Saturday 30 November 2013

शंकररमन हत्याकांड में कांची मठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती बरी


कांची के दोनों धर्मगुरुओं शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती और उनके शिष्य विजेन्द्र सरस्वती को पुंडुचेरी की एक विशेष अदालत ने बुधवार को बहुचर्चित शंकररमन हत्याकांड से बरी कर दिया। कांचीपुरम मंदिर के प्रबंधक शंकररमन की हत्या के आरोप में दोनों धर्मगुरुओं पर आपराधिक षड्यंत्र रचने व हत्या करने का आरोप लगाया गया था। शंकररमन की वर्ष 2004 में तीन सितम्बर की शाम को मंदिर परिसर में ही वरदराजपेरूमल के प्रबंधक ए. शंकररमन की हत्या कर दी गई थी। इस सनसनीखेज हत्या से जुड़े मामले में सबूत के अभाव में अदालत ने 21 अन्य अभियुक्तों को भी दोषमुक्त करार दिया है। भारी सुरक्षा इंतजामों के बीच खचाखच भरी अदालत में फैसला सुनाते हुए प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सीएस मुरुगन ने घोषणा की कि 24 अभियुक्तों में से 23 को उनके खिलाफ लगाए आरोपों से मुक्त किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि इसका कारण है कि इन अभियुक्तों की संलिप्तता का कोई सबूत नहीं है। एक अभियुक्त कथिरावन की इसी साल मार्च में चेन्नई में हत्या हो गई थी। जज ने कहा कि शंकररमन की हत्या के पीछे का मकसद भी साबित नहीं हो सका है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि शंकररमन की बेटी सहित गवाह अदालत में आरोपियों की शिनाख्त नहीं कर पाए। उनमें से किसी ने अदालत में किसी आरोपी की शिनाख्त नहीं की और आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया जा सका। न्यायाधीश ने जांच में कांचीपुरम के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक प्रेम कुमार की अवांछित और सक्रिय भागीदारी की भी चर्चा की जिसका जिक्र जयेन्द्र सरस्वती को जमानत देते वक्त सुप्रीम कोर्ट में भी हुआ था। न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस अधिकारी की कार्रवाई जांच के दौरान कानून के तहत आवश्यक कार्रवाई से बहुत ज्यादा थी। आदेश में कहा गया है कि जांच में प्रेम कुमार के हस्तक्षेप के कारण मुख्य जांच अधिकारी (सीआईओ) ने निष्पक्ष और उचित जांच नहीं की। अदालत ने कहा कि सीआईओ स्वतंत्र जांच करने में नाकाम रहा और कुछ अन्य जांच अधिकारियों ने जो सामग्री जमा की थी उन्हें भी पेश नहीं किया गया। जयेन्द्र सरस्वती को नवम्बर में दीपावली के दिन आंध्र प्रदेश से गिरफ्तार किया गया था। बाद में उनके कनिष्ठ विजेन्द्र सरस्वती को भी गिरफ्तार किया है। मुझे याद है कि जब पूजनीय शंकराचार्य को गिरफ्तार किया गया था तो इस देश के सूडो सेक्यूलरिस्टों ने किस तरह टीवी चैनलों में उनकी बखियां उधेड़ी थीं। शंकराचार्य को कलंकित करने का कोई हथकंडा नहीं छोड़ा गया था। जब सुप्रीम कोर्ट में शंकराचार्य की जमानत का मामला आया तो माननीय अदालत ने जमानत देते हुए स्पष्ट कहा कि सिवाय पुलिस के द्वारा प्रस्तुत तथाकथित इकबालिया बयान के उनके खिलाफ कुछ नहीं मिला है। सरकारें मौन रहकर तमाशा देखती रहीं। भारत का सबसे प्राचीन मठ होने के कारण कांचीमठ सारे विश्व में मशहूर है। शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी से उनके तमाम श्रद्धालुओं को भारी धक्का लगा था। शंकराचार्य पर हमला एक व्यक्ति पर हमला नहीं था यह सम्पूर्ण हिन्दुत्व पर हमला था, करोड़ों लोगों की आस्था पर हमला था, श्रद्धा और विश्वास पर हमला था। जयललिता ने ऐसा क्यों किया यह तो वह ही जानें पर आज जब शंकराचार्य को निर्दोष पाया गया है तो यह उनकी व्यक्तिगत हार है और सारे हिन्दू समाज की जीत है।
-अनिल नरेन्द्र


ममता बनर्जी की अग्निपरीक्षा


पश्चिम बंगाल के शारदा चिट फंड घोटाले की आंच अब मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी पर आने लगी है। कम निवेश पर अधिक कमाई का लालच देकर लोगों को ठगने के नए-नए तरीके आजमाने वाले गिरोहों की सक्रियता कम नहीं हो रही है। शारदा चिट फंड घोटाले करीब तीन हजार करोड़ रुपए का है। राज्य के तमाम हिस्सों में इस मामले को लेकर भारी हलचल रही है क्योंकि मध्यम वर्ग के तमाम परिवार इस घोटाले के चलते बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं। इस मामले में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कई लोगों के नाम चर्चा में आए थे। खासतौर पर टीएमसी के सांसद कुणाल घोष पर शक की सूई थी। पत्रकार रह चुके कुणाल घोष इस ग्रुप का मीडिया डिवीजन देखते हैं। इस ग्रुप का टीवी चैनल और अखबार भी है जो कि सालों से ममता सरकार की तारीफ में पुल बांधते आए हैं। लेकिन जब विवाद बढ़ा तो ममता ने कुणाल घोष का साथ देना बन्द कर दिया। यहां तक कि पार्टी ने अपनी छवि बचाने के लिए कुणाल घोष को पार्टी से निकाल दिया। निलम्बन के बाद पिछले दिनों इसी घोटाले में उनकी गिरफ्तारी भी हो चुकी है। अपनी गिरफ्तारी के पहले ही कुणाल घोष ने एक सीडी रिकॉर्ड करा दी थी। इसे अपने एक निकटतम रिश्तेदार को यह कहकर दिया था कि हो सकता है कि सच्चाई बताने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके लोग उनकी हत्या कर दें या इसमें फंसाकर गिरफ्तार करा दें। यदि उनकी हत्या या गिरफ्तारी हो जाए तो वे मीडिया के लिए यह सीडी जारी कर दें ताकि देश और दुनिया को ममता बनर्जी और उनके करीबियों की असली हकीकत का पता चल सके। अब एक टीवी चैनल ने इस सीडी के कुछ अंश जारी किए हैं। इस सीडी बम से तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलें बढ़नी लाजिमी हैं। इस वीडियो में वक्तव्य में आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस शारदा चिट फंड कम्पनी की वित्तीय अनियमितताओं की पूरी जानकारी थी। इस वक्तव्य में कुणाल घोष ने कहा कि वह ममता का बहुत अधिक सम्मान और आदर करते हैं और उनका नाम कम्पनी के विवाद के संबंध में लेते समय उन्हें दुख हो रहा है लेकिन इस कांड के बारे में लोग जो जान रहे हैं सच्चाई से बिल्कुल उलटी है। उन्होंने कहा कि इस कम्पनी से उनके संबंध होने की जानकारी मुख्यमंत्री तथा तृणमूल कांग्रेस दोनों को थी और वह इससे लाभान्वित भी हुए। कुणाल घोष के इस खुलासे को देखते हुए कांग्रेस तथा वाम मोर्चे ने पूरे मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की है। घोष ने दावा किया है कि शारदा कम्पनी के मालिक सुंदीप्त सेन की सभी कारगुजारियों के बारे में ममता अच्छी तरह से जानती थीं। सांसद कुणाल ने सीडी में पूर्व रेल मंत्री मुकुल रॉय सहित पार्टी के कई सांसदों का नाम भी लिया है। इस बीच पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकान्त मिश्र ने मांग की है कि तृणमूल कांग्रेस के गिरफ्तार राज्यसभा सदस्य कुणाल घोष ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित जिन लोगों के नाम लिए हैं सभी से शारदा घोटाले के सिलसिले में पूछताछ की जानी चाहिए। कुणाल की सीडी बम के आने से राजनीतिक कारणों से तृणमूल कांग्रेस निशाने पर आ गई है। कांग्रेस के एक महासचिव ने कहा कि अब देश जानेगा कि ममता बनर्जी और उनके लोग किस तरह से पाखंडी राजनीति करते हैं और दोहरा जीवन जी रहे हैं। ऐसे में अब इस अग्निपरीक्षा से बंगाल की दीदी को अपने आपको पाक-साफ साबित करना ही होगा।



Friday 29 November 2013

...और अब तरुण तेजपाल को लेकर सियासी घमासान

पीड़ित पत्रकार के गोवा में मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज कराने, दिल्ली हाई कोर्ट से आरोपी को राहत नहीं मिलने और गोवा पुलिस द्वारा तेजपाल को समन जारी करने के बीच सहकर्मी से दुष्कर्म मामले में फंसे तहलका के मुख्य सम्पादक तरुण तेजपाल को लेकर अब सियासत भी तेज हो गई है। जैसा कि आमतौर पर माना जाता है कि तेजपाल हमेशा से कांग्रेस पार्टी के करीबी रहे हैं और तहलका ने हमेशा विपक्षी दलों के ही स्टिंग ऑपरेशन किए हैं, इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने तेजपाल के साथ कांग्रेस को लपेटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भाजपा की वरिष्ठ नेता व लोकसभा में  प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ट्विट के जरिये कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल पर बिना किसी का नाम लिए हमला बोला और आरोप लगाया कि एक केंद्रीय मंत्री जो तहलका के संस्थापक और संरक्षक हैं तरुण तेजपाल का बचाव कर रहे हैं। सुषमा का इशारा कपिल सिब्बल की तरफ है। सोशल मीडिया में (फेस बुक) तहलका के शेयर होल्डरों की एक सूची लगी है जिसमें कपिल सिब्बल के कितने शेयर हैं बताया गया है। यह सही है या फर्जी, इसके बारे में हम कुछ नहीं कह सकते। सोशल मीडिया में तो यह भी कहा गया है कि वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम भी तेजपाल के करीबी हैं और गोवा में उस कार्यक्रम में शामिल होते रहते हैं। सुषमा ने तो किसी कांग्रेसी मंत्री का नाम नहीं लिया था पर जिस तरीके से कपिल सिब्बल ने पलटवार किया उससे तो यही जाहिर होता है कि सुषमा का आरोप बिल्कुल निराधार नहीं है। तहलका मामले में भाजपा के प्रहारों का सामना कर रहे कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने बुधवार को पलटवार करते हुए कहा कि मुख्य विपक्षी दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बेवजह उन्हें बदनाम कर रहे हैं जबकि पत्रिका के सम्पादक तरुण तेजपाल से उनका कोई संबंध नहीं है और न ही उनकी कंपनी में उनके कोई शेयर हैं। सिब्बल ने सोशल मीडिया में प्रसारित हो रहे उन संदेशों का भी जवाब दिया जिनमें दावा किया जा रहा है कि तेजपाल उनकी बहन के बेटे हैं और तहलका में कानून मंत्री के 80 फीसद शेयर हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की बेबुनियाद बातों पर मुझे खेद है। मुझे संघ और भाजपा से उम्मीद नहीं थी कि यह इस स्तर पर उतर आएंगे। कांग्रेस प्रवक्ता पीसी चॉको ने गुजरात में एक युवती की कथित गैर-कानूनी विवाद को तेजपाल प्रकरण से जोड़ दिया जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि मुख्यमंत्री मोदी के कहने पर तेजपाल पर गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर  ने कार्रवाई तेज की। जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता एम. वेंकैया नायडू ने भाजपा की मिलीभगत के तेजपाल के आरोप पर कटाक्ष करते हुए मंगलवार को कहाöक्या लिफ्ट में तहलका सम्पादक के भीतर भाजपा की आत्मा चली गई थी? अभी वह कह रहे हैं कि भाजपा शासित गोवा की बजाय उनके मामले को किसी अन्य राज्य में चलाया जाए, कल कहेंगे कि इसे देश के बाहर ले जाया जाए। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर ने कहा कि अपने किए के लिए तरुण तेजपाल का गोवा सरकार को जिम्मेदार ठहराना हास्यास्पद है। वह पहले ही छह महीने के लिए पद से हटकर अपराध स्वीकार कर चुके हैं। फिलहाल तरुण तेजपाल की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उनकी किसी भी समय गिरफ्तारी हो सकती है। गोवा पुलिस ने गुरुवार को तीन बजे तक हाजिर होने के समन भेजकर इसके साफ संकेत दे दिए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को बचाओ

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। भारत के घरेलू उत्पाद में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों का योगदान 2007-08, 2008-09 और 2009-10 में क्रमश 17.8, 17.1 और 14.5 प्रतिशत रहा। भारतीय कृषि उत्पादन पर ही देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। कृषि जिसमें फसलें, पशुपालन, मातस्यकीय, वानिकी और एग्रो प्रसंस्करण शामिल हैं  जो देश की जनसंख्या को न केवल भोजन प्रदान करते हैं बल्कि एक बड़ी जनसंख्या को रोजगार भी प्रदान करते हैं और देश को भोजन देते हैं और इन सबके पीछे है किसान। अगर किसान खुशहाल होगा तो देश खुशहाल होगा। उत्तर प्रदेश में किसान की हालत इतनी खराब है कि क्या बताएं? मैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने बोने वाले किसानों की खास बात कर रहा हूं। किसानों को गन्ने का उचित मूल्य दिलाने और चीनी उद्योग को साधने में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार बुरी तरह से विफल साबित हो रही है। समस्या सुलझाने में नाकाम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर केंद्र पर अपनी खीझ उतारने की कोशिश की है। चीनी उद्योग की समस्या के लिए उन्होंने केंद्र को ही जिम्मेदार ठहराया है। पैराई शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री ने चीनी मिल मालिकों को मंगलवार को वार्ता के लिए बुलाया। गन्ना मूल्य को लेकर हो रही सियासत राज्य सरकार पर भारी पड़ सकती है। दरअसल राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) पर गन्ना खरीद का मिलों पर दबाव घातक साबित हो सकता है। फिलहाल इससे किसान भले ही खुश हो जाएं लेकिन मिलों के भुगतान न करने की दिशा में किसानों की नाराजगी और बढ़ सकती है। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में चीनी के आयात-निर्यात नियमों में पर्याप्त संशोधन करने का सुझाव दिया है। उन्होंने पत्र में चीनी उद्योग के हाल के लिए केंद्र की नीतियों को जिम्मेदार बताया है। राज्य सरकार ने गन्ने का एसएपी पिछले साल के बराबर 280 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया है। चीनी मिलें 225 रुपए प्रति क्विंटल  से अधिक देने को राजी नहीं हैं। उनकी मांग है कि रंगराजन फार्मूले के तहत चीनी मूल्य से गन्ने की कीमत को लिंक कर दिया जाए यानि चीनी के दाम का 75 फीसदी गन्ना मूल्य होगा। चीनी उद्योग और राज्य प्रशासन अपने-अपने घोषित मूल्यों पर अड़े हुए हैं। किसान की गन्ने की फसल तैयार है उसे समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे। कुछ किसानों की यह दूसरी गन्ना फसल है। उसे काटने की मजबूरी है क्योंकि अगली फसल बोनी होगी। चीनी मिलों ने भुगतान भी नहीं किया किसी समय उत्तर प्रदेश में 50 चीनी मिलें होती थीं अब मुश्किल से पांच-छह मिलें ही चल रही हैं। किसानों की समस्या यह है कि गन्ना खेती की लागत बढ़ने के बावजूद उन्हें वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही है। दूसरी ओर मिलें गन्ना मूल्य और घटाने के पक्ष में हैं। वह चाहती हैं कि बड़ी कीमत का भुगतान सरकारी खजाने से किया जाए। मगर मिलों का यह तर्प राज्य सरकार के गले नहीं उतर रहा। कहीं ऐसा तो नहीं है कि एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी चालें चली जा रही हैं। अगर किसान की परवाह नहीं होगी तो देश में कभी खुशहाली नहीं आ सकती। जागो अखिलेश किसानों को बचाओ।

