Friday, 10 February 2012

पश्चिमी देश अपनी राय सीरिया पर नहीं थोप सकते

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 10th February  2012
अनिल नरेन्द्र
सीरिया के अंदरूनी हालात बहुत खराब हैं। वहां एक गृह युद्ध छिड़ा हुआ है। वहां राष्ट्रपति बशर अल असद की सेना व उनका तख्ता पलटने में लगे विद्रोहियों में जमकर लड़ाई हो रही है। मंगलवार को विभिन्न शहरों में हुई कार्रवाई में दर्जनों लोग मारे गए। राष्ट्रपति असद के सैनिकों ने होम्स शहर में मोर्टारों से हमला किया जबकि राजधानी के समीप स्थित जावदानी शहर में भी आक्रामक कार्रवाई की। उधर सरकारी मीडिया ने दावा किया कि उत्तर-पश्चिमी इदलिब प्रांत में हथियारबंद आतंकियों के हमले में तीन सैनिक मारे गए। सरकारी फोर्सेज विद्रोहियों पर हेलीकाप्टरों और टैंकों से कार्रवाई कर रहे हैं। राजधानी दमिश्क के इर्द-गिर्द शहर विद्रोहियों के कब्जे में आ गए हैं। गत मार्च से करीब 7000 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। पिछले दिसम्बर को अरब लीग ने संघर्ष रोकने के लिए 200 आब्जर्वर भेजे थे पर यह भी हिंसा रोकने में नाकाम रहे। विद्रोहियों की मदद अमेरिका और कुछ पश्चिमी देश कर रहे हैं। सीरिया में अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित अमेरिका ने अपना दूतावास बन्द कर दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने मंगलवार को कहा कि सीरिया में अमेरिकी राजदूत रॉबर्ट फोर्ड समेत दूतावास के सभी कर्मचारियों को वापस बुला लिया गया है। छह खाड़ी देशों की सहयोग परिषद ने भी सीरिया पर दबाव बढ़ाते हुए दमिश्क से अपने राजनयिकों को वापस बुलाने और अपने यहां सीरिया के राजदूतों को वापस भेजने का निर्णय लिया है। उधर सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ने एक बार फिर देश में हिंसा रोकने और विपक्ष से बात करने का वादा किया। अल असद ने यह भरोसा सीरिया के दौरे पर गए रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को दिलाया। लेकिन सीरियाई विपक्ष ने कहा है कि राष्ट्रपति खोखले वादे कर रहे हैं। सीरिया में रूसी विदेश मंत्री के स्वागत में हजारों की भीड़ दमिश्क की सड़कों के किनारे जमा होकर किया। लोग सड़कों के किनारे और शहर के मुख्य चौराहों पर झंडे लेकर खड़े थे और उसे हिलाकर सर्गेई लावरोव का इस्तकबाल किया। विद्रोही पिछले मार्च से राष्ट्रपति असद का तख्ता पलटने की साजिश में जुटे हुए हैं पर इतने दिन बीतने के बाद भी वह जीत नहीं पाए। कारण साफ है, सीरिया की सेना और जनता का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह असद के साथ है। सीरिया लीबिया नहीं जिस पर आसानी से तख्ता पलट हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र भी देश में अमन-शांति के प्रयास कर रहा है पर वह भी विफल रहा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जो प्रस्ताव लाया गया था, असल में वह अरब लीग से ही प्रेरित था। तकरीबन दो दशक बाद सुरक्षा परिषद में लौटे भारत ने इस प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया। इसका यह मतलब नहीं कि भारत ने पश्चिमी देशों का पिछलग्गू बनकर यह कदम उठाया। दरअसल उसका यह कदम अरब लीग और सीरिया के साथ उसके ऐतिहासिक संबंधों पर आधारित है। यही नहीं, सीरिया के खिलाफ खड़े गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल के बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई में तकरीबन 50 लाख भारतीय काम करते हैं। इन सबसे बड़ी बात यह है कि भारत लोकतंत्र के समर्थन और शांति स्थापना के पक्ष में है और चाहता है कि सीरिया के नेतृत्व का फैसला उस देश के लोग ही करें। बेशक यूरोपीय देशों और अमेरिका की नजर सीरिया के तेल पर हो सकती है पर सीरिया पर कौन राज करेगा इसका फैसला केवल वहां की जनता ही कर सकती है।
America, Anil Narendra, Daily Pratap, Russia, Syria, USA, Vir Arjun

No comments:

Post a Comment