Wednesday 31 August 2016

सवाल हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश का

शनि शिगणापुर, त्र्यबकेश्वर के बाद अब मुंबई की प्रख्यात हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला कुछ मायनों में ऐतिहासिक कहा जा सकता है। हाई कोर्ट के फैसले के मुताबिक महिलाओं को दरगाह में जाने से रोकना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए वर्ष 2012 से महिलाओं के दरगाह में मजार तक जाने पर लगी पाबंदी को असंवैधानिक करार दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि यह प्रतिबंध संविधान में प्राप्त मौलिक अधिकारों के विपरीत है। हाजी अली दरगाह का मामला तो इसलिए भी दिलचस्प है कि वहां महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी पहले नहीं थी। महिलाओं को दरगाह के अंदर न जाने देने का फैसला कुछ ही समय पहले सन् 2012 में लिया गया था और तभी से महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन इसके खिलाफ मुहिम चला रहे थे। इस बात से इसी तथ्य की फिर पुष्टि होती है कि जिन धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है, वह परंपरागत रूप से हमेशा नहीं थी, यह बाद में किसी एक ऐतिहासिक दौर में लगाई गई। हाई कोर्ट का यह निर्णय हाजी अली दरगाह के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के धार्मिक स्थलों पर स्त्री-पुरुष भेदभाव के खिलाफ नजीर बनेगा। शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस वीएम कानडे और रेवती मोहित डेरे की खंडपीठ ने संविधान में महिलाओं और पुरुषों को मिले समान अधिकारों का हवाला दिया। पीठ ने कहा कि जब मुस्लिम महिलाओं को मक्का, मदीना में प्रवेश दिया जाता है तो हाजी अली दरगाह में प्रवेश वर्जित क्यों है? कोर्ट के फैसले के बाद हाजी अली ट्रस्ट ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए समय देने की मांग की। इसे स्वीकार करते हुए अदालत ने फैसले पर छह सप्ताह के लिए रोक लगा दी है। एनजीओ भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की नूरजहां नियाज ने हाजी अली दरगाह में महिलाओं को प्रवेश देने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इस फैसले पर मुस्लिम समाज में समर्थन भी हो रहा है और विरोध भी। देवबंदी उलेमा ने कहा कि समाज सुधार के लिए महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी रहनी चाहिए। वहीं इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम के मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी बनारसी ने इस मसले को मुफ्तियों से संबंधित बताते हुए कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। फतवा ऑनलाइन के प्रभारी मौलाना मुफ्ती अरशद फारुकी ने कहा कि इस्लाम केवल मर्दों को ही कब्रिस्तान में जाने की इजाजत देता है। शरीयत में महिलाओं के कब्रों पर जाने की पाबंदी है। जहां तक हाजी अली की दरगाह पर महिलाओं के प्रवेश को इजाजत देने का मामला है, तो यह सही नहीं है। समाज सुधार के लिए पाबंदी बरकरार रखनी चाहिए थी। शरीयत का भी यही फैसला है। उन्होंने कहा कि हाजी अली की दरगाह सिर्प तफरीगाह के तौर पर इस्तेमाल हो रही है जिससे उसकी बेहुरमती होती है। दूसरी ओर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली, ईदगाह के इमाम का कहना है कि महिला व पुरुष को इस्लाम में बराबर का दर्जा हासिल है। महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने से नहीं रोका गया है। इस्लाम में कब्रिस्तान और दरगाह पर जाने के कुछ नियम हैं। जिनको मानना जरूरी है। महिलाओं को चाहिए कि वे आजादी के नाम पर इस्लामी उसूल को न तोड़ें। हाई कोर्ट का फैसला एक और महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर इशारा करता है। जरूरी नहीं कि तमाम धार्मिक संस्थानों में नियम भारतीय संविधान की भावनाओं के अनुकूल हों। लेकिन धीरे-धीरे ही सही, दोनों के बीच तालमेल बनाना बहुत जरूरी है। अरब देशों और दक्षिण एशिया में इस्लाम का स्वरूप अलग-अलग है। दक्षिण एशिया ने इस्लाम के कट्टर ढांचे को खारिज कर उसके उदार रूप को अपनाया है। यही कारण है कि इंडोनेशिया, बांग्लादेश से लेकर पाकिस्तान तक मुस्लिम महिलाएं देश का नेतृत्व संभाल चुकी हैं, लेकिन उस उदारता पर पिछले दो दशकों में उभरी कट्टरता ने ग्रहण लगा दिया है। भारत में एक बूढ़ी महिला शाहबानो और केरल की सीरिया ईसाई समाज की मैरी राय को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गुजारा भत्ता दिए जाने पर विरोध करने के लिए पूरा मुस्लिम और ईसाई समाज खड़ा हो गया था। देखना है कि कट्टरता और उदारता की इस लड़ाई में इस्लामी नारीवाद किस हद तक कामयाब होता है।

-अनिल नरेन्द्र

जैन मुनि पर विवादित टिप्पणी कर फंसे विशाल डडलानी

पता नहीं कि यह फिल्म वाले राजनीतिक टीका-टिप्पणी क्यों करते हैं? यह काम धंधे तक सीमित क्यों नहीं रहते। कभी आमिर खान, कभी शाहरुख खान सियासी टिप्पणियां करके विवादों में फंस जाते हैं। अब बारी है आम आदमी पार्टी के नेता और मशहूर गायक, संगीतकार विशाल डडलानी की। क्रांतिकारी संत जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज के हरियाणा विधानसभा में हुए कड़वे प्रवचनों के बाद विशाल डडलानी द्वारा की गई टिप्पणियां उनके गले की हड्डी बन गईं। डडलानी की टिप्पणी से जैन समाज में बहुत रोष है। जगह-जगह डडलानी के पुतले पूंके गए। ट्विटर पर जैन मुनि तरुण सागर के बारे में अभद्र टिप्पणी करने वाले संगीतकार विशाल डडलानी के खिलाफ दिल्ली के शाहदरा थानाध्यक्ष को शिकायत भी की गई है। शाहदरा के ईस्ट रोहताश नगर निवासी विपिन जैन ने अपनी शिकायत में बताया कि जैन मुनि तरुण सागर देश के गौरव हैं। 26 अगस्त को उनका मंगल प्रवचन हरियाणा विधानसभा में था। आरोप है कि विशाल डडलानी एवं तहसीन पुनावाला ने एक राष्ट्र संत की तस्वीर ट्विटर पर डालकर अभद्र टिप्पणी की। इस अपमानजनक कृत्य से पूरा जैन समाज एवं उनके अन्य अनुयायियों की भावनाएं आहत हुई हैं। इन दोनों आरोपियों ने शांतिपूर्ण समुदाय को ठेस पहुंच कर जैन समाज में तनाव का माहौल बनाया है। डडलानी की टिप्पणी को गलत बताते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहाöतरुण सागर जी महाराज न केवल जैनों, बल्कि हर किसी के लिए एक परम पूजनीय संत हैं और उनके प्रति अनादर दिखाना दुर्भाग्यपूर्ण है तथा इसे रोक देना चाहिए। वहीं दिल्ली के लोक निर्माण विभाग मंत्री सत्येन्द्र जैन ने अपने संगीतकार दोस्त की तरफ से जैन मुनि से क्षमा मांगी। बता दें कि डडलानी ने कहा था कि वह शासन में धर्म के इस्तेमाल के खिलाफ हैं। हरियाणा सरकार ने गत शुक्रवार को जैन मुनि को विधानसभा में कड़वे वचन भाषण देने के लिए आमंत्रित किया था। जैन मुनि निर्वस्त्र थे। बाद में विशाल ने ट्वीट कियाöमुझे बुरा लग रहा है कि मेरे जैन दोस्तों अरविन्द केजरीवाल व सत्येन्द्र जैन ने बुरा महसूस किया। इसलिए मैं सभी सक्रिय राजनीतिक कार्य छोड़ता हूं। संगीतकार से कहाöमैंने शांतिपूर्ण जैन समुदाय की भावनाओं को चोट पहुंचाकर गलती की और माफी मांगने का एकमात्र तरीका मेरे लिए अपना अहम त्यागना है। मैंने गलती की और मैं दिल से इसके लिए माफी मांगता हूं। उधर जैन मुनि की महानता देखिएöमुनि जी ने कहा आलोचना करना अथवा अपने मन के स्वेच्छा से उद्गार व्यक्त करना किसी का भी अधिकार हो सकता है। मेरे बारे में क्या कहता है इसकी मुझे परवाह नहीं है, सभी की अपनी अलग-अलग राय हो सकती है।

Tuesday 30 August 2016

प्रधानमंत्री की अगले तीन ओलंपिक के लिए कार्यबल गठन का स्वागत है

हम प्रधानमंत्री की इस घोषणा का स्वागत करते हैं कि 2020, 2024 और 2028 में होने वाले अगले तीन ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रभावी प्रदर्शन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विस्तृत कार्ययोजना बनाने के लिए कार्यबल का गठन किया जाएगा। यह कार्यबल देश में खेल सुविधाओं, खिलाड़ियों के प्रशिक्षण, चयन प्रक्रिया और अन्य संबंधित मामलों में समूची रणनीति तैयार करेगा। कार्यबल में घरेलू विशेषज्ञों के अलावा बाहरी लोगों को भी शामिल किया जाएगा। इस कार्यबल का गठन अगले कुछ दिनों में ही किया जाएगा। अगर कोई कहे कि भारत रियो ओलंपिक में सबसे फिसड्डी देश रहा तो वह गलत नहीं होगा। भारत पदक जीतने वाले देशों की सूची में 67वें पायदान पर रहा। भारत ने एक रजत और एक कांस्य पदक जीता। लेकिन सवा अरब से अधिक आबादी वाला भारत प्रति व्यक्ति के लिहाज से दो पदकों के संग रियो में पदक जीतने में 87वें स्थान पर है। 24 ओलंपिक खेलों में भाग लेकर भारत महज 28 पदक ही जीत पाया है। इससे ज्यादा पदक तो अमेरिकी तैराक माइकल फेलप्स अकेले ही जीत चुका है। रियो ओलंपिक का सबसे बड़ा सितारा शायद उसेन बोल्ट है। बोल्ट ने अपने तीसरे ओलंपिक में भी सौ मीटर, दो सौ मीटर और 4द्ध100 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीतकर साबित कर दिया कि वह और जमैका दुनिया में गति के शहंशाह हैं। बोल्ट या अन्य श्रेष्ठ धावकों पर नजर डाली जाए तो यह सहज ही समझ में आता है कि एथलेटिक्स की दुनिया में अश्वेतों का बोलबाला है। अश्वेत लोग अगर दौड़-कूद के क्षेत्र में वर्चस्व बनाए हुए हैं तो वेट लिफ्टिंग, जेबेलिन थ्रो, हैमर थ्रो जैसे खेलों में यूरोपीय या यूरोशियाई नस्ल के श्वेत खिलाड़ियों का दबदबा है। इसी तरह एशियाई खिलाड़ियों का वर्चस्व बैडEिमटन या टेबल टेनिस में तो है, लेकिन टेनिस में ज्यादातर श्वेत खिल़ाड़ी छाए हुए हैं। बास्केटबॉल में अश्वेत खिलाड़ियों का जलवा है, लेकिन फुटबॉल में यूरोप तथा लातिन अमेरिका की टीमों का ही बोलबाला है। भारतीय पहलवान आमतौर पर निचले वजन वर्गों में काफी सफल हैं, लेकिन हेवीवेट या मिडिल वेट में सफल भारतीय पहलवानों का नाम याद आना मुश्किल है। मुक्केबाजी में भी कमोबेश यही हाल है। हॉकी में हम लोग फिलहाल पिछड़ रहे हैं, लेकिन यह मानना होगा कि भारतीय या पाकिस्तानी जैसी हॉकी खेलते हैं, उसका जवाब नहीं है। क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जिसका आविष्कार गलती से इंग्लैंड में हो गया था। यह भी दिलचस्प है कि जिन लोगों का मूल स्थान पश्चिमी अफ्रीका है, वे लोग छोटी दूरी की फर्राटा दौड़ में तो माहिर हैं, लेकिन लंबी दूरी की फर्राटा दौड़ में वे कहीं नहीं हैं। इसके विपरीत केन्या या इथियोपिया जैसे उत्तरी या पूर्वी अफ्रीका के खिलाड़ियों का लंबी दूरी की दौड़ में वर्चस्व है, लेकिन छोटी दूरी की दौड़ में यह नदारद हैं। इन विभिन्नताओं की वजह काफी हद तक अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों की शारीरिक बनावट में है, जो हजारों सालों से किसी खास तरह के भूगोल, जलवायु और सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल से बनती है और शरीर की कोशिकाओं में मौजूद जीन्स में दर्ज हो जाती है। इसलिए अफ्रीका से हजारों मील दूर जमैका में बसे पश्चिमी अफ्रीकी मूल के उसेन बोल्ट और उनके साथी अब भी छोटी दूरी की दौड़ में अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं। क्षमता को अभ्यास और प्रशिक्षण से तराशने की जरूरत है। हमें स्कूल स्तर से ही विशेष योग्यता रखने वाले बच्चों पर ध्यान देना चाहिए। उन खेलों में ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा जिनमें बीते परफार्मेंस विश्वस्तरीय रहे हों। ट्रेनिंग के साथ-साथ खानपान, रहने आदि की सुविधा भी देनी होगी। एक सुझाव यह भी है कि भारत को अमेरिका, ब्रिटेन व चीन में ओलंपिक तैयारी की क्या कार्ययोजना है? पर यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान दिया है। उम्मीद करते हैं कि अगर योजना पर गंभीरता से क्रियान्वयन होगा तो भविष्य में बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

