यो के लिए हैं, अब तक पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि मालदीव के राष्ट्रपति चीन के इशारे पर भारत विरोध की नीति पर चलने पर आमादा हैं तब भारत को न केवल सतर्व रहना होगा, बल्कि साम, दाम, दंड, भेद के तहत मालदीव में भारतीय हितों की रक्षा भी करनी होगी। साफ है कि आने वाले समय में चीन का मालदीव में दखल बढ़ेगा और भारत के हितों के खिलाफ मालदीव का इस्तेमाल होगा। हमें इसलिए भी सतर्व रहना होगा कि मुइज्जू चीन परस्ती पर आमदा हैं बल्कि इसलिए भी कहना होगा क्योंकि वहां भारत विरोधी जिहादी ताकतें भी सिर उठा रही हैं। ——अनिल नरेन्द्र

ईंडी के समन पर दिल्ली से झारखंड तक सियासत

से झारखंड तक सियासत दो राज्यों दिल्ली और झारखंड के मुख्यमंत्रियों को प्रवर्तन निदेशालय (ईंडी) के समन को लेकर सियासी माहौल गरमा गया है। दिल्ली व झारखंड के मुख्यमंत्रियों ने समन को गैर कानूनी बताते हुए ईंडी के समक्ष पेश होने से अब तक इंकार किया है। दोनों ही राज्यों में विपक्षी दल ईंडी की कार्रवाईं को राजनीतिक साबित करने में जुटे हुए हैं ताकि जनता की सहानुभूति हासिल की जा सके। इस मामले में जिस प्रकार दिल्ली और झारखंड की सरकारें एवं सत्तारूढ़ दलों के नेताओं की तरफ से प्रतिव्रियाएं सामने आ रही हैं। उससे यह स्पष्ट होता है कि वह ईंडी की संभावित कार्रवाईं के राजनीतिक क्षति और उसकी भरपाईं की क्षति की तैयारियों में जुट गए हैं। इसलिए ईंडी के अगले कदम से पहले इन दो राज्यों में वुछ अहम राजनीतिक घटनाव्रम देखने को मिल सकते हैं। दोनों मुख्यमंत्रियों कि पार्टियों का आरोप है कि केन्द्रीय एजंेसी का दुरुपयोग किया जा रहा है। वे केन्द्र सरकार पर लोकसभा चुनाव से पहले ईंडी को हथियार की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं। हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय (ईंडी) के समन के जवाब में उलटे सवाल कर रहे हैं। ईंडी सूत्रों का कहना है कि जिसे सवालों का जवाब देने क लिए बुलाया जाता है, वह ही जांच एजेंसी से उलटे सवाल करने लगे तो उसके सवालों का जवाब देने का कोईं प्रावधान कानून में नहीं है। दोनों ही मामलों का अध्ययन किया जा रहा है कि अगली कार्रवाईं क्या की जाए? ईंडी ने दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े धन शोधन मामले में पूछताछ के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चौथी बार समन जारी किया है। केजरीवाल को 18 जनवरी को एजेंसी के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है। वहीं ईंडी ने एक बार फिर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है। एजेंसी ने उनसे पूछा है कि वे बयान दर्ज कराने के लिए क्यों पेश नहीं हो रहे हैं? इससे जांच में बाधा उत्पन्न हो रही है। ईंडी ने जवाब देने के लिए 16 से 20 जनवरी तक का वक्त दिया है। इसके पहले ईंडी की ओर से हेमंत सोरेन को सात बार समन भेजे जा चुके हैं। इस पत्र को आठवां समन बताया जा रहा है। रांची के बड़गाईं अंचल में हुए जमीन घोटाले के मामले में ईंडी हेमंत सोरेन का बयान दर्ज करना चाहती है। इसके लिए उन्हें बीते 29 दिसम्बर को सातवां समन भेजा गया था, जिसे एजेंसी ने आखिरी बताते हुए सात दिनों के अंदर बयान दर्ज कराने को कहा था। सोरेन इस समन पर भी उपस्थित नहीं हुए। उधर एजेंसी का मानना है कि केजरीवाल को भेजे गए समन पीएमएलए की प्रव्रियाओं और कानून के दायरे में थे। मामले में ईंडी द्वारा दायर आरोप पत्र में केजरीवाल का नाम था कईं बार उल्लेख किया गया है। सोरेन और केजरीवाल दोनों का मानना है कि ईंडी का समन गैर कानूनी है और उनकी राजनीतिक छवि को खराब करने के उद्देश्य से भेजा गया है। उनके दल के उच्चधिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार को अस्थिर करने की मंशा से केन्द्र के इशारों पर यह एक जानबूझकर किया जा रहा है। केजरीवाल के दल के अन्य साथियों का कहना है कि इन नोटिसों के जरिए उन्हें लोकसभा चुनाव के प्रचार से रोकने की मंशा है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि यह सब केजरीवाल को गिरफ्तार करने की साजिश है। हालांकि ईंडी को अधिकार है कि तीन बार नोटिस भेजने के बाद वह प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट की धारा 49 के तहत गिरफ्तार कर सकती है। केन्द्र सरकार की मंशा यदि वास्तव में राज्यों में विपक्षी दलों को कमजोर करने की है तो अपनी स्थिति स्पष्ट करने का मौका सबके पास है। अंतत: जनता ही तय करेगी कौन कितने पानी में है। विपरीत राजनीतिक विचारधारों का परस्पर सम्मान करना स्वतंत्र लोकतंत्र के लिए जरूरी है।

