Wednesday 10 August 2016

दहशतगर्दी के नए-नए तरीके अपना रहा आईएस

इस्लामिक स्टेट (आईएस) की आतंक की नई रणनीति के कारण अब छोटे शहर, कस्बे और इलाके खतरे की जद में आ गए हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार 24 महीने में दुनियाभर में आईएस के 57 फीसदी हमले ऐसी जगहों पर हुए हैं जिन्हें पहले कभी भी आतंक के लिहाज से खतरनाक नहीं माना जाता था। सबसे चिन्ता की बात यह है कि आईएस दो साल पहले जहां हर 21 दिन में हमला करता था, वहीं अब वह 2016 में हर सात दिन में एक हमले को अंजाम दे रहा है। आतंकवाद पर विश्वव्यापी निगाह रखने वाली अमेरिका की संस्था इटेस सेंटर की ताजा शोध रिपोर्ट के मुताबिक उसने अपने डेटाबेस में 24 माह में दर्ज हुए 73 आतंकी हमलों का विश्लेषण किया है। विश्लेषण का चिन्ताजनक पहलू यह है कि आईएस अब आतंकी हमलों की जगह और तौर-तरीके बदल रहा है। पहले यह संगठन ज्यादातर हाई-प्रोफाइल इलाकों में हमले करता था। इसका मतलब यह था कि ऐसे इलाकों में आतंक से निपटने के पर्याप्त संसाधन मौजूद थे। अब छोटे शहरों और कस्बों को निशाना बनाना अधिक आसान है क्योंकि यहां आतंक से जूझने के बंदोबस्त पुख्ता नहीं हैं। समय बदलने के बावजूद कुछ बुनियादी चीजें नहीं बदली हैं। कोई तगड़ा बंदूकधारी या फिर आत्मघाती दस्ते के चन्द लोग ऐसे अपराध को अंजाम देते हैं कि सारी दुनिया स्तब्ध रह जाती है। ऐसे हमलों में अकसर एके-47 शैली की राइफलें होती हैं। चलाने में आसान यह असाल्ट राइफल पूर्व सोवियत संघ की देन है और दुनियाभर में प्रमुखता से उपलब्ध है। इसके जरिये कुछ लोगों का समूह भी सैकड़ों लोगों को निशाना बना सकता है और आधुनिक सैन्य और पुलिस बल के लिए भी यह चुनौती है। हाल के वर्षों में दहशत फैलाने वालों के हाथों में क्लाश्निकोव के जवाब में लाई गई अमेरिकी एआर-15 राइफलें भी पहुंच चुकी हैं। हाल के हमलों यह फिर दिखाया है कि अकेला आदमी भी किस तरह कहर बरपा सकता है। नीस का हमला इसका उदाहरण है। आतंकी संगठन ने वुल्फ अटैक करने को भी कहा है। दरअसल सियार घात लगाकर अकेले हमला करने के लिए जाने जाते हैं। ऐसा आईएस ने ही पहली दफा नहीं कहा है। अलकायदा आतंकियों पर नियंत्रण के लिए जब विभिन्न सरकारों ने हमले तेज किए और उसकी शक्ति कमजोर पड़ने लगी तब उसने भी इस तरह के हमले शुरू करने के लिए अपने समर्थकों को प्रेरित करना शुरू कर दिया। भारत और दुनियाभर की रक्षा एजेंसियों के लिए यह तरीका चिन्ता पैदा करने वाला है। ऐसे हमले करने वालों की पहचान पहले से करना और उनके षड्यंत्र का अंदाजा मुश्किल काम है। कोई भी सिरफिरा कभी भी इस तरह का काम कर सकता है। जेहादी दहशतगर्दी की अब तक की तारीख में यह पहली बार हो रहा है कि हमले भौगोलिक सरहदें तोड़ रहे हैं। अब कोई शहर, कस्बा, गांव इन दहशतगर्दों की पहुंच से दूर नहीं रह गया।

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