पहली बार ऐसे तेवर देखे महबूबा मुफ्ती के

कश्मीर में शांति बहाल करने में केंद्र सरकार कितनी गंभीर है इससे पता चलता है कि पिछले डेढ़ महीने में गृहमंत्री राजनाथ Eिसह दूसरी बार वहां दौरे पर गए। शांति बहाल करने के लिए यह जरूरी था कि राजनाथ वहां के लोगों से सीधे मुखातिब हों। 300 से अधिक लोगों से बातचीत में यह आम राय उभर कर आई कि मुट्ठीभर गुमराह लोगों को छोड़, वहां की अवाम अमन-शांति चाहती है। अच्छी बात है कि राजनाथ ने भी केंद्र की तरफ से दोहराया कि सरकार कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत के दायरे के लिए प्रतिबद्ध है। पर सबसे अच्छा स्टैंड मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का रहा। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में बैठ कर मुख्यमंत्री ने जो कहा उसकी आवाज पूरे कश्मीर और संदेश पाकिस्तान तक पहुंच गया। 1999 में पीडीपी बनाने के  बाद यह पहला मौका था, जब महबूबा ने अलगाववादियों व उपद्रवियों के खिलाफ इतने तीखे तेवर दिखाए। प्रेस कांफ्रेंस में जब उनसे फायरिंग में बच्चों की मौत पर सवाल पूछे  गए तो महबूबा ने कहा कि कर्फ्यू के दौरान क्या ये बच्चे दूध और टॉफी लेने पुलिस थाने, आर्मी कैंप पहुंचते हैं? इन्हें ढाल बनाकर वहां लाया गया था। सवाल-जवाब के दौरान जब एक पत्रकार ने राजनाथ से पिछली उमर अब्दुल्ला की सरकार की मौजूदा महबूबा सरकार की तुलना पूछी तो महबूबा ने राजनाथ को जवाब से रोकते हुए कहाöसर आप रुक जाइए, आप इन्हीं नहीं जानते, इन्हें मैं जवाब देती हूं। महबूबा ने कहा कि राज्य में 95 प्रतिशत लोग शांति चाहते हैं। सिर्प पांच प्रतिशत लोग ही पत्थर उठाकर माहौल बिगाड़ रहे हैं। पथराव से कोई मसला शांत नहीं होने वाला है। महबूबा ने एक सवाल के जवाब में कहा कि 2010 में जो हुआ उसका रीजन था। तब माच्छिल में फेक एनकाउंटर हुआ था। तीन आम नागरिक मारे गए थे। इसके बाद जवानों पर शोपियां में रेप और हत्या के आरोप लगे थे। तब लोगों के गुस्से की वजह थी। लेकिन अब तीन आतंकवादी मारे गए हैं। इसमें सरकार की क्या गलती है? हमें बातचीत से समस्या का हल करने वालों और बच्चों के हाथ पत्थर पकड़वाने वालों में अंतर समझना होगा। प्रेस कांफ्रेंस में महबूबा इतने गुस्से में थीं कि उन्होंने 21 मिनट के बाद प्रेस कांफ्रेंस ही खत्म कर दी। इस दौरान महबूबा ने 34 बार अंगुली उठाकर आतंकियों को चेताया। राजनाथ ने तीन बार महबूबा को शांत करने की कोशिश की। दो मौकों पर राजनाथ की बात बीच में काटकर खुद बोलने लगीं। एक बार तो पत्रकारों पर गुस्सा होते हुए शांत रहकर गृहमंत्री की बात सुनने के निर्देश दे डाले। महबूबा ने दो टूक कहा कि केंद्र और राज्य सरकार शांतिपूर्ण तरीके से समाधान चाहती हैं। वाजपेयी ने कहा था कि हम इंसानियत के तरीके से समाधान चाहते हैं। हम भी उसी रास्ते पर चलना चाहते हैं। जबसे पीडीपी-भाजपा की सरकार बनी है हमने महबूबा के इतने तीखे तेवर पहले नहीं देखे। इसके पीछे कुछ कारण भी हो सकते हैं। कश्मीर में राज्यपाल शासन की भी चर्चा है। महबूबा की सरकार अगर जाती है तो फिर चुनाव जीतने की संभावना कम ही है। दो बड़े मंत्री नईम अख्तर और हसीब द्राबू इस मसले पर उनका साथ छोड़ चुके हैं। मुफ्ती की मौत के बाद पीडीपी कमजोर हुई है। पीडीपी ने अपने समर्थक तब खो दिए थे जब भाजपा के साथ गठबंधन किया। अगर महबूबा गरम थीं तो राजनाथ सिंह नरम थे। प्रेस कांफ्रेंस में राजनाथ सिंह ने कहा कि वर्ष 2010 में कहा गया था कि पैलेट गन गैर घातक हथियार हैं जिससे कम नुकसान होगा। लेकिन अब हमें लगता है कि इसका कोई विकल्प होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पैलेट गन के विकल्प पर विचार के  लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई है जो दो-तीन दिन में अपनी रिपोर्ट देगी। इसके बाद हम पैलेट गन का विकल्प देंगे। हमें यह समझ नहीं आया कि राजनाथ सिंह इतना नरम रुख क्यों अपना रहे हैं? जब महबूबा कह रही हैं कि बच्चे टॉफी लेने नहीं जाते तो केंद्र को पैलेट गन पर सफाई देने की क्या जरूरत है? अगर पत्थरबाजी रुकी है तो वह इस पैलेट गन की वजह से ही रुकी है। केंद्र को पैलेट गन का डर बरकरार रखना चाहिए और महबूबा के नए तेवरों का फायदा उठाना चाहिए।

Sunday 28 August 2016

निर्भया कांड के दोषी का आत्महत्या का प्रयास?

16 दिसम्बर 2012 की रात चलती बस में वसंत विहार इलाके में निर्भया घिनौना कांड हुआ था। इसने सारे देश का सिर शर्म से झुका दिया था। इतने दिन बीतने के बावजूद केस अदालतों में आज तक फंसा हुआ है। इस घिनौने कांड में एक दोषी विनय शर्मा ने बुधवार रात तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या का प्रयास किया। तिहाड़ के पूर्व डीआईजी स्तर के एक अधिकारी का कहना है कि विनय शर्मा की जान उसके साथ रह रहे कैदियों की चौकसी से बची। विनय ने पहले कुछ दवाइयां खाईं, उसके बाद उसने अपने गमछे (तोलिया) को गले में बांधकर फांसी लगाने की कोशिश की। आरोपी तिहाड़ में जेल नम्बर आठ में बंद था। जेल प्रशासन ने विनय को दीनदयाल अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां उसकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। विनय शर्मा को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है जिस पर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है। 16 दिसम्बर 2012 के इस घिनौने कांड में कुल छह आरोपी थे। राम सिंह ने पहले ही आत्महत्या कर ली थी। बाकी पांच को दोषी पाया गया था। पांच में एक नाबालिग दोषी को छोड़कर बाकी चार को मौत की सजा दी गई है। नाबालिग दोषी जो पूरे कांड का मास्टर माइंड भी है, ने अपनी सजा पूरी कर ली है और दिसम्बर 2015 में वह रिहा भी हो चुका है। देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ में कैदियों के रहने के एक मामले में जेल से संबंधित हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। यहां की जेलों में बंद कैदियों की संख्या जेल की क्षमता से कहीं ज्यादा है। तिहाड़ जेल में कैदियों की संख्या अधिक होने के चलते एक कैदी की जगह पर तीन कैदियों को रखना पड़ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक तिहाड़ के जेल नम्बर एक की क्षमता 565 कैदियों की है, जबकि वर्तमान में 863 कैदी इस जेल में बंद हैं। ठीक उसी तरह जेल नम्बर दो में 453 की तुलना में 827 कैदियों को रखा गया है। यही हालत तिहाड़ की बाकी जेलों में भी है। तिहाड़ जेल के बाद 14000 से अधिक कैदियों को संभालने के लिए 1100 वार्डर और हैड वार्डर लगे हैं। जबकि यह संख्या 2400 के लगभग होनी चाहिए। इससे हमारी न्यायिक प्रणाली पर भी गंभीर प्रश्न उठते हैं। इतने साल बीतने के बाद भी अभी तक दोषियों को सजा नहीं हो पाई है। निर्भया कांड ने न केवल सारे देश को ही, बल्कि पूरी दुनिया को हिला दिया था। जब जेल में क्षमता से कहीं ज्यादा कैदियों को ठूंसा जाएगा तो हर कैदी की सुरक्षा करना असंभव है। कहा जाता है कि बलात्कारियों को जेल में बंद कैदी नफरत की नजर से देखते हैं और मौका पाते ही इनकी जमकर पिटाई करते हैं। विनय शर्मा के साथ भी यही हुआ।

-अनिल नरेन्द्र

दाऊद इब्राहिम, नवाज शरीफ और पाकिस्तान बेनकाब

अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी, 1993 के मुंबई धमाकों का मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में ही रहता है। भारत के इस दावे पर सोमवार को संयुक्त राष्ट्र की समिति ने भी मुहर लगा दी है। एक बार फिर पाकिस्तान की पोल खुल गई है। भारत ने यूएन को दाऊद के जो नौ पते दिए थे उनमें से उन्हें छह सही मिले हैं। जाहिर है कि पाकिस्तान को जवाब देना मुश्किल होगा कि आतंकवाद को अपनी जमीन पर पनाह न देने का ढिंढोरा पीटने वाला अपनी सरजमीं पर इतने बड़े आतंकी सरगना को पनाह दे रहा है। भारत ने पिछले साल अगस्त में संयुक्त राष्ट्र को दाऊद इब्राहिम का डोजियर सौंपा था। आईएसआईएस और अलकायदा पर प्रतिबंध की निगरानी करने वाली समिति ने इसकी जांच की और पुष्टि की कि दाऊद के छह पते सही हैं। जो तीन पते दाऊद से जुड़े नहीं पाए गए हैं, उन्हें डोजियर से निकाल दिया गया है। भारत को नवाज शरीफ और उनकी सरकार को पूरी तरह अब बेनकाब करना चाहिए। अब तो सभी मानेंगे कि इस बात के पर्याप्त सबूत मिल गए हैं कि पाकिस्तान इस आतंकवादी को संरक्षण दे रहा है। लिहाजा निस्संदेह यह भी साबित हो गया है कि आतंकी गतिविधियों का पाकिस्तान समर्थन कर रहा है। पाकिस्तान हमेशा इंकार करता रहा है कि दाऊद पाकिस्तान में है और भारत द्वारा सौंपे गए डोजियर, साक्ष्य और दस्तावेज को उसने कभी तवज्जो भी नहीं दी। सूची में विभिन्न पासपोर्टों की जानकारी भी दर्ज है। इनमें वे पासपोर्ट भी हैं, जो पाकिस्तान में जारी हुए हैं। इसमें कहा गया है कि दाऊद को 18 अगस्त 1985 को एक पासपोर्ट दुबई में जारी किया गया। एक पासपोर्ट रावलपिंडी में 12 अगस्त 1991 में जारी किया गया। इसमें इन दो पासपोर्टों के गलत इस्तेमाल का भी जिक्र किया गया है। डोजियर में कहा गया है कि दाऊद पाकिस्तान में अपने ठिकाने और पते तेजी से बदलता है। उसने पाकिस्तान में अकूत सम्पत्ति जुटाई है। वह पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों की देखरेख में आता-जाता है। दाऊद का एक मकान पाक की पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल के कराची स्थित घर के पास है। दाऊद को पाकिस्तान इसलिए पसंद है क्योंकि वह हवाला, ड्रग्स और फिल्मों की पायरेसी के धंधे से पैसा जुटाकर पाकिस्तानी आर्मी के बड़े अफसरों और नेताओं तक पहुंचाता है। वह भारत पर हमलों में आईएसआई और आतंकी संगठनों की भी माली मदद करता है। उम्मीद की जाती है कि संयुक्त राष्ट्र अब पूरे मामले का संज्ञान लेगा और पाकिस्तान से इस बाबत पूछताछ करेगा। कहा जाता है कि एक अनुमान के अनुसार दाऊद के पास 80 हजार करोड़ रुपए मूल्य की करीब 1000 बेनामी सम्पत्तियां भी हैं।