Thursday 28 November 2013

रंग लाते चुनाव आयोग के अथक पयास वोट पतिशत बढ़ रहा है

चुनाव आयोग के अथक पयासों का नतीजा है कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां मतदाताओं का अपना मत पयोग करने की बढ़ती संख्या सामने आ रही है। छत्तीसगढ़, मध्यपदेश और मिजोरम में मतदान हो चुका है। छत्तीसगढ़ में रिकार्ड मतदान हुआ अब मध्यपदेश में 70 पतिशत मतदान हुआ है।  एजल से पाप्त खबरों के मुताबिक 80 फीसदी मतदान दर्ज किया गया है। उपचुनाव आयुक्त सुधीर त्रिपाठी ने बताया 230 सीटों वाले मध्यपदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान का आंकड़ा 70 फीसदी से ऊपर रहने की संभावना है जोकि राज्य का अब तक का सबसे ज्यादा मतदान होगा। मध्यपदेश में 2008 में एक विधानसभा चुनाव में 69.28 फीसदी मतदान हुआ था जबकि 2003 में 67.23 फीसदी वोट डाले गए थे। 4 दिसम्बर को  दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वोट पड़ेंगे। इस बार चुनाव आयोग ने दिल्ली में एक नई पहल की है। आम जनता के लिए मतदान होगा 4 दिसम्बर को पर दिल्ली पुलिस का वोट 6 दिन पहले यानि 28 नवम्बर को डाला जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि दिल्ली पुलिस के जवान पहली बार अपना वोट का इस्तेमाल करेंगे। इसकी वजह यह है कि दिल्ली पुलिस की टोटल संख्या में 40 हजार से अधिक पुलिस वाले चुनाव के दिन ड्यूटी पर रहते हैं और इसी वजह से अपने वोट का इस्तेमाल नहीं कर पाते। इस बार दिल्ली में 100 फीसदी वोटिंग के पयासों को अंजाम देने के लिए चुनाव आयाग ने पहली बार दिल्ली पुलिस के साथ कोर्डिनेशन वोटिंग का इंतजाम किया है। दिल्ली पुलिस के टॉप लेवल के  अफसरों ने इस नई व्यवस्था के लिए पैरबी की है। उन्होंने बताया कि मतदान के दिन ड्यूटी पर रहने वाले सभी सिपाही व अफसर पहली बार और तय तारीख से पहले अपना वोट डालेंगे। 28 नवम्बर को दिल्ली पुलिस के डलने वाले वोट ईवीएम मशीन की बजाय बंद लिफाफे के जरिए डालेंगे जिन्हें पोस्टल बैलेट पेपर भी कहा जा सकता है। ये सभी लिफाफे इलेक्शन कमीशन के रिटर्निंग ऑफिसर की निगरानी में बैलेट बॉक्सों को कड़े सुरक्षा इंतजामों के बीच सील कर दिया जाएगा। जो 8 दिसम्बर को बाकी मतों के साथ जुड़ जाएंगे। सभी पुलिस वालों के ड्यूटी चार्ट के साथ वोटिंग फार्मेट लगा होगा। 28 नवम्बर को अलग-अलग डिस्ट्रिक्ट में रिटर्निंग ऑफिसर और 3 से 4 गजेटिड ऑफिसर के साथ पुलिसवालों की इलेक्शन ड्यूटी ट्रेनिंग के दौरान सभी जगह वोट डलवा दिए जाएंगे। यह गजेटिड ऑफिसर चुनाव क्षेत्र के आधार पर सील बंद लिफाफों पर मोहर लगाकर उस क्षेत्र में उन वोटों को पहुंचाने का इंतजाम करेंगे। पुलिस वालों का वोट उसके वोटर कार्ड और उसके चुनाव क्षेत्र के डीसी के पास पहुंचने पर 8 दिसम्बर को काउंटिंग के वक्त उन वोटों को शामिल कर लिया जाएगा। इस बार पहली बार नोटा इस्तेमाल होगा। सुपीम कोर्ट ने उम्मीदवारों को नकारने का विकल्प चुनने वाले मतदाता की संख्या अधिक होने की स्थिति में पुनर्मतदान कराने का निर्वाचन आयोग को निर्देश देने संबंधी याचिका खारिज कर दी है। मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जगन्नाथ नामक व्यक्ति की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि कानून में संशोधन का अधिकार विधायिका का है। इस बारे में कोई निर्देश देने का फिलहाल उचित समय नहीं है।

अनिल नरेन्द्र

आरुषि को मम्मी-पापा ने ही मारा, उम्र कैद की सजा

हमारे समय की सबसे बहुचर्चित और बड़ी मर्डर मिस्ट्री माने जा रहे आरुषि-हेमराज हत्याकाण्ड पर सीबीआई की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। माननीय विशेष सीबीआई न्यायाधीश ने धार्मिक पुस्तकों के सहारे आरुषि के माता-पिता डाक्टर राजेश और डाक्टर नूपुर तलवार को आरुषि और हेमराज के कत्ल का दोषी करार दिया। उन्होंने अपने 204 पेज के फैसले में तलवार दम्पति को हत्या, सबूत नष्ट करने और किसी कृत्य के लिए साझा मंशा को अंजाम देने का दोषी ठहराया। मम्मी-पापा दोनों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। पिछले पांच-साढ़े पांच सालों में इस केस के बहाने न जाने कितने सवाल लोगों के भीतर खदबदाते रहे, सिस्टम को लेकर, नैतिकता-अनैतिकता को लेकर, पिता-पुत्री के सम्बन्धों को लेकर जितना नाटकीय उतार-चढ़ाव इस केस में आया कम केसों में देखने को मिला। अभियोजन के तौर तरीकों और लम्बी कानूनी पकिया पर भले ही सवाल उठाए जाएं मगर अदालत ने आखिरकार तलवार को ही आरुषि और हेमराज की हत्या का दोषी पाया है। असल में 16 मई 2008 की जिस रात इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया गया था, उसके बाद से परिस्थितिजन्य साक्ष्य तलवार दम्पति की ओर इशारा कर रहे थे। अभियोजन का यह तर्प अपने आप में काफी मजबूत था कि जिस फ्लैट में चार लोग हों और दो की हत्या हो जाए और बचे दो को कुछ पता ही न चले, यह कैसे संभव है। निश्चित रूप से इस मामले में सीबीआई की भूमिका भी शुरू से सवालों के घेरे में रही और जिसने एक समय इस मामले को बंद करने तक का फैसला ले लिया था। यह कहना शायद गलत न हो कि फैसले से यूपी पुलिस की जांच पर ही मोहर लगी है। यूपी पुलिस ने ही राजेश तलवार को हत्या का आरोपी मानते हुए गिरफ्तार किया था। बेशक फैसले के बाद नोएडा में तैनात तत्कालीन पुलिस अफसरों ने राहत की सांस ली हो लेकिन उनके जांच के तरीके पर हमेशा सवाल उठते रहेंगे। आरुषि की लाश मिलने के बाद पुलिस ने इस हत्या को आम मामलों की तरह लिया होता तो शायद यह देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री नहीं बनती। ऐसा आमतौर पर कम ही होता है बचाव व अभियोजन पक्ष की दलीलों में बराबर की टक्कर हो। कोर्ट ने कई बार पूरे काइम सीन को रिएक्ट करवाकर राजेश और नूपुर तलवार को वैधानिक तरीके से अपना पक्ष रखने की कोशिश की। जबकि सीबीआई ने फोरेंसिक टेस्ट और हालात के मुताबिक बने सबूतों पर जोर दिया। उसका कहना है कि अपनी 14 वर्षीय बेटी आरुषि को 45 वर्षीय नौकर हेमराज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख राजेश तलवार आपा खो बैठे और पहले उन्होंने हेमराज और फिर आरुषि पर वार कर हत्या कर दी। हत्या के सबूत मिटाने की हर संभव कोशिश की। कोर्ट में जब फैसला आया तो राजेश और नूपुर तलवार ने ऐसे कागज बांटे जिसमें उनके निर्दोष होने के दावे दोहराए गए। जाहिर है कि उन्हें खुद को दोषी करार दिए जाने का अंदेशा रहा होगा। तभी तो कागज पूरी तैयारी के साथ लाए थे। तलवार दंपति बड़े रसूख वाले हाई कनेक्टिड लोग हैं, इसलिए हत्याकांड की सूचना पाकर पहुंची पुलिस को उन्होंने ऐसे पभाव में ले लिया कि छानबीन महज औपचारिकता बनकर रह गई। पुलिस अपनी बुनियादी जिम्मेदारी भूल गई। जिसमें घटना स्थल को गहराई से खंगाला जाता है, सील कर काइम सीन से सबूत इकट्ठे किए जाते हैं। इसी गलती का फायदा तलवार दंपति उठाने के चक्कर में हैं। जाहिर सी बात है कि वह सीबीआई अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। सीबीआई पर तलवार दंपति चाहे जितना भी दोष मढ़ें उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि खुद तलवार दंपति ने सुपीम कोर्ट की चौखट तक यह विवाद पहुंचा दिया था और देश की शीर्ष अदालत भी मान रही थी कि उनके खिलाफ मामला तो बनता ही है। बेशक तलवार दंपति के लिए यह न्याय के बड़े दरवाजे खुले हैं जिनसे रहम की उम्मीद लगाई जा सकती है। अब जेल की सलाखों के पीछे राजेश और नूपुर को यह सोचने का पूरा समय मिलेगा कि उनसे चूक कहां हुई? खुशहाल पृष्ठभूमि और सफल कैरियर के यूं अंत होने पर दुख तो होता ही है। एक तरफ अपनी अकेली औलाद को खोना और दूसरी तरफ अपना बाकी जीवन नष्ट कर देना। अपने गुस्से और पागलपन पर थोड़ा कंट्रोल कर लेते तो यह दिन न देखने पड़ते। तलवार दंपति वाकई कोई पेशेवर हत्यारे नहीं हैं लेकिन उन्हेंने जो कुछ किया उसकी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है। यह मामला कहीं न कहीं उस जीवन शैली पर भी सवालिया निशान लगाता है जहां वर्चनाएं तेजी से टूट रही हैं। हैरत की बात यह है कि दोषी ठहराए जाने के बावजूद तलवार दंपति का व्यवहार पीड़ितें जैसा है। आज सामाजिक मूल्य इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि माता-पिता या तो आर्थिक मजबूरी के कारण काम करते हैं या फिर पार्टियें में इतने मशरूफ रहते हैं कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं इस पर कतई ध्यान नहीं देते। रही सही कसर ड्रग्स, शराब, इंटरनेट और मोबाइल फोन ने निकाल दी है। यह केस हमारे समाज में आई गिरावट का भी एक नमूना है।

Wednesday 27 November 2013

ईरान और अमेरिका व साथियों के बीच ऐतिहासिक समझौता

दुनिया के ताकतवर देशों और ईरान के बीच विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर आखिरकार समझौता हो ही गया। इस समझौते का स्वागत होना चाहिए। इससे दुनिया के एक क्लेश पावर को दूर करने वाला यह समझौता इतने गुप्त तरीके से हुआ कि किसी को कानों कान इसकी भनक तक नहीं लगी। जिनेवा में हुए इस समझौते में अमेरिका और ईरानी वार्ताकारों के बीच चली गोपनीय मुलाकातों की अहम भूमिका रही। गोपनीयता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन वार्ताओं की जानकारी अमेरिका ने इजरायल सहित अपने निकटतम सहयोगियों तक को नहीं दी। सूत्रों की मानें तो राष्ट्रपति बराक ओबामा ने निजी तौर पर ईरानी वार्ताकारों के साथ बातचीत को प्राधिकृत किया है। अमेरिका और ईरानी वार्ताकारों के बीच ओमान और कुछ अन्य देशों के  बीच कई दौर की बैठकें हुईं। इस समझौते से ईरान को सात अरब डॉलर (करीब 44 हजार करोड़ रुपए) की राहत मिलेगी और उस पर छह महीने तक कोई नया प्रतिबंध नहीं लगेगा। इस ऐतिहासिक समझौते की घोषणा रविवार को जिनेवा में प्रमुख वार्ताकार कैथरीन ऐरटन और ईरान के विदेश मंत्री मुहम्मद जावेद जरीफ ने की। जरीफ ने कहा कि हम एक समझौते पर पहुंच गए हैं। इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा कि उनके देश का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यों के लिए है और वह यूरेनियम संवर्द्धन का अधिकार नहीं छोड़ेंगे। उधर ओबामा ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने की दिशा में यह महत्वपूर्ण और पहला कदम है। इस समझौते के खिलाफ सबसे बड़ी प्रतिक्रिया इजरायल की आई। इजरायल ने ईरान और पी-5+1 के बीच हुए इस समझौते का विरोध करते हुए इसे ऐतिहासिक भूल करार दिया है। उसने कहा कि यह सबसे खराब समझौता है, क्योंकि ईरान जो चाहता था उसने हासिल कर लिया। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने जिनेवा में ऐतिहासिक समझौते के कुछ घंटे बाद जारी एक बयान में कहा कि यह खराब समझौता है जो ईरान को वह प्रदान करता है जो वह चाहता था। अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा कि समझौते के बाद ईरान के लिए परमाणु हथियार बनाना और मुश्किल हो जाएगा। हमारे विशेषज्ञ उन पर नजर रखेंगे। अब अमेरिका और उसके सहयोगी पूरी तरह सुरक्षित हैं। चीन के विदेश मंत्री वांग ची का कहना था कि दुनिया में शांति बहाली के लिए यह समझौता अहम साबित होगा। इससे साफ हो गया है कि ईरान भी सहयोग के लिए तैयार है। भारत ने इस समझौते का स्वागत करते हुए कहा कि भारत समाधान की संभावना का स्वागत करता है। ईरान और छह देशों के बीच बनी सहमति भारत द्वारा मामले पर अपनाए गए रुख के भी अनुरूप है। भारत यह कहता रहा है कि ईरान को नाभिकीय तकनीक के शांतिपूर्ण इस्तेमाल का हक है, लेकिन उसे गैर-परमाणु हथियार सम्पन्न देश बने रहने के अपने अंतर्राष्ट्रीय वादे को निभाना चाहिए। हालांकि यह समझौता फिलहाल छह महीने के लिए है पर इसमें ईरान को अपनी नीयत साफ करने का मौका जरूर मिलेगा। इन छह महीनों में यदि ईरान ने समझौते का पालन तय शर्तों के अनुरूप किया तो दुनिया की मुख्यधारा में उसकी वापसी के आसार स्वर्णमय हो जाएंगे। समझौते का तात्कालिक फायदा तो ईरान को ही मिलना है जो तमाम तरह के प्रतिबंधों के चलते आर्थिक बदहाली की कगार पर पहुंच गया था। समझौता अगर चल निकला तो यह अमेरिका के लिए भी एक बड़ी कूटनीतिक विजय होगी। ईरान पर आरोप है कि वह एटम बम बनाने की तैयारी कर रहा है जिसके लिए वह गोपनीय तरीके से यूरेनियम का संवर्द्धन और संवर्द्धित यूरेनियम के भंडार जमा कर रहा है। अब समझौते के तहत वह यूरेनियम का संवर्द्धन तो कर पाएगा लेकिन इसकी सीमा पांच फीसदी से ज्यादा नहीं होगी। समझौते में यह शर्त भी है कि 20 फीसद से अधिक संवर्द्धित यूरेनियम को ईरान नष्ट कर देगा। इसके अलावा वह अपने अराक न्यूक्लियर रिसर्च केंद्र को भी बंद करने पर सहमत हो गया है जिसे  लेकर दुनियाभर में आशंका पनप रही थी। सबसे महत्वपूर्ण पहलू शायद इस समझौते का यह है कि तीन दशक से भी अधिक समय से अमेरिका और ईरान के बीच जो संवाद-सेतु बिल्कुल ठप-सा था वह इस समझौते से फिर चालू हो गया है। उम्मीद की जा सकती है कि जहां एक और मध्य पूर्व में शांति स्थापना की उम्मीदें बढ़ेंगी वहीं आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध भी कायम हो सकते हैं। समझौते का असर पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों पर तात्कालिक अंकुश के रूप में भी दिखेगा,  ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

