बिहार में अयोध्या का असर रहेगा या फिर मंडल भारी पड़ेगा? 1990 के दशक में जब अयोध्या में राम मंदिर बनने को लेकर आंदोलन शुरू हुआ था, उस वक्त बिहार मंडल की राजनीति चल रही थी। राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी के सबसे बड़े नेता लालवृष्ण आडवाणी को बिहार में ही 23 अक्तूबर 1990 को गिरफ्तार किया गया था। तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रासाद यादव थे। लालू यादव अब भी आडवाणी की गिरफ्तारी का श्रेय लेते हैं और कहते हैं कि उन्होंने बिहार को साम्प्रादायिक तनाव से बचा लिया था। सोमवार को अयोध्या में जब राम मंदिर की प्राण प्रातिष्ठा हो रही थी तब बिहार की सड़कों पर भी इसका असर दिख रहा था। हालांकि बिहार उन राज्यों में शामिल रहा, जिसे अयोध्या में राम लला की प्राण प्रातिष्ठा के अवसर पर किसी तरह की छुट्टी की घोषणा नहीं की थी। इधर पूरा बिहार अयोध्या में 500 वर्षो बाद रामलला के लौटने की खुशी मना रहा था।
उधर बिहार को डबल खुशी का अवसर मिल गया। बिहार के बड़े नेता कर्पूरी ठावुर की जयंती के 100 साल पूरा होने के ठीक एक दिन पहले प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाईं में केन्द्र सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देकर चौंका दिया। इस एक पैसले से आम चुनाव से पहले दिल्ली से लेकर पटना तक राजनीतिक माहौल तेज हो गया। भारत रत्न के ऐलान के बाद प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्स पर कहा, मुझे इस बात की बहुत प्रासन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के पुरोधा महान कलात्मक कर्पूरी ठावुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। दरअसल, पिछले वुछ दिनों से बिहार में पिछड़े की राजनाि़त जोरों पर है। बीजेपी के हिन्दुत्व और राम मंदिर पैक्टर से मुकाबला के लिए नीतीश वुमार ने बिहार में जाति जनगणना का कार्ड खेला, महागठबंधन सरकार ने न सिर्प जाति जनगणना के आंकड़े जारी किए बल्कि इसके बाद पिछड़ों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाईं। वहीं बुधवार को जेडीयू की रैली में कर्पूरी ठावुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग भी एजेंडे में भी। बीजेपी को पता था कि आरजेडी के मुस्लिम और यादव वोट समीकरण और साथ में नीतीश वुमार को पिछड़े वोट के सियासी गणित को हटाना इतना आसान नहीं है। ऐसे में कर्पूरी ठावुर को भारत रत्न देने के साथ ही बीजेपी ने पिछड़ों की राजनीति और नीतीश के वोट में सेंध लगाने की कोशिश की है। कर्पूरी ठावुर को भारत रत्न देकर सामाजिक न्याय को बड़ी मान्यता दी है।
कर्पूरी ठावुर के बहाने बीजेपी बिहार के अलावा उत्तर प्रादेश और सारे राज्यों में भी बड़ा अभियान शुरू कर सकती है, पहले भी नरेन्द्र मोदी की अगुवाईं में बीजेपी ने विपक्ष के प्रातीकों को अपने पाले में करने की सफल राजनीति की है, ऐसे में बीजेपी ने एक पैसले से दो शिकार किए हैं और मंडल-कमंडल दोनों कार्ड को अपने पाले में करने की कोशिश की है। 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है, देखना यह है कि बीजेपी की यह चाल दोनों मंडल और कमंडल साथ लेने की रणनीति कितनी कामयाब रहती है।
——अनिल नरेन्द्र
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