Saturday 27 August 2016

...जब अमेरिका ने कार्गो विमान में 115 अरब नकद ईरान भेजे

दैनिक भास्कर ने द न्यूयार्प टाइम्स के हवाले से एक लेख प्रकाशित किया है। लेख का मजमून निहायत दिलचस्प है। मैं इसे प्रस्तुत कर रहा हूं। अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति के पद के लिए हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच जबरदस्त संघर्ष छिड़ा हुआ है। आखिरी सर्वेक्षणों में हिलेरी का पलड़ा भारी बताया जा रहा है जबकि ट्रंप के समर्थक दावा कर रहे हैं कि नवम्बर में होने वाले इलैक्शन में उनके उम्मीदवार की जीत पक्की है। इस बीच एक नई बहस अचानक छिड़ गई है। यह है पेलेट्स ऑफ कैश हैशटेग। यह 115 अरब रुपए नकद ईरान भेजने का मुद्दा है। ओबामा सरकार ने स्वीकार किया है कि उसने जनवरी में एक कार्गो विमान से यह राशि नकद (115 अरब रुपए) तेहरान पहुंचाई थी। विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाकर बहस छेड़ दी है, जिसमें कहा जा रहा है कि सरकार ऐसे देश के आगे झुक गई, जो आतंक को बढ़ावा देता है। इसके लिए रिपब्लिकन पार्टी हिलेरी क्लिंटन को बड़ा जिम्मेदार ठहरा रही है। अमेरिका की चुनावी सरगर्मी में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। अचानक 115 अरब रुपए नकद ईरान भेजने का मामला उठ गया। बराक ओबामा की सरकार ने कहा कि उसने ईरान के साथ दशकों पुराने वित्तीय विवाद का निपटारा करने के लिए इस साल जनवरी में 115 अरब रुपए नकद पहुंचाए थे। यह राशि ऐसे कार्गो विमान में रखी गई थी, जिस पर सामान की पहचान सील नहीं थी। इतनी राशि की घोषणा तब की गई थी, जब ईरान से परमाणु डील हुई और उसने चार बंधक अमेरिकियों को रिहा किया था। रिपब्लिकन पार्टी ने इस मुद्दे को बड़ी चुनावी बहस में बदल दिया और कहा कि ऐसा कोई पुराना विवाद था ही नहीं, सरकार ने एक तुच्छ देश को फिरौती के तौर पर इतनी बड़ी राशि अदा की है। यह विषय पहले राजनीतिक विवाद बना, फिर इसने ज्यादा तूल तब पकड़ लिया जब द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इसकी विस्तृत जानकारी छापी। उसमें बताया गया कि पहली किस्त के तौर पर ईरान को 2720 करोड़ रुपए (400 मिलियन डॉलर) अमेरिकी बंधक को रिहा करने के बदले चुकाए गए हैं। इससे सरकार का झूठ सामने आ गया। चुनावी वातावरण में इसकी आलोचना होने लगी। रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप भी इस मुद्दे को भुनाने से नहीं चूके। उन्होंने इस भुगतान के लिए तुरन्त अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन पर हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि इस फिरौती की बातचीत हिलेरी ने ही शुरू की थी और उन्होंने दल का नेतृत्व किया था। हालांकि द वॉल स्ट्रीट जर्नल की खबर को व्हाइट हाउस ने खारिज करते हुए कहा कि वह छह महीने पुरानी खबर है।
-अनिल नरेन्द्र


स्कॉर्पियन डाटा लीक से हमारी सुरक्षा को चुनौती

अगर द आस्ट्रेलियन अखबार के आंकड़ों पर यकीन करते हुए मान लें कि फ्रांस की कंपनी डीसीएनएस द्वारा मुंबई के मडगांव बंदरगाह पर बनाई जा रही स्कॉर्पियन श्रेणी की छह पनडुब्बियों के 22 हजार पेज के आंकड़े चोरी हो गए तो यह न सिर्प पनडुब्बी बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी के लिए चिन्ता का विषय है, बल्कि भारत समेत कई अन्य देशों के लिए भी परेशान होने की वजह है। भारत डीसीएनएस से छह स्कॉर्पियन पनडुब्बियां खरीद रहा है, इसके अलावा आस्ट्रेलिया, मलेशिया, चिली और ब्राजील के पास भी ये पनडुब्बियां हैं या इन देशों का भी उससे सौदा हो चुका है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर भारत की समुद्री सुरक्षा का काफी दारोमदार है लेकिन यदि इससे जुड़ी गोपनीय जानकारियां पहले ही दुश्मन के पास पहुंच जाएंगी तो इससे हमारी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होगा। आस्ट्रेलियाई अखबार स्कॉर्पियन से संबंधित 22 हजार दस्तावेजों के लीक होने की जो खबर दी है उसमें इसकी गति से  लेकर उसके सेंसर, नेवीगेशन प्रणाली और संचार क्षमता की जानकारियां हैं, जो बेहद संवेदनशील कही जा सकती हैं। यदि इसके पीछे हैविंग है जैसा कि रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने आशंका जताई है तो भी इस पनडुब्बी से संबंधित अहम जानकारियां अब इंटरनेट के जरिये सार्वजनिक हो चुकी हैं और इनके पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी मुल्कों के हाथों में चले जाने का खतरा है, जिनकी बढ़ती साझेदारी भारत के लिए चुनौती बनती जा रही है। जो जानकारियां लीक हुई हैं, उनमें इन पनडुब्बियों की तमाम अहम जानकारियां जैसे कौन-सी फ्रीक्वेंसी इस्तेमाल करती है, विभिन्न गतियों में इसकी आवाज कैसी होती है, पनडुब्बी में ऐसे सुरक्षित स्थान कौन से हैं जहां पर होने वाली बातचीत को दुश्मन के उपकरण नहीं पकड़ सकते। यह तो शायद जांच के बाद ही पता चल सके कि ये दस्तावेज लीक कहां से हुए? एक आशंका यह है कि यह भारत से लीक हुई हो, जहां पनडुब्बी बनाने वाली कंपनी भारत के लिए यह पनडुब्बियां बना रही है। लेकिन ज्यादा आशंका इसी बात की है कि फ्रांस में कंपनी के मुख्यालय से ही ये दस्तावेज लीक हुए हैं। ज्यादा आशंका यही है कि ये दस्तावेज सन् 2011 में कंपनी के साथ काम करने वाले किसी व्यक्ति ने चुराए हों। इसीलिए भारत का यह कहना भी सही है कि जो जानकारी लीक हुई है, वह पुरानी है और इससे पनडुब्बी की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। लेकिन स्कॉर्पियन पनडुब्बी की डिजाइन अलग-अलग देशों के लिए भले ही भिन्न होती हो, लेकिन मूल तकनीक समान होती है। इसलिए यह आंकड़े भारतीय पनडुब्बी के नहीं भी हों तो भी चिन्ताएं कम नहीं हैं। यदि आंकड़े विशेष रूप से भारतीय पनडुब्बियों के बारे में लीक हुए हैं तो ज्यादा चिन्ताजनक स्थिति है। नौसेना को निर्माणाधीन पनडुब्बियों के डिजाइन में बदलाव जैसे कदम उठाने होंगे।

Friday 26 August 2016

रियो का प्रदर्शन टोक्यो के लिए शुभ संकेत व उम्मीद है

जीका का डर, आतंकी हमले का खतरा, जहरीले पानी आदि तमाम तरह की चुनौतियों के साथ शुरू हुआ 31वां ओलंपिक गेम्स शांतिपूर्वक और शानदार तरीके से खत्म हो गए। बेशक भारत के लिए यह गेम्स उतने अच्छे नहीं रहे जितनी उम्मीद की जा रही थी और अंत में हमारे हाथ सिर्प दो मैडल ही लगे पर रियो से निराशा खेल प्रेमियों के लिए कई उम्मीदें भी बनी हैं। इस बार हमने 15 खेलों में भाग लिया, जिसमें नौ खेलों में हमारा प्रदर्शन पिछली बार से बेहतर रहा। जिम्नास्टिक और नौकायान जैसे खेलों में भी हम पदक के नजदीक पहुंच गए थे। कुल 118 खिलाड़ियों के साथ ओलंपिक में भागीदारी भी एक रिकार्ड रहा। रियो बीता कल हो चुका है और टोक्यो आने वाला कल है। इन खेलों में भारत का शानदार प्रदर्शन रहाöजिम्नास्टिक में दीपा कर्माकर पहले ही प्रयास में अंतिम चार तक पहुंची। हॉकी में 36 साल बाद महिला टीम ने क्वालीफाई किया और पुरुष टीम अंतिम आठ तक पहुंची। 3000 मीटर स्टीपल मेस में ललिता बाबर ने राष्ट्रीय रिकार्ड के साथ दुनिया में टॉप दस रनरों में पोजीशन बनाई। बैडमिंटन में 2012 में साइना नेहवाल को कांस्य पदक मिला था, जबकि सिंधु ने अब की बार रजत पदक जीता। महिला कुश्ती में भारत के इतिहास में पहली बार साक्षी मलिक ने कांस्य पदक हासिल किया। लंदन ओलंपिक में छह मैडल जीतने के साथ ही रियो में और बेहतर किए जाने की उम्मीद की जा रही थी। पहली बार क्वालीफाई करने वाले एथलीटों की संख्या 100 के पार पहुंची। कई एथलीटों को पक्का दावेदार बताकर कुल संभावित मैडल की संख्या आसानी से 10 के पार जाने की उम्मीद थी। पर हकीकत में कई एथलीटों का प्रदर्शन उम्मीदों के आसपास भी नहीं ठहरा। भारत के टॉप शूटर्स में से एक जीतू राय मुल्क की सबसे बड़ी मैडल होप थे। 10 मीटर एयर पिस्टल में वर्ल्ड चैंपियनशिप का गोल्ड जीतने वाले राय को 50 मीटर इवेंट में भी विपक्षी तगड़ा दावेदार मानकर चल रहे थे। लेकिन दोनों ही इवेंट में वह बड़ी मुश्किल से फाइनल में जगह बना सके। योगेश्वर दत्त लंदन में ब्रांज मैडल जीते थे। रियो में वह पहले ही चक्र में बाहर हो गए। लंदन ओलंपिक के ब्रांज मैडललिस्ट शूटर गगन नारंग ने 10 मीटर एयर राइफल, 50 मीटर एयर राइफल, 50 मीटर राइफल, तीन पोजीशन में मैडल के लिए निशाना लगाने से चूक गए और वह तीनों इवेंटों में क्रमश 23, 13 और 33वीं पोजीशन में रहे। विमिन्स रिकर्व अमिटी टीम में भारत का सफर अगर ज्यादा दूर तक नहीं चला तो उसकी बड़ी वजह एक बार फिर भारत की स्टार आर्यर दीपिका कुमारी रही। अहम मौकों पर वह परफैक्ट 10 नहीं लग सकी। बाद में हार के लिए मौसम को जिम्मेदार ठहरा दिया। हमारी खेल एसोसिएशनों को चाहिए कि अभी से टोक्यो ओलंपिक की तैयारी में जुट जाएं। अगर ये एसोसिएशन पूरे साल एक्टिव रहे तो एथलीटों का प्रदर्शन और बेहतर हो सकता है। लगातार दो ओलंपिक्स में मैडल दिलाकर गोपी चन्द ने दिखा दिया कि अगर खिलाड़ियों को सही से तराशा जाए तो ओलंपिक्स में मैडल जीतना इतना मुश्किल भी नहीं। आंकड़ों के मुताबिक देश की ज्यादातर आबादी गरीब है। लोग बच्चों को ग्राउंड पर भेजने की जगह काम पर लगाने पर मजबूर हैं। जो बच्चे खेलना भी चाहते हैं वो तमाम प्रतिभा के बावजूद गरीबी के चलते खेल छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। भूखे पेट खेल कर कोई चैंपियन कैसे बन सकता है। सरकार भी इनकी तरफ ध्यान नहीं देती।

-अनिल नरेन्द्र

जेएनयू का अनमोल `रत्न'?