Tuesday 16 January 2024

और अब खुला तीसरा मोर्चा

रूस-यूक्रेन की जंग पहले से ही चल रही है, इजरायल और हमास की जंग भी पिछले कई महीनों से चल रही है रही सही कसर अब तीसरे मोर्चे से खुल गई है। अमेरिका और ब्रिटेन की सेना ने यमन के हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हमले शुरू कर दिए हैं। अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ हमला तब शुरू किया है जब उसका एक अहम सहयोगी इजरायल गाजा में हमास के साथ युद्ध कर रहा है। गाजा में इजरायली सेना के हमले के खिलाफ मध्य-पूर्व के इस्लामिक देश एकजुट दिख रहे थे लेकिन यमन में हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हमले से स्थिति और जटिल हो सकती है। हूती विद्रोहियों को ईरान समर्थित कहा जाता है और सऊदी अरब यमन के हूती विद्रोहियों के खिलाफ सालों से लड़ता रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है ईरान समर्थित हूती विद्रोही बीते साल नवम्बर से लाल सागर से गुजरने वाले जहाजों को निशाना बना रहे हैं, ये हमले उसी की जवाबी कार्रवाई है। उन्हेंने कहा कि इस मामले में उन्हें नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, बहरीन समेत अन्य कई मुल्कों से मदद मिल रही है। वहीं ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा है कि रॉयल एयरफोर्स के लड़ाकू विमानों की मदद से हूती विद्रोहियों के सैन्य ठिकानों पर निशाना लगाकर हमले किए गए हैं। उन्होंने इन हमलों को सीमित, जरूरी और आत्म रक्षा के लिए उठाया गया कदम कहा है। अब तक मिली जानकारी के अनुसार यमन की राजधानी सना, लाल सागर पर बने हुदेदा बंदरगाह, घामार और उत्तर-पश्चिम में मौजूद हूती विद्रोहियों का गढ़ माने जाने वाले सना पर हमले किए गए हैं। हूती विद्रोहियों के एक अधिकारी ने अमेरिका और ब्रिटेन को चेतावनी दी है कि इस आक्रमता की उन्हें भारी कीमत चुकानी होगी। यमन के बड़े हिस्से पर हूतियों का कब्जा है। उनका कहना है कि बड़े इजरायल के खिलाफ जंग लड़ रहे फिलस्तीनी चरमपंथी समूह हमास का समर्थन करते हैं। वहीं सऊदी अरब ने इस मामले में संयम बरतने की सलाह दी है। अमेरिकन सेंट्रल कमांड ने जानकारी दी है कि सना के समयानुसार 11 जनवरी की रात करीब 2 बजकर 30 मिनट पर गठबंधन देशों की मदद से सेना ने हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हमले किए हैं। हमलों में उनके राडार सिस्टम, एयर डिफेंस सिस्टम, हथियारों के भंडारों को निशाना बनाया गया है। साथ ही उन जगहों को निशाना बनाया गया है, जहां से हवाई ड्रोन हमले, क्रूज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल हमलें किए जाते हैं। उनका कहना है कि ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने बीते साल 17 अक्तूबर से लेकर अब तक लाल सागर में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री रास्तों पर 27 जहाजों पर हमले किए हैं। इनमें लाल सागर और अदन की खाड़ी में जहाजों पर गैर कानूनी एंटीशिप बैलेस्टिक मिसाइल ड्रोन हमले और क्रूज मिसाइल शामिल हैं। इन हमलों के कारण करीब 55 मुल्क प्रभावित हुए हैं। हम इसके लिए हूती और अस्थिरता फैलाने वाले उनके ईरानी समर्थकों को जवाबदेह मानते हैं। हूती विद्रोहियों के प्रवक्ता मोहम्मद अब्दुलसलाम ने इन हमलों की निंदा की है और कहा है कि यमन के खिलाफ इस आक्रामक रवैये को सही नहीं ठहराया जा सकता। प्रवक्ता ने कहा लाल सागर में या अरब सागर में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्गों को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा इजरायली जहाजों और कब्जे वाले फिलस्तीन की तरफ जाने वाले जहाजों को निशाना बनाना हम जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूके का ये सोचना गलत है कि उनके हमलों से डरकर यमन फिलस्तीनी और गाजा का समर्थन छोड़ देगा। सऊदी अरब की प्रतिक्रिया थी कि अमेरिका और गठबंधन के उसके दूसरे सहयोगी संयम बरतें और मामले को दबाने से बचें। सऊदी बेहद चिंतित है, लाल सागर इलाके की सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के महत्व को समझता है। हमारी अपील है कि इस मामले में संयम बरता जाए, मामलों को बढ़ाने से बचा जाए। -अनिल नरेन्द्र

शंकराचार्य क्यों नहीं जा रहे प्राण प्रतिष्ठा पर

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पर तारीख 22 जनवरी जैसे ही सामने आई तो ये चर्चा शुरू हुई कि कौन इस आयोजन में शामिल होगा? कांग्रेस ने बुधवार को कई दिनों से पूछे जा रहे सवाल का जवाब दिया। कांग्रेsस ने बीजेपी पर राम मंदिर को राजनीतिक परियोजना बनाए जाने का आरोप लगाते हुए इस कार्यक्रम में शामिल होने से इंकार कर दिया। कांग्रेस ने बयान जारी कर कहा, भगवान राम की पूजा करोड़ों भारतीय करते हैं। धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत विषय होता है लेकिन बीजेपी और आरएसएस ने सालों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है। साफ है कि एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है। वहीं विश्व हिन्दू परिषद ने पुष्टि की है कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल होंगे। पहले ऐसी खबरें आई थीं कि आडवाणी समारोह में शामिल नहीं होंगे। कांग्रेस के अलावा शंकराचार्य ने भी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाने से इंकार कर दिया है। हालांकि दो शंकराचार्यों ने बयान जारी कर कहा कि सब इस समारोह में शामिल हों। मान्यताओं के मुताबिक शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है। हिन्दू धर्म में शंकराचार्यों को सम्मान और आस्था की नजर से देखा जाता रहा है। आदि शंकराचार्य को हिन्दू धर्म की दार्शनिक व्याख्या के लिए भी जाना जाता रहा है। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए इन मठों की स्थापना की थी। ये चार मठ हैं, श्रृंगेरी मठ, कर्नाटक-शंकराचार्य भारती तीर्थ महाराज, गोवर्धन मठ, पुरी ओड़िसा, शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज, शारदा मठ, द्वारका गुजरात, शंकराचार्य सदानंद महाराज और ज्योतिर्मठ, बद्रिकाश्रम उत्तराखंड शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरनंद महाराज। इन मठों का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है। ऐसे में जब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की तारीख तय हुई तो शंकराचार्यों से भी रुख जानने की कोशिशें हुईं। ज्योतिर्मठ शंकराचार्य ने स्वामी अविमुक्तेश्वरनंद सरस्वती ने कहा है कि चारों शंकराचार्य 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में शामिल नहीं होंगे। उनके मुताबिक ये आयोजन शास्त्रों के अनुसार नहीं हो रहा है। अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती। हालांकि श्रं=गेरी मठ की ओर से बयान जारी कर बताया गया है कि शंकराचार्य भारती तीर्थ की तस्वीर के साथ संदेश डाला जा रहा है, जिससे ये महसूस होता है कि श्रं=गेरी शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा का विरोध कर रहे हैं। लेकिन ऐसा कोई संदेश शंकराचार्य की ओर से नहीं दिया गया है। यह गलत प्रचार है। शंकराचार्य की ओर से अपील की गई है कि प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल हों। हालांकि शंकराचार्य खुद अयोध्या जाकर शामिल होंगे या नहीं इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया है। वहीं अविमुक्तेश्वरनंद का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वह कहते दिखते हैं, रामानंद संप्रदाय का अगर ये मंदिर है तो चंपत राय वहां क्या कर रहे हैं। ये लोग वहां से हटें, हटकर मंदिर रामानंद संप्रदाय को प्राण प्रतिष्ठा से पहले सौंपे। हम एंटी मोदी नहीं हैं लेकिन हम एंटी धर्मशास्त्र भी नहीं होना चाहते। श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने हाल में कहा था कि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है। वो कहते हैं चारों शंकराचार्य किसी शंका या द्वेष के कारण नहीं, बल्कि शंकराचार्यों का दायित्व है कि वो शास्त्र विधि का पालन करें और करवाएं। अब वहां शास्त्र विधि की अपेक्षा हो रही है। मंदिर अभी पूरा बना नहीं है और प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है। कोई ऐसी परिस्थिति नहीं है कि प्राण प्रतिष्ठा अचानक करना पड़े, जिस शास्त्र से हमने राम को जाना उसी शास्त्र से प्राण प्रतिष्ठा हो, ये जरूरी है। अभी प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के हिसाब से नहीं हो रही है, इसलिए मेरा जाना उचित नहीं है। शंकराचार्य सदानंद महाराज की ओर से कोई बयान प्रसारित नहीं किया गया है। राम मंदिर के लिए हमारे गुरुदेव ने कई कोशिशें की थीं, 500 साल बाद ये विवाद खत्म हुआ है। बयान में कहा गया है हम चाहते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह वेद, शास्त्र, धर्म की मर्यादा का पालन करते हुए ही संपन्न हो।

