Thursday, 11 January 2024

साहसिक और ऐतिहासिक पैसला

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप और उनके परिवार वालों की हत्या के 11 दोषियों की सजा में छूट देकर रिहाईं करने के पैसले को रद्द कर साहसिक और ऐतिहासिक पैसला दिया है। गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस के दिन इन दोषियों की सजा में छूट देते हुए इन्हें रिहा कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने और कोईं पैसला लेने का अधिकार नहीं है। इस मामले में पैसला लेने के लिए महाराष्ट्र सरकार को ज्यादा उपयुक्त बताया। सुप्रीम कोर्ट का पैसला गुजरात सरकार के पक्षपातपूर्ण व्यवहार पर कठोर प्रहार है। अदालत ने सारे दोषियों को दो हफ्ते के भीतर समर्पण करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक पैसले के मुख्य बिंदु वुछ इस प्रकार हैं। दोषियों की सजा माफ करने के अनुरोध वाली अपीलों पर विचार करना गुजरात सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं था क्योंकि यह सीआरपीसी की धारा 432 के तहत (इस संबंध में पैसले लेने के लिए) उपयुक्त सरकार नहीं थी। सजा में छूट पाए दोषियों में से एक की याचिका पर गुजरात सरकार के विचार करने का निर्देश देने वाली एक अन्य पीठ ने 13 मईं 2022 के आदेश को अमान्य माना। सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचेसमझे पारित किया गया। गुजरात सरकार ने महाराष्ट्र राज्य की शक्तियों में अतिव्रमण किया क्योंकि केवल महाराष्ट्र सरकार ही सजा से छूट मांगने वाले आवदेनों पर विचार कर सकती थी। गुजरात राज्य की 9 जुलाईं 1992 की सजा से छूट संबंधी नीति मौजूदा मामलों के दोषियों पर लागू नहीं होती। बिलकिस बानो मामले में समय से पहले रिहाईं के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले एक दोषी के साथ गुजरात सरकार की मिलीभगत थी। न्यायपालिका कानून के शासन की संरक्षण और लोकतांत्रिक राज्य का केन्द्रीय स्तंभ है। कानून के शासन का मतलब केवल वुछ भाग्यशाली लोगों की सुरक्षा करना नहीं है। अनुच्छेद 142 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषियों के पक्ष में जेल से बाहर रहने की अनुमति देने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है। बता दें कि पिछले साल पंद्रह अगस्त को गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 दोषियों की उम्र वैद की सजा माफ कर दी थी। तब इसे लेकर काफी रोष देखा गया था। बिलकिस बानो मामले में गुजरात सरकार का रूख शुरू से ही पक्षपातपूर्ण देखा गया था। इसके पीछे राजनीतिक मकसद भी देखे गए थे, जो दोषियों के रिहा होते ही दिखाईं भी दिए। दोषियों का माला पहनाकर स्वागत किया गया, मानो वे किसी जघन्य अपराध के दोषी नहीं, बल्कि उन्होंने कोईं साहसिक काम किया हो। इस तरह उनकी सजा माफ करना सिर्प उन्हें निर्दोष साबित करना बल्कि समाज में उनका महिमामंडन करने का भी प्रयास हुआ था। ऐसे बलात्कार, हत्या करने, सामाजिक विद्वेष पैलाने वालों की सजा माफी और स्वागत किसी भी सय समाज की निशानी नहीं मानी जा सकती। गुजरात सरकार के पैसले पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी स्वाभाविक है। आखिर इस तरह के पक्षपातपूर्ण पैसले करने वाली सरकार की कल्याणकारी और महिलाओं की सुरक्षा के प्रतिबद्ध वैसे माना जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने बिलकिस के अधिकार को महत्वपूर्ण मानते हुए उसके प्रति न्याय किया है। न्यायालय की यह टिप्पणी भी एक प्रकाशस्तंभ की तरह काम करेगी कि अदालत को बिना किसी डर या पक्षपात के कानून को लागू करना आता है। इस पैसले से जनता में न्यायालयों के प्रति विश्वास बढ़ेगा।

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