चार राज्यों के चुनाव हैं सेमीफाइनल ः दांव पर है मोदी और राहुल की साख व प्रतिष्ठा

दिल्ली सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव एक तरह से सेमीफाइनल हैं जो 2014 के लोकसभा चुनाव की फाइनल दिशा और दशा तय करेंगे। हालांकि दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा इन्हें सेमीफाइनल होने से इंकार कर रही हैं। दोनों पार्टियों की साख दांव पर लगी है और साथ-साथ दांव पर है नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी की प्रतिष्ठा। वैसे यह जरूरी नहीं कि जो संकेत विधानसभा चुनावों में मिले वही परिणाम लोकसभा चुनाव में भी आएं। इसकी वजह यह है कि पिछले दो लोकसभा चुनाव में इन राज्यों के चुनावी नतीजों की झलक लोकसभा चुनाव में नजर नहीं आई लेकिन यह जरूर है कि विधानसभा चुनाव के नतीजों को कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपने-अपने तरीकों से भुनाने की कोशिश करेंगी। 2008 के विधानसभा चुनावों में चार प्रमुख विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश की कुल 230 सीटों में भाजपा 143 और कांग्रेस 71 सीटें जीती थी। छत्तीसगढ़ की कुल 90 सीटों में भाजपा 49 और कांग्रेस 38। राजस्थान की कुल 200 सीटों में कांग्रेस 96 और भाजपा 78 सीटों पर विजयी रही और दिल्ली की कुल 70 सीटों में कांग्रेस 42 और भाजपा 23 सीटें जीती थी, चलिए अब नजर डालते हैं इन चार राज्यों के संभावित परिणामों पर। इन चार राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर है। दिल्ली में बेशक आप पार्टी की मौजूदगी है पर मैं उसे ज्यादा गंभीर नहीं मानता। ज्यादा से ज्यादा वह वोट कटवा साबित हो सकती है और इक्का-दुक्का सीट जीत सकती है। फिलहाल इन राज्यों में हिसाब बराबर है, दो राज्यों में कांग्रेस सरकार है और दो राज्यों में भाजपा सरकार। अगर चारों राज्यों में ही भाजपा की जीत होती है तो भाजपा का हौंसला बढ़ेगा और इससे न सिर्प लोकसभा चुनाव में उसकी हालत मजबूत होगी बल्कि उसके पीएम पद के  केंडिडेट नरेन्द्र मोदी की दावेदारी मजबूत होगी। लेकिन इससे राहुल गांधी और कांग्रेस की स्थिति गड़बड़ा जाएगी जिसका सीधा असर केंद्र की सरकार पर पड़ेगा। यह भी हो सकता है कि उस हालत में कुछ सहयोगी दल कांग्रेस का 2014 लोकसभा चुनाव में साथ छोड़ दें। लेकिन अगर उल्टा होता है और कांग्रेस चारों राज्यों में जीत जाती है तो भाजपा और नरेन्द्र मोदी दोनों के लिए भारी मुसीबत होगी। कांग्रेस उस सूरत में मोदी पर सीधा हमला करेगी और कहेगी कि मोदी सिर्प मीडिया की क्रिएशन है जिनमें कोई दम-खम नहीं। हाल ही में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि अगर मोदी इन राज्यों में हारते हैं तो उनका बुलबुला फूट जाएगा। अगर विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए खराब होते हैं तो कांग्रेस 2014 से पहले ही भाजपा के खात्मे की बात कहने लगेगी। वैसे भाजपा और कांग्रेस दोनों ही हार की स्थिति में अपने बचाव के लिए भी तैयार हैं। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह कहते हैं कि विधानसभा चुनावों के नतीजों का नरेन्द्र मोदी के ऊपर टिप्पणी के जैसे देखने का सवाल ही नहीं उठता। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल विधानसभा चुनावों को लोकसभा से पहले सेमीफाइनल मानने से इंकार करते हैं। अगर तीन राज्यों में भाजपा और एक में कांग्रेस जीते तो उस हालत में भी यह जरूर मान लिया जाएगा कि भाजपा आगे है। ऐसे में कांग्रेस की एक हार को वह भुनाने की कोशिश करेगी और चाहेगी कि यह माना जाए कि लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ते देश का कांग्रेस के प्रति मोहभंग हो चुका है। दूसरी ओर अगर कांग्रेस तीन राज्यों में जीतती है तो उसके लिए यह नतीजे संजीवनी बूटी की तरह काम कर सकते हैं। उस सूरत में कांग्रेस यह भी कहेगी कि राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी पर भारी पड़े हैं। कांग्रेस यही बताने का प्रयास करेगी कि भ्रष्टाचार व महंगाई कोई बड़ा मुद्दा नहीं और आज भी उसे जन समर्थन प्राप्त है। अगर ऐसा होता तो भाजपा का फिर एनडीए बनाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि बहुत कम पार्टियां खुलकर भाजपा का साथ देंगी। अगर दो-दो पर परिणाम छूटता है तो यह स्थिति होगी कि न हारे हम और न जीते तुम, लेकिन ऐसा होने की संभावना बहुत कम है। प्राप्त संकेतों से मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा का पलड़ा भारी है। छत्तीसगढ़ में मतदान का ज्यादा होना कांग्रेस के हक में जा सकता है। रही बात दिल्ली की तो कांटे की टक्कर है, कुछ सीटें कांग्रेस की पक्की हैं तो कुछ भाजपा की। बाकी सीटों पर असल मुकाबला है। देखना यह होगा कि आप पार्टी किसके वोट ज्यादा काटती है? कुल मिलाकर चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिमाम तय करेंगे 2014  के लोकसभा चुनाव के संभावित परिणाम।

Tuesday 26 November 2013

एक साल बीत गया कहां पहुंची पोंटी चड्ढा केस की तफ्तीश?

एक साल पहले दक्षिण दिल्ली के छतरपुर इलाके में एक फार्म हाउस में एक अत्यंत सनसनीखेज खूनी खेल हुआ था। प्रॉपर्टी विवाद को लेकर दोनों तरफ से हुई ताबड़तोड़ फायरिंग में शराब के सबसे बड़े कारोबारी गुरदीप सिंह चड्ढा उर्प पोंटी चड्ढा (55) और उनके भाई हरदीप चड्ढा की मौत हो गई थी। पोंटी चड्ढा हत्याकांड मामले में एक वर्ष बीतने के बाद अब जल्द ही अभियोग तय होने के आसार बन रहे हैं। 22 में से 21 आरोपियों के वकीलों ने अपना-अपना पक्ष रख दिया है। अब मात्र मुख्य आरोपी सुखदेव सिंह नामधारी का पक्ष आने से दिसम्बर में तय हो जाएगा कि सभी अभियुक्तों के खिलाफ केस किस-किस धारा में  चलेगा। मुख्य आरोपी उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन पद से हटाए गए सुखदेव सिंह नामधारी ने स्वयं को निर्दोष बताया है। शुक्रवार को साकेत स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीके यादव के समक्ष आरोपियों के खिलाफ अभियोग तय करने के मुद्दे पर सुनवाई आरम्भ करते हुए अधिवक्ता केके मेनन ने कहा कि नामधारी की रिवाल्वर से जो गोली चली है, उसका मिलान चड्ढा बंधुओं के शरीर से निकली गोली से नहीं हुआ है। इसी प्रकार उनके पीएसओ सचिन त्यागी द्वारा चलाई  गई गोली भी उन्हें नहीं लगी। वहीं पुलिस ने हरदीप के गनमैन व पंजाब से मिले पीएसओ के हथियार सीज नहीं किए। दोनों की गोली से ही चड्ढा बंधुओं की मौत हुई है जबकि उनके मुवक्किल पर हत्या का आरोप जड़ दिया गया है। नामधारी ने ही मामले की प्राथमिकी दर्ज करवाई थी। पुलिस ने रोजनामचे में रिक्त स्थान छोड़कर बाद में उनके मुवक्किल के खिलाफ दूसरी शिकायत लिख दी। गोलीबारी में घायल नरेन्द्र का बयान भी दर्ज नहीं किया गया। फार्म हाउस पोंटी की फर्म के नाम था। ऐसा कोई भी दस्तावेज नहीं है कि पोंटी ने कब फार्म हाउस हरदीप को दिया था। 17 नवम्बर 2012 की सुबह हुए इस हत्याकांड में पुलिस ने नौ महीने पहले आरोप पत्र दाखिल किया था। पुलिस ने अभियोग तय करने के मुद्दे पर जिरह पूरी कर ली है। आरोप पत्र पर पोंटी को भी भाई हरदीप सिंह चड्ढा की हत्या व फार्म हाउस में कब्जे के षड्यंत्र में आरोपी बनाया है। पोंटी की मौत होने से उसके खिलाफ मुकदमा नहीं चलेगा। बहस के दौरान अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि भाइयों के बीच सम्पत्ति विवाद के चलते बातचीत नहीं होती थी। अभियोजन पक्ष ने कहा कि सम्पत्ति का विवाद 16 नवम्बर की रात में नहीं सुलझ पाया था, इसलिए सम्पत्ति को किसी तरीके से हासिल करने की वजह से दोनों भाइयों के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें दोनों भाई मारे गए। अभियोजन पक्ष ने कहा कि हरदीप घटनास्थल पर पहुंचे थे और जब पोंटी के लोग गेट खोल रहे थे तभी हरदीप ने उन पर और पोंटी पर भी गोलियां चलाना शुरू कर दिया था। अभियोजन पक्ष का कहना है कि पोंटी के भाई हरदीप के फार्म हाउस पर जबरन कब्जा करने के लिए मुख्य रूप से नामधारी व स्वयं पोंटी ने षड्यंत्र रचा था। इस काम में नामधारी के गुर्गे भी लिप्त हैं। पोंटी के कहने पर ही नामधारी अपने गुर्गों के साथ उत्तराखंड से आया था। इन सभी ने पोंटी से बात की और छतरपुर व बिजवासन में फार्म हाउस पर कब्जे का षड्यंत्र रचा। सभी अभियुक्त खतरनाक हथियारों से लैस होकर फार्म हाउस पहुंचे व इस घटना को अंजाम दिया। नामधारी व सचिन त्यागी ने पहले से ही तय कर लिया था कि विरोध करने वालों की हत्या कर दी जाएगी। इसी कारण उन्होंने हरदीप की हत्या कर दी। नामधारी ने हरदीप पर तीन गोलियां चलाईं जबकि त्यागी ने ऑटोमैटिक कार्बाइन से गोलियां चलाईं। पोंटी चड्ढा परिवार और हरदीप चड्ढा परिवार आज एक साथ खड़ा है। इस केस से जुड़े दोनों परिवार बेहिसाब दौलत की खातिर दुश्मनी भुलाकर एक साथ आ गए हैं। पोंटी ने अपने पीछे करीब 25 हजार करोड़ रुपए की विरासत छोड़ी। दोनों भाइयों की पहली बरसी पर वे एक साथ इकट्ठे हुए।अब वे साथ-साथ कारोबार संभाल रहे हैं। ग्रुप के प्रवक्ता रवि सोढी कहते हैं, हादसे के शिकार दोनों हुए। अब वे साथ-साथ हैं।

-अनिल नरेन्द्र

हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी दुश्मन है वोट बैंक पालिटिक्स

हमारे देश में सांप्रदायिक दंगों से पीड़ितों को न्याय मिलने का रिकार्ड अच्छा नहीं है। हाल ही में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बारे में हम जो कहते थे और इसी कॉलम में कई बार लिखा भी, वही बात माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दी है। मुजफ्फरनगर दंगे न केवल सियासी थे जिनमें पक्षपात हुआ और यही पक्षपात राहत देने और कसूरवारों को सजा देने में उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने अपनाया। मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के लिए मुआवजे की नीति में भेदभाव को लेकर गत बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई। गौरतलब है कि राज्य सरकार की ओर से दंगा पीड़ितों के मुआवजे के संबंध में जारी अधिसूचना में सिर्प मुस्लिम परिवारों का जिक्र किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि मुआवजे का हकदार कोई खास समुदाय नहीं बल्कि हर समुदाय का पीड़ित है। चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने यूपी सरकार की अधिसूचना में पक्षपात का आरोप लगाया। इस पर पीठ ने राज्य सरकार के अधिवक्ता राजीव धवन से पूछा कि क्या सिर्प एक समुदाय को मुआवजा देने की अधिसूचना जारी की गई है? इस पर धवन के जवाब पर अदालत ने गहरा असंतोष जताते हुए कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है। मुआवजे के हकदार सभी पीड़ित हैं, साथ ही कोर्ट ने कहा कि अच्छा तो यही होगा, राज्य सरकार इस अधिसूचना को तत्काल वापस ले और नई अधिसूचना जारी कर सभी समुदायों के पीड़ितों को मुआवजा देने की घोषणा करे। जाट महासभा ने जनहित याचिका में 26 अक्तूबर की अधिसूचना को चुनौती दी थी। इसमें कहा गया है कि सरकार दंगा प्रभावित मुस्लिम परिवारों के पुनर्वास के लिए 90 करोड़ रुपए जारी कर रही है। प्रत्येक परिवार को पांच-पांच लाख रुपए दिए जाएंगे। सरकारी वकील ने यह भी कहा कि मुजफ्फरनगर, शामली आदि जिलों के कई मुस्लिम परिवार वापस जाने को तैयार नहीं हैं, इसलिए उनके लिए 90 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं। मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में गत 7 सितम्बर और उसके बाद हुए दंगों में कम से कम 61 लोग मारे गए हैं, जबकि सैकड़ों लोगों ने घरबार छोड़कर शिविरों में शरण ले रखी है। राहत शिविरों में लगभग 1800 परिवार अब भी हैं। अब तक करीब 100 परिवार तो मुआवजे की राशि ले भी चुके हैं। यहां सवाल यह है कि यह अधिसूचना जारी करना महज एक चूक थी या इसके पीछे कोई सोची-समझी मंशा काम कर रही थी? यह आरोप शुरू से ही लगते रहे कि मुजफ्फरनगर के दंगे चुनावी स्वार्थ से प्रेरित थे। भाजपा ने गुरुवार को आगरा में हुई अपनी रैली में नरेन्द्र मोदी के पहुंचने से पहले पार्टी के उन दो विधायकों को सम्मानित किया जो सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के आरोपी थे और अभी जमानत पर बाहर हैं। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने बरेली में रैली कर मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मौजूदगी में एक मौलाना को सम्मानित किया जिन पर बरेली में 2010 में हुए दंगों का आरोप है। मुजफ्फरनगर दंगों की जांच और कार्रवाई में इस वोट बैंक की सियासत तब नजर जब आई एकपक्ष के लोगों को गिरफ्तार कर उन पर कानूनी कार्रवाई हुई और दूसरे पक्ष को छुआ तक नहीं। इस संबंध में रविन्दर कुमार ने एक नई याचिका दायर की है। उनका कहना है कि स्पेशल जांच (इन्वेस्टीगेशन) सेल के पुलिस अधिकारी उन पर हलफनामा बदलने का दबाव बना रहे हैं। इस वजह से मामले की जांच सीबीआई या किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए। मामला उनके बेटे और भाई की हत्या से जुड़ा है। इसी हत्याकांड के बाद 7 सितम्बर को मुजफ्फरनगर में दो समुदायों के बीच दंगा भड़का था। हमारे लोकतंत्र को वोट बैंक पालिटिक्स से सबसे बड़ा खतरा है। भाई-भाई को अपनी सियासत के लिए अलग-अलग किया जा रहा है। यह राजनेता खासकर यूपी में सपा मुस्लिमों का भला नहीं कर रही है। वह सदियों से साथ-साथ रहने वाले हिन्दू-मुस्लिमों में दरार पैदा कर रही है। वह यह भूल जाती है कि दोनों समुदायों ने आखिर वापस अपने घर आना है, वहीं रहना है। दरार इतनी चौड़ी न हो जाए कि वह साथ-साथ न रह सकें। कारोबार भी एक-दूसरे के साथ होता है। यह सामाजिक दोस्ताना दंगों से तोड़ा नहीं जा सकता। दरार इतनी चौड़ी कर दी है कि राहत शिविरों से मुस्लिम परिवार डर के मारे वापस अपने घर ही नहीं जाना चाहते। आखिर मुसलमानों का एक तबका सपा से पूछ रहा है कि पूरे प्रकरण में हमें आखिर क्या हासिल हुआ? मुसलमानों का क्या भला किया? बेहतर हो कि समाजवादी पार्टी यह वोट बैंक सियासत को बंद करे और भाई-भाई को आपस में न लड़वाए, दोनों में दरार चौड़ी न करें।

Sunday 24 November 2013

पाकिस्तान में चैनलों पर जुर्माना और भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध?

पाकिस्तान में हिन्दुस्तानी फिल्मों व टीवी प्रोग्रामों की बढ़ती लोकप्रियता अब वहां की अदालतों और सरकार दोनों को सताने लगी है। पहले तो पाकिस्तान इलैक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथारिटी ने 10 टीवी चैनलों पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया फिर लाहौर हाई कोर्ट ने भारतीय फिल्मों की क्रीनिंग पर मंगलवार को रोक लगा दी। पहले बात करते हैं टीवी चैनलों पर रोक की। पाक अथारिटी ने 10 चैनलों पर जुर्माना इसलिए लगाया कि उन्होंने निर्धारित समय से ज्यादा भारत से जुड़ी सामग्री प्रसारित की। सोमवार को एक मीडिया रिपोर्ट से यह पता चला। खबर में हवाला पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दस्तावेज का दिया गया है। इसमें कहा गया है कि कई पाकिस्तानी चैनल तय समय से काफी अधिक मात्रा में भारतीय और अन्य विदेशी कंटेट प्रसारित कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथारिटी इससे चिंतित है। उसने दोषी 10 चैनलों पर जुर्माना लगाते हुए उन्हें आगाह किया है कि वह इस तरह की गलती दोबारा न करें। पाकिस्तानी चैनलों को 10 फीसदी विदेशी कंटेट प्रसारित करने की अनुमति है। इस 10 फीसदी का 60 फीसदी भारतीय या अन्य का होना चाहिए। बाकी 40 फीसदी अंग्रेजी कंटेट होता है। अब बात करते हैं लाहौर हाई कोर्ट आर्डर की। लाहौर हाई कोर्ट के जस्टिस खालिद महमूद ने विवादास्पद टीवी टॉक शो के एंकर मुबशीर लुकमान की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर इस बारे में अंतरिम आदेश जारी किया है। गौरतलब है कि लुकमान पूर्व फिल्म निर्माता हैं और अपने भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं। अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया था कि पाकिस्तानी नियमों के तहत पूरी तरह भारत में फिल्माई गई और किसी भारतीय द्वारा प्रायोजित फिल्म को नहीं दिखाया जा सकता। लुकमान ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों को दिखाने के लिए प्रायोजकों की पहचान बदलने की खातिर फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जाता है। दावे के समर्थन में उन्होंने कोर्ट का एक आदेश भी पेश किया। कोर्ट ने लुकमान की याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 25 नवम्बर की तारीख तय की है और इस वक्त तक सेंसर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू को भी जवाब दाखिल करने की बात कही है। पाकिस्तान में इन दिनों भारत के खिलाफ एक विरोधी अभियान-सा चल रहा है और यह पाकिस्तान में बचे-खुचे हिन्दुओं के खिलाफ भी चल रहा है। टीवी फिल्मों के अलावा पाकिस्तान में हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार पर आवाज उठाने वालों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों (हिन्दुओं) पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद करना मानवाधिकार कार्यकर्ता जुल्फिकार शाह और उनकी पत्नी गुलाम फातिमा शाह को भारी पड़ गया। दोनों को अपने देश से बेदखल होकर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ा। पाक सेना और आईएसआई ने उन पर अनगिनत जुल्म ढाए। जुल्म की इंतहा तब हो गई जब जुल्फिकार को स्लो पायजन (लेड और आंसेनिक) देकर खामोशी से मरने के लिए छोड़ दिया गया। पाक सरकार ने जब उन्हें देश बदर कर दिया तो वह नेपाल पहुंचे। नेपाल में भी आईएसआई ने उन पर जानलेवा हमले कराए। बचते-बचते यह दम्पत्ति अब दिल्ली पहुंचे हैं। उन्होंने भारत सरकार से शरण मांगी है जो विचारार्थ है। एक तरफ तो पाकिस्तान भारत से दोस्ती की बात करता है और दूसरी तरफ इतना भारत विरोध। इसीलिए कहते हैं कि पाक के हुक्मरान दोगले हैं जिनकी कथनी और करनी में बहुत फर्प है।

-अनिल नरेन्द्र

केजरीवाल साहब अब आप का क्या होगा जनाबे आली?

