Wednesday, 6 November 2013

क्या ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगना चाहिए?

सोमवार रात मैं 4 रियल टीवी चैनल पर गया हुआ था। चर्चा का विषय था कि ओपिनियन पोल सर्वे पर प्रतिबंध लगना चाहिए या नहीं। चुनावों के दौरान ओपिनियन पोल के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक लगाने के चुनाव आयोग के विचार का समर्थन करते हुए कांग्रेस ने कहा कि रैंडम सर्वे त्रुटिपूर्ण होते हैं और उनमें विश्वसनीयता की कमी होती है। साथ ही पार्टी ने कहा कि निहित स्वार्थों के लिए उनमें तोड़-मरोड़ किया जा सकता है। सरकार ने ओपिनियन पोल के मुद्दे पर आयोग को फिर से विचार विमर्श करने का निर्देश दिया था जिसके बाद चुनाव आयोग ने विभिन्न राजनीतिक दलों से पिछले महीने विचार मांगे थे। निर्वाचन आयोग को 30 अक्तूबर को लिखित जवाब में कांग्रेस ने कहा कि वह चुनावों के दौरान ओपिनियन पोल के प्रकाशन व प्रसारण पर रोक लगाने के निर्वाचन आयोग के विचारों का पूरा समर्थन करती है। पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि यह तो मजाक बन गया है। त्रुटिपूर्ण गैर भरोसेमंद तथा मनगढ़ंत होते हैं यह सर्वेक्षण। इन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगना चाहिए। जिस तरह की शिकायतें एवं सूचनाएं मिली हैं उससे पता चलता है कि कोई भी पैसा देकर अपनी इच्छानुसार सर्वेक्षण करा सकता है। दो अरब लोगों वाले देश में कैसे कुछ हजार लोग रुझान का अनुमान लगा सकते हैं। यह गोरखधंधा बन गया है। हम श्री दिग्विजय सिंह की मांग का विरोध करते हैं। इलैक्ट्रॉनिक चैनलों का पूरा अधिकार है कि वह अपना सियासी विश्लेषण कर सकें। यह उनका संवैधानिक मूल अधिकार है यह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना होगा और गैर संवैधानिक होगा। आप कल को प्रिंट मीडिया से कहें कि आप अपनी राय प्रकाशित नहीं कर सकते? क्या यह सैंसरशिप नहीं होगी? मुझे ताजा हालात की जैसी सियासी स्थिति नजर आती है मैं उसके बारे में क्यों नहीं लिख सकता? इसलिए प्रतिबंध लगाना सरासर गलत होगा। यह प्रेस की आजादी का गला घोटना होगा। हां यह मैं जरूरी मानता हूं कि जिस प्रकार से पिछले दिनों यह सर्वे हो रहे हैं उनमें सुधार की सख्त जरूरत है। पैसा देकर कुछ पार्टियां अपनी हवा बनाने हेतु मनमाफिक सर्वे करवा देते हैं। सर्वे करने वाली एजेंसी को यह साफ करना चाहिए कि उसने सर्वे करने का क्या तरीका अपनाया है। कितने मतदाताओं से, किस-किस क्षेत्र में कब सर्वे किया? सर्वे से बस सिर्प हवा का रुख पता चलता है और कुछ नहीं। पिछला अनुभव यही है कि कई सर्वे फाइनल रिजल्ट से बहुत अलग रहे हैं पर सीटों का फर्प होता है रुख तो तब भी सही नहीं होता है। फिर जौन सी चैनल या एजेंसी सर्वे कर रही है अंतत उसकी विश्वसनीयता भी दो दाव पर होती है। यह अलग विवाद का मुद्दा है कि इन सर्वे का मतदाता पर कितना असर पड़ता है? चुनावी दृश्य रोज ही नहीं हर घंटे बदलता है। आज का सर्वे दो दिन बाद रेलेवेंट नहीं रहता कभी-कभी। फिर भारत का मतदाता इतना जागरूक है कि वह अपने दिल की बात शायद ही बताएं? कुल मिलाकर हमारा मानना है कि सर्वे के लिए मापदंड बनाने चाहिए, रेग्यूलेशन होनी चाहिए ताकि इनकी विश्वसनीयता बढ़े पर प्रतिबंध लगाना असंवैधानिक और गलत होगा। प्रेस चाहे इलैक्ट्रॉनिक हो या प्रिंट इसका जमकर विरोध करेगा और करना चाहिए। अमेरिका, इंग्लैंड जैसे विकसित देशों में भी ओपिनियन पोल होते हैं पर वहां तो किसी ने इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग नहीं की।

-अनिल नरेन्द्र

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