Wednesday 29 February 2012

नार्वे सरकार के कानून कुदरत के कानून से ऊपर नहीं है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 1st March 2012
अनिल नरेन्द्र
हम नार्वे के कानूनों व देश का सम्मान करते हैं और यह भी मानते हैं कि हर देश को अपना कानून बनाने की आजादी है। अगर वहां की जनता किसी कानून का समर्थन करती है तो सरकार उसे कानून बना सकती है पर कुछ कानून ऐसे भी होते हैं जो ऊपर वाला बनाता है और उसे हर आदमी, सरकार व देश को मानना चाहिए। ऐसे ही कानूनों में बच्चों की परवरिश का मां-बाप को करने का अधिकार है। आप छोटे-छोटे बच्चों को उनके मां-बाप से अलग कर रहे हैं, यह कैसा अजीब कानून है। ऐसा ही एक कानून आजकल चर्चा में है। दरअसल पिछले साल नवम्बर में नार्वे के अधिकारियों ने अनुरूप और उनकी पत्नी सागारिका भट्टाचार्य के साथ रह रहे उनके बच्चों को सरकार के हवाले करने का फैसला किया था। बच्चों के नाम हैं अभिज्ञान (3 साल) और ऐश्वर्या (1 साल)। पेशे से जियो वैज्ञानिक अनुरूप भट्टाचार्य पर नार्वे सरकार का आरोप है कि वह अपने हाथों से बच्चों को हाथ से खाना खिलाते थे। उन्हें अपने साथ ही बिस्तर पर सुलाते थे। बच्चों के नाना मनतोष चकवर्ती ने कहा कि उन्हें अपने बच्चों को वापस लाने के अभियान में सारी दुनिया से समर्थन मिला है। इधर नई दिल्ली में नार्वे दूतावास के सामने चार दिवसीय धरना शुरू हो चुका है। पहले दिन जन समुदाय व राजनीतिज्ञों के मिले समर्थन से लगता है कि यदि नार्वे सरकार अनुरूप भट्टाचार्य के तीन साल के बेटे अभिज्ञान और एक साल की बेटी ऐश्वर्या को भारत भेजने में अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ता तो यह आंदोलन देशव्यापी हो सकता है। दरअसल सोमवार को अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, पांस, कनाडा, स्विटजरलैंड समेत 14 से अधिक देशों में रह रहे वैज्ञानिकों व उनके परिवारों के सदस्यों ने मेल के जरिए नार्वे की सरकार की भर्त्सना की है। संदेशों में कहा गया है कि वे उनके साथ हैं, यह लड़ाई मानवता की रक्षा के लिए है। पूर्व नियोजित कार्यकम के तहत सोमवार को सुबह 11 बजे लोग नार्वे दूतावास के बाहर पहुंचे लेकिन कुछ समय बाद ही पुलिस ने उन्हें चाणक्यपुरी मार्ग की ओर भेज दिया जहां पर वे धरने पर बैठ गए। धरने के पहले दिन अभिज्ञान एवं ऐश्वर्या के नाना-नानी, उनके परिवार के सदस्य, लोकसभा के विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, माकपा सांसद वृंदा करात और अन्य नेता स्थानीय नार्वे दूतावास के सामने धरने पर बैठ गए। विरोध-पदर्शन में शिरकत कर रहे नेताओं ने कहा कि वे इस मुद्दे को 12 मार्च से शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र के दौरान भी उठाएंगे। सुषमा जी ने कहा कि नार्वे सरकार का यह कदम मानव विरोधी है, इसलिए उसे चाहिए कि बिना समय गवाएं बच्चों को उनके परिजनों को सौंपने की पहल करे। माकपा नेता वृंदा करात ने कहा कि जब बच्चों के पेरेन्ट्स व रिश्तेदार अपने बच्चों को भारत लाना चाहते हैं तो फिर उन्हें कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। भारत सरकार ने भी मामले में सकियता दिखते हुए विदेश मंत्रालय में सचिव ने नार्वे में वहां के विदेश मंत्री से मुलाकात की है। उन्होंने बच्चों को उनके माता-पिता को लौटाने का अनुरोध दोहराया। सूत्रों के अनुसार इस पूरे पकरण पर नार्वे के रवैए से भारत आहत हुआ है। मुलाकात सकारात्मक रही और उम्मीद की जानी चाहिए कि नार्वे की सरकार जल्द बच्चों को मां-बाप को सौंप देगी। वह बेशक ऐसा बेतुका कानून अपने नागरिकों पर थोपे पर उस देश में रह रहे विदेशियों पर नहीं थोप सकता।
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बागी येदियुरप्पा बने गडकरी का सिरदर्द

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Published on 29th February  2012
अनिल नरेन्द्र
कर्नाटक में भाजपा के सामने विकट स्थिति खड़ी हो गई है। अभी विधानसभा में तीन सांसदों का सदन के अन्दर अश्लील फिल्में देखने का मामला थमा नहीं कि पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने नया हंगामा खड़ा कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने अपनी पुनर्नियुक्ति किए जाने पर खुली बगावत कर दी है। उधर भाजपा अध्यक्ष नीतिन गडकरी ने उनकी धमकियों की परवाह न करते हुए साफ कह दिया है कि कर्नाटक में कोई संकट नहीं है और राज्य में मौजूदा मुख्यमंत्री डीवी सदानन्द गौड़ा को बदलने की सम्भावना से इंकार कर दिया है। हालांकि गडकरी ने खिन्न चल रहे येदियुरप्पा को यह कहकर संतुष्ट करने का प्रयास किया कि पार्टी उनका सम्मान करती है। गडकरी ने कहा कि सदानन्द गौड़ा फिलहाल सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। नेतृत्व में बदलाव का सवाल ही नहीं उठता। येदियुरप्पा ने अपनी शक्ति-प्रदर्शन के तहत विधायकों, विधान पार्षदों और सांसदों के लिए दोपहर भोज का आयोजन भी किया। सोमवार को येदियुरप्पा ने बेंगलुरु में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा कि पिछले साल जब उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए कहा था तब पार्टी आलाकमान ने छह माह में फिर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। पहले पार्टी नेतृत्व को 27 फरवरी तक खुद को मुख्यमंत्री बनाने का समय देने वाले येदियुरप्पा ने कहा, `मैं मुख्यमंत्री पद का आकांक्षी नहीं हूं। चूंकि केंद्रीय नेतृत्व ने मुझे छह माह बाद फिर मुख्यमंत्री पद पर बैठाने का वादा किया था इसलिए मैं अपनी कुर्सी पाने के लिए दिल्ली गया था।' येदियुरप्पा अपने 70वें जन्मदिन पर पिछड़ा वर्ग फोरम की ओर से आयोजित बैठक को सम्बोधित कर रहे थे। केंद्रीय नेतृत्व से नाराज पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वह नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा सुलझाने के लिए दिल्ली में तीन मार्च को आयोजित भाजपा कोर कमेटी की बैठक में भाग नहीं लेंगे। उसकी जगह वह पूरे राज्य का दौरा करेंगे ताकि पार्टी मजबूत हो। खबर तो यह भी है कि कुछ कांग्रेसी नेता भाजपा को झटका देने के लिए बागी येदियुरप्पा को कांग्रेस में शामिल कराने की जोरदार पैरवी में लग गए हैं। कांग्रेस में आने की बातचीत भी येदियुरप्पा से की गई है। लेकिन 10 जनपथ ने कर्नाटक के अपने नेताओं को साफ सन्देश भेज दिया है कि भ्रष्टाचार के कीचड़ में सने येदियुरप्पा को किसी हालत में कांग्रेस में एंट्री नहीं दी जा सकती। सूत्रों के अनुसार एक पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा के सन्दर्भ में एक राजनीतिक प्रस्ताव लेकर आए थे। उन्होंने पार्टी के दो राष्ट्रीय महासचिवों को भी इसके लिए तैयार कर लिया था कि यदि येदियुरप्पा को कांग्रेस में लिया जाए तो राज्य में भाजपा हमेशा के लिए कमजोर हो जाएगी पर हाई कमान इसके लिए तैयार नहीं है। जो लोग प्रस्ताव की पैरवी कर रहे थे उन्हें डांट पड़ी है। उनसे कहा गया है कि अरबों रुपये के भ्रष्टाचार में शामिल येदियुरप्पा को कांग्रेस में ले लिया गया तो इससे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के लिए गलत सन्देश जाएगा। भाजपा नेतृत्व के लिए कर्नाटक एक चुनौती बन गई है। दक्षिण भारत में एकमात्र भाजपा सरकार को बचाने के लिए पार्टी नेतृत्व को इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाना पार्टी हित में ही होगा। सत्ता के भूखे येदियुरप्पा को कैसे कंट्रोल किया जाए, यह गडकरी के लिए एक चुनौती है।
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केजरी...बवाल

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Published on 29th February  2012
अनिल नरेन्द्र
टीम अन्ना के बड़बोले सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने तो सारी हदें पार कर दी हैं। ग्रेटर नोएडा में एक चुनावी रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि संसद में चोर, लुटेरे और बलात्कारी बैठे हैं। इनसे उन्हें कोई उम्मीद नहीं है। केजरीवाल ने कहा कि संसद में 163 सांसद ऐसे हैं जिनके खिलाफ जघन्य अपराध के मुकदमें चल रहे हैं। केजरीवाल के मुताबिक संसद देश की बड़ी समस्या बनती जा रही है और जब तक इसका चरित्र नहीं बदला जाएगा, देश का उद्धार नहीं हो सकता। उन्होंने राजद के लालू प्रसाद यादव और सपा के मुलायम सिंह यादव पर जमकर निशाना साधा और कहा कि ऐसे लोग संसद में कभी भी लोकपाल विधेयक को पारित नहीं होने देंगे। केजरीवाल के इस तल्ख रवैये के खिलाफ सभी दलों ने एक स्वर में विरोध जताया। लेकिन केजरीवाल को शायद इसका कोई फर्प नहीं पड़ा। अगले दिन उन्होंने ट्विटर पर फिर लिख दिया कि संसद और सरकार मुजरिमों के हाथ बंधक है। केजरीवाल ने मीडिया से कह दिया है कि उन्होंने चुनावी सभा में कुछ भी गलत नहीं कहा था। ऐसे में माफी मांगने की क्या जरूरत है? उन्होंने दोहराया कि अगर संसद में सैकड़ों अपराधी बैठे हैं तो इस सच के बारे में बोलना गुनाह कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा कि संसद में चोर-गिरहकट जैसे मामूली अपराधी नहीं हैं। वहां तो 15 ऐसे सांसद हैं जिन पर कत्ल का मुकदमा चल रहा है। 23 ऐसे सांसद हैं जिन पर हत्या के प्रयास के मामले चल रहे हैं और 13 सांसद हैं जिन पर अपहरण के मुकदमें लम्बित हैं, 11 पर धोखाधड़ी के मामले हैं। अरविन्द केजरीवाल के इस बयान से राजनीतिक दलों का भड़कना समझ आता है। केजरीवाल ने सारी हदें पार कर दी हैं। कुछ सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि के हो सकते हैं पर यह कहना कि संसद ही चोरों-लुटेरों का डेरा है, गलत है। आखिर यह संसद पहुंचे कैसे? जनता ने इन्हें चुनकर भेजा है। कसूर जनता का ज्यादा है या उन कानूनों का जो ऐसी प्रवृत्ति के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकते। फिर संसद में साफ-सुथरी छवि वाले सांसदों का बहुमत भी है। हर एक को एक ही थाली का चट्टा-बट्टा कहना गलत है, मर्यादाओं से बाहर है। जाहिर है कि जैसे ही संसद सत्र चलेगा पहला काम सांसद अरविन्द केजरीवाल को कठघरे में खड़ा करेंगे और उन्हें सजा मिलना तय है। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि केजरीवाल का बयान टिप्पणी लायक नहीं है पर इस तरह के बयान लोकतंत्र और संसद का ही नहीं, जनता का भी अपमान है। सपा के महासचिव मोहन सिंह का कहना है कि केजरीवाल के मुंह से ऐसे शब्दों का प्रयोग निन्दनीय है। बाहरी इशारों पर अपने एनजीओ के लिए पैसा बटोरने के लिए वे संसद को बदनाम कर रहे हैं। इनकी खबर ली जानी चाहिए। क्योंकि केजरीवाल तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के ही दुश्मन बन गए हैं। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने कल कहा कि केजरीवाल तो विदेशी एजेंट लगता है। उनकी पार्टी लोकसभा में केजरीवाल के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला उठाएगी। भाजपा के प्रकाश जावडेकर ने भी केजरीवाल के बयान की कटु आलोचना की और इसे निन्दनीय तथा लोगों की लोकतंत्र के प्रति आस्था कमजोर करने वाला बताया जबकि टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य कुमार विश्वास को समझ नहीं आ रहा है कि केजरीवाल के बयान पर हंगामा क्यों बरपा है?
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Tuesday 28 February 2012