जैसे-जैसे दिल्ली में मतदान की तारीख करीब आती जा रही है वैसे-वैसे अरविन्द केजरीवाल और उनकी आप पार्टी की साख व ग्रॉफ दोनों गिरते जा रहे हैं। आप पार्टी के खिलाफ एक के बाद एक फ्रंट खुलता जा रहा है। पहले तो चुनावी फंड का मामला आया। विदेश से केजरीवाल ने जो चन्दा लिया वह कानूनों का उल्लंघन है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बाहर से फंड ऐसे संगठनों से भी वसूला जा रहा है जो एंटी-नेशनल हैं और आतंकवादियें तक की फंडिंग करते हैं। मामले की जांच हो रही है, अगर इसमें सच्चाई निकलती है तो मामला अत्यंत गम्भीर हो जाता है पर जब तक जांच एजेंसियां किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती तब तक दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन हां इतना जरूर है कि जो 18 करोड़ रुपए विदेशों से आया है वह भारतीय रिजर्व बैंक के तय कायदों के अनुसार नहीं। चुनाव के लिए फंड जुटाने के आरोपों को झेल रही पार्टी अपना पक्ष पूरी तरह से भी नहीं रख पाई थी कि अन्ना ने उनके नाम प्रयोग पर नाराजगी जाहिर कर दी। इस प्रकरण की एक सीडी भी आ गई है। इसमें अन्ना ने खुलकर कहा है कि केजरीवाल और उनके लोगों ने उनके नाम का इस्तेमाल करके करोड़ों रुपए बटोर लिए हैं जबकि उन्हें एक पैसा नहीं मिला। बताया जा रहा है कि सीडी पिछले साल दिसम्बर में बनी थी। लेकिन इसे प्रसारित अब किया जा रहा है। रही-सही कसर आप के 9 उम्मीदवारों पर आए एक स्टिंग ऑपरेशन ने पूरी कर दी। यह स्टिंग ऑपरेशन वेबसाइट मीडिया सरकार ने किया है। आप के 9 नेताओं का स्टिंग हुआ है। स्टिंग के अनुसार अरविन्द केजरीवाल की खास सिपहसालार व आरके पुरम से आप पार्टी की उम्मीदवार शाजिया इल्मी को बेनामी चन्दा एडजस्ट कराने में शामिल दिखाया गया है। स्टिंग में रिपोर्टर ने उनसे एक काम करवाने के एवज में 15 लाख रुपए देने की पेशकश की। उन्हें अवैध प्रॉपर्टी विवाद में मदद करनी थी जिस पर उन्होंने सहमति व्यक्त की। शाजिया ने तो यहां तक कहा कि जरूरत पड़ने पर वह कई कार्यकर्ताओं के धरने-प्रदर्शन तक करवा देंगी। मीडिया सरकार डॉट कॉम नाम की जिस वेबसाइट के द्वारा यह स्टिंग ऑपरेशन करवाए गए उसके सीईओ अनुरंजन झा ने बताया कि यह सारे स्टिंग दीपावली के बाद कराए गए हैं और शाजिया का स्टिंग तो अभी हफ्तेभर पहले ही किया गया। स्टिंग के जरिये एक बार फिर पार्टी की फंडिंग को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। शुक्रवार को आप पार्टी ने स्टिंग ऑपरेशन में फंसे सभी आप उम्मीदवारों को क्लीन चिट दे दी। आप के पालिटिकल अफेयर्स कमेटी (पीएसी) के सदस्य योगेन्द्र यादव ने शुक्रवार को कहा कि स्टिंग की सीडी से छेड़खानी की गई है। हर बात को उसके सन्दर्भ से काटकर दिखाया गया है। यादव ने आरोप लगाया कि स्टिंग बनाने वाली वेबसाइट ने यह कहकर रॉ फुटेज देने से मना कर दिया कि यह केवल किसी संवैधानिक संस्था को ही रॉ फुटेज देंगे, इसलिए हम इन आरोपों को खारिज करते हैं और स्टिंग और सीडी बनाने वालों और इसे दिखाने वाले न्यूज चैनलों के खिलाफ सोमवार को मानहानि का केस किया जाएगा। यह स्टिंग ऑपरेशन की प्रामाणिकता कोई स्वतंत्र एजेंसी ही बता सकती है और जांच के बाद ही इस पर कोई टिप्पणी की जा सकती है। कुल मिलाकर आप पार्टी और अरविन्द केजरीवाल की साख लगातार गिर रही है। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की वैचारिक कोख से जन्मे थे अरविन्द केजरीवाल। जन लोकपाल के मुद्दे पर दिल्ली में जो ऐतिहासिक आंदोलन हुआ था, उसी से केजरीवाल  लाइट में आए थे। बाद में वह अन्ना के साथ आमरण अनशन करने वाले आंदोलनकारी भी बन गए पर दोनों के रास्ते तब अलग हो गए जब केजरीवाल राजनीति में कूद पड़े। आम आदमी का जन्म भ्रष्टाचार मुक्त, साफ, स्वच्छ राजनीति का सपना दिखाने से हुआ। केजरीवाल पर जो आरोप लग रही है उससे तो ऐसा लगता है कि उनकी पार्टी और अन्य राजनीतिक दलों में कोई फर्प नहीं है। यह भी वह सब कुछ कर रहे हैं जो आमतौर पर दूसरी पार्टियां करती हैं। फिर फर्प क्या रहा? अब किस मुंह से केजरीवाल और उनकी पार्टी के उम्मीदवार जनता के बीच स्वच्छ राजनीति करने की बात करेंगे। दिल्ली की जनता में आप पार्टी का मोह भंग हुआ है। मतदान में यह कितना रिफ्लैक्ट करता है इसका तो पता चार दिसम्बर को ही लगेगा पर हां अरविन्द केजरीवाल की साख और छवि दोनों को भारी धक्का जरूर लगा है।

Saturday 23 November 2013

रामदेव के बढ़ते आक्रामक तेवरों को पस्त करने के लिए एक साथ 81 केस




योग गुरू बाबा रामदेव द्वारा यूपीए सरकार के खिलाफ बोलना उन्हें भारी पड़ सकता है। बाबा रामदेव पर कांग्रेस नेतृत्व ने कानूनी शिकंजा कसने की पहल तेज कर दी है। एक उद्देश्य यह लगता है कि बाबा को केसों में इतना फंसा दो कि वह इस चुनावी अभियान में भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के साथ ज्यादा सियासी तहलका न मचा सकें। उल्लेखनीय है कि लम्बे समय से बाबा रामदेव कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ तीखे हमले बोल रहे हैं। वह खुलकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भ्रष्ट बताने में कोताई नहीं बरत रहे। पिछले कई महीनों से बाबा देशभर में घूम-घूम कर काले धन और कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक मुहिम चलाने में लगे हैं। कुछ दिनों से तो वह दिन-रात नरेन्द्र मोदी के नाम की ही माला जप रहे हैं। बाबा पर अंकुश लगाने के लिए उनके पतांजलि आश्रम के खिलाफ उत्तराखंड सरकार ने कानूनी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसके तहत हरिद्वार जिला प्रशासन ने बाबा रामदेव के चार ट्रस्टोंöदिव्य योग मंदिर ट्रस्ट हरिद्वार, पतांजलि योग पीठ ट्रस्ट हरिद्वार, पतांजलि आयुर्वेदिक लिमिटेड पदार्थो हरिद्वार और पतांजलि विश्वविद्यालय एवं योग पीठ ट्रस्ट के खिलाफ कुल 83 मुकदमे विभिन्न धाराओं में दर्ज किए हैं। इनमें 10 करोड़ रुपए जमीनों की खरीद-फरोख्त में स्टाम्प ड्यूटी की चोरी का मामला भी दर्ज है। यह जानकारी बुधवार को देहरादून में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने दी। पतांजलि ट्रस्ट के मुखिया बाबा रामदेव हैं। यह ट्रस्ट बड़े पैमाने पर आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करता है। इस कारोबार का सालाना टर्नओवर एक हजार करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया है। उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार है। मुख्यमंत्री बहुगुणा ने कहा कि भ्रष्टाचार और काले धन की मुहिम चलाने वाले स्वामी रामदेव दूध के धुले नहीं हैं। उन्होंने पूर्व की भाजपा सरकार से मिलकर सरकार की तमाम जमीन अपने ट्रस्ट के लिए मुफ्त हड़प ली थी। ऐसी जमीनों का पता लगाकर पतांजलि आश्रम से मुक्त करा लिया जाएगा। जिन अधिकारियों ने गैर कानूनी ढंग से बाबा रामदेव के कारोबार में मदद की है उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। पतांजलि ट्रस्ट के मुख्य कर्ताधर्ता  आचार्य बाल कृष्ण ने कहा है कि राजनीतिक कारणों से कांग्रेस आलाकमान के इशारों पर यह उत्पीड़न की कार्रवाई हो रही है। चाहे 81 की जगह 810 मुकदमे करा दे हम पीछे हटने वाले नहीं और न ही डरने वाले हैं। बाबा की बयानबाजी से कांग्रेस आलाकमान सख्त नाराज है। दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी नेता उन्हें कोसते रहते हैं। दरअसल दो साल पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा ने यूपीए सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन किया था। जब गिरफ्तार करने की नौबत आई तो बाबा ने गिरफ्तारी से बचने के लिए महिलाओं के कपड़े पहन लिए। बाबा ने दावा किया कि उन्हें मारने की योजना थी और जान बचाने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ा। उस रात रामलीला मैदान में पुलिस ने भयंकर लाठीचार्ज किया जिसमें एक महिला की मौत हो गई और दर्जनों बाबा के अनुयायी घायल हुए थे। इस प्रकरण के बाद बाबा और कांग्रेस के बीच तनातनी बढ़ गई। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने उनके ट्रस्टों के खिलाफ जो कानूनी शिकंजा कसा है उसके पीछे की रणनीति बाबा रामदेव के आक्रामक तेवरों को पस्त करने की है। रामदेव के लोगों को आशंका होने लगी है कि इन मामलों की आड़ में सरकार योग गुरू को गिरफ्तार न कर ले। आचार्य बाल कृष्ण को तो वह गिरफ्तार कर ही चुकी है। देखें, आगे क्या होता है?

-अनिल नरेन्द्र

तहलका के तरुण तेजपाल कानून से ऊपर नहीं है, कानून अपना काम करे


खोजी पत्रकारिता में अपना नाम कमाने वाले तहलका के सम्पादक ने एक ऐसी घिनौनी हरकत की है जिससे तमाम मीडिया वालों चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के हों का सिर शर्म से झुक गया है। तरुण तेजपाल जैसा पत्रकार सम्पादक ऐसी गलत हरकत कर सकता है कभी कल्पना भी नहीं की थी। आरोप है कि तहलका की एक महिला पत्रकार का तेजपाल ने दो बार रेप किया। वाकया 8-10 नवम्बर का है। तहलका यूनिट गोवा में एक इवेंट के दौरान तेजपाल ने शराब के नशे में साथी महिला पत्रकार से वहां के होटल की लिफ्ट में उसे खींच लिया था ताकि उसका उत्पीड़न कर सकें। यह महिला तरुण तेजपाल की बेटी की सहेली है और उसने तेजपाल से कहा भी कि मैं आपकी बेटी की बराबर हूं कृपया यह सब न करें पर तेजपाल ने जोर जबरदस्ती की। तरुण तेजपाल  बचने के लिए खुद ही जज भी बन गए। आरोपी भी खुद, जज भी खुद और फैसला भी खुद ही कर लिया। अपनी काली करतूत मानते हुए तेजपाल ने एक ईमेल के जरिए तहलका की प्रबंध सम्पादक शोभा चौधरी को लिखा कि मैं अपना कसूर मानता हूं और मैंने पीड़िता से माफी भी मांग ली है। प्रायश्चित के तौर पर तहलका समूह से छह महीने के लिए इस्तीफा दे रहा हूं। ऐलान किया कि मैं छह महीने के लिए दफ्तर भी नहीं आऊंगा। शोभा चौधरी ने अपने स्टाफ को एक ईमेल जारी करके इस प्रकरण की जानकारी देते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना पिछले दिनों फिल्म फैस्टिवल के दौरान गोवा के एक फाइव स्टार होटल में हुई है। इसके लिए तरुण तेजपाल ने माफी मांग ली है और प्रायश्चित के तौर पर वह छह महीने कामकाज से अलग रहेंगे। यह भी कहा कि संबंधित रिपोर्टर ने उन्हें भी माफ कर दिया है। पीड़िता ने शुक्रवार को प्रबंधन के रुख पर नाराजगी जताई। कहा, मैं संतुष्ट नहीं हूं। मेरे मामले में प्रबंधन द्वारा सख्त कार्रवाई नहीं की गई और न ही शिकायत समिति बनी। तरुण तेजपाल के खिलाफ पुख्ता केस बनाने के लिए  पीड़िता को पुलिस व मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान देना होगा,एक औपचारिक कम्पलेंट करनी होगी ताकि उसके बिनाह पर पुलिस एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई कर सके पर जहां तक मीडिया में छपी खबरों के अनुसार पीड़िता ने अभी कोई फार्मल कम्पलेंट नहीं की। उधर तहलका वाले मामले को रफादफा करने में लगे हैं। कभी कहते हैं कि यह हमारा अंदरूनी मामला है तो कभी कहते हैं कि पीड़िता ने तेजपाल की माफी स्वीकार कर ली है और उसे माफ कर दिया है। सवाल केवल पीड़िता व तेजपाल का नहीं है। यह एक अपराध है और मामला स्टेट बनाम तेजपाल बनता है। चूंकि यह मामला गोवा में घटा इसलिए गोवा पुलिस इस केस में सक्रिय हो चुकी है। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर ने शीर्ष प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ पणजी में बैठक कर घटना की प्राथमिक जांच का आदेश दिया है। पुलिस ने जिस पांचतारा होटल में यह घटना हुई है उसकी सीसीटीवी फुटेज की मांग की है। उसने घटना का स्वत संज्ञान लेने और उस आधार पर आगे बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया है। वह दिल्ली में रहने वाली पीड़ित महिला पत्रकार का बयान लेने की भी योजना बना रही है। पार्रिकर ने कहाöजांच शुरू कर दी गई है। अगर हम तेजपाल के खिलाफ कुछ भी ठोस सबूत पाते हैं तो उनके खिलाफ स्वत संज्ञान लेकर मामला दर्ज किया जा सकता है क्योंकि घटना गोवा में हुई है। पुलिस रिपोर्ट के बाद ही मैं कुछ बोलने में सक्षम हो पाऊंगा। राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिला को पुलिस के पास औपचारिक शिकायत दर्ज करानी होगी। आयोग की सदस्य निर्मला प्रभावल्कर का कहना है कि हमने जो ईमेल पढ़े हैं उससे यह मामला लज्जा छिनने से भी बड़ा लगता है। हालांकि उनके ईमेल का सत्यापन होना है। यह गंभीर मुद्दा है और विशाखा दिशा-निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है। मीडिया से जुड़े तमाम संगठनों ने चाहे वह एडिटर्स गिल्ड हो, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया हो, वूमैन प्रेस कल्ब हो सभी ने कड़े शब्दों में इस घटना की निंदा की है और आरोपी तरुण तेजपाल पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। साथ-साथ यह भी कहा है कि मीडिया में काम कर रहीं तमाम महिला पत्रकारों को इस घटना से हताश नहीं होना चाहिए और न ही घबराना चाहिए। यह अपने आप में एक आइसोलेटिड केस है इससे तमाम मीडिया गलत नहीं हो जाता। उम्मीद की जाती है कि जांच सच्चाई तक पहुंचेगी और इस केस के सारे तथ्य सामने आएंगे। तथ्यों के आधार पर कानून अपना काम करेगा। चाहे आरोपी कितना भी बड़ा प्रभाव वाला क्यों न हो, बड़ी पोजीशन वाला क्यों न हो। कानून सबके लिए बराबर है। हम इस घटना की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि कसूरवार को कानून के तहत सजा मिले।


