Friday, 29 November 2013

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को बचाओ

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। भारत के घरेलू उत्पाद में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों का योगदान 2007-08, 2008-09 और 2009-10 में क्रमश 17.8, 17.1 और 14.5 प्रतिशत रहा। भारतीय कृषि उत्पादन पर ही देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। कृषि जिसमें फसलें, पशुपालन, मातस्यकीय, वानिकी और एग्रो प्रसंस्करण शामिल हैं  जो देश की जनसंख्या को न केवल भोजन प्रदान करते हैं बल्कि एक बड़ी जनसंख्या को रोजगार भी प्रदान करते हैं और देश को भोजन देते हैं और इन सबके पीछे है किसान। अगर किसान खुशहाल होगा तो देश खुशहाल होगा। उत्तर प्रदेश में किसान की हालत इतनी खराब है कि क्या बताएं? मैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने बोने वाले किसानों की खास बात कर रहा हूं। किसानों को गन्ने का उचित मूल्य दिलाने और चीनी उद्योग को साधने में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार बुरी तरह से विफल साबित हो रही है। समस्या सुलझाने में नाकाम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर केंद्र पर अपनी खीझ उतारने की कोशिश की है। चीनी उद्योग की समस्या के लिए उन्होंने केंद्र को ही जिम्मेदार ठहराया है। पैराई शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री ने चीनी मिल मालिकों को मंगलवार को वार्ता के लिए बुलाया। गन्ना मूल्य को लेकर हो रही सियासत राज्य सरकार पर भारी पड़ सकती है। दरअसल राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) पर गन्ना खरीद का मिलों पर दबाव घातक साबित हो सकता है। फिलहाल इससे किसान भले ही खुश हो जाएं लेकिन मिलों के भुगतान न करने की दिशा में किसानों की नाराजगी और बढ़ सकती है। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में चीनी के आयात-निर्यात नियमों में पर्याप्त संशोधन करने का सुझाव दिया है। उन्होंने पत्र में चीनी उद्योग के हाल के लिए केंद्र की नीतियों को जिम्मेदार बताया है। राज्य सरकार ने गन्ने का एसएपी पिछले साल के बराबर 280 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया है। चीनी मिलें 225 रुपए प्रति क्विंटल  से अधिक देने को राजी नहीं हैं। उनकी मांग है कि रंगराजन फार्मूले के तहत चीनी मूल्य से गन्ने की कीमत को लिंक कर दिया जाए यानि चीनी के दाम का 75 फीसदी गन्ना मूल्य होगा। चीनी उद्योग और राज्य प्रशासन अपने-अपने घोषित मूल्यों पर अड़े हुए हैं। किसान की गन्ने की फसल तैयार है उसे समझ नहीं आ रहा कि वह करे तो क्या करे। कुछ किसानों की यह दूसरी गन्ना फसल है। उसे काटने की मजबूरी है क्योंकि अगली फसल बोनी होगी। चीनी मिलों ने भुगतान भी नहीं किया किसी समय उत्तर प्रदेश में 50 चीनी मिलें होती थीं अब मुश्किल से पांच-छह मिलें ही चल रही हैं। किसानों की समस्या यह है कि गन्ना खेती की लागत बढ़ने के बावजूद उन्हें वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही है। दूसरी ओर मिलें गन्ना मूल्य और घटाने के पक्ष में हैं। वह चाहती हैं कि बड़ी कीमत का भुगतान सरकारी खजाने से किया जाए। मगर मिलों का यह तर्प राज्य सरकार के गले नहीं उतर रहा। कहीं ऐसा तो नहीं है कि एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी चालें चली जा रही हैं। अगर किसान की परवाह नहीं होगी तो देश में कभी खुशहाली नहीं आ सकती। जागो अखिलेश किसानों को बचाओ।

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