कांग्रेस ने चुनाव मर्यादा को तार-तार कर दिया है

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Published on 28th February  2012
अनिल नरेन्द्र
अब की बार उत्तर प्रदेश के चुनाव में कुछ कांग्रेसी नेताओं ने तो सारी हदें पार कर दी हैं। न तो इन्हें चुनाव आयोग की ही चिन्ता है, न मान-मर्यादा की। जो मुंह में आता है बोल देते हैं। यह भी नहीं सोचते कि इसका पार्टी के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा? इस श्रेणी में एक नाम है केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का। अभी आपके इस विवाद का तूफान थमा नहीं था कि अगर कांग्रेस की सूबे में सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा कि एक और विवादास्पद बयान दे डाला। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगता है कि जो भाषा केंद्रीय मंत्री बोल रहे हैं या जो आचरण दिखा रहे हैं, क्या वह कांग्रेस की नई आचार संहिता तो नहीं? इस भाषा और कांग्रेस के केंद्रीय मंत्रियों के आचरण ने इस चुनाव को चुनाव आयोग बनाम कांग्रेस में बदल दिया है। शनिवार को फिर केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने मथुरा में चुनावी रैली में कह डाला कि राहुल गांधी अगर चाहें तो आज आधी रात को ही प्रधानमंत्री बन सकते हैं और कोई उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं सकता। लेकिन वे न प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं न मुख्यमंत्री। जायसवाल इससे पहले मुख्यमंत्री बनने की भी इच्छा जता चुके हैं। चुनाव प्रचार के दौरान ही उन्होंने यह कहकर विवाद पैदा कर दिया था कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री भले ही कोई बने पर रिमोट कंट्रोल तो राहुल गांधी के हाथ में रहेगा। विपक्ष ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि हारती हुई कांग्रेस ने लोकतंत्र को मजाक बना दिया है। यह पहला चुनाव है जिसमें कांग्रेस के शीर्ष नेता अलग-अलग भाषा बोल रहे हैं। राहुल गांधी खुद लगातार दो सरकारों को गुंडों और चोरों की सरकार बता चुके हैं। यह बात अलग है कि राष्ट्रमंडल खेल से लेकर 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में केंद्र सरकार पर वे कोई टिप्पणी नहीं करते। इलाहाबाद हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील सतीश शुक्ला ने कहा कि इस कानून में गुंडा और चोर की परिभाषा तय है। यदि उस दायरे में कोई नेता आता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होती है। ऐसे में इन शब्दों का इस्तेमाल समूची सरकार के लिए किया जाना समझ से परे है। यही वजह है कि विपक्ष इसे चुनाव में कांग्रेसी आचरण को नई आचार संहिता बता रहा है। ऐसा लग रहा है मानों कांग्रेस चुनाव आयोग से दो-दो हाथ करने पर तुली हुई है। कांग्रेस नेताओं के बयान पर तमाम विपक्षी पार्टियों का विरोध स्वाभाविक ही है। सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा कि कांग्रेस के नेता और मंत्री यहां तक कि राहुल गांधी जो भाषा बोल रहे हैं उसने पूरे चुनाव की मर्यादा तार-तार कर दी है। इस बार तो लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी चुनाव आयोग से ही लड़ रही है। मंत्री क्या बोल रहे हैं उन्हें पता ही नहीं। कोई एक प्रधानमंत्री के रहते आधी रात में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का ऐलान करता है तो कोई धमकाता है कि कांग्रेस को वोट नहीं दिया तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा। सब बाद में मुकर जाते हैं, बेनी, सलमान और जायसवाल यह कह चुके हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि कांग्रेस इस चुनाव में विभिन्न प्रकार की साजिशें रच कर जनता को भ्रमित कर रही है। कांग्रेस पार्टी अब पूरी तरह से निराश और हताश हो चुकी है। भाजपा प्रवक्ता विजय पाठक ने कहा कि श्रीप्रकाश जायसवाल रात में 12 बजे राहुल को प्रधानमंत्री बनाकर क्या सन्देश देना चाहते हैं? जब एक पीएम काम कर रहा है तो इस तरह की बात करना अपनी ही सरकार की खिल्ली उड़ाना है।
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अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्ताव के बाद बलूचिस्तान मामला गरमा गया है

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Published on 28th February  2012
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने बलूचिस्तान में हत्याओं के मामले को गम्भीरता से लेते हुए आईएसआई और मिलिट्री इंटेलीजेंस को घटनाओं सहित सुरक्षा हालात के बारे में रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति मियां शकीउर्रुल्ला जान के नेतृत्व में तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने मिलिट्री इंटेलीजेंस एजेंसियों को सात मार्च तक यह रिपोर्ट पेश करने को कहा है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मामले की बन्द कमरे में सुनवाई होगी। गौरतलब है कि अमेरिका के एक कांग्रेस सदस्य ने प्रतिनिधि सभा में एक प्रस्ताव पेश कर बलूच लोगों को आत्म निर्णय का अधिकार देने की मांग की थी। पाकिस्तान सरकार ने इस प्रस्ताव को देश की सप्रभुत्ता पर हमला करार देते हुए इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। इससे घबराकर पाकिस्तान सरकार ने बलूच नेताओं से बातचीत का प्रस्ताव रखा है। पाक सरकार ने आम माफी देने की पेशकश भी की है। बलूच राष्ट्रवादी नेताओं ने उन्हें माफी देने की पेशकश करने वाली पाकिस्तानी सरकार से बातचीत शुरू करने के लिए कड़ी शर्तें रखी हैं। निर्वासित जीवन व्यतीत करते हुए बलूच नेताओं के लिए गृहमंत्री रहमान मलिक की आम माफी संबंधी पेशकश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जम्हूरी वतन पार्टी के नेता और 2006 में एक सैन्य अभियान में मारे गए अकबर खान बुगती के पोते ने बातचीत शुरू करने के लिए आठ शर्तें रखी हैं। इसमें बलूचिस्तान में सैन्य अभियान बन्द करने, प्रांत में नई सैन्य छावनियां बनाने पर पाबंदी और अकबर खान बुगती की हत्या में भूमिका के लिए पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को गिरफ्तार और मुकदमा चलाने की मांग शामिल है। बुगती ने कहा कि बलूचिस्तान में नई सैन्य छावनियां बनाना बन्द होना चाहिए और साथ ही खुफिया एजेंसियों की भूमिका पर भी पाबंदी लगनी चाहिए। हम (बलूच कार्यकर्ताओं) के क्षत-विक्षत शवों को नहीं देखना चाहते। उन्होंने कहा कि सेना का अभियान बन्द होना चाहिए और 13000 लापता बलूच युवकों का पता लगाना चाहिए। मुशर्रफ को अपने पिता का `हत्यारा' बताते हुए उन्होंने उन्हें बलूचिस्तान लाकर उन पर मुकदमा चलाने की माग की। स्विटजरलैंड में रह रहे बलूच राष्ट्रवादी नेता और बलूच रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख बुगती ने बलूच लोगों के आत्म निर्णय के अधिकार के लिए अमेरिकी कांग्रेस के पेश हुए एक विधेयक का स्वागत करते हुए कहा था कि वे पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप का समर्थन करेंगे। बुगती ने टेलीफोन पर क्वेटा प्रेस क्लब में संवाददाताओं से कहा कि अमेरिका को बलूचिस्तान में जरूर हस्तक्षेप करना चाहिए और बलूचों के नस्ली सफाई अभियान को रोकना चाहिए। अमेरिकी कांग्रेस में बलूचिस्तान की आत्म निर्णय का अधिकार प्रदान करने संबंधी प्रस्ताव के पेश होने के बाद बलूचिस्तान में राजनीतिक घटनाक्रम तेज होता दिख रहा है। पाकिस्तान में इस प्रस्ताव के खिलाफ तीखा रोष है। पाकिस्तान सरकार ने रोहराबाशेर के प्रस्ताव पर घोर आपत्ति जताई है और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने इसे देश की सप्रभुत्ता पर हमला करार दिया है। प्रस्ताव के असर को दूर करने के लिए पीपीपी नीत सरकार अब बलूचिस्तान के लिए एक राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी पैकेज के लिए सर्वदलीय बैठक भी करना चाह रही है, अमेरिकी प्रस्ताव से पाकिस्तान लगता है हिल गया है।
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Sunday 26 February 2012

अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों का निहायत नीच और घिनौना कृत्य

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th February  2012
अनिल नरेन्द्र
अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिकों ने एक ऐसा कृत्य किया है जिससे सारी दुनिया का सिर शर्म से झुक गया है। इस कृत्य की जितनी भी निन्दा की जाए, कम है। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के बड़गाम एयरबेस पर इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान की प्रतियां जलाए जाने की रिपोर्ट आई है। इस अमानवीय कृत्य से सारी दुनिया में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। अफगानिस्तान में तो रिपोर्ट आने के बाद से प्रदर्शनों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। इस घटना को लेकर अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है। अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय ने बुधवार को हुई मौतों में से कम से कम एक के लिए विदेशी सुरक्षा बलों को जिम्मेदार ठहराया है क्योंकि काबुल में अमेरिकी सैन्य शिविर ने प्रदर्शनकारियों पर हमला बोला था। इसके अलावा स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि ज्यादातर मौतें पुलिस के साथ हुई झड़पों के कारण हुई हैं। नाटो के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल कारस्टेन जेकाबंसन ने कहा कि यह अनभिज्ञता में किया गया कार्य था लेकिन इस गलती के गम्भीर परिणाम हैं। एक अमेरिकी अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि कुरान की उन प्रतियों को बड़गाम की जेल में बन्द कैदियों से लिया गया था क्योंकि जेल अधिकारियों को शक था कि कैदी इस पवित्र पुस्तक का उपयोग एक-दूसरे को संदेश भेजने के लिए कर रहे थे। अमेरिका विरोधी आग को हवा देते हुए तालिबान आतंकियों ने अफगान नागरिकों से अपील की है कि वह केवल प्रदर्शनों तक सीमित न रहें। तालिबान ने अपनी अपील में कहा है कि आपको सैन्य शिविरों पर हमला करना है, उनके सैन्य काफिलों पर हमले कीजिए, उनकी हत्या कीजिए, उन्हें बंधक बनाएं, मारें और उन्हें सबक सिखाएं ताकि वह दोबारा पवित्र कुरान का अपमान करने की हिम्मत भी न करें। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई जो पहले से ही बहुत कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, इस घटना को लेकर बहुत ज्यादा परेशान हैं। हामिद करजई ने बृहस्पतिवार को बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी शिविर में कुरान की प्रतियां जलाने की घटना के लिए माफी मांगते हुए उन्हें एक पत्र लिखा है। पत्र में ओबामा ने लिखा है कि घटना जानबूझ कर नहीं की गई थी और उन्होंने मामले की विस्तृत जांच करने के लिए कहा है। अमेरिकी राजदूत रॉयन क्रोकर की ओर से करजई को सौंपे पत्र के अनुसार सूचित घटना के लिए मैं अपना अफसोस जताना चाहता हूं। ओबामा ने आगे लिखा है कि मैं आपसे और अफगानिस्तान के लोगों से माफी मांगता हूं। हामिद करजई ने इस मुद्दे को लेकर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा है कि अमेरिकी नेतृत्व वाला नाटो सुरक्षा बल इसकी जांच कर रहा है। उन्होंने अपने देश के सुरक्षा बलों को आदेश दिया है कि वह हिंसा से बचें और लोगों के जीवन और सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा करें पर आग तेजी से फैल रही है। इसकी सारे इस्लामिक मुल्कों में प्रतिक्रिया हो सकती है। पहले से ही निशाने पर अमेरिका से सारी दुनिया के मुसलमानों के गुस्से में इजाफा होगा। यह दूसरी ऐसी घिनौनी घटना है। पिछले साल एक अमेरिकी पादरी ने फ्लोरिडा में भी कुरान को जलाया था। हम इसकी सख्त से सख्त शब्दों में निन्दा करते हैं और मांग करते हैं कि कसूरवारों को सजा मिले।
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4 जून की रात रामलीला मैदान में हुआ था जुल्म

