Saturday 9 November 2013

पिछले 4 सालों में एनआईए की निराशाजनक कारगुजारी?


मुंबई हमले (26/11) के बाद आतंकी घटनाओं की जांच के लिए विशेष रूप से बनाई गई नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) की परफारमेंस मायूस करने वाली रही है। एजेंसी की किरकिरी ज्यादा हो रही है उपलब्धि कम। पटना धमाकों की औपचारिक जांच शुरू करने से पहले ही एनआईए विवादों में घिर गई है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की गिरफ्त से धमाकों के आरोपी महर आलम के मुजफ्फरनगर से निकल भागने का आरोप है। हालांकि एनआईए इसे बेबुनियाद बता रही है और कह रही है कि महर आलम मुजफ्फरनगर नहीं बोधगया धमाकों का गवाह है। वैसे मुजफ्फरनगर से भागे महर को बाद में कानपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। एनआईए ने इस पर चुप्पी साध ली है। इस बीच दिल्ली से उसे धमाकों के एक अन्य आरोपी मोहम्मद अफजल को गिरफ्तार करने में सफलता मिली है। मुजफ्फरनगर पुलिस के अनुसार एनआईए आरोपी महर से स्थानीय लांज में पूछताछ कर रही थी, लेकिन वह अपना मोबाइल व अन्य सामान छोड़कर भाग निकला। आरोपी के फरार होने की खबर फैलते ही एनआईए इसके खंडन में जुट गई। देर शाम एनआईए ने दावा किया कि महर बोधगया धमाकों का गवाह है और उसे पटना धमाकों से पहले ही 23 अक्तूबर को नोटिस भेज दिया गया था। उसे 29 अक्तूबर को बोधगया पहुंचना था, लेकिन पटना में एनआईए टीम की मौजूदगी देखकर वह वहीं मिलने चला आया। इसके बाद एनआईए उसे लेकर मुजफ्फरनगर के मीरपुर गांव में संदिग्ध आतंकी हैदर अली की तलाश में पहुंची। हैदर के नहीं मिलने पर महर टीम के साथ ही रुका था, लेकिन सुबह अचानक किसी बहाने से लांज छोड़कर चला गया। 26/11 के बाद बनी इस विशेष जांच एजेंसी के पास पांच साल के दौरान दिखाने के लिए एक भी उपलब्धि नहीं है। भारत में सबसे अधिक आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) के ज्यादातर आतंकियों की गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल, मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच और बेंगलुरु पुलिस के आतंक विरोधी दस्ते ने की है। सुरक्षा विशेषज्ञ तो एनआईए बनाने के फैसले पर ही सवाल उठाने लगे हैं पीस एण्ड कांफ्लिक्ट स्टडीज के निदेशक अजय साहनी के अनुसार 2009 में एनआईए का गठन सरकार का एक ढोंग था। अभी तक एनआईए ने आतंकी हमले का ऐसा एक भी केस हल नहीं किया है। जिसे  राज्य पुलिस नहीं कर सकती थी। एनआईए के पास मात्र 60 मामलों की जांच के लिए 600 से अधिक अधिकारी हैं। जबकि सीबीआई में एक-एक अधिकारी पर दर्जनों केसों का बोझ है और राज्य पुलिस की हालत तो और भी बदतर है। तमाम सुविधाओं के बावजूद अभी तक एनआईए आतंकी हमले का एक भी केस पूरी तरह से हल नहीं कर सकी है। असम के कुछ मामलों के साथ मालेगांव, मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर शरीफ धमाकों के जिन कुछ केसों में एनआईए ने चार्जशीट दाखिल की है, उनकी अधिकांश जांच पहले ही राज्य पुलिस कर चुकी थी। पुणे, हैदराबाद, दिल्ली के जामा मस्जिद और बोधगया धमाकों की जांच सीधे तौर पर एनआईए को सौंपी गई। इन मामलों में अभी तक तो कोई प्रगति नहीं हो पाई है। अजय साहनी के अनुसार एनआईए की बजाय यदि राज्यों को एटीएस सुविधाएं दी जातीं तो वे ज्यादा बेहतर परिणाम दे सकती थी।  आंकड़े भी उनके दावे का समर्थन करते हैं। एनआईए के गठन के बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल, मुंबई और बेंगलुरु पुलिस ने आईएमए के दर्जनों आतंकियों को देशभर से गिरफ्तार किया और एक तरह से इस आतंकी संगठन की कमर तोड़ दी। लेकिन एनआईए के खाते में ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

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