वैसे तो चुनावों के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि
अंतिम दिनों में सियासत हर दिन बदलती है और मतदान के दिन क्या स्थिति हो कोई नहीं कह
सकता। दिल्ली के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। मुकाबला त्रिकोणीय है। अगर हम हाल ही के
कांग्रेस के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस के लिए उत्साहजनक स्थिति नहीं
है। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2008 में कांग्रेस को मिली भारी जीत के बाद कांग्रेस की
लोकप्रियता में लगातार गिरावट देखी गई। शुरुआती चरण में भले ही कांग्रेस ने अभूतपूर्व
सफलता पाई हो, लेकिन जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आता गया वैसे-वैसे कांग्रेस की
सीटें घटती गईं। विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली
के तीन विधानसभा क्षेत्रों के अलावा लोकसभा चुनाव और नगर निगम का चुनाव हो चुका है।
वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव में जहां सभी सातों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया,
वहीं वर्ष 2012 के नगर निगम चुनावों में भाजपा ने भारी बहुमत से जीत हासिल की। वर्ष
2009 में दिल्ली के तीन विधानसभा क्षेत्र रोहताश नगर, ओखला और द्वारका में उपचुनाव
हुए। इन तीनों पर कांग्रेस के विधायक काबिज थे। लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस केवल एक
सीट बरकरार रख सकी और दो सीटें गंवा दीं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं विधायक
रामबाबू शर्मा के निधन के बाद रोहताश नगर सीट पर उनके पुत्र विपिन शर्मा ने तो पिता
की विरासत बचा ली लेकिन ओखला के विधायक परवेज हाशमी के राज्यसभा सांसद और द्वारका के
विधायक महाबल मिश्रा के लोकसभा सदस्य बनने के बाद रिक्त इन सीटों पर हुए उपचुनाव में
आरजेडी और भाजपा प्रत्याशियों का कब्जा हो गया। दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों
को भारी अन्तर से हार मिली। हालांकि वर्तमान में आरजेडी विधायक आसिफ मोहम्मद कांग्रेस
में शामिल हो चुके हैं। 2012 के नगर निगम चुनाव के बाद उत्तरी दिल्ली नगर निगम के नांगलोई
ईस्ट और पूर्वी दिल्ली नगर निगम के यमुना विहार नामक दो वार्डों में उपचुनाव हुए। दोनों
वार्डों में भाजपा उम्मीदवारों की जीत हुई। नांगलोई ईस्ट में भाजपा उम्मीदवार रेनू ने लगभग 4200 वोटों से और यमुना
विहार से आशा तायल ने कांग्रेसी उम्मीदवार को लगभग 4700 वोटों से हराया। विधानसभा उपचुनावों
में रोहताश नगर से बेशक कांग्रेस 23547 वोटों से जीती पर ओखला से आरजेडी के उम्मीदवार
5000 वोटों से जीते और द्वारका में भाजपा उम्मीदवार 11000 वोटों से जीते। यह ठीक है
कि नगर निगम और विधानसभा चुनावों के मुद्दे अलग-अलग होते हैं और एक का दूसरे पर असर
नहीं पड़ता पर हवा के रुख का तो पता चलता है। बेशक इस बार कांग्रेस ने मजबूत टीम उतारने
का प्रयास किया है पर एंटी इन्कम्बैंसी फैक्टर कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है। हवा का
रुख विपक्ष की ओर ज्यादा हो रहा है। आप पार्टी से नुकसान भी कांग्रेस को ज्यादा हो
सकता है बनिस्पत भाजपा को। हालांकि यह सभी जानते हैं कि इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम पर और दिल्ली में हुए चहुंमुखी विकास पर पार्टी लड़
रही है पर विडम्बना यह भी है कि अभी तक पार्टी ने यह नहीं बताया कि अगर वह चुनाव जीतती
है तो मुख्यमंत्री कौन होगा? संकेत यह भी मिल रहे हैं कि शीला दीक्षित कांग्रेस के
चुनाव जीतने पर स्वाभाविक नेता शायद इस बार न हों।
-अनिल नरेन्द्र
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