Friday 22 November 2013

इस सड़क-छाप स्तर की सियासत से किसी का भला नहीं होने वाला

जिस तरीके से कांग्रेस और भाजपा के बीच अत्यंत निचले स्तर के आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला इस चुनाव में देखने को मिल रहा है ऐसा पहले नहीं देखा गया। यह तो स्ट्रीट पालिटिक्स हो रही है यानि सड़क-छाप सियासत। यह सिलसिला गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान शुरू हुआ और अब उससे दो कदम आगे बढ़ गया है। कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले किए और उन्हें मौत का सौदागर तक कह दिया। उन्हें बन्दर तथा उनकी शादी को लेकर सवाल उठाए गए। वहीं गोधरा कांड के बाद उपजे दंगों और हिंसा में उनकी भूमिका को लेकर सवाल उठाए गए। नरेन्द्र मोदी ने भी उसी जुबान में जवाब दिए और कांग्रेस नेतृत्व पर व्यक्तिगत हमले किए। आज आलम यह है कि आए दिन चुनाव आयोग में व्यक्तिगत हमलों के मामलों को लेकर शिकायतें दर्ज हो रही हैं। हालांकि यह अब भी गत वर्ष गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में की गई शिकायतों से कम हैं। लेकिन मतदान में अभी समय है जिसे देखते हुए ऐसा लगता है कि कहीं मौजूदा चुनाव का रिकार्ड न तोड़ दें। आपत्तिजनक बयानबाजी का दौर दुर्भाग्यवश कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इंदौर में एक जनसभा से शुरू किया। 25 अक्तूबर को इंदौर में राहुल गांधी ने मुजफ्फरनगर दंगों के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया और साथ-साथ यह भी कह दिया कि दंगा पीड़ितों में ऐसे 10-15 मुसलमान लड़के हैं, जिनके भाई-बहनों को मारा गया। उन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई  भड़का रही है। राहुल के इस बयान पर भाजपा सहित पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई। मोदी ने बेमेतरा (कवर्छा) की एक रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर तीखा हमला करते हुए कहा कि मैडम बीमार हैं तो शहजादे को बागडोर सम्भालनी चाहिए। साथ-साथ यह भी कह दिया कि छत्तीसगढ़ की ओर से केंद्र के पैसे के इस्तेमाल को लेकर राहुल गांधी पर सवाल दाग दिया कि क्या यह पैसा उनके मामा के घर से आया है। समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने मोदी से प्रश्न किया कि एक चाय बेचने वाले की सोच कभी राष्ट्रीय नहीं हो सकती। अग्रवाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे किसी सिपाही को कप्तान बना देने पर उसकी सोच कप्तान जैसी नहीं हो सकती तो वह कांस्टेबल जैसा ही व्यवहार करेगा। कांग्रेस ने मोदी पर हमला करते हुए उन्हें दानव तक कह दिया। 7 नवम्बर को राजनांदगांव में नरेन्द्र मोदी ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप चाहते हैं कि राज्य में किसी खूनी पंजे का साया नहीं पड़े तो आपको कांग्रेस को वोट नहीं देना चाहिए। अब कांग्रेस ने साहेब की जासूसी कांड पर हंगामा मचा दिया है। सवाल यह उठता है कि ऐसी सड़क-छाप सियासत से किस का भला हो रहा है। कांग्रेस की रणनीति तो समझ आ रही है, वह नरेन्द्र मोदी को बेमतलब के मुद्दों में उलझाकर असल मुद्दों से ध्यान हटा रही है। असल मुद्दे हैंöमहंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, नौजवानों का भविष्य, विदेश नीति इत्यादि-इत्यादि। इस पर तो कोई बात नहीं कर रहा जिससे आम जनता का सीधा ताल्लुक है और फिजूल की चर्चा हो रही है। मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि भाजपा इन मुद्दों पर ध्यान क्यों नहीं देती? अगर मोदी को सवाल पूछने ही हैं तो पूछें महंगाई के बारे में, बैड गवर्नेंस के बारे में। कांग्रेस को अपना सारा ध्यान विकास और भाजपा शासित राज्यों में सरकार की कारगुजारी पर देना चाहिए। नरेन्द्र मोदी को जनता को यह बताना चाहिए कि वह महंगाई, बैड गवर्नेंस, विदेश नीति में आई गिरावट की पूर्ति कैसे करेंगे? अपनी नीतियां, भाजपा शासित राज्यों में विकास, गुड गवर्नेंस, कानून व्यवस्था पर ज्यादा जोर देना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी की हत्या की आईएसआई ने दाउद इब्राहिम को दी सुपारी

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी आतंकवादियों के निशाने पर हैं, यह चेतावनी कई बार आ चुकी है। चुनाव के दौरान यह नेतागण सुरक्षा प्रबंधों को कभी-कभी लांघ कर सुरक्षा की अनदेखी कर देते हैं। हम पहले ही राजीव गांधी को खो चुके हैं। राजीव जी भी आईबी और भारतीय गुप्तचर एजेंसियों की चेतावनी को ओवररूल कर श्रीपेरुम्बदूर सभा में गए और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी थी, इसलिए सभी पार्टी के नेताओं को गुप्तचर एजेंसियों से थोड़ा कोऑपरेट करके चलना चाहिए। अगर जान है तो जहान है। ताजा अलर्ट नरेन्द्र मोदी को लेकर हुआ है। इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) के इनपुट के मुताबिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की हत्या की सुपारी दाउद इब्राहिम को दी है। मोदी पहले से ही कई उग्रवादी संगठनों के निशाने पर हैं। हाल ही में हमने पटना के गांधी मैदान की रैली में देखा था कि किस तरह सीरियल ब्लास्ट हुए थे। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक इंटेलीजेंस ब्यूरो के चेतावनी नोट में यह भी कहा गया है कि मोदी को सिर्प भारत में ऑपरेट कर रहे आतंकी संगठनों से खतरा नहीं है बल्कि आईएसआई के अलावा सउदी अरब से ऑपरेट कर रहे आतंकियों से भी है। नोट में कहा गया है कि सउदी अरब में काम कर रहे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों में भी मोदी की हत्या करने की साजिशें चल रही हैं। सउदी अरब से ऑपरेट करने वाले शाहिद उर्प बिलाल का इस सिलसिले में खासतौर से नोट में जिक्र किया गया है। शाहिद ने अपने एक सहयोगी से कहा है कि रिमोट कंट्रोल से विस्फोट करने की बजाय सुसाइड अटैक, आत्मघाती हमला ज्यादा बेहतर और कारगर होगा। चिन्ता का विषय यह है कि यह सम्भावना भी जताई गई है कि देश के कुछ सिक्यूरिटी अधिकारी भी आतंकी संगठनों की मदद कर सकते हैं। आईबी के अनुसार प्रतिबंधित संगठन सिमी दूसरे संगठनों से कोआर्डिनेट कर रही है और नरेन्द्र मोदी पर हमले के लिए इन संगठनों से मदद मांग रही है। हाल में पकड़े गए सिमी के कुछ कार्यकर्ताओं से पता चला है कि यह आतंकी संगठन सुसाइड विंग के लिए शाहीन के नाम से ट्रेनिंग कैम्प भी चला रहे हैं। नोट में एक और खतरे की भी चेतावनी दी गई है। वह है माओवादियों से खतरे की। आतंकी संगठन मोदी पर हमले के लिए कई विकल्पों पर काम कर रहे हैं। रॉकेट लांचर्स, एआईडी से मोदी के काफिले पर घात लगाकर हमला, विस्फोटों से भरी गाड़ी को उड़ाना या उनकी गाड़ी से विस्फोटों से भरी हुई गाड़ी को टकराना भी सम्भव है। आत्मघाती हमला भी हो सकता है। सिमी के लोग लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल जिहाद अल-इस्लामी और जैश-ए-मोहम्मद के सम्पर्प में है। जैसा मैंने कहा कि चुनाव के समय टॉप के नेताओं के लिए बहुत बड़े खतरे का समय होता है। संतोष की बात यह है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी को तो एसपीजी सुरक्षा प्राप्त है, इसलिए अगर वह खुद अपनी सुरक्षा में लापरवाही न बरतें तो वह कुछ हद तक सुरक्षित हैं पर नरेन्द्र मोदी को एसपीजी सुरक्षा प्राप्त नहीं है। जैड प्लस सिक्यूरिटी उतनी प्रभावशाली नहीं है जितनी एसपीजी इसलिए उन्हें अपनी सुरक्षा पर खास ध्यान देना होगा। किसी भी तरह की लापरवाही से आगामी कुछ महीने बचने में ही समझ है।

Thursday 21 November 2013

जासूसी पर गरमाती सियासत

चुनाव में गड़े मुर्दे उखाड़ने की होड़ कोई नई बात नहीं है पर इस बार तो कुछ ज्यादा ही हो रहा है। निशाने पर हैं गुजरात के मुख्यमंत्री व भाजपा के पीएम  पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी। नरेन्द्र मोदी एक नए विवाद में फंसते नजर आ रहे हैं। गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह की ओर से साहेब के इशारे पर एक लड़की की जासूसी करने का आरोप लगा है। उल्लेखनीय है कि कोबरा पोस्ट डॉट काम मीडिया ने पिछले दिनों एक स्टिंग ऑपरेशन के जरिए इस मामले का खुलासा किया था। इसमें बताया गया था कि गुजरात सरकार के तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अमित शाह ने अपने `साहेब' के निर्देश पर अहमदाबाद में वर्ष 2009 में आर्पिटेक्ट युवती की जासूसी करवाई थी। स्टिंग ऑपरेशन में शाह और एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के बीच बातचीत का टेप जारी किया था। उन्होंने हालांकि कहा था कि इसकी पाथमिकता की पुष्टि नहीं की जा सकती। बस यहीं से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस महिला ब्रिगेड ने ताबड़तोड़ हमले करने शुरू कर दिए। कांग्रेस नेता गिरिजा व्यास, रीता बहुगुणा जोशी और शोभा ओझा ने रविवार को विशेष पेस कांपेंस बुलाकर युवती की जासूसी पर मोदी पर निशाना साधते हुए मांग की कि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या पूर्व जज से प्रकरण की जांच कराई जाए और कहा कि क्या ऐसे व्यक्ति को देश की बागडोर सौंपनी चाहिए जो महिला की इज्जत न करता हो। जवाब में भाजपा पवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि दरअसल कांग्रेस मोदी की लोकपियता से इतनी डर गई है कि ओछी राजनीति पर उतर आई है। लेखी ने कहा कि युवती को सुरक्षा देने के लिए उसके पिता ने अनुरोध किया था। क्या इस मामले में लड़की, उसके माता-पिता, भाई या पति ने कोई शिकायत दर्ज कराई है? अगर नहीं तो साफ है कि पूरे मामले में कांग्रेस राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए तू कौन मैं ख्वामख्वाह की भूमिका निभा रही है। खुद नरेन्द्र मोदी की पतिकिया थी कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है क्योंकि अपने हवाई किले में बैठी सत्तारूढ़ पार्टी उनकी लोकपियता नहीं पचा पा रही है। इस बीच एक और मामला पकाश में आ गया है। जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय जो सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद(एनएसी) की सदस्य रही हैं ने आरोप लगाया कि संपग सरकार लम्बे समय से उनकी जासूसी करवा रही है। राय का कहना है कि खुद खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों ने ही उन्हें इस बारे में बताया है। राय ने यह भी कहा कि सरकार से जो भी मतभेद रखता है यह उसकी जासूसी करवाती है। अरुण जेटली की निगरानी का मामला अभी चल ही रहा है। कई पुलिस वाले निलम्बित हो चुके हैं। अरुण जेटली की जासूसी कौन और क्यों करवा रहा था। यह अभी स्पष्ट नहीं हो सका। अहमदाबाद की आर्पिटेक्ट की जासूसी के मामले में हमारी राय स्पष्ट है। सबसे पहले यह तय किया जाना चाहिए कि क्या यह स्टिंग ऑपरेशन से उपलब्ध टेप सही है उसकी पामाणिकता तय की जानी चाहिए। अगर वह पमाणित होता है तो इसमें कसूरवार चाहे कोई भी हो उसको कानून के तहत सजा मिलनी चाहिए। बहरहाल गड़े मुर्दे उखाड़ने की  पवृत्ति यही बताती है कि भारतीय राजनीति का स्तर किस तरह गिरता जा रहा है। इस मामले में यह कोई तर्प नहीं है और न ही हो सकता है कि ऑल इज फेयर इन लव एंड वार यानि पेम और युद्ध में सब कुछ जायज है।

-अनिल नरेन्द्र

अरविंद केजरीवाल पर सोमवार को हुआ दोहरा हमला

सोमवार का दिन आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल पर भारी पड़ा। सोमवार को केजरीवाल पर दोहरा हमला हुआ। पहला तो स्याही फेंकने का और दूसरा अन्ना हजारे के पत्र का। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल सहित कई नेताओं पर एक पेस कांपेंस के दौरान एक व्यक्ति ने काली स्याही फेंक दी। यह हरकत करने वाले नचिकेता ने दावा किया कि वह अन्ना हजारे को अपना गुरू मानते हैं और केजरीवाल पर आरोप लगाया कि उन्होंने हजारे और जनता के साथ धोखा किया है। इस व्यक्ति ने संवाददाता सम्मेलन स्थल पर केजरीवाल और उनके साथ बैठे उनके सहयोगियों मनीष सिसौदिया, संजय सिंह, पशांत भूषण और शांति भूषण की ओर काले रंग के पेंट का डिब्बा फेंका। थोड़ा-सा पेंट केजरीवाल के चेहरे पर गिरा और कुछ सिसौदिया, पशांत भूषण और संजय सिंह पर गिरा। केजरीवाल ने किसी पार्टी का नाम लिए बिना कहा कि यह उन लोगों का कारनामा है जिनके हितों को `आप' की बढ़ती लोकपियता से चोट पहुंच रही है। केजरीवाल ने दावा किया कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों की हालत खराब है। दूसरा हमला समाजसेवी अन्ना हजारे का लेटर बम था। इस पत्र में अन्ना हजारे ने आंदोलन के नाम पर जमा हुए धन का `आप' के नेता केजरीवाल से ब्यौरा मांगा और अपना नाम किसी भी तरह से इस्तेमाल न करने की हिदायत दी। पत्र में अन्ना ने चिंता जताई कि पार्टी कोष पर सवाल उठ रहे हैं। अन्ना ने आंदोलन के समय इकट्ठे हुए पैसे का ब्यौरा मांगा और कहा कि आप के चुनाव में यह पैसा खर्च नहीं किया जाना चाहिए। जनलोकपाल और व्यवस्था परिवर्तन के लिए संसद का काम बताते हुए अन्ना ने कहा कि यह काम विधानसभा का नहीं है। इसके जवाब में केजरीवाल ने अपनी पार्टी के खाते और अन्ना हजारे को मिले दान के बारे में लगे आरोपों की स्वतंत्र व खुली जांच कराने का पस्ताव किया। आप संयोजक ने कहा कि मैं अन्ना जी से अनुरोध करता हूं कि वह न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े सहित जिससे भी चाहें व्यापक जांच करा लें और रिपोर्ट को 48 घंटे के भीतर सार्वजनिक कर दिया जाए ताकि कांग्रेस और भाजपा कोई भी कोष को लेकर लोगों में भ्रम न फैला पाएं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह दोषी पाए जाते हैं तो वह अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेंगे और चुनाव मैदान छोड़ देंगे। अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल में शायद पहली बार तल्खी भरा संवाद हुआ। बहुत कुछ कह गई अन्ना की यह चिट्ठी। हालांकि दोनों ने एक-दूसरे के पति शब्दों में भावनात्मक रुख अपनाया फिर भी यह पत्राचार बहुत कुछ बयां कर गया। पत्र के माध्यम से आप से चुनाव अभियान और फंड से जुड़ी बातों पर कई सवालों के जवाब मांगे हैं अन्ना ने। अन्ना ने पत्र के अंत में यह कहकर अरविंद को एक बड़ी राहत भी दे दी, मुझे पता है कि इन सारी बातों में कोई सच्चाई नहीं है। अरविंद के मुताबिक यह चिट्ठी उन्हें रविवार को मिली थी। जब उन्हें चिट्ठी सौंपी गई तो एक बार लगा कि अन्ना का कोई आशीर्वाद होगा। हालांकि जब चिट्ठी का दूसरा पैरा शुरू हुआ तो कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। खास बात यह थी कि पत्र में अन्ना ने अपनी तरफ से कोई सवाल नहीं किया। उन्होंने जितने भी सवाल उठाए उनका आधार किसी न किसी संगठन से मिली शिकायत रहा है। मसलन अन्ना के नाम को चुनाव पचार में भुनाना। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वह सदैव अन्ना का सम्मान करते हैं भले ही वह साथ हों या नहीं हें लेकिन उनका आशीर्वाद मेरे साथ है। स्याही फेंकने वाले नचिकेता ने जो अरविंद पर कागज फेंके उनमें भी काफी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उन पर अमेरिका का एजेंट बताते हुए अन्ना का इस्तेमाल करने, लोकपाल आंदोलन का फायदा उठाकर अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने, आंदोलन के दौरान जनता को भड़काने जैसे कई आरोप लगाए हैं। उसकी मांगों में फोरेन फंडिंग पर बैन लगाने, शराबी वोटरों के वोट डालने पर रोक लगाने, वोटिंग को अनिवार्य बनाने, आर्मी के सीकेट दस्तावेज लीक होने के मामले में केजरीवाल की भूमिका की जांच कराने, उनकी विदेश यात्राओं और उन्हें मिल रही विदेशी फंडिंग की जांच कराने जैसी मांगें पमुख हैं।

Wednesday 20 November 2013

राहुल की लगातार दूसरी रैली फ्लॉप होना आलाकमान के लिए चिन्ता?