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Published on 26th February  2012
अनिल नरेन्द्र
हमें इस बात की खुशी है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव समर्थकों पर 4 जून 2011 को हुए लाठीचार्ज पर सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और माना कि उस रात पुलिस कार्रवाई गलत थी। काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रामलीला मैदान में सत्याग्रह कर रहे बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को 4 जून की रात रामलीला मैदान से बलपूर्वक निकाल बाहर करने की दिल्ली पुलिस की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र पर कुठाराघात बताते हुए इसके लिए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि रामलीला मैदान में रात को सो रहे सत्याग्रहियों पर दिल्ली पुलिस की बर्बर कार्रवाई जनता और सरकार के बीच कम हो रहे विश्वास का ज्वलंत उदाहरण है। न्यायमूर्ति बलबीर सिंह चौहान और स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि सत्याग्रहियों के खिलाफ बल प्रयोग करके दिल्ली पुलिस ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। सरकार को दोषी पुलिस अधिकारियों के साथ ही पथराव करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई करने का आदेश दिया है। सरकार को इस कार्रवाई के बारे में तीन महीने के भीतर अदालत में रिपोर्ट देनी है। न्यायाधीशों ने कहा कि 4 जून की रात में हुई घटना को टाला जा सकता था पर पुलिस और प्रशासन ने अपनी ताकत का प्रयोग कर सोते हुए सत्याग्रहियों पर लाठियां बरसाईं जिससे एक महिला की मौत हो गई और कई अन्य जख्मी हुए। अदालत ने सख्त शब्दों में कहा कि पुलिस का काम शांति कायम रखना है लेकिन रामलीला मैदान में उसने शांति भंग करने का ही काम नहीं किया बल्कि सोते हुए सत्याग्रहियों पर लाठियां बरसा कर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन भी किया। न्यायाधीशों ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली पुलिस ने सत्याग्रहियों को रामलीला मैदान से निकाल बाहर करने के लिए बेहद हिंसक तरीका अपनाया, लेकिन दूसरी ओर बाबा रामदेव के समर्थकों ने भी पुलिस पर हिंसक तरीके से पथराव किया जिससे स्थिति और बिगड़ गई। अदालत ने जान गंवाने वाली राजबाला के परिजनों को 5 लाख रुपये, गम्भीर रूप से घायलों को 50-50 हजार रुपये और मामूली रूप से घायलों को 25-25 हजार रुपये बतौर मुआवजा अदा करने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि मुआवजे की इस राशि का 25 फीसदी अंश का भुगतान बाबा रामदेव का ट्रस्ट करेगा।
हम हमेशा से कहते आ रहे हैं कि केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम और कुछ अन्य मंत्रियों के इशारों पर दिल्ली पुलिस ने 4 जून को सोते हुए लोगों पर कहर ढा दिया। सरकार और पुलिस कहती रही कि कोई लाठीचार्ज नहीं हुआ, न कोई जबरन कार्रवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दूध का दूध पानी का पानी हो गया है पर हमारा मानना है कि दिल्ली पुलिस ने उस रात जो भी किया वह गृह मंत्रालय के आदेशों पर किया। असल कसूरवार तो आदेश देने वाले हैं, दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई का विरोध भी किया था। पुलिस ने कहा था कि हम सुबह होते ही शांति से रामलीला मैदान खाली करवा लेंगे पर मनमोहन सरकार के कुछ मंत्रियों ने तो ठान ली थी कि बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को ऐसी मार मारनी है जो वह दोबारा ऐसा करने की जुर्रत न करें।
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Saturday 25 February 2012

टीम इंडिया में दरारें

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th February  2012
अनिल नरेन्द्र
आस्ट्रेलिया के दौरे पर गई टीम इंडिया न केवल हार ही रही है पर बिखर भी रही है। बेशक बीसीसीआई और टीम के प्रवक्ता यह कहें कि टीम इंडिया के अन्दर कोई मतभेद नहीं हैं पर टीम में खिलाड़ियों के आपसी मतभेद सतह पर आ गए हैं। महेन्द्र सिंह धोनी और वीरेन्द्र सहवाग के मतभेद बढ़ते जा रहे हैं जिससे टीम की परफार्मेंस पर असर पड़ रहा है। टीम ने जीतने की बजाय हारने में कंसिस्टेंसी बना रखी है। मुश्किल से एक मैच जीतते हैं फिर हार का सिलसिला शुरू हो जाता है। अब खबर आई है कि मंगलवार को श्रीलंका के खिलाफ मैच से पहले एकदाश को लेकर दोनों खिलाड़ियों में मतभेद थे। न्यूज चैनल टाइम्स नाऊ के अनुसार दोनों खिलाड़ियों ने अलग-अलग टीम तय की थी, लेकिन आखिरकार वीरू की सूची वाले खिलाड़ी ही मैदान पर उतरे। उल्लेखनीय है कि टीम इंडिया में आपसी मतभेदों की खबरें पिछले कुछ दिनों से आ रही हैं। चैनल के अनुसार धोनी की एकादश में रोहित शर्मा का नाम था। वे रोहित को श्रीलंका के खिलाफ उतारना चाहते थे। दूसरी तरफ सहवाग तीनों सीनियर्स (सचिन, गम्भीर और खुद सहवाग) को टीम में खेलाना चाहते थे। कुछ समय पहले कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी के खास मित्रों व पूर्व क्रिकेटरों ने बातों ही बातों में बताया था कि किस तरह टीम में गुटबाजी है। उन्होंने यह भी दावा किया था कि अकसर उनकी टीम इंडिया के कप्तान से बात होती रहती है। अब लगता है कि टीम इंडिया में दरारें पड़ गई हैं। रही-सही कसर इस नई रोटेशन पॉलिसी ने पूरी कर दी है। जब तक गैरी कर्स्टन टीम के कोच थे, वे पूरी टीम को साथ जोड़कर रखते थे। चूंकि वह खुद एकदम युवा थे लिहाजा सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के बीच जबरदस्त कड़ी का काम करते थे। अगर कोई मतभेद की स्थिति आती भी तो तुरन्त उसे सम्भाल लेते थे। अब लगता है ऐसा नहीं है और दुर्भाग्य से न यह काम अब कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ही कर पा रहे हैं। नए कोच फ्लैचर गैरी की तरह टीम को एकजुट रखने में असफल रहे हैं। फ्लैचर खुद 64 साल के हैं। अनुभवी तो हैं लेकिन वह करीब 10 महीने से टीम से जुड़े हैं और यह समय टीम इंडिया का पिछले दो दशकों का सबसे ज्यादा खराब समय है। किसी भी पहलू से वह टीम के काम आते नहीं दिख रहे हैं। न तो वह टीम के लिए प्रेरणादायी साबित हो रहे हैं और न ही बड़े प्रशासक। इसलिए टीम अजीबोगरीब प्रयोगों से गुजर रही है। रणनीति नहीं बना पा रही है और सभी खिलाड़ी एक अलग मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं। रोटेशन नीति पर छिड़े विवाद से लगता है कि टीम में व्यक्तिगत अहम को बढ़ा दिया है। इस नीति से साफ झलकता है कि इसके जरिये सीनियरों के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है। सीनियरों की बात करें तो पूर्व कप्तान कपिल देव ने मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को उसकी विफलताओं पर आड़े हाथों लेते हुए यहां तक कह दिया है कि सचिन को संन्यास की घोषणा कर देनी चाहिए। कपिल ने कहा कि पिछले तीन महीनों में हमने जो देखा है उसे देखते हुए मेरा मानना है कि सचिन को विश्व कप के बाद या उससे पहले संन्यास ले लेना चाहिए था। क्रिकेट या कोई भी खेल इस मामले में विचित्र होता है। जब तक आप जीतते रहते हो या अच्छा परफार्म करते हो, सब ठीक-ठाक रहता है और जैसे ही आप हारना शुरू करते हो तो ऐसी सारी बातें होने लगती हैं।
Anil Narendra, Cricket Match, Daily Pratap, Vir Arjun

दया याचिकाओं के निपटारे में इतना विलम्ब क्यों?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th February  2012
अनिल नरेन्द्र
मौत की सजा का सामना कर रहे दोषियों की दया याचिकाओं पर फैसला करने में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से हो रही देर पर सुप्रीम कोर्ट सख्त हो गई है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की एक पीठ ने कहा कि सभी राज्यों के गृह सचिव अपने-अपने प्रदेशों की सभी दया याचिकाओं के मामले केंद्र को तीन दिन के अन्दर भेजें, जिसके बाद केंद्र उसे इसके समक्ष पेश करेगा। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि राज्य सरकार की ओर से रिकार्ड नहीं भेजे जाते हैं तो जो कुछ भी होगा उसके जिम्मेदार वह खुद होंगे। पीठ ने यह भी कहा कि यह बात सामने आई है कि दया याचिकाएं 11 साल बाद निपटाई जाती हैं, जो बहुत लम्बा समय है। पीठ ने केंद्र सरकार की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया कि दोषी कैदियों की ओर से बार-बार याचिकाएं दायर करने के चलते फैसले में देर हुई। हालांकि पीठ ने कहा कि दोबारा याचिका दायर करने पर कोई रोक नहीं है। न्यायालय पंजाब के आतंकवादी देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की ओर से दायर एक याचिका की सुनवाई कर रहा था। तिहाड़ जेल की वैबसाइट पर 31 दिसम्बर 2011 तक के आंकड़ों के मुताबिक जेल में फिलहाल 24 सजायाफ्ता कैदी ऐसे हैं जिन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इनमें 23 पुरुष और एक महिला है। इनमें प्रमुख हैं तंदूर कांड, लाजपत नगर बम ब्लास्ट, संसद पर हमला, रायसीना ब्लास्ट, लाल किले पर हमला। इस समय 28 मुजरिमों ने राष्ट्रपति के पास माफी की अपील कर रखी है। राष्ट्रपति के पास 19 मामलों में दया याचिकाएं पेन्डिंग हैं। इन्हें सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है, जिसके बाद राष्ट्रपति के पास संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत इन मुजरिमों ने दया याचिका दाखिल कर रखी है। इनमें सबसे ज्यादा यूपी के केस हैं। यूपी के छह मामले पेन्डिंग हैं जबकि कर्नाटक के चार मामलों में फैसला आना है। एक तो ऐसा मामला है जिसमें दया याचिका 1999 से पेन्डिंग है। हरियाणा से संबंधित इस मामले में धर्मपाल नामक मुजरिम पर पांच लोगों की हत्या का केस साबित हो चुका है। धर्मपाल जब रेप केस में जमानत पर था तब उसने पांच लोगों की हत्या की थी। तमिलनाडु की कोर्ट में बम ब्लास्ट कर एक शख्स की हत्या के मामले में फांसी का सजा पाए शेख मीरन, सेल्वम और राधा कृष्णन का केस 2000 से पेन्डिंग है। पेन्डिंग मामलों में बहुचर्चित सोनिया और संजीव का केस भी है। सोनिया ने अपने सौतेले भाई और उसकी पूरी फैमिली को मौत के घाट उतार दिया था। मृतकों में 45 दिन, ढाई साल और चार साल के बच्चे भी शामिल थे। इतना ही नहीं, सोनिया ने अपनी मां, पिता और बहन को भी मार दिया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद-72 में किए गए प्रावधान के तहत देश के राष्ट्रपति को किसी भी दोषी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा को माफ करने या उसमें बदलाव करने का विशेष अधिकार है। अनुच्छेद-161 के तहत ऐसा ही अधिकार किसी भी प्रदेश के राज्यपाल को भी मिला हुआ है। राजनीतिक कारणों से दया याचिकाओं के निपटारे की बात तो फिर भी समझ आती है पर साधारण मुजरिम (सोनिया इत्यादि) की याचिका के निपटारे पर इतना समय लगना, समझ से बाहर है।
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Friday 24 February 2012

US resolution : Baluchistan should be an independent nation

- Anil Narendra
US has created a new intricacy. Three US senators have moved a resolution in the House of Representatives proposing self-determination right for Pakistan's disturbed Southern Baluchistan province. Tabling the resolution, the Republican Congressman Dana Rohrabacher and two others said Baluch people live in Baluchistan province of Pakistan and also in some parts of Iran and Afghanistan and they should have the right of self-determination and their own sovereign country. They should be allowed to decide their own status. Rohrabacher, Chairman of the Sub Committee on Foreign Affairs, had last week organized a hearing of the Congress on human rights violation in Baluchistan. Rohrabacher said in a statement that the political and ethnic discrimination, which Pakistan is committing is very dangerous. The situation has also further deteriorated as the US is providing financial aid and selling weapons to those in Islamabad, who are abusing the human rights of these people. At present, Baluchistan is part of Pakistan, but since the creation of Pakistan, people of Baluchistan had been demanding creation of an independent Baluchistan. Baluchistan borders Iran in west and the area adjacent to the Iranian border is considered to be the most disturbed one. The western part of Baluchistan borders Afghanistan and the rest lies with Pakistan. The US has the support of NATO in the struggle for freedom of Baluchistan. It wants Baluchistan to become an independent nation by 2013.
We agree that Baluchistan is a disturbed area and Pakistan is blatantly violating human rights there. A recent example of this is a Baluch, Abdul Qadir, whose son disappeared and his body was recovered in 2011. Abdul Qadir Baluch's 29-year old son of Abdul Jaleel Reki disappeared on Feb the 13th 2009 and Baluch claims that Pakistan's intelligence agency ISI had kidnapped his son. The disfigured body of Abdul Jaleel Reki was found last year on November 22 in the Pakistani area adjacent to the Iranian border. Abdul Qadir told BBC that his son had received three gun wounds on his chest and his back was burned with hot iron and cigarettes. Abdul Jaleel's only fault was that he had been demonstrating against the Pakistan Army and the ISI. He said that about 14,000 persons are still missing, of which more than two hundred are women. No doubt, the human right record in Baluchistan is quite bad, but it doesn't mean that US should interfere in the matter and conspire to separate it from the country. It is also being said that in fact, US secretly wants to keep watch over Iran and with this intention, it wants to establish its base in Baluchistan. According to media reports, it wants to create pressure by moving a resolution to recognize Baluchis' right to self determination. Pak media quoting an official has said that the US wants to use our territory against Iran and we will not allow this to happen. Two officials of Pak security agencies and diplomatic circles have confirmed that American diplomats and military leaders had sought permission to operate its agents from Baluchistan area near the Iranian border. This has been revealed immediately after the allegations of kidnapping against Pak security agencies and tabling of resolution in the US House of Representatives. Pakistan National Assembly, the lower house has also condemned the US resolution on Baluchistan. The largest militant outfit of Pakistan held demonstration on Monday. Hafiz Mohammad Syed, the founder of Lashkar-e-Taiba also took part in these demonstrations, and who despite restrictions on his movements, entered the federal capital Islamabad. Pakistan government, Army and public all are opposing this US resolution. All of them consider this interference in Pakistan's internal affairs and it has some malicious intentions.