Saturday 13 January 2024

10 दिन पहले मंत्री बने नेता को मिली हार

राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में इन दिनों बदन को चीरकर रख देने वाली शीत लहर चल रही है और जरा सी चूक किसी के भी होश फाख्ता कर सकती है। इन सर्द हवाओं ने अभी-अभी उस पार्टी को अपनी चपेट में ले लिया है जो पूरे देश में अपने विरोधियों को कंपाए है। राजस्थान में सत्तारूढ़ हुई भाजपा के लिए यह बहुत बुरी खबर है कि उसका वह उम्मीदवार चुनाव हार गया जिसे बीच चुनाव पार्टी नेता ने मंत्री पद की शपथ दिला दी थी। इस उम्मीदवार का नाम है सुरेन्द्र पाल सिंह टीटी। इलाके के एक बुजुर्ग मतदाता कहते हैं, पार्टी ने जिसे डबल इंजन वाली सियासी सरकार रूपी रेलगाड़ी के लिए टीटी बनाकर भेजा था, जनता ने उसे ट्रेन से पहले ही उतार दिया। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार रुपिन्दर सिंह को 94,950 वोट मिले हैं और भाजपा के सुरेन्द्र पाल सिंह टीटी को 83,667 वोट जबकि आम आदमी पार्टी प्रत्याशी पृथ्वीपाल सिंह संधु को 11,940 वोट हासिल हुए। पृथ्वीपाल सिंह संधु पिछली बार यानी 2018 में निर्दलीय लड़े थे तो वे दूसरे नंबर पर रहे थे। भाजपा उम्मीदवार के रूप में तब सुरेन्द्र पाल सिंह टीटी तीसरे नम्बर पर रहे थे। भाजपा के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है। दरअसल, हालिया चुनाव के महज कई हफ्तों बाद ही कांग्रेस ने उपचुनाव में अपनी जीत दर्ज करा ली। भाजपा के पराजित उम्मीदवार प्रदेश सरकार में मंत्री थे, जिन्होंने महज एक हफ्ते पहले ही 30 दिसम्बर को भजनलाल सरकार में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में मंत्री पद की शपथ ली थी। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया था कि चुनाव का उम्मीदवार होते हुए भाजपा नेता ने मंत्रीपद पर काम शुरू कर दिया था। उपचुनाव के नतीजों पर कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस उम्मीदवार को जीत की बधाई देते हुए भाजपा पर तंज कसा। गहलोत ने सोशल मीडिया पर भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा श्रीकरणपुर की जनता ने भाजपा के अभियान को हराया है। उनका कहना है कि चुनाव के बीच एक उम्मीदवार को मंत्री बनाकर चुनाव आचार संहिता और नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाली भाजपा को जनता ने सबक सिखाया है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि यह जीत संदेश दे रही है कि आम चुनाव में कांग्रेस मजबूती से वापसी करेगी। उन्होंने कहा कि युवाओं और महिलाओं ने कांग्रेस को वोट देकर जता दिया कि उनकी उम्मीद हमसे है और हम उनके सरोकार से जुड़े मुद्दे उठाते रहेंगे। इस जीत के साथ कांग्रेस की सीटों की संख्या 70 पर पहुंच गई। हालिया चुनाव में कांग्रेस को राज्य की 200 सीटों में 69 सीटें मिली थीं। राजस्थान 200 सीटों में से 199 सीटों पर चुनाव हुए थे। श्रीकरणपुर के कांग्रेस उम्मीदवार गुरमीत सिंह कुनेर के असामायिक निधन के चलते इस सीट का चुनाव रद्द हो गया था। बाद में कांग्रेस ने इस सीट पर गुरमीत के बेटे रुपिन्दर को टिकट दिया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की इस जीत में कुनेर परिवार के साथ सहानुभूति भी अहम रही। वहीं कुनेर ने अपनी जीत को अपने पिता के चार दशक के राजनीतिक जीवन में किए गए कार्यों की जीत बताते हुए कहा कि यह चुनाव मेरा नहीं बल्कि मेरे पिता का है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा पर्ची सरकार एक महीने में ही जनता का विश्वास खो चुकी है। फैसला जनता की भावना से हुआ करते हैं, दिल्ली की पर्ची से नहीं। याद रहे कि राजस्थान के मुख्यमंत्री का चुनाव दिल्ली से भेजी गई एक पर्ची से हुआ था। -अनिल नरेन्द्र

भाजपा का नारा-अबकी बार 400 पार

भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए तीसरी बार मोदी सरकार, अबकी बार 400 पार का नारा दिया है। पार्टी मुख्यालय में हुई बैठक में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दो घंटे से अधिक समय में महासचिव संगठन, केन्द्राrय मंत्री व अन्य वरिष्ठ मुख्यमंत्रियों और महासचिवों से 2024 के चुनाव की रणनीति पर विचार-विमर्श किया। बैठक में तय किया गया कि नव मतदाताओं, युवाओं और महिला मतदाताओं से ज्यादा से ज्यादा संपर्क किया जाए। पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में लोकसभा के कलस्टर में दौरे और रैलियां जरूर शुरू होंगी। भाजपा ने लोकसभा में मिशन 50 प्रतिशत वोट के साथ डेढ़ दर्जन राज्यों में सभी सीटें जीतने की रणनीति तैयार की है। इन राज्यों में लोकसभा की करीब 250 सीटें है और अभी इनकी अधिकांश सीटें भाजपा के पास ही है। अन्य राज्यों की लगभग 150 सीटें ऐसी हैं जिनको गठबंधन के साथ जीतने के लिए पार्टी ने कार्य योजना बनाई है। भाजपा का मिशन 50 फीसदी वोट सीटों के आंकड़ों के लिए सबसे अहम माना जा रहा है। बीते लोकसभा चुनाव में तीन सौ का आंकड़ा पार करने में उसे ़13 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में मिले 50 फीसदी से ज्यादा वोट सीटों को बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण साबित हुए थे। इनमें आठ को मिलाकर कुल दस राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों (गुंजरात, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, दमन-दीव और चंडीगढ़) की सभी (82) सीटें मिली थी। इन सीटों के लिए बड़ा लक्ष्य तय किया गया है। भाजपा की कार्य योजना में डेढ़ दर्जन से ज्यादा ऐसे राज्य और केन्द्राrय शासित प्रदेश शामिल हैं, जिनमें वह सभी सीटें जीत सकती हैं। इनमें मध्य प्रदेश (29), छत्तीसगढ़ (11), राजस्थान (25), गुजरात (26), हरियाणा (10), दिल्ली (7), उत्तराखंड (5), हिमाचल प्रदेश (4), गोवा (2), त्रिपुरा (2), मणिपुर (2), अरुणाचल प्रदेश (2), कर्नाटक (28), झारखंड (14), लद्दाख (1), चंड़ीगढ़ (1), दादरा नगर हवेली (1), दमन दीव (1) और सबसे बड़ा उत्तर प्रदेश (80) शामिल है। इन सभी राज्यों में लोकसभा की 251 सीटें हैं। भाजपा ने बीते चुनाव में इनमें से 220 सीटें जीती थीं। इन राज्यों में भाजपा को गठबंधन के साथ जीत की जोर आजमाइश है ः भाजपा को बिहार, असम, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और पंजाब में भी खासी सफलता मिलने की उम्मीद है, भाजपा को इन सात राज्यों में पिछली बार 195 सीटों में से 81 सीटें मिलीं थीं। बिहार, महाराष्ट्र और पंजाब में वह गठबंधन में चुनाव लड़ी थी। बिहार में उसने अपने हिस्से की (40 में 17) सभी सीटें मिली थीं। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना गठबंधन को 48 में से 41 (भाजपा को 23) सीटें मिली थीं। पश्चिम बंगाल में उसे 18 सीटों की बड़ी सफलता मिली थी। इस बार भाजपा बिहार में छोटे दलों से गठबंधन कर ज्यादा सीटों पर लड़ेगी। पर जनता दल युनाइटेड और राजद के संभावित गठबंधन से उसे चुनौती मिलेगी। बंगाल में उसकी ताकत लगातार बढ़ रही है। उन्हें यहां अधिक सीटें जीतने की उम्मीद है। महाराष्ट्र में शिवसेना का सत्तारूढ धड़ा उसके साथ है। यहां भी पार्टी को बढ़त की आशा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पार्टी संगठन के प्रमुख नेताओं से पार्टी का 10 प्रतिशत वोट बढ़ाने की दिशा में काम करने को कहा है। पार्टी को विश्वास है कि अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह चुनाव में पार्टी के पक्ष में एक बड़ा मुद्दा होगा। वहीं पार्टी की प्राथमिकता युवा चेहरे हैं। जरूरत पड़ने पर कई केन्द्राrय मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को भी मैदान में उतारा जाएगा।

Thursday 11 January 2024

इस एकतरफा जीत के फायदे?