राजधानी के कांग्रेसी बेचैन हैं और इस बेचैनी की वजह भी समझ में आती है, राहुल गांधी की चुनावी सभा में ज्यादा भीड़ का न जुटना। दिल्ली में कांग्रेस उपाध्यक्ष की यह दूसरी रैली है जहां भीड़ का अभाव रहा। पहले मंगोलपुरी में और फिर रविवार को दक्षिणपुरी में हुई रैली में न तो चुनावी जोश नजर आया और न ही उत्साह। दक्षिणपुरी में बामुश्किल से मैदान में लगी कुर्सियां भर पाईं। उनसे पहले रैली में जब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सम्बोधित कर रही थीं तो कुछ महिलाएं जाने लगीं। ऐसे में शीला जी को हाथ जोड़कर कहना पड़ा कि आप लोग कम से कम राहुल जी की आवाज तो सुनते जाइए। रैली का समय सुबह 10 बजे निर्धारित था, लेकिन 12 बजे तक आधे से ज्यादा मैदान खाली था। जब राहुल गांधी के आने का समय करीब आया और मैदान क्षमता के मुताबिक भरता नहीं दिखा तो मंच से मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पुलिसकर्मियों से रैली में आने वालों को नहीं रोकने का अनुरोध कर दिया। इतनी तेज धूप में पानी न मिलने की शिकायतें जब मिलने लगीं तो शीला जी ने पुलिसकर्मियों को सुरक्षा के नाम पर पानी आने से रोकने से बचने को कह दिया, जबकि हकीकत यह थी कि पानी और समर्थकों की कमी का कारण पार्टी नेताओं का कुप्रबंध था। विराट सिनेमा मैदान की यह रैली रविवार को दुकानदारों के लिए भी दुखदायी साबित हुई। सुरक्षा  कारणों से न सिर्प स्थानीय दुकानों को बंद रखा गया था बल्कि रविवार को लगने वाले साप्ताहिक बाजार पर भी रोक लगा दी गई। पार्टी के नेता सामने आकर बोलने को तैयार नहीं हैं लेकिन नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा कि सरकार व संगठन में तालमेल की कमी का ही यह नतीजा है। हालांकि वे यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि पार्टी की रैलियों में कम भीड़ का जुटना कांग्रेस की कमजोर स्थिति का परिचायक है। रैली खत्म होने के बाद एक संवाददाता ने इलाके में रहने वाले विभिन्न लोगों से उनकी राय पूछी तो लोगों ने यह जरूर कहा कि वे पारम्परिक रूप से कांग्रेस के समर्थक हैं लेकिन रोजमर्रा की चीजों की लगातार बढ़ती कीमतों ने उनका बजट बिगाड़ दिया है। सूत्रों के अनुसार मंगोलपुरी की रैली लोक निर्माण मंत्री राजकुमार चौहान ने अकेले दम पर की थी। इसके लिए उन्हें संगठन की ओर से कोई खास सहयोग नहीं मिला। राहुल गांधी की सभाओं में भीड़ के न जुटने से पार्टी नेताओं और चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी सकते में आ गए हैं। वे अपने आला नेताओं से गुजारिश करने लगे हैं कि उनके इलाके में किसी बड़े नेता की चुनावी सभा न कराई जाए। घबराने का कारण साफ है कि अगर इन सभाओं में फिर से भीड़ का संकट हुआ तो उन्हें चुनाव में खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कांग्रेस परेशान है कि राहुल व अन्य बड़े नेताओं की रैलियों की तुलना  बीजेपी के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी की रैली से होगी जिससे पार्टी के खिलाफ चर्चाओं को बल मिलेगा। बेचारे राहुल  गए तो सचिन के आखिरी टेस्ट में भी मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर जैसे ही राहुल की तस्वीर बड़ी क्रीन पर दिखाई दी मोदी-मोदी के नारे लगने लगे। मंगोलपुरी और दक्षिणपुरी दोनों इलाके कांग्रेस के गढ़ माने जाते हैं इसके बावजूद भीड़ न जुट पाना कांग्रेस आला कमान के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए। अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही अकेली नेता बची हैं जो भीड़ एकत्र कर सकती हैं। सोनिया जी को लगता है कि खुद ही मोर्चा सम्भालना पड़ेगा।

-अनिल नरेन्द्र

ताकि दिल्ली में शांतिपूर्ण, निष्पक्ष व पारदर्शी विधानसभा चुनाव हों

दिल्ली विधानसभा चुनाव हर तरीके से स्वच्छ, हिंसामुक्त, स्वतंत्र हों यह चुनाव आयोग के लिए एक चुनौती होगी। इस बार 2008 के मुकाबले दिल्ली के विधानसभा चुनाव ज्यादा दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण होने जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की वजह से पिछली बार के मुकाबले इस बार चुनाव मैदान में उम्मीदवारों की तादाद काफी बढ़ गई है। हालांकि चुनाव मैदान में अंतिम मुकाबला कौन लड़ेगा  इसका पता तो नामांकन पत्रों की जांच होने और उम्मीदवारों द्वारा नाम वापस लेने के बाद बुधवार शाम को पता चलेगा लेकिन शनिवार की शाम को नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया खत्म होने के बाद यह साफ हो गया है कि इस बार चुनाव मैदान में पहले से ज्यादा उम्मीदवार उतरने जा रहे हैं। दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी विजय देव के मुताबिक शनिवार को 781 उम्मीदवारों ने 1113 नामांकन पत्र भरे। आखिरी दिन नामांकन दाखिल करने वाले उम्मीदवारों की तादाद कितनी ज्यादा रही, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शाम 6.30 बजे तक प्रोसेस चलता रहा। देव के मुताबिक इस बार करीब 1150 उम्मीदवारों ने 1800 से अधिक फार्म भरे हैं जो 2008 के मुकाबले अधिक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में 1134 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन दाखिल किए थे। श्री विजय देव और चुनाव आयोग के लिए यह चुनौती होगी कि चुनाव में हर कीमती वोट प्रयोग हो। मतदान के लिए महिलाओं को घर से बाहर निकालना आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है। आज भी बड़ी संख्या में ऐसी सीटें हैं जहां तमाम प्रयासों के बाद भी मतदान प्रतिशत नहीं सुधर पा रहा है। पिछले चुनाव में दिल्ली कैंट, जंगपुरा, कस्तूरबा नगर, पटेल नगर, मटियामहल, मोती नगर, चांदनी चौक, सदर बाजार, महरौली, तुगलकाबाद समेत अन्य सीटों पर सबसे कम मतदान प्रतिशत रहा। ऐसे विधानसभा क्षेत्रों  में जहां जातिगत समीकरण टक्कर वाले होते हैं या क्राइम ग्रॉफ अधिक होता है उन्हें संवेदनशील श्रेणी में रखा जाता है। इसी आधार पर संवेदनशील व अतिसंवेदनशील बूथ का निर्माण होता है। राजनीतिक दबाव के बीच यहां से मतदाताओं को बाहर निकालना एक बड़ी चुनौती होगी। बाहुबलियों को भी रोकने के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। चुनाव कार्यालय ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर यूपी व हरियाणा के ऐसे बाहुबलियों की पहचान की है जो चुनाव के दौरान दिल्ली पहुंचकर चुनाव प्रभावित कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव को शांतिपूर्ण, निष्पक्ष व पारदर्शी तरीके से कराने के रास्ते में यह बाहुबलियों को मतदान के दिन रोकना अति आवश्यक होगा। दिल्ली की कुछ सीटें हरियाणा और उत्तर प्रदेश से जुड़ी हैं। इसके चलते इन सीटों पर सबसे अधिक फर्जी मतदान की आशंका रहती है। ऐसी सीटों में ओखला, त्रिलोकपुरी, कोंडली, पटपड़गंज, विश्वास नगर, शाहदरा, सीमापुरी, गोकुलपुरी, करावल नगर आदि शामिल हैं। पुराने धुरंधर नेताओं के लिए आचार संहिता के फंडे धीरे-धीरे साफ हो गए हैं। लेकिन मैदान में उतरने वाले नए नेताओं को आचार संहिता समझाना आयोग के लिए बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि यह प्रत्याशी पहली बार मैदान में होंगे। गड़बड़ियों की सम्भावनाएं अधिक होंगी। इसके अतिरिक्त आयोग ने कई सख्त प्रावधान पहली बार लागू किए हैं। शांतिपूर्ण तरीके से मतदान कराने के लिए आयोग 11 हजार से अधिक मतदान केंद्रों पर मतदान व सुरक्षाकर्मी तैनात करता है। ड्यूटी की वजह से यह कर्मचारी वोट नहीं डाल पाते। इनका वोट पाने के लिए आयोग ने इस बार पहले ही बैलेट भरवाने का फैसला किया है। इससे मतदान प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। इस बार नेताओं ने महीनों पहले ही सोशल मीडिया के जरिये प्रचार शुरू कर दिया है। इस प्रचार को यदि किसी अन्य खाते में किया जाता है तो यह आयोग के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। प्रचार के बड़े माध्यम तो आसानी से पकड़ में आ जाते हैं लेकिन पैसे देकर छोटे माध्यम पर शिकंजा कसना आयोग के लिए चुनौती रहेगा। हालांकि इनकी निगरानी के लिए खास समितियों का गठन किया गया है। पॉश इलाकों में लगातार मतदान प्रतिशत और मतदाताओं की संख्या में कमी आ रही है। इन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत बढ़ाना भी चुनौती होगी। इन क्षेत्रों में नई दिल्ली, चांदनी चौक, दिल्ली कैंट, जंगपुरा, कस्तूरबा नगर, पटेल नगर समेत कई सीटें शामिल हैं। आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है फर्जी मतदाता। आयोग ने लम्बी जांच के बाद दिल्ली भर में 14 लाख फर्जी मतदाताओं की तलाश की थी। 1.57 डुप्लीकेट और 8500 अधूरे कार्ड मिले थे। यह मतदाता फिर से सक्रिय नहीं हों, इस पर कड़ी नजर रखनी होगी। इन पर निगरानी ढीली हुई तो फर्जी मतदान की सम्भावनाएं बढ़ जाएंगी। दिल्ली में मतदान प्रतिशत को सुधारने के लिए आयोग एक के बाद एक पहल कर रहा है। इस बार आयोग का लक्ष्य महिला, युवा और सरकारी मतदाताओं के मतों का पाना है। इसके लिए खास मुहिम भी चलाई जा रही है लेकिन इसका कितना असर पड़ता है यह मतदान के बाद ही सामने आएगा। अंत में पहली बार इन चुनावों में मतदाता को अधिकार मिलेगा कि उसे कोई भी प्रत्याशी अगर पसंद नहीं तो वह नोटा बटन दबा सकता है। हालांकि यह अधिकार पहले भी मतदाता के पास था लेकिन मतदान मशीन में इसका प्रावधान नहीं था। इस अधिकार के प्रयोग के लिए मतदाता को चुनाव अधिकारी के पास जाना होता था। नई दिल्ली सीट से इस व्यवस्था को लागू किए जाने की सम्भावना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह पर्ची सिस्टम लागू करे। मतदाता ने किसको वोट दिया है इसके सबूत में प्रिंटआउट देना होगा। पता नहीं इसकी तैयारी कितनी हो चुकी है। निष्पक्ष व पारदर्शी चुनाव के लिए यह जरूरी है, उम्मीद की जाती है कि मुख्य चुनाव अधिकारी जो एक काबिल और कुशल प्रशासक हैं, इस बार दिल्ली में ऐसे चुनाव करवा लेंगे।

Tuesday 19 November 2013

भारत की बढ़ती ताकत से पड़ोसी पाक व चीन में बौखलाहट

रविवार का दिन भारतीय नौसेना के लिए एक ऐतिहासिक दिन था। बहुप्रतिक्षित और महत्वाकांक्षी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य को भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया। 45 हजार टन के जंगी विमान वाहक जिसे अंग्रेजी में एयर क्राफ्ट कैरियर कहते हैं विक्रमादित्य के शामिल होने से भारतीय नेवी वैश्विक दबंग बनने की स्थिति में आ गई है। 2.3 अरब डॉलर की लागत वाले पोत का वजन 44,500 टन है। इस युद्धपोत को पहले 2008 में सौंपा जाना था, लेकिन बार-बार विलम्ब होता रहा। पोत पर रूस के ध्वज को उतारा गया और इसकी जगह भारतीय नौसेना का ध्वज लगाया गया। परम्परागत भारतीय रिवाज के मुताबिक पोत पर एक नारियल फोड़ा गया। इसे युद्धक पोतों के एक समूह की निगरानी में दो महीने की यात्रा के  बाद भारत पहुंचाया जाएगा। इसे अरब सागर के करवार तट पर लाया जाएगा। आईएनएस विक्रमादित्य कीव श्रेणी का विमान वाहक पोत है जिसे बाबू के नाम से 1987 में रूस की नौसेना में शामिल किया गया था। बाद में इसका नाम एडमिरल गोर्शकोव कर दिया गया और भारत को पेशकश किए जाने से पहले 1995 तक रूस की सेवा में रहा। 284 मीटर लम्बे युद्ध पोतक पर एमआईजी-29 के  नौसेना के युद्ध पोत के साथ ही इस पर कोमोव 31 और कोमोव 28 पनडुब्बी रोधी युद्धक एवं समुद्री निगरानी हेलीकाप्टर तैनात होंगे। एमआईजी-29के विमान भारतीय नौसेना को महत्वपूर्ण बढ़त दिलाएगा। इनकी  रेंज 700 नॉटिकल मील है और बीच हवा में ईंधन भरने से इसकी रेंज 1900 नॉटिकल मील तक बढ़ाया जा सकता है। इस पर पोत रोधी मिसाइल के अलावा हवा से हवा में मार करने वाले मिसाइल एवं निर्देशित बम एवं रॉकेट तैनात होंगे। करीब नौ वर्षों के समझौते के बाद पोत के पुनर्निर्माण के लिए 1.5 अरब डॉलर का प्राम्भिक समझौता हुआ और 16 एमआईजी-29के एवं के-यूबी डेक आधारित लड़ाकू विमानों के सौदे पर हस्ताक्षर हुआ। बीच में थोड़ी खटास भी आई फिर एक अतिरिक्त समझौता हुआ जिसमें भारत इसके पुनर्निर्माण पर ज्यादा कीमत देने को राजी हुआ। रक्षा हलकों में माना जा रहा है कि भारतीय नौसेना में इस विमान वाहक पोत के शामिल होने से भारत की ताकत काफी बढ़ जाएगी। रूस से भारत के तट तक इसे लाने में सुरक्षा के लिए खास चौकसी की जरूरत है इसलिए पूरे रास्ते नौसेना के पांच जंगी पोतों का काफिला इसे रूस से लेकर रवाना हो गया है। इस विशिष्ट विमान वाहक पोत में तकनीकी मदद के लिए रूस के 180 तकनीकी विशेषज्ञ भी इसमें सवार हैं। नौसेना के सूत्रों के अनुसार खास विशेषताओं वाले विक्रमादित्य से पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन का अलर्ट होना लाजिमी है। अभी तक नौसेना के पास सबसे बड़ा विमान वाहक पोत के रूप में आईएनएस विराट ही रहा है। अब विक्रमादित्य के शामिल हो जाने से समुद्र में किसी भी बड़ी नौसेना की सैन्य चुनौती मुकाबला करने के लिए भारतीय नौसेना पहले से ज्यादा ताकतवर हो जाएगी। अब उसे भारत की तरफ आने में समुद्री गरम पानी का सामना करना होगा। ऐसे में विक्रमादित्य की कई तकनीकी प्रणालियों में बदलाव की भी चुनौती है। विक्रमादित्य जब यहां सुरक्षा के लिए तैनात होगा तो उसमें पनडुब्बी भेदी हेलीकाप्टर भी तैनात होंगे जो पानी के भीतरघात लगाकर बैठी किसी भी पनडुब्बी को डुबा देने में सक्षम होंगे। विक्रमादित्य की सतह फुटबाल के तीन ग्राउंड के बराबर है और यह 21 मंजिला पोत एक छोटे शहर के रूप में समुद्र की सतह पर दिखता है। भारतीय नौसेना के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है।