अर्श से फर्श तक का किंगफिशर का पांच साला सफर

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24th February  2012
अनिल नरेन्द्र
सातवां आसमान छूने के अन्दाज में धमाकेदार शुरुआत करने वाली किंगफिशर एयरलाइंस महज पांच-छह साल में किस तरह कंगाली के कगार पर आ पहुंची, यह दास्तान विमानन उद्योग ही नहीं समूचे कारपोरेट जगत और देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सन् 2005 में किंगफिशर की लांचिंग के समय उसके रंग-ढंग देखकर उम्मीद की जा रही थी कि आने वाले समय में यह कम्पनी घरेलू एयरलाइंस उद्योग की दिशा बदल कर रख देगी। अपनी अलग कार्यशैली और सेवाओं के दम पर किंगफिशर ने उस समय घरेलू विमानन उद्योग के आकाश पर छाई इंडियन एयरलाइंस और जेट एयरवेज को कड़ी टक्कर देकर बाजार में अपना अलग मुकाम हासिल किया। यात्रियों की प्रतिस्पर्धा किराये की पेशकश पर किंगफिशर ने काफी कम समय में बहुत से लोगों की मनपसंद एयरलाइंस बन गई। ऐसी दमदार शुरुआत करने के बावजूद आज किंगफिशर एयरलाइंस कंगाली की कगार पर आ खड़ी हुई है। इसके पीछे देश के वाहन निर्माण के सबसे बड़े उद्योगपति विजय माल्या का हाथ है, दोनों सफल कामयाबी में भी और कंगाली के कगार में भी। शान-शौकत शैली वाले विजय माल्या बहुधंधी हैं। एक जमाने में वह सक्रिय राजनीति में आकर इस क्षेत्र के भी किंग बना चाहते थे। यह राज्यसभा के सदस्य होने के अलावा उन्हें इस क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय सलता नहीं मिली। 18 दिसम्बर 1955 में पैदा हुए विजय माल्या की छवि एक ग्लैमर पसंद प्लेब्वॉय की बनी हुई है। वैसे कई खेलों के प्रमोशन में उनका खासा योगदान रहा है। 2007 में उन्होंने फार्मूला वन स्पाइकर टीम नीदरलैंड से 88 बिलियन यूरो में खरीदी थी। बाद में इसका नाम बदलकर फोर्स इंडिया फार्मूला वन रखा गया था। 2004 में माल्या ने टीपू सुल्तान की तलवार लंदन से एक लाख 75 हजार पाउंड में नीलामी से खरीद ली थी। उन्होंने घोषणा की थी कि देश के सम्मान के लिए वे टीपू सुल्तान की तलवार देश में लाए हैं। इसी तरह मार्च 2009 में माल्या ने न्यूयार्प में हुई एक नीलामी से महात्मा गांधी के निजी उपयोग के कुछ सामानों के लिए तीन बिलियन डालर की बोली लगा दी थी। महंगी घड़ियां और महंगी कारों के खास शौकीन माल्या ऐसे शख्स हैं जो कि उद्योग से इतर अपनी रंगीन मिजाज वाली जीवन शैली के लिए हमेशा चर्चा में रहते हैं। वे फैशन टीवी चैनल एनडीटीवी गुड टाइम्स के भी मालिक हैं। उनका सालाना कैलेंडर जिसमें देश-विदेश की खूबसूरत अर्द्धनग्न मॉडलों को दिखाया जाता है काफी चर्चा में रहता है। आज किंगफिशर की जो हालत हो गई है, उससे लगातार घाटे में डूब रहे भारतीय विमानन क्षेत्र के संकट का अन्दाजा लगाना मुश्किल नहीं है। इस निजी कम्पनी ने बीते चार-पांच दिनों में अपनी दर्जनों उड़ानें रद्द की हैं और कंगाली की ओर बढ़ रही यह कम्पनी अपने कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रही है। बीते कुछ महीनों के दौरान उसके आधे से ज्यादा पायलट नौकरी छोड़कर जा चुके हैं। किंगफिशर की जो हालत है उसके लिए वह खुद तो जिम्मेदार है ही मगर हमारी उड्डयन नीति भी कम जिम्मेदार नहीं है। नासूर कितना पुराना है यह तो इससे ही पता चल जाता है कि डीजीसीए आज भी 1937 के नियमों से विमानन कम्पनियों को हांक रही है। कहीं कुछ तो गड़बड़ जरूर है और फिर घाटे में सिर्प किंगफिशर ही नहीं है। सरकारी विमानन कम्पनी एयर इंडिया तो सफेद हाथी साबित हो रही है। अब यदि विमानन क्षेत्र को संकट से जल्दी नहीं उबारा गया तो इसमें और गिरावट तय है। इसका असर परोक्ष रूप से औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ेगा, जिसका अकसर हम दम भरते हैं।
Anil Narendra, Daily Pratap, Kingfisher, Vijay Mallaya, Vir Arjun

चुनाव आयोग के अधिकारों में कटौती का इरादा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24th February  2012
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश चुनाव में अन्य राजनीतिक दलों के खिलाफ जोर आजमाइश कर रही कांग्रेस का एक मोर्चा चुनाव आयोग के खिलाफ भी खुलता नजर आ रहा है। दरअसल कांग्रेस पार्टी कानपुर के जिला अधिकारी की ओर से पार्टी महासचिव राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश से सख्त खफा है। पार्टी जहां इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देगी वहीं चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र को भी कतरने की तैयारी कर रही है। बताते हैं कि मंत्रिमंडलीय समूह आचार संहिता को चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से हटाने का एजेंडा तैयार कर रहे हैं। इससे पहले केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद और बेनी प्रसाद वर्मा भी आचार संहिता मामले में आयोग को परोक्ष रूप से चुनौती दे चुके हैं। शुरुआती दौर में चुनाव आयोग भले ही बसपा और अकाली दल के नेताओं के निशाने पर रहा हो, लेकिन अब लड़ाई चुनाव आयोग बनाम कांग्रेस हो गई है। कांग्रेस के अब निशाने पर है मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी हैं। वैसे मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपने अक्खड़ रवैये से एक बार फिर टीएन शेषन की याद दिला दी है। एक दौर में जिस तरह से मुख्य चुनाव आयुक्त शेषन ने अपनी धमक से तमाम दलों को चुनाव आयोग की ताकत दिखा दी थी, कुछ उसी तरह का काम कुरैशी कर रहे हैं। शायद यही बात कांग्रेस के आला नेताओं को हजम नहीं हो रही। ऐसे में चुनाव आयोग के पर कतरने की गुपचुप तैयारियों की खबरों से विवाद खड़ा हो गया है। एक अंग्रेजी अखबार ने दो दिन पहले खुलासा किया था कि केंद्र सरकार आदर्श चुनाव संहिता आदि के मामले में चुनाव आयोग के अधिकार कम करने की पहल करने वाली है। इस खबर में कुरैशी की राय भी बता दी गई थी। कुरैशी ने कहा है कि यदि सरकार ऐसी कोई कोशिश करेगी तो इससे आदर्श चुनाव संहिता का पालन कराना और कठिन काम हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग के अधिकारों को कम करने की कोई कोशिश जनता पसंद नहीं करेगी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली का कहना है कि सरकार की ऐसी कोशिश सरासर राजनीतिक बेशर्मी है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि हाल में चुनाव आयोग ने कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को भी आदर्श चुनाव संहिता उल्लंघन के मामले में कठघरे में खड़ा किया था। इस पर उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी। एक और मामले में केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा भी ऐसे ही मामले में फंसे हैं। राहुल गांधी भी कानपुर में चुनाव संहिता को ठेंगा दिखाकर फंस गए हैं। इसकी खीज उतारने की तैयारी की जा रही है। हमें नहीं मालूम कि मनमोहन सरकार क्या वाकई ही ऐसा कोई कदम उठाने की सोच रही है? अगर सोच रही है तो वह गलत सोच रही है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसका काम स्वतंत्र, निष्पक्ष और साफ-सुथरे चुनाव कराना है और ऐसा ही वह कर भी रही है। ऐसा नहीं कि मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी खासतौर पर कांग्रेस को ही टारगेट कर रहे हैं। उनके निशाने पर सभी दल हैं जो आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं। भारत के लोकतंत्र की मजबूती का एक बड़ा कारण है स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और इस काम में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका चुनाव आयोग की है। जनता चुनाव आयोग के अधिकारों में कटौती स्वीकार नहीं कर सकती। बेहतर है सरकार अगर उसका ऐसा करने का कोई इरादा है तो उसे त्याग दे।
Anil Narendra, Congress, Daily Pratap, Election Commission, Rahul Gandhi, S.Y. Qureshi, Salman Khursheed, Vir Arjun

Thursday 23 February 2012

क्या राहुल गांधी अब गिरफ्तार होंगे?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23th February  2012
अनिल नरेन्द्र
कांग्रेस के महासचिव युवराज राहुल गांधी आदर्श चुनाव संहिता उल्लंघन के मामले में बुरी तरह फंस गए हैं। तीन दिन तक चली रस्साकशी के बाद सोमवार को 35 किमी लंबा रोड शो निकाल कर राहुल गांधी जिला पशासन के भी निशाने पर आ गए हैं। जिला पशासन ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन मानते हुए कैंट थाने में राहुल और कांग्रेस जिलाध्यक्ष महेश दीक्षित सहित 40 अन्य के खिलाफ धारा 188, 283 और 290 के तहत एफआईआर दर्ज करा दी है। इस मामले में जो एफआईआर दर्ज हुई है उसमें ऐसी धाराएं लगाई गई हैं जिसमें गिरफ्तारी का खतरा है। लिहाजा राहुल गांधी गिरफ्तार भी किए जा सकते हैं। इससे बचने के लिए उन्हें अग्रिम जमानत लेनी पड़ सकती है। इस मामले को लेकर राजनीतिक खींचतान बढ़ना स्वाभाविक ही है। कांग्रेस के पवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि किसी तरह का गैर कानूनी काम रोड शो में नहीं हुआ। वैध पचार अभियान लोकतांत्रिक अधिकार का बुनियादी हिस्सा है। ऐसे में उत्तर पदेश सरकार मनमानी नहीं कर सकती। यूपी कांग्रेस नेताओं का कहना है कि ये कार्रवाई बसपा सरकार के इशारे पर की गई है। डीएम ने पूरे मामले की जानकारी संबंधित चुनाव आयोग के अधिकारी, पर्यवेक्षक और शासन को दे दी थी। कांग्रेस की जिला इकाई ने रोड शो के लिए पशासन से अनुमति मांगी थी, लेकिन जिलाधिकारी ने इसे खारिज कर दिया था। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह के तेवर तल्ख हो गए हैं। उन्होंने कल मीडिया से कहा कि मुख्यमंत्री मायावती के इशारे पर जिला पशासन उनकी पार्टी के खिलाफ फरेब करने पर लगा है। राहुल गांधी ने लखनऊ में सफल रोड शो किया था, इससे कांग्रेस की हवा बनी थी। इसी को लेकर कानपुर के पशासन को लखनऊ से निर्देश दिए गए थे कि किसी भी हालत में कानपुर में लखनऊ जैसा सफल रोड शो न हो पाए। इसके बावजूद सफल रोड शो हो गया तो खीझकर पशासन ने तमाम आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। कांग्रेस को चुनौती है कि यदि अधिकारियों ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया तो उन्हें महंगा पड़ेगा। जिन धाराओं में केस दर्ज किया गया है उनमें आरोपियों को 6 महीने की सजा हो सकती है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में राहुल और उनके साथियों को अग्रिम जमानत लेनी पड़ेगी। वरना गिरफ्तारी का खतरा बना रहेगा। खबर आई है कि आरपार की लड़ाई के लिए तैयार कांग्रेस राहुल के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कराने के लिए हाईकोर्ट तक जाएगी। चूंकि मामला अब राजनीतिक बन गया है इसीलिए भाजपा भी इसमें कूद पड़ी है। भाजपा पवक्ता शाहनवाज हुसैन का कहना है कि कांग्रेस नेताओं की आदत बन गई है कि बार-बार चुनाव आयोग के नियमों को ठेंगा दिखाना। पहले कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कारनामा किया। इसके बाद केंद्रीय मंत्री बेनी पसाद वर्मा ने आचार संहिता की धज्जियां उड़ाईं और अब कानपुर में राहुल गांधी ने रोड शो के नाम पर चुनाव आयोग के नियम तोड़े। इस पर पशासन ने कार्रवाई की तो कांग्रेस दादागीरी पर उतर आई है। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। मामला अब आगे बढ़ेगा, देखें क्या होता है?
Anil Narendra, Congress, Daily Pratap, Rahul Gandhi, State Elections, Uttar Pradesh, Vir Arjun