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने विवादित चुनाव में लगातार चौथी बार जीत दर्ज की है। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग और उनके सहयोगियों ने 300 संसदीय सीट पर उम्मीदवार उतारे थे और उनमें से 223 सीटों पर उन्हें जीत मिली है। इस जीत के साथ ही हसीना पांच साल के एक और कार्यंकाल के लिए प्रधानमंत्री बनेंगी। मुल्क की मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने चुनाव का बहिष्कार किया था। शेख हसीना की पार्टी और उनके सहयोगियों को उम्मीद है कि बाकी बची सीटों पर भी उन्हें ही जीत मिलेगी। बीएनपी ने बांग्लादेश में चुनाव को धोखा बताते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं तानाशाही है। बड़ी संख्या में बीएनपी नेताओं और उनके समर्थकों की गिरफ्तारी के बाद रविवार को उनके नतीजे आने शुरू हो गए थे। बांग्लादेश के अधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि करीब 40 प्रतिशत लोगों ने ही मतदान में हिस्सा लिया। आलोचकों का कहना है कि 40 फीसदी का आंकड़ा भी दुरुस्त नहीं है। निर्दलीय उम्मीदवार जो कि आवामी लीग के ही बताए जाते हैं उन्हें 61 सीटों पर जीत मिली है जबकि जातीय पार्टियों को 11 सीटों पर जीत मिली है। शेख हसीना का यह पांचवां कार्यंकाल होगा। हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनी थीं और फिर 2009 में फिर से चुनी गईं थीं। 2009 के बाद से वह सत्ता में हैं। शेख हसीना सरकार पर आरोप है कि वह अपने विरोधियों को जेल में भर रही हैं। आवामी लीग इन आरोपों को खारिज करती रही है। बांग्लादेश में इस बात की आशंका जताईं जा रही है कि आवामी लीग की इस जीत से वहां एक पार्टी के शासन वाली व्यवस्था स्थापित हो सकती है। बहुत कम लोगों को उम्मीद है कि हसीना सरकार विरोधियों को लेकर सख्ती में किसी तरह की ढील देगी। अगर विपक्षी पार्टी और सिविल सोसायटी ग्रुप सरकार की वैधता पर सवाल उठाती हैं तो सरकार सख्ती से पेश आएगी। मुख्य विपक्षी दल बीएनसी ने स्वतंत्र केयर टेकर सरकार के मातहत चुनाव कराने की मांग की थी। लेकिन सरकार ने बीएनपी की इस मांग को नकार दिया गया था। इसके बाद बीएनपी ने चुनाव के बहिष्कार का पैसला किया था। बीएनपी के कार्यंकारी अध्यक्ष तारिक रहमान ने कहा हमारा शांतिपूर्ण और अहिसंक आंदोलन अनवरत जारी रहेगा। रहमान 2008 से ही लंदन में रह रहे हैं। तारिक रहमान शेख हसीना के चिर प्रतिद्वंद्वी और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे हैं। रहमान ने बीएनपी कार्यंकर्ताओं पर चुनाव में आगजनी और हमले के आरोपों को खारिज किया है। खालिदा जिया भ्रष्टाचार के आरोपों में हाउस अरेस्ट हैं, बांग्लादेश में अगर इस बात की आशंका जताईं जा रही है कि आवामी लीग की जीत के पीछे वहां एक पार्टी का शासन स्थापित हो सकता है तो यह बेवजह नहीं है। मतदान के बाद शेख हसीना ने कहा मुझे बांग्लादेश के प्रति विश्वसनीयता साबित करनी है लेकिन किसी आतंकवादी पार्टी या संगठन के प्रति नहीं, देश की जनता के प्रति मेरी जवाबदेही है। लोग चुनाव को स्वीकार करते हैं या नहीं यह महत्वपूर्ण है। हसीना ने कहा कि सभी बाधाओं को पार कर मैंने माहौल अनुवूल बनाया है। विपक्ष की गैर मौजूदगी के कारण एक पार्टी के शासन वाली सरकार को संदेह की नजर से भले ही देखा जाए मगर मौजूदा परिस्थितियों में यह भारत के लिए किसी भी नजर से बुरा नहीं है। —— अनिल नरेन्द्र

साहसिक और ऐतिहासिक पैसला

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप और उनके परिवार वालों की हत्या के 11 दोषियों की सजा में छूट देकर रिहाईं करने के पैसले को रद्द कर साहसिक और ऐतिहासिक पैसला दिया है। गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस के दिन इन दोषियों की सजा में छूट देते हुए इन्हें रिहा कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने और कोईं पैसला लेने का अधिकार नहीं है। इस मामले में पैसला लेने के लिए महाराष्ट्र सरकार को ज्यादा उपयुक्त बताया। सुप्रीम कोर्ट का पैसला गुजरात सरकार के पक्षपातपूर्ण व्यवहार पर कठोर प्रहार है। अदालत ने सारे दोषियों को दो हफ्ते के भीतर समर्पण करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक पैसले के मुख्य बिंदु वुछ इस प्रकार हैं। दोषियों की सजा माफ करने के अनुरोध वाली अपीलों पर विचार करना गुजरात सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं था क्योंकि यह सीआरपीसी की धारा 432 के तहत (इस संबंध में पैसले लेने के लिए) उपयुक्त सरकार नहीं थी। सजा में छूट पाए दोषियों में से एक की याचिका पर गुजरात सरकार के विचार करने का निर्देश देने वाली एक अन्य पीठ ने 13 मईं 2022 के आदेश को अमान्य माना। सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचेसमझे पारित किया गया। गुजरात सरकार ने महाराष्ट्र राज्य की शक्तियों में अतिव्रमण किया क्योंकि केवल महाराष्ट्र सरकार ही सजा से छूट मांगने वाले आवदेनों पर विचार कर सकती थी। गुजरात राज्य की 9 जुलाईं 1992 की सजा से छूट संबंधी नीति मौजूदा मामलों के दोषियों पर लागू नहीं होती। बिलकिस बानो मामले में समय से पहले रिहाईं के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले एक दोषी के साथ गुजरात सरकार की मिलीभगत थी। न्यायपालिका कानून के शासन की संरक्षण और लोकतांत्रिक राज्य का केन्द्रीय स्तंभ है। कानून के शासन का मतलब केवल वुछ भाग्यशाली लोगों की सुरक्षा करना नहीं है। अनुच्छेद 142 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषियों के पक्ष में जेल से बाहर रहने की अनुमति देने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है। बता दें कि पिछले साल पंद्रह अगस्त को गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 दोषियों की उम्र वैद की सजा माफ कर दी थी। तब इसे लेकर काफी रोष देखा गया था। बिलकिस बानो मामले में गुजरात सरकार का रूख शुरू से ही पक्षपातपूर्ण देखा गया था। इसके पीछे राजनीतिक मकसद भी देखे गए थे, जो दोषियों के रिहा होते ही दिखाईं भी दिए। दोषियों का माला पहनाकर स्वागत किया गया, मानो वे किसी जघन्य अपराध के दोषी नहीं, बल्कि उन्होंने कोईं साहसिक काम किया हो। इस तरह उनकी सजा माफ करना सिर्प उन्हें निर्दोष साबित करना बल्कि समाज में उनका महिमामंडन करने का भी प्रयास हुआ था। ऐसे बलात्कार, हत्या करने, सामाजिक विद्वेष पैलाने वालों की सजा माफी और स्वागत किसी भी सय समाज की निशानी नहीं मानी जा सकती। गुजरात सरकार के पैसले पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी स्वाभाविक है। आखिर इस तरह के पक्षपातपूर्ण पैसले करने वाली सरकार की कल्याणकारी और महिलाओं की सुरक्षा के प्रतिबद्ध वैसे माना जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने बिलकिस के अधिकार को महत्वपूर्ण मानते हुए उसके प्रति न्याय किया है। न्यायालय की यह टिप्पणी भी एक प्रकाशस्तंभ की तरह काम करेगी कि अदालत को बिना किसी डर या पक्षपात के कानून को लागू करना आता है। इस पैसले से जनता में न्यायालयों के प्रति विश्वास बढ़ेगा।