-अनिल नरेन्द्र

एतराज सचिन को सम्मानित करने का नहीं, कांग्रेस के चयन के तरीकों का है

रविवार रात मैं चैनल वन पर गया हुआ था। चर्चा का विषय था भाजपा की अटल जी को भारत रत्न अवार्ड देने की । गरमागरम बहस हुई। मेरे साथ भाजपा और कांग्रेस के प्रवक्ता भी थे और एक राजनीतिक विश्लेषक। मैंने इस चर्चा में यह  पक्ष रखा कि एतराज इस बात पर नहीं कि सचिन को भारत रत्न क्यों दिया गया और अटल जी को क्यों  नहीं दिया गया? मुद्दा यह है कि यह राष्ट्रीय सम्मान है या  सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का निजी सम्मान? क्या देश कांग्रेस पार्टी की निजी जागीर है कि वह जिसे चाहे, जब चाहे सम्मानित कर दे? यहां यह बताना जरूरी है कि मुझे सचिन को भारत रत्न देने में कोई आपत्ति नहीं, उन्हें मिलना भी चाहिए, आपत्ति इस बात की है कि सचिन से पहले इस सम्मान के कई हकदार हैं उन्हें पहले क्यों नहीं दिया गया? मैंने मेजर ध्यानचन्द का उदाहरण दिया। बात 15 अगस्त 1936 की बर्लिन ओलंपिक्स की है। हॉकी के फाइनल मैच में भारत बनाम जर्मनी था। स्टेडियम में हिटलर खुद मौजूद थे। फाइनल के इस मैच में ध्यानचन्द की टीम ने जर्मनी को 9-1 से हराया। मैच खत्म होने के बाद हिटलर ने ध्यानचन्द को बुलवाया और उनसे कहा कि आप जर्मनी आ जाएं, मुंह मांगे पैसे देंगे, आप हमारी टीम को अपना जादू सिखाएं। ध्यानचन्द ने दो टूक जवाब दिया, मैं अपने देश के लिए ही खेलता हूं और पैसों के लिए नहीं खेलता हूं। उस समय जब हिटलर दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान थे तब उन्हें इस तरह से दो टूक जवाब देना मायने रखता था। पहली बार अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारत का तिरंगा लहराया। ध्यानचन्द ने तीन गोल्ड मैडल लगातार जीते। क्या ध्यानचन्द को भारत रत्न सम्मान नहीं मिलना चाहिए था? खेल मंत्रालय ने छह महीने पहले इसकी सिफारिश भी की थी। दूसरा एतराज टाइमिंग पर था। हाल ही में सचिन को राज्यसभा सांसद बनाया गया अब उन्हें रातोंरात भारत रत्न दे दिया गया। अब उनसे चुनावी प्रचार कराना। ऐसे समय जब चुनाव क्लाइमैक्स पर चल रहे हैं इस तरह से सम्मान देना क्या कांग्रेस के लिए उचित है? अगर विपक्ष इस पर हंगामा कर रहा है तो गलत क्या है? अगर भारत रत्न, पद्म अवार्ड राष्ट्रीय अवार्ड हैं तो हम मांग करते हैं कि इसके चयन के लिए एक कमेटी बने जिसमें सभी विपक्षी दलों के प्रतिनिधि हों। आम सहमति या बहुमत के आधार पर पुरस्कार पाने वालों का चयन हो। आप अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों को तो सम्मान दे देते हैं पर दूसरी महान हस्तियों को इसलिए नहीं देते क्योंकि वह कांग्रेस की विचारधारा से अलग राय रखते थे। इसका मतलब यह है कि जो सत्तारूढ़ दल की गुड बुक्स में नहीं है उसे यह सम्मान नहीं मिलेगा। पद्म अवार्ड्स की तो हालत यह है कि यह कांग्रेसी नेता अपने रिश्तेदारों के नाम, किसी भी ऐरे-गैरे का नाम दे देते हैं और उसे पुरस्कार दे दिया जाता है। पत्रकारों के कोटे का तो यह हाल है कि दो वर्ष पहले पूरे भारत में इस सत्तारूढ़ दल को एक भी काबिल पत्रकार, ऐसा पत्रकार नहीं मिला जो इस इनाम का हकदार हो। कांग्रेस पार्टी ने तो इन सम्मानों का मजाक बनाकर रख दिया है। समय आ गया है कि इन पुरस्कारों की चयन प्रणाली बदली जाए और जो असल में इस सम्मान का हकदार है उसे चुना जाए। कल को अगर एनडीए सत्ता में आती है तो वह भी यही मापदंड रखेगी तो हम उसका भी विरोध करेंगे।

Sunday 17 November 2013

सत्ता की खातिर आरोप-प्रत्यारोप का गिरता स्तर चिन्ताजनक है

पांच राज्यों के चुनाव ने सियासी पारा काफी बढ़ा दिया है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली व राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का चुनाव अभियान चल रहा है। छत्तीसगढ़ में तो एक दौर का मतदान हो भी चुका है। बाकी जगह चुनावी अभियान अपने चरम पर पहुंच रहा है। एक-दूसरे पर हमले करने और एक-दूसरे की हवा निकालने में दोनों दल कोई कसर नहीं छोड़ रहे। अगर कांग्रेस के निशाने पर नरेन्द्र मोदी हैं तो मोदी के निशाने पर सोनिया गांधी व राहुल गांधी हैं। कांग्रेस को नरेन्द्र मोदी से इतनी एलर्जी है  कि वह मोदी पर हमला करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहती। एलर्जी का यह हाल है कि अगर लता मंगेशकर मोदी की तारीफ कर दें तो कांग्रेसी उनसे भारत रत्न वापस लेने की मांग कर देते हैं। जैसे कि भारत रत्न और पद्म पुरस्कार कांग्रेस की जागीर हो। पद्म पुरस्कार किस तरह से बांटे जाते हैं वह सभी को मालूम है। लता मंगेशकर सहित हरेक पुरस्कार विजेता को अपनी राय व्यक्त करने का  अधिकार है। सरकार ने किसी को पुरस्कार दिया तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि वह सत्तारूढ़ पार्टी का गुलाम बन गया। आज लता जी को किसी भी सम्मान की जरूरत नहीं वह सम्मानों से बहुत ऊपर उठ चुकी हैं। यह महज कांग्रेस की खोखली मानसिकता का परिचायक है। गुरुवार को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने छत्तीसगढ़ में पांच सभाएं कीं। हर जगह निशाने पर रहा गांधी परिवार। सोनिया का नाम लिए बगैर बोले, `मैडम आप बीमार हो।' अपने बेटे को काम दो। एक राज्य की जिम्मेदारी दो, फिर हम देखेंगे कि वे 24 घंटे बिजली दे पाते हैं या नहीं? मोदी ने रायपुर में कहा कि छत्तीसगढ़ की जनता कांग्रेस पर भरोसा न करे। पुरानी फिल्मों में लड़के वालों को सुंदर लड़की दिखाते थे। मंडप में डिफेक्टिव लड़की को बैठाते थे। अब यह फिल्मों की बात नहीं चलेगी। कांग्रेस को बताना होगा कि उसका मुख्यमंत्री  पद के लिए चेहरा कौन है। कांग्रेस बहरुपिया है, वह अपना नाम, निशान, नारा सब बदलती है। सिर्प नीयत नहीं बदलती। कभी वह इंदिरा कांग्रेस थी अब इटली कांग्रेस हो गई है। इशारों-इशारों में सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा भी उठाया। राहुल से पूछा कि छत्तीसगढ़ के लिए केंद्रीय मदद क्या अपने मामा के घर से लाए थे? मोदी ने रैलियों में कहा कि आजकल दिल्ली से काफी लोग आ रहे हैं। मैडम आई थीं, शहजादे आए थे। वो कह रहे हैं कि इतने हजार करोड़ छत्तीसगढ़ को दिए। मैं पूछता हूं कि क्या आप (छत्तीसगढ़ की जनता) भीख का कटोरा लेकर खड़े हैं? पैसे दिए पैसे दिए कह रहे हो? मामा के घर से लाकर दिए क्या? आप मालिक नहीं हैं, यह जनता का पैसा है। मोदी ने कहा कि कांग्रेस केंद्र में अपने काम के आधार पर नहीं बल्कि सीबीआई की मदद से है। जांच एजेंसियों का इस्तेमाल वह अपने सहयोगियों को धमकाने के लिए करती है। सीबीआई दवा है कांग्रेस के सभी मर्जों की। छत्तीसगढ़ की सभाओं में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सेहत से जोड़कर की गई मोदी की टिप्पणी पर कांग्रेस ने बेहद तीखी प्रक्रिया व्यक्त की। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने मोदी को मानव के भेष में दानव करार देते हुए उन्हें मानसिक रूप से बीमार कह दिया। छत्तीसगढ़ में मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बीमारी के बहाने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर यह कहते हुए निशाना साधा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के सन्दर्भ में राहुल ने सोनिया की बीमारी का उल्लेख किया था। उसी पर मोदी ने चुटकी ली थी कि अगर मैडम बीमार हैं तो जिसमें दम है उन्हें कामकाज दें और वे कुछ करके दिखाएं। इस पर शकील अहमद ने कहा कि केवल मानव के भेष में कोई दानव ही किसी की शारीरिक बीमारी पर कटाक्ष कर सकता है। इससे जाहिर है कि वह मानसिक रूप से बीमार हैं। मोदी का छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पर हमले का जवाब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मध्यप्रदेश की खरगौन सभा में दिया। भाजपा सरकार को आड़े हाथों लेते हुए शुक्रवार को कहा कि आपने भाजपा को इस प्रदेश में एक नहीं लगातार बार-बार सरकार बनाने का मौका दिया, लेकिन विकास के नाम पर वह केवल बातें बनाती रही। बातों और वादों से किसी का पेट नहीं भरता है। सोनिया ने कहा कि मध्यप्रदेश में कुपोषण से बच्चों की मौतें हुईं, महिलाओं पर हर तरह के अत्याचार हुए, अनुसूचित जाति व जनजाति के हितों की योजनाओं पर अमल नहीं हुआ और किसानों की हालत तो बद से बदतर हो गई और उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी। प्रदेश में किसानों को बिजली बिल भुगतान को लेकर जेल तक जाना पड़ा। उन्होंने किसी भाजपा नेता का नाम लिए बिना चुटकी ली कि यह लोग तो आपस में ही एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं। यह केवल भाई को भाई का दुश्मन बना सकते हैं। पिछले महीने राहुल गांधी ने इंदौर और अलवर की चुनाव रैलियों में मुजफ्फरनगर दंगों के प्रकरण में आईएसआई वाली विवादित टिप्पणी कर दी थी। उन्होंने इशारों-इशारों में कह दिया था कि मुजफ्फरनगर के दंगे भाजपा ने कराए हैं। इन दंगों के चलते पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई को मौका मिल गया। वह मुजफ्फरनगर के कुछ दंगा पीड़ितों (युवा मुसलमानों) से सम्पर्प करके उन्हें भड़काने में लगी है। मामला चुनाव आयोग तक गया जहां राहुल को चेतावनी दी गई कि भविष्य में इस प्रकार की टिप्पणी से बचें। बहराइच की रैली में मोदी ने कांग्रेस को कोसते हुए कह डाला कि यूपीए सरकार उन्हें फंसाने के लिए तरह-तरह के जाल बुन रही है। यहां तक कि कांग्रेसियों ने उनके पीछे आईएम (इंडियन मुजाहिद्दीन) को लगा दिया है। यह आईएम वाली टिप्पणी भी चुनाव आयोग तक पहुंची। छत्तीसगढ़ की एक रैली में मोदी ने कांग्रेस के चुनाव चिन्ह हाथ को खूनी पंजा करार दिया था। लोगों से कहा था कि कांग्रेस का यह पंजा बड़ा जालिम है। यदि इस जालिम पंजे के साये से बचना है तो लोग कमल के बटन को दबाएं। लड़ाई नरेन्द्र मोदी बनाम बाकी होती जा रही है। कांग्रेस तो सीधे हमले कर ही रही है नीतीश कुमार भी पीछे नहीं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि बम विस्फोटों की वजह से मोदी की पटना रैली में भीड़ आई। अब सपा के राष्ट्रीय महासचिव नरेश अग्रवाल ने मोदी के सन्दर्भ में कहा कि मोदी जगह-जगह यह जताने की कोशिश करते हैं कि वे एक गरीब परिवार से राजनीति में आए हैं। एक दौर में वह ट्रेनों में चाय बेचते थे। चाय बेचने वाले का कभी राष्ट्रीय नजरिया नहीं हो सकता। जैसे कि एक सिपाही को कप्तान बना दिया जाए तो वह कभी कप्तान का काम नहीं कर सकता। मोदी ने रायगढ़ रैली में इसका जवाब दे दिया। मोदी ने कहा कि उन लोगों की तुलना में चाय बेचने वाला, ज्यादा अच्छा है जो देश को बेचते हैं। उन्होंने व्यंग्य किया कि क्या देश को बेचने वाले शासक बन सकते हैं? आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, हमलों का स्तर लगातार गिरता ही जा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

Saturday 16 November 2013

उपचुनाव दर्शाते हैं दिल्ली में गिरता कांग्रेस का ग्रॉफ


वैसे तो चुनावों के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि अंतिम दिनों में सियासत हर दिन बदलती है और मतदान के दिन क्या स्थिति हो कोई नहीं कह सकता। दिल्ली के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। मुकाबला त्रिकोणीय है। अगर हम हाल ही के कांग्रेस के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस के लिए उत्साहजनक स्थिति नहीं है। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2008 में कांग्रेस को मिली भारी जीत के बाद कांग्रेस की लोकप्रियता में लगातार गिरावट देखी गई। शुरुआती चरण में भले ही कांग्रेस ने अभूतपूर्व सफलता पाई हो, लेकिन जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आता गया वैसे-वैसे कांग्रेस की सीटें घटती गईं। विधानसभा चुनाव के  बाद दिल्ली के तीन विधानसभा क्षेत्रों के अलावा लोकसभा चुनाव और नगर निगम का चुनाव हो चुका है। वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव में जहां सभी सातों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया, वहीं वर्ष 2012 के नगर निगम चुनावों में भाजपा ने भारी बहुमत से जीत हासिल की। वर्ष 2009 में दिल्ली के तीन विधानसभा क्षेत्र रोहताश नगर, ओखला और द्वारका में उपचुनाव हुए। इन तीनों पर कांग्रेस के विधायक काबिज थे। लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस केवल एक सीट बरकरार रख सकी और दो सीटें गंवा दीं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं विधायक रामबाबू शर्मा के निधन के बाद रोहताश नगर सीट पर उनके पुत्र विपिन शर्मा ने तो पिता की विरासत बचा ली लेकिन ओखला के विधायक परवेज हाशमी के राज्यसभा सांसद और द्वारका के विधायक महाबल मिश्रा के लोकसभा सदस्य बनने के बाद रिक्त इन सीटों पर हुए उपचुनाव में आरजेडी और भाजपा प्रत्याशियों का कब्जा हो गया। दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों को भारी अन्तर से हार मिली। हालांकि वर्तमान में आरजेडी विधायक आसिफ मोहम्मद कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। 2012 के नगर निगम चुनाव के बाद उत्तरी दिल्ली नगर निगम के नांगलोई ईस्ट और पूर्वी दिल्ली नगर निगम के यमुना विहार नामक दो वार्डों में उपचुनाव हुए। दोनों वार्डों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत हुई। नांगलोई ईस्ट में भाजपा  उम्मीदवार रेनू ने लगभग 4200 वोटों से और यमुना विहार से आशा तायल ने कांग्रेसी उम्मीदवार को लगभग 4700 वोटों से हराया। विधानसभा उपचुनावों में रोहताश नगर से बेशक कांग्रेस 23547 वोटों से जीती पर ओखला से आरजेडी के उम्मीदवार 5000 वोटों से जीते और द्वारका में भाजपा उम्मीदवार 11000 वोटों से जीते। यह ठीक है कि नगर निगम और विधानसभा चुनावों के मुद्दे अलग-अलग होते हैं और एक का दूसरे पर असर नहीं पड़ता पर हवा के रुख का तो पता चलता है। बेशक इस बार कांग्रेस ने मजबूत टीम उतारने का प्रयास किया है पर एंटी इन्कम्बैंसी फैक्टर कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है। हवा का रुख विपक्ष की ओर ज्यादा हो रहा है। आप पार्टी से नुकसान भी कांग्रेस को ज्यादा हो सकता है बनिस्पत भाजपा को। हालांकि यह सभी जानते हैं कि इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम पर और दिल्ली में हुए चहुंमुखी विकास पर पार्टी लड़ रही है पर विडम्बना यह भी है कि अभी तक पार्टी ने यह नहीं बताया कि अगर वह चुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा? संकेत यह भी मिल रहे हैं कि शीला दीक्षित कांग्रेस के चुनाव जीतने पर स्वाभाविक नेता शायद इस बार न हों।