अमेरिका का पस्ताव: बलूचिस्तान एक आजाद मुल्क हो

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23th February  2012
अनिल नरेन्द्र
अमेरिका ने अब एक नया पंगा शुरू करने का पयास किया है। पाकिस्तान के अशांत दक्षिण बलूचिस्तान पांत में आत्मनिर्णय के अधिकार का यह नया पंगा अमेरिका के तीन सांसदों ने पतिनिधिसभा में एक पस्ताव पेश करके किया है। रिपब्लिकन सांसद डाना रोहराबेकर और दो अन्य सांसदों ने पस्ताव पेश करते हुए कहा कि फिलहाल पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान के बीच में बंटे बलूच नागरिकों को आत्मनिर्णय का और अपने संपभु देश का अधिकार होना चाहिए। उन्हें खुद का स्तर तय करने का मौका मिलना चाहिए। विदेश मामलों की सदन की एक उपसमिति के अध्यक्ष रोहराबेकर ने पिछले हफ्ते बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में कांग्रेस की सुनवाई का आयोजन किया था। रोहराबेकर ने एक बयान में कहा, वे जो राजनीतिक और जातीय भेदभाव सह रहे हैं वह बहुत भयावह है। हालात इसलिए भी और ज्यादा बिगड़ गए हैं क्योंकि अमेरिका इस्लामाबाद में उनका दमन करने वालों को आर्थिक मदद दे रहा है, हथियार बेच रहा है। बलूचिस्तान फिलहाल तो पाकिस्तान का हिस्सा है लेकिन पाकिस्तान बनने के साथ ही उसको स्वतंत्र देश बनाने की मांग शुरू हो गई थी। बलूचिस्तान के दक्षिण पश्चिम में ईरान की सीमा है जिससे लगा क्षेत्र सबसे अशांत माना जा रहा है। पश्चिमी हिस्सा अफगानिस्तान से लगा है और शेष पाकिस्तान से। बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की जंग में अमेरिका और नाटों का समर्थन पाप्त है। अमेरिका चाहता है कि 2013 तक बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश बन जाए।

हमारी राय में बेशक बलूचिस्तान एक अशांत क्षेत्र है और वहां पाकिस्तान खुलेआम मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। ताजा उदाहरण अब्दुल कदीर नामक एक बलोच का है जिसका बेटा 2009 में गायब हो गया था और उसका शव नवम्बर 2011 में मिला। अब्दुल कदीर बलोच का 29 वर्षीय बेटा अब्दुल जलील रेकी 13 फरवरी 2009 को गायब हो गया था और उनके मुताबिक पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई ने उसका अपहरण किया था। बीते साल 22 नवम्बर को ईरान की सीमा से सटे पाकिस्तानी इलाके में अब्दुल जलील रेकी का क्षत-विक्षत शव मिला था। अब्दुल कदीर ने बीबीसी को बताया कि उनके बेटे को तीन गोलियां सीने पर लगी थीं और उनकी पीठ का कोई हिस्सा खाली नहीं था जहां लोहे को गर्म करके और सिगरेट से उनकी पीठ को दागा न गया हो। अब्दुल कदीर बलोच का कसूर इतना था कि वह पाक सेना व आईएसआई के खिलाफ विरोध पदर्शन करते थे। उनके मुताबिक बलूचिस्तान में 14 हजार के करीब लोग अभी भी गायब हैं, जिनमे 200 से अधिक महिलाएं भी हैं। यह ठीक है कि बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का रिकार्ड बहुत खराब है पर इसका मतलब यह नहीं कि अमेरिका उसमें हस्तक्षेप करे और उसे देश से अलग करने की साजिश छेड़ दे। यह भी कहा जा रहा है कि दरअसल अमेरिका की असल नीयत ईरान में खुफिया नजर रखने की है और इसी मकसद की पाप्ति के लिए वह बलूचिस्तान में अपना अड्डा स्थापित करना चाहता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बलूच की जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार की मान्यता के लिए पस्ताव पेश करके दबाव बनाना चाहता है। पाक मीडिया में एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि अमेरिका हमारी जमीन का इस्तेमाल ईरान के खिलाफ करना चाहता है, जिसकी हम कतई इजाजत नहीं दे सकते। पाक सुरक्षा एजेंसियों के दो अधिकारियों और राजनयिक हलकों के अधिकारियों ने पुष्टि की कि अमेरिकी राजनयिक और सैन्य नेताओं ने बलूचिस्तान में ईरानी सीमा के पास अपने एजेंटों के संचालन के लिए इजाजत मांगी थी। यह रहस्योद्घाटन पाक सुरक्षा एजेंसियों पर बलूचिस्तान में अपहरणों और पस्ताव के अमेरिकी पतिनिधिसभा में पेश होने के तुरन्त बाद हुए हैं। पाक की नेशनल असेंबली यानी निचले सदन ने भी बलूचिस्तान संबंधी अमेरिकी पस्ताव की निंदा की है। पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठनों के सबसे बड़े समूह ने सोमवार को एक भारी पदर्शन किया। इसमें लश्कर-ए-तैयबा संस्थापक हाफिज मोहम्मद सईद भी शामिल है जिसने पतिबंध के बावजूद संघीय राजधानी इस्लामाबाद में पवेश किया। अमेरिकी पस्ताव को पाक सरकार, सेना और आवाम सभी मिलकर विरोध कर रहे हैं। सभी का मानना है कि यह पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप है और इसकी असल वजह और ही है।
America, Anil Narendra, Balochistan, Daily Pratap, ISI, Pakistan, USA, Vir Arjun

Wednesday 22 February 2012

ऐसी स्थिति में तो हम लड़ चुके आतंकवाद की चुनौती से

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22th February  2012
अनिल नरेन्द्र
यह दुःख की बात है कि आतंकवाद से प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए तैयार किए जा रहे राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) पर भी राजनीतिक ग्रहण लग गया है। उल्लेखनीय है कि सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी (सीसीए) ने इस साल 11 जनवरी को आतंकवाद से निपटने के लिए शक्तिशाली राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी केंद्र (एनसीटीसी) के गठन की घोषणा की। यह एजेंसी एक मार्च 2012 को अस्तित्व में आ जाएगी। यह आतंकी खतरों का पता लगाने के अलावा सर्च ऑपरेशन और सन्देह के आधार पर लोगों को गिरफ्तार कर सकेगी। इसको यह शक्तियां गैर-कानूनी गतिविधि (निरोधक) कानून से प्राप्त होंगी। आतंकी मॉड्यूल का पता लगाना, आतंकियों और उनके सहयोगियों का पता लगाना इसका मकसद है। यह सीबीआई, एनआईए, नेटग्रिड समेत सातों केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों से सूचनाएं प्राप्त कर सकेगी। इसका मुखिया डायरेक्टर कहलाएगा जो आईबी एडिशनल डायरेक्टर के समकक्ष स्तर का होगा। एनसीटीसी सूचना एकत्र करने के लिए दूसरी एजेंसी पर निर्भर रहेगी। आधे दर्जन से ज्यादा गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने इस केंद्र के गठन पर आपत्ति जताई है और आशंका है कि आतंकियों के खिलाफ खड़े किए जा रहे इस एकीकृत कमान की कहीं भ्रूणहत्या न हो जाए। इस प्रस्तावित आतंक निरोधी केंद्र को राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप और संविधान की मर्यादा का उल्लंघन बताया जा रहा है। इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि एनसीटीसी नाम से चर्चा में आए इस राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र के खिलाफ ठीक उस समय आवाज बुलन्द हो रही है जब उसके विधिवत काम करने का समय नजदीक आ गया है। क्या यह महज एक दुर्योग है कि एक मार्च से सक्रिय होने जा रहे एनसीटीसी के खिलाफ राज्य सरकारों की सक्रियता यकायक बढ़ गई है। चन्द दिन पहले तक केवल ममता बनर्जी और नवीन पटनायक को ही यह केंद्र रास नहीं आ रहा था लेकिन अब सारे भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों व तमिलनाडु की मुख्यमंत्री को भी यह लगने लगा है कि राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण होने जा रहा है। हमारी राय में इस केंद्र का विरोध करने वालों के कारणों में भी दम है। कुछ मायनों में तो यह पोटा से भी ज्यादा खतरनाक है। बिना राज्यों को सूचना दिए इसमें किसी को भी गिरफ्तार करने का जो प्रावधान है, उससे राज्यों का भयभीत होना समझ आता है। इस यूपीए सरकार और विशेषकर गृहमंत्री पी. चिदम्बरम की विश्वसनीयता इतनी गिर चुकी है कि इन पर अब कोई विश्वास करने को तैयार नहीं। अगर यही करना था तो पोटा को हटाया ही क्यों? 26/11 के हमलो के बाद देश में एक माहौल ऐसा बना था कि अगर उसी समय इस केंद्र को स्थापित किया जाता तो शायद इतना विरोध नहीं होता पर संप्रग सरकार सोती रही और इतने साल निकल गए, अब आकर उसे होश आया है। इस विरोध की असलियत में राज्यों का यह डर छिपा है कि केंद्र सरकार इस कानून के तहत अपना राजनीतिक एजेंडा उन पर थोप सकती है। यह आतंक निरोधी व्यवस्था केंद्र के खुफिया विभाग `इंटेलीजेंस ब्यूरो' के तहत चलेगी और राज्यों को आशंका है कि सीबीआई की तरह इसे भी कहीं केंद्र की सत्ता पर काबिज दल के हित-पोषण का साधन न बना दिया जाए। ऐसी स्थिति में तो हम लड़ चुके आतंकवाद से।
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ज्वालामुखी के ढेर पर बैठा मध्य-पूर्व

