पाकिस्तान में हिन्दुस्तानी फिल्मों व टीवी प्रोग्रामों की
बढ़ती लोकप्रियता अब वहां की अदालतों और सरकार दोनों को सताने लगी है। पहले तो
पाकिस्तान इलैक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथारिटी ने 10 टीवी चैनलों पर एक करोड़
रुपए का जुर्माना लगाया फिर लाहौर हाई कोर्ट ने भारतीय फिल्मों की क्रीनिंग पर
मंगलवार को रोक लगा दी। पहले बात करते हैं टीवी चैनलों पर रोक की। पाक अथारिटी ने
10 चैनलों पर जुर्माना इसलिए लगाया कि उन्होंने निर्धारित समय से ज्यादा भारत से
जुड़ी सामग्री प्रसारित की। सोमवार को एक मीडिया रिपोर्ट से यह पता चला। खबर में
हवाला पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दस्तावेज का दिया गया है। इसमें
कहा गया है कि कई पाकिस्तानी चैनल तय समय से काफी अधिक मात्रा में भारतीय और अन्य
विदेशी कंटेट प्रसारित कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया
रेगुलेटरी अथारिटी इससे चिंतित है। उसने दोषी 10 चैनलों पर जुर्माना लगाते हुए
उन्हें आगाह किया है कि वह इस तरह की गलती दोबारा न करें। पाकिस्तानी चैनलों को 10
फीसदी विदेशी कंटेट प्रसारित करने की अनुमति है। इस 10 फीसदी का 60 फीसदी भारतीय
या अन्य का होना चाहिए। बाकी 40 फीसदी अंग्रेजी कंटेट होता है। अब बात करते हैं
लाहौर हाई कोर्ट आर्डर की। लाहौर हाई कोर्ट के जस्टिस खालिद महमूद ने विवादास्पद
टीवी टॉक शो के एंकर मुबशीर लुकमान की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर इस बारे में
अंतरिम आदेश जारी किया है। गौरतलब है कि लुकमान पूर्व फिल्म निर्माता हैं और अपने
भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं। अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया था कि
पाकिस्तानी नियमों के तहत पूरी तरह भारत में फिल्माई गई और किसी भारतीय द्वारा प्रायोजित
फिल्म को नहीं दिखाया जा सकता। लुकमान ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान में भारतीय
फिल्मों को दिखाने के लिए प्रायोजकों की पहचान बदलने की खातिर फर्जी दस्तावेजों का
इस्तेमाल किया जाता है। दावे के समर्थन में उन्होंने कोर्ट का एक आदेश भी पेश
किया। कोर्ट ने लुकमान की याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 25 नवम्बर की तारीख तय की
है और इस वक्त तक सेंसर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू को भी जवाब दाखिल करने की बात कही है।
पाकिस्तान में इन दिनों भारत के खिलाफ एक विरोधी अभियान-सा चल रहा है और यह
पाकिस्तान में बचे-खुचे हिन्दुओं के खिलाफ भी चल रहा है। टीवी फिल्मों के अलावा
पाकिस्तान में हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार पर आवाज
उठाने वालों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों (हिन्दुओं)
पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद करना मानवाधिकार कार्यकर्ता जुल्फिकार
शाह और उनकी पत्नी गुलाम फातिमा शाह को भारी पड़ गया। दोनों को अपने देश से बेदखल
होकर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ा। पाक सेना और आईएसआई ने उन पर
अनगिनत जुल्म ढाए। जुल्म की इंतहा तब हो गई जब जुल्फिकार को स्लो पायजन (लेड और
आंसेनिक) देकर खामोशी से मरने के लिए छोड़ दिया गया। पाक सरकार ने जब उन्हें देश
बदर कर दिया तो वह नेपाल पहुंचे। नेपाल में भी आईएसआई ने उन पर जानलेवा हमले कराए।
बचते-बचते यह दम्पत्ति अब दिल्ली पहुंचे हैं। उन्होंने भारत सरकार से शरण मांगी है
जो विचारार्थ है। एक तरफ तो पाकिस्तान भारत से दोस्ती की बात करता है और दूसरी तरफ
इतना भारत विरोध। इसीलिए कहते हैं कि पाक के हुक्मरान दोगले हैं जिनकी कथनी और
करनी में बहुत फर्प है।
-अनिल
नरेन्द्र
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