Tuesday 9 January 2024

लड़ाईं यही है कि हमारी कोईं औकात नहीं है

कोईं औकात नहीं है मध्य प्रादेश के राजापुर में कलेक्टर के साथ विवाद को लेकर चर्चा में आए एक ट्रक ड्राइवर पप्पू अहिरवार ने कहा है कि वो कलेक्टर को ट्रक ड्राइवरों के साथ होने वाली परेशानी के बारे में समझाने की कोशिश कर रहे थे। पप्पू अहिरवार ने बात करते हुए उन पर लगे इन आरोपों से इंकार किया कि वो किसी भी तरह से कलेक्टर की बातों को नजरअंदाज कर रहे थे। सोशल मीडिया पर 18 सेवेंड का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें ट्रक ड्राइवरों से बात करते हुए मध्य प्रादेश के राजापुर के कलेक्टर किशोर कत्याल ने एक ट्रक ड्राइवर से पूछा, तुम्हारी औकात क्या है? देश में हिट एंड रन मामले में सजा के नए प्रावधानों को लेकर ट्रक, टैक्सी ड्राइवर और बस आपरेटरों के संगठनों ने देशभर में हड़ताल भी की। इसी दौरान ट्रक ड्राइवरों का एक समूह बातचीत के लिए कलेक्टर के पास पहुंचा था, जहां बातचीत के दौरान कलेक्टर नाराज हो गए थे। विवाद बढ़ने के बाद प्रादेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कलेक्टर को पद से हटा दिया है और कहा है कि अधिकारियों को इसकी भाषा और व्यवहार का ध्यान रखना चाहिए। वहीं विवादों में घिरे कलेक्टर किशोर कत्याल ने कहा है कि उन्होंने जो भी कहा वो ठेस पहुंचाने के इरादे से नहीं कहा था जबकि वो ड्राइवर से बातचीत के दौरान वो किसी भी तरह की बाधा नहीं डाल रहे थे बल्कि इस उम्मीद में अपनी बात रख रहे थे कि उनकी बात सुनकर प्राशासन समाधान निकालेगा। पप्पू ने कहा, मैं पहले उनकी (कलेक्टर साहब) बातों को समझा रहा था और उनके सामने अपनी बात रख रहा था। मैं उन दिक्कतों की बात कर रहा था जो हर ट्रक ड्राइवर झेलता है। उन्होंने यह भी कहा सड़क पर ट्रक ड्राइवरों के साथ पुलिस का या फिर आरटीओ के अधिकारियों का जिस तरह का व्यवहार होता है, मैं उसकी बात कर रहा था। इसके अलावा कईं बार ट्रक ड्राइवर के साथ आम लोग भी र्दुव्‍यंवहार करते हैं, कभी उन पर चोरी का आरोप लगा देते हैं। मैं इन्हीं मामलों के बारे में बात कर रहा था और कह रहा था कि हमारे लिए इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए कोईं कानून नहीं है। प्राशासनिक अधिकारी आमजन और सरकार के बीच एक मजबूत कड़ी होते हैं, जो न सिर्प सरकारी योजनाओं को सही और प्राभावी ढंग से लागू करते हैं, बल्कि स्थानीय समस्याओं की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करते हैं। उनसे अपेक्षा की जाती है कि लोगों के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुने-समझेंगे और उनकी समस्या का हरसंभव प्रायास करेंगे। अगर स्थिति यह है कि आजादी के बाद लोकतंत्र की स्थापना के बावजूद जिलाधिकारियों की औपनिवेशक मानसिकता बदल नहीं पाईं है। वे जनता का सेवक बनकर काम करने के बजाए शासन बनकर रहना ज्यादा पसंद करते हैं। स्थिति यह है कि अगर कोईं उनके खिलाफ अंगुली उठा दे या उठाने का प्रायास करता है, तो वे उनके दमन पर उतर आते हैं। इस तरह भय का वातावरण बना कर मनमाने ढंग से काम करने की कोशिश करते हैं। मध्य प्रादेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की प्राशंसा करनी होगी कि उन्होंने कलेक्टर को उसकी औकात दिखला दी और बता दिया कि लोकतंत्र में जनता ही महान है, सभी को उसको जवाब देना पड़ेगा और अपनी औकात में रहना होगा। ——अनिल नरेन्द्र