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22th February  2012
अनिल नरेन्द्र
पश्चिम एशिया एक बार फिर युद्ध की ज्वालामुखी के ढेर पर खड़ा होता जा रहा है। परमाणु आयुध बनाने में जुटे ईरान ने जहां अपने युद्धपोत जैद्दाह बन्दरगाह से सीरिया के तट के पास तैनात कर दिए हैं वहीं ईरानी रेवोल्यूशनरी गार्ड्स ने दो दिवसीय जमीनी सैन्य युद्धाभ्यास शुरू कर अमेरिका और पड़ोसी इजरायल जैसे कट्टर विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी कर ली है। उधर ब्रिटेन ने इजरायल को चेतावनी दी है कि अगर ईरान पर हमला हुआ तो भारी नुकसान की कीमत चुकानी होगी। ये युद्धपोत ईरान ने स्वेज नहर के रास्ते भू-मध्य सागर के किनारे बसे सीरिया भेजे हैं ताकि उसके परमाणु ठिकानों पर किसी भी तरह के हमलों का जवाब दे सकें। इधर उत्तर कोरिया ने भी सैन्य अभ्यास की सूरत में हमले की चेतावनी दे डाली है। ईरान की संवाद समिति इरना ने देश के नौसेना प्रमुख एडमिरल हबीबुल्ला सचारी के हवाले से कहा कि ईरान ने भू-मध्य सागर में अपने युद्धपोत तैनात करके विरोधियों को क्षेत्र में अपनी ताकत का अहसास करा दिया है। उन्होंने बताया कि ईरानी नौसेना इस्लामी क्रांति के बाद दूसरी बार स्वेज नहर के रास्ते भू-मध्य सागर तक पहुंची है। ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स का कहना है कि उसने सम्भावित बाहरी खतरों से देश की रक्षा के मद्देनजर अपनी क्षमताएं बढ़ाने के लिए दो दिवसीय एक जमीनी अभ्यास शुरू किया है। यह रेवोल्यूशनरी गार्ड्स ईरान की सबसे शक्तिशाली सैन्य इकाई है। गौरतलब है कि ईरान ने अमेरिका और इजरायल की चेतावनियों को नजरंदाज करते हुए उठाया है। अमेरिका के रक्षामंत्री लियोन पैनेटा ने कल ही ईरान को सख्त चेतावनी दी थी कि यदि उसने हरभुज जल संधि बन्द की या परमाणु हथियार बनाए तो उसके खिलाफ कार्रवाई के हर विकल्प खुले हैं। पैनेटा ने कहाöहम स्पष्ट कर चुके हैं कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना सकता। हम इसे हरगिज बर्दाश्त नहीं करेंगे कि वह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख जलमार्ग हरभुज जल संधि को बन्द करे। इस क्षेत्र से दुनिया के पांचवें हिस्से का तेल व्यापार होता है। यह अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र है। हम ईरान को इसे बन्द करने की इजाजत नहीं देंगे। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने इराकी तेल भंडार को हड़पने के लिए कुवैत के जरिये इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को घातक रासायनिक हथियार नष्ट करने के बहाने नेस्तनाबूद कर दिया था जबकि जानमाल और तेल कुओं की भीषण तबाही के बावजूद इराक में ऐसा कोई हथियार नहीं मिला। ईरान को डर सता रहा है कि अमेरिका उसके परमाणु संयंत्रों में घातक हथियार बनाने के बहाने इजरायल के सहयोग से उस पर कभी भी चढ़ाई कर सकता है। ईरान ने भी ऐसे किसी तरह के हमले का मुंहतोड़ जवाब देने की पूरी तैयारी कर ली है। उधर फारस की खाड़ी में तनाव के बीच ब्रिटेन ने इजरायल से कहा है कि ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों को तबाह करने के लिए पहले कोई हमला करने के भारी नकारात्मक पहलू है और ऐसा करना नुकसानदेह साबित हो सकता है। अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार द वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि दरअसल लियोन पैनेटा से बातचीत के बाद हमारे एक पत्रकार ने लिखा है कि पेंटागन प्रमुख का यह मानना है, `इस बात की ठोस आशंका है कि अप्रैल, मई या जून के महीने में इजरायल सरकार ईरान पर हमला करेगी।' मध्य-पूर्व ज्वालामुखी के ढेर पर बैठा है जो किसी भी समय फट सकता है।
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Tuesday 21 February 2012

महाराष्ट्र के मिनी चुनाव में भगवा भारी पड़ा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20th February  2012
अनिल नरेन्द्र
महाराष्ट्र के 10 महानगर पालिका चुनावों का हालांकि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में इतना महत्व न हो पर इसका असर जरूर पड़ेगा। महाराष्ट्र में तो खैर यह एक तरह से विधानसभा मिनी चुनाव जरूर माना जा सकता है। इस चुनाव के नतीजों से जहां शिवसेना-भाजपा गठबंधन प्रसन्न होगा वहीं यह कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के लिए एक झटका है। देश के आधे से ज्यादा राज्यों के सालाना बजट वाली देश की सबसे बड़ी महानगर पालिका बृहन्न मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की सत्ता के बिल्कुल करीब पहुंचकर शिवसेना ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि चुनाव हवा-हवाई दौरों से नहीं बल्कि मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर ले जाकर जीते जाते हैं। 10 महानगर पालिका के चुनावों में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने पांच शहरों में भगवा लहराया है। कांग्रेस और एनसीपी को चार शहरों में ही जीत मिल सकी। राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अप्रत्याशित तौर से नासिक में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। शिवसेना और भाजपा व आरपीआई ने मिलकर 227 सीटों वाली बीएमसी में से 107 सीटें जीतकर सबसे बड़े गठबंधन के तौर पर जीत दर्ज कराई है। कांग्रेस और एनसीपी ने पहली बार यहां मिलकर चुनाव लड़ा और मुंह की खाई। चुनाव परिणाम आते ही कांग्रेस पार्टी में अंतर्पलह शुरू हो गई है। पार्टी नेता एक दूसरे पर पराजय का ठीकरा फोड़ रहे हैं। मुंबई कांग्रेस इकाई प्रमुख कृपाशंकर को स्थानीय सांसद संजय निरूपम और प्रिया दत्त ने हार के लिए जिम्मेदार ठहराया है जबकि कृपाशंकर मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के सिर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि पूरा चुनाव श्री चव्हाण के नेतृत्व में ही लड़ा गया तो फिर वे ही हार के जिम्मेदार माने जाने चाहिए जबकि दिल्ली में बैठे कांग्रेस के दूसरे नेताओं का कहना है कि मुंबई को गैर-मराठी नेताओं के हवाले करने का खामियाजा उठाना पड़ा है। मराठी मानुष के नाम पर शिवसेना और मनसे जैसी पार्टियां कामयाब रही हैं। उनका मानना है कि सोची-समझी रणनीति के तहत मराठी नेतृत्व को मुंबई में पनपने नहीं दिया गया। इस समय मुंबई में दो कांग्रेसी नेता हैं और दोनों कृपाशंकर और संजय निरूपम उत्तर भारत के हैं। मुरली देवड़ा राजस्थान से तो प्रिया दत्त पंजाब से हैं। ऐसे में मराठी वोट किस कारण कांग्रेस को मिलता? कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुंबई की हार को गम्भीरता से लिया है। आलाकमान ने मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में हार की वजहों की पड़ताल के लिए मुंबई कांग्रेस कमेटी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी और मुख्यमंत्री से अलग-अलग रिपोर्ट मांगी है। पार्टी का एक धड़ा आपसी गुटबाजी मान रहा है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि बतौर मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को सूबे में भेजे जाने के फैसले को प्रदेश की सियासत में सक्रिय प्रभाव रखने वाले तमाम नेता अभी तक पचा नहीं पाए हैं। कांग्रेस-राकांपा के बीच बेहतर तालमेल न रहने को भी हार का कारण माना जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, विलास राव देशमुव के अलग-अलग खेमे में सूबे में पृथ्वीराज चव्हाण की भूमिका को सही मन से नहीं स्वीकार कर पाए। विवादों के घेरे में आए कृपाशंकर जैसे नेताओं का बचाव भी पार्टी के पक्ष में नहीं गया। चुनाव के दौरान राष्ट्रपति के बेटे राजेन्द्र सिंह शेखावत से करोड़ रुपये मिलना भी पार्टी को विवादों के पचड़े में डाल गया। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने चुनाव में पूरी ताकत लगाई थी। उन पर विरोधी चुटकी भी ले रहे थे कि वे गली-कूचों की खाक छान रहे हैं। नतीजे यूपी चुनाव के दौरान आए हैं। लिहाजा पार्टी के लिए यह अतिरिक्त झटका है। हालांकि पार्टी ने इस बात से इंकार किया कि चुनाव नतीजों का असर यूपी चुनाव में पड़ेगा। पार्टी ने कहा कि राहुल गांधी के प्रयासों और यूपी के चुनाव पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। प्रभारी मोहन प्रकाश ने कहा कि यह विधानसभा चुनाव नहीं था। स्थानीय निकाय का चुनाव था जहां परिणाम स्थानीय कारणों पर निर्भर करता है।
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अमेरिकी संसद को उड़ाने की साजिश नाकाम कर दी गई

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20th February  2012
अनिल नरेन्द्र
अमेरिका ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि वह 9/11 आतंकी हमले के बाद कितनी चौकस है। उसका आतंक विरोधी अभियान तब रंग लाया जब एफबीआई ने अमेरिकी संसद (कैपिटल हिल) को उड़ाने की साजिश को नाकाम कर दिया। अमेरिका के न्याय विभाग के मुताबिक आत्मघाती हमला करके अमेरिकी संसद को उड़ाने की साजिश रचने वाले मोरक्को के एक शख्स को गिरफ्तार किया है। 29 वर्षीय अमीन अल खलीफी के तौर पर की गई है। खलीफी को शुक्रवार अमेरिकी संसद के पार्किंग लॉट से गिरफ्तार किया गया। खलीफी एक बमों से भरी बैल्ट पहनकर व हाथ में सब-मशीनगन लेकर अमेरिकी संसद को उड़ाना चाहता था। उसे यह नहीं मालूम था कि जो बमों से लदी बैल्ट उसको दी गई और जो हथियार दिए गए वह सब नकली थे। दरअसल एफबीआई ने एक स्टिंग ऑपरेशन के तहत बहुत पहले से ही अपने एक एजेंट को अलकायदा के उस गिरोह में शामिल करने में सफलता पा ली थी। वही अंडर कवर एजेंट अलकायदा का कार्यकर्ता बनकर खलीफी की गतिविधियों पर नजर रखता रहा। उसी ने खलीफी को यह नकली हथियार दिए और जब वह अपने प्लान के मुताबिक कैपिटल हिल की पार्किंग एरिया में पहुंचा तो उसे रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। अमेरिका की एफबीआई और ज्वाइंट टैरेरिज्म टास्क फोर्स का यह संयुक्त अभियान सफल रहा। खलीफी को सामूहिक विनाश के हथियार का इस्तेमाल करके जन सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने और आम जनता पर गोलीबारी करने की कोशिश का आरोपी बनाया गया है। अमेरिकी अटार्नी नील मैक्ब्राइड ने कहा कि खलीफी को लग रहा था कि वह अलकायदा के लिए काम कर रहा है लेकिन वह अलकायदा का छद्म अभियान चला रही एफबीआई के शिकंजे में फंस चुका था। खलीफी का आरोप सिद्ध हो जाता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा मिल सकती है। अदालती दस्तावेजों के अनुसार खलीफी 1999 में वीजा पर अमेरिका आया था लेकिन वीजा की अवधि समाप्त होने के बावजूद वह यहां टिका रहा और उसने कभी भी अमेरिका की नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदन नहीं दिया था। एफबीआई के जनवरी 2011 के हलफनामे में बताया गया कि एक विश्वसनीय सूत्र ने उसे बताया कि खलीफी ने वर्जीनिया के एक घर पर कुछ लोगों से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान एक व्यक्ति ने उसे एके 47 और दो रिवाल्वर तथा कुछ विस्फोटक दिए। खलीफी ने हथियार लेते हुए कहा कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध दरअसल मुसलमानों के खिलाफ युद्ध है और हमें युद्ध के लिए तैयार हो जाना चाहिए। खलीफी को एक रेस्तरां पर हमला करना था लेकिन पिछले माह उसने अपनी योजना बदली दी और उसने संसद भवन पर हमला करने की मंशा जताई थी। उसने पश्चिम वर्जीनिया में बाकायदा हमले का अभ्यास भी किया था। संसद पर हमला करने के लिए उसने 17 फरवरी का दिन चुना था। पिछले माह उसने कैपिटल हिल के आसपास चक्कर लगाकर उपयुक्त स्थान की तलाश भी कर ली थी। लेकिन उसे हमले से पहले ही धर लिया गया। अमेरिका की सुरक्षा और गुप्त व्यवस्था इतनी मजबूत है, यह एक बार फिर साबित हो गया।
9/11, America, Anil Narendra, Daily Pratap, Terrorist, USA, Vir Arjun

Monday 20 February 2012

The Angry Young Man of Congress

- Anil Narendra
We have witnessed many faces of the Congress prince Rahul Gandhi during the Assembly election campaign in Uttar Pradesh. We have seen a mild mannered, calm and quite Rahul Gandhi, who had been sharing food with Dalit families and had been sensitive to their sufferings, but today we are witnessing a different bearded face of Rahul Gndhi dramatically tearing off documents on the stage. With the passage of time, the increasing anger of Rahul Gandhi has not only started surfacing, but his aggressive postures have become sharper. Now, he has even started publicly expressing his anger by tearing off papers on the stage. Perhaps he is trying to convey a message to the youth of UP that 'this uncomplaining attitude of yours will not help you, if you want to survive in the present age, make noise so that your voice could be heard'. It is this posture of his, which has earned the status of an angry young man for him in the Congress Party. Besides being 'the prince' of Congress, Rahul is also the only star campaigner for the Congress for the Assembly elections. In fact, this time whole of the Gandhi Family has thrown its weight in UP elections. Sonia Gandhi, Priyanka Gandhi and Robert Wadra, all the three have come out in the open. This is something unprecedented for the Gandhi Family. However, Congress is keeping its fingers crossed and waiting for the Rahul magic to work. That is why, with the completion of election-phases in UP, enthusiasm of the Congress is also increasing. The Congress has, even started claiming that elections in UP have now been restricted to Rahul vs others, that is why leaders of SP, BSP and BJP have started targeting Rahul Gandhi in their speeches. It appears that Prince Rahul has taken a vow to take the Congress to the seat of power in UP single-handedly and when he comes across obstacles on his way, he becomes angry. Meanwhile, he has also learnt the politics of cashing on this anger. So, whenever he exhibits aggressiveness, the audience applauds him. It happened during the election meeting at Lucknow, the other day. With slightly grown beard, Rahul Gandhi took mike in his hand at the election meeting at DAV College courtyard and started speaking like a Bollywood hero. Angry Rahul said that both the SP and BSP have been making empty promises in these years, which have made your condition bad to worse. I have in my hand a list of promises made by SP, which promises of electricity, roads, employment, if they come to power. If they fail to provide employment, they promise unemployment allowance at enhanced rate. This is the list, which the SP provided to the people during last elections. You need employment, not a list of promises. That is why I am tearing this list. Then, like a hero, he tore the paper in his hands into many pieces and threw it in the air. This action by Rahul has created a new controversy. BJP President, Nitin Gadkari said that by doing so, Rahul has exhibited his immaturity. It shows that he is still unaware of political nuances. Best comment came from SP President Akhilesh Yadav, who called Rahul's anger a drama and a stunt. Sometimes, he tears papers and sometimes he asks the audience to leave his meeting. I'm afraid; he may not jump off from the stage one day. What effect the anger of Rahul Gandhi will have, will be known only after the counting of the votes.