जेएनयू में देश विरोधी नारेबाजी के आरोपी छात्रों के समर्थक नेता अनमोल रत्न ने विश्वविद्यालय की एक पीएचडी छात्रा को हॉस्टल में बुलाकर दुष्कर्म किया। अनमोल ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आईसा) का दिल्ली का अध्यक्ष है। जानकारी के मुताबिक 28 वर्षीय पीड़िता जेएनयू में पीएचडी प्रथम वर्ष में शोध कार्य कर रही है। रविवार को पीड़िता ने वसंत पुंज नार्थ थाने में अपने साथ बलात्कार होने की लिखित शिकायत दर्ज कराई। मेडिकल में बलात्कार की पुष्टि हुई है। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि पीड़िता ने अनमोल रत्न के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है। पीड़िता ने पुलिस को बताया है कि गत जून महीने में उसने एक मराठी फिल्म सैराठ देखी थी। उस फिल्म की कॉपी लेने के लिए अपनी फेसबुक पर भी लिखा था। आरोपी अनमोल ने उससे सम्पर्प किया और फिल्म की कॉपी देने की बात कहकर उसे अपने ब्रह्मापुत्र हॉस्टल में बुलाया था। गत 20 अगस्त को वह अनमोल के पास हॉस्टल गई। अनमोल ने उसे कोल्ड ड्रिंक पिलाई। उसके बाद वह बेहोश हो गई। आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया। विरोध करने पर उसे धमकी दी। अनमोल रत्न तब से फरार है और अभी तक पुलिस के हाथ नहीं आया। जेएनयू में रेप के इस मामले ने चुनावों से पहले ही माहौल को एक बार फिर से गरमा दिया है। इस मामले के बाद जहां प्रशासन ने घटना की निन्दा करते हुए भविष्य में ऐसी घटना को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कही है वहीं सोमवार को एबीवीपी काफी सक्रिय रहा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने वामपंथी विचारधारा पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि कश्मीर में सैनिकों के ऊपर दुष्कर्म का आरोप लगाने वालों का चेहरा बेनकाब हो गया है। आईसा और वामपंथी कार्यकर्ता कभी ब्लैकमेल करके, कभी भय दिखाकर, कभी मदद के बहाने और कभी नशे-सा स्वाद चखा कर भोलीभाली बहनों को अपना शिकार बनाते हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में यह पहली घटना नहीं है। जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और कई शिक्षकों के ऊपर भी इस तरह के आरोप लग चुके हैं। कार्यकर्ता सौरभ शर्मा ने आरोप लगाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में एक बहुत बड़ा तबका वामपंथियों का है जो ऐसे मामलों की लीपापोती करते हुए केस को खत्म कर देते हैं। हम लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यही लोग हैं जो बेखौफ आजादी, पिंजरा तोड़ और महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं और दूसरी तरफ महिला सशक्तिकरण की बात करते थकते नहीं और हकीकत में ऐसी घिनौनी हरकतें करते हैं। अनमोल रत्न की गिरफ्तारी के लिए पुलिस संभावित ठिकानों पर छापेमारी कर रही है। मगर सूत्रों के अनुसार आरोपी जेएनयू परिसर में ही छिपा हो सकता है।

Thursday 25 August 2016

दुर्लभ जड़ी-बूटियों की खोज

यह बहुत पसन्नता का विषय है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत की पुरानी दवा पद्धति को बढ़ावा मिला है। चाहे वह आयुर्वेदिक हो, चाहे हिकमत हो भारतीय कंपनियों ने आधुनिक तकनीक, पैकिंग करके न केवल भारत में ही बल्कि पूरी दुनिया में देसी दवाओं की लोकपियता बढ़ाई है। डाबर, पतंजलि, वैद्यनाथ, हिमालय, हमदर्द कंपनियों की दवाएं आज सारी दुनिया में जा रही हैं। आयुष मंत्रालय ने भी आयुर्वेदिक औषधियों का निर्यात बढ़ाने का निर्णय लिया है। वर्तमान में 150 देशों में इन औषधियों का निर्यात होता है। वैश्विक बाजार पर और पकड़ बनाने के लिए इन औषधियों में विकास की और संभावनाओं का पता लगाया जाएगा। औषधि निर्माताओं, उद्यमियों और आयुष संस्थान के पतिनिधियों को अंतर्राष्ट्रीय पदर्शनियों और मेलों में भी भेजने की योजना है। इन आयुर्वेदिक औषधियों में हालांकि थोड़ी कमी रिसर्च की है। देखा यह गया कि कभी-कभी इसके साइड इफेक्ट्स का अनुमान नहीं लगाया जाता। नतीजा यह होता है कि जिस मर्ज के लिए दवा ली जाती है उसमें तो आराम मिल जाता है पर शुगर, बीपी इत्यादि बढ़ जाती है। इसलिए इन कंपनियों को अपनी रिसर्च बढ़ानी होगी। हमारे पुराणों और धार्मिक पुस्तकों में संजीवनी के समान दुर्लभ, जड़ी बूटियों का अक्सर जिक आता है। आयुष मंत्रालय संजीवनी के समान दुर्लभ जड़ी-बूटियों की खोज में राज्यों की मदद करेगा। केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद ने पाचीन पांडुलिपियों के पुनरुद्धार और उनके फिर से पकाशन की मुहिम तेज कर दी है। इसके तहत दुर्लभ पांडुलिपियों में 30 पुस्तकों का पकाशन हो चुका है। इनमें अभिनव चिंतामणि, अष्टांग संग्रह, चरक संहिता, चारुचर्ण, धनवंतरी सार निधि, इसयंद्राशु सहस्त्र योग, वैद्य मनोरमा, वैद्यक संग्रह जैसी पुस्तकें शामिल हैं। वर्तमान में देश भर में सिर्फ छह पतिशत आबादी भारतीय चिकित्सा पद्धति से इलाज कराती है। एक सर्वे के मुताबिक स्वास्थ्य संबंधी सामाजिक उपभोग पर कराए इस सर्वे ने बताया है कि आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथिक, योग और पाकृतिक चिकित्सा से उपचार कराने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है लेकिन यह अब भी कम है। केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने यूनानी पद्धति की पाचीन पांडुलिपियों के संरक्षण का अभियान भी शुरू किया है। इसमें 50 पांडुलिपियों को पुस्तक के रूप में पकाशन का निर्णय लिया गया है ये सभी पांडुलिपियां, उर्दू, अरबी और फारसी में है। राष्ट्रीय औषधियों बोर्ड ने आयुर्वेद की पाचीन चिकित्सा पद्धति के विकास के लिए केंद्र पायोजित कार्यकम शुरू किया है, इसके तहत उत्तराखंड और अन्य राज्यों में जड़ी-बूटियों की खोज और उनके संरक्षण में केंद्रीय मदद बढ़ाने का पस्ताव है। उत्तराखंड में चिकित्सा वानस्पतिक सर्वे भी शुरू किया जा रहा है।

-अनिल नरेंद्र

दहशतगर्दी की वजह से दिवालिया होता जा रहा पाकिस्तान

कश्मीर में दहशतगर्दी को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान जिस ढंग से पैसे खर्च कर रहा है उससे उसका खजाना खाली होता जा रहा है। पिछले 15 साल में पाकिस्तान को आतंकवाद की वजह से पत्यक्ष और अपत्यक्ष तौर पर 11,800 करोड़ डॉलर (करीब 7.90 लाख करोड़ रुपए ) से भी ज्यादा का नुकसान हो चुका है। बावजूद इसके वह अपने नापाक इरादों से बाज नहीं आ रहा है। पाकिस्तान के आर्थिक सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर आतंकवाद की वजह से अलग-अलग क्षेत्र में हुए आर्थिक नुकसान का जिक किया गया है। आतंकवाद की वजह से पाकिस्तान की साख में आई गिरावट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसे 2014-15 में 455 करोड़ डॉलर और 2015-16 में 204 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ। अगर पिछले चार साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2009-10 में उसे 1356 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ था। जो 2010-11 में बढ़कर 2377 करोड़ डॉलर हो गया। 2011-12 में 1198 करोड़ डॉलर। 2012-13 में 997 और 2013-14 में 770 करोड़ डॉलर। यह आंकड़े पाकिस्तान की आर्थिक सर्वे fिरपोर्ट में दिए गए हैं। जम्मू-कश्मीर में तीन साल में 738 हमले किए हैं इन पाक समर्थित दहशतगर्दों ने। 2013 में 170 हमले हुए। 277 घुसपैठ के पयास हुए। 38 आतंकी मारे गए। 53 भारतीय जवान शहीद हुए और 15 नागरिकों की मौत हुई। 2014 में यह हमले बढ़े और 222 तक पहुंच गए। घुसपैठ के 222 पयास हुए और 52 आतंकी मारे गए। 47 जवान (हमारे) शहीद हुए और 28 नागरिक मारे गए। 2015 में 208 हमलों में 46 आतंकी मारे गए और 39 जवान शहीद हुए। 121 बार घुसपैठ हुई और 17 निर्दोषों की जान गई। 2016 में अब तक 138 हमले हुए हैं। 57 घुसपैठ और 5 आतंकी व 29 जवान शहीद हुए हैं। 4 नागरिक भी मारे गए हैं। कश्मीर में दहशतगर्दी को बढ़ावा देने के लिए अब पाकिस्तान ने खाड़ी के देशों में काम करने वाले कश्मीरियों को मोहरा बनाया है। उनके खातों में विदेश से पैसा भेजा जाता था और बाद में आतंकियों और पाकिस्तानी एजेंटों तक पहुंच जाता था। अमेरिका ने भी अब पाकिस्तान को देने वाली माली इमदाद पर रोक लगा दी है। पेंटागन ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 30 करोड़ डॉलर की सैन्य सहायता रोक दी है। सारी दुनिया अब यह मानने पर मजबूर होती जा रही है कि दुनिया में दहशतगर्दी फैलाने में पाकिस्तान का बहुत बड़ा हाथ है। यह भी कहा जा रहा है कि पाकिस्तान आतंक की नर्सरी बन गया है। हां चीन अब भी पाकिस्तान की आर्थिक मदद कर रहा है और उसी से पाकिस्तान जिंदा भी है। पर अगर आतंकवाद को इसी स्पीड से पाकिस्तान बढ़ावा देता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पाक दिवालिया हो जाएगा।

Wednesday 24 August 2016

जांबाज कांस्टेबल आनंद सिंह के जज्बे को सलाम

बाहरी दिल्ली देहात में लगातार बिगड़ रही कानून व्यवस्था ने इलाके के लोगों की नींद उड़ा दी है। लोग परेशान हैं कि घर-परिवार और समाज की उन्नति के लिए जुटने के बजाय युवा वर्ग अपराध की ओर बढ़ रहा है। हालत यह है कि अब खाकी का खौफ भी अपराधियों में नजर नहीं आता है। यही वजह है कि पुलिस वालों पर अकसर हमले होते हैं और शुक्रवार रात तो अपराधियों का मुकाबला करते हुए एक पुलिस सिपाही भी शहीद हो गया। बवाना इंडस्ट्रीयल एरिया में शुक्रवार देर रात बाइक सवार बदमाशों का मुकाबला करते हुए दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल आनंद सिंह (49) की जान चली गई। बदमाशों ने उन्हें नजदीक से गोली मारी। पुलिस वालों का नाम सुनते ही अकसर लोगों के दिमाग में नकारात्मक छवि ही बनती है, लेकिन कुछ पुलिस वाले वर्दी की इज्जत रखते हुए अपने काम को पूरी ईमानदारी से करने में भी नहीं हिचकते, चाहे ऐसा करने में उन्हें अपनी जान ही क्यों न गंवानी पड़े। ऐसा ही वाकया शुक्रवार रात को दिल्ली के बवाना में नजर आया जब दिल्ली पुलिस के इस जांबाज कांस्टेबल ने बदमाशों को पकड़ने के लिए जान की बाजी लगा दी, लेकिन बदमाशों ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। पुलिस के मुताबिक हरियाणा के सोनीपत के जाटी कलां गांव में रहने वाले कांस्टेबल आनंद सिंह शुक्रवार रात बवाना के औद्योगिक इलाके के सेक्टर-5 में अपनी ड्यूटी पर तैनात थे, तभी उन्हें एक महिला के चिल्लाने और मदद मांगने की आवाज सुनाई दी। मीना नाम की यह महिला समोसा चौक के पास रेहड़ी लगाती हैं। मीना रात को दुकान बंद करके घर जा रही थीं, तभी मोटर साइकिल सवार तीन बदमाशों ने उसे लूटने की कोशिश की। उसने शोर मचाया तो पास ही गश्त कर रहे आनंद सिंह बदमाशों को पकड़ने लगे। इसी दौरान दोनों में धक्का-मुक्की हुई और आनंद ने एक बदमाश को पकड़ लिया। अपने साथी को पुलिस की गिरफ्त में देख दूसरे बदमाश ने आनंद पर गोली चला दी। गोली लगने के बाद आनंद सिंह नीचे गिर गए, लेकिन फिर उठकर बदमाशों का पीछा करने लगे तभी एक बदमाश ने उनके सिर पर हेलमेट मारकर उन्हें जमीन पर गिरा दिया। गंभीर रूप से घायल आनंद सिंह को महर्षि बाल्मिकी अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आनंद सिंह के जज्बे को सलाम किया है। दिल्ली सरकार ने शहीद होने वाले जांबाज पुलिसकर्मी के परिवार को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की है जिसका हम तहेदिल से स्वागत करते हैं। नैतिकता, सामाजिकता व कानून को एकदम ताक पर रखकर नशे के आदी इन युवाओं के मन में न तो महिलाओं और न ही किसी बुजुर्ग की शर्म रह गई है। हम जांबाज कांस्टेबल आनंद सिंह के जज्बे को सलाम करते हैं और उनके परिवार को यह बताना चाहते हैं कि उनके दुख में हम भी शामिल हैं।

