Friday 15 November 2013

सोमवार-मंगलवार के झटके दिल्ली-एनसीआर वाले कभी भूलेंगे नहीं

सोमवार की रात और मंगलवार की सुबह दिल्ली-एनसीआर के लोग बहुत दिनों तक याद रखेंगे। ऐसी रात दिल्लीवासियों और इर्द-गिर्द इलाकों ने पहले शायद कभी नहीं बिताई हो। आधी रात के बाद तड़के तक दिल्ली और एनसीआर निवासियों का भूकम्प के झटकों ने जीना मुहाल रखा। दहशत के झटकों से तमाम लोग पूरी रात घबराहट में रहे। लगातार चार भूकम्पों के झटकों ने सबको हिलाकर रख दिया। पहला झटका 12.41 बजे आया तो चौथा झटका 3.42 बजे दर्ज हुआ। पहला झटका रिएक्टर स्केल पर भूकम्प की तीव्रता 3.1 दर्ज हुआ। सबसे परेशान करने वाली बात यह रही कि पहला झटका दिल्ली के सैनिक फार्म के 11 किलोमीटर अन्दर से उठा। 2 और 3 मानेसर इलाके से आए। इसका मतलब यह है कि दिल्ली-एनसीआर अब सीधे भूकम्प के झटकों की जोन में आ गए हैं। यदि दिल्ली और एनसीआर में तेज झटका आया तो मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें भारी तबाही हो सकती है। क्योंकि हाल के वर्षों में यहां पर बहुमंजिला इमारतों के कंक्रीट जंगल खड़े हो गए हैं। भवन पर्यावरण की गतिविधियों से पर्यावरण तहस-नहस हो रहा है। पर्यावरण से छेड़छाड़ करने के सबक हमें पहले भी मिल चुके हैं। उत्तराखंड में जून के महीने में आसमान से ऐसा कहर बरसा जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। पिछले हफ्ते तीन दिनों से फिलीपींस में प्रलयकारी तूफान ने हजारों की जान ले ली और लाखों को बेघर कर दिया। तमाम बस्तियां मलबे में तब्दील हो गई हैं। उसके नीचे कितने जिन्दा दफन हो गए यह किसी को पता नहीं। हैयान नाम के इस तूफान को दुनिया का अब तक का सबसे प्रलयकारी वेग वाला तूफान बताया गया है। चार लाख से ज्यादा पीड़ितों ने राहत शिविरों में शरण ली है। समुद्री किनारों  पर बसे शहरों और गांवों के लिए तूफान किसी भयानक आपदा से कम नहीं होता। तूफान के कारण समुद्र का पानी प्रलयकारी बाढ़ में तब्दील हो जाता है। सुनामी में करीब तीन लाख लोगों की मौत हो गई थी। कुछ दिनों पहले बंगलादेश में भी समुद्री किनारे तबाही का मंजर देखने को मिला। पूर्वी एवं दक्षिण एशिया में तो बाढ़, तूफान एवं भूकम्प का खतरा हमेशा बना रहता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने पिछले दिनों कहा था कि दिल्ली और एनसीआर में इस तरह के भूकम्प का खतरा काफी बढ़ा है। ऐसे में जरूरी है कि बड़े स्तर पर आपदा प्रबंधन कर लिए जाए। जयंती नटराजन ने इस बात पर चिन्ता भी जताई कि निर्माण कार्यों में पर्यावरण मानदंडों की परवाह नहीं की जा रही है। इससे बड़ी खतरनाक स्थिति पैदा होती है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि सरकार के अलावा गैर सरकारी संगठन भी इस प्रकरण में पहल करें और लोगों के  बीच जागरुकता फैलाएं। बेहतर आपदा प्रबंधन से नुकसान बहुत कम होता है। मिसाल के तौर पर हाल के महीनों में उड़ीसा में भयंकर समुद्री तूफान आया। लेकिन कुल दो व्यक्तियों की मौत हुई। वहां के आपदा प्रबंधन का यह सुखद परिणाम रहा। सोमवार-मंगलवार को आए झटकों से दिल्ली-एनसीआर वासियों को इतनी दहशत हो गई है कि मामूली-सी आवाज से भी उठ जाते हैं। इस  बार के भूकम्प में पहली बार जमीन हिलने और आवाज सुनने और महसूस करने को मिला। आमतौर पर सिर्प जमीन हिलती थी, आवाजें नहीं आती थीं पर इस बार ऐसा ही हुआ। प्रकृत्ति के कहर से बचना मुश्किल होता है। ऊपर वाला शांति करे।

-अनिल नरेन्द्र

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