Sunday 19 February 2012

कांग्रेस के नए एंग्री यंग मैन राहुल गांधी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th February  2012
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान हमने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के कई रूप देख लिए हैं। कहां तो एक शांत-सौम्य चेहरा जो दलितों के घर रोटी-पानी खाकर उनके दर्द को समझने वाला शालीन स्वभाव का था और कहां वह अब दाढ़ी बढ़ाकर फिल्मी अन्दाज में मंच पर कागज फाड़ रहे हैं। वक्त की रफ्तार के साथ राहुल का गुस्सा थोड़ा और बढ़ने के साथ ही न सिर्प दिखने लगा है बल्कि उनके तेवरों की आक्रामकता भी बढ़ गई है। यहां तक कि अब वह मंच से ही कागज फाड़कर गुस्से का सार्वजनिक अहसास भी कराने लगे हैं। शायद वह यूपी के युवाओं को फलसफा देना चाहते हैंö`ये खामोश मिजाजी तुम्हें जीने नहीं देगी, इस दौर में जीना है तो कोहराम मचा दो।' इनके इसी तेवर पर कांग्रेस ने उन्हें `एंग्री यंग मैन' का तमगा पहना दिया है। राहुल कांग्रेस के `युवराज' तो हैं ही साथ-साथ वह कांग्रेस पार्टी के चुनावी अभियान के अकेले सुपर स्टार भी हैं। वैसे इस बार गांधी परिवार ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल, प्रियंका व रॉबर्ट वाड्रा सभी इस बार मैदान में आ गए। इतनी ताकत तो गांधी परिवार ने शायद ही पहले कभी झोंकी हो। खैर! कांग्रेस को राहुल के करिश्मे का इंतजार है। यही वजह है कि यूपी में जैसे-जैसे चरणों में चुनाव सम्पन्न हो रहा है, कांग्रेस का उत्साह भी बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस तो अब दावा कर रही है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव अब केवल राहुल बनाम अन्य होकर रह गया है, इसलिए सपा, बसपा से लेकर भाजपा तक के नेता अपने भाषणों में केवल राहुल गांधी पर निशाना साध रहे हैं। लगता है कि राहुल बाबा ने तो सपना पाल लिया है कि इस चुनाव में कांग्रेस को अपने दम पर सिंहासन तक पहुंचाएंगे और ऐसे में जब उन्हें ज्यादा भव-बाधाएं दिखाई पड़ती हैं तो उन्हें गुस्सा आ जाता है। अब इस गुस्से को भुनाने की राजनीतिक कला भी उन्होंने सीख ली है। सो, अब वे जब एंग्री युवा लीडर के तेवर दिखाते हैं तो दर्शक खूब तालियां पीटते हैं। कुछ ऐसा ही उस दिन लखनऊ की एक चुनावी सभा में हुआ। डीएवी कॉलेज के प्रांगण में एक चुनावी सभा में, हल्की दाढ़ी उगाए राहुल गांधी ने माइक थामा। इसके बाद वे किसी बॉलीवुड नायक की तरह बोल पड़े। चेहरे पर गुस्से के भाव लेकर वे बोले कि सपा और बसपा ने सालों से केवल वादे किए हैं। हकीकत में कुछ नहीं किया। इसी के चलते आपके हाल बदतर हुए हैं। मेरे हाथ में सपा की चुनावी लिस्ट है। यही कि चुनाव जीते, तो सड़कें देंगे, बिजली देंगे, रोजगार देंगे। यदि रोजगार नहीं दे पाए तो बढ़ा हुआ बेरोजगारी भत्ता देंगे। यह वही लिस्ट है, जो पिछले चुनाव में भी सपा ने आम लोगों को दी थी। आम लोगों को काम चाहिए वादों की लिस्ट नहीं। ऐसे में सपा की यह लिस्ट फाड़ रहा हूं। यह कहकर उन्होंने हीरोगीरी के अन्दाज में हाथ में लिया कागज फाड़कर नीचे फेंक दिया। राहुल के इस एक्शन पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि ऐसा करके राहुल ने अपना बचपना दिखाया है। लगता यही है कि उन्हें अभी राजनीति की समझ नहीं है। सबसे अच्छा कमेंट सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का था। अखिलेश ने कहा राहुल का गुस्सा नाटक है और स्टंट है। कभी पर्चा फाड़ते हैं तो कभी श्रोताओं को अपनी सभा से चले जाने को कहते हैं। कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन वह मंच से ही कूद जाएं। राहुल गांधी के यह तेवर क्या रंग खिलाते हैं, इसका तो मतों की गिनती पर ही पता चलेगा।
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यूपी के हैल्थ मिशन घोटाले ने ली सातवीं बलि

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th February  2012
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश में हुआ 5700 करोड़ का नेशनल रूरल हैल्थ मिशन (एनआरएचएम) घोटाला एक के बाद एक जिन्दगी निगल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के सात फरवरी से लापता कैशियर महेन्द्र शर्मा (50) का खून से लथपथ शव बुधवार रात लखीमपुर खीरी जिले से बरामद हुआ। बमुश्किल 24 घंटे बीते कि गुरुवार रात दिल्ली के व्यवसायी सरदार रणजीत सिंह (50) ने लखनऊ के एक होटल में नशीली गोलियां खाकर खुदकुशी कर ली। बुधवार को ही सीबीआई ने एनआरएचएम घोटाले के संबंध में उनसे लम्बी बातचीत की थी। उनके शव के पास दो पेज का सुसाइड नोट बरामद हुआ। इस 5700 करोड़ रुपये के घोटाले में पहले कई लोगों की जान जा चुकी है। 20 अक्तूबर 2010 को लखनऊ के परिवार कल्याण विभाग के सीएमओ डॉ. विनोद आर्य की दिन-दिहाड़े हत्या कर दी गई। उसी विभाग के सीएमओ डॉ. बीपी सिंह की दो अप्रैल 2011 को हत्या कर दी गई। डॉ. आर्य की हत्या के बाद डॉ. सिंह उसी विभाग के फरवरी 2011 में सीएमओ बने थे। इन हत्याओं के आरोप में गिरफ्तार किए गए डिप्टी सीएमओ डॉ. सचान जून 2011 में संदिग्ध अवस्था में लखनऊ जेल में मृत पाए गए। सुनील कुमार वर्मा जो एनआरएचएम के प्रोजेक्ट मैनेजर थे, ने जनवरी 2011 में लखनऊ स्थित अपने निवास में खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। बनारस में डिप्टी सीएमओ शैलेश यादव की पिछले महीने सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। इस घोटाले में राज्य सरकार के दो मंत्रियों अनन्त कुमार मिश्र और बाबू सिंह कुशवाहा के नाम आने पर उन्हें पद से हटना पड़ा। एनआरएचएम घोटाले की जांच जिस तेजी से आगे बढ़ रही है, ठीक उसी तरह मरने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। सीबीआई का शिकंजा जब खीरी के अफसरों पर कसने लगा तो उनके `मन-मुताबिक' कार्य न करने पर पसगंवा सीएमसी के वरिष्ठ लिपिक महेन्द्र शर्मा को जान से हाथ धोना पड़ा है। आरोपों के घेरे में विभाग के मुखिया समेत कई चिकित्सा अधिकारी भी हैं। इसके अलावा लिपिक संघ के अध्यक्ष पर भी परिजनों ने निशाना साधते हुए सुलह-समझौता कराने के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया है। परिजनों ने पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है ताकि साजिश उजागर हो सके। एनआरएचएम घोटाले से जुड़ी छठी मौत को सीबीआई गम्भीरता से ले रही है। सीबीआई ने स्पष्ट कर दिया है कि स्वास्थ्य विभाग के कैशियर महेन्द्र शर्मा की `हत्या' की उत्तर प्रदेश पुलिस जांच कर रही है और हमारी उस पर नजर है। जरूरत पड़ने पर वह इसे अपने हाथ में ले सकती है। उधर माया मंत्रिमंडल से हटाए मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने कहा कि हत्याओं के पीछे मायावती, उनके मंत्री नसीमुद्दीन, कैबिनेट सचिव शशांक शेखर, गृह सचिव पुंवर फतेह बहादुर व अन्य आईएएस अफसरों की साठगांठ है। मैंने इस साजिश के बारे में मायावती को बताया तो उन्होंने मुझे धमकाया और जुबान बन्द रखने को कहा। पता नहीं इस घोटाले को लेकर अभी कितनी जानें और जाएंगी? अब तक हुईं नौ मौतों में से पांच की हत्या की गई, एक ने खुदकुशी की और तीन सन्देहास्पद हालात में मारे गए हैं।
Anil Narendra, CBI, Corruption, Daily Pratap, Dr. Sachan, NRHM, Uttar Pradesh, Vir Arjun