-अनिल नरेन्द्र

पदक जीतने पर धनवर्षा की जगह ट्रेनिंग पर खर्च किया जाए

रियो में पदक जीतने के बाद से ही बैडमिंटन सिल्वर मैडल जीतने वाली पीवी सिंधु और साक्षी मलिक को पहलवानी में कांस्य पदक जीतने पर इनामों की बौछार हो रही है। अब तक सिंधु को तेलंगाना सरकार ने पांच करोड़ रुपए, आंध्र प्रदेश सरकार ने तीन करोड़ रुपए, दिल्ली सरकार ने दो करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। इसके अलावा तीन करोड़ रुपए उन्हें अन्य खेल संगठन देंगे। साथ ही आंध्र सरकार ने उन्हें एक हजार वर्ग फुट जमीन और `' ग्रेड सरकारी नौकरी भी देने का फैसला किया है। कुल मिलाकर अब तक सिंधु को 13 करोड़ रुपए नकद की घोषणा हो चुकी है। इसके अलावा उन्हें बीएमडब्ल्यू कार भी मिलेगी। इसी तरह साक्षी मलिक को भी हरियाणा सरकार 2.5 करोड़, दिल्ली सरकार एक करोड़ और तेलंगाना सरकार एक करोड़ रुपए देंगी। साक्षी को रेलवे 50 लाख और पदोन्नति देगा। उनके पिता जो बस कंडक्टर थे, को भी प्रमोशन मिलेगा। यह सब करीब पांच करोड़ रुपए बनता है। जरा सोचिए, अगर खिलाड़ियों को संवारने पर इतना खर्च किया जाता तो शायद नतीजे कुछ और होते। यह हम नहीं कह रहे। ओलंपिक में सर्वाधिक पदक जीतने वाले अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के आंकड़े बताते हैं कि वहां खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और सुविधाओं पर ज्यादा खर्च किया जाता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका में एक खिलाड़ी पर 74 करोड़ रुपए रियो ओलंपिक की तैयारी पर खर्च हुए। लेकिन इनाम में स्वर्ण पदक जीतने वाले को सिर्प 16 लाख रुपए इनाम मिलता है। ब्रिटेन जिसने रियो ओलंपिक में कमाल कर दिया और चीन जैसे देश को पछाड़ दिया, प्रति खिलाड़ी 48 करोड़ रुपए उसकी प्रतिभा निखारने पर खर्च करता है। पदक जीतने वाले को कोई अलग इनाम नहीं मिलता। अब बात करते हैं चीन की। प्रति खिलाड़ी पर चीन 47 करोड़ रुपए खर्च करता है और स्वर्ण पदक जीतने वाले विजेता को 24 लाख रुपए नकद इनाम दिया जाता है। अब अपना हाल भी जान लें। केंद्र सरकार ने रियो ओलंपिक जाने वाले सभी खिलाड़ियों पर 160 करोड़ खर्च किए। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की स्थायी समिति के अनुसार भारत में सिर्प तीन पैसे प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खेल पर खर्च होता है। अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के आंकड़े बताते हैं, यह देश खिलाड़ियों को बहुत ही कम नकद पुरस्कार देते हैं। यह देश खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और सुविधाओं पर ज्यादा खर्च करते हैं। यही कारण है कि पदक-तालिका में ये देश आगे रहते हैं। पदक जीतने के बाद भारत में राज्य सरकारें और खेल संगठन अपनी तिजोरियां विजेताओं के लिए खोल देते हैं। लेकिन इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहे एथलीट अपनी सरकारों से भी रुपए मिलने की आस लगाए-लगाए कंगाल हो जाते हैं। अब समय आ गया है कि पदकों पर खुश होने की जगह पदकों की तैयारियां करने पर ज्यादा फोकस किया जाए। देश में खेल राज्यों का विषय है, लेकिन तैयारियों पर पूरा खर्च केंद्र सरकार करती है। पदक जीतने पर यही राज्य सरकारें करोड़ों इनाम देने की घोषणा करके अपना प्रचार करती हैं। यही कारण है कि कभी-कभी राज्य सरकार ऐसे एथलीटों को भी प्रदेश का बता देती है जो वहां पैदा भी नहीं हुए थे और न ही खेले थे। इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने भी साक्षी मलिक को रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार देने की घोषणा की लेकिन ऐसे राज्यों को सोचना चाहिए कि आखिर उनके प्रदेश के एथलीट खेलों में अच्छा प्रदर्शन क्यों नहीं कर रहे? सिंधु ने 2015 में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। अगर उस समय ही इतनी मदद की जाती तो आज वह स्वर्ण जरूर लाती। वह तो केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले भारतीय खेल प्राधिकरण और गोपी चन्द अकादमी का भला हो, जिन्होंने उसकी मदद की। केंद्र सरकार को नीति बनानी चाहिए कि सिर्प वही इनाम की घोषणा करे, क्योंकि राज्य सरकारों का इस तरह का व्यवहार बाकी एथलीटों को गलत रास्ता अपनाने पर भी मजबूर करता है। फिर पदक जीतने के लिए एथलीट गलत रास्ते भी कभी-कभी अपना लेते हैं। राज्य सरकारों को इनामों की राशि एथलीटों की ट्रेनिंग और सुविधाओं पर लगानी चाहिए और यह काम स्कूली स्तर से ही शुरू होना चाहिए।

Tuesday 23 August 2016

27 दिन की कुश्ती में डोपिंग से हारे नरसिंह यादव

रियो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन के बीच नरसिंह पंचम यादव पर वैश्विक डोपिंग निरोधक एजेंसी (वाडा) की तरफ से चार साल के बैन लगाने से इस होनहार पहलवान के लिए तो भारी धक्का है ही, लेकिन इस हश्र में हमारा सारा खेल प्रबंधन भी कोई कम जिम्मेदार नहीं है। पुरुष फ्री स्टाइल कुश्ती के 74 किलो वर्ग का प्रतिभागी नरसिंह ओलंपिक से पहले दो टेस्ट में विफल पाया गया। लेकिन इस पर गंभीरता जताने की बजाय हमारे खेल तंत्र ने इसे जिस गैर पेशेवर ढंग से लिया वह केवल हैरान करने वाला नहीं था बल्कि इससे भारतीय खेलों के माथे पर दाग भी लग गया। अगर नाडा ने तभी इस पर कुछ कार्रवाई की होती तो ओलंपिक के दौरान देश की ऐसी किरकिरी नहीं होती। पर सबने बगैर ठोस सबूत के नरसिंह के इस तर्प को स्वीकार कर लिया कि उसके खिलाफ साजिश हुई है। अगर साजिश हुई ही थी तो क्या उसके सबूत नहीं जुटाने चाहिए थे और कसूरवारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी? सिर्प यही नहीं कि दो-दो डोप टेस्ट में फेल होने के बावजूद उसे क्लीन चिट देने में जल्दबाजी की गई, क्लीन चिट क्यों दी गई, इस बारे में कुछ सार्वजनिक नहीं किया गया, बल्कि हमारा खेल तंत्र शायद यह भी उम्मीद कर रहा था कि वाडा हमारी इन सफाइयों को जस का तस स्वीकार कर लेगा। जबकि तथ्य यह है कि डोपिंग मामलों में खुद को निर्दोष बताने का तर्प ज्यादातर बेअसर साबित होता है। वैसे तो दुनिया के हर देश में इस तरह के कारनामे होते हैं, लेकिन उनमें खेल की भावना इतनी प्रबल है और वहां अच्छे व सफल खिलाड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यह सब चीजें अपवाद मान कर किनारे कर दी जाती हैं। लेकिन भारतीय खेल जगत में जब नरसिंह यादव जैसे चन्द ही विकल्प हों तो उनकी अच्छाई राष्ट्रीय उत्सव का विषय बनेगी तथा बुराई अवसाद का। दुनिया में जहां भी मनुष्य हैं वहां ईर्ष्या की भावना रहेगी और वह अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने की कोशिश भी करेगा। किन्तु उसी के साथ एक स्वस्थ खेल भावना भी जुड़ी है जो वहां के खिलाड़ियों द्वारा पदकों की बारिश कर देती है। वाडा ने नरसिंह को डोपिंग का दोषी तो पाया ही है, यह भी कहा कि सोनीपत के साई कैंपस में सीसीटीवी कैमरों की मौजूदगी में किसी भी खिलाड़ी के भोजन में मिलावट करना असंभव है। हमारा खेल तंत्र यह तो कह रहा है कि खेल पंचाट यानि वाडा ने यह फैसला अचानक लिया है, लेकिन वह यह नहीं बता रहा कि रियो में नरसिंह का बचाव करने के लिए उसने न तो कोई वकील की व्यवस्था ही की, बल्कि वाडा की दलीलों व आरोपों का संतोषजनक जवाब भी नहीं दिया। पूरा प्रकरण हमारी खेल व्यवस्था की पोल खोलता है और नाडा की साख भी प्रभावित करता है।

-अनिल नरेन्द्र

मैंने गायब कराई थी बोफोर्स की फाइल ः नेताजी

नेताजी मुलायम सिंह यादव सनसनीखेज बातों के लिए मशहूर हैं। वह कभी-कभी ऐसी बात कह डालते हैं जिससे विवाद पैदा हो जाता है। ताजा रहस्योद्घाटन में नेताजी ने लखनऊ में बुधवार को डॉ. राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के 10वें समारोह पर बोलते हुए कहा कि रक्षामंत्री रहते उन्होंने जम्मू-कश्मीर के दुर्गम क्षेत्रों में सेना के हालात देखे हैं। वहां रात गुजारी है। यहां तक तो ठीक था पर उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बोफोर्स तोप को लेकर राजीव गांधी पर बहुत गंभीर आरोप लगे। हमने इस तोप को चलते देखा है, इसने सीमावर्ती इलाकों में अच्छा काम किया। हमने रक्षामंत्री रहते बोफोर्स तोप मामले को आगे नहीं बढ़ाया। हमने इसकी फाइल ही गायब कर दी। उन्होंने कहाöहमारी राय है कि राजनीतिक लोगों पर मुकदमे नहीं चलने चाहिए। राजनीति आसान काम नहीं है। आप किसी एमएलए को रात के दो बजे भी उठा सकते हैं लेकिन क्या आईएएस और आईपीएस अधिकारी को रात में दो बजे जगा सकते हैं? राजनीतिक लोगों पर बदले की भावना से कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। उन पर मुकदमे नहीं चलने चाहिए। सियासी लोग जेल जाएंगे तो राजनीति कैसे होगी? वैसे तो यह गढ़े मुर्दे उखाड़ने वाली बात है पर तब भी पाठकों को बता दें कि आखिर बोफोर्स तोप मुद्दा क्या था? राजीव गांधी सरकार ने मार्च 1986 में स्वीडन की एवी बोफोर्स से 400 हाविट्जर तोपें खरीदने का करार किया था। तोपों की खरीद में दलाली का खुलासा अप्रैल 1987 में स्वीडन रेडियो ने किया था। रेडियो के मुताबिक बोफोर्स कंपनी द्वारा 1437 करोड़ रुपए का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अफसरों को रिश्वत दी गई। इस खुलासे से भारतीय राजनीति में खलबली मच गई थी। 1989 के लोकसभा चुनाव में बोफोर्स को स्वर्गीय वीपी सिंह ने मुख्य मुद्दा बना दिया। चुनाव में राजीव गांधी सरकार सत्ता से बाहर हो गई। वीपी सिंह राष्ट्रीय मोर्चा (नेशनल फ्रंट) सरकार के प्रधानमंत्री बन गए। 1990 में नई सरकार ने बोफोर्स दलाली की जांच सीबीआई को सौंप दी। कई कानूनी अड़चनों के बाद सीबीआई 1997 में स्वीडन से बोफोर्स दलाली से जुड़े 500 पेज का डाक्यूमेंट लाने में कामयाब रही। इसके आधार पर सीबीआई ने 1999 में विन चड्ढा, ओट्टावियो, क्वात्रोची, पूर्व डिफेंस सैकेटरी एसके भटनागर व अन्य के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। चार्जशीट में पूर्व पीएम राजीव गांधी को भी आरोपी बनाया गया था। 2000 में सीबीआई ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की। 2002 में दो मुख्य आरोपियों विन चड्ढा और एसके भटनागर की मृत्यु हो गई। 2004 में दिल्ली हाई कोर्ट ने राजीव गांधी के खिलाफ तमाम आरोपों को खारिज कर दिया। सवाल यह है कि नेताजी ने गढ़े मुर्दे आखिर क्यों ताजा करने की कोशिश की है?