और अब भारत जोड़ो न्याय यात्रा

जोड़ो न्याय यात्रा इस चुनावी माहौल में अपने अनुवूल बनाने की कोशिश के तौर पर जहां सत्तारूढ़ बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर से जुड़ी गतिविधियों पर अधिक से अधिक जोर दे रही है, वहीं प्रामुख विपक्षी दल कांग्रोस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का ऐलान कर दिया है। कांग्रोस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में मणिपुर से मुंबईं तक 14 जनवरी से शुरू होने वाली भारत जोड़ो न्याय यात्रा का ऐलान कर दिया है। पहले पाटा ने इसे भारत न्याय यात्रा का नाम दिया था। अब यह यात्रा 14 राज्यों में नहीं बल्कि 15 राज्यों से होकर गुजरेगी। इसमें अरुणाचल प्रादेश को भी शामिल किया गया है। यात्रा 6200 किमी की बजाए 6700 किमी की दूरी तय करेगी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पिछले साल भारत जोड़ो यात्रा की कामयाबी से प्रोरित है। कांग्रोस इस यात्रा को थोड़ा अलग रखते हुए भी चाहती है कि लोग इसे उस यात्रा की अगली कड़ी के रूप में देखें। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के सियासी महत्व को देखें तो इन राज्यों में कांग्रोस के पास गंवाने के लिए महज 14 सीटें ही हैं। 15 राज्यों से गुजर रही इस यात्रा के मार्ग में लगभग 100 लोकसभा सीटें हैं। पाटा का दावा है कि यह पैदल मार्च राहुल गांधी की पूर्व यात्रा की तरह परिवर्तनकारी साबित होंगी। हमारा मानना है कि सिर्प भीड़ इकट्ठी होने से वोट नहीं मिलते। राहुल की पहली भारत जोड़ो यात्रा में लाखों लोग आए थे। पर चुनावों में इसका क्या नतीजा हुआ? जब तक भीड़ के वोटों में परिवर्तन नहीं करते यात्राओं का चुनावी लाभ नहीं होगा। फिर इस यात्रा को कांग्रोस की यात्रा बताकर लाभ नहीं होगा। इसको इंडिया अलाइंस की यात्रा के रूप में बताया जाना चाहिए। जिस-जिस राज्य में से यह यात्रा गुजरे वहां की स्थानीय पाटा के नेता और वामपंथी इसमें तह दिल से शामिल होंगे तब जाकर इसका सियासी लाभ होगा। कांग्रोस महासचिव जयराम रमेश कह तो यह रहे हैं कि पाटा इंडिया गठबंधन के सभी नेताओं को इस यात्रा के मार्ग में कहीं भी शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रही है। यह यात्रा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों अमेठी, रायबरेली, वाराणसी और प्रायागराज से होकर गुजरेगी। यात्रा 14 जनवरी को इंफाल से शुरू होकर 66 दिन में 118 जिलों, 100 लोकसभा सीटों और 337 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। जहां तक इस यात्रा के प्राभावों का सवाल है तो नियमित रूप से मौजूदा राम मय माहौल में इसकी सबसे बड़ी कसौटी अयोध्या में श्रीराम मि़दर से उत्पन्न हिन्दुत्व की लहर का मुकाबला करना होगा। पिछली भारत जोड़ो यात्रा के अनुभव से देखें तो उसने राहुल गांधी के पक्ष में थोड़ा माहौल बनाया, उन्हें एक गंभीर नेता की छवि भी दी, लेकिन चुनावी कसौटियों पर उसका असर मिला-जुला ही रहा। चुनाव में वैसे भी बहुत से कारक होते हैं। यह दूसरी यात्रा अगर सही मायनों में इंडिया अलाइंस की मिली-जुली यात्रा है तो ही इसका चुनावी लाभ होगा। अगर कांग्रोस और विपक्षी दलों के पक्ष में यह यात्रा माहौल बनाती है तो निाित रूप से उनके लिए यह एक अच्छी बात होगी लेकिन चुनावों में इसका वे कितना फायदा उठा पाते हैं, यह उनके संगठनों और कार्यंकर्ताओं की मेहनत पर निर्भर रहेगा। राहुल की यात्रा उस समय में हो रही है जब अयोध्या में श्री राम के मंदिर के उद्घाटन की तैयारी हो रही है। पूरा देश राममयी हो रहा है। देखें, राहुल की यात्रा भाजपा के प्राचार पर कितना असर डालेगी।

Saturday 6 January 2024

नीतीश की ताजपोशी:आगे क्या?

नीतीश कुमार बिहार सरकार के मुखिया है। अब वह अपनी पार्टी जेडीयू के भी मुखिया बन गए हैं। बिहार में महागठबंधन को एकजुट रखने की जिम्मेदारी भी उनकी ही है और अब विपक्षी दलों के इंडियन गठबंधन के संयोजक की जिम्मेदारी भी उन्हें मिलने की बात कहीं जा रही है। क्या नीतीश कुमार इतनी जिम्मेदारियों को एकसाथ निभाने में अब भी सक्षम हैं? पिछले साल की शुरुआत से ही विपक्षी एकता को लेकर नीतीश के चेहरे पर जो उम्मीद दिख रही थी, वह साल के बीच में सफल होती दिखने लगी थी। लेकिन साल के अंत होते-होते इसमें बिखराव की चर्चा भी शुरू हो गई। जून 2023 में पटना में विपक्षी दलों की पहली बैठक हुई थी। यही से केन्द्र की मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की तस्वीर और दावे पेश किए जा रहे थे। अब पटना में चल रही राजनीति नेही विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया की बुनियाद में बिहार का महागठबंधन है। बिहार में अगस्त 2022 में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड एनडीए से अलग से गई थी। इस तरह से राज्य में एनडीए अंत हुआ था। इस तरह बि हार में एनडीए सरकार का अंत हुआ था और नीतीश ने विधानसभा में सबसे बड़े दल और आरजेडी के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी। इस गठबंधन में कांग्रेस और वामदल भी शामिल हुए थे और इसे महागठबंधन का नाम दिया गया था। अब भाजपा की और से बिहार में जेडीयू और आरजेडी के बीच रिश्तों में खटास आने के दावे किए जा रहे है। भाजपा का दावा है कि पिछले दिनों आरजेडी से नजदीकी की वजह से ही नीतीश पार्टी के अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को पद से हटाया है। नीतीश के विरोधी एक यह दावा भी करते है कि जनता दल युनाइटेड में दूर होने वाली है। इस राजनीतिक दावे के अलावा कई जानकार भी मानते है कि बिहार में महागठबंधन के दलों में तनाव है। इस वक्त बिहार एक राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। भले ही यहां सरकार चल रही है और नीतीश्श मुख्यमंत्री बने हुए है लेकिन महागठबंधन के अंदर तनाव है और उनका अदरुनी इरादें साफ दिखने लगा है। साल 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले की इस बदलाव को नीतीश का बड़ा कदम माना जा रहा है। बिहार के महागठबंधन में दरार की खबरों के बीच राज्य सियासी पारा चढ़ा हुआ है। विपक्ष के इंडिया गठबंधन में पूरी तरह से मतभेद है। किसी पार्टी में सीटों को लेकर कुछ तय नहीं हुआ है। इसलिए मुझे अभी तक नहीं दिख रहा है कि इंडिया गठबंधन भाजपा के लिए कोई बड़ी चुनौती बन पाएगा। जिस दिन ममता बनर्जी ने विपक्षी गठबंधन के संयोजक पद के लिए मल्लिकार्जुन खडगे के नाम का प्रस्ताव कर दिया था उसी दिन से विपक्षी एकता का मामला पूरी तरह से बिगड़ गया। देखना आज यह है कि नीतीश कुमार क्या चाल चलते है? क्या वह जेडीयू इंडिया गठबंधन और महागठबंधन सभी को संभाल सकते है? उन्हें एकजुट रख पाएंगे? बहुत कुछ निर्भर करता है कि नीतीश कुमार की अगली चाल क्या होती हैं। नीतीश क्या सोचते हैं। करते है यह कोई नहीं जानता। उन्होंने ललन सिंह को हटाकर खुद जेडीयू का अध्यक्ष बनना सामान्य बात नहीं है, इसके पीछे लंबी सियासत है। उम्मीद है कि जल्द ही इस पहेली से पर्दा उठ जाएगा। -अनिल नरेन्द्र

