Saturday, 20 August 2016

सपा की अंतर्पलह कहीं पार्टी को न डुबा दे

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आते जा रहे हैं सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की अंतर्पलह खुलकर बढ़ती जा रही है। एक तरफ हैं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो दूसरी तरफ हैं उनके चाचा शिवपाल यादव और बीच में हैं पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव। दरअसल अखिलेश समझते हैं कि 2017 का विधानसभा चुनाव सपा तभी जीत सकती है जब वह एक अच्छी सरकार, प्रशासन दे और प्रदेश का विकास करे जो नजर भी आए। पर उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा अपने ही परिवार वाले हैं। मुलायम सिंह कभी कुछ कहते हैं, कभी कुछ। शायद उनको भी समझ नहीं आ रहा कि वह बोल क्या रहे हैं? सपा प्रमुख ने एक बार फिर यूपी के सीएम और अपने बेटे अखिलेश यादव की मौजूदगी में सरकार और पार्टी की सार्वजनिक आलोचना की है। उनका कहना है कि अखिलेश सरकार के कई मंत्री भ्रष्ट हैं, वे पार्टी के लिए बोझ बन चुके हैं और पार्टी के भी कई नेता साजिशों में लगे रहते हैं। यह सब वे पहले भी कई बार कह चुके हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के भाई और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के अवैध शराब का कारोबार और सपाइयों द्वारा जमीन कब्जा न रोकने पर इस्तीफे की धमकी से ताजा घटनाक्रम शुरू हुआ है। इस पर रविवार को मैनपुरी और फिर अगले दिन ही इटावा में शिवपाल के बयान के बाद ही स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुलायम ने दो टूक कहा कि शिवपाल के साथ षड्यंत्र हो रहा है। वह अलग हो गए तो सरकार असहज हो जाएगी। अगर मैं खड़ा हो गया तब सारे चापलूस भाग जाएंगे और सरकार की ऐसी-तैसी हो जाएगी। मुलायम के इस बयान ने लोगों को हतप्रभ कर दिया। उन्होंने तो साफ तौर पर कहा कि पार्टी के लोग शिवपाल का अपमान कर रहे हैं। शिवपाल की यह टीस भी जगजाहिर हो गई जब उन्होंने कहा कि अधिकारी हमारी नहीं सुन रहे हैं। माना जा रहा है कि मुलायम द्वारा इतने सख्त शब्द व रुख उन्होंने शिवपाल को मनाने की कोशिश की है। मगर इस तरह के बयानों से तो पार्टी का कोई भला होगा, न सरकार का और न ही यूपी की जनता का। हकीकत में ऐसे बयान पहले से ही बुरी तरह घिरे हुए, कमजोर समझे जाने वाले मुख्यमंत्री को और ज्यादा कमजोर बनाते हैं, जिसका सीधा प्रभाव उनकी सरकार और कार्यक्षमता पर पड़ता है। यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। जाहिर है सपा बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कामकाज को मुख्य मुद्दा बनाकर ही चुनाव में उतरना चाहेगी। ऐसे में अखिलेश के हाथ मजबूत करने की बजाय चारों ओर से उन पर हमले से पार्टी का भला होने वाला नहीं। और दुखद पहलू यह है कि अखिलेश की टांग कोई विपक्षी नहीं खींच रहा, बल्कि उनके परिवार वाले ही सरकार और पार्टी को डुबाने में लगे हैं।

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