Sunday 21 August 2016

बेटियों ने बचाई रियो में देश की इज्जत

शुक्र है कि भारत की बेटियों ने देश की इज्जत रियो ओलंपिक में बचा ली। साक्षी मलिक ने पहले फ्री स्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक जीत कर और फिर पीवी सिंधु ने रजत पदक जीत कर निराश देश को थोड़ी खुशी जरूर दी। अब योगेश्वर दत्त का मैच बाकी है। नरEिसह तो चार वर्षों के लिए बैन हो गए हैं। भारत ने रियो में 119 खिलाड़ी भेजे इस उम्मीद में कि लंदन ओलंपिक के छह मैडल से कम से कम दोगुने मैडल तो आएंगे। लंदन की तुलना में इस बार सुविधाएं कई गुना बढ़ी हैं। बेशक दीपा कर्माकर के प्रदर्शन और हौंसले ने सबका दिल जीत लिया, लेकिन बेहद मामूली अंतर से पदक उनके हाथ से फिसल गया। साक्षी मलिक ने शायद अपने मन में हारने से इंकार कर दिया था इसीलिए आखिरी मिनटों में उन्होंने बाजी पलट दी। सिंधु की जितनी तारीफ की जाए कम है। दुनिया की नम्बर वन बैडमिंटन खिलाड़ी को जीत के लिए उन्होंने चने चबवा दिए। इन तीनों महिलाओं ने यह दिखा दिया कि बेटियों को कभी भी कम कर न आंकें। अगर और बेहतर सुविधाएं मिलतीं तो और भी बेहतर परिणाम आ सकते थे। साक्षी और सिंधु के पदकों के जरिये देश में एथलीटों के संघर्ष से जुड़ाव महसूस करने वालों को कितनी ताकत दी है और लड़कियों का हौंसला कितना बढ़ाया है। इसका अंदाजा क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग की प्रतिक्रिया से होता है। साक्षी की जीत के बाद सहवाग ने ट्वीट कियाöपूरा देश इस बात का साक्षी है, जब कोई मुश्किल होती है तो इस देश की लड़कियां ही मालिक हैं, थैंक यू साक्षी मलिक। यह  बात खास तौर पर ध्यान देने लायक है कि रियो ओलंपिक का यह पहला मैडल हरियाणा की एक बेटी कुश्ती में लेकर आई। न केवल इसलिए कि हरियाणा खाप पंचायतों के स्त्राr विरोधी फैसलों के लिए जाना जाता रहा है, बल्कि इसलिए भी कि भारत में महिला कुश्ती महज एक खेल नहीं, अपने आपमें एक मूल्य है। अब भारतीय खेलों के इतिहास में पदक जीतने वाली महिला के तौर पर साक्षी और सिंधु का नाम रियो ओलंपिक की उपलब्धि के साथ चमकता रहेगा। साक्षी और सिंधु की कामयाबी ने निश्चित तौर पर मायूस हो रहे देश को थोड़ी खुशी जरूर दी है। पर कटु सत्य तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता की दुनिया में भारत को अभी वहां पहुंचना बाकी है, जहां अपेक्षाएं कुछ कम विकसित देश पदकों की दौड़ में अमेरिका, रूस या चीन जैसे देशों की चुनौती देते हैं। छोटा-सा देश जमैका ने तेज रेसों में अपना दबदबा बना रखा है। बहरीन और अन्य अरब देशों ने भी बहुत  अच्छा प्रदर्शन किया है, लंबी दौड़ों में अफ्रीकी देशों का दबदबा है तो बाक्सिंग में क्यूबा और पूर्व सोवियत संघ का बोलबाला है। खेल मंत्रालय ने टारगेट (टॉप) स्कीम बनाई थी, जिसमें रियो के साथ-साथ 2020 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक भी शामिल हैं। स्कीम का बजट 45 करोड़ था। दो साल में 100 से ज्यादा खिलाड़ियों को विदेश में ट्रेनिंग पर 180 करोड़ रुपए खर्च किए गए। शूटर, तीरंदाज, विकास गौड़ा और सीमा पुनिया जैसे डिस्कस थ्रोअर अपना औसत प्रदर्शन भी नहीं कर सके। साई में एंटी-गैबिटी ट्रेडनिल जैसे आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध की मिशन ओलंपिक सेल इनका ख्याल रखती है। फूड सप्लीमेंट के लिए 700 रुपए दिए गए। पहले 300 रुपए मिलते थे। खेल मंत्रालय के अनुसार खिलाड़ियों को उनके इवेंट से 15-15 दिन पहले रियो भेजा गया। पहले दो-चार दिन पहले भेजा जाता था। पहली बार नेशनल कैंप या इससे बाहर पर्सनल कोच और सपोर्ट स्टाफ दिए गए। इतना ही नहीं, भारतीय दल में 40 फीसदी से ज्यादा विदेशी कोच हैं। इस बार पर्सनल कोच, फिजियो, मसाजर और ट्रेनर बढ़ा दिए गए थे। भारत के इन सबके बावजूद फिसड्डी रहने के पीछे संसाधनों की कमी को लेकर प्रतिभाओं की उपेक्षा और राजनीतिक दखलंदाजी तक कई वजहें रहीं। बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद दीपा कर्माकर के पदक से चूक जाने के बाद जब उनके अभाव से गुजरने को लेकर रियो में उनके फिजियो के उनके साथ नहीं जा पाने की खबर आई थी, तब यह भी साफ हुआ था कि भारतीय खिलाड़ियों के पिछड़ने के लिए कौन-कौन सी व्यवस्था जिम्मेदार है। ओलंपिक में भारत को अपनी बेहतरी के लिए क्या करना चाहिए, इस मुद्दे पर हाल में ही लैक्चर देने वाला चीन रियो में अपने खिलाड़ियों के खराब परफार्मेंस से खुद ही परेशान है। चीनी मीडिया के मुताबिक उनके देश में ओलंपिक्स सपोर्ट कंट्रोल करने वाले यह वजह ढूंढ रहे हैं कि आखिर कहां गड़बड़ी हुई। चीन ने रियो में 29 खेलों में 412 एथलीट्स भेजे थे। ओलंपिक में अमेरिका और चीन के बीच मैडलों की होड़ लगी रहती है। मगर इस बार ग्रेट ब्रिटेन के अलावा भी कई और देशों ने चीन के हिस्से के मैडल झटक लिए। बस कंडक्टर की एक साधारण नौकरी करने वाले साक्षी के पिता (और मां) भी इसलिए बधाई के हकदार हैं कि घोर पुरुष वर्चस्व वाले समाज में उन्होंने अपनी बेटी को कुश्ती जैसे खेल में आगे बढ़ने का हौंसला दिया। पांच साल पहले केवल ड्रैस के लिए कुश्ती खेलने वाली साक्षी इतनी ऊंचाई पर पहुंचेगी यह किसी ने नहीं सोचा था। उनके पिता सुखवीर मलिक ने बताया कि रियो जाने से पहले गुड़गांव में एक लाख की घड़ी पसंद की थी और जीतने पर गिफ्ट मांगा था। तीन सितम्बर को उसका जन्मदिन है। उसे वही घड़ी गिफ्ट करूंगा। बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड मैडल जीतने वाले भारतीय निशानेबाज अभिनव बिन्द्रा ने ट्वीट करके कहा कि रियो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा मैडल न जीत पाने के लिए भारत का सिस्टम जिम्मेदार है। अभिनव बिन्द्रा ने यूके का उदाहरण देते हुए कहा कि ग्रेट ब्रिटेन ने हर पदक पर 55 लाख ब्रिटिश पाउंड (लगभग 48 करोड़ रुपए खर्च किए हैं और जब तक देश में व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया जाता, तब तक पदक की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। बिन्द्रा ने अपने ट्वीट में ब्रिटेन के समाचार पत्र द गार्जियन में प्रकाशित लेख में दिए आंकड़ों का हवाला दिया है। अंत में, मैं तो यही कहूंगा कि कुल मिलाकर कुछ खिलाड़ियों का प्रदर्शन अच्छा रहा पर पदक लाने के लिए और कड़ी मेहनत, बेहतर प्लाEिनग और लंबी ट्रेनिंग पर जोर देना होगा। ओलंपिक से दो-चार साल पहले ट्रेनिंग से गोल्ड नहीं आ सकता। हमें स्कूल स्तर से ही प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को चुनना होगा और तभी से उनकी टेEिनग, सुविधाओं पर ध्यान देना होगा।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday 20 August 2016

A befitting reply to Pakistan in its own language

Every year the Prime Minister’s address from the ramparts of the Red Fort on the occasion of Independence Day is normally prism. But it is not just a formality; it’s also a conversation of the Prime Minister with the people of the Nation. It’s also the self-analysis of the post-independence years and also the assessment of the government’s achievements. Remembering the last address of Prime Minister Modi, we can say that he broke the tradition to some extent, when he emphasized over the sanitation and girls’ empowerment, but this year he didn’t hesitate to explain the performance of his government. Is it due to the coming elections in some states? May be, however, no Indian Prime Minister in the history of the Independent India had openly attacked Pakistan naming it. The way Prime Minister giving a direct message to Pakistan on terrorism referred to Kashmir in its occupation (POK) and Baluchistan, is indicative of the mass transformation in the foreign policy. Besides condemning the efforts of sheltering the terrorism in his speech, he also referred to Gilgit and Baluchistan along with the Pak Occupied Kashmir. The reference is in fact a result of aggressiveness in the Indian approach within last few days, which has given a new frown to the foreign policy. It’s clear that India has got nothing from the existing policy. Now when it’s clear that Pakistan needs to be replied in its own language, then it becomes more essential that the changes in the foreign policy are not confined to mere statements. Prime Minister’s address has made it clear that now India will not hear the Kashmir tune of Pakistan staying silent, but it’ll be also given equal response. Pakistan has been raising the Kashmir issue as a matter of human rights over the platforms worldwide, while it has the own worst record in Baluchistan regarding the human rights.  In fact, it needs to do something more than mere saying.  Also for the reason, as we have been defensive yet in case of policy regarding Pakistan and confined upto the level of mere statements. It’s not going to matter by mere discussions in case of Pakistan Occupied Kashmir (POK) and Baluchistan. India should openly support Baluchis as Pakistan does with separatists in Jammu & Kashmir. If there is war of Independence in Jammu & Kashmir, it’s also the same in Baluchistan. Foreign policy of the changing India is also changing.

Anil Narendra

बढ़ती ड्रग्स समस्या की चपेट में पूरा देश

पंजाब ही नहीं देश के विभिन्न हिस्सों में नशीले पदार्थों के सेवन व सप्लाई की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। हाल ही में `उड़ता पंजाब' फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह पंजाब का युवा वर्ग इस लत में फंस चुका है। पर यह समस्या सिर्प पंजाब की ही नहीं। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े मेट्रो शहरों में भी स्थिति गंभीर बन गई है। हाल ही में मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) की अहमदाबाद क्षेत्रीय इकाई ने वडोदरा और मुंबई में अलग-अलग छापों में करीब 60 करोड़ रुपए की नशीली दवाएं जब्त कीं। एनसीबी निदेशक (अहमदाबाद) हरिओम गांधी ने मंगलवार को बताया कि पिछले हफ्ते वडोदरा में डॉल्फिन फार्मा और मुंबई के अंधेरी स्थित केसी फार्मा के परिसरों में छापेमारी की गई। गांधी ने बताया कि हमने विभिन्न नशीली दवाओं की नौ लाख गोलियां बरामद कीं। इनकी कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 50 करोड़ रुपए है। इन दवाओं को अवैध रूप से रखने के मामले में कंपनी के निदेशक-प्रबंधक को गिरफ्तार किया था। इस खतरनाक स्थिति को लेकर जागी केंद्र सरकार ने अब राज्यों को नए सिरे से ड्रग्स के खिलाफ एक आक्रामक और समग्र अभियान चलाने की पेशकश की है। इस लिहाज से उन्हें तीन महीने के अंदर अपनी जरूरत का आंकलन कर पूरी कार्ययोजना तैयार करने को कहा है। नए अभियान में सबसे ज्यादा जोर नशे के कारोबारियों पर शिकंजा कसने, आम लोगों में जागरुकता लाने और लत में पड़े लोगों के उपचार का इंतजाम करने पर होगा। केंद्रीय सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय की ओर से बीते गुरुवार को इस लिहाज से नौ पन्नों की विस्तृत एडवाइजरी जारी की गई है। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भेजी गई इस एडवाइजरी में साफ तौर पर कहा गया है, नशीली दवा दुरुपयोग की समस्या का समाधान करने के लिए सरकार की विभिन्न स्तरों पर साझा कार्रवाई जरूरी है। जमीनी स्तर पर काम करने का दायित्व राज्य सरकारों का है। कुछ महीने बाद पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए नशे की समस्या एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। यहां तक कि विपक्षी पार्टियां पंजाब की भाजपा-अकाली सरकार के बहाने केंद्र पर भी हमला करने से नहीं चूक रहीं। ऐसे में सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री थावर चन्द गहलोत ने देशभर में तत्काल इसके खिलाफ विशेष अभियान चलाने का फैसला किया है। सरकारी और निजी क्षेत्रों में उपचार और पुनर्वास सेवा के मानक तय किए जाएंगे। नशा मुक्ति के काम में लगे संस्थानों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (विम्हांस) जैसे केंद्रीय संस्थानों से तकनीकी मदद उपलब्ध करवाई जाएगी। यह संतोष की बात है कि अंतत केंद्र सरकार इस बढ़ती गंभीर समस्या से जूझने की तैयारी कर रही है। लोगों में जागरुकता लानी भी जरूरी है।

