Friday 15 November 2013

आप का विदेशी फंड मुद्दा गरमाया

आम आदमी पार्टी इसलिए बनी कि वह देश से भ्रष्टाचार मिटा सके और पूरे सिस्टम में पारदर्शिता, स्वच्छता ला सके। उसके संयोजक, संस्थापक अरविन्द केजरीवाल रोज कई बार रेडियो पर अपनी आवाज में दोहराते हैं कि वह सत्ता में आ रहे हैं और भ्रष्टाचार, घूसखोरी, भाई-भतीजावाद इत्यादि-इत्यादि सब दूर करके रहेंगे। हम उनके विचारों का स्वागत भी करते हैं पर कथनी और करनी एक समान होनी चाहिए। अगर केजरीवाल खुद उन्हीं चक्करों में फंसेंगे जिनमें कांग्रेस या भाजपा है तो फिर इनमें फर्प क्या रह जाएगा? विदेशी चन्दे के मामले में अरविन्द केजरीवाल फंसते नजर आ रहे हैं। सरकार ने आम आदमी पार्टी (आप) के चन्दे के स्रोतों की जांच के आदेश दे दिए हैं। भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आवाज डॉट आर्ग की ओर से आप को चार लाख डॉलर दिए जाने का आरोप लगाया है। वहीं गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सफाई दी है कि विदेशी फंड की जांच दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर हो रही है। डॉ. स्वामी ने ट्विट पर दावा किया कि अरब देशों में नागरिकों के बीच विद्रोह फैलाने के लिए पैसे देने वाले संस्थान ने ही अरविन्द केजरीवाल की आप को भी आर्थिक मदद की है। अरविन्द केजरीवाल ने हालांकि किसी भी प्रकार की जांच कराने को स्वीकार किया है पर साथ-साथ कांग्रेस और भाजपा को भी विदेशों से आए फंड की जांच की मांग कर डाली। चुनाव के बीच इस तरह की जांच का आदेश हमें नहीं  लगता कि चुनाव प्रक्रिया पर कोई असर डालने वाला होगा। खुद केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे कह रहे हैं कि ऐसी जांचों में समय लगता है, इसलिए दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले इसकी रिपोर्ट मिलने के आसार नहीं हैं। इस समय इस मुद्दे को उठाने के पीछे मतदाताओं के बीच अरविन्द केजरीवाल की विश्वसनीयता पर प्रभाव डालने का प्रयास भी हो सकता है। अरविन्द केजरीवाल अन्ना हजारे के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर ही मैदान में उतरे थे पर भ्रष्टाचार मिटाने की बात कर वह क्या केवल राजनीति में प्रवेश करने का रास्ता बना रहे हैं? क्या वह खुद भी उन्हीं बुराइयों को अपना नहीं रहे जिनके खिलाफ वह लड़ने का दम भरते आ रहे हैं। हम केजरीवाल की इस दलील से सहमत हैं कि दूसरे दलों के भी विदेशी फंडिंग की भी जांच हो। जनप्रतिनिधि कानून और विदेशी अनुदान विनियम कानून (एफसीआरए) दोनों में प्रावधान है कि राजनीतिक पार्टियां विदेशी चन्दा नहीं ले सकतीं। आप पर विदेशों से अनुदान ग्रहण करने का जो आरोप लगा है उसकी जांच अनुचित नहीं कही जा सकती। मगर मतभेद हो सकता है तो वह टाइमिंग को लेकर हो सकता है। असली मुद्दा चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का है जिससे लगभग सभी बड़ी पार्टियों का काम चलता है। क्या इस बात पर कोई यकीन करेगा कि बड़ी पार्टियों के रोजमर्रे पर सारा खर्च और सभी चुनावों में उनके उम्मीदवार जिस बड़े पैमाने पर खर्च करते हैं, वह सब उसी चन्दे से आता है, जिसका विवरण पार्टियां चुनाव आयोग या आयकर विभाग को देती हैं? यह चन्दा देने वालों को क्या लाभ पहुंचाती हैं, इन सब पर रहस्य का मोटा पर्दा पड़ा रहता है। राजनीतिक सुधार की राह में चन्दोह  की यही संस्कृति सबसे बड़ी समस्या है। क्या सरकार, चुनाव आयोग के पास इस  मूल समस्या का कोई समाधान है?

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