Saturday 18 February 2012

...और अब एक सरकारी डाक्टर दम्पति से मिले 35 करोड़

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 18th February  2012
अनिल नरेन्द्र
सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का बोलबाला चौंकाने वाला है। कुछ सरकारी अधिकारियों ने तो अवैध सम्पत्ति बनाने की होड़ में सारी हदें पार कर ली हैं। ऐसा एक उदाहरण हमें पिछले दिनों मध्य प्रदेश से मिला। मध्य प्रदेश लोकायुक्त टीम ने गत दिनों एक सरकारी डाक्टर दम्पति के उज्जैन व नागदा स्थित घर पर छापा मारा। जिले के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत डॉ. विनोद एवं डॉ. विद्या लहरी के पास आय से अधिक करोड़ों की सम्पत्ति मिली है। पांच मकान, एक पेट्रोल पम्प, वेयर हाउस, 150 बीघा जमीन, पोहा फैक्टरी का खुलासा हुआ है। एक अनुमान के अनुसार उनकी सम्पत्ति 35 करोड़ रुपये की आंकी जा रही है। लोकायुक्त एसपी अरुण मित्रा ने बताया कि इन्दिरा नगर निवासी डॉ. विनोद लहरी व उनकी पत्नी विद्या लहरी 22 सालों से शासकीय सेवा में दोनों दो वर्ष से निलम्बित होने के कारण ज्वाइंट डायरेक्टर कार्यालय उज्जैन में पदस्थ हैं। इन्हें अब तक की इस सरकारी नौकरी में करीब 80 लाख रुपये वेतन मिला है। डाक्टर दम्पति की इतनी आय होती है कि वे हाथों से नोट नहीं गिन पाते थे। उनके घर में नोट गिनने की मशीन भी मिली। लोकायुक्त का दूसरा दल जब नागदा में डॉ. लहरी के हॉस्पिटल रोड स्थित मकान पर तलाशी के लिए गया तो मकान देखकर चौंक पड़ा क्योंकि वहां मकान नहीं, महल बना हुआ है। काफी समय से बन्द पड़े इस महल के अन्दर आधुनिक नर्सिंग होम और एक स्वीमिंग पूल भी मिला है। दम्पति पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है, सम्पत्ति के मूल्यांकन के बाद उसकी कीमत का सही अनुमान लग सकेगा। इधर सूत्रों के मुताबिक लोकायुक्त सम्पत्ति की कीमत करीब 35 करोड़ से अधिक है। मजेदार बात यह भी है कि दोनों डाक्टर जून 2010 से निलम्बित हैं। नागदा सेवाकाल में शिकायतों के चलते ये निलम्बित हुए थे। सवाल है कि सरकार अब इस डाक्टर दम्पति के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी? इन मामलों में बिहार ने अच्छी पहल की है। हाल ही में पटना की निगरानी अदालत के विशेष न्यायाधीश रमेश चन्द्र मिश्र ने एक फरवरी को बिहार के पूर्व डीजीपी नारायण मिश्र की आय से करीब एक करोड़ 40 लाख रुपये से अधिक की सम्पत्ति जब्त करने के आदेश दिए। बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी अभियान में यह एक महान उपलब्धि है। एक तरह जहां 2जी स्पैक्ट्रम लाइसेंस को रद्द करवाने के लिए लोगों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है वहीं बिहार राज्य सरकार ने एक नया कानून बनवाकर अपने सर्वोच्च पुलिस अधिकारी की सम्पत्ति भी जब्त करवाने में सफलता पा ली है। इससे पहले भी पटना की निगरानी अदालत बिहार कैडर के आईएएस अफसर एसएस वर्मा सहित कई लोक सेवकों की सम्पत्ति जब्त कर चुका है। वर्मा के पटना स्थित निजी आवास में अब सरकारी स्कूल चल रहा है। निगरानी अदालत पटना कोषागार के पूर्व अधिकारी गिरीश कुमार, गया नगर निगम के पूर्व अफसर योगेन्द्र सिंह, कैमूर के वन प्रमंडल अधिकारी भोला प्रसाद जैसे कई अन्य विवादास्पद अफसरों की भी सम्पत्ति जब्त करने के आदेश दे चुकी है। सवाल सिर्प राजनीतिक इच्छाशक्ति का है और बिहार ने रास्ता दिखा दिया है। मध्य प्रदेश को भी बिहार से सीख लेनी चाहिए।
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ईरान के उग्र रूप का पश्चिमी देश क्या जवाब देंगे?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 18th February  2012
अनिल नरेन्द्र
ईरान किसी के आगे झुकने वाला नहीं है। यही उसकी परम्परा रही है और उसी परम्परा पर वह कायम है। पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव का ईरान पर लगता है उल्टा ही असर हुआ है। अब वह पहले से भी उग्र हो गया है। ईरान ने पश्चिमी देशों के खिलाफ बुधवार को सख्त रुख अख्तियार कर लिया। अमेरिका और यूरोपीय देशों की धमकियों को अनदेखा करते हुए उसने न केवल अपने एटमी कार्यक्रम की सफलता का ऐलान किया बल्कि यूरोपीय देशों की तेल सप्लाई रोकने की धमकी भी दे दी। तेहरान में एक समारोह के दौरान ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने चेतावनी देते हुए कहा कि अमेरिका बेवजह की भभकी देता रहता है। उसमें अब कोई दम नहीं बचा है। जरूरत पड़ी तो ईरान उसे सबक भी सिखा सकता है। फारस की खाड़ी में सैन्य ताकत का प्रदर्शन करने के बाद ईरान ने बुधवार को अपने विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम की नुमाइश भी की। पश्चिमी देशों द्वारा लगातार दी जा रही चेतावनियों व प्रतिबंधों को धत्ता बताते हुए ईरान ने दावा किया कि उसने परमाणु रिएक्टर में इस्तेमाल हेने वाले चौथी पीढ़ी के स्वदेशी सेंट्रीफ्यूज (ईंधन छड़ें) बना लिए हैं। खुद राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने उत्तरी तेहरान स्थित परमाणु रिएक्टर में सेंट्रीफ्यूज लगाया। ईरान के सरकारी टीवी ने इसका सीधा प्रसारण किया। महमूद अहमदीनेजाद ने बाद में ऐलान किया कि जल्द ही ईरान दुनिया के चुनिन्दा परमाणु ताकतों में शुमार होगा। उन्होंने कहा कि हमने 9000 सेंट्रीफ्यूज तैयार कर लिए हैं। रिएक्टर में सेंट्रीफ्यूज रॉड लगाने के बाद अहमदीनेजाद ने कहा, `ईरान पर प्रतिबंध लगाए गए हैं और प्रतिबंध लगाए जाने का प्रस्ताव है, लेकिन इससे तेहरान को कोई फर्प नहीं पड़ा है। पश्चिमी देश नहीं चाहते कि ज्ञान और प्रगति पूरी दुनिया में फैले।' जो देश तरक्की करना चाहते हैं उन्हें इन दबावों और अड़चनों से लड़ना पड़ेगा।
ईरान दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। इराक, कुवैत के तेल कुओं पर कब्जे वाला फॉर्मूला अमेरिका लगता है यहां भी आजमाना चाहता है। लेकिन रूस, चीन और भारत का साथ नहीं मिलने की वजह से वह सीधी कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। यूरोप का 18 फीसदी कच्चा तेल ईरान से आयात होता है और बुधवार को खबर आई कि ईरान ने नीदरलैंड, इटली, स्पेन, यूनान, पुर्तगाल और फ्रांस की तेल आपूर्ति बन्द करने की धमकी भी दी है। उधर अमेरिका, इजराइल का मानना है कि ईरान एटमी हथियार इसलिए बना रहा है ताकि वह इजराइल पर हमला कर सके। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ईरान आतंकवाद का सबसे बड़ा निर्यातक है। उसका आतंकी अभियान उजागर हो चुका है। वह हमारे निर्दोष राजनयिकों को नुकसान पहुंचा रहा है। ईरान के खिलाफ लक्ष्मण रेखा खींचनी चाहिए। वह दुनिया की शांति और स्थिरता के लिए खतरा है। अमेरिका भारत पर भी ईरान के खिलाफ खड़ा होने के लिए दबाव बना सकता है पर भारत को इस दबाव में नहीं आना चाहिए। ईरान के साथ संबंधों को कैसे चलाना है, इस पर किसी तीसरे मुल्क की इच्छा नहीं चलेगी। अब देखना यह है कि अमेरिका और यह पश्चिमी देश अहमदीनेजाद की ताजा धमकियों और उसके एटमी कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के इरादों से कैसे निपटते हैं? मध्य पूर्व में स्थिति तनावपूर्ण बनती जा रही है। छोटी-सी भी चिंगारी आग में बदल सकती है।
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Friday 17 February 2012

Future of Pak Prime Minister Yousuf Raza Gilani

- Anil Narendra
The beleaguered Pakistani Prime Minister Yousuf Raza Gilani is passing through hard times. Confrontation continues between him and the Pak Supreme Court. Chances of Gilani getting relief appears to be dim. On Friday, the Supreme Court rejected his plea and directed him to appear before the Court on Feb 13th. It was quite a big blow for Gilani. It may be recalled that Gilani had appealed to the Supreme Court to quash the order summoning him for framing charges against himself in the contempt of the Court case. Taking note of Gilani failing to reopen graft cases against the President Asif Ali Zardari, the Supreme Court had directed Gilani to appear before it on Feb 13. Gilani's lawyer, Aitzaz Ahsan, in his 200-pages appeal, had sought to cancel the Court's order asking the Prime Minister to appear before the Supreme Court on Feb 13th, which was rejected by the Court on Friday. Charges against Gilani were framed on Feb 13th for failing to comply with the Court's order for reopening graft cases against President Zardari. Before rejecting Gilani's appeal, the Chairman of the eight-member Bench and Chief Justice of Pak Supreme Court, Justice Iftikhar Chaudhry asked the lawyer of Gilani to reply categorically whether the Prime Minister would write to the Swiss Government to reopen graft cases against President Zardari or not? The Chief Justice said, "You may talk to the Prime Minister on phone. We give you ten minutes for this." But Gilani's lawyer replied, "I do not have any such right." Then the Chief Justice said, "Your appeal is dismissed."
What will happen next? Will Gilani resign? In case, Gilani resigns, the Government will not fall, as the ruling coalition is having sufficient majority. It can appoint someone else as the Prime Minister in place of Gilani. But one thing is certain, the confrontation with the judiciary could weaken the Pakistan People's Party and the next general elections could be postponed to 2013. If political stability in Pakistan, which is already beset with numerous problems, deepens, it would not augur well. There is Taliban issue on one hand and ever increasing poverty and unemployment on the other. Situation in Pakistan, today is sliding from bad to worse. There is one more serious allegation against the ruling coalition. Transparency International Pakistan (TIP), in its recent report has said that Pakistan has suffered a loss to the tune of 8,500 billion rupees during the Gilani rule. This loss has been due to corruption, tax evasion and bad governance. The TIP Consultant, Adil Gilani told the News that corruption had serious consequences. The report says that the present Government of Pakistan, which came to power in 2008, is the most corrupt government in Pakistan so far. During the tenure of this Government, corruption has crossed all limits and Pakistan has been relegated to the top bracket in the list of most corrupt nations of the World. The confrontation between the Government and the judiciary has also aggravated due to one more reason. The Supreme Court has suspended 28 public representatives, including three ministers. It came to the notice of the Court during a hearing that bye-elections for Senate, National Assembly and Provincial Assemblies were conducted by an incomplete Election Commission. At the time of elections for these bodies, some posts of members of the Election Commission were lying vacant, The Supreme Court, therefore declared these bye-elections void and suspended the memberships of all the elected representatives. The political career of the Prime Minister Yousuf Raza Gilani is quite uncertain. He may have to resign from the post of the Prime Minister. He may be sent to jail for six months. All depends on the course of action, which the Supreme Court of Pakistan decides to take. Wait and watch for the SC decision on Feb 28th.

लालू उवाच : घूस खाया तो ऊ पैसा कहां है?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 17th February  2012
अनिल नरेन्द्र
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव मंगलवार को सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष पेश हुए। उन पर 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले का आरोप है। सुनवाई के दौरान लालू उसी अंदाज में पेश आए जिस तरह वे संसद में जिरह करते वक्त दिखते हैं। उन्होंने अपने खास अंदाज में पौने दो घंटे तक सीबीआई विशेष जज पीके सिंह की कोर्ट में बयान दर्ज कराया। इस दौरान लालू जी ने खुद पर लगाए आरोपों को पूरी तरह नकारते हुए उल्टा सीबीआई के खिलाफ ही कार्रवाई करने की मांग कर डाली। लालू ने कहा, `चारा घोटालेबाजों ने घूस में हमको करोड़ों रुपया दिया, तो ऊ पइसा कहां है। भई, मेरे पास तो नहीं है, सीबीआई दावा कर रही है कि मेरा पइसा है, तो लाकर मुझे दे। श्याम बिहारी सिन्हा तो स्वर्ग में हैं। उनको बुलाया जाए, तभी न बताएंगे, हमको कितना पइसा घूस में दिए। लालू प्रसाद के पेट में कोई बात नहीं पचता है। हमको घूस मिला होता, तो कोर्ट में भी सच-सच बता देते। दरअसल हमको सत्ता से बेदखल करने के लिए इ सब षड्यंत्र किया गया। न्यायपालिका और भगवान पर आस्था जताते हुए लालू कहते हैं कि उपर वाला सब कुछ देख रखा है। मेरे पर अईसा आरोप लगाया है कि धरती फट जाए और हम उसी में समां जाएं। जानते हैं हुजूर, सीबीआई वाला लोग मेरा खैनी, कंघा, गोइठा, भैंसें सब का खरचा मेरी सम्पत्ति में जोड़ लिया। ई कइसा न्याय है हुजूर, मुद्दई भी हम और मुदालय भी हम ही बन गए। हम हीं ने जांच की अनुशंसा की, कागज पत्तर उपलब्ध कराया और हमीं को फंसा दिया गया। हम षड्यंत्र करते तो सारा कागज में आग नहीं लगा देते। जब जज महोदय ने लालू से प्रश्न किया तो लालू बोले ः हुजूर जो प्रश्न हमको दिया गया ऊ अंग्रेजी में है। हमरा अंग्रेजी कमजोर है। जब पढ़ने का टाइम था, तब तो हम गाय-गोरू चराते थे। हिन्दी में लिखने से बात ठीक से समझ में आएगी। कोर्ट ने कहा कि आपको हिन्दी में ही दिया जाएगा ताकि सही बात सामने आ सके। लालू प्रसाद ने कहा कि सर मैंने भी पटना लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री लिया है। जज साहब ने कहा मैं भी वहीं का स्टूडेंट रहा हूं। आपसे जूनियर हूं। आपको अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाएगा। लालू बोले ः हुजूर ई लोग कहता है कि हम स्विस बैंक में पइसा रखे हैं। स्विस जाने का हमको छूट है? एनडीए वाला लोग यूएन विश्वास को बोला गवर्नर बना देंगे और हमको फंसा देंगे। जज ने पूछा आप पर चारा घोटालेबाजों से हवाई टिकट और होटल में ठहरने का खर्च लेने के आरोप हैं। लालू ने कहा बिहार सरकार का अपना हेलीकाप्टर है। टीए, डीए भी मिलता था, हम क्यों खरचा लेते? मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री की हैसियत से मैंने क्या किया यह फाइल में लिखा हुआ है। सीबीआई के कहने से कुछ नहीं होगा। लालू ने कोर्ट को बताया कि भारत के इतिहास में यह पहला मौका है, जब मेरी गिरफ्तारी के लिए सेना को बुलाने की चिट्ठी लिखा गया था। जबकि मैं खुद सरेंडर करने की बात कह दी थी। सेना ने आने से इंकार कर दिया था। लालू ने जज से ही पूछ डाला हुजूर सीबीआई को दंडित करने का कोई प्रावधान है ही नहीं। जिसको तिसको फंसा देते हैं। कहीं का रोड़ा, कहीं का पत्थर जोड़ के हमको फंसा दिया। ई लोग अंदाज पर गटई पकड़ रहा है।
CBI, Corruption, Fodder Scam, Lalu Prasad Yadav