हिट एंड रन कानून का जमकर विरोध

हिट एंड रन कानून के खिलाफ ड्राइवरों ने जमकर हंगामा किया, जगह-जगह पर चक्का जाम किया और हड़ताल आरंभ कर दी। हिट एंड रन मामले में सजा के नए प्रावधानों के खिलाफ ट्रक, टैक्सी और बस ऑपरेटरों के संगठनों ने देशभर में हड़ताल कर दी थी। संसद में हाल में लाए गए भारतीय न्याय संहिता के तहत आपराधिक मामलों में सजा के नए प्रावधान किए गए है। नए कानून के तहत हिट एंड रन इन केस में ड्राइवरों को दस साल की कैद और सात लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है। अभी तक ट्रक या डंपर से कुलचकर किसी की मौत हो जाती थी तो लापरवाही से गाड़ी चलाने का आरोप लगता था और ड्राइवर को जमानत मिल जाती थी। हालांकि इस कानून के तहत दो साल की सजा का प्रावधान है लेकिन अब नया कानून काफी सख्त है। ड्राइवरों को लगा रहा है कि क्या कानून लागू होने के बाद उनके लिए गाड़ी चलाना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि दस साल की कैद और सात लाख जुर्माने की सजा काफी बड़ी है। ड्राइवरों ने कहा कि हमें तो मुश्किल से 15 से 20000 वेतन मिलता है। हम भला कहां से सात लाख जुर्माने के लिए लाएंगे? उन्होंने कहा एक तो उन्हें इतना पैसा नहीं मिलता कि वे इतना भारी जुर्माना दे सकें, दूसरा उन्हें नए कानून से भारी प्रताड़ना का डर है। दस साल की कैद की सजा काफी ज्यादा है। ड्राइवरों का यह भी कहना है कि उन्हें दुर्घटना के बाद मौके पर भीड़ गुस्से का सामना करना पड़ता है। गलती किसी की भी हो पर भीड़ ट्रक, बस ड्राइवरों को भी जिम्मेदार मानती है और उन पर हमला कर देती है। नहीं जतन हमें मॉब लिचिंग से बचने के लिए मौके से वाहन छोड़कर भागना पड़ता है। अगर वह भाग नहीं तो भीड़ हमे मौके पर ही पीट-पीट कर मार देती है। क्या सरकार इस बात की गारंटी लेती है कि दुर्घटना होने पर भीड़ को नियंत्रित करें? ड्राइवरों का कहन है कि पुलिस और सरकारी विभाग कहते हैं कि दुर्घटना के बाद ड्राइवर भाग जाते है। फोनकर इसकी सूचना ही देते है। ड्राइवरों का कहना हैकि अगर वो रुके रहे तो उन्हें मॉव लिचिंग से कान बचाएगा? आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (नाथ जोन) के उपाध्यक्ष जसपाल सिंह कहते है, दुर्घटना कोई जानबूझकर नहीं करता। सरकारी विभाग कहते है कि एक्सीडेंट होने पर ड्राइवर फोन नहीं करते। लेकिन हमें नहीं लगता कि वो फोन नहीं करते। आखिर सड़कों पर इतने कैमरे और टोल नाके है, उनकी मदद क्यों नहीं ली जाती? सड़कों पर गड्डे है, लाइटें नहीं इन पर कयों नहीं ध्यान दिया जाता? भरत में ड्राइवरों की सबसे ज्यादा मॉव लिचिंग होती है। कई बार ड्राइवरों को पीट-पीटकर मार दिया गया है। उन्हें माल समेत जिंदा जला दिया जाता है, लेकिन ऐसा करने वालों पर कोई मुकदमा नहीं होता। किसानों को तो तीन काले कानून हटवाने में एक साल लग गया था और इसमें 300 से ज्यादा किसान शहीद हुए थे पर इन ट्रक ड्राइवरों ने तो दो दिन में सरकार को बैक फुट पर ला दिया। इसका कारण है कि सरकार इस चुनावी वर्ष में इतनी बड़ी हड़ताल का सामना करे और फिर 22 जनवरी को अयोध्या में राम लल्ला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भी है। इनके चलते सरकार ने दो दिन में ही अपने कदम पीछे खींच लिए। दुख की बात तो यह है कि इतने गंभीर कानून बनाने से पहले किसी भी संबंधित पार्टी से कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया। आनन-फानन में जब संसद में 150 विपक्षी सांसद बाहर थे कानून पास करवा लिया। अभी कानून वापस नहीं हुआ सिर्फ यह कहा गया है कि यह फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा। ड्राइवरों को कानून निरस्त करवना चाहिए, स्थगित नहीं।

Thursday 4 January 2024

आसाम में शांति समझौता!

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (एएलएफए), एक वार्ता सहायता समूह, ने केंद्र और असम सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें हिंसा छोड़ने, संघ को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की गई। यह सबसे महत्वपूर्ण मील के पत्थर में से एक है शांति श्रृंखला प्रणाली स्थापित करने की दिशा। समझौता के अल्फा उग्रवाद की 44 साल से अधिक लंबी यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण अध्याय है। सामाजिक असम में लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले कई मील के पत्थर। लेकिन उल्फा मुद्दा, जो शुरू में एक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, जल्द ही यह अपहरण, जबरन वसूली, हत्याओं और बम विस्फोटों के साथ एक सशस्त्र संघर्ष में बदल गया। बातचीत के कई प्रयास किए गए लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। इस निष्पक्ष समझौते में प्रेस बरवा समूह (उल्फा आई) शामिल नहीं था, जो 20 लड़कों का एक समूह था। 7 अप्रैल 1989 को ऊपरी असम के जिलों से उल्फा संगठन ने युग एमपी थिएटर रिंगघर में शिव सागर के ऐतिहासिक पद पर कार्य किया। समूह ने कई अवसरों पर बातचीत की इच्छा व्यक्त की थी लेकिन नेतृत्व पर अपने रुख पर कायम रहा, लेकिन 2011 में संगठन दूसरी बार विभाजित हुए और अरविंद राज को खो दिया। कुछ बड़े नेताओं ने अपना अलग समूह बना लिया। राज खोबा और उनके समर्थक पड़ोसी राज्य असम लौट आए और बिना किसी शर्त के बातचीत की मेज पर लौट आए, और मुखिया पद की अपनी मांग छोड़ दी। इससे पहले, 1992 में समूह का विभाजन हो गया। और वार्ता का समर्थन करने वाले राजनेता अलग हो गए। उत्तर पूर्व के आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा सरकार ने केंद्र में शासन करते हुए विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया। आदिवासी क्षेत्रों में निजी संगठनों की नाराजगी के कारण केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार के साथ दशकों से तनाव चल रहा है। लेकिन बीजेपी ने बोर्ड आदि बसी कार्बी और बामासा जैसे अलगाववादी समूहों के साथ समझौता करने की पहल की है और उत्तर में अलगाववाद के उत्साह को कम करने में सबसे महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। पूर्व. पिछले चार साल में कुल 9 समझौते हुए. राज्य के 85 फीसदी हिस्से से APSPA आर्म्ड फोर्सेज पावर एक्ट हटाने के बाद असम में माहौल शांत हो गया. असम के लिए बड़े पैकेज का भी ऐलान किया है. उल्फा आंदोलन बहुत गुस्से में था। उल्फा के साथ लड़ाई में दस हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई और कई सुरक्षा बल के जवान शहीद हो गए। क्या हाल है केंद्र, असम सरकार और गृह मंत्री को बधाई। (अनिल नरेंद्र)

बीएचयू छात्रा से कथित गैंग रेप!