-अनिल नरेन्द्र

न तोते को और ताकत देंगे न ही पिंजरे से निकलने की इजाजत

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम जिस तरीके से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सार्वजनिक रूप से फटकार लगा रहे हैं उससे साफ लगता है कि मनमोहन सरकार सीबीआई से खुश नहीं है और जिस तरह सीबीआई चीफ ने सरकार को नसीहत दी, यही कहा जाएगा कि दोनों में ठन गई है। लगता है कि कोयला घोटाले में सीबीआई की सक्रियता सरकार को नहीं भाई। सीबीआई के स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित सम्मेलन में मनमोहन सिंह ने सीबीआई को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि बिना ठोस सबूत के सरकार के नीतिगत फैसलों पर अंगुली उठाने से बाज आए सीबीआई। हिंडाल्को को कोल ब्लॉक आवंटन मामले में एफआईआर दर्ज करने वाली सीबीआई को आड़े हाथों लेते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि फैसले में चूक को अपराध नहीं माना जाना चाहिए। मनमोहन सिंह ने सम्मेलन में जिस तरह सीबीआई को उसकी हदों की याद दिलाई वह सकते में डालने वाला है। पीएम सीबीआई को स्वायत्तता देने पर भी सहमत नहीं दिखे। तोता पिंजरे में ही रहेगा यह प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया। उनका यह कहना कि सीबीआई का कामकाज कार्यपालिका की देखरेख में ही चलना चाहिए यही संकेत देता है। पहले दिन गृहमंत्री और दूसरे दिन वित्तमंत्री भी ने इसके मंच से सीबीआई को सीमाओं का अतिक्रमण न करने की नसीहत दे डाली। शायद प्रधानमंत्री इस बात से तिलमिलाए हुए हैं कि हिंडाल्को को कोल ब्लॉक आवंटन मामले में पूर्व कोयला सचिव पीसी पारिख के खिलाफ मामला दर्ज होने के बाद जांच की आंच सीधे पीएमओ तक पहुंच गई है। पीएमओ तक ही नहीं खुद प्रधानमंत्री तक पहुंच गई है। पारिख ने कहा कि यदि वह आरोपी हैं तो प्रधानमंत्री को कैसे बख्शा जा सकता है जबकि उनकी देखरेख व दस्तखत से ही आवंटन को हरी झंडी मिली। प्रधानमंत्री का तर्प है कि बिना गलत इरादे के मौजूदा नीति के तहत लिए गए फैसलों को आपराधिक कदाचार करार देना ठीक नहीं है। लेकिन नीति और फैसलों के बीच की हद पार होने पर ही ऐसी नौबत आती है। उसी मंच से सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा का यह कहना कि नीतिगत फैसलों में गड़बड़ी की गुंजाइश ही नहीं छोड़नी चाहिए, सरकार के रवैये पर सवाल खड़े करती है। कोयला खदान आवंटन हो, 2जी स्पेक्ट्रम का मामला हो इनमें न तो नीतिगत पारदर्शिता दिखी और न ही फैसलों में। उलटे सरकार इन घोटालों को झुठलाने में लगी रही। यहां तक कि सीबीआई स्टेटस रिपोर्ट तक में बदलाव कर दिए गए। सीबीआई की स्वायत्तता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भले ही सुनवाई चल रही हो लेकिन सरकार की मंशा तोते को पिंजरे से आजाद करने की कतई नहीं है। यही नहीं सरकार अब सीबीआई के पर कतरने का भी इरादा रखती है। केंद्र की सीबीआई के निदेशक को सचिव के पदेन अधिकार देने और उन्हें सीधे प्रभारी मंत्री को रिपोर्ट करने की अनुमति देने की मांग बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने अस्वीकार कर दी। केंद्र सरकार ने सीबीआई को अपना अधीनस्थ कार्यालय बताते हुए उसके निदेशक को अधिकार देने की मांग ठुकरा दी। केंद्र ने कहा कि ऐसा कानूनन गलत होगा क्योंकि इस तरह की मांग स्वीकारने का मतलब एक प्राधिकारी के पास अनियंत्रित अधिकार देना होगा। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 23 पेज के हलफनामे में सरकार ने कहा कि हालांकि निदेशक सचिव के ग्रेड और वेतनमान में हैं लेकिन उन्हें पदेन अधिकार देने की मांग स्वीकार नहीं की जा सकती, क्योंकि इससे सरकार के विभागों और उसके अधीनस्थ कार्यालयों के बीच संगठनात्मक रिश्तों का समीकरण बदल जाएगा। कटु सत्य तो यह है कि सरकार पर तो खुद अकसर सीबीआई के राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप लगते रहते हैं, सरकार यदि अपनी हदों का ध्यान रखे तो शायद उसे सीबीआई को आज नसीहत देने की जरूरत ही नहीं पड़ती। प्रधानमंत्री व उनके सिपहसालारों की नसीहत का अर्थ यह भी निकल सकता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई की जांच को प्रभावित करना और एजेंसी पर नाजायज दबाव बनाना। सरकार यह आश्वासन देने की बजाय कि नीति और उसे  लागू करने में पारदर्शिता बरती जाएगी, उन्होंने नीति की आड़ में भ्रष्टाचार की जांच को लेकर सीबीआई को दबाव में लाने का प्रयास किया है। राज्यसभा में प्रतिपक्ष  के नेता अरुण जेटली ने कहा कि नीति बनाना कार्यपालिका  के अधिकार क्षेत्र में है और सीबीआई को नीतियों की जांच नहीं करनी चाहिए? उन्होंने सवाल किया कि अगर नीति भ्रष्ट उद्देश्यों के लिए हो तो...?


Friday 15 November 2013

सोमवार-मंगलवार के झटके दिल्ली-एनसीआर वाले कभी भूलेंगे नहीं

सोमवार की रात और मंगलवार की सुबह दिल्ली-एनसीआर के लोग बहुत दिनों तक याद रखेंगे। ऐसी रात दिल्लीवासियों और इर्द-गिर्द इलाकों ने पहले शायद कभी नहीं बिताई हो। आधी रात के बाद तड़के तक दिल्ली और एनसीआर निवासियों का भूकम्प के झटकों ने जीना मुहाल रखा। दहशत के झटकों से तमाम लोग पूरी रात घबराहट में रहे। लगातार चार भूकम्पों के झटकों ने सबको हिलाकर रख दिया। पहला झटका 12.41 बजे आया तो चौथा झटका 3.42 बजे दर्ज हुआ। पहला झटका रिएक्टर स्केल पर भूकम्प की तीव्रता 3.1 दर्ज हुआ। सबसे परेशान करने वाली बात यह रही कि पहला झटका दिल्ली के सैनिक फार्म के 11 किलोमीटर अन्दर से उठा। 2 और 3 मानेसर इलाके से आए। इसका मतलब यह है कि दिल्ली-एनसीआर अब सीधे भूकम्प के झटकों की जोन में आ गए हैं। यदि दिल्ली और एनसीआर में तेज झटका आया तो मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें भारी तबाही हो सकती है। क्योंकि हाल के वर्षों में यहां पर बहुमंजिला इमारतों के कंक्रीट जंगल खड़े हो गए हैं। भवन पर्यावरण की गतिविधियों से पर्यावरण तहस-नहस हो रहा है। पर्यावरण से छेड़छाड़ करने के सबक हमें पहले भी मिल चुके हैं। उत्तराखंड में जून के महीने में आसमान से ऐसा कहर बरसा जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। पिछले हफ्ते तीन दिनों से फिलीपींस में प्रलयकारी तूफान ने हजारों की जान ले ली और लाखों को बेघर कर दिया। तमाम बस्तियां मलबे में तब्दील हो गई हैं। उसके नीचे कितने जिन्दा दफन हो गए यह किसी को पता नहीं। हैयान नाम के इस तूफान को दुनिया का अब तक का सबसे प्रलयकारी वेग वाला तूफान बताया गया है। चार लाख से ज्यादा पीड़ितों ने राहत शिविरों में शरण ली है। समुद्री किनारों  पर बसे शहरों और गांवों के लिए तूफान किसी भयानक आपदा से कम नहीं होता। तूफान के कारण समुद्र का पानी प्रलयकारी बाढ़ में तब्दील हो जाता है। सुनामी में करीब तीन लाख लोगों की मौत हो गई थी। कुछ दिनों पहले बंगलादेश में भी समुद्री किनारे तबाही का मंजर देखने को मिला। पूर्वी एवं दक्षिण एशिया में तो बाढ़, तूफान एवं भूकम्प का खतरा हमेशा बना रहता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने पिछले दिनों कहा था कि दिल्ली और एनसीआर में इस तरह के भूकम्प का खतरा काफी बढ़ा है। ऐसे में जरूरी है कि बड़े स्तर पर आपदा प्रबंधन कर लिए जाए। जयंती नटराजन ने इस बात पर चिन्ता भी जताई कि निर्माण कार्यों में पर्यावरण मानदंडों की परवाह नहीं की जा रही है। इससे बड़ी खतरनाक स्थिति पैदा होती है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि सरकार के अलावा गैर सरकारी संगठन भी इस प्रकरण में पहल करें और लोगों के  बीच जागरुकता फैलाएं। बेहतर आपदा प्रबंधन से नुकसान बहुत कम होता है। मिसाल के तौर पर हाल के महीनों में उड़ीसा में भयंकर समुद्री तूफान आया। लेकिन कुल दो व्यक्तियों की मौत हुई। वहां के आपदा प्रबंधन का यह सुखद परिणाम रहा। सोमवार-मंगलवार को आए झटकों से दिल्ली-एनसीआर वासियों को इतनी दहशत हो गई है कि मामूली-सी आवाज से भी उठ जाते हैं। इस  बार के भूकम्प में पहली बार जमीन हिलने और आवाज सुनने और महसूस करने को मिला। आमतौर पर सिर्प जमीन हिलती थी, आवाजें नहीं आती थीं पर इस बार ऐसा ही हुआ। प्रकृत्ति के कहर से बचना मुश्किल होता है। ऊपर वाला शांति करे।

-अनिल नरेन्द्र

आप का विदेशी फंड मुद्दा गरमाया

आम आदमी पार्टी इसलिए बनी कि वह देश से भ्रष्टाचार मिटा सके और पूरे सिस्टम में पारदर्शिता, स्वच्छता ला सके। उसके संयोजक, संस्थापक अरविन्द केजरीवाल रोज कई बार रेडियो पर अपनी आवाज में दोहराते हैं कि वह सत्ता में आ रहे हैं और भ्रष्टाचार, घूसखोरी, भाई-भतीजावाद इत्यादि-इत्यादि सब दूर करके रहेंगे। हम उनके विचारों का स्वागत भी करते हैं पर कथनी और करनी एक समान होनी चाहिए। अगर केजरीवाल खुद उन्हीं चक्करों में फंसेंगे जिनमें कांग्रेस या भाजपा है तो फिर इनमें फर्प क्या रह जाएगा? विदेशी चन्दे के मामले में अरविन्द केजरीवाल फंसते नजर आ रहे हैं। सरकार ने आम आदमी पार्टी (आप) के चन्दे के स्रोतों की जांच के आदेश दे दिए हैं। भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आवाज डॉट आर्ग की ओर से आप को चार लाख डॉलर दिए जाने का आरोप लगाया है। वहीं गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सफाई दी है कि विदेशी फंड की जांच दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर हो रही है। डॉ. स्वामी ने ट्विट पर दावा किया कि अरब देशों में नागरिकों के बीच विद्रोह फैलाने के लिए पैसे देने वाले संस्थान ने ही अरविन्द केजरीवाल की आप को भी आर्थिक मदद की है। अरविन्द केजरीवाल ने हालांकि किसी भी प्रकार की जांच कराने को स्वीकार किया है पर साथ-साथ कांग्रेस और भाजपा को भी विदेशों से आए फंड की जांच की मांग कर डाली। चुनाव के बीच इस तरह की जांच का आदेश हमें नहीं  लगता कि चुनाव प्रक्रिया पर कोई असर डालने वाला होगा। खुद केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे कह रहे हैं कि ऐसी जांचों में समय लगता है, इसलिए दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले इसकी रिपोर्ट मिलने के आसार नहीं हैं। इस समय इस मुद्दे को उठाने के पीछे मतदाताओं के बीच अरविन्द केजरीवाल की विश्वसनीयता पर प्रभाव डालने का प्रयास भी हो सकता है। अरविन्द केजरीवाल अन्ना हजारे के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर ही मैदान में उतरे थे पर भ्रष्टाचार मिटाने की बात कर वह क्या केवल राजनीति में प्रवेश करने का रास्ता बना रहे हैं? क्या वह खुद भी उन्हीं बुराइयों को अपना नहीं रहे जिनके खिलाफ वह लड़ने का दम भरते आ रहे हैं। हम केजरीवाल की इस दलील से सहमत हैं कि दूसरे दलों के भी विदेशी फंडिंग की भी जांच हो। जनप्रतिनिधि कानून और विदेशी अनुदान विनियम कानून (एफसीआरए) दोनों में प्रावधान है कि राजनीतिक पार्टियां विदेशी चन्दा नहीं ले सकतीं। आप पर विदेशों से अनुदान ग्रहण करने का जो आरोप लगा है उसकी जांच अनुचित नहीं कही जा सकती। मगर मतभेद हो सकता है तो वह टाइमिंग को लेकर हो सकता है। असली मुद्दा चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का है जिससे लगभग सभी बड़ी पार्टियों का काम चलता है। क्या इस बात पर कोई यकीन करेगा कि बड़ी पार्टियों के रोजमर्रे पर सारा खर्च और सभी चुनावों में उनके उम्मीदवार जिस बड़े पैमाने पर खर्च करते हैं, वह सब उसी चन्दे से आता है, जिसका विवरण पार्टियां चुनाव आयोग या आयकर विभाग को देती हैं? यह चन्दा देने वालों को क्या लाभ पहुंचाती हैं, इन सब पर रहस्य का मोटा पर्दा पड़ा रहता है। राजनीतिक सुधार की राह में चन्दोह  की यही संस्कृति सबसे बड़ी समस्या है। क्या सरकार, चुनाव आयोग के पास इस  मूल समस्या का कोई समाधान है?

Thursday 14 November 2013

वसूली और घूसखोरी के मामलों से दिल्ली पुलिस की छवि पभावित

दिल्ली पुलिस की छवि को कुछ मुट्ठीभर भ्रष्ट पुलिसकर्मियों ने बुरी तरह गिरा दिया है। हाल ही में दिल्ली पुलिस के नए कमिश्नर बीएस बस्सी ने चार्ज संभालते ही पाथमिकताएं गिनाते हुए कहा था कि सबसे पहले सभी डिपार्टमेंटों में घूसखोरी की बढ़ती समस्या पर लगाम लगाने का पयास करेंगे। मगर बीते बुधवार को वसूली के चक्कर में एक ऐसी घटना घटी जिसकी शायद ही किसी की कल्पना रही हो। दिल्ली पुलिस की नेहरू प्लेस पुलिस चौकी में चल रही अवैध उगाही का पर्दाफाश करने पर पुलिसकर्मियों ने काइम ब्रांच की टीम पर ही गोलियां चला दीं। पुलिसकर्मी काइम ब्रांच के नाम पर लोगों को उठाकर इस यूनिट में लाते थे और उगाही करते थे। इसके तीन दिन बाद शनिवार को नेब सराय में पुलिसवालों को घूस न मिलने पर ऑटो चालक के पिता पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगाने की करतूत सामने आई। शनिवार शाम इस घटना के बाद आरोपियों पर हत्या के पयास और जबरन उगाही का मामला दर्ज कर उन्हें निलंबित कर दिया गया। पीड़ित उदयचंद को 90 पतिशत जली हालत में सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उदयचंद के ऑटो चालक बेटे नवीन ने बताया कि जेजे कॉलोनी खानपुर की बीट पर मौजूद कांस्टेबल राजकुमार और सुरेन्द ने उससे 20 हजार रुपए मांगे। मना किया तो उन्होंने नवीन की पिटाई शुरू कर दी। फिर नवीन के पिता को फोन कर बुलाया वहां पहुंचकर उसके पिता ने रुपए देने के लिए समय मांगा तो उन्होंने उदयचंद को भी पीटना शुरू कर दिया और पास खड़े ट्रकों के पीछे ले गए। थोड़ी देर बाद उनके पिता जलते हुए निकले। आरोपी पुलिसकर्मी मौके से फरार हो गए। अपराध शाखा के नार्कोटिक्स विभाग में तैनात एक हवलदार के खिलाफ भी जबरन उगाही का मामला दर्ज किया गया है। दक्षिण दिल्ली में सकिय एक दलाल की शिकायत पर अपराध शाखा ने मामला दर्ज कर लिया है। उसने बताया कि हवलदार  उसे झूठे मामले में फंसाने की धमकी देकर 60 हजार रुपए मांग रहा है। एफआईआर दर्ज होने के बाद से हवलदार संदीप कुमार फरार है। कुछ दिन पहले तिहाड़ जेल के अंदर कैदियों को सुविधाएं मुहैया कराने के आरोप में जेल के उपनिरीक्षक सुभाष शर्मा, हेड वार्डन देवेन्द्र, वार्डन कविता और ड्राइवर सुदेश को निलंबित किया गया। स्टिंग ऑपरेशन से मामला पकाश में आने के बाद पशासन ने मामले की जांच के लिए 5 सदस्यीय कमेटी बनाई थी। जांच के बाद यह कार्रवाई की गई। बताया गया है कि तिहाड़ जेल नं. 3 में रकम लेकर कैदियों को सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थीं। चौंकाने वाली घटना तब सामने आई जब जनता की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली दिल्ली पुलिस के दो सुरक्षाकर्मियों ने एक नाबालिग से दुष्कर्म का पयास किया। घटना मुखर्जी नगर इलाके की है। वर्दी को दागदार करने वाले दोनों सिपाहियें को बर्खास्त कर दिया गया है। पुलिस सूत्रों के अनुसार कमिश्नर बस्सी और  दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अफसर इन घटनाआंs से बहुत नाराज हैं। जिले के पुलिसवालों की मॉनिटरिंग और उन पर पकड़ ढीली होने से साउथ ईस्ट और साउथ के डीसीपी की टॉप अफसरों ने जमकर खिंचाई की। इलेक्शन मोड़ और दिल्ली पुलिस में घूसखोरी और वसूली की दो हैरान करने वाली वारदातें सियासी मुद्दा न बन जाएं, इसे लेकर गृह मंत्रालय ने भी दोनों मामलों को गंभीरता से लिया है। मुट्ठीभर भ्रष्ट अफसरों की वजह से दिल्ली पुलिस की तमाम अच्छी कामयाबियों पर पर्दा पड़ जाता है। कसूरवार पुलिसकर्मियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। दो-तीन मछलियां पूरे तालाब को गंदा कर देती हैं।

-अनिल नरेन्द्र