Wednesday, 20 November 2013

ताकि दिल्ली में शांतिपूर्ण, निष्पक्ष व पारदर्शी विधानसभा चुनाव हों

दिल्ली विधानसभा चुनाव हर तरीके से स्वच्छ, हिंसामुक्त, स्वतंत्र हों यह चुनाव आयोग के लिए एक चुनौती होगी। इस बार 2008 के मुकाबले दिल्ली के विधानसभा चुनाव ज्यादा दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण होने जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की वजह से पिछली बार के मुकाबले इस बार चुनाव मैदान में उम्मीदवारों की तादाद काफी बढ़ गई है। हालांकि चुनाव मैदान में अंतिम मुकाबला कौन लड़ेगा  इसका पता तो नामांकन पत्रों की जांच होने और उम्मीदवारों द्वारा नाम वापस लेने के बाद बुधवार शाम को पता चलेगा लेकिन शनिवार की शाम को नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया खत्म होने के बाद यह साफ हो गया है कि इस बार चुनाव मैदान में पहले से ज्यादा उम्मीदवार उतरने जा रहे हैं। दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी विजय देव के मुताबिक शनिवार को 781 उम्मीदवारों ने 1113 नामांकन पत्र भरे। आखिरी दिन नामांकन दाखिल करने वाले उम्मीदवारों की तादाद कितनी ज्यादा रही, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शाम 6.30 बजे तक प्रोसेस चलता रहा। देव के मुताबिक इस बार करीब 1150 उम्मीदवारों ने 1800 से अधिक फार्म भरे हैं जो 2008 के मुकाबले अधिक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में 1134 उम्मीदवारों ने अपने नामांकन दाखिल किए थे। श्री विजय देव और चुनाव आयोग के लिए यह चुनौती होगी कि चुनाव में हर कीमती वोट प्रयोग हो। मतदान के लिए महिलाओं को घर से बाहर निकालना आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है। आज भी बड़ी संख्या में ऐसी सीटें हैं जहां तमाम प्रयासों के बाद भी मतदान प्रतिशत नहीं सुधर पा रहा है। पिछले चुनाव में दिल्ली कैंट, जंगपुरा, कस्तूरबा नगर, पटेल नगर, मटियामहल, मोती नगर, चांदनी चौक, सदर बाजार, महरौली, तुगलकाबाद समेत अन्य सीटों पर सबसे कम मतदान प्रतिशत रहा। ऐसे विधानसभा क्षेत्रों  में जहां जातिगत समीकरण टक्कर वाले होते हैं या क्राइम ग्रॉफ अधिक होता है उन्हें संवेदनशील श्रेणी में रखा जाता है। इसी आधार पर संवेदनशील व अतिसंवेदनशील बूथ का निर्माण होता है। राजनीतिक दबाव के बीच यहां से मतदाताओं को बाहर निकालना एक बड़ी चुनौती होगी। बाहुबलियों को भी रोकने के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। चुनाव कार्यालय ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर यूपी व हरियाणा के ऐसे बाहुबलियों की पहचान की है जो चुनाव के दौरान दिल्ली पहुंचकर चुनाव प्रभावित कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव को शांतिपूर्ण, निष्पक्ष व पारदर्शी तरीके से कराने के रास्ते में यह बाहुबलियों को मतदान के दिन रोकना अति आवश्यक होगा। दिल्ली की कुछ सीटें हरियाणा और उत्तर प्रदेश से जुड़ी हैं। इसके चलते इन सीटों पर सबसे अधिक फर्जी मतदान की आशंका रहती है। ऐसी सीटों में ओखला, त्रिलोकपुरी, कोंडली, पटपड़गंज, विश्वास नगर, शाहदरा, सीमापुरी, गोकुलपुरी, करावल नगर आदि शामिल हैं। पुराने धुरंधर नेताओं के लिए आचार संहिता के फंडे धीरे-धीरे साफ हो गए हैं। लेकिन मैदान में उतरने वाले नए नेताओं को आचार संहिता समझाना आयोग के लिए बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि यह प्रत्याशी पहली बार मैदान में होंगे। गड़बड़ियों की सम्भावनाएं अधिक होंगी। इसके अतिरिक्त आयोग ने कई सख्त प्रावधान पहली बार लागू किए हैं। शांतिपूर्ण तरीके से मतदान कराने के लिए आयोग 11 हजार से अधिक मतदान केंद्रों पर मतदान व सुरक्षाकर्मी तैनात करता है। ड्यूटी की वजह से यह कर्मचारी वोट नहीं डाल पाते। इनका वोट पाने के लिए आयोग ने इस बार पहले ही बैलेट भरवाने का फैसला किया है। इससे मतदान प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। इस बार नेताओं ने महीनों पहले ही सोशल मीडिया के जरिये प्रचार शुरू कर दिया है। इस प्रचार को यदि किसी अन्य खाते में किया जाता है तो यह आयोग के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। प्रचार के बड़े माध्यम तो आसानी से पकड़ में आ जाते हैं लेकिन पैसे देकर छोटे माध्यम पर शिकंजा कसना आयोग के लिए चुनौती रहेगा। हालांकि इनकी निगरानी के लिए खास समितियों का गठन किया गया है। पॉश इलाकों में लगातार मतदान प्रतिशत और मतदाताओं की संख्या में कमी आ रही है। इन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत बढ़ाना भी चुनौती होगी। इन क्षेत्रों में नई दिल्ली, चांदनी चौक, दिल्ली कैंट, जंगपुरा, कस्तूरबा नगर, पटेल नगर समेत कई सीटें शामिल हैं। आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है फर्जी मतदाता। आयोग ने लम्बी जांच के बाद दिल्ली भर में 14 लाख फर्जी मतदाताओं की तलाश की थी। 1.57 डुप्लीकेट और 8500 अधूरे कार्ड मिले थे। यह मतदाता फिर से सक्रिय नहीं हों, इस पर कड़ी नजर रखनी होगी। इन पर निगरानी ढीली हुई तो फर्जी मतदान की सम्भावनाएं बढ़ जाएंगी। दिल्ली में मतदान प्रतिशत को सुधारने के लिए आयोग एक के बाद एक पहल कर रहा है। इस बार आयोग का लक्ष्य महिला, युवा और सरकारी मतदाताओं के मतों का पाना है। इसके लिए खास मुहिम भी चलाई जा रही है लेकिन इसका कितना असर पड़ता है यह मतदान के बाद ही सामने आएगा। अंत में पहली बार इन चुनावों में मतदाता को अधिकार मिलेगा कि उसे कोई भी प्रत्याशी अगर पसंद नहीं तो वह नोटा बटन दबा सकता है। हालांकि यह अधिकार पहले भी मतदाता के पास था लेकिन मतदान मशीन में इसका प्रावधान नहीं था। इस अधिकार के प्रयोग के लिए मतदाता को चुनाव अधिकारी के पास जाना होता था। नई दिल्ली सीट से इस व्यवस्था को लागू किए जाने की सम्भावना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह पर्ची सिस्टम लागू करे। मतदाता ने किसको वोट दिया है इसके सबूत में प्रिंटआउट देना होगा। पता नहीं इसकी तैयारी कितनी हो चुकी है। निष्पक्ष व पारदर्शी चुनाव के लिए यह जरूरी है, उम्मीद की जाती है कि मुख्य चुनाव अधिकारी जो एक काबिल और कुशल प्रशासक हैं, इस बार दिल्ली में ऐसे चुनाव करवा लेंगे।

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