Thursday, 25 January 2024
अयोध्या से छोड़ा चुनावी अश्वमेध का घोड़ा
अश्वमेध का घोड़ा अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यंव्रम पूरा हो गया है और इसी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी अश्वमेध का घोड़ा छोड़ दिया है। यानी की 2024 के लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गईं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मुद्दों के रूप में चुनावी अश्वमेध का घोड़ा भी छोड़कर पूरे देश में घूम-घूमकर विरोधियों को चुनौती देने का कार्यंव्रम बना लिया है।
चुनावी तैयारी में भाजपा सभी अन्य पार्टियों से आगे है। इंडिया गठबंधन तो अभी तक सीट शेयरिंग फार्मूला तय नहीं कर पाया है और भाजपा अपनी उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने वाली है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट के लिए जो कड़े प्रावधान तय किए हैं उसका असर पार्टी के 40 फीसदी सांसदों पर पड़ सकता है।
पार्टी ने इस बार बेहद कम अंतर से जीत हासिल करने वाले लगातार तीन चुनाव जीतने वाले 70 से अधिक उम्र वाले और अति सुरक्षित सीटों पर अपवादस्वरूप ही वर्तमान सांसदों को उतारने का मन बनाया है। वर्तमान में ऐसे सांसदों की संख्या करीब 130 है। मिशन 2024 की तैयारियांे के अंतिम रूप देने में जुटी पार्टी ने लगातार तीसरी जीत हासिल करने के लिए टिकट वितरण में सबसे अधिक सावधानी बरतने का पैसला किया है। पार्टी की योजना न्यूनतम अंतर से जीत वाली सीटों और कठिन सीटों पर मध्यप्रदेश चुनाव की तर्ज पर दिग्गज चेहरों को उतारने की है। सत्ता बरकरार रखने के लिए पार्टी का खास फोकस उन 344 सीटों पर है जहां पार्टी को बीते तीन चुनावों में कभी न कभी जीत हासिल हुईं है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक बीते चुनाव में पार्टी को 27 सीटों पर महज एक फीसदी के अंतर से तो 48 सीटों पर महज दो फीसदी के अंतर से जीत हासिल हुईं थी। इनमें से ज्यादातर सीटों पर पार्टी उम्मीदवार बदलेगी। इसके अलावा वर्तमान में पार्टी के 61 सांसदों की उम्र 70 साल से अधिक है, जबकि लगातार तीन चुनाव जीतने वाले सांसदों की संख्या 20 है। इन सीटों पर भी अपवाद स्वरूप ही सांसदों को फिर से टिकट मिलेगा।
लोकसभा चुनाव के लिए देश के लगभग हर बूथ पर चाक-चौबंद रणनीति को अपनाया है। इसमें वह चार वर्गो महिला, युवा, गरीब और किसान को केन्द्र में रखकर संवाद कर रही है। नईं रणनीति में भाजपा उन समाजिक वर्गो तक भी प्रभावी संपर्व बना सकेगी जिनका अधिकांश समर्थन उसके विरोधी दलों को मिलता है। इसमें मुस्लिम समुदाय भी शामिल है। देश की राजनीति में जाति एक बुरा कारक है और विपक्षी इसी पर अपनी संभावित एकता को लेकर भाजपा से दो-दो हाथ करने की तैयारी में है। दूसरी तरफ भाजपा ने भी विपक्ष की इस रणनीति की धार वुंद करने के लिए नया फार्मूला तैयार किया है। बीते दिनों देश के प्रमुख 300 कार्यंकर्ताओं के साथ बैठक में भाजपा नेतृत्व ने यह स्पष्ट भी किया है। इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार की विभिन्न योजनाओं के केन्द्र में कोईं एक समुदाय और जाति नहीं है, बल्कि वह चार वर्ग महिला, युवा, गरीब और किसान को केन्द्र में रखकर बनाईं गईं है। इसे हर किसी को बताना है और हर घर तक पहुंचाना है। राम मंदिर के माहौल में भाजपा के लिए भले ही कोईं बड़ी चुनौती नहीं दिख रही हो। लेकिन भाजपा हर चुनाव की तरह ही इस चुनाव को भी पूरी ताकत से लड़ रही है, भाजपा का मानना है कि विपक्ष को हल्के में नहीं लिया जा सकता। उसे पूरी तैयारी और रणनीति के साथ मैदान में उतरना होगा।
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