Friday, 5 August 2016

आनंदीबेन के इस्तीफे से उठे सवाल

गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया जो राज्यपाल ओपी कोहली ने स्वीकार भी कर लिया है। बृहस्पतिवार को गुजरात भाजपा विधायक दल की बैठक में उनके उत्तराधिकारी का चयन हो जाएगा। आनंदीबेन ने इस्तीफा क्यों दिया यह सवाल सियासी गलियारों में पूछा जा रहा है। क्या इसकी वजह उनकी उम्र 75 साल होना (वे 21 नवम्बर को पार्टी द्वारा निर्धारित उम्र सीमा में प्रवेश कर रही हैं) रही या फिर राजनीतिक घटनाक्रम दलितों की नाराजगी और पटेलों में भारी असंतोष रहा? दलित नाराजगी का असर भाजपा को उत्तर प्रदेश और पंजाब में भी देखने को मिल सकता है, जहां चुनाव गुजरात विधानसभा से पहले ही होना है। दरअसल जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में आनंदीबेन को सबसे उपयुक्त माना। लेकिन पहले पाटीदार आंदोलन और बाद में गौरक्षकों के दलित उत्पीड़न से जैसी व्यापक प्रतिक्रियाएं हुईं, उससे यह संदेश गया कि वे स्थिति संभालने में सक्षम नहीं हैं। इसी से कथित तौर पर भाजपा नेतृत्व भी चुनाव के पहले उनके बदले किसी और को जिम्मेदारी देने के हक में था। वैसे आनंदीबेन कैंप के मुताबिक तो राज्य के मंत्री और अफसर पिछले कुछ समय से सीधे अमित शाह से निर्देश लेने लगे थे, इसलिए उनका राजकाज चलाना मुश्किल हो गया था। यही नहीं, उनके खेमे में यह माना जा रहा है कि पाटीदार आंदोलन और दलित नाराजगी को हवा देने में भी पार्टी की अंदरूनी कलह एक बड़ी वजह थी। दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी आनंदीबेन के इस प्रयोग से ऊब गई थी। गुजरात में आज भाजपा की स्थिति अत्यंत खराब है। आरएसएस का कहना है कि अगर इस समय गुजरात में विधानसभा चुनाव होते हैं तो भाजपा को 182 में से 60-65 सीटें ही मिलेंगी। यह बात भाजपा और संघ के एक सर्वे से निकलकर सामने आई है। यह सर्वे गुजरात में फैले दलित आंदोलन के  बाद किया गया है। ऊना में मृत गाय की खाल उतारने पर दलित युवकों की पिटाई के विरोध में गुजरात में दो हफ्तों से दलित प्रदर्शन कर रहे हैं। इस सर्वे को संघ के उन जमीनी प्रचारकों ने अंजाम दिया है। जिन्हें लोगों से फीडबैक लेने का प्रशिक्षण दिया गया है। इसमें हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा की ओर बताया गया है तो कहा है कि दलित इससे दूर जा रहे हैं। आज गुजरात की स्थिति भाजपा के लिए अत्यंत चिन्ताजनक बनी हुई है। गुजरात दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। गृह राज्य होने के नाते दोनों ही इस पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहते हैं और आनंदीबेन ने उन्हें मायूस किया है। अब देखना यह है कि उनका उत्तराधिकारी पार्टी को कितना उभार सकता है। नए मुख्यमंत्री को राज्य में विभिन्न वर्गों की नाराजगी दूर करने के साथ-साथ पार्टी में भी नए सिरे से प्राण पूंकने होंगे।

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