-अनिल नरेन्द्र

सपा की अंतर्पलह कहीं पार्टी को न डुबा दे

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आते जा रहे हैं सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की अंतर्पलह खुलकर बढ़ती जा रही है। एक तरफ हैं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो दूसरी तरफ हैं उनके चाचा शिवपाल यादव और बीच में हैं पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव। दरअसल अखिलेश समझते हैं कि 2017 का विधानसभा चुनाव सपा तभी जीत सकती है जब वह एक अच्छी सरकार, प्रशासन दे और प्रदेश का विकास करे जो नजर भी आए। पर उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा अपने ही परिवार वाले हैं। मुलायम सिंह कभी कुछ कहते हैं, कभी कुछ। शायद उनको भी समझ नहीं आ रहा कि वह बोल क्या रहे हैं? सपा प्रमुख ने एक बार फिर यूपी के सीएम और अपने बेटे अखिलेश यादव की मौजूदगी में सरकार और पार्टी की सार्वजनिक आलोचना की है। उनका कहना है कि अखिलेश सरकार के कई मंत्री भ्रष्ट हैं, वे पार्टी के लिए बोझ बन चुके हैं और पार्टी के भी कई नेता साजिशों में लगे रहते हैं। यह सब वे पहले भी कई बार कह चुके हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के भाई और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के अवैध शराब का कारोबार और सपाइयों द्वारा जमीन कब्जा न रोकने पर इस्तीफे की धमकी से ताजा घटनाक्रम शुरू हुआ है। इस पर रविवार को मैनपुरी और फिर अगले दिन ही इटावा में शिवपाल के बयान के बाद ही स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुलायम ने दो टूक कहा कि शिवपाल के साथ षड्यंत्र हो रहा है। वह अलग हो गए तो सरकार असहज हो जाएगी। अगर मैं खड़ा हो गया तब सारे चापलूस भाग जाएंगे और सरकार की ऐसी-तैसी हो जाएगी। मुलायम के इस बयान ने लोगों को हतप्रभ कर दिया। उन्होंने तो साफ तौर पर कहा कि पार्टी के लोग शिवपाल का अपमान कर रहे हैं। शिवपाल की यह टीस भी जगजाहिर हो गई जब उन्होंने कहा कि अधिकारी हमारी नहीं सुन रहे हैं। माना जा रहा है कि मुलायम द्वारा इतने सख्त शब्द व रुख उन्होंने शिवपाल को मनाने की कोशिश की है। मगर इस तरह के बयानों से तो पार्टी का कोई भला होगा, न सरकार का और न ही यूपी की जनता का। हकीकत में ऐसे बयान पहले से ही बुरी तरह घिरे हुए, कमजोर समझे जाने वाले मुख्यमंत्री को और ज्यादा कमजोर बनाते हैं, जिसका सीधा प्रभाव उनकी सरकार और कार्यक्षमता पर पड़ता है। यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। जाहिर है सपा बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कामकाज को मुख्य मुद्दा बनाकर ही चुनाव में उतरना चाहेगी। ऐसे में अखिलेश के हाथ मजबूत करने की बजाय चारों ओर से उन पर हमले से पार्टी का भला होने वाला नहीं। और दुखद पहलू यह है कि अखिलेश की टांग कोई विपक्षी नहीं खींच रहा, बल्कि उनके परिवार वाले ही सरकार और पार्टी को डुबाने में लगे हैं।

Friday 19 August 2016

अवाम की खुशहाली की कीमत पर आतंकवाद

कश्मीर में आग लगाने के चक्कर में खुद पाकिस्तान रसातल में जा रहा है। खुद पाकिस्तान में अर्थव्यवस्था पर होने वाले नुकसान को लेकर पाकिस्तान के अंदर कई शोध चल रहे हैं। पाकिस्तान बिजनेस रिव्यू में आतंकवाद का पाकिस्तान के आर्थिक विकास पर प्रभाव के शीर्षक से छपे शोध पत्र में बताया गया है कि किस तरह आतंकवाद पाकिस्तान को घुन की तरह खा रहा है। दुर्भाग्य तो इस बात का है कि पाकिस्तानी सरकार व सेना अवाम की खुशहाली की बलि चढ़ाकर आतंकवाद को प्रश्रय देने से बाज नहीं आ रहा है। 1990 में एक पाकिस्तानी की खरीदने की क्षमता के आधार पर सालाना औसत आमदनी 3000 डॉलर थी। उस वक्त भारत की प्रति व्यक्ति सालाना आय केवल 1850 डॉलर ही थी। लेकिन इसके बाद पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस कदर मशगूल हुआ कि उसकी अर्थव्यवस्था ही चौपट हो गई। 2009 के आते-आते भारत-पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय एक समान हो गई। ताजा हालात यह हैं कि जहां खरीद क्षमता के आधार पर भारत की प्रति व्यक्ति आय 5630 डॉलर सालाना हो गई है, वहीं पाकिस्तान 5090 डॉलर पर पीछे छूट गया है। इसी तरह गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का मामला है। 1990 में पाकिस्तान की केवल 17 फीसद आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती थी। 1993 में 33 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गई। इस समय पाकिस्तान की 45 फीसदी से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। ताज्जुब की बात है कि एक तरफ पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देता है वहीं खुद आतंकवाद से निपटने के लिए नए-नए कानून बना रहा है। गुरुवार को पाकिस्तान की संसद ने इस कानून को मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति ममनून हुसैन के दस्तखत के साथ ही यह लागू भी हो जाएगा। विपक्ष ने इसे युवाओं के खिलाफ और बोलने की आजादी कुचलने वाला कानून बताया है। पाकिस्तानी संसद के निचले सदन नेशनल असेम्बली ने `प्रिवेंशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स एक्ट 2015' को बिना संशोधन मंजूरी दे दी है। इसमें इंटरनेट के दुरुपयोग के 21 अपराध बताए गए हैं। करीब एक दर्जन में जेल का प्रावधान है। इसमें सायबर-स्पेस आतंकवाद, हेट स्पीच, पोर्नोग्रॉफी, धोखाध़ड़ी के लिए उपयोग शामिल है। मुख्य विपक्षी दलोंöपीपीपी, तहरीक--इंसाफ, एमक्यूएम ने कानून के कुछ प्रावधानों की आलोचना की है। उन्होंने इसे कूर कानून और अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलना बताया है। पीपीपी संसदीय दल के नेता नवीद कमर ने कहाöयह कानून अदालत में नहीं ठहर पाएगा। अब पाकिस्तान में इंटरनेट के जरिये आतंकवाद फैलाने वाले को 14 साल और हेट स्पीच देने वाले को सात साल की जेल होगी।

-अनिल नरेन्द्र

पाकिस्तान ने जब बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान में फौज के दम पर मानवाधिकारों को कुचलने का मुद्दा उठाकर न केवल पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में बढ़ती गतिविधियों का करारा जवाब ही दिया बल्कि पाकिस्तान की कमजोर नस को छेड़ दिया है। पलटवार से तिलमिलाया पाकिस्तान अब बलूचिस्तान को लेकर सारी दुनिया को सफाई पेश करने पर मजबूर हो गया है। ऐसे में हम पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि बलूचिस्तान का मुद्दा है क्या? बलूचिस्तान पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में बसा है। बलूचिस्तान की पश्चिम सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं। इसके दक्षिण में अरब सागर है। क्षेत्रफल के हिसाब से यह पाकिस्तान का आधा है। हालांकि पाकिस्तान की कुल आबादी के मात्र 3.6 प्रतिशत लोग ही इस क्षेत्र में रहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद यहां लोगों की माली हालत ठीक नहीं है। वे आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। बलूचिस्तान की गिनती पाकिस्तान के सबसे पिछड़े और गरीब क्षेत्रों में होती है। टूटे-फूटे घरों में पानी-बिजली तक भी नहीं है। भारत-पाक बंटवारे से पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बलूचिस्तान चार रियासतों में बंटा हुआ था, जिन्हें कलात, लसबेला, खारन और मकरान के नाम से जाना जाता था। पाकिस्तान बनने से तीन महीने पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने कलात के अधीन पूरे बलूचिस्तान की स्वतंत्रता और उसके पाकिस्तान में विलय पर अंग्रेजी हुकूमत से बातचीत की। जिन्ना, कलात के खानों और वायसरॉय के बीच कई दौर की बैठक हुईं। 11 अगस्त 1947 को तय हुआ कि पाकिस्तान कलात को स्वतंत्र संप्रभु राज्य के तौर पर मान्यता देगा। रक्षा, विदेश और संचार के सारे फैसले पाकिस्तान ही करेगा। लेकिन जिन्ना कलात को संप्रभु राज्य के तौर पर मान्यता देने को तैयार नहीं थे। वह चाहते थे कि कलात के खान दूसरी रियासतों की तरह पाकिस्तान से विलय के लिए हस्ताक्षर करें। खान इस नकली आजादी के लिए तैयार नहीं थे। फरवरी 1948 में खान को लिखे पत्र में जिन्ना ने कहाöमैं आपको सलाह देता हूं कि अब बिना देरी के आप कलात का पाक में विलय कर दीजिए। इसका जवाब खान ने दिया कि विलय के मसले पर संसद के दोनों सदनों (दार-उल-उमरा और दार-उल-अवाम) की बैठक बुलाई गई है, जो राय बनेगी आपको सूचित कर दिया जाएगा। उधर पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत को 23 मार्च 1948 को बताया गया कि कलात के मातहत आने वाले खारन, लसबेला और मकरान पाकिस्तान में विलय को तैयार हो चुके हैं। खान ने इस पर आपत्ति जताई और दलील दी कि यह पाकिस्तान के साथ स्ट्रैंडिस्टल समझौते का उल्लंघन है। 26 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान के तटीय इलाकों पासनी, जिवानी और तुरबत में घुस गई। अगले ही दिन ऐलान कर दिया गया कि खान विलय को तैयार हो गए हैं। इस तरह पाकिस्तान ने अपनी आजादी के मात्र 227 दिन बाद बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया। हालांकि बलूचिस्तान की संसद विलय के प्रस्ताव को खारिज कर चुकी थी। लेकिन सेना के बल पर पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को हड़प लिया। इससे पहले कराची में बाकायदा बलूचिस्तानी दूतावास था, जिसमें वहां का झंडा लगा था और एक राजदूत भी नियुक्त था। पाकिस्तानी कब्जे के बाद से ही यहां विद्रोह की आग धधक रही है। कब्जे के बाद से ही पाकिस्तानी फौज यहां जमी हुई है। बलूचों के सबसे बड़े नेता सरदार अकबर बुगती की 2006 में फौजी कार्रवाई में मौत के बाद यह आग तेज हो गई। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के दस्तावेजों से पता चलता है कि कैसे पाक सेना और आईएसआई अपना दमनचक्र चला रही है। बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हो रही हैं, उन्हें बिना वजह हिरासत में रखकर यातनाएं दी जा रही हैं। हजारों लोग नजरबंद हैं। बलूचिस्तान विधानसभा में पूर्व नेता विपक्ष ककोल अली बलोच ने दावा किया कि 4000 से ज्यादा लोग लापता हैं। इनमें 1000 से ज्यादा छात्र और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। बलोच नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता सरदार अख्तर मेंगल को आतंकवाद के आरोप में 2006 में गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे मुशर्रफ के खिलाफ रैली की योजना बना रहे थे। सो यह है बलूचिस्तान की सही कहानी।

Thursday 18 August 2016

कामकाजी गर्भवती महिलाओं को मातृत्व अवकाश की सुविधा

नरेंद्र मोदी सरकार ने महिलाओं के लिए एक सराहनीय कदम उठाया है। अब कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने के प्रावधान वाले महत्वपूर्ण विधेयक को राज्यसभा से मंजूरी मिल गई है। सरकारी और संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को 26 सप्ताह का प्रसूता अवकाश करने वाले प्रसूती प्रसुविधा (संशोधन) विधेयक 2016 को गत गुरुवार को राज्यसभा ने सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। इससे लगभग 18 लाख महिलाओं को लाभ मिलेगा लेकिन सेरोगेट माताओं को यह सुविधा नहीं मिलेगी। खास  बात यह रही कि इस विधेयक का राज्यसभा ने जोरदार स्वागत तो किया ही, कई सदस्यों ने इसी बहाने पितृत्व अवकाश पर भी सरकार को गौर करने को कहा। सदन में लगभग दो घंटे तक चली चर्चा का जवाब देते हुए श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि संगठित क्षेत्र में महिलाओं को सबसे अधिक प्रसूता अवकाश देने वाला भारत तीसरा राष्ट्र बन जाएगा। प्रसूता महिलाओं को कनाडा में 50 सप्ताह और नार्वे में 44 सप्ताह का अवकाश प्रदान किया जाता है। इसके अलावा प्रसूता महिलाओं को 3500 रुपए भी दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रसूता अवकाश बढ़ाने से मां और बच्चे को बेहतर जीवन मिलेगा। हां, यह जरूर है कि 26 सप्ताह के प्रसूती अवकाश की सुविधा दो बच्चों के मामले में ही लागू होगी और अन्य मामलों में यह सुविधा 12 सप्ताह की ही रहेगी। इस विधेयक में किसी कामकाजी महिला को मां बनने पर घर से काम करने की सुविधा को सुगम बनाने पर जोर दिया गया है। इसके तहत 50 से अधिक कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों के लिए शिशु कक्ष (केच) की व्यवस्था अनिवार्य होगी। माताओं को प्रतिदिन चार बार शिशु कक्ष में जाने की अनुमति होगी। निश्चित रूप से इस विधेयक को तैयार करते समय मोदी सरकार ने महिलाओं की पीड़ा को समझा है। यही वजह है कि उच्च सदन में चर्चा के दौरान जवाब में दत्तात्रेय ने कहा कि मां बनने वाली कामकाजी महिलाओं और उनके बच्चों को बेहतर जीवन प्रदान करना बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दा है। विधेयक का एक उद्देश्य यह भी है कि कार्यबल और कार्मिक बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जाए। पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जाता है। मैक्सिको में 15 सप्ताह, स्पेन में 16 सप्ताह, फ्रांस में 16 सप्ताह, ब्रिटेन में 20 सप्ताह का अवकाश दिया जाता है। इस दृष्टि से भी देखें तो भारत सरकार ने मातृत्व अवकाश की दिशा में बेहतर पहल की है। सदन में यह बात भी उठी कि तमिलनाडु में पहले से ही 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश का प्रावधान है और अब वहां इसे 39 सप्ताह किए जाने का प्रस्ताव है। एक सांसद का कहना है कि तमिलनाडु की यह योजना पूरे देश के लिए रोल मॉडल होना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी ने पाकिस्तान को उसी की भाषा में करारा जवाब दिया

हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री का संबोधन अमूमन रस्मी होता है। पर यह महज एक औपचारिकता भर नहीं होता, यह देश के लोगों से प्रधानमंत्री का एक संवाद भी होता है। यह आजादी हासिल करने के बाद के वर्षों का आत्म विश्लेषण भी होता है और उपलब्धियों का आंकलन भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले संबोधन को याद करें तो कह सकते हैं कि उन्होंने किसी हद तक लीक तोड़ी थी, जब साफ-सफाई और बालिका सशक्तिकरण पर उन्होंने विशेष जोर दिया था। मगर इस बार अपनी सरकार के कामों का बखान करने में उन्होंने तनिक संकोच नहीं किया। क्या इसका कारण कुछ राज्यों के आगामी चुनाव हैं? जो हो, अलबत्ता इस बार आजाद भारत के इतिहास में किसी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का नाम लेकर खुला हमला बोला। प्रधानमंत्री ने जिस तरह आतंकवाद पर पाकिस्तान को सीधा संदेश देने के साथ ही उसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और बलूचिस्तान का जिक्र किया वह विदेश नीति में व्यापक बदलाव का परिचायक है। उन्होंने अपने भाषण में आतंकवाद को शह देने के प्रयासों की निन्दा करने के साथ ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के साथ ही गिलगित और बलूचिस्तान का भी जिक्र किया। यह जिक्र दरअसल पिछले कुछ दिनों से भारत के रवैये में आई आक्रामकता का परिणाम है, जिसने विदेश नीति को एक नया तेवर दिया है। यह स्पष्ट है कि मौजूदा नीति से भारत को कुछ भी हासिल अब तक नहीं हुआ है। अब जब यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना होगा तब फिर यह भी आवश्यक हो जाता है कि विदेश नीति में बदलाव केवल बयानों तक ही सीमित न रहे। प्रधानमंत्री के संबोधन से साफ हो गया है कि भारत अब पाकिस्तान के कश्मीर राग को चुप रहकर नहीं सुनेगा, बल्कि उसे बराबर का जवाब दिया जाएगा। पाकिस्तान दुनियाभर के मंचों पर कश्मीर का मसला मानवाधिकार का सवाल बनाकर उठाता रहा है, जबकि मानवाधिकार के मामले में बलूचिस्तान में उसका खुद रिकार्ड निहायत खराब है। दरअसल अब बोलने से ज्यादा कुछ करने की भी जरूरत है। इसलिए और भी, क्योंकि पाकिस्तान संबंधी नीति के मामले में अभी तक हम डिफेंसिंग रहे हैं और हम वक्तव्यों के स्तर तक ही सीमित रहे हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) और बलूचिस्तान के मामले में चर्चा करने मात्र से बात बनने वाली नहीं है। भारत को बलूचियों की खुली मदद करनी चाहिए जैसे पाकिस्तान अलगाववादियों की जम्मू-कश्मीर में कर रहा है। अगर जम्मू-कश्मीर में आजादी की लड़ाई है तो बलूचिस्तान में भी आजादी की लड़ाई है। बदलते भारत की विदेश नीति भी बदल रही है।

Wednesday 17 August 2016

सड़क हादसे मामलों में हम इतना असंवेदनशील क्यों बन गए हैं?

दिल्ली में आए दिन सड़क हादसों में सड़क चलते निर्दोषों की मौत होती रहती है और सड़क पर घायल पड़े व्यक्ति की कोई मदद नहीं करता और वह तड़प-तड़प कर दम तोड़ देता है। राजधानी दिल्ली में मानवता को शर्मसार करने वाली एक घटना तीन दिन पहले हुई। वह भी संसद भवन से महज दो किलोमीटर दूर। नई दिल्ली के मंदिर मार्ग थाना क्षेत्र में सड़क पार कर रहे आईसक्रीम वेंडर को तेज रफ्तार कार चालक ने टक्कर मारी और काफी दूर तक घसीटता रहा। जब लोगों ने चालक को घेर लिया उसने घायल को आरएमएल अस्पताल में इलाज कराने का वादा कर गाड़ी में बैठाया और फिर पेशवा रोड पर तड़पता छोड़कर फरार हो गया। आखिर में आईसक्रीम वेंडर की मौत हो गई। सड़क दुर्घटना हो या फिर राह में किसी महिला के साथ होने वाली घटना, आम तौर पर दिल्लीवासी मदद के लिए सामने नहीं आते हैं। इसकी एक बड़ी वजह है कि लोग पुलिस की प्रक्रिया और कोर्ट-कचहरी के चक्कर से डरते हैं। यह कहना भी गलत न होगा कि लोगों ने अपना दायरा इतना कम कर लिया है कि समाज में उनके सामने क्या हो रहा है, इससे न तो उन्हें फर्प पड़ता है और न ही वे इससे मतलब रखते हैं। कई बार ऐसा सामने आया है कि सड़क दुर्घटना में पीड़ित की मदद करने वाले व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, उसे गवाह के तौर पर कोर्ट-कचहरी भी आना पड़ता है। पुलिस घटना के बारे में पूछताछ करती है और यह प्रक्रिया लंबी चलती है। मुकदमा सालों चलता है और मदद करने वाले व्यक्ति को अंत तक कानूनी प्रक्रिया में शामिल होना पड़ता है। इससे लोग मदद के लिए सामने नहीं आते। सड़क हादसों में पीड़ितों की घटनास्थल पर मदद करने वाले नेक लोगों को कानूनी पचड़े से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइन महज औपचारिकता बनकर रह गई है। सेव लाइफ फाउंडेशन ने वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा था कि घटनास्थल से गुजरने वाले चार में से तीन व्यक्ति पीड़ित की मदद करने से कतराते हैं। करीब 88 फीसदी लोग पुलिस उत्पीड़न और कानूनी पचड़े में फंसने से डरते हैं। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. गोपाला गौड़ा और अरुण मिश्रा की बेंच ने अक्तूबर 2014 में केंद्र सरकार को गाइडलाइन बनाने का आदेश दिया। सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय से मई 2015 में जारी गाइडलाइन को सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2016 में मंजूरी दी। हालांकि यह महज औपचारिकता बनकर रह गई है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन कुछ इस प्रकार हैöपीड़ित को अस्पताल पहुंचाने वाले नागरिक को सिर्प उसका पता नोट करके जाने दिया जाएगा। उससे और कुछ नहीं पूछा जाएगा। सभी सार्वजनिक एवं निजी अस्पताल पीड़ित की मदद करने वाले शख्स से न तो एडमिशन फीस या पैसे की मांग करेंगे और न ही उसे रोक सकेंगे। अस्पताल ऐसा सिर्प तभी कर सकेंगे जब भर्ती किए जाने वाले घायल व्यक्ति की मदद करने वाले का फैमिली मेम्बर या रिश्तेदार हो। इस संबंध में हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा में एंट्रेंस गेट पर लिखवाना होगा। सड़क हादसों में पीड़ितों की मदद करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए उचित इनाम या मुआवजा होना चाहिए। मदद करने वाले व्यक्ति की किसी किस्म की आपराधिक जवाबदेही नहीं होगी। फोन करके पीड़ित के सड़क पर पड़े होने की जानकारी देने वाले घटनास्थल पर मौजूद शख्स को नाम या निजी जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। अस्पताल मेडिकल लीगल केस फॉर्म में मदद करने वाले व्यक्ति की इच्छा पर ही निजी जानकारी दी जाएगी। उन अफसरों के खिलाफ अनुशासन या विभागीय कार्रवाई की जाएगी जो मदद करने वाले व्यक्ति को नाम या निजी जानकारी देने के लिए बाध्य करेंगे। अगर हादसे का कोई गवाह अपनी इच्छा से पहचान जाहिर करता है तो पुलिस जांच के लिए सिर्प उससे एक बार पूछताछ कर सकती है। इस दिशा में राज्य सरकार को एक ऐसा सिस्टम बनाना होगा जिसमें मदद करने वाले शख्स का उत्पीड़न रोकने के लिए एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम बनाना होगा। सड़क हादसे से जुड़े इमरजेंसी मामले में डाक्टर की ओर से त्वरित प्रतिक्रिया न करना प्रोफेशनल मिसकंडक्ट माना जाएगा। गाइडलाइंस तो बहुत अच्छी है पर इसका अच्छा परिणाम तभी आएगा जब सही मायनों में इस पर अमल हो।

-अनिल नरेन्द्र

देशहित में नहीं सुप्रीम कोर्ट व केंद्र सरकार का टकराव

हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और तबादले को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव बढ़ता नजर आ रहा है। ऐसा लगता है कि चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर इस मसले पर केंद्र से आर-पार करने की तैयारी में हैं। चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था चरमरा गई है लेकिन केंद्र सरकार फाइलें दबाकर बैठी है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र का यही रवैया रहा तो उन्हें आदेश पारित करने पर मजबूर होना पड़ेगा। चीफ जस्टिस ने अटार्नी जनरल से सीधा सवाल किया कि आखिर फाइलें अटकी कहां हैं और सरकार को कोलेजियम के फैसले पर यकीन क्यों नहीं है? चीफ जस्टिस केंद्र से नाराज हैं उनकी इस टिप्पणी से साफ झलकता है। गौरतलब है कि देश में जजों की कमी और लंबित मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक करीब साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय कोलेजियम के प्रमुख चीफ जस्टिस ने कहा कि हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादले के लिए 75 नाम सुझाए गए हैं। हाई कोर्ट में 43 फीसद जजों की कमी है। सरकार ने कोलेजियम के सुझाए गए नामों पर हामी क्यों नहीं भरी? पूरा तंत्र ध्वस्त हो रहा है और सरकार इस बारे में चुप्पी साधे बैठी है। हम हालात को उस मुकाम तक नहीं ले जा सकते जहां सब कुछ ठप हो जाए। अगर सरकार को नाम पर आपत्ति है तो फाइल वापस करे, कोलेजियम उस पर फैसला लेगा। लेकिन सरकार फाइल पर बैठकर नाम के प्रस्तावों में देर नहीं कर सकती। यह मामला तब उठा जब चीफ जस्टिस ठाकुर, जस्टिस चन्द्रचूड़ और जस्टिस एएम वीलकर की तीन सदस्यीय पीठ मामलों की सुनवाई में देरी से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। स्वाभाविक है कि दबाव अदालतों पर है और मुख्य न्यायाधीश इससे मुतमईन दिखते हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब लंबित केस को लेकर मुख्य न्यायाधीश सार्वजनिक मंच पर अपने आंसू नहीं रोक सके थे। चीफ के इस हमलावर रुख के निहितार्थ भी हैं। यह सरकार को सख्त संदेश है कि आप हमारे मामले को ज्यादा दिनों तक बेवजह लटकाकर नहीं रख सकते। यह बिल्कुल तर्पसंगत बात है कि अगर जजों की यथोचित भर्ती होगी तो केस जल्द से जल्द निपट जाएंगे। इससे सरकार और समाज के स्तर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। साथ ही जनता में न्यायपालिका और प्रणाली पर विश्वास बढ़ेगा। हालांकि कानून मंत्री नहीं मानते कि जजों की नियुक्ति का काम रुका है। पिछले दिनों कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि जनवरी से लेकर अभी तक हाई कोर्ट के 110 अतिरिक्त जजों को स्थायी किया गया है। 52 नए जज नियुक्त हुए हैं। चार न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए हैं।