आईआईटीबीएचयू की छात्रा से कथित सामूहिक दुष्कर्म के मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। वाराणसी की एक अदालत ने तीनों आरोपियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। यह घटना एचयू परिसर में हुई थी। करीब 60 दिन बाद घटना के तीन आरोपियों करनाल पांडे, आनंद उर्फ ​​अभिषेक चौहान और सक्षम पटेल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. पुलिस के मुताबिक, घटना में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली गई है. काशी क्षेत्र के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा. कि गिरफ्तारी के बाद तीनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है. तीनों आरोपियों को रविवार शाम स्थानीय कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने तीनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया. सीपी रामसेवक गौतम ने बताया, तीनों आरोपी शनिवार देर रात उनके घरों से गिरफ्तार कर लिया गया। तीनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। घटना के करीब 2 महीने बाद आरोपियों की गिरफ्तारी के बारे में पूछे जाने पर डीसी पी. गौतम ने कहा, ''इस घटना को लेकर हमारी जांच और सर्च मिशन जारी था .आरोपियों को गिरफ्तार करने से पहले उन्हें समय देना हमारी रणनीति का हिस्सा था. पुलिस तीनों आरोपियों के बारे में जानकारी जुटा रही है. हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. क्या उनका पहले से कोई आपराधिक रिकॉर्ड है? यह भी दावा किया जा रहा है कि तीनों इस बुच्चरचैट कांड में गिरफ्तार आरोपी बीजेपी के आईटी सेल से जुड़े हुए थे. उनकी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. दावे के मुताबिक, करनाल पांडे वाराणसी में बीजेपी आईटी सेल के संयोजक रह चुके हैं. वहीं शिक्षाम पटेल सहायक संयोजक रह चुके हैं. बीजेपी की वाराणसी इकाई में आईटी सेल है. आनंद उर्फ ​​अभिषेक आईटी सेल कार्यसमिति के सदस्य रह चुके हैं. दावा किया गया है कि सुक्षम पटेल बीजेपी काशी प्रांत के मौजूदा अध्यक्ष दिलीप पटेल के निजी सचिव हैं. नियुक्ति की घोषणा करने वाला पत्र इस प्रकार है. भी वायरल. ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीजेपी के तीन सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया गया है. हालांकि, बीजेपी की ओर से कोई प्रेस रिलीज या औपचारिक बयान जारी नहीं किया गया है. क्या किया गया है? इस बीच, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, एक्स पर पोस्ट कर भाजपा को आश्चर्य में डाल दिया। यौन दुराचार की सीमाएं लांघने का आरोप है। सवाल यह है कि क्या भाजपा महिला की मासूमियत से खिलवाड़ करने की खुली छूट देती रहेगी। वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने लिखा आरोपियों की फोटो पोस्ट कर रहे हैं. और कोई भी बीजेपी पीआईटी सेल के पदाधिकारी नहीं हैं और ये बीजेपी का खराब चेहरा है. बता दें कि अजय राय ने इस घटना में बीजेपी से जुड़े लोगों के बारे में खुलकर बात की. उनके खिलाफ ये बात कही. ए. लंका पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया है। हालांकि, अखिल भारतीय बद्यार्थी परिषद की बीएचयू इकाई ने आरोपियों को बचाने वालों की जांच की मांग की है। (अनिल नरेंद्र)

Tuesday 2 January 2024

प्रियंका ने क्यों छोड़ा यूपी का मैदान?

कांग्रेस संगठन ने बड़ा उलटफेर करते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा के उत्तर प्रदेश से इस्तीफे पर मुहर लगा दी है. चारखंड में कांग्रेस के प्रभारी रहे अविनाश पांडे यूपी के प्रभारी होंगे. प्रियंका गांधी ने प्रभारी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था अक्टूबर 2022 से कांग्रेस के सचिव, लेकिन अब कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रियंका के अभियान के बाद इसे मंजूरी मिल गई है। ऐसा हुआ कि वह अब पार्टी के स्टार प्रचारक के रूप में दिखाई देंगी लोकसभा चुनाव। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद उन्होंने कर्नाटक और हिमाचल में कांग्रेस के लिए प्रचार किया। इस अभियान से पार्टी को फायदा हुआ और इसे काफी तवज्जो मिली। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद वह भारत नया यात्रा में भाई राहुल गांधी का समर्थन करेंगे. इसे पहले ही छोड़ देना चाहिए था क्योंकि उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. सवाल यह है कि क्या प्रियंका से उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी लेना राज्य की चुनावी रणनीति में उनकी विफलता का संकेत है या है एक सोची समझी रणनीति के तहत उन्हें यूपी की जिम्मेदारी दी गई है। इसके बजाय उन राज्यों को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए जहां सफलता की संभावना अधिक है। जिस पार्टी ने 1947 से 1989 के बीच कुछ अपवादों को छोड़कर चार दशकों तक यूपी पर शासन किया। अब एक लोकसभा सीट पर सिमट गई है। सच तो यह है कि प्रियंका के समर्थकों का कहना है कि यूपी में कांग्रेस पहले ही कमजोर हो चुकी है, ऐसे में वे महज 3-4 साल में चमत्कार की उम्मीद कैसे कर सकते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी 1984 से ही राजीव गांधी के साथ चुनाव प्रचार कर रही हैं। हालांकि पूरे देश में प्रचार के चलते सोनिया गांधी वहां नहीं जा सकीं, लेकिन प्रियंका गांधी रायबरेली और अमिधि सीट पर प्रचार के लिए गई होंगी, इसका मतलब है कि कांग्रेस को कम से कम 2 सीटें जीतनी चाहिए थीं, अब कांग्रेस हारती है तो प्रियंका के. अमिधि जब प्रभारी थे, तो उनके बने रहने का क्या मतलब है? यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के भीतर एक बड़ा समूह है, जिसे प्रियंका के काम करने का तरीका पसंद नहीं है। इस स्थिति के लिए पूरी तरह से प्रियंका गांधी जिम्मेदार थीं, उन्होंने अमरिंदर सिंह को हटा दिया और चरणजीत सिंह चेनी को मुख्यमंत्री बनाया. नवजोत सिंह सिद्धू को काफी महत्व दिया गया, आखिरकार पंजाब कांग्रेस के हाथ से निकल गया, पंजाब का सारा काम वहां क्यों होता है, इसके लिए प्रियंका गांधी जिम्मेदार हैं. (अनिल नरेंद्र)

चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल?

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है. इसमें सर्च कमेटी बनाने की सुविधा दी गयी है. इस कमेटी के सदस्य सचिव स्तर से नीचे नहीं होंगे. यह कमेटी. सीईसी और ईसी के रूप में नियुक्ति के लिए 5 नामों की सिफारिश की जाएगी। इन नामों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे। चयन समिति इस पर विचार करेगी और नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को भेजेगी। विधेयक में मुख्य चुनाव के लिए तीन सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया है। कमिश्नर और चुनाव आयुक्त इसे राष्ट्रपति के पास भेजेंगे. इस समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है. पी. रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार स्वतंत्र चुनाव आयोग नहीं चाहती. के प्रावधान विधेयक में चुनाव आयोग को सरकार के कब्जे में लेने और उसे जेबी संस्था बनाने का प्रावधान है। अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने उन्हें रोका और कहा कि संसद कानून बनाने वाली संस्था है और आप (सर्जेवाला) भी इसके सदस्य हैं। देश के प्रधान न्यायाधीश शामिल किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने संसद में कानून बनने तक इस आवश्यकता को लागू करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहितन नरीमन ने वर्तमान आवश्यकताओं का दौरा किया है। आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति द्वारा की जाती है जिसमें प्रधान मंत्री और एक केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं और विपक्ष का एक नेता, इसलिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव एक अवधारणा बनी रहेगी. अगर ऐसा होता है, तो अदालत को इसे रद्द कर देना चाहिए. सरकार ने दावा किया है कि यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार किया गया है, यह केवल उसकी सलाह है एम, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश का चुनाव किया जाएगा और संसद की नियुक्तियों में विश्वास और मतदाताओं की नजर में चुनाव आयोग का विश्वास मजबूत है, लेकिन पारित विधेयक में, सरकार ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को इस प्रक्रिया से बाहर रखा. हालांकि समिति में विपक्ष की मौजूदगी है, लेकिन ये भागीदारी ही काफी होगी. ऐसे में चुनाव आयोग के पूर्वाग्रह पर सवाल उठेंगे. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्ष स्थिति सबसे महत्वपूर्ण है, जो एक मजबूत लोकतंत्र का केंद्र है. चुनाव आयोग है देश में जहां भी चुनाव हों, स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान कराने की अपेक्षा की जाती है। चुनाव प्रणाली और लोकतंत्र में जनता का विश्वास बनाए रखना न केवल चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है, बल्कि सरकार की भी जिम्मेदारी है। यह स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। (अनिल नरेंद्र)