Friday, 19 August 2016

पाकिस्तान ने जब बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान में फौज के दम पर मानवाधिकारों को कुचलने का मुद्दा उठाकर न केवल पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में बढ़ती गतिविधियों का करारा जवाब ही दिया बल्कि पाकिस्तान की कमजोर नस को छेड़ दिया है। पलटवार से तिलमिलाया पाकिस्तान अब बलूचिस्तान को लेकर सारी दुनिया को सफाई पेश करने पर मजबूर हो गया है। ऐसे में हम पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि बलूचिस्तान का मुद्दा है क्या? बलूचिस्तान पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में बसा है। बलूचिस्तान की पश्चिम सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं। इसके दक्षिण में अरब सागर है। क्षेत्रफल के हिसाब से यह पाकिस्तान का आधा है। हालांकि पाकिस्तान की कुल आबादी के मात्र 3.6 प्रतिशत लोग ही इस क्षेत्र में रहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद यहां लोगों की माली हालत ठीक नहीं है। वे आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। बलूचिस्तान की गिनती पाकिस्तान के सबसे पिछड़े और गरीब क्षेत्रों में होती है। टूटे-फूटे घरों में पानी-बिजली तक भी नहीं है। भारत-पाक बंटवारे से पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बलूचिस्तान चार रियासतों में बंटा हुआ था, जिन्हें कलात, लसबेला, खारन और मकरान के नाम से जाना जाता था। पाकिस्तान बनने से तीन महीने पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने कलात के अधीन पूरे बलूचिस्तान की स्वतंत्रता और उसके पाकिस्तान में विलय पर अंग्रेजी हुकूमत से बातचीत की। जिन्ना, कलात के खानों और वायसरॉय के बीच कई दौर की बैठक हुईं। 11 अगस्त 1947 को तय हुआ कि पाकिस्तान कलात को स्वतंत्र संप्रभु राज्य के तौर पर मान्यता देगा। रक्षा, विदेश और संचार के सारे फैसले पाकिस्तान ही करेगा। लेकिन जिन्ना कलात को संप्रभु राज्य के तौर पर मान्यता देने को तैयार नहीं थे। वह चाहते थे कि कलात के खान दूसरी रियासतों की तरह पाकिस्तान से विलय के लिए हस्ताक्षर करें। खान इस नकली आजादी के लिए तैयार नहीं थे। फरवरी 1948 में खान को लिखे पत्र में जिन्ना ने कहाöमैं आपको सलाह देता हूं कि अब बिना देरी के आप कलात का पाक में विलय कर दीजिए। इसका जवाब खान ने दिया कि विलय के मसले पर संसद के दोनों सदनों (दार-उल-उमरा और दार-उल-अवाम) की बैठक बुलाई गई है, जो राय बनेगी आपको सूचित कर दिया जाएगा। उधर पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत को 23 मार्च 1948 को बताया गया कि कलात के मातहत आने वाले खारन, लसबेला और मकरान पाकिस्तान में विलय को तैयार हो चुके हैं। खान ने इस पर आपत्ति जताई और दलील दी कि यह पाकिस्तान के साथ स्ट्रैंडिस्टल समझौते का उल्लंघन है। 26 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान के तटीय इलाकों पासनी, जिवानी और तुरबत में घुस गई। अगले ही दिन ऐलान कर दिया गया कि खान विलय को तैयार हो गए हैं। इस तरह पाकिस्तान ने अपनी आजादी के मात्र 227 दिन बाद बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया। हालांकि बलूचिस्तान की संसद विलय के प्रस्ताव को खारिज कर चुकी थी। लेकिन सेना के बल पर पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को हड़प लिया। इससे पहले कराची में बाकायदा बलूचिस्तानी दूतावास था, जिसमें वहां का झंडा लगा था और एक राजदूत भी नियुक्त था। पाकिस्तानी कब्जे के बाद से ही यहां विद्रोह की आग धधक रही है। कब्जे के बाद से ही पाकिस्तानी फौज यहां जमी हुई है। बलूचों के सबसे बड़े नेता सरदार अकबर बुगती की 2006 में फौजी कार्रवाई में मौत के बाद यह आग तेज हो गई। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के दस्तावेजों से पता चलता है कि कैसे पाक सेना और आईएसआई अपना दमनचक्र चला रही है। बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हो रही हैं, उन्हें बिना वजह हिरासत में रखकर यातनाएं दी जा रही हैं। हजारों लोग नजरबंद हैं। बलूचिस्तान विधानसभा में पूर्व नेता विपक्ष ककोल अली बलोच ने दावा किया कि 4000 से ज्यादा लोग लापता हैं। इनमें 1000 से ज्यादा छात्र और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। बलोच नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता सरदार अख्तर मेंगल को आतंकवाद के आरोप में 2006 में गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे मुशर्रफ के खिलाफ रैली की योजना बना रहे थे। सो यह है बलूचिस्